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    प्रहरीदुर्ग,

    10/15/2008, पेज 5-6

    7/1/2006, पेज 19

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    गवाही दो, पेज 35

    प्रहरीदुर्ग,

    10/15/2008, पेज 5-6

    7/1/2006, पेज 19

    12/1/1990, पेज 28

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    12/1/1990, पेज 28

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    गवाही दो, पेज 38

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    12/1/1990, पेज 28

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    3/2020, पेज 31

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    प्रहरीदुर्ग (अध्ययन),

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    गवाही दो, पेज 36, 39

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    प्रेषि 5:28 या, यीशु।

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    गवाही दो, पेज 37

    खुशी से जीएँ हमेशा के लिए!, पाठ 21

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    गवाही दो, पेज 39

    खुशी से जीएँ हमेशा के लिए!, पाठ 21

    प्रहरीदुर्ग,

    12/15/2005, पेज 19-20

    11/1/2002, पेज 18-19

    11/1/1988, पेज 29

    “सम्पूर्ण पवित्रशास्त्र” (मत्ती-कुलु), पेज 18

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    नयी दुनिया अनुवाद, पेज 2106

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    राज-सेवा,

    3/2001, पेज 3

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    प्रहरीदुर्ग,

    5/15/2008, पेज 31

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    गवाही दो, पेज 40

    खुशी से जीएँ हमेशा के लिए!, पाठ 21

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    गवाही दो, पेज 40

    खुशी से जीएँ हमेशा के लिए!, पाठ 21

    प्रहरीदुर्ग,

    12/15/2005, पेज 20-24

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    गवाही दो, पेज 40-41

    परमेश्‍वर का राज हुकूमत कर रहा है!, पेज 135

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    गवाही दो, पेज 41-42

    खुशी से जीएँ हमेशा के लिए!, पाठ 18

    प्रहरीदुर्ग,

    2/1/1992, पेज 23

    3/1/1988, पेज 25

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नयी दुनिया अनुवाद—मसीही यूनानी शास्त्र
प्रेषितों 5:1-42

प्रेषितों

5 मगर, हनन्याह नाम के एक आदमी और उसकी पत्नी सफीरा ने अपनी कुछ संपत्ति बेची 2 और हनन्याह ने चोरी-छिपे उसकी कीमत का कुछ हिस्सा अपने पास रख लिया और यह बात उसकी पत्नी भी जानती थी। वह उस रकम का सिर्फ कुछ हिस्सा ले आया और प्रेषितों के पैरों पर लाकर रख दिया। 3 तब पतरस ने कहा: “हनन्याह, क्यों शैतान ने तुझे ऐसा ढीठ कर दिया है कि तू पवित्र शक्‍ति से झूठ बोले और ज़मीन की कीमत का कुछ हिस्सा चोरी से अपने पास रख ले? 4 जब तक वह तेरे पास थी, क्या वह तेरी न थी और बेचने के बाद भी क्या उसकी कीमत पर तेरा अधिकार न था? तो फिर क्यों तू ने अपने दिल में ऐसा काम करने की ठानी? तू ने इंसानों से नहीं, बल्कि परमेश्‍वर से झूठ बोला है।” 5 ये शब्द सुनते ही हनन्याह गिर पड़ा और दम तोड़ दिया। और इस बारे में सुननेवाले हर किसी पर बड़ा भय छा गया। 6 फिर कुछ नौजवानों ने उठकर उसे कपड़े में लपेटा और उसे बाहर ले गए और दफना दिया।

7 अब करीब तीन घंटे बाद उसकी पत्नी आयी और उसे खबर न थी कि वहाँ क्या हो चुका है। 8 पतरस ने उससे कहा: “मुझे बता, क्या तुम दोनों ने अपनी ज़मीन इतने ही दाम में बेची थी?” उसने कहा: “हाँ, इतने में ही बेची थी।” 9 पतरस ने उससे कहा: “क्यों तुम दोनों ने आपस में एका कर लिया कि यहोवा की पवित्र शक्‍ति की परीक्षा लो? देख! तेरे पति को दफनानेवालों के कदम दरवाज़े तक आ पहुँचे हैं और वे तुझे भी उठाकर ले जाएँगे।” 10 उसी घड़ी वह उसके पैरों पर गिर पड़ी और मर गयी। जब वे नौजवान अंदर आए तो उन्होंने उसे मरा हुआ पाया और वे उसे उठाकर बाहर ले गए और उसके पति के बराबर उसे दफना दिया। 11 इस घटना से, पूरी मंडली* पर और इन बातों के बारे में सुननेवाले हर किसी पर बड़ा भय छा गया।

12 इतना ही नहीं, प्रेषितों के हाथों से लोगों के बीच बहुत से चमत्कार और आश्‍चर्य के काम होते रहे। वे सभी एक मन से सुलैमान के खंभोंवाले बरामदे में इकट्ठा हुआ करते थे। 13 सच है कि बाकियों में से किसी ने इतनी हिम्मत न की कि चेलों में जा मिले, फिर भी आम लोग चेलों की तारीफ करते थे। 14 और-तो-और, प्रभु पर विश्‍वास करनेवाले स्त्री-पुरुष बड़ी तादाद में उनमें शामिल होते रहे। 15 यहाँ तक कि वे बीमारों को बड़ी सड़कों पर लाकर बिछौनों और चारपाइयों पर लिटा देते थे, ताकि जब पतरस वहाँ से गुज़रे, तो कम-से-कम उसकी परछाईं ही उनमें से किसी पर पड़ जाए। 16 यही नहीं, यरूशलेम के आस-पास के शहरों से भारी तादाद में लोग वहाँ आते रहे और बीमारों और दुष्ट स्वर्गदूतों के सताए हुओं को लाते रहे और वे सब-के-सब ठीक किए जाते थे।

17 मगर महायाजक और वे सभी जो उसके साथ थे, यानी उस वक्‍त के सदूकी गुट के लोग, जलन से भरकर उठे और 18 उन्होंने प्रेषितों को पकड़ लिया और जेल में डाल दिया। 19 मगर रात के वक्‍त यहोवा के स्वर्गदूत ने जेल के दरवाज़े खोल दिए, और उन्हें बाहर लाकर उनसे कहा: 20 “अपनी राह लो, और मंदिर में खड़े होकर लोगों को हमेशा की ज़िंदगी के बारे में सब बातें बताते रहो।” 21 यह सुनने के बाद, वे सुबह होते ही मंदिर में गए और सिखाने लगे।

फिर जब महायाजक और उसके साथी आए, तब उन्होंने महासभा* और इस्राएलियों के बुज़ुर्गों की सारी सभा को इकट्ठा किया और जेल से प्रेषितों को लाने के लिए पहरेदार भेजे। 22 मगर वहाँ जाने पर पहरेदारों ने उन्हें जेल में न पाया। इसलिए वे लौट आए और आकर यह खबर दी: 23 “हमने देखा कि जेलखाना पूरी सुरक्षा के साथ बंद है और दरवाज़ों पर पहरेदार भी तैनात हैं, मगर खोलने पर हमें अंदर कोई न मिला।” 24 जब मंदिर के पहरेदारों के सरदार और प्रधान याजकों ने यह सुना, तो इन बातों को लेकर वे बड़ी दुविधा में पड़ गए और उन्हें कुछ नहीं सूझ रहा था कि अब क्या होगा। 25 मगर एक आदमी ने आकर उन्हें यह खबर दी: “देखो! तुमने जिन आदमियों को जेल में डाला था, वे तो मंदिर में हैं और वहाँ खड़े होकर लोगों को सिखा रहे हैं।” 26 तब सरदार अपने पहरेदारों के साथ गया और उन्हें ले आया, मगर उनके साथ कोई ज़ोर-ज़बरदस्ती नहीं की, क्योंकि उन्हें डर था कि कहीं लोग उन पर पत्थरवाह न करने लगें।

27 वे उन्हें ले आए और महासभा के भवन में लाकर खड़ा कर दिया। और महायाजक ने उनसे सवाल पूछा: 28 “हमने तुम्हें कड़ा आदेश दिया था कि इस नाम से सिखाना बंद कर दो, मगर फिर भी देखो! तुमने सारे यरूशलेम को अपनी शिक्षाओं से भर दिया है और तुमने इस आदमी* का खून हमारे सिर पर थोपने की ठान ली है।” 29 जवाब में पतरस और दूसरे प्रेषितों ने कहा: “इंसानों के बजाय परमेश्‍वर को अपना राजा जानकर उसकी आज्ञा मानना ही हमारा कर्तव्य है। 30 हमारे बापदादों के परमेश्‍वर ने उस यीशु को जी उठाया, जिसे तुमने सूली* पर लटकाकर घात किया था। 31 उसी को परमेश्‍वर ने खास नुमाइंदा और उद्धार करनेवाला ठहराकर और अपनी दायीं तरफ बिठाकर उसकी महिमा की है, ताकि इस्राएल को पश्‍चाताप और पापों की माफी दे। 32 और इन सब बातों के हम गवाह हैं और पवित्र शक्‍ति भी, जिसे परमेश्‍वर ने उन लोगों को दिया है जो उसे राजा जानकर उसकी आज्ञा मानते हैं।”

33 जब उन्होंने यह सुना, तो मानो उनके कलेजे में आग लग गयी और वे उनको खत्म कर देना चाहते थे। 34 मगर महासभा में एक आदमी उठ खड़ा हुआ। यह गमलीएल नाम का एक फरीसी था, जो मूसा के कानून का शिक्षक था और लोगों में उसकी बड़ी इज़्ज़त थी। उसने इन आदमियों को कुछ देर के लिए बाहर ले जाने का हुक्म दिया। 35 और गमलीएल ने उनसे कहा: “इस्राएल के लोगो, तुम इन आदमियों के साथ जो करना चाहते हो, उसके बारे में अच्छी तरह सोच लो। 36 मिसाल के लिए, कुछ वक्‍त पहले थियूदास यह कहते हुए उठ खड़ा हुआ था कि मैं भी कुछ हूँ, और कई आदमी, करीब चार सौ लोग उसके दल में शामिल हो गए थे। मगर वह मार डाला गया और जितने उसके माननेवाले थे, वे सब तित्तर-बित्तर हो गए। 37 उसके बाद, नाम लिखाई के दिनों में गलील का यहूदा उठ खड़ा हुआ और उसने लोगों को बहकाकर अपने पीछे कर लिया। मगर वह आदमी भी मिट गया और जो उसकी मानते थे वे भी यहाँ-वहाँ तित्तर-बित्तर हो गए। 38 इसलिए, मौजूदा हालात को देखते हुए, मैं तुमसे कहता हूँ, इन आदमियों के काम में दखल मत दो, पर इन्हें अपने हाल पर छोड़ दो। (क्योंकि अगर यह योजना या यह काम इंसानों की तरफ से है, तो यह मिट जाएगा, 39 लेकिन अगर यह परमेश्‍वर की तरफ से है, तो तुम इन्हें मिटा न सकोगे।) कहीं ऐसा न हो कि तुम असल में परमेश्‍वर से लड़नेवाले ठहरो।” 40 इस पर उन्होंने उसकी बात मान ली और प्रेषितों को बुलवाकर उन्हें पिटवाया और हुक्म दिया कि यीशु के नाम से बोलना बंद कर दें, और तब उन्हें जाने दिया।

41 इसलिए, वे महासभा के सामने से इस बात पर बड़ी खुशी मनाते हुए अपने रास्ते चल दिए कि उन्हें यीशु के नाम से बेइज़्ज़त होने के लायक तो समझा गया। 42 और वे बिना नागा हर दिन मंदिर में और घर-घर जाकर सिखाते रहे और मसीह यीशु के बारे में खुशखबरी सुनाते रहे।

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