लूका के मुताबिक खुशी का संदेश
1 आदरणीय थियुफिलुस, जिन सच्ची घटनाओं पर हम सब यकीन करते हैं, उनका ब्यौरा लिखने का काम बहुत-से लोगों ने अपने हाथ में लिया। 2 उसी तरह, जो लोग शुरूआत से इन बातों के चश्मदीद गवाह रहे और हमें परमेश्वर का संदेश सुनानेवाले सेवक बने, उन्होंने भी ये बातें हम तक पहुँचायी हैं। 3 मैंने भी ठीक ऐसा ही करने की ठानी है। क्योंकि मैंने सारी बातों का शुरूआत से सही-सही पता लगाया है ताकि मैं तुझे ये बातें तर्क के मुताबिक सिलसिलेवार ढंग से लिख सकूँ, 4 जिससे कि तू पक्की तरह जान सके कि जो बातें तुझे ज़बानी तौर पर सिखायी गयी थीं वे एकदम भरोसे के लायक हैं।
5 जब हेरोदेस* यहूदिया प्रदेश का राजा था, उन दिनों जकर्याह नाम का एक याजक था। वह अबिय्याह के दल का था और उसकी पत्नी का नाम इलीशिबा था। वह हारून के वंश की थी। 6 वे दोनों परमेश्वर की नज़र में नेक थे, क्योंकि वे यहोवा* की सभी आज्ञाओं और कानूनों को मानते थे और निर्दोष थे। 7 लेकिन उनके कोई बच्चा न था, इसलिए कि इलीशिबा बाँझ थी और वे दोनों बूढ़े हो चुके थे।
8 जब जकर्याह अपने दल की पारी में परमेश्वर के सामने याजक का काम कर रहा था, 9 तो याजकपद के रिवाज़ के मुताबिक धूप जलाने की उसकी बारी आयी और वह यहोवा के मंदिर में गया। 10 धूप जलाने के वक्त, लोगों की सारी भीड़ बाहर प्रार्थना कर रही थी। 11 तब जकर्याह के सामने यहोवा का दूत प्रकट हुआ। वह धूप की वेदी की दायीं तरफ खड़ा था। 12 उसे देखकर जकर्याह घबरा गया और बेहद डर गया। 13 लेकिन स्वर्गदूत ने उससे कहा: “जकर्याह मत डर, क्योंकि तेरी मिन्नतें सुन ली गयी हैं। तेरी पत्नी इलीशिबा माँ बनेगी और तेरे बेटे को जन्म देगी और तू उसका नाम यूहन्ना रखना। 14 तुझे खुशी और बड़ा आनंद होगा और बहुत लोग उस बच्चे के जन्म पर खुशियाँ मनाएँगे, 15 क्योंकि वह यहोवा की नज़र में महान होगा। मगर उसे दाख-मदिरा या शराब बिलकुल नहीं पीनी है। वह अपनी माँ के गर्भ से ही परमेश्वर की पवित्र शक्ति से भरपूर होगा। 16 वह इस्राएल के बहुत-से बेटों को लौटाकर उनके परमेश्वर यहोवा के पास ले आएगा। 17 साथ ही, वह परमेश्वर के आगे एलिय्याह जैसे जोश* और शक्ति के साथ जाएगा कि पिताओं के दिलों को पलटकर बच्चों का कर दे। और जो आज्ञा नहीं मानते उन्हें नेक जनों की व्यावहारिक बुद्धि दे, और इस तरह लोगों को यहोवा के लिए तैयार करे।”
18 तब जकर्याह ने स्वर्गदूत से कहा: “मैं इस बात का कैसे यकीन करूँ कि मैं पिता बनूँगा? क्योंकि मैं बूढ़ा हो चुका हूँ और मेरी पत्नी की भी उम्र ढल चुकी है।” 19 जवाब में स्वर्गदूत ने उससे कहा: “मैं जिब्राईल हूँ, और परमेश्वर के सामने हाज़िर रहता हूँ। मुझे तुझसे बात करने और तुझे इन बातों की खुशखबरी सुनाने के लिए भेजा गया है। 20 मगर देख! जिस दिन तक ये बातें पूरी न हो जाएँ, उस दिन तक के लिए तू गूँगा हो जाएगा और कुछ बोल न सकेगा। क्योंकि तू ने मेरी बातों का यकीन नहीं किया, जो अपने ठहराए हुए वक्त पर ज़रूर पूरी होंगी।” 21 इस दौरान लोग बाहर जकर्याह का इंतज़ार करते रहे। वे ताज्जुब करने लगे कि उसे मंदिर में इतनी देर क्यों लग रही है। 22 लेकिन जब वह बाहर आया, तो उनसे कुछ बोल न सका। तब वे समझ गए कि ज़रूर उसने मंदिर में अभी-अभी कोई दर्शन देखा है। वह उनसे इशारों में बात करता रहा और गूँगा रहा। 23 फिर जब उसकी जन-सेवा के दिन पूरे हुए, तो वह अपने घर लौट गया।
24 इसके बाद उसकी पत्नी इलीशिबा गर्भवती हुई। वह पाँच महीने तक अपने घर से न निकली। वह कहती थी: 25 “इन दिनों यहोवा ने मुझ पर ध्यान दिया है और लोगों के बीच से मेरी बदनामी दूर करने के लिए मुझ पर मेहरबानी की है।”
26 इलीशिबा के छठे महीने में परमेश्वर ने जिब्राईल स्वर्गदूत को गलील प्रदेश के नासरत शहर में 27 एक कुँवारी के पास भेजा। उसकी मँगनी दाविद के घराने में यूसुफ नाम के एक आदमी से हो चुकी थी। उस कुँवारी का नाम मरियम था। 28 जब वह स्वर्गदूत अंदर उसके सामने आया, तो उससे कहा: “सुखी रह! परमेश्वर की बड़ी आशीष तुझ पर है। यहोवा तेरे साथ है।” 29 मगर वह यह सुनकर बहुत घबरा गयी और सोचने लगी कि ऐसे नमस्कार का क्या मतलब हो सकता है। 30 तब स्वर्गदूत ने उससे कहा: “मत डर मरियम, क्योंकि तू ने परमेश्वर की बड़ी आशीष पायी है। 31 देख! तू गर्भवती होगी और एक बेटे को जन्म देगी और तू उसका नाम यीशु रखना। 32 वह महान होगा और परम-प्रधान का बेटा कहलाएगा और यहोवा परमेश्वर उसके पुरखे दाविद की राजगद्दी उसे देगा। 33 वह याकूब के घराने पर हमेशा तक राजा बनकर राज करेगा और उसके राज का कभी अंत न होगा।”
34 मगर मरियम ने स्वर्गदूत से कहा: “मेरे बच्चा कैसे हो सकता है, मैं तो कुँवारी हूँ?”* 35 जवाब में स्वर्गदूत ने उससे कहा: “परमेश्वर की पवित्र शक्ति तुझ पर आएगी और परम-प्रधान की सामर्थ तुझ पर छा जाएगी। इसी वजह से, जो पैदा होगा वह पवित्र और परमेश्वर का बेटा कहलाएगा। 36 देख! तेरी रिश्तेदार इलीशिबा जिसे बाँझ कहा जाता था, उसने भी अपने बुढ़ापे में गर्भ धारण किया है। वह एक बेटे को जन्म देनेवाली है और यह उसका छठा महीना है। 37 क्योंकि परमेश्वर के मुँह से निकली कोई भी बात नामुमकिन नहीं हो सकती।” 38 तब मरियम ने कहा: “देख! मैं यहोवा की दासी हूँ! तू ने जैसा कहा है, वैसा ही मेरे साथ हो।” तब वह स्वर्गदूत उसके पास से चला गया।
39 उन दिनों मरियम ने जल्दी-जल्दी तैयारी की और पहाड़ी इलाके में यहूदा के एक शहर के लिए निकल पड़ी। 40 वह जकर्याह के घर पहुँची और इलीशिबा को नमस्कार किया। 41 जैसे ही इलीशिबा ने मरियम का नमस्कार सुना, उसके गर्भ में शिशु उछल पड़ा। और इलीशिबा पवित्र शक्ति से भर गयी। 42 उसने ज़ोर से पुकारते हुए कहा: “सब स्त्रियों में से तू ने आशीष पायी है, और तेरे गर्भ के फल पर भी आशीष है! 43 मुझे यह सम्मान कैसे मिला कि मेरे प्रभु की माँ मेरे पास आयी? 44 क्योंकि देख! जैसे ही तेरे नमस्कार की आवाज़ मेरे कानों में पड़ी, मेरे गर्भ में शिशु खुशी से उछल पड़ा। 45 तू इसलिए भी धन्य है कि तू ने यकीन किया, क्योंकि यहोवा की जो बातें तुझसे कही गयी हैं, वे पूरी होकर रहेंगी।”
46 तब मरियम ने कहा: “मैं यहोवा का गुणगान करती हूँ 47 और मेरा दिल मेरे उद्धार करनेवाले परमेश्वर पर मगन हुए बिना नहीं रह सकता। 48 क्योंकि उसने अपनी दासी की दीन दशा पर नज़र की है। क्योंकि देखो! अब से सारी पीढ़ियाँ मुझे सुखी कहा करेंगी। 49 क्योंकि उस शक्तिशाली ने मेरी खातिर बड़े-बड़े काम किए हैं और उसका नाम पवित्र है। 50 जो उसका भय मानते हैं, उन पर उसकी दया पीढ़ी-दर-पीढ़ी बनी रहती है। 51 उसने अपना बाहुबल दिखाया है और जो अपने दिलों में घमंड-भरे इरादे रखते हैं, उन्हें तित्तर-बित्तर किया है। 52 उसने अधिकार रखनेवालों को उनकी गद्दियों से नीचे उतारा है और दीन-हीनों को ऊँचा किया है। 53 उसने भूखों को भरपेट अच्छी चीज़ें दी हैं, जबकि दौलतमंदों को खाली हाथ लौटा दिया है। 54 वह अपने सेवक इस्राएल को सहारा देने आया है ताकि ठीक जैसे उसने हमारे बापदादों से कहा था, 55 उसी के मुताबिक उसे अब्राहम और उसके वंश पर सदा-सदा तक दया दिखाना याद रहा।” 56 मरियम करीब तीन महीने तक इलीशिबा के साथ रही और फिर अपने घर लौट आयी।
57 फिर इलीशिबा ने दिन पूरे होने पर एक बेटे को जन्म दिया। 58 जब उसके पड़ोसियों और रिश्तेदारों ने सुना कि यहोवा ने उस पर बड़ी दया दिखायी है, तो वे उसके साथ खुशियाँ मनाने लगे। 59 आठवें दिन वे उस बच्चे का खतना करने आए। वे उसके पिता जकर्याह के नाम पर उसका नाम रखने जा रहे थे। 60 लेकिन बच्चे की माँ ने जवाब में कहा: “नहीं! उसका नाम यूहन्ना होगा।” 61 इस पर वे उससे कहने लगे: “तेरे रिश्तेदारों में किसी का भी यह नाम नहीं है।” 62 तब उन्होंने जाकर बच्चे के पिता से इशारों में पूछा कि वह उसका क्या नाम रखना चाहता है। 63 उसने एक तख्ती मँगवायी और उस पर लिखा: “इसका नाम यूहन्ना होगा।” इस पर वे सब हैरत में पड़ गए। 64 उसी घड़ी जकर्याह का मुँह और उसकी ज़ुबान खुल गयी और वह बोलने और परमेश्वर की बड़ाई करने लगा। 65 उनके आस-पास रहनेवाले सभी लोगों पर भय छा गया। यहूदिया के सारे पहाड़ी इलाके में हर तरफ इन बातों की चर्चा होने लगी। 66 और जितनों ने इस बारे में सुना उन सभी ने ये बातें अपने दिल में रखीं और कहने लगे: “यह बच्चा बड़ा होकर क्या बनेगा?” इसलिए कि यहोवा का हाथ वाकई उस बच्चे पर था।
67 उसका पिता जकर्याह परमेश्वर की पवित्र शक्ति* से भर गया और यह भविष्यवाणी करने लगा: 68 “इस्राएल के परमेश्वर यहोवा की जयजयकार हो, क्योंकि उसने अपने लोगों पर ध्यान दिया है और उन्हें छुटकारा दिलाया है। 69 उसने अपने सेवक दाविद के घराने में हमारे लिए एक शक्तिशाली उद्धारकर्त्ता* पैदा किया है, 70 ठीक जैसे उसने इसके बारे में प्राचीनकाल के पवित्र भविष्यवक्ताओं के मुँह से कहलवाया था। 71 उसने यह बताया था कि वह हमारे दुश्मनों से और जो हमसे नफरत करते हैं उन सबसे हमें छुटकारा दिलाएगा। 72 वह हमारे बापदादों पर दया करते हुए अपने पवित्र करार को याद करेगा, 73 उसी शपथ को जो उसने हमारे पुरखे अब्राहम से खायी थी। 74 उसी के मुताबिक जब वह हमें दुश्मनों के हाथों से छुड़ाएगा, तो हमें यह सम्मान देगा कि हम निडर होकर उसकी पवित्र सेवा करें, 75 और हम ऐसा उसके सामने वफादारी से और उसके स्तरों पर चलते हुए अपनी सारी ज़िंदगी करते रहें। 76 मगर मेरे बेटे, जहाँ तक तेरी बात है तू परम-प्रधान का भविष्यवक्ता कहलाएगा, इसलिए कि तू यहोवा के आगे-आगे जाकर उसके मार्ग तैयार करेगा। 77 और उसके लोगों को ज्ञान देगा कि वे अपने पापों की माफी पाकर उद्धार पाएँ। 78 यह हमारे परमेश्वर की कोमल करुणा की वजह से होगा। इस करुणा के साथ हम पर ऊपर से सुबह का वह उजाला चमकेगा 79 जो अंधेरे में और मौत के साए में बैठे हुओं को रौशनी देगा और हमारे कदमों को खुशहाली के साथ शांति की राह पर ले चलेगा।”
80 वह लड़का बड़ा होता गया और मन के सही रुझान और चरित्र में मज़बूत होता गया और वह इस्राएल के सामने आने के दिन तक वीरान इलाकों में रहा।
2 उन दिनों सम्राट* औगूस्तुस की तरफ से एक फरमान जारी हुआ कि सारे साम्राज्य* के लोग अपना-अपना नाम दर्ज़ कराएँ। 2 (यह पहली नाम-लिखाई तब हुई जब क्विरिनियुस, सीरिया का राज्यपाल था।) 3 इसलिए सब लोग नाम लिखवाने के लिए अपने-अपने शहर जाने लगे, जहाँ वे पैदा हुए थे। 4 यूसुफ गलील के नासरत शहर में रहता था। वह दाविद के खानदान और उसके वंश का था, इसलिए वह भी यहूदिया में दाविद के शहर गया जो बेतलेहेम कहलाता है, 5 ताकि मरियम के साथ अपना नाम लिखवाए। मरियम अब उसकी पत्नी बन चुकी थी और इस वक्त पूरे दिनों पेट से थी। 6 जब वे बेतलेहेम में थे, तब मरियम का बच्चे को जन्म देने का समय आ गया। 7 उसने अपने बेटे को जन्म दिया, जो उसका पहलौठा था। उन्हें ठहरने के लिए सराय में कोई कमरा नहीं मिला था, इसलिए मरियम ने बच्चे को कपड़ों की पट्टियों में लपेटकर एक चरनी में रखा।
8 उसी इलाके में कुछ चरवाहे भी थे जो मैदानों में रह रहे थे। वे रात के एक-एक पहर में बारी-बारी से अपने झुंडों की पहरेदारी कर रहे थे 9 कि तभी अचानक यहोवा का दूत उनके सामने आकर खड़ा हो गया, और यहोवा की महिमा का तेज उनके चारों तरफ चमक उठा, और वे बहुत डर गए। 10 मगर स्वर्गदूत ने उनसे कहा: “डरो मत, क्योंकि देखो! मैं तुम्हें एक बड़ी खुशखबरी सुना रहा हूँ जिससे सब लोगों को बेहद खुशी मिलेगी। 11 क्योंकि आज दाविद के शहर में तुम्हारे लिए एक उद्धार करनेवाले का जन्म हो चुका है। यही मसीह* प्रभु है। 12 उसे पहचानने की तुम्हारे लिए यह निशानी है: तुम एक शिशु को कपड़े की पट्टियों में लिपटा और चरनी में लेटा हुआ पाओगे।” 13 तभी अचानक उस स्वर्गदूत के साथ, स्वर्ग की एक बड़ी सेना परमेश्वर की महिमा करती और यह कहती दिखायी दी: 14 “स्वर्ग में परमेश्वर की महिमा हो, और धरती पर उन लोगों को शांति मिले जिनसे परमेश्वर खुश है।”
15 जब स्वर्गदूत चरवाहों के पास से स्वर्ग चले गए, तो चरवाहे एक-दूसरे से कहने लगे: “आओ हम फौरन बेतलेहेम चलें और यह जो बात वहाँ हुई है और जिसके बारे में यहोवा ने हम पर ज़ाहिर किया है उसे देखें।” 16 तब वे जल्दी-जल्दी गए और उन्होंने वहाँ मरियम और उसके साथ यूसुफ को देखा, साथ ही उस शिशु को चरनी में लेटा हुआ पाया। 17 जब चरवाहों ने उस शिशु को देखा, तो उन्होंने वे सारी बातें बतायीं जो स्वर्गदूत ने शिशु के बारे में कही थीं। 18 जितनों ने चरवाहों की ये बातें सुनीं, वे सब ताज्जुब करने लगे। 19 मगर मरियम इन सब बातों को अपने दिल में संजोकर रखती और इनके मतलब के बारे में गहराई से सोचती थी। 20 तब चरवाहे, परमेश्वर की बड़ाई और उसका गुणगान करते हुए लौट गए। जैसा उन्हें बताया गया था उन्होंने सबकुछ वैसा ही सुना और देखा था।
21 जब आठ दिन पूरे हुए और शिशु का खतना करने का समय आया, तो उसका नाम यीशु रखा गया। यह वही नाम था जो स्वर्गदूत ने उसके गर्भ में पड़ने से पहले बताया था।
22 साथ ही, जब मूसा के कानून के मुताबिक उनके शुद्ध होने के दिन पूरे हुए, तो वे उसे यहोवा के सामने पेश करने के लिए यरूशलेम ले आए, 23 ताकि ठीक वैसा ही करें जैसा यहोवा के कानून में लिखा है: “हरेक पहलौठे को यहोवा के लिए पवित्र ठहराया जाना चाहिए,” 24 साथ ही वह बलिदान चढ़ाएँ जो यहोवा के कानून में बताया गया है: “फाख्ता का एक जोड़ा या कबूतर के दो बच्चे।”
25 और देखो! यरूशलेम में शमौन नाम का एक आदमी था, जो नेक और परमेश्वर का भक्त था। पवित्र शक्ति उस पर थी और वह इस इंतज़ार में था कि परमेश्वर इस्राएल को दिलासा देगा। 26 साथ ही, परमेश्वर ने पवित्र शक्ति से उस पर ज़ाहिर किया था कि जब तक वह यहोवा के मसीह को न देख ले, तब तक मौत का मुँह न देखेगा। 27 अब वह पवित्र शक्ति* से उभारे जाने पर मंदिर में आया। जब नन्हे यीशु को उसके माता-पिता अंदर ला रहे थे ताकि मूसा के कानून के मुताबिक रिवाज़ पूरा करें, 28 तब शमौन ने बच्चे को अपनी बाँहों में लिया और परमेश्वर का धन्यवाद करते हुए कहा: 29 “हे सारे जहान के महाराजा और मालिक, अब तू अपने वचन के मुताबिक अपने दास को शांति से विदा करता है। 30 क्योंकि मेरी आँखों ने उद्धार का तेरा ज़रिया देख लिया है 31 जिसे तू ने सब लोगों के सामने खड़ा किया है। 32 वह राष्ट्रों की आँखों पर पड़े परदे को हटाने के लिए एक रौशनी और तेरी प्रजा, इस्राएल की महिमा है।” 33 उस बच्चे के माता-पिता उसके बारे में कही जा रही बातों पर ताज्जुब करते रहे। 34 फिर शमौन ने उन्हें भी आशीष दी, मगर उसकी माँ मरियम से कहा: “देख! यह इस्राएल में बहुतों के गिरने और बहुतों के फिर से उठने का कारण होगा और एक ऐसी निशानी होगा जिसके खिलाफ बातें की जाएँगी 35 (और जहाँ तक तेरी बात है, एक लंबी तलवार तेरे आर-पार हो जाएगी), ताकि बहुतों के दिलों के विचार खुलकर सामने आएँ।”
36 वहाँ हन्ना नाम की एक भविष्यवक्तिन थी, जो आशेर के गोत्र के फनूएल की बेटी थी (यह स्त्री बहुत बूढ़ी थी। वह अपने कुँवारेपन के बाद शादी के सिर्फ सात साल अपने पति के साथ रह पायी थी। 37 वह विधवा थी और अब उसकी उम्र चौरासी साल थी।) वह मंदिर से कभी गैर-हाज़िर नहीं रहती थी, बल्कि उपवास और मिन्नतों के साथ रात-दिन परमेश्वर की पवित्र सेवा में लगी रहती थी। 38 वह ठीक उसी घड़ी वहाँ आयी और परमेश्वर का धन्यवाद करने लगी और उन सबको जो यरूशलेम के छुटकारे का इंतज़ार कर रहे थे, उस बच्चे के बारे में बताने लगी।
39 जब यूसुफ और मरियम यहोवा के कानून के मुताबिक सारे काम पूरे कर चुके, तो गलील में अपने शहर नासरत लौट गए। 40 वह बच्चा बढ़ता और बलवंत होता गया। वह बुद्धिमान होता गया और परमेश्वर की आशीष लगातार उस पर थी।
41 उसके माता-पिता अपने दस्तूर के मुताबिक हर साल फसह के त्योहार के लिए यरूशलेम जाया करते थे। 42 जब वह बारह साल का हुआ, तो वे त्योहार के दस्तूर के मुताबिक यरूशलेम गए। 43 मगर त्योहार के दिन पूरे होने के बाद जब वे लौट रहे थे, तो वह लड़का यीशु, पीछे यरूशलेम में ही रह गया। मगर उसके माता-पिता का इस बात पर ध्यान नहीं गया। 44 उन्होंने यह समझा कि वह दूसरे मुसाफिरों के संग होगा। इसलिए उन्होंने एक दिन का सफर तय कर लिया। मगर इसके बाद वे उसे अपने रिश्तेदारों और जान-पहचानवालों में ढूँढ़ने लगे। 45 लेकिन जब वह नहीं मिला, तो वे और भी ज़्यादा उसकी तलाश करते-करते वापस यरूशलेम आ गए। 46 फिर तीन दिन बाद उन्होंने उसे मंदिर में पाया, जहाँ वह शिक्षकों के बीच बैठा उनकी सुन रहा था और उनसे सवाल कर रहा था। 47 जितने लोग उसकी सुन रहे थे, वे सभी उसकी समझ और उसके जवाबों से रह-रहकर दंग हो रहे थे। 48 जब उसके माता-पिता ने उसे वहाँ देखा, तो वे बेहद हैरान हो गए, और उसकी माँ ने उससे कहा: “बेटा, तू ने हमारे साथ ऐसा क्यों किया? देख, तेरा पिता और मैं तुझे ढूँढ़-ढूँढ़कर कितने बेहाल हो गए हैं।” 49 लेकिन उसने उनसे कहा: “तुम मुझे यहाँ-वहाँ क्यों ढूँढ़ते रहे? क्या तुम्हें मालूम नहीं था कि मैं अपने पिता के घर में होऊँगा?” 50 मगर वे उसकी इस बात का मतलब नहीं समझ सके।
51 तब वह उनके साथ चला गया और नासरत आ गया और लगातार उनके अधीन रहा। उसकी माँ ने बड़े ध्यान से इन सारी बातों को अपने दिल में संजोकर रखा। 52 यीशु डील-डौल और बुद्धि में बढ़ता और तरक्की करता गया और दिनोंदिन उस पर परमेश्वर की आशीष और लोगों का अनुग्रह बढ़ता गया।
3 सम्राट तिबिरियुस के राज के पंद्रहवें साल में, जिस दौरान पुन्तियुस पीलातुस, यहूदिया प्रदेश का राज्यपाल था और हेरोदेस* गलील प्रदेश का ज़िला-शासक* था, साथ ही हेरोदेस का भाई फिलिप्पुस, इतूरैया और त्रखोनीतिस इलाके का ज़िला-शासक था और लिसानियास, अबिलेने इलाके का ज़िला-शासक था 2 और हन्ना एक प्रधान याजक और कैफा महायाजक था, उन्हीं दिनों परमेश्वर का संदेश वीराने में यूहन्ना के पास पहुँचा जो जकर्याह का बेटा था।
3 इसलिए यूहन्ना, यरदन नदी के आस-पास के इलाके में आया और उस पूरे इलाके में यह प्रचार करने लगा कि लोगों को बपतिस्मा* लेने की ज़रूरत है, जो इस बात की निशानी ठहरेगा कि उन्होंने अपने पापों के लिए पश्चाताप किया है और वे परमेश्वर से इनकी माफी पाना चाहते हैं, 4 ठीक जैसा यशायाह भविष्यवक्ता के कहे वचनों की किताब में लिखा है: “सुनो! वीराने में कोई यह पुकार लगा रहा है, ‘यहोवा का मार्ग तैयार करो, उसकी सड़कें सीधी करो। 5 हर एक घाटी भर दी जाए और हर एक पहाड़ और पहाड़ी सपाट कर दी जाए और टेढ़े-मेढ़े रास्ते सीधे और ऊबड़-खाबड़ जगह समतल कर दी जाएँ। 6 और हर इंसान उद्धार का वह ज़रिया देखेगा जो परमेश्वर की तरफ से है।’ ”
7 जो भीड़ यूहन्ना से बपतिस्मा लेने आ रही थी, वह उससे कहा करता था: “अरे साँप के संपोलो, किसने तुम्हें आगाह कर दिया कि तुम आनेवाले कहर से भाग सकते हो? 8 पश्चाताप दिखानेवाले फल पैदा करो। खुद से यह मत कहो, ‘हम तो अब्राहम के वंशज हैं।’ क्योंकि मैं तुमसे कहता हूँ कि परमेश्वर इन पत्थरों से अब्राहम के लिए संतान पैदा करने की ताकत रखता है। 9 वाकई, पेड़ों की जड़ पर वार करने के लिए कुल्हाड़ा तैयार है। इसलिए हर वह पेड़ जो बढ़िया फल नहीं ला रहा, उसे काटा और आग में झोंका जाएगा।”
10 इस पर भीड़ उससे यह पूछती: “तो हमें क्या करना चाहिए?” 11 वह उन्हें यह जवाब देता: “जिस आदमी के पास दो कुरते हों, वह एक उसे दे दे जिसके पास एक भी नहीं। जिसके पास खाने की चीज़ें हों वह भी ऐसा ही करे।” 12 इतना ही नहीं, कर-वसूलनेवाले* भी यूहन्ना के पास बपतिस्मा लेने आए। उन्होंने उससे पूछा: “गुरु, हमें क्या करना चाहिए?” 13 उसने उनसे कहा: “जितना कर बनता है उससे ज़्यादा का तकाज़ा मत करो।” 14 जो फौजी सेवा में थे उन्होंने यूहन्ना से पूछा: “हमें क्या करना चाहिए?” उसने कहा: “किसी को मत सताओ या किसी पर झूठा इलज़ाम न लगाओ। मगर तुम्हें जो रोज़ी-रोटी मिलती है उसी में संतोष करो।”
15 उस दौरान लोग मसीह* के आने की बड़ी आस लगाए थे और सभी अपने-अपने दिलों में यूहन्ना के बारे में यह सोच-विचार कर रहे थे: “कहीं यही तो मसीह नहीं?” 16 यूहन्ना ने उन सबको जवाब देते हुए कहा: “मैं तो तुम्हें पानी से बपतिस्मा देता हूँ। मगर वह आनेवाला है जो मुझसे कहीं शक्तिशाली है। मैं उसकी जूतियों के फीते खोलने के भी लायक नहीं। वह तुम लोगों को पवित्र शक्ति से और आग से बपतिस्मा देगा।* 17 उसके हाथ में, भूसी अलग करनेवाला उसाने का बेलचा है कि अपने खलिहान को पूरी तरह साफ करे और गेहूँ को इकट्ठा कर अपने गोदाम में रखे, मगर भूसी को उस आग में जला दे जिसे बुझाया नहीं जा सकता।”
18 इस तरह यूहन्ना ने लोगों को और भी कई नसीहतें दीं और उन्हें खुशखबरी सुनाता रहा। 19 लेकिन जब यूहन्ना ने ज़िला-शासक हेरोदेस को, उसके भाई की पत्नी हेरोदियास के मामले में और उन सभी दुष्ट कामों की वजह से जो हेरोदेस ने किए थे, ताड़ना दी, 20 तो हेरोदेस ने अपने दुष्ट कामों में एक और काम जोड़ दिया: उसने यूहन्ना को जेल में डलवा दिया।
21 जब सब लोग बपतिस्मा ले रहे थे, तब यीशु ने भी बपतिस्मा लिया और जब वह प्रार्थना कर रहा था, तो आकाश खुल गया 22 और परमेश्वर की पवित्र शक्ति कबूतर जैसे आकार में उसके ऊपर उतरती दिखायी दी और स्वर्ग से परमेश्वर की आवाज़ सुनायी दी: “तू मेरा प्यारा बेटा है। मैंने तुझे मंज़ूर किया है।”
23 जब यीशु ने सेवा का काम शुरू किया, तो वह करीब तीस साल का था। जैसा माना जाता था वह यूसुफ का बेटा था,
और यूसुफ एली का बेटा था,
24 और एली मत्तात का बेटा था,
मत्तात लेवी का बेटा था,
लेवी मलकी का बेटा था,
मलकी यन्ना का बेटा था,
यन्ना यूसुफ का बेटा था,
25 यूसुफ मत्तित्याह का बेटा था,
मत्तित्याह आमोस का बेटा था,
आमोस नहूम का बेटा था,
नहूम असल्याह का बेटा था,
असल्याह नोगह का बेटा था,
26 नोगह मात का बेटा था,
मात मत्तित्याह का बेटा था,
मत्तित्याह शिमी का बेटा था,
शिमी योसेख का बेटा था,
योसेख योदाह का बेटा था,
27 योदाह योनान का बेटा था
योनान रेसा का बेटा था,
रेसा जरुब्बाबिल का बेटा था,
जरुब्बाबिल शालतिएल का बेटा था,
शालतिएल नेरी का बेटा था,
28 नेरी मलकी का बेटा था,
मलकी अद्दी का बेटा था,
अद्दी कोसाम का बेटा था,
कोसाम इलमोदाम का बेटा था,
इलमोदाम ऐर का बेटा था,
29 ऐर यीशु का बेटा था,
यीशु एलीएजेर का बेटा था,
एलीएजेर योरीम का बेटा था,
योरीम मत्तात का बेटा था,
मत्तात लेवी का बेटा था,
30 लेवी शमौन का बेटा था,
शमौन यहूदा का बेटा था,
यहूदा यूसुफ का बेटा था,
यूसुफ योनाम का बेटा था,
योनाम इलयाकीम का बेटा था,
31 इलयाकीम मलेआह का बेटा था,
मलेआह मिन्नाह का बेटा था,
मिन्नाह मत्तता का बेटा था,
मत्तता नातान का बेटा था,
नातान दाविद का बेटा था,
32 दाविद यिशै का बेटा था,
यिशै ओबेद का बेटा था,
ओबेद बोअज का बेटा था,
बोअज सलमोन का बेटा था,
सलमोन नहशोन का बेटा था,
33 नहशोन अम्मीनादाब का बेटा था,
अम्मीनादाब अरनी का बेटा था,
अरनी हिस्रोन का बेटा था,
हिस्रोन पेरेस का बेटा था,
पेरेस यहूदा का बेटा था,
34 यहूदा याकूब का बेटा था,
याकूब इसहाक का बेटा था,
इसहाक अब्राहम का बेटा था,
अब्राहम तेरह का बेटा था,
तेरह नाहोर का बेटा था,
35 नाहोर सरूग का बेटा था,
सरूग रऊ का बेटा था,
रऊ पेलेग का बेटा था,
पेलेग एबेर का बेटा था,
एबेर शेलह का बेटा था,
36 शेलह केनान का बेटा था,
केनान अर्पक्षद का बेटा था,
अर्पक्षद शेम का बेटा था,
शेम नूह का बेटा था,
नूह लेमेक का बेटा था,
37 लेमेक मथूशेलह का बेटा था,
मथूशेलह हनोक का बेटा था,
हनोक येरेद का बेटा था,
येरेद महललेल का बेटा था,
महललेल केनान का बेटा था,
38 केनान एनोश का बेटा था,
एनोश शेत का बेटा था,
शेत आदम का बेटा था
और आदम परमेश्वर का बेटा था।
4 यीशु, पवित्र शक्ति से भरा हुआ, यरदन से चला गया। यह पवित्र शक्ति उसे वीराने में ले गयी, 2 जहाँ वह चालीस दिन तक रहा। तब शैतान* ने उसकी परीक्षा लेने के लिए उसे फुसलाने की कोशिश की। उन दिनों के दौरान यीशु ने कुछ नहीं खाया। जब वे चालीस दिन पूरे हुए तो उसे भूख लगी। 3 तब शैतान ने यीशु से कहा: “अगर तू सचमुच परमेश्वर का बेटा है, तो इस पत्थर से बोल कि यह रोटी बन जाए।” 4 मगर यीशु ने उसे जवाब दिया: “यह लिखा है, ‘इंसान सिर्फ रोटी से ज़िंदा नहीं रह सकता।’ ”
5 और शैतान उसे एक ऊँची जगह ले आया और पल-भर में उसे दुनिया के तमाम राज्य दिखाए। 6 शैतान ने उससे कहा: “मैं इन सबका अधिकार और इनकी जो शानो-शौकत है, तुझे दे दूँगा, क्योंकि यह सब मेरे हवाले किया गया है, और मैं जिसे चाहूँ उसे देता हूँ। 7 इसलिए अगर तू बस एक बार मेरे सामने मेरी उपासना करे, तो यह सबकुछ तेरा हो जाएगा।” 8 जवाब में यीशु ने उससे कहा: “यह लिखा है, ‘तू सिर्फ अपने परमेश्वर यहोवा की उपासना करना और उसी की पवित्र सेवा करना।’ ”
9 फिर शैतान, यीशु को यरूशलेम ले गया और मंदिर की चारदीवारी* पर लाकर खड़ा किया और उससे कहा: “अगर तू सचमुच परमेश्वर का बेटा है, तो यहाँ से नीचे छलाँग लगा दे। 10 क्योंकि शास्त्र में लिखा है, ‘परमेश्वर अपने स्वर्गदूतों को हुक्म देगा कि वे तुझे बचाएँ,’ 11 और ‘वे तुझे हाथों-हाथ उठा लेंगे, ताकि ऐसा न हो कि तेरा पैर किसी पत्थर से चोट खाए।’ ” 12 जवाब में यीशु ने उससे कहा: “यह कहा गया है, ‘तू अपने परमेश्वर यहोवा की परीक्षा न लेना।’ ” 13 इस तरह जब शैतान हर तरीके से उसकी परीक्षा कर चुका, तब कोई और सही मौका मिलने तक उसके पास से चला गया।
14 इसके बाद यीशु, पवित्र शक्ति से भरा हुआ गलील लौटा। और आस-पास के पूरे इलाके में उसके बारे में अच्छी बातों की चर्चाएँ फैल गयीं। 15 वह उनके सभा-घरों में सिखाने लगा और सब लोग उसका बड़ा आदर करते थे।
16 फिर वह नासरत आया जहाँ उसकी परवरिश हुई थी। और अपने दस्तूर के मुताबिक सब्त* के दिन, वहाँ के सभा-घर में गया और पढ़ने के लिए खड़ा हुआ। 17 भविष्यवक्ता यशायाह का खर्रा उसके हाथ में दिया गया और उसने खर्रा खोला और वह जगह ढूँढ़कर निकाली, जहाँ यह लिखा था: 18 “यहोवा की पवित्र शक्ति मुझ पर है, क्योंकि उसने गरीबों को खुशखबरी सुनाने के लिए मेरा अभिषेक किया है। उसने कैदियों को रिहाई का और अंधों को आँखों की रौशनी पाने का संदेश सुनाने के लिए मुझे भेजा है कि कुचले हुओं को रिहाई देकर आज़ाद करूँ 19 और यहोवा की मंज़ूरी पाने के वक्त का प्रचार करूँ।” 20 फिर उसने उस खर्रे को लपेटकर सेवक को वापस दे दिया और बैठ गया। सभा-घर में सब लोगों की नज़रें उस पर जमी हुई थीं। 21 तब उसने कहा: “यह शास्त्रवचन जो तुमने अभी-अभी सुना, वह आज पूरा हुआ है।”
22 वे सभी उसकी तारीफ करने लगे और उसकी दिल जीतनेवाली बातों पर ताज्जुब करने और यह कहने लगे: “क्या यह यूसुफ का बेटा नहीं है?” 23 इस पर यीशु ने उनसे कहा: “बेशक, तुम यह कहावत कहोगे, ‘अरे वैद्य, पहले खुद का इलाज कर,’ और मुझ पर यह कहते हुए लागू करोगे, ‘कफरनहूम में हुए जिन कामों के बारे में हमने सुना है, वे यहाँ अपने घर के इलाके में भी कर।’ ” 24 यीशु ने कहा: “मैं तुमसे सच कहता हूँ कि कोई भी भविष्यवक्ता अपने इलाके में कबूल नहीं किया जाता। 25 मिसाल के लिए, यकीन मानो, एलिय्याह के दिनों में जब साढ़े तीन साल तक बारिश नहीं हुई थी जिस वजह से पूरे देश में भारी अकाल पड़ा था, उस दौरान इस्राएल में बहुत-सी विधवाएँ थीं। 26 फिर भी एलिय्याह को उनमें से किसी भी स्त्री के पास नहीं भेजा गया, बल्कि सिर्फ सीदोन देश के सारपत कसबे की एक विधवा के पास भेजा गया। 27 यही नहीं, भविष्यवक्ता एलीशा के वक्त में इस्राएल में बहुत-से कोढ़ी थे, फिर भी उनमें से किसी को भी शुद्ध नहीं किया गया, बल्कि सीरिया के नामान को शुद्ध किया गया।” 28 जब सभा-घर में मौजूद सारे लोगों ने ये बातें सुनीं, तो वे आग-बबूला हो उठे। 29 वे उठे और उतावली में यीशु को शहर के बाहर, उस पहाड़ के टीले पर ले गए जिस पर उनका शहर बनाया गया था, ताकि उसे वहाँ से नीचे धकेल दें। 30 मगर वह उनके बीच में से निकलकर अपने रास्ते चला गया।
31 यीशु कफरनहूम चला गया, जो गलील प्रदेश का एक शहर था। वह सब्त के दिन लोगों को सिखा रहा था। 32 वे उसका सिखाने का तरीका देखकर दंग रह गए, क्योंकि वह पूरे अधिकार के साथ बोलता था। 33 उस सभा-घर में एक आदमी था, जिसमें एक दुष्ट स्वर्गदूत समाया था और वह ज़ोर से चिल्लाने लगा: 34 “ओ यीशु नासरी, हमारा तुझसे क्या लेना-देना? क्या तू हमें नाश करने आया है? मैं जानता हूँ तू असल में कौन है, तू परमेश्वर का भेजा हुआ पवित्र जन है।” 35 मगर यीशु ने उसे डाँटते हुए कहा: “खामोश रह, और उसमें से बाहर निकल जा।” तब उस दुष्ट स्वर्गदूत ने उस आदमी को लोगों के बीच पटक दिया, और उसे बिना कोई नुकसान पहुँचाए उसमें से निकल गया। 36 इस पर सभी हैरत में पड़ गए और एक-दूसरे से कहने लगे: “देखो! यह कैसे बोलता है! क्योंकि यह अधिकार और शक्ति के साथ दुष्ट स्वर्गदूतों को हुक्म देता है और वे निकल जाते हैं।” 37 इसलिए आस-पास के पूरे इलाके में हर तरफ उसकी धूम मच गयी।
38 सभा-घर से निकलने के बाद, यीशु शमौन के घर आया। शमौन की सास तेज़ बुखार से तप रही थी। उन्होंने शमौन की सास के लिए यीशु से बिनती की। 39 इसलिए यीशु ने उसके पास खड़े होकर बुखार को डाँटा और उसका बुखार उतर गया। उसी पल वह उठ गयी और उनकी सेवा करने लगी।
40 लेकिन जब सूरज ढलने लगा, तब सब लोग अपने-अपने बीमारों को जिन्हें तरह-तरह की बीमारियाँ थीं, उसके पास ले आए। वह उनमें से हरेक पर अपने हाथ रखकर उन्हें चंगा करता था। 41 यहाँ तक कि दुष्ट स्वर्गदूत भी यह चिल्लाते हुए बहुतों में से निकल जाते थे: “तू परमेश्वर का बेटा है।” मगर वह उन्हें डाँटता था और बोलने की इजाज़त नहीं देता था, क्योंकि वे जानते थे कि वह मसीह है।
42 लेकिन जब दिन हुआ, तो वह वहाँ से निकलकर किसी एकांत जगह की तरफ चला गया। मगर लोगों की भीड़ उसे तलाशने लगी और ढूँढ़ते-ढूँढ़ते वहाँ पहुँच गयी जहाँ वह था। लोग उसे रोकने लगे कि वह उनके पास से न जाए। 43 मगर यीशु ने उनसे कहा: “मुझे दूसरे शहरों में भी परमेश्वर के राज की खुशखबरी सुनानी है, क्योंकि मुझे इसीलिए भेजा गया है।” 44 फिर वह जाकर यहूदिया प्रदेश के सभा-घरों में प्रचार करने लगा।
5 एक बार यीशु गन्नेसरत झील* के किनारे खड़ा एक बड़ी भीड़ को परमेश्वर का वचन सिखा रहा था। लोग उस पर गिरे पड़ रहे थे। 2 तब उसने झील के किनारे लगी दो नाव देखीं, जिनमें से मछुवारे उतरकर अपने जाल धो रहे थे। 3 तब वह उनमें से एक नाव पर चढ़ गया जो शमौन की थी। उसने शमौन से कहा कि नाव को खेकर किनारे से थोड़ी दूर ले जाए। फिर यीशु नाव में बैठकर भीड़ को सिखाने लगा। 4 जब उसने बोलना खत्म किया, तो शमौन से कहा: “नाव को खेकर गहरे पानी में ले चल और तुम लोग वहाँ मछलियाँ पकड़ने के लिए अपने जाल डालना।” 5 मगर शमौन ने कहा: “गुरु, हमने सारी रात मेहनत की है, मगर हमारे हाथ कुछ नहीं लगा। फिर भी तेरे कहने पर मैं जाल डालूँगा।” 6 जब उन्होंने ऐसा किया, तो देखो, भारी तादाद में मछलियाँ उनके जाल में आ फँसीं। यहाँ तक कि उनके जाल फटने लगे। 7 तब उन्होंने दूसरी नाव में सवार अपने साथियों को इशारा किया कि उनकी मदद के लिए आएँ। और वे आए और आकर दोनों नाव में मछलियाँ भरने लगे और नाव मछलियों से इतनी भर गयीं कि डूबने लगीं। 8 यह देख शमौन पतरस यीशु के आगे गिर पड़ा और कहने लगा: “मेरे पास से चला जा प्रभु, क्योंकि मैं एक पापी इंसान हूँ।” 9 क्योंकि इतनी तादाद में मछलियाँ पकड़ने की वजह से वह और उसके सब साथी हक्के-बक्के रह गए थे। 10 जब्दी के दोनों बेटों, याकूब और यूहन्ना का भी यही हाल था जो शमौन के साझेदार थे। मगर यीशु ने शमौन से कहा: “डरना छोड़। अब से तू जीते-जागते इंसानों को पकड़ा करेगा।” 11 तब वे अपनी-अपनी नाव किनारे पर ले आए और सबकुछ छोड़कर उसके पीछे हो लिए।
12 एक और मौके पर जब यीशु किसी शहर में था, तो देखो! वहाँ एक आदमी था जिसका शरीर पूरी तरह कोढ़ से ग्रस्त था! जैसे ही उसकी नज़र यीशु पर पड़ी, वह उसके सामने मुँह के बल गिरा और गिड़गिड़ाकर उससे कहने लगा: “प्रभु, बस अगर तू चाहे, तो मुझे शुद्ध कर सकता है।” 13 इस पर, यीशु ने अपना हाथ बढ़ाकर उसे यह कहते हुए छूआ: “हाँ, मैं चाहता हूँ। शुद्ध हो जा।” उसी पल उसका कोढ़ गायब हो गया। 14 यीशु ने उस आदमी को आदेश दिया कि किसी को कुछ न बताए और कहा: “जाकर खुद को याजक को दिखा और ठीक जैसे मूसा ने हिदायत दी है, अपने शुद्ध होने के संबंध में एक भेंट चढ़ा ताकि उन पर गवाही हो।” 15 मगर, यीशु की चर्चा दूर-दूर तक फैलती गयी और भीड़-की-भीड़ उसकी सुनने और बीमारियों से चंगा होने के लिए उसके पास आती रही। 16 लेकिन, वह वीरान इलाकों में ही रहा और प्रार्थना में लगा रहा।
17 एक दिन वह लोगों को सिखा रहा था और वहाँ गलील और यहूदिया प्रदेश के हर गाँव से और यरूशलेम से आए फरीसी और मूसा के कानून के शिक्षक भी बैठे हुए थे। और लोगों को चंगा करने के लिए यहोवा की शक्ति उस पर थी। 18 तभी लोग लकवे के मारे हुए एक आदमी को बिस्तर पर लेकर आए। वे उसे किसी तरह उस कमरे के अंदर ले जाना चाहते थे जहाँ यीशु था। 19 मगर जब भीड़ की वजह से उसे अंदर ले जाने का रास्ता न मिला, तो वे ऊपर छत पर चढ़ गए। उन्होंने खपरैल हटाकर उसे बिस्तर समेत उन लोगों के बीच नीचे उतार दिया जो यीशु के सामने मौजूद थे। 20 जब यीशु ने इन आदमियों का विश्वास देखा तो लकवे के मारे से कहा: “तेरे पाप माफ किए गए।” 21 यह सुनकर शास्त्री* और फरीसी अपने मन में कहने लगे: “यह कौन है जो अपनी बातों से परमेश्वर की तौहीन कर रहा है? परमेश्वर को छोड़ और कौन पापों को माफ कर सकता है?” 22 मगर यीशु ने यह जानकर कि वे क्या सोच रहे हैं, उन्हें जवाब दिया: “तुम अपने दिलों में क्या बातें सोच रहे हो? 23 क्या कहना ज़्यादा आसान है, ‘तेरे पाप माफ किए गए’ या यह कहना कि ‘उठ और चल-फिर’? 24 मगर, इसलिए कि तुम जान लो कि इंसान के बेटे को इस धरती पर पाप माफ करने का अधिकार है . . .” यीशु ने लकवे के मारे हुए आदमी से कहा: “मैं तुझसे कहता हूँ, खड़ा हो, अपना बिस्तर उठा और अपने घर चला जा।” 25 उसी पल वह आदमी उनके देखते-देखते उठ बैठा। उसने वह बिस्तर उठाया जिस पर वह लेटा था और परमेश्वर की बड़ाई करता हुआ अपने घर चला गया। 26 यह देखकर वे सब-के-सब हैरान रह गए और परमेश्वर की बड़ाई करने लगे और उन पर भय छा गया। वे कहने लगे: “आज हमने अजब घटनाएँ देखी हैं!”
27 इसके बाद, यीशु बाहर गया और उसने कर-वसूली के दफ्तर में लेवी नाम के एक आदमी को बैठे देखा जो कर वसूला करता था। यीशु ने उससे कहा: “मेरा चेला बन जा और मेरे पीछे हो ले।” 28 तब लेवी उठा और सबकुछ छोड़-छाड़कर उसके पीछे हो लिया। 29 साथ ही, लेवी ने यीशु के स्वागत में अपने घर में एक बड़ी दावत रखी। वहाँ भारी तादाद में कर-वसूलनेवाले और दूसरे लोग मौजूद थे जो उनके साथ खाने की मेज़ पर बैठे थे। 30 इस पर फरीसी और उनके शास्त्री कुड़कुड़ाने लगे और यीशु के चेलों से कहने लगे: “तुम कर-वसूलनेवालों और पापियों के साथ क्यों खाते हो?” 31 यीशु ने जवाब में उनसे कहा: “जो सेहतमंद हैं, उन्हें वैद्य की ज़रूरत नहीं होती, मगर बीमारों को होती है। 32 मैं धर्मियों को नहीं बल्कि पापियों को पश्चाताप के लिए बुलाने आया हूँ।”
33 उन्होंने कहा: “यूहन्ना के चेले अकसर उपवास रखते और मिन्नतें और प्रार्थनाएँ करते हैं और फरीसियों के चेले भी ऐसा ही करते हैं, मगर तेरे चेले खाते-पीते हैं।” 34 यीशु ने उनसे कहा: “जब तक दूल्हा अपने दोस्तों के साथ है, तब तक तुम उसके दोस्तों से उपवास नहीं करवा सकते, क्या करवा सकते हो? 35 लेकिन वे दिन आएँगे जब दूल्हे को उनसे वाकई जुदा कर दिया जाएगा। तब उन दिनों वे उपवास करेंगे।”
36 इसके बाद, यीशु ने उन्हें एक मिसाल भी दी: “कोई भी नए कपड़े से पैवंद काटकर पुराने कपड़े पर नहीं लगाता। लेकिन अगर लगाए, तो नया पैवंद फटकर अलग हो जाएगा और नए कपड़े का यह पैवंद पुराने से मेल भी नहीं खाएगा। 37 कोई पुरानी मश्कों में नयी दाख-मदिरा नहीं भरता। लेकिन अगर भरे, तो नयी मदिरा मश्कों को फाड़ देगी और बाहर बह जाएगी और मश्कें भी बेकार हो जाएँगी। 38 मगर नयी दाख-मदिरा नयी मश्कों में भरी जानी चाहिए। 39 जिसने पुरानी दाख-मदिरा पी है वह नयी नहीं चाहता, क्योंकि वह कहता है, ‘पुरानी ही बढ़िया है।’ ”
6 एक बार सब्त के दिन वह खेतों से होते हुए गुज़र रहा था और उसके चेले अनाज की बालें तोड़-तोड़कर और हाथों से मसलकर खाने लगे। 2 इस पर कुछ फरीसियों ने कहा: “तुम सब्त के दिन ऐसा काम क्यों कर रहे हो जो कानून के खिलाफ है?” 3 मगर यीशु ने उन्हें जवाब दिया: “क्या तुमने यह कभी नहीं पढ़ा कि जब दाविद और उसके आदमी भूखे थे तब उसने क्या किया? 4 किस तरह वह परमेश्वर के भवन में गया और चढ़ावे की वे रोटियाँ लेकर खायीं और कुछ अपने साथियों को भी दीं, जिन्हें याजकों को छोड़ किसी का भी खाना कानून के खिलाफ था?” 5 फिर यीशु ने उनसे यह भी कहा: “इंसान का बेटा सब्त के दिन का प्रभु है।”
6 एक और सब्त के दिन यीशु सभा-घर में गया और सिखाने लगा। वहाँ एक आदमी था जिसका दायाँ हाथ सूखा हुआ था। 7 शास्त्री और फरीसी यीशु पर नज़र जमाए हुए थे कि देखें वह सब्त के दिन चंगा करता है या नहीं, ताकि किसी तरह उस पर इलज़ाम लगा सकें। 8 मगर यीशु जानता था कि वे अपने मन में क्या सोच रहे हैं। फिर भी, उसने सूखे हाथवाले उस आदमी से कहा: “उठ और यहाँ बीच में खड़ा हो जा।” तब वह आदमी उठा और बीच में खड़ा हो गया। 9 फिर यीशु ने उनसे कहा: “मैं तुम लोगों से पूछता हूँ, परमेश्वर के कानून के हिसाब से सब्त के दिन किसी का भला करना सही है या किसी का बुरा करना? किसी की जान बचाना सही है या किसी की जान लेना?” 10 फिर यीशु ने चारों तरफ उन सब पर नज़र डालने के बाद, उस आदमी से कहा: “अपना हाथ आगे बढ़ा।” उसने ऐसा ही किया और उसका हाथ ठीक हो गया। 11 मगर शास्त्री और फरीसी गुस्से से पागल हो गए और एक-दूसरे से सलाह करने लगे कि उन्हें यीशु के साथ क्या करना चाहिए।
12 उन दिनों यीशु प्रार्थना करने के लिए पहाड़ पर गया, और सारी रात परमेश्वर से प्रार्थना करता रहा। 13 फिर जब दिन निकला तो उसने अपने चेलों को पास बुलाया और उनमें से बारह को चुना, जिन्हें उसने “प्रेषित”* नाम भी दिया। 14 ये थे: शमौन, जिसे उसने पतरस नाम भी दिया और उसका भाई अन्द्रियास और याकूब, यूहन्ना, फिलिप्पुस, बरतुलमै, 15 मत्ती, थोमा, हलफई का बेटा याकूब, शमौन जो “जोशीला” कहलाता था, 16 यहूदा जिसके पिता का नाम याकूब था और यहूदा इस्करियोती जो बाद में दगाबाज़ बन गया।
17 यीशु इनके साथ नीचे आया और एक समतल जगह में आकर रुक गया। वहाँ उसके चेलों की एक बड़ी भीड़ थी और सारे यहूदिया और यरूशलेम से, साथ ही समुद्र-तट के देश, यानी सोर और सीदोन से भारी तादाद में लोग वहाँ जमा थे। वे उसकी बातें सुनने और अपनी बीमारियों से ठीक होने आए थे। 18 यहाँ तक कि जिन्हें दुष्ट स्वर्गदूत सताते थे, वे भी चंगे हो गए। 19 भीड़ में से सभी उसे छूने की कोशिश कर रहे थे, क्योंकि उसके अंदर से शक्ति निकलती थी और सबको चंगा करती थी।
20 यीशु ने नज़र उठाकर अपने चेलों को देखा और यह कहना शुरू किया:
“सुखी हो तुम गरीबो, क्योंकि परमेश्वर का राज तुम्हारा है।
21 सुखी हो तुम जो अभी भूखे हो, क्योंकि तुम्हें तृप्त किया जाएगा।
सुखी हो तुम जो अभी रोते हो, क्योंकि तुम हँसोगे।
22 सुखी हो तुम जब भी लोग इंसान के बेटे की वजह से तुमसे नफरत करें, और अपने बीच से तुम्हारा बहिष्कार कर दें और तुम्हें बदनाम करें और दुष्ट करार देकर तुम्हारा नाम खराब करें। 23 उस दिन खुशियाँ मनाना और उछलना, इसलिए कि स्वर्ग में तुम्हारे लिए बड़ा इनाम है, क्योंकि उनके बापदादों ने भी भविष्यवक्ताओं के साथ यही सब किया था।
24 मगर धनवानो, तुम पर हाय, क्योंकि तुम अपने हिस्से का दिलासा पा चुके।
25 हाय तुम पर जो अभी भरे-पूरे हो, क्योंकि तुम्हें भूख सताएगी।
हाय तुम पर जो अभी हँस रहे हो, क्योंकि तुम मातम मनाओगे और रोओगे।
26 हाय तुम पर जब सभी तुम्हारी तारीफ करें, क्योंकि उनके बापदादे झूठे भविष्यवक्ताओं के साथ ऐसा ही किया करते थे।
27 मगर मैं तुमसे, जो सुन रहे हो कहता हूँ, अपने दुश्मनों से प्यार करते रहो। जो तुमसे नफरत करते हैं उनके साथ भलाई करते रहो। 28 जो तुम्हें कोसते हैं उन्हें आशीष देते रहो और जो तुम्हारी बेइज़्ज़ती करते हैं, उनके लिए प्रार्थना करते रहो। 29 जो तेरे एक गाल पर थप्पड़ मारता है, उसकी तरफ अपना दूसरा गाल भी कर दे। जो तेरा ओढ़ना तुझसे छीन लेता है, उसे कुरता लेने से भी न रोक। 30 जो कोई तुझसे माँगता है उसे दे और जो तेरी चीज़ें उठाकर ले जाता है, उससे वापस मत माँग।
31 ठीक जैसा तुम चाहते हो कि लोग तुम्हारे साथ करें, तुम भी उनके साथ वैसा ही करो।
32 अगर तुम उन्हीं से प्यार करो जो तुमसे प्यार करते हैं, तो इसमें तुम्हारी क्या तारीफ? इसलिए कि पापी भी अपने प्यार करनेवालों से प्यार करते हैं। 33 अगर तुम उन्हीं के साथ भलाई करो जो तुम्हारे साथ भलाई करते हैं, तो इसमें तुम्हारी क्या तारीफ? पापी भी तो ऐसा करते हैं। 34 साथ ही, अगर तुम बिन ब्याज के उन लोगों को उधार दो जिनसे तुम्हें पाने की उम्मीद है, तो इसमें तुम्हारी क्या तारीफ? पापी भी तो पापियों को बिन ब्याज के उधार देते हैं, ताकि उनसे उतना ही वापस पा सकें। 35 इसके बजाय, अपने दुश्मनों से प्यार करते रहो और भलाई करते रहो और बिन ब्याज के उधार देते रहो और बदले में कुछ भी पाने की उम्मीद मत करो। इसका तुम्हें बड़ा इनाम मिलेगा और तुम परम-प्रधान के बेटे ठहरोगे, क्योंकि वह एहसान न माननेवालों और दुष्टों पर भी कृपा करता है। 36 जैसा तुम्हारा पिता दयालु है, वैसे ही तुम भी दया करते रहो।
37 दोष लगाना बंद करो, और तुम पर भी हरगिज़ दोष नहीं लगाया जाएगा। दूसरों को मुजरिम ठहराना बंद करो, और तुम्हें हरगिज़ मुजरिम नहीं ठहराया जाएगा। छोड़ दिया करो, और तुम्हें भी छोड़ दिया जाएगा। 38 दिया करो, और लोग तुम्हें भी देंगे। वे तुम्हारी झोली में नाप भर-भरकर, दबा-दबाकर और अच्छी तरह हिला-हिलाकर और ऊपर तक भरकर डालेंगे। इसलिए कि जिस नाप से तुम नापते हो, बदले में वे भी उसी नाप से तुम्हारे लिए नापेंगे।”
39 फिर उसने उन्हें एक मिसाल भी दी: “एक अंधा दूसरे अंधे को राह नहीं दिखा सकता, क्या दिखा सकता है? अगर वह दिखाए, तो क्या वे दोनों गड्ढे में नहीं गिरेंगे? 40 चेला अपने गुरु से बड़ा नहीं होता, मगर हर कोई जिसे पूरी तरह सिखाया जाता है, वह अपने गुरु जैसा होगा। 41 तू क्यों अपने भाई की आँख में पड़े तिनके को देखता है, मगर उस लट्ठे पर ध्यान नहीं देता जो तेरी अपनी आँख में पड़ा है? 42 तू अपने भाई से यह कैसे कह सकता है, ‘भाई, आ मैं तेरी आँख का तिनका निकाल दूँ,’ जबकि तू उस लट्ठे को नहीं देख रहा जो तेरी अपनी ही आँख में पड़ा है? अरे कपटी! पहले अपनी आँख से लट्ठा निकाल, तब तू साफ-साफ देख सकेगा कि वह तिनका कैसे निकालना है जो तेरे भाई की आँख में है।
43 इसलिए कि ऐसा कोई भी बढ़िया पेड़ नहीं, जो सड़ा हुआ फल पैदा करता हो। न ही ऐसा कोई सड़ा हुआ पेड़ है, जो बढ़िया फल पैदा करता हो। 44 इसलिए कि हर पेड़ अपने फल से जाना जाता है। मिसाल के लिए, लोग कभी कंटीली झाड़ियों से अंजीर नहीं बटोरते, न ही जंगली पौधों से अंगूर की कटाई करते हैं। 45 एक अच्छा इंसान अपने दिल की अच्छाई के खज़ाने से अच्छाई निकालता है, मगर एक दुष्ट इंसान अपनी दुष्टता के खज़ाने से दुष्टता निकालता है। इसलिए कि जो इंसान के दिल में भरा है, वही उसके मुँह पर आता है।
46 तो फिर, तुम क्यों मुझे ‘प्रभु! प्रभु!’ पुकारते हो, मगर मैं जो कहता हूँ वह नहीं करते? 47 हर कोई जो मेरे पास आता है और मेरी बातें सुनता है और इन पर चलता है, मैं बताता हूँ कि वह किसके जैसा है: 48 वह उस आदमी के जैसा है, जिसने एक घर बनाने के लिए गहराई तक खुदाई की और चट्टान पर नींव डाली। इसलिए जब बाढ़ आयी, और नदी की तेज़ धाराएँ उस घर से टकरायीं, तो वे उसे हिला न सकीं क्योंकि उसकी नींव मज़बूत थी। 49 दूसरी तरफ, जो मेरी बातें सुनता तो है मगर उन पर चलता नहीं, वह उस आदमी जैसा है जिसने बिना कोई नींव डाले अपना घर ज़मीन पर बनाया। नदी की तेज़ धाराएँ उसके घर से टकरायीं, और वह उसी वक्त ढह गया और पूरी तरह तहस-नहस हो गया।”
7 लोग उसकी सुन रहे थे और जब वह सारी बातें कह चुका, तो कफरनहूम में आया। 2 वहाँ एक सेना-अफसर* था जिसका एक दास, जो उसे बहुत प्यारा था, बीमार था और मरने पर था। 3 जब सेना-अफसर ने यीशु के बारे में सुना, तो उसने यहूदियों के बुज़ुर्गों को उसके पास यह कहने भेजा कि आकर मेरे दास की जान बचा ले। 4 जब वे बुज़ुर्ग यीशु के पास पहुँचे, तो उससे यह कहते हुए बहुत बिनती करने लगे: “यह सेना-अफसर इस लायक है कि तू उसकी मदद करे, 5 इसलिए कि वह हम यहूदियों से प्यार करता है और उसने खुद हमारे लिए सभा-घर बनवाया है।” 6 तब यीशु उनके साथ चल दिया। मगर जब वह उसके घर से थोड़ी ही दूरी पर था, उस सेना-अफसर ने पहले ही अपने दोस्तों के हाथ यह संदेश भेजा कि उससे कहना: “प्रभु, और तकलीफ न उठा, क्योंकि मैं इस लायक नहीं कि तू मेरी छत तले आए। 7 इसी वजह से मैंने अपने आपको इस काबिल नहीं समझा कि खुद तेरे पास आऊँ। मगर बस तू अपने मुँह से कह दे, और मेरा सेवक चंगा हो जाएगा। 8 क्योंकि मैं भी किसी और के अधिकार के अधीन हूँ और मेरे नीचे भी सिपाही हैं और जब मैं एक से कहता हूँ, ‘जा!’ तो वह जाता है और दूसरे से कहता हूँ, ‘आ!’ तो वह आता है और अपने दास से कहता हूँ, ‘यह कर!’ और वह करता है।” 9 जब यीशु ने ये बातें सुनीं तो उस पर ताज्जुब किया और मुड़कर अपने पीछे आनेवाली भीड़ से कहा: “मैं तुमसे कहता हूँ, मैंने इस्राएल में भी ऐसा ज़बरदस्त विश्वास नहीं पाया।” 10 जो भेजे गए थे उन्होंने घर वापस लौटने पर पाया कि वह दास बिलकुल ठीक हो चुका है।
11 इसके बाद वह नाईन नाम के एक शहर गया और उसके चेले और एक बड़ी भीड़ उसके साथ जा रही थी। 12 जब वह उस शहर के फाटक के पास पहुँचा, तो देखो! एक मुरदे को ले जाया जा रहा था जो अपनी माँ का इकलौता बेटा था। और-तो-और, वह विधवा थी। उस शहर से बड़ी तादाद में लोग उस स्त्री के साथ जा रहे थे। 13 जब प्रभु की नज़र उस स्त्री पर पड़ी, तो वह तड़प उठा और उससे कहा: “मत रो।” 14 तब उसने पास आकर अर्थी को छूआ और अर्थी उठानेवाले रुक गए और उसने कहा: “जवान, मैं तुझसे कहता हूँ, उठ!” 15 तब जो मर गया था वह उठ बैठा और बात करने लगा और यीशु ने उसे उसकी माँ को सौंप दिया। 16 तब सब लोगों पर डर छा गया और वे यह कहते हुए परमेश्वर की बड़ाई करने लगे: “हमारे बीच एक महान भविष्यवक्ता उठा है,” और “परमेश्वर ने अपने लोगों की तरफ ध्यान दिया है।” 17 उसके बारे में यह खबर सारे यहूदिया और आस-पास के सारे इलाके में फैल गयी।
18 यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले के चेलों ने यूहन्ना को इन सारी बातों की खबर दी। 19 तब उसने अपने दो चेलों को बुलाया और उन्हें प्रभु से यह पूछने के लिए भेजा: “वह जो आनेवाला था, क्या तू ही है, या हम किसी और की भी आस लगाएँ?” 20 जब वे यीशु के पास आए, तो उन्होंने कहा: “यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले ने हमें तेरे पास यह पूछने के लिए भेजा है, ‘वह जो आनेवाला था, क्या तू ही है, या हम किसी और की भी आस लगाएँ?’ ” 21 उसी वक्त यीशु ने बहुत-से लोगों की बीमारियाँ और दर्दनाक रोग दूर किए और लोगों में समाए दुष्ट स्वर्गदूतों को निकाला और बहुत-से अंधों को आँखों की रौशनी दी। 22 इसलिए जवाब में उसने उन दोनों से कहा: “जाओ और जो तुमने देखा और सुना है उसकी खबर यूहन्ना को दो: अंधे आँखों की रौशनी पा रहे हैं, लंगड़े चल-फिर रहे हैं, कोढ़ी शुद्ध किए जा रहे हैं, बहरे सुन रहे हैं, मरे हुओं को ज़िंदा किया जा रहा है और गरीबों को खुशखबरी सुनायी जा रही है। 23 सुखी है वह जिसने मेरे बारे में संदेह न किया हो।”*
24 जब यूहन्ना का संदेश लानेवाले चले गए, तो वह भीड़ से यूहन्ना के बारे में यह कहने लगा: “तुम बाहर वीराने में क्या देखने गए थे? हवा से इधर-उधर हिलते किसी सरकंडे को? 25 फिर तुम क्या देखने गए थे? क्या रेशमी मुलायम पोशाक पहने किसी आदमी को? शानदार कपड़े पहननेवाले और ऐशो-आराम से जीनेवाले तो महलों में रहते हैं। 26 तो आखिर तुम बाहर क्या देखने गए थे? एक भविष्यवक्ता को? हाँ। और मैं तुमसे कहता हूँ, भविष्यवक्ता से भी किसी बड़े को। 27 यह वही है जिसके बारे में लिखा है, ‘देख! मैं अपना दूत तेरे आगे भेज रहा हूँ, जो तेरे आगे-आगे तेरा रास्ता तैयार करेगा।’ 28 मैं तुमसे कहता हूँ, जितने स्त्रियों से जन्मे हैं, उनमें यूहन्ना से बड़ा कोई भी नहीं। मगर परमेश्वर के राज में जो बाकियों से छोटा है, वह यूहन्ना से बड़ा है।” 29 (जब सब लोगों ने और कर-वसूलनेवालों ने भी यह सुना, तो स्वीकार किया कि परमेश्वर सच्चा है, क्योंकि उन्होंने यूहन्ना से बपतिस्मा लिया था। 30 मगर फरीसी और जो मूसा के कानून के जानकार थे, उन्होंने यूहन्ना से बपतिस्मा नहीं लिया और इस तरह परमेश्वर ने उनके लिए जो इच्छा ठहरायी थी उसे ठुकरा दिया था।)
31 “इसलिए, मैं इस पीढ़ी के लोगों की तुलना किससे करूँ और वे किसके जैसे हैं? 32 वे उन बच्चों जैसे हैं जो बाज़ार में बैठे हुए एक-दूसरे को पुकारते और यह कहते हैं, ‘हमने तुम्हारे लिए बाँसुरी बजायी, मगर तुम न नाचे। हमने विलाप किया, मगर तुम न रोए।’ 33 उसी तरह, यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाला, औरों की तरह न रोटी खाता, न दाख-मदिरा पीता आया, मगर तुम कहते हो, ‘उसमें दुष्ट स्वर्गदूत समाया है।’ 34 जबकि इंसान का बेटा खाता-पीता आया, फिर भी तुम कहते हो, ‘देखो! यह आदमी पेटू और पियक्कड़ है और कर-वसूलनेवालों और पापियों का दोस्त है!’ 35 लेकिन, बुद्धि अपने सारे नतीजों* से सही साबित होती है।”
36 शमौन नाम का एक फरीसी था जिसने यीशु से कई बार गुज़ारिश की थी कि उसके यहाँ खाने पर आए। इसलिए यीशु उस फरीसी के घर गया और खाने बैठा। 37 उसी शहर में एक बदनाम स्त्री थी, जिसके बारे में सब जानते थे कि वह एक पापिन है। जब उसे मालूम पड़ा कि यीशु उस फरीसी के घर खाने पर आया है, तो वह संगमरमर की बोतल लायी जिसमें खुशबूदार तेल था। 38 वह पीछे, यीशु के पैरों के पास आकर खड़ी हो गयी और रो-रोकर अपने आंसुओं से उसके पैर भिगोने लगी और अपने बालों से उन्हें पोंछने लगी। वह बार-बार उसके पैरों को चूमती और उन पर खुशबूदार तेल मलती थी। 39 यह देखकर वह फरीसी जिसने यीशु को न्यौता दिया था, मन-ही-मन कहने लगा: “अगर यह आदमी एक भविष्यवक्ता होता, तो जान जाता कि यह स्त्री जो उसे छू रही है, कौन और कैसी है और यह कि वह एक पापिन है।” 40 मगर यीशु ने उससे कहा: “शमौन, मैं तुझसे कुछ कहना चाहता हूँ।” उसने कहा: “गुरु, बोल!”
41 “दो आदमी किसी साहूकार के कर्ज़दार थे। एक पर पाँच सौ दीनार का कर्ज़ था और दूसरे पर पचास का। 42 लेकिन जब अपना कर्ज़ चुकाने के लिए उनके पास कुछ भी नहीं था, तब साहूकार ने बड़ी उदारता से उन दोनों का कर्ज़ माफ कर दिया। इसलिए बता, उन दोनों में से कौन साहूकार से ज़्यादा प्यार करेगा?” 43 शमौन ने जवाब दिया: “मैं समझता हूँ कि वही जिसका उसने ज़्यादा कर्ज़ माफ किया।” यीशु ने कहा: “तू ने बिलकुल सही सोचा है।” 44 इस पर यीशु ने घूमकर उस स्त्री की तरफ देखा और शमौन से कहा: “क्या तू इस स्त्री को देख रहा है? मैं तेरे घर में आया और तू ने मेरे पाँव धोने के लिए पानी न दिया। मगर इस स्त्री ने अपने आंसुओं से मेरे पैर धोए और अपने बालों से उन्हें पोंछा। 45 तू ने मुझे नहीं चूमा। मगर इस स्त्री ने जब से मैं आया हूँ तब से मेरे पैरों को चूमना नहीं छोड़ा। 46 तू ने मेरे सिर पर तेल नहीं मला। मगर इस स्त्री ने मेरे पैरों पर खुशबूदार तेल मला है। 47 इस वजह से, मैं तुझसे कहता हूँ कि इसके पाप हालाँकि बहुत हैं वे माफ हुए, क्योंकि इसने ज़्यादा प्यार किया। मगर जिसका कम माफ किया गया है वह कम प्यार करता है।” 48 तब यीशु ने स्त्री से कहा: “तेरे पाप माफ किए गए।” 49 यह सुनकर जो लोग उसके साथ मेज़ पर थे, मन-ही-मन कहने लगे: “यह आदमी कौन है जो पाप तक माफ करता है?” 50 मगर यीशु ने स्त्री से कहा: “तेरे विश्वास ने तुझे बचा लिया है। शांति से चली जा।”
8 इसके कुछ समय बाद, यीशु शहर-शहर और गाँव-गाँव फिरता हुआ लोगों को प्रचार करता और परमेश्वर के राज की खुशखबरी सुनाता गया। वे बारह चेले उसके साथ थे 2 और कुछ स्त्रियाँ भी थीं, जिनमें से या तो दुष्ट स्वर्गदूत निकाले गए थे या उन्हें बीमारियों से चंगा किया गया था। इनमें मरियम जो मगदलीनी कहलाती थी, और जिसमें से सात दुष्ट स्वर्गदूत निकले थे, 3 साथ ही हेरोदेस के घर के प्रबंधक खुज़ा की पत्नी योअन्ना, और सुसन्ना और दूसरी कई स्त्रियाँ थीं। ये सभी अपनी धन-संपत्ति से यीशु और उसके चेलों की सेवा करती थीं।
4 जो लोग शहर-शहर से उसके पास आया करते थे, उनके अलावा जब एक बड़ी भीड़ उसके पास जमा हो गयी, तो उसने उन्हें एक मिसाल बतायी: 5 “एक बीज बोनेवाला बीज बोने निकला। जब वह बो रहा था, तो उनमें से कुछ बीज रास्ते के किनारे गिरे और वे पैरों तले रौंदे गए और आकाश के पंछी आकर उन्हें खा गए। 6 कुछ चट्टानी जगह पर गिरे और अंकुर फूटने के बाद सूख गए, क्योंकि उन्हें नमी न मिली। 7 कुछ बीज काँटों में गिरे और उनके साथ-साथ बढ़नेवाले कंटीले पौधों ने उन्हें दबा दिया। 8 कुछ और बीज अच्छी मिट्टी पर गिरे और अंकुर फूटने के बाद सौ गुना फल लाए।” ये बातें बताने के बाद उसने ऊँची आवाज़ में कहा: “कान लगाकर सुनो और मैं जो कह रहा हूँ उसे समझने की कोशिश करो।”
9 मगर उसके चेले उससे पूछने लगे कि इस मिसाल का क्या मतलब है। 10 उसने कहा: “परमेश्वर के राज के पवित्र रहस्यों की समझ तुम्हें दी गयी है, मगर बाकियों के लिए ये मिसालें ही हैं, ताकि देखते हुए भी वे न देख सकें और सुनते हुए भी इसके मायने न समझ सकें। 11 इस मिसाल का मतलब यह है: बीज परमेश्वर का वचन है। 12 जो रास्ते के किनारे गिरे, ये वे हैं जिन्होंने वचन सुना है मगर इसके बाद शैतान* आता है और उनके दिलों से वचन उठा ले जाता है, ताकि वे न तो यकीन करें और न ही उद्धार पाएँ। 13 जो चट्टानी जगह पर हैं, ये वे हैं जो वचन को सुनने पर इसे खुशी-खुशी कबूल करते हैं, मगर इनमें जड़ नहीं होती। ये थोड़े वक्त के लिए यकीन करते हैं, मगर परीक्षा के वक्त गिर जाते हैं। 14 और जो काँटों के बीच गिरे, ये वे हैं जिन्होंने वचन सुना तो है, मगर इस ज़िंदगी की चिंताएँ और धन-दौलत और ऐशो-आराम उन्हें भटका देते हैं और इनसे वे पूरी तरह दब जाते हैं और ऐसा फल पैदा नहीं करते जो पूरी तरह पका हुआ हो। 15 जो बढ़िया मिट्टी पर गिरे, ये वे हैं जिन्होंने अपने उत्तम और भले दिल से वचन सुना है और सुनने के बाद इसे संजोए रखते हैं और धीरज से फल पैदा करते हैं।
16 कोई भी दीया जलाकर उसे बरतन से नहीं ढकता या पलंग के नीचे नहीं रखता, मगर उसे दीवट पर रखता है ताकि जो कमरे के अंदर आते हैं वे रौशनी देख सकें। 17 ऐसा कुछ नहीं जो छिपा हुआ हो और ज़ाहिर न किया जाए, न ही ऐसी कोई चीज़ है जो बड़ी सावधानी से गुप्त रखी गयी हो और जो कभी जानी न जाए और कभी खुले में न आए। 18 इसलिए ध्यान दो कि तुम कैसे सुनते हो। क्योंकि जिस किसी के पास है, उसे और दिया जाएगा, मगर जिस किसी के पास नहीं है, उससे वह भी ले लिया जाएगा जो उसे लगता है कि उसका अपना है।”
19 फिर, यीशु की माँ और उसके भाई उससे मिलने आए। मगर भीड़ की वजह से वे उस तक पहुँच नहीं पा रहे थे। 20 लेकिन उसे खबर दी गयी: “तेरी माँ और तेरे भाई बाहर खड़े हैं और तुझसे मिलना चाहते हैं।” 21 जवाब में उसने उनसे कहा: “मेरी माँ और मेरे भाई ये हैं, जो परमेश्वर का वचन सुनते और उस पर चलते हैं।”
22 एक दिन ऐसा हुआ कि वह और उसके चेले एक नाव पर चढ़े और यीशु ने उनसे कहा: “आओ, हम झील के उस पार चलें।” तब वे नाव में रवाना हो गए। 23 मगर सफर के दौरान वह सो गया। तब झील में भयंकर तूफान उठा और उनकी नाव में पानी भरने लगा, उनकी जान जोखिम में थी। 24 तब चेले उसके पास आकर उसे जगाते हुए कहने लगे: “गुरु, गुरु, हम नाश होनेवाले हैं!” तब यीशु ने उठकर आँधी और उफनती लहरों को डाँटा और वे शांत हो गए और सन्नाटा छा गया। 25 तब उसने चेलों से कहा: “कहाँ गया तुम्हारा विश्वास?” मगर उन पर डर छा गया और वे ताज्जुब करने लगे और एक-दूसरे से कहने लगे: “आखिर यह कौन है जो आँधी और पानी तक को हुक्म देता है और वे उसकी मानते हैं?”
26 फिर वे किनारे पर गिरासेनियों के इलाके में पहुँचे, जो गलील के सामने उस पार है। 27 मगर जब वह उतरकर किनारे पर आया, तो पास के शहर का एक आदमी उससे मिला, जिसमें दुष्ट स्वर्गदूत समाए हुए थे। उस आदमी ने काफी वक्त से कपड़े नहीं पहने थे और वह घर में नहीं बल्कि कब्रों के बीच रहता था। 28 जब उसने यीशु को देखा तो ज़ोर से चिल्लाया और उसके आगे गिरकर ऊँची आवाज़ में उससे कहा: “हे यीशु, परम-प्रधान परमेश्वर के बेटे, मेरा तुझसे क्या लेना-देना? मैं तुझसे बिनती करता हूँ, मुझे मत तड़पा।” 29 (इसलिए कि यीशु उस दुष्ट स्वर्गदूत को हुक्म दे रहा था कि वह उस आदमी में से निकल आए। क्योंकि एक लंबे अरसे से उसने उस आदमी को अपने कब्ज़े में कर रखा था। उस आदमी को बार-बार ज़ंजीरों और बेड़ियों से बाँधा जाता था और उसकी पहरेदारी की जाती थी, मगर वह उन बंधनों को तोड़ देता था। वह दुष्ट स्वर्गदूत उस आदमी को भगाए फिरता था और सुनसान जगहों में ले जाता था।) 30 यीशु ने उससे पूछा: “तेरा नाम क्या है?” उसने कहा: “पलटन,”* क्योंकि उसमें बहुत सारे दुष्ट स्वर्गदूत समाए थे। 31 वे उससे बिनती करते रहे कि वह उन्हें अथाह-कुंड में जाने का हुक्म न दे। 32 वहीं पहाड़ पर बहुत सारे सुअर चर रहे थे। इसलिए दुष्ट स्वर्गदूतों ने यीशु से बिनती की कि वह उन्हें सुअरों में समा जाने की इजाज़त दे। और उसने उन्हें इजाज़त दी। 33 तब दुष्ट स्वर्गदूत उस आदमी में से निकल गए और उन सुअरों में समा गए। तब सुअरों का यह पूरा झुंड बड़ी तेज़ी से टीले की तरफ दौड़ा और वहाँ से गिरकर झील में डूब मरा। 34 मगर जब उनके चरवाहों ने देखा कि क्या हुआ है, तो वे भाग खड़े हुए और जाकर शहर और देहात में इसकी खबर दी।
35 जो हुआ था, उसे देखने के लिए लोग बाहर आए। जब वे यीशु के पास आए तो उन्होंने देखा कि वह आदमी जिसमें से दुष्ट स्वर्गदूत निकले थे, कपड़े पहने और बिलकुल ठीक दिमागी हालत में यीशु के पैरों के पास बैठा है। यह देखकर लोगों में डर समा गया। 36 जिन्होंने अपनी आँखों से सबकुछ देखा था, वे उन्हें बताने लगे कि वह आदमी जिसमें दुष्ट स्वर्गदूत समाए थे, किस तरह ठीक हुआ है। 37 तब गिरासेनियों के आस-पास के इलाके से भारी तादाद में आए सब लोगों ने यीशु से कहा कि वह उनके यहाँ से चला जाए। क्योंकि उन्हें ज़बरदस्त डर ने जकड़ लिया था। तब यीशु नाव पर चढ़ गया और लौट पड़ा। 38 लेकिन जिस आदमी से दुष्ट स्वर्गदूत निकले थे, वह यीशु से बिनती करता रहा कि वह उसे अपने साथ रहने दे। मगर यीशु ने उस आदमी को यह कहते हुए भेज दिया: 39 “अपने घर वापस चला जा और परमेश्वर ने जो कुछ तेरे लिए किया है, वह सब बताता रह।” तब वह आदमी चला गया और पूरे शहर में सुनाता गया कि यीशु ने उसके लिए क्या किया था।
40 जब यीशु इस पार आया, तो भीड़ ने बड़े प्यार से उसका स्वागत किया क्योंकि वे सब उसका इंतज़ार कर रहे थे। 41 लेकिन तभी वहाँ याइर नाम का एक आदमी आया, जो सभा-घर में अगुवाई करनेवाला एक अधिकारी था। वह यीशु के पैरों पर गिर पड़ा और उससे बिनती करने लगा कि वह उसके घर चले। 42 क्योंकि उसकी इकलौती बेटी जो करीब बारह साल की थी, मरने पर थी।
जब यीशु जा रहा था, तो लोगों का बड़ा जमघट उसे घेरे हुए साथ-साथ चलने लगा। 43 एक स्त्री, जिसे बारह साल से खून बहने की बीमारी थी और जो किसी के भी इलाज से ठीक नहीं हो पायी थी, 44 वह पीछे से आयी और यीशु के कपड़े की झालर छू ली। उसी घड़ी उस स्त्री का खून बहना बंद हो गया। 45 तब यीशु ने कहा: “किसने मुझे छूआ था?” जब वे सभी इनकार करने लगे, तो पतरस ने कहा: “गुरु, भीड़ तुझे दबाए जा रही है और तुझ पर गिरी पड़ती है।” 46 फिर भी यीशु ने कहा: “किसी ने मुझे छूआ है, क्योंकि मुझे महसूस हुआ कि मेरे अंदर से शक्ति बाहर निकली है।” 47 जब उस स्त्री ने देखा कि यीशु को मालूम हो चुका है, तो वह काँपती हुई आयी और उसके आगे गिर पड़ी और सब लोगों के सामने बता दिया कि उसने किस वजह से उसे छूआ और वह कैसे फौरन ठीक हो गयी। 48 तब यीशु ने स्त्री से कहा: “बेटी, तेरे विश्वास ने तुझे ठीक किया है। शांति से चली जा।”
49 जब वह बोल ही रहा था, तो सभा-घर के अधिकारी के घर से एक आदमी आया और कहने लगा: “तेरी बेटी मर चुकी है। गुरु को और परेशान न कर।” 50 यह सुनने पर यीशु ने उस अधिकारी को जवाब दिया: “मत डर, बस विश्वास रख और वह बच जाएगी।” 51 जब यीशु उस घर में पहुँचा तो उसने पतरस, यूहन्ना, याकूब और लड़की के माता-पिता को छोड़ और किसी को अपने साथ अंदर आने न दिया। 52 लेकिन सारे लोग रो रहे थे और उस लड़की के मातम में छाती पीट रहे थे। इसलिए यीशु ने कहा: “रोना बंद करो, क्योंकि लड़की मरी नहीं, बल्कि सो रही है।” 53 इस पर वे उसकी खिल्ली उड़ाते हुए उस पर हँसने लगे, क्योंकि वे जानते थे कि वह मर चुकी है। 54 मगर यीशु ने लड़की का हाथ अपने हाथ में लिया और कहा: “बच्ची, उठ!” 55 तब उस लड़की में जान* आ गयी और वह फौरन उठ बैठी। यीशु ने हिदायत दी कि लड़की को खाने के लिए कुछ दिया जाए। 56 लड़की को ज़िंदा देखकर उसके माता-पिता खुशी के मारे अपने आपे में न रहे। मगर यीशु ने उन्हें हिदायत दी कि जो हुआ है, वह किसी को न बताएँ।
9 फिर यीशु ने उन बारहों को साथ बुलाया और उन्हें सब दुष्ट स्वर्गदूतों पर अधिकार और शक्ति दी कि वे लोगों में से उन्हें निकालें और बीमारियाँ ठीक करें। 2 तब उसने उन्हें परमेश्वर के राज का प्रचार करने और चंगा करने भेजा 3 और उनसे कहा: “सफर के लिए कुछ न लेना, न लाठी, न खाने की पोटली, न रोटी, न चाँदी के पैसे, न ही दो कुरते लेना। 4 मगर जहाँ कहीं तुम किसी घर में दाखिल होते हो, वहीं ठहरना और वहीं से विदा लेना। 5 जहाँ कहीं लोग तुम्हें स्वीकार न करें, उस शहर से बाहर निकलते वक्त अपने पैरों की धूल झाड़ देना,* ताकि उनके खिलाफ गवाही हो।” 6 तब वे एक गाँव से दूसरे गाँव होते हुए पूरे इलाके में हर कहीं खुशखबरी सुनाते और चंगा करते गए।
7 फिर जब ज़िला-शासक* हेरोदेस ने इन सारी घटनाओं के बारे में सुना तो वह भारी उलझन में पड़ गया। इसलिए कि यीशु के बारे में कुछ लोग कहते थे कि वह यूहन्ना है जिसे मरे हुओं में से जी उठाया गया है। 8 जबकि दूसरे उसके बारे में कहते थे कि एलिय्याह प्रकट हुआ है मगर कुछ और कहते थे कि पुराने भविष्यवक्ताओं में से कोई एक जी उठा है। 9 हेरोदेस ने कहा: “यूहन्ना का तो मैंने सिर कटवा दिया था। तो फिर, यह कौन है जिसके बारे में मैं ऐसी बातें सुन रहा हूँ?” इसलिए वह यीशु को देखना चाहता था।
10 जब प्रेषित लौटे, तो उन्होंने जो-जो किया था उसका सारा ब्यौरा यीशु को कह सुनाया। तब वह उन्हें साथ लेकर बैतसैदा नाम के शहर में, किसी एकांत जगह के लिए चला गया। 11 मगर भीड़ को इसका पता चल गया और वह उसके पीछे गयी। यीशु बड़ी कृपा दिखाते हुए उनसे मिला और उन्हें परमेश्वर के राज के बारे में बताने लगा और जिन्हें इलाज की ज़रूरत थी, उन्हें ठीक किया। 12 फिर दिन ढलने लगा और वे बारह उसके पास आए और उससे कहा: “भीड़ को भेज दे ताकि वे आस-पास के गाँवों और देहातों में जाकर अपने ठहरने और खाने का इंतज़ाम करें, क्योंकि हम यहाँ सुनसान जगह में हैं।” 13 मगर यीशु ने उनसे कहा: “तुम्हीं उन्हें कुछ खाने को दो।” उन्होंने कहा: “हमारे पास पाँच रोटियों और दो मछलियों से ज़्यादा और कुछ नहीं है, या फिर शायद हमें खुद जाना होगा और इन सारे लोगों के लिए खाने की चीज़ें खरीदनी होंगी।” 14 दरअसल, वहाँ करीब पाँच हज़ार आदमी थे। यीशु ने अपने चेलों से कहा: “उन्हें तकरीबन पचास-पचास की टोलियों में खाने के लिए बिठा दो।” 15 उन्होंने ऐसा ही किया और उन सबको बिठा दिया। 16 तब उसने पाँच रोटियाँ और दो मछलियाँ लीं और आकाश की तरफ देखकर प्रार्थना में धन्यवाद दिया और उन्हें तोड़कर चेलों को देने लगा, ताकि वे भीड़ के सामने परोस दें। 17 तब उन सब लोगों ने भरपेट खाया। जो टुकड़े बाकी बच गए थे, उन्होंने वे जमा किए और उनसे बारह टोकरियाँ भर गयीं।
18 बाद में, जब यीशु अकेले प्रार्थना कर रहा था, तब चेले एक-साथ उसके पास आए और उसने उनसे यह सवाल पूछा: “लोग मेरे बारे में क्या कहते हैं, मैं कौन हूँ?” 19 जवाब में उन्होंने कहा: “कुछ कहते हैं, यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाला। मगर दूसरे एलिय्याह और कुछ कहते हैं पुराने भविष्यवक्ताओं में से कोई जी उठा है।” 20 तब यीशु ने उनसे कहा: “लेकिन तुम क्या कहते हो, मैं कौन हूँ?” पतरस ने जवाब में कहा: “तू परमेश्वर का भेजा हुआ मसीह है।” 21 तब उसने उन्हें कड़ाई से हिदायत दी कि यह बात किसी से न कहें, 22 मगर यह कहा: “यह ज़रूरी है कि इंसान का बेटा कई दुःख-तकलीफें सहे और बुज़ुर्ग, प्रधान याजक और शास्त्री उसे ठुकरा दें और वह मार डाला जाए और तीसरे दिन जी उठाया जाए।”
23 तब यीशु ने सबसे कहा: “अगर कोई मेरे पीछे आना चाहता है, तो वह खुद से इनकार करे और अपनी यातना की सूली* उठाए और दिन-ब-दिन लगातार मेरे पीछे चलता रहे। 24 क्योंकि जो कोई अपनी जान बचाना चाहता है वह उसे खोएगा, मगर जो कोई मेरी खातिर अपनी जान गँवाता है वही उसे बचाएगा। 25 वाकई, अगर एक इंसान सारा जहान हासिल कर ले मगर अपनी जान से हाथ धो बैठे या खुद का नुकसान कर ले, तो उसका क्या फायदा? 26 इसलिए कि जो कोई मुझसे और मेरे वचनों से शर्मिंदा होता है, उससे इंसान का बेटा भी उस वक्त शर्मिंदा होगा जब वह अपने और पिता के और पवित्र स्वर्गदूतों के वैभव के साथ आएगा। 27 मगर मैं तुमसे सच कहता हूँ, यहाँ जो खड़े हैं उनमें से कुछ ऐसे हैं जो तब तक मौत का मुँह हरगिज़ न देखेंगे जब तक कि पहले वे परमेश्वर के राज को न देख लें।”
28 दरअसल यह कहने के करीब आठ दिन बाद ऐसा हुआ कि वह पतरस, यूहन्ना और याकूब को अपने साथ लेकर प्रार्थना करने के लिए एक पहाड़ पर चढ़ गया। 29 जब वह प्रार्थना कर रहा था, तो उसके चेहरे का रूप बदल गया। उसकी पोशाक जगमगाती सफेद हो उठी। 30 साथ ही देखो! दो आदमी उसके साथ बात कर रहे थे। ये थे मूसा और एलिय्याह। 31 ये ऐश्वर्य के साथ दिखायी दिए और उसकी विदाई के बारे में बात करने लगे, जो यरूशलेम से होनी तय थी। 32 पतरस और उसके साथी नींद से बोझिल हो चुके थे। मगर जब वे पूरी तरह जाग गए, तो उन्होंने यीशु का ऐश्वर्य देखा और उसके साथ दो आदमी खड़े देखे। 33 जब वे दोनों यीशु के पास से जाने लगे, तो पतरस ने उससे कहा: “गुरु, हमारा यहाँ रहना अच्छा है, इसलिए हमें तीन तंबू खड़े करने दे, एक तेरे लिए, एक मूसा के लिए और एक एलिय्याह के लिए।” पतरस नहीं जानता था कि वह क्या कह रहा है। 34 मगर जब वह ये बातें बोल ही रहा था, एक बादल उभरा और उन पर छाने लगा। जैसे ही वे बादल से घिरने लगे, वे घबरा गए। 35 उस बादल में से यह आवाज़ आयी: “यह मेरा बेटा है, जिसे मैंने चुना है। इसकी सुनो।” 36 और जब वह आवाज़ आयी, तो उन्होंने देखा कि यीशु वहाँ अकेला है। मगर वे चुप रहे और उन्होंने जो देखा था उन दिनों उसके बारे में किसी को कुछ नहीं बताया।
37 अगले दिन जब वे पहाड़ से नीचे उतरे, तो एक बड़ी भीड़ उससे मिली। 38 तभी अचानक भीड़ में से एक आदमी फरियाद करता हुआ कहने लगा: “गुरु, मैं तुझसे बिनती करता हूँ कि मेरे बेटे को एक नज़र देख ले, क्योंकि वह मेरा इकलौता है। 39 देख! एक दुष्ट स्वर्गदूत उसे जकड़ लेता है, और अचानक मेरा बेटा चिल्लाने लगता है और वह दूत उसे ऐसे मरोड़ता है कि वह मुँह से झाग उगलने लगता है और उसे घायल करने के बाद बड़ी मुश्किल से छोड़ता है। 40 मैंने तेरे चेलों से इसे निकालने की बिनती की, मगर वे निकाल न सके।” 41 जवाब में यीशु ने कहा: “अरे अविश्वासी और टेढ़ी पीढ़ी, मैं और कब तक तुम्हारे साथ रहूँ और कब तक तुम्हारी सहूँ? अपने बेटे को यहाँ ला।” 42 मगर जिस वक्त वह आ रहा था, तो दुष्ट स्वर्गदूत ने उसे ज़मीन पर पटक दिया और बुरी तरह मरोड़ा। लेकिन यीशु ने उस दुष्ट स्वर्गदूत को डाँटा और लड़के को ठीक किया और उसे उसके पिता को सौंप दिया। 43 तब वे सभी परमेश्वर की महाशक्ति देखकर दंग रह गए।
जब वे उसके सब कामों पर ताज्जुब करते हुए उसकी सराहना कर रहे थे, तो उसने अपने चेलों से कहा: 44 “मैं जो बताने जा रहा हूँ उस बात पर कान लगाओ। यह तय है कि इंसान का बेटा लोगों के हवाले किया जाए।” 45 मगर चेले अभी-भी उसकी बात का मतलब नहीं समझ रहे थे। दरअसल, इस बात का मतलब उनसे छिपाया गया था कि वे इसे समझ न सकें। साथ ही, वे इस बारे में उससे सवाल पूछने से डरते थे।
46 इसके बाद, उनमें आपस में यह बहस छिड़ गयी कि उनमें सबसे बड़ा कौन होगा। 47 तब यीशु ने यह जानते हुए कि वे अपने दिलों में क्या सोच रहे हैं, एक छोटे बच्चे को अपने पास खड़ा किया 48 और उनसे कहा: “जो कोई इस छोटे बच्चे को मेरे नाम से स्वीकार करता है वह मुझे भी स्वीकार करता है और जो मुझे स्वीकार करता है वह उसे भी स्वीकार करता है जिसने मुझे भेजा है। इसलिए कि तुम सबमें जो अपने आपको बाकियों से छोटा समझकर चलता है, वही है जो तुम सबमें बड़ा है।”
49 जवाब में यूहन्ना ने कहा: “गुरु, हमने देखा कि एक आदमी लोगों में समाए दुष्ट स्वर्गदूतों को तेरे नाम से निकाल रहा है और हमने उसे रोकने की कोशिश की, क्योंकि वह हमारे साथ तेरे पीछे नहीं आता।” 50 मगर यीशु ने उससे कहा: “उसे रोकने की कोशिश मत करो, क्योंकि जो तुम्हारे खिलाफ नहीं, वह तुम्हारे साथ है।”
51 जब वह वक्त पास आ रहा था कि वह ऊपर उठाया जाए, तब उसने यरूशलेम की तरफ रुख करने की ठान ली। 52 इसलिए उसने अपने दूत आगे भेजे। वे आगे गए और सामरियों के एक गाँव में दाखिल हुए कि उसके लिए तैयारी करें। 53 मगर गाँववालों ने यीशु को अपने यहाँ जगह देने से इनकार कर दिया, क्योंकि वह यरूशलेम की तरफ रुख करने की ठान चुका था। 54 जब चेले याकूब और यूहन्ना ने यह देखा तो कहा: “प्रभु, क्या तू चाहता है कि हम यह कहें कि आकाश से आग बरसे और इन्हें भस्म कर दे?” 55 मगर उसने पलटकर उन्हें डाँटा। 56 तब वे किसी और गाँव में चले गए।
57 जब वे सड़क पर जा रहे थे, तो किसी ने यीशु से कहा: “तू जहाँ कहीं जाएगा मैं तेरे पीछे चलूँगा।” 58 तब यीशु ने उससे कहा: “लोमड़ियों की माँदें और आकाश के पंछियों के बसेरे होते हैं, मगर इंसान के बेटे के पास कहीं सिर टिकाने की भी जगह नहीं है।” 59 तब उसने एक और से कहा: “मेरा चेला बनकर मेरे पीछे हो ले।” उस आदमी ने कहा: “मुझे इजाज़त दे कि मैं चला जाऊँ और पहले अपने पिता को दफना दूँ।” 60 मगर यीशु ने उससे कहा: “मुरदों को अपने मुरदे दफन करने दे, मगर तू जाकर परमेश्वर के राज का ऐलान कर।” 61 फिर किसी और ने यह कहा: “हे प्रभु, मैं तेरा चेला बनकर तेरे पीछे आऊँगा, मगर मुझे इजाज़त दे कि पहले अपने घरवालों को अलविदा कह दूँ।” 62 यीशु ने उससे कहा: “कोई भी आदमी जो हल पर हाथ रखने के बाद, पीछे छोड़ी हुई चीज़ों को मुड़कर देखता है, वह परमेश्वर के राज के लायक नहीं।”
10 इसके बाद प्रभु ने सत्तर और चेले चुने और जिस-जिस शहर और इलाके में वह खुद जानेवाला था, वहाँ उन्हें दो-दो की जोड़ियों में अपने आगे भेजा। 2 वह उनसे कहने लगा: “कटाई के लिए फसल वाकई बहुत है, मगर मज़दूर थोड़े हैं। इसलिए खेत के मालिक से बिनती करो कि वह कटाई के लिए और मज़दूर भेज दे। 3 जाओ। देखो! मैं तुम्हें भेज रहा हूँ, जैसे भेड़ियों के बीच मेम्ने होते हैं, तुम भी वैसे ही ठहरोगे। 4 अपने साथ कोई बटुआ न लेना, न खाने की पोटली, न जूतियाँ लेना, और राह में किसी को नमस्कार करने के लिए उसे गले न लगाना। 5 जहाँ कहीं तुम किसी घर में जाओ तो पहले कहो, ‘इस घर को शांति मिले।’ 6 अगर वहाँ कोई शांति चाहनेवाला हो, तो तुम्हारी शांति उस पर बनी रहेगी। लेकिन अगर न हो तो तुम्हारी शांति तुम्हारे पास लौट आएगी। 7 इसलिए उसी घर में रहो और जो कुछ वे तुम्हें दें, वही खाओ-पीओ, क्योंकि काम करनेवाला अपनी मज़दूरी पाने का हकदार है। अपने ठहरने के लिए घर-पर-घर बदलते मत रहना।
8 जिस किसी शहर में जाने पर वे तुम्हारा आदर-सत्कार करें, तो वहाँ जो कुछ तुम्हारे सामने रखा जाता है, वही खाओ। 9 वहाँ जो बीमार हों उन्हें ठीक करो और प्रचार करो कि ‘परमेश्वर का राज तुम्हारे पास आ गया है।’ 10 लेकिन जिस किसी शहर में जाने पर वे तुम्हें स्वीकार न करें, तो वहाँ के चौराहों में जाओ और कहो, 11 ‘तुम्हारे शहर की धूल तक, जो हमारे पैरों में लगी है, उसे हम पोंछ डालते हैं, ताकि यह तुम्हारे खिलाफ गवाही दे। फिर भी, याद रखो कि परमेश्वर का राज पास आ गया है।’ 12 मैं तुमसे कहता हूँ कि उस दिन उस शहर के हाल से सदोम का हाल ज़्यादा सहने लायक होगा।
13 हे खुराजीन, तुझ पर हाय! हे बैतसैदा, तुझ पर हाय! क्योंकि जो शक्तिशाली काम तुममें हुए थे, अगर वे सोर और सीदोन* में हुए होते, तो उन्होंने टाट ओढ़कर और राख में बैठकर कब का पश्चाताप कर लिया होता। 14 इसलिए न्याय के वक्त तुम्हारे हाल से सोर और सीदोन का हाल ज़्यादा सहने लायक होगा। 15 और कफरनहूम तू, क्या तू सोचता है कि तुझे आकाश तक ऊँचा किया जाएगा? तू तो नीचे कब्र* में जाएगा!
16 जो तुम्हारी सुनता है, वह मेरी भी सुनता है। जो तुम्हारा तिरस्कार करता है, वह मेरा भी तिरस्कार करता है। जो मेरा तिरस्कार करता है, वह उसका भी तिरस्कार करता है जिसने मुझे भेजा है।”
17 इसके बाद वे सत्तर चेले बड़े आनंद के साथ लौटे और कहने लगे: “प्रभु, तेरा नाम इस्तेमाल करने से दुष्ट स्वर्गदूत भी हमारे अधीन किए जा रहे हैं।” 18 इस पर यीशु ने उनसे कहा: “मैं देखता हूँ कि शैतान बिजली की तरह आकाश से गिर चुका है। 19 देखो! मैंने तुम्हें साँपों और बिच्छुओं को पैरों तले रौंदने और दुश्मन की सारी शक्ति को कुचलने का अधिकार दिया है, और कोई भी चीज़ तुम्हें किसी भी तरह नुकसान नहीं पहुँचाएगी। 20 फिर भी, इस बात से खुश मत हो कि स्वर्गदूत तुम्हारे अधीन किए जा रहे हैं, मगर इस बात पर खुशी मनाओ कि तुम्हारे नाम स्वर्ग में लिखे गए हैं।” 21 उसी घड़ी वह पवित्र शक्ति और बड़े आनंद से भर गया और बोला: “हे पिता, स्वर्ग और पृथ्वी के मालिक, मैं सबके सामने तेरी बड़ाई करता हूँ कि तू ने ये बातें बुद्धिमानों और ज्ञानियों से तो बहुत ध्यान से छिपाए रखीं, मगर बच्चों पर ज़ाहिर की हैं। हाँ, हे पिता, क्योंकि तुझे ऐसा ही करना मंज़ूर हुआ। 22 मेरे पिता ने सबकुछ मेरे हवाले किया है। बेटा कौन है, यह कोई नहीं जानता सिवा पिता के, और पिता कौन है, यह कोई नहीं जानता सिवा बेटे के और उसके जिस पर बेटा उसे ज़ाहिर करना चाहे।”
23 तब उसने फिरकर अपने चेलों से अकेले में कहा: “सुखी हैं वे जिनकी आँखें वह सब देखती हैं जो तुम देख रहे हो। 24 क्योंकि मैं तुमसे कहता हूँ कि बहुत-से भविष्यवक्ताओं और राजाओं की तमन्ना थी कि वह सब देखें जो तुम देख रहे हो मगर न देख सके और वे बातें सुनें जो तुम सुन रहे हो मगर न सुन सके।”
25 इसके बाद, एक आदमी जो मूसा के कानून का अच्छा जानकार था, यीशु की परीक्षा लेने के लिए खड़ा हुआ। उसने कहा: “गुरु, हमेशा की ज़िंदगी का वारिस बनने के लिए मुझे क्या काम करना चाहिए?” 26 यीशु ने उससे कहा: “कानून में क्या लिखा है? तू ने क्या पढ़ा है?” 27 जवाब में उसने कहा: “ ‘तुझे अपने परमेश्वर यहोवा से अपने पूरे दिल, अपनी पूरी जान, अपनी पूरी ताकत और अपने पूरे दिमाग से प्यार करना है,’ और ‘अपने पड़ोसी से वैसे ही प्यार करना है जैसे तू खुद से करता है।’ ” 28 यीशु ने कहा: “तू ने सही जवाब दिया। ‘ऐसा ही करता रह और तुझे ज़िंदगी मिलेगी।’ ”
29 मगर उस आदमी ने खुद को नेक साबित करने के इरादे से यीशु से पूछा: “असल में मेरा पड़ोसी कौन है?” 30 जवाब में यीशु ने कहा: “एक आदमी यरूशलेम से नीचे उतरकर यरीहो जा रहा था और लुटेरों ने उसे घेर लिया। उन्होंने उसके कपड़े तक उतरवा लिए और उसका सब कुछ छीनकर उसे बहुत मारा और अधमरा छोड़कर वहाँ से चले गए। 31 इत्तफाक से एक याजक उसी सड़क से नीचे जा रहा था, मगर जब उसने उस आदमी को वहाँ पड़ा देखा, तो सड़क की दूसरी तरफ से निकलकर चला गया। 32 उसी तरह, जब एक लेवी भी, नीचे उतरता हुआ उस जगह तक आया और उस आदमी को देखा, तो सड़क की दूसरी तरफ से निकलकर चला गया। 33 मगर एक सामरी उस सड़क से गुज़र रहा था। जब वह उस आदमी के पास आया और उसे देखा, तो उसका दिल तड़प उठा। 34 इसलिए वह उसके पास गया और उसके घावों पर तेल और दाख-मदिरा डालकर पट्टियाँ बाँधी। इसके बाद, वह उसे अपने गधे पर लादकर एक सराय में ले आया और उसकी देखभाल की। 35 अगले दिन उसने दो दिन की मज़दूरी* निकाली और सरायवाले को देते हुए कहा: ‘इस आदमी की देखभाल करना और इसके अलावा जो कुछ तेरा खर्च हो, वह मैं वापस लौटने पर तुझे चुका दूँगा।’ 36 अब बता, तुझे क्या लगता है, इन तीनों में से कौन उस आदमी का पड़ोसी बना जिसे लुटेरों ने घेर लिया था?” 37 उसने कहा: “वही जिसने उस पर दया दिखाते हुए उसकी मदद की।” तब यीशु ने उससे कहा: “जा और तू भी ऐसा ही कर।”
38 फिर जब वे जा रहे थे तो वह किसी गाँव में गया। वहाँ मारथा नाम की एक स्त्री थी, जिसने उसे अपने घर मेहमान ठहराया। 39 इस स्त्री की एक बहन भी थी, जिसका नाम मरियम था। वह नीचे बैठकर प्रभु के पैरों के पास उसके वचन सुनती रही। 40 मगर मारथा का ध्यान बहुत-सी तैयारियाँ करने में बँटा हुआ था। इसलिए वह यीशु के पास आयी और बोली: “प्रभु, क्या तुझे खयाल नहीं कि मेरी बहन ने सारा काम मुझ अकेली पर छोड़ दिया है? इसलिए उससे कह कि वह काम में मेरा हाथ बँटाए।” 41 जवाब में प्रभु ने उससे कहा: “मारथा, मारथा, तू बहुत बातों को लेकर चिंता कर रही है और परेशान हो रही है। 42 असल में थोड़ी ही चीज़ों की ज़रूरत है या बस एक ही काफी है। लेकिन मरियम ने अच्छा भाग चुना है और वह उससे छीना नहीं जाएगा।”
11 एक बार यीशु किसी जगह प्रार्थना कर रहा था। जब वह प्रार्थना कर चुका, तो उसके चेलों में से एक ने उससे कहा: “प्रभु, जैसे यूहन्ना ने अपने चेलों को प्रार्थना करना सिखाया था, तू भी हमें सिखा कि प्रार्थना कैसे करें।”
2 तब उसने उनसे कहा: “जब कभी तुम प्रार्थना करते हो तो कहो, ‘हे पिता, तेरा नाम पवित्र किया जाए। तेरा राज आए। 3 आज के दिन की ज़रूरत के मुताबिक हमें आज की रोटी दे। 4 हमारे पापों की हमें माफी दे, इसलिए कि जो भी हमारे खिलाफ पाप कर हमारा कर्ज़दार बन गया है, हम भी उसे माफ करते हैं। और जब हम पर परीक्षा आए तो हमें गिरने न दे।’ ”
5 यीशु ने आगे उनसे कहा: “तुममें ऐसा कौन है जिसका एक दोस्त हो और जिसके पास वह आधी रात को जाकर कहे, ‘दोस्त, मुझे तीन रोटियाँ उधार दे दे, 6 क्योंकि मेरा एक दोस्त सफर से अभी-अभी मेरे पास आया है और मेरे पास उसके आगे परोसने के लिए कुछ भी नहीं है’? 7 तब वह अंदर से जवाब दे, ‘मुझे तंग मत कर। दरवाज़ा बंद हो चुका है और मेरे छोटे बच्चे मेरे साथ बिस्तर में लेटे हुए हैं। मैं उठकर तुझे कुछ नहीं दे सकता।’ 8 मैं तुमसे कहता हूँ, भले ही वह उसका दोस्त होने के नाते उसे उठकर कुछ न दे, फिर भी उसके शर्म-हया छोड़कर माँगते रहने की वजह से वह ज़रूर उठेगा और उसे जो कुछ चाहिए वह देगा। 9 इसी तरह मैं तुमसे कहता हूँ, माँगते रहो और तुम्हें दे दिया जाएगा। ढूँढ़ते रहो और तुम पाओगे। खटखटाते रहो, और तुम्हारे लिए खोला जाएगा। 10 क्योंकि हर कोई जो माँगता है, उसे मिलता है और हर कोई जो ढूँढ़ता है, वह पाता है और हर कोई जो खटखटाता है, उसके लिए खोला जाएगा। 11 आखिर तुममें ऐसा कौन-सा पिता है जिसका बेटा अगर उससे मछली माँगे, तो वह उसे मछली के बजाय साँप थमा दे? 12 या अगर वह अंडा माँगे, तो उसे एक बिच्छू थमा दे? 13 इसलिए, जब तुम दुष्ट होते हुए भी यह जानते हो कि अपने बच्चों को अच्छी चीज़ें कैसे देनी हैं, तो स्वर्ग में रहनेवाला पिता और भी बढ़कर, अपने माँगनेवालों को पवित्र शक्ति क्यों न देगा!”
14 बाद में, यीशु एक आदमी में से दुष्ट स्वर्गदूत निकाल रहा था, जिसने उस आदमी को गूँगा कर दिया था। जब दुष्ट स्वर्गदूत निकल गया तो वह आदमी बोलने लगा। यह देखकर भीड़ हैरान रह गयी। 15 मगर उनमें से कुछ ने कहा: “वह दुष्ट दूतों के राजा शैतान* की मदद से दुष्ट स्वर्गदूतों को निकालता है।” 16 जबकि दूसरे लोग यीशु की परीक्षा करने के लिए उससे स्वर्ग से एक निशानी माँगने लगे। 17 यह जानते हुए कि वे मन में क्या सोच रहे हैं, यीशु ने उनसे कहा: “ऐसा हर राज जिसमें फूट पड़ जाए, उजड़ जाता है और जिस घर में फूट पड़ जाए वह ढह जाता है। 18 उसी तरह, अगर शैतान ही खुद अपने खिलाफ हो गया है, तो उसका राज कैसे टिकेगा? क्योंकि तुम कहते हो कि मैं बालज़बूल की मदद से दुष्ट स्वर्गदूतों को निकालता हूँ। 19 अगर मैं बालज़बूल की मदद से दुष्ट स्वर्गदूतों को निकालता हूँ, तो तुम्हारे बेटे किसकी मदद से इन्हें निकालते हैं? इसलिए वे ही तुम्हारे न्यायी ठहरें। 20 लेकिन अगर मैं परमेश्वर की पवित्र शक्ति* से दुष्ट स्वर्गदूतों को निकालता हूँ, तो परमेश्वर के राज ने वाकई तुम्हें आ घेरा है। 21 जब कोई बलवान, हथियारों से लैस होकर अपने घर की रखवाली करता है, तो उसके घर का सामान बचा रहता है। 22 मगर जब कोई उससे भी बलवान उस पर चढ़ाई कर उसे हरा देता है, तो उसे जिन हथियारों पर भरोसा था, वे सब उससे छीन लेता है और उसका सामान लूटकर बाँट देता है। 23 जो मेरी तरफ नहीं है, वह मेरे खिलाफ है और जो मेरे साथ नहीं बटोरता वह तित्तर-बित्तर कर देता है।
24 जब एक दुष्ट स्वर्गदूत किसी आदमी से बाहर निकल आता है, तो वह आराम की कोई जगह तलाशता हुआ वीरान जगहों में फिरता है। मगर जब कोई जगह नहीं पाता, तो कहता है, ‘मैं अपने जिस घर से निकला था उसमें फिर लौट जाऊँगा,’ 25 और आकर पाता है कि वह झाड़ा-बुहारा और सजा-सजाया पड़ा है। 26 तब वह जाकर अपने से भी बुरे सात दुष्ट स्वर्गदूतों को ले आता है और वे उसमें समाकर वहीं बस जाते हैं। तब उस आदमी की हालत, पहले से भी बदतर हो जाती है।”
27 जब वह ये बातें कह रहा था, तो भीड़ में से किसी स्त्री ने ऊँची आवाज़ में उससे कहा: “सुखी है वह स्त्री जिसके गर्भ में तू रहा और जिसका तू ने दूध पीया!” 28 मगर यीशु ने कहा: “नहीं, इसके बजाय सुखी हैं वे जो परमेश्वर का वचन सुनते हैं और उस पर चलते हैं!”
29 जब भीड़ बढ़ने लगी, तो वह यह कहने लगा: “यह पीढ़ी एक दुष्ट पीढ़ी है, यह एक निशानी ढूँढ़ती है। मगर इसे योना की निशानी को छोड़ और कोई निशानी नहीं दी जाएगी। 30 इसलिए कि ठीक जैसे योना नीनवे के लोगों के लिए एक निशानी ठहरा था, उसी तरह इंसान का बेटा भी इस पीढ़ी के लिए निशानी ठहरेगा। 31 दक्षिण की रानी को न्याय के वक्त में इस पीढ़ी के लोगों के साथ उठाया जाएगा और वह इन्हें दोषी ठहराएगी। क्योंकि वह सुलैमान की बुद्धि की बातें सुनने के लिए पृथ्वी की छोर से आयी थी, मगर देखो! यहाँ वह मौजूद है जो सुलैमान से भी बड़ा है। 32 नीनवे के लोग न्याय के वक्त में इस पीढ़ी के साथ उठेंगे और इसे दोषी ठहराएँगे। क्योंकि उन्होंने योना का प्रचार सुनकर पश्चाताप किया था। मगर देखो! यहाँ वह मौजूद है जो योना से भी बड़ा है। 33 एक इंसान दीपक जलाकर उसे न तो तहखाने में रखता है, न ही टोकरी* से ढककर रखता है, मगर दीपदान पर रखता है ताकि अंदर आनेवाले रौशनी देख सकें। 34 तेरी आँख तेरे शरीर का दीपक है। अगर तेरी आँख एक ही चीज़ पर टिकी है, तो तेरा सारा शरीर भी रौशन होगा। लेकिन अगर तेरी आँख बुरी बातों पर लगी है, तो तेरा शरीर भी अंधकार से भरा है। 35 इसलिए सतर्क रहो कि जो रौशनी तुम्हारे अंदर है वह कहीं अंधकार न हो। 36 इसलिए अगर तेरा सारा शरीर रौशन है और उसका कोई भी हिस्सा अंधकार में नहीं, तो यह इस कदर रौशन होगा जैसे एक दीपक अपनी किरणों से तुझे रौशनी देता है।”
37 जब वह यह कह चुका, तो एक फरीसी ने उससे गुज़ारिश की कि वह उसके यहाँ दोपहर के खाने पर आए। इसलिए वह उसके यहाँ आया और मेज़ से टेक लगाकर बैठा। 38 लेकिन, उस फरीसी को यह देखकर हैरानी हुई कि उसने खाने से पहले हाथ नहीं धोए।* 39 मगर प्रभु ने उससे कहा: “हे फरीसियो, तुम प्याले और थाली को बाहर से तो साफ करते हो, मगर अंदर से तुम लूट-खसोट और दुष्टता से भरे हुए हो। 40 अरे अक्ल के दुश्मनो! जिसने बाहर से बनाया है, क्या उसी ने अंदर से नहीं बनाया? 41 इसलिए अपने दिल से दया का दान दो, फिर देखो! तुम बाकी सब मामलों में शुद्ध हो जाओगे। 42 मगर धिक्कार है तुम फरीसियों पर, क्योंकि तुम पुदीने और सुदाब और दूसरी सभी साग-सब्ज़ियों का दसवाँ अंश देते हो, मगर तुम न्याय और परमेश्वर के लिए प्यार से किनारा कर लेते हो! तुम्हारा फर्ज़ था कि तुम ये सब करते, मगर साथ-साथ इन दूसरी बातों को भी न छोड़ते। 43 धिक्कार है तुम फरीसियों पर, क्योंकि तुम्हें सभा-घरों में सबसे आगे की जगहों पर बैठना और बाज़ारों के चौक में लोगों का तुम्हें नमस्कार करना पसंद है! 44 धिक्कार है तुम पर, क्योंकि तुम उन कब्रों जैसे हो जो ऊपर से दिखायी नहीं देतीं, इसलिए लोग उन पर चलते-फिरते हैं और उन्हें मालूम ही नहीं पड़ता कि वे दूषित हो गए हैं!”
45 जवाब में मूसा के कानून के एक जानकार ने उससे कहा: “गुरु, यह सब कहकर तू हमारी बेइज़्ज़ती कर रहा है।” 46 तब यीशु ने कहा: “अरे कानून के जानकारो, तुम पर भी धिक्कार है, क्योंकि तुम ऐसे नियम बनाते हो जो लोगों पर भारी बोझ की तरह हैं, मगर तुम खुद इस बोझ को उठाने के लिए अपनी एक उंगली तक नहीं लगाते!
47 धिक्कार है तुम पर, क्योंकि तुम भविष्यवक्ताओं की कब्रें बनवाते हो, जबकि तुम्हारे बापदादों ने उन्हें मार डाला था! 48 बेशक, तुम अपने बापदादों की करतूतों के गवाह हो और फिर भी तुम उनके कामों को मंज़ूरी देते हो। उन्होंने भविष्यवक्ताओं को मार डाला था और तुम उन भविष्यवक्ताओं की कब्रें बनाते हो। 49 इसलिए परमेश्वर ने अपनी बुद्धि से यह भी कहा, ‘मैं उनके पास भविष्यवक्ताओं और प्रेषितों को भेजूँगा और वे उनमें से कुछ को मार डालेंगे और कुछ पर ज़ुल्म करेंगे, 50 ताकि दुनिया की शुरूआत से जितने भविष्यवक्ताओं का खून बहाया गया है, उन सबका हिसाब इस पीढ़ी से लिया जाए, 51 यानी हाबिल के खून से लेकर जकर्याह के खून तक, जिसका वेदी और मंदिर के बीच कत्ल कर दिया गया था।’ हाँ, मैं तुमसे कहता हूँ कि उन सबके खून का हिसाब इस पीढ़ी से लिया जाएगा।
52 धिक्कार है तुम पर जो कानून के जानकार हो, क्योंकि तुमने वह चाबी चुरा ली है, जो परमेश्वर के बारे में ज्ञान का दरवाज़ा खोलती है। तुम खुद उस दरवाज़े के अंदर नहीं गए और जो जा रहे थे उन्हें भी तुमने रोकने की कोशिश की!”
53 जब यीशु वहाँ से बाहर निकला, तो शास्त्री और फरीसी बुरी तरह उस पर चढ़ आए और दूसरी बहुत-सी बातों के बारे में उसके सामने सवालों की झड़ी लगा दी। 54 वे इस ताक में थे कि उसके मुँह से कोई ऐसी बात निकले जिससे वे उसे पकड़ सकें।
12 इस बीच, लोग हज़ारों की तादाद में वहाँ इकट्ठा हो चुके थे, यहाँ तक कि वे एक-दूसरे पर चढ़े जा रहे थे। तब वह पहले अपने चेलों से कहने लगा: “फरीसियों के खमीर यानी कपट से चौकन्ने रहो। 2 लेकिन ऐसा कुछ नहीं जो बड़े जतन से छिपाया गया हो और ज़ाहिर न किया जाएगा और कुछ राज़ हो जो जाना न जाएगा। 3 इस वजह से जो बातें तुम अंधेरे में कहते हो वे उजाले में सुनी जाएँगी, और जो तुम अंदर के कमरों में फुसफुसाकर कहते हो उसे घरों की छतों से प्रचार किया जाएगा। 4 मेरे दोस्तो, मैं तुमसे कहता हूँ, उनसे मत डरो जो तुम्हारी जान ले सकते हैं और इससे ज़्यादा कुछ नहीं कर सकते। 5 मगर मैं तुम्हें बताता हूँ कि तुम्हें किससे डरना चाहिए: उससे डरो जिसके पास न सिर्फ तुम्हें मार डालने का, बल्कि इसके बाद तुम्हें गेहन्ना* में फेंकने का भी अधिकार है। 6 क्या दो पैसे* में पाँच चिड़ियाँ नहीं बिकतीं? फिर भी, उनमें से एक भी ऐसी नहीं जिसे परमेश्वर भुला दे। 7 मगर तुम्हारे सिर के सारे बाल तक गिने हुए हैं। इसलिए मत डरो, तुम बहुत-सी चिड़ियों से कहीं अनमोल हो।
8 इसलिए, मैं तुमसे कहता हूँ, जो कोई लोगों के सामने यह स्वीकार करता है कि वह मेरी तरफ है, इंसान का बेटा भी परमेश्वर के स्वर्गदूतों के सामने उसे स्वीकार कर लेगा। 9 मगर जो लोगों के सामने मुझसे इनकार करता है, परमेश्वर के स्वर्गदूतों के सामने मैं भी उसे जानने से इनकार कर दूँगा। 10 जो कोई इंसान के बेटे के खिलाफ कुछ कहता है, उसे तो इसकी माफी दी जाएगी, मगर जो पवित्र शक्ति के खिलाफ निंदा की बातें बोलता है उसे इसकी माफी नहीं मिलेगी। 11 मगर जब वे तुम्हें जनता की सभाओं और सरकारी अफसरों और अधिकारियों के सामने ले जाएँ, तो यह चिंता न करना कि अपनी सफाई पेश करने के लिए तुम क्या कहोगे और कैसे कहोगे। 12 इसलिए कि परमेश्वर की पवित्र शक्ति उसी घड़ी तुम्हें वे सारी बातें सिखा देगी जो तुम्हें बोलनी चाहिए।”
13 तब भीड़ में से किसी ने उससे कहा: “गुरु, मेरे भाई से कह कि वह हमारी विरासत का बँटवारा कर दे।” 14 यीशु ने उस आदमी से कहा: “किसने मुझे तुम लोगों का न्यायी या हिस्सा-बाँट करनेवाला ठहराया है?” 15 फिर उसने उनसे कहा: “तुम अपनी आँखें खुली रखो और हर तरह के लालच से खुद को बचाए रखो, क्योंकि चाहे इंसान के पास बहुत कुछ हो, तो भी उसकी ज़िंदगी उसकी संपत्ति की बदौलत नहीं होती।” 16 इस पर उसने यह कहते हुए उन्हें एक मिसाल दी: “किसी दौलतमंद आदमी की ज़मीन से बहुत उपज हुई। 17 तब वह अपने दिल में यह कहने लगा: ‘मैं क्या करूँ, क्योंकि मेरे पास अपनी फसल रखने के लिए और जगह नहीं है?’ 18 इसलिए उसने कहा, ‘मैं ऐसा करता हूँ: मैं अपने गोदाम तुड़वाकर और भी बड़े गोदाम बनवाऊँगा और वहीं अपना सारा अनाज और सारी अच्छी चीज़ें जमा करूँगा; 19 और मैं खुद से कहूँगा: “तेरे पास बरसों के लिए बहुत सारी अच्छी चीज़ें जमा हैं; इसलिए चैन से रह, खा-पी और मौज कर।” ’ 20 मगर परमेश्वर ने उससे कहा, ‘अरे मूर्ख, आज ही रात वे तुझसे तेरी ज़िंदगी माँग रहे हैं। फिर, जो कुछ तू ने जमा किया है वह किसका होगा?’ 21 ऐसा ही वह इंसान है जो धन-दौलत बटोरने में लगा रहता है, मगर परमेश्वर की नज़र में असल में कंगाल है।”
22 फिर उसने अपने चेलों से कहा: “इस वजह से मैं तुमसे कहता हूँ, यह चिंता करना छोड़ो कि तुम क्या खाओगे या क्या पहनोगे। 23 क्योंकि जीवन का मोल भोजन से और शरीर का मोल कपड़ों से बढ़कर है। 24 ध्यान दो कि कौवे न तो बीज बोते हैं, न कटाई करते हैं, न उनके अनाज के भंडार होते हैं, न ही गोदाम, फिर भी परमेश्वर उन्हें खिलाता है। तो फिर, तुम्हारा मोल पक्षियों से कितना बढ़कर होगा? 25 तुममें ऐसा कौन है जो चिंता कर पल-भर के लिए भी अपनी ज़िंदगी बढ़ा सके?* 26 इसलिए, अगर तुम इतना तक नहीं कर सकते, तो बाकी चीज़ों की चिंता क्यों करते हो? 27 ध्यान दो कि सोसन के फूल कैसे उगते हैं। वे न तो कड़ी मज़दूरी करते हैं न ही सूत कातते हैं। मगर मैं तुमसे कहता हूँ, सुलैमान भी अपने पूरे वैभव में इनमें से किसी एक की तरह सज-धज न सका। 28 इसलिए, अगर परमेश्वर मैदान में उगनेवाले घास-फूस को, जो आज मौजूद है और कल तंदूर की आग में झोंक दिया जाएगा, ऐसे कपड़े पहनाता है, तो अरे कम विश्वास रखनेवालो, वह तुम्हें इससे भी बढ़कर क्यों न पहनाएगा! 29 इसलिए इस बात की खोज करना बंद करो कि तुम क्या खाओगे और क्या पीओगे, और कशमकश में रहकर चिंता करना बंद करो। 30 क्योंकि इन्हीं सब चीज़ों के पीछे इस दुनिया के लोग दिन-रात भाग रहे हैं, मगर तुम्हारा पिता जानता है कि तुम्हें इन चीज़ों की ज़रूरत है। 31 इसके बजाय, उसके राज की खोज में लगे रहो और ये चीज़ें तुम्हें दे दी जाएँगी।
32 हे छोटे झुंड, मत डर, क्योंकि तुम्हारे पिता ने तुम्हें राज देना मंज़ूर किया है। 33 जो चीज़ें तुम्हारी हैं उन्हें बेचकर दान* कर दो। अपने लिए ऐसे बटुए बनाओ जो कभी पुराने नहीं पड़ते, यानी स्वर्ग में ऐसा खज़ाना जमा करो जो कभी खत्म नहीं होता, जहाँ चोर पास नहीं फटकता, न ही कीड़ा उसे खाता है। 34 क्योंकि जहाँ तुम्हारा खज़ाना होगा, वहीं तुम्हारा दिल भी होगा।
35 तुम्हारी कमर कसी रहे और तुम्हारे दीपक जलते रहें। 36 तुम खुद उन आदमियों की तरह बनो जो अपने मालिक का इंतज़ार करते हैं कि वह शादी से कब लौटेगा, ताकि जब वह आकर दरवाज़ा खटखटाए, तो फौरन उसके लिए खोल सकें। 37 सुखी होंगे वे दास जिनका मालिक आने पर उन्हें जागता हुआ पाए! मैं तुमसे सच कहता हूँ, वह अपनी कमर कसेगा और उन्हें खाने की मेज़ से टेक लेने के लिए कहेगा और पास आकर उनकी सेवा करेगा। 38 अगर वह दूसरे पहर* में, यहाँ तक कि तीसरे पहर* में आकर उन्हें जागता हुआ पाए, तो उनके लिए खुशी की बात है! 39 लेकिन यह जान लो कि अगर घर के मालिक को पता होता कि चोर किस वक्त आनेवाला है, तो वह जागता रहता और अपने घर में सेंध न लगने देता। 40 तुम भी तैयार रहो, क्योंकि जिस घड़ी तुम्हें लगता भी न होगा, उसी घड़ी इंसान का बेटा आ रहा है।”
41 तब पतरस ने कहा: “प्रभु, क्या तू यह मिसाल हम ही से कह रहा है या सभी से?” 42 प्रभु ने कहा: “असल में वह विश्वासयोग्य और सूझ-बूझ से काम लेनेवाला प्रबंधक कौन है, जिसे उसका मालिक अपने घर के सेवकों के दल पर ठहराएगा कि उन्हें सही वक्त पर सही मात्रा में खाना देता रहे? 43 सुखी होगा वह दास, अगर उसका मालिक आने पर उसे ऐसा ही करता पाए! 44 मैं तुमसे सच कहता हूँ, वह उसे अपनी सारी संपत्ति पर अधिकारी ठहराएगा। 45 लेकिन अगर कभी वह दास अपने दिल में कहने लगे, ‘मेरा मालिक आने में देर कर रहा है,’ और नौकर-नौकरानियों को पीटने लगे और खाने-पीने और पीकर धुत्त होने लगे, 46 तो उस दास का मालिक ऐसे दिन आएगा जिस दिन वह उम्मीद न कर रहा होगा और उस घड़ी आएगा जिसकी उसे खबर तक न होगी और वह उसे सख्त-से-सख्त सज़ा देगा और उसका हिस्सा विश्वासघातियों के साथ ठहराएगा। 47 तब वह दास जिसने समझ तो लिया था कि उसके मालिक की मरज़ी क्या है, मगर तैयार न हुआ या उसकी मरज़ी के मुताबिक काम न किया, वह बहुत मार खाएगा। 48 मगर वह दास जिसने अपने मालिक की मरज़ी न समझी थी और इसलिए मार खाने लायक काम किए थे वह कम मार खाएगा। हाँ, जिस किसी को बहुत दिया गया है, उससे बहुत का हिसाब लिया जाएगा। और जिसे लोग निगरानी करने के लिए बहुत कुछ सौंपते हैं, उससे वे और भी ज़्यादा हिसाब माँगेंगे।
49 मैं पृथ्वी पर आग लगाने आया हूँ। यह आग सुलग चुकी है, इसलिए मैं इससे बढ़कर और क्या चाह सकता हूँ? 50 हाँ, एक बपतिस्मा है जो मुझे लेना है और जब तक यह बपतिस्मा लेना पूरा नहीं हो जाता, मैं कैसी तकलीफ में रहूँगा! 51 क्या तुम्हें लगता है कि मैं धरती पर शांति देने आया हूँ? नहीं, शांति नहीं, बल्कि मैं तुमसे कहता हूँ, मैं फूट डालने आया हूँ। 52 इसलिए कि अब से एक घर में पाँच लोग एक-दूसरे के खिलाफ होंगे, तीन दो के और दो तीन के खिलाफ होंगे। 53 वे एक-दूसरे के खिलाफ होंगे, पिता बेटे के खिलाफ और बेटा पिता के, माँ बेटी के खिलाफ और बेटी अपनी माँ के, सास अपनी बहू के खिलाफ होगी और बहू अपनी सास के।”
54 इसके बाद उसने भीड़ से भी कहा: “जब तुम पश्चिम से एक बादल उठता देखते हो, तो फौरन कहते हो, ‘बरसाती तूफान आनेवाला है’ और ऐसा ही होता है। 55 और जब तुम दक्षिणी हवा चलती देखते हो, तो कहते हो ‘लू चलेगी,’ और ऐसा ही होता है। 56 अरे कपटियो, तुम धरती और आसमान की सूरत देखकर मौसम को समझना तो जानते हो, मगर इस खास वक्त का क्या मतलब है यह समझना भला तुम्हें क्यों नहीं आता? 57 तुम खुद यह फैसला क्यों नहीं करते कि सही क्या है? 58 मिसाल के लिए, जब तुम अपने मुद्दई के साथ फैसले के लिए किसी अधिकारी के पास जा रहे हो, तो रास्ते में ही झगड़ा निपटाकर खुद को छुड़ाने की पूरी कोशिश शुरू कर दो। कहीं ऐसा न हो कि वह तुम्हें न्यायाधीश के सामने हाज़िर करे और न्यायाधीश तुम्हें कोतवाल के हवाले करे और कोतवाल तुम्हें जेल में डलवा दे। 59 मैं तुमसे कहता हूँ, जब तक तुम एक-एक पाई* न चुका दो, तब तक तुम वहाँ से किसी भी हाल में छूट न सकोगे।”
13 उसी दौरान, वहाँ कुछ लोग मौजूद थे जिन्होंने यीशु को बताया कि कैसे पीलातुस ने कुछ गलीलियों को उस वक्त मरवा डाला, जब वे मंदिर में बलिदान चढ़ा रहे थे। 2 इसलिए जवाब में उसने उनसे कहा: “क्या तुम्हें लगता है कि ये गलीली दूसरे सभी गलीलियों से बढ़कर पापी साबित हुए, क्योंकि उन्हें यह भुगतना पड़ा था? 3 नहीं, हरगिज़ नहीं, लेकिन मैं तुमसे कहता हूँ कि अगर तुम पश्चाताप न करोगे, तो तुम सब इसी तरह नाश हो जाओगे। 4 या क्या तुम्हें लगता है कि वे अठारह लोग, जिन पर सिलोम का बुर्ज गिरा था और जो दबकर मर गए थे, यरूशलेम में रहनेवाले दूसरे सभी लोगों से बढ़कर पापी* साबित हुए थे? 5 मैं तुमसे कहता हूँ कि नहीं। लेकिन अगर तुम पश्चाताप न करोगे, तो तुम सब इसी तरह नाश हो जाओगे।”
6 इसके बाद उसने यह मिसाल दी: “एक आदमी था जिसके अंगूर के बाग में एक अंजीर का पेड़ लगा था। वह उस पेड़ में फल ढूँढ़ने आया, मगर उसे एक भी फल नहीं मिला। 7 तब उसने बाग के माली से कहा, ‘मैं पिछले तीन साल से इस अंजीर के पेड़ से फल पाने की उम्मीद से आता रहा हूँ, लेकिन आज तक एक भी फल नहीं पाया। इस पेड़ को काट डाल! यह बेकार में ज़मीन को क्यों घेरे खड़ा है?’ 8 जवाब में माली ने उससे कहा, ‘मालिक, इस साल भी इसे रहने दे ताकि मैं इसके चारों तरफ खुदाई करूँ और खाद डालूँ। 9 और इसके बाद अगर यह भविष्य में फल पैदा करे, तो अच्छी बात है। लेकिन अगर नहीं, तो तू इसे कटवा देना।’ ”
10 यीशु एक सब्त के दिन किसी सभा-घर में सिखा रहा था। 11 वहाँ एक स्त्री थी जिसमें अठारह साल से एक दुष्ट स्वर्गदूत समाया था, जिसने उसे बेहद कमज़ोर कर दिया था। उसकी कमर झुककर दोहरी हो गयी थी और वह ज़रा भी सीधी नहीं हो पाती थी। 12 जब यीशु ने उस स्त्री को देखा, तो उसे पुकारते हुए कहा: “हे स्त्री, तुझे तेरी कमज़ोरी से छुटकारा दिया जा रहा है।” 13 यीशु ने अपने हाथ उस स्त्री पर रखे और वह फौरन सीधी हो गयी और परमेश्वर की बड़ाई करने लगी। 14 मगर जब सभा-घर के अधिकारी ने देखा कि यीशु ने सब्त के दिन चंगा करने का काम किया है, तो वह नाराज़ होकर लोगों से कहने लगा: “छः दिन होते हैं जिनमें काम किया जाना चाहिए। इसलिए उन्हीं दिनों में आकर चंगे हो, मगर सब्त के दिन नहीं।” 15 लेकिन प्रभु ने उसे जवाब दिया और कहा: “अरे कपटियो, क्या तुममें से हरेक सब्त के दिन अपने बैल या गधे को थान से खोलकर पानी पिलाने नहीं ले जाता? 16 तो क्या यह सही नहीं था कि यह स्त्री, जो अब्राहम की बेटी है और जिसे शैतान ने अठारह साल तक अपने कब्ज़े में कर रखा था, उसे सब्त के दिन उसकी कैद से आज़ाद किया जाए?” 17 जब यीशु ने ये बातें कहीं, तो उसके सभी विरोधी शर्मिंदा महसूस करने लगे। मगर सारी भीड़ उन सभी शानदार कामों को देखकर जो उसने किए थे, खुशियाँ मनाने लगी।
18 इसलिए उसने आगे यह कहा: “परमेश्वर का राज किसके जैसा है और मैं किसके साथ उसकी तुलना करूँ? 19 यह एक राई के दाने जैसा है, जिसे एक आदमी ने लेकर अपने बाग में बो दिया और वह उगकर बड़ा पेड़ हो गया और आकाश के पंछियों ने उसकी डालियों पर आकर बसेरा किया।”
20 एक बार फिर उसने कहा: “मैं परमेश्वर के राज की तुलना किससे करूँ? 21 यह खमीर की तरह है, जिसे लेकर एक स्त्री ने करीब दस किलो* आटे में गूंध दिया और सारा आटा खमीरा हो गया।”
22 फिर यीशु शहर-शहर और गाँव-गाँव फिरता हुआ सिखाता रहा और उसने यरूशलेम की तरफ अपना सफर जारी रखा। 23 तब एक आदमी ने उससे कहा: “प्रभु, जो उद्धार पाएँगे क्या वे थोड़े हैं?” यीशु ने उनसे कहा: 24 “संकरे दरवाज़े से अंदर दाखिल होने के लिए जी-तोड़ संघर्ष करो, क्योंकि मैं तुमसे कहता हूँ कि बहुत-से अंदर दाखिल होना चाहेंगे, मगर न हो पाएँगे 25 क्योंकि जब एक बार घर का मालिक उठकर दरवाज़े को अंदर से बंद कर चुका हो, और तुम दरवाज़े के बाहर खड़े होकर खटखटाने लगो और यह कहने लगो, ‘प्रभु, हमारे लिए दरवाज़ा खोल दे,’ तब वह जवाब में तुमसे कहेगा, ‘मैं नहीं जानता कि तुम कहाँ से आए हो।’ 26 और तुम यह कहने लगोगे, ‘हमने तेरे साथ बैठकर खाया-पीया और तू ने हमारे शहर के चौराहों में सिखाया था।’ 27 मगर वह तुमसे कहेगा, ‘मैं नहीं जानता कि तुम कहाँ से आए हो। अरे दुष्टता के काम करनेवालो, मेरे सामने से दूर हो जाओ!’ 28 जब तुम अब्राहम, इसहाक और याकूब और सभी भविष्यवक्ताओं को परमेश्वर के राज में देखोगे, मगर खुद को बाहर फेंका हुआ पाओगे, तब वहीं तुम्हारा रोना और दाँत पीसना होगा। 29 इतना ही नहीं, लोग पूरब और पश्चिम और उत्तर और दक्षिण से आएँगे और परमेश्वर के राज में खाने की मेज़ से टेक लगाएँगे। 30 और देखो! कुछ जो आखिरी थे वे पहले होंगे और जो पहलों में थे वे आखिरी होंगे।”
31 उसी घड़ी कुछ फरीसी आए और यीशु से कहने लगे: “यहाँ से निकल जा और चला जा, क्योंकि हेरोदेस* तुझे मार डालना चाहता है।” 32 लेकिन उसने उनसे कहा: “जाओ और जाकर उस लोमड़ी से कहो, ‘देख! मैं आज और कल भी दुष्ट स्वर्गदूतों को निकालता और चंगाई का काम करता हूँ और तीसरे दिन तक अपना काम पूरा करूँगा।’ 33 फिर भी, मुझे आज, कल और परसों तक अपना सफर जारी रखना है, क्योंकि यह हो नहीं सकता कि एक भविष्यवक्ता यरूशलेम के बाहर मारा जाए। 34 यरूशलेम, यरूशलेम, तू जो भविष्यवक्ताओं की हत्यारी नगरी है और जो तेरे पास भेजे जाते हैं उन पर पत्थरवाह करती है,—मैंने कितनी बार चाहा कि जिस तरीके से मुर्गी अपने चूज़ों को अपने पंखों के नीचे समेट लेती है, मैं भी उसी तरह तेरे बच्चों को इकट्ठा करूँ! मगर तुम लोगों ने यह नहीं चाहा! 35 देखो! तुम्हारा घर छोड़ा और तुम्हारे हवाले किया जाता है। मैं तुमसे कहता हूँ कि तुम मुझे तब तक हरगिज़ न देखोगे जब तक कि यह न कहो, ‘धन्य है वह जो यहोवा के नाम से आता है!’ ”
14 एक मौके पर यीशु सब्त के दिन फरीसियों में से एक धर्म-अधिकारी के घर खाने पर गया और वे उस पर नज़रें जमाए हुए थे। 2 वहाँ उसके सामने एक आदमी था जो जलोदर का रोगी था। 3 तब यीशु ने मूसा के कानून के जानकारों और फरीसियों से यह पूछा: “क्या सब्त के दिन बीमारी से ठीक करना कानून के हिसाब से सही है?” 4 मगर वे खामोश रहे। इस पर यीशु ने उस आदमी को हाथ लगाकर ठीक किया और उसे विदा किया। 5 उसने उनसे कहा: “अगर तुममें से किसी का बेटा या बैल सब्त के दिन कुएँ में गिर जाए, तो कौन है जो उसे फौरन खींचकर बाहर नहीं निकालेगा?” 6 वे इन बातों का जवाब न दे सके।
7 इसके बाद जब उसने देखा कि वहाँ न्यौते में आए लोग बैठने के लिए कैसे खास-खास जगह चुन रहे थे, तो वह उन्हें मिसाल देकर कहने लगा: 8 “जब कोई तुझे शादी की दावत के लिए न्यौता देता है, तो तू जाकर सबसे खास जगह पर न पसर जाना। हो सकता है मेज़बान ने किसी और को न्यौता दिया हो जो तुझसे भी बड़ा है 9 और जिसने तुझे और उसे न्यौता दिया है, वह तुझसे आकर कहे, ‘इस शख्स को यहाँ बैठने दे।’ और तब तुझे शर्मिंदा होकर वहाँ से उठना पड़ेगा और जाकर सबसे नीची जगह बैठना पड़ेगा। 10 इसलिए जब तुझे न्यौता दिया गया हो, तो जा और सबसे नीची जगह पर बैठ जा, ताकि जब मेज़बान आए तो वह तुझसे कहेगा, ‘अरे, मेरे दोस्त, वहाँ ऊपर जाकर बैठ।’ तब सभी मेहमानों के सामने तेरी इज़्ज़त बढ़ेगी। 11 क्योंकि जो कोई खुद को ऊँचा करता है, उसे नीचा किया जाएगा, और जो खुद को नीचे रखता है उसे ऊँचा किया जाएगा।”
12 इसके बाद वह अपने मेज़बान से भी यह कहने लगा: “जब तू दोपहर का या शाम का खाना करे, तो अपने दोस्तों या भाइयों या रिश्तेदारों या अमीर पड़ोसियों को न बुलाना। हो सकता है कि बदले में वे भी तुझे कभी खाने पर बुलाएँ और बात बराबर हो जाए। 13 मगर जब तू दावत दे, तो गरीबों, अपाहिजों, लंगड़ों, अंधों को न्यौता देना। 14 तब तुझे खुशी मिलेगी क्योंकि तेरा बदला चुकाने के लिए उनके पास कुछ नहीं है। लेकिन तुझे नेक जनों के जी उठने के वक्त इसका इनाम मिलेगा।”
15 ये बातें सुनकर वहाँ मौजूद मेहमानों में से एक ने उससे कहा: “सुखी है वह जो परमेश्वर के राज में रोटी खाएगा।”
16 यीशु ने उससे कहा: “किसी आदमी ने शाम के खाने की आलीशान दावत रखी और बहुतों को न्यौता दिया। 17 और उसने दावत शुरू होने के वक्त अपने दास को न्यौते गए लोगों के पास यह कहने भेजा, ‘आ जाओ, क्योंकि सबकुछ तैयार हो चुका है।’ 18 मगर वे सभी बहाने बनाने लगे। पहले ने उससे कहा, ‘मैंने खेत खरीदा है इसलिए उसे देखने के लिए मेरा जाना ज़रूरी है, इसलिए तू मुझे तो माफ कर।’ 19 एक और ने कहा, ‘मैंने पाँच जोड़ी बैल खरीदे हैं और मैं उनकी जाँच-परख करने जा रहा हूँ, इसलिए तू मुझे तो माफ कर।’ 20 एक और ने कहा, ‘मेरी अभी-अभी शादी हुई है, इसलिए मैं नहीं आ सकता।’ 21 तब दास ने लौटकर यह सारी खबर अपने मालिक को दी। तब घर के मालिक का गुस्सा भड़क उठा और उसने अपने दास से कहा, ‘फौरन चौराहों में और शहर की गलियों में जा, और गरीबों, अपाहिजों, अंधों और लंगड़ों को यहाँ ले आ।’ 22 कुछ वक्त के बाद दास ने कहा, ‘मालिक, जैसा तेरा हुक्म था वैसे ही किया गया है, मगर फिर भी जगह खाली है।’ 23 तब उस मालिक ने दास से कहा, ‘सड़कों पर जा और जिन जगहों में बाड़े लगे हैं वहाँ जा और लोगों को आने के लिए मजबूर कर, ताकि मेरा घर भर जाए। 24 क्योंकि मैं तुम लोगों से कहता हूँ, जिन-जिन को न्यौता दिया गया था, उनमें से एक भी मेरी दावत न चख सकेगा।’ ”
25 जब बड़ी तादाद में लोगों की भीड़ यीशु के साथ-साथ चल रही थी, तो उसने मुड़कर उनसे कहा: 26 “अगर कोई मेरे पास आता है और अपने पिता और माँ और पत्नी और बच्चों और भाइयों और बहनों, यहाँ तक कि अपनी जान से नफरत नहीं करता, तो वह मेरा चेला नहीं बन सकता। 27 जो कोई अपनी यातना की सूली* नहीं उठाता और मेरे पीछे नहीं चलता, वह मेरा चेला नहीं बन सकता। 28 मिसाल के लिए, तुममें से ऐसा कौन है जो एक बुर्ज बनाना चाहता हो और पहले बैठकर इसमें लगनेवाले खर्च का हिसाब न लगाए, ताकि देख सके कि उसे पूरा करने के लिए उसके पास काफी पैसा है कि नहीं? 29 नहीं तो ऐसा होगा कि वह उसकी नींव तो डाल सकेगा मगर उसे पूरा न कर पाएगा और सब देखनेवाले उसका मज़ाक उड़ाने लगेंगे और 30 कहेंगे, ‘यह आदमी बनाने तो चला, मगर पूरा न कर सका।’ 31 या कौन-सा राजा ऐसा है जो दूसरे राजा से युद्ध के लिए निकलने से पहले, बैठकर यह सलाह नहीं करता कि वह अपने दस हज़ार की फौज से उस दूसरे राजा का मुकाबला कर पाएगा या नहीं, जो उसके खिलाफ बीस हज़ार की फौज लेकर आ रहा है? 32 अगर असल में वह मुकाबला नहीं कर सकता, तो दूसरे राजा के दूर रहते ही वह अपने राजदूतों का दल भेजकर उसके साथ सुलह करने की कोशिश करेगा। 33 इसी तरह, यकीन मानो कि तुममें से जो कोई अपनी सारी संपत्ति को अलविदा नहीं कहता वह मेरा चेला नहीं बन सकता।
34 बेशक, नमक तो बढ़िया है। लेकिन अगर नमक ही अपना असर खो दे, तो उसे किस चीज़ से ज़ायकेदार बनाया जा सकता है? 35 वह न तो ज़मीन के लिए अच्छा होता है न खाद में मिलाने के लिए, बल्कि लोग उसे बाहर फेंक देते हैं। कान लगाकर सुनो और मैं जो कह रहा हूँ उसे समझने की कोशिश करो।”
15 फिर सभी कर-वसूलनेवाले* और दूसरे ऐसे पापी यीशु की सुनने के लिए उसके पास आते रहे। 2 यह देखकर फरीसी और शास्त्री, दोनों बड़बड़ाते हुए यह कहने लगे: “यह आदमी पापियों को अपने पास आने देता है और उनके साथ खाता है।” 3 तब यीशु ने यह मिसाल उनसे कही: 4 “अगर किसी के पास सौ भेड़ें हों और उनमें से एक खो जाए, तो तुममें से ऐसा कौन होगा जो उस खोई हुई भेड़ को ढूँढ़ने के लिए बाकी निनानवे को वीराने में पीछे छोड़कर न जाए? क्या वह उस खोई हुई भेड़ को तब तक ढूँढ़ता न रहेगा जब तक कि वह मिल न जाए? 5 और जब वह उसे मिल जाती है तब वह उसे अपने कंधों पर उठा लेता है और खुशी से फूला नहीं समाता। 6 वह घर पहुँचकर अपने दोस्तों और पास-पड़ोसियों को बुलाता है और उनसे कहता है, ‘मेरे साथ खुशियाँ मनाओ, क्योंकि मुझे अपनी खोयी हुई भेड़ मिल गयी है।’ 7 मैं तुमसे कहता हूँ कि इसी तरह एक पापी के पश्चाताप करने पर स्वर्ग में इतनी ज़्यादा खुशियाँ मनायी जाएँगी, जितनी कि ऐसे निनानवे नेक लोगों के लिए नहीं मनायी जातीं, जिन्हें पश्चाताप की ज़रूरत नहीं।
8 या ऐसी कौन-सी स्त्री होगी जिसके पास दस चाँदी के सिक्के* हों और अगर उनमें से एक खो जाए, तो वह दीया जलाकर अपने घर को तब तक न बुहारे और वह सिक्का बड़े जतन से न ढूँढ़ती रहे जब तक कि उसे मिल न जाए? 9 और जब वह सिक्का उसे मिल जाता है, तो अपनी सहेलियों और पड़ोसिनों को बुलाती और कहती है, ‘मेरे साथ खुशियाँ मनाओ, क्योंकि मुझे अपना खोया हुआ चाँदी का सिक्का मिल गया है।’ 10 मैं तुमसे कहता हूँ कि इसी तरह, उस एक पापी के लिए जो पश्चाताप करता है, परमेश्वर के स्वर्गदूतों के बीच खुशियाँ मनायी जाती हैं।”
11 फिर उसने कहा: “किसी आदमी के दो बेटे थे। 12 छोटे ने अपने पिता से कहा, ‘पिता, जायदाद में से मेरा हिस्सा मुझे दे दे।’ तब पिता ने अपनी संपत्ति उन दोनों में बाँट दी। 13 बहुत दिन भी न बीते थे कि छोटा बेटा अपना सबकुछ बटोरकर किसी दूर देश चला गया और वहाँ ऐयाशी में अपनी सारी संपत्ति उड़ा दी। 14 जब वह सबकुछ खर्च कर चुका, तो उस पूरे देश में एक भारी अकाल पड़ा और वह कंगाल हो गया। 15 यहाँ तक कि वह उस देश के एक निवासी के यहाँ जा पड़ा जिसने उसे अपनी ज़मीन में सुअर चराने भेजा। 16 जो फलियाँ सुअर खाते थे उनसे वह अपना पेट भरने के लिए तरसता था, और उसे कोई कुछ नहीं देता था।
17 जब उसकी अक्ल ठिकाने आयी, तो उसने कहा, ‘मेरे पिता के यहाँ दिन की मज़दूरी पर काम करनेवाले कितने ही मज़दूर हैं जिनके पास रोटी की कोई कमी नहीं, और एक मैं हूँ जो यहाँ भुखमरी से मर रहा हूँ! 18 अब मैं उठकर अपने पिता के पास जाऊँगा और उससे कहूँगा: “पिता, मैंने स्वर्ग के और तेरे खिलाफ पाप किया है। 19 अब मैं इस लायक नहीं रहा कि तेरा बेटा कहलाऊँ। मुझे अपने यहाँ मज़दूर की तरह रख ले।” ’ 20 इसलिए वह उठा और अपने पिता के पास गया। अभी वह काफी दूरी पर था कि पिता की नज़र उस पर पड़ी और वह तड़प उठा। वह दौड़ा-दौड़ा गया और बेटे को गले लगा लिया और बहुत प्यार से उसे चूमने लगा। 21 तब बेटे ने उससे कहा, ‘पिता, मैंने स्वर्ग के और तेरे खिलाफ पाप किया है। अब मैं इस लायक नहीं रहा कि तेरा बेटा कहलाऊँ। मुझे अपने यहाँ मज़दूर की तरह रख ले।’ 22 मगर पिता ने अपने दासों से कहा, ‘जल्दी करो! और सबसे बढ़िया चोगा लाओ, और इसे पहनाओ, और इसके हाथ में एक अंगूठी और पाँवों में जूतियाँ पहनाओ। 23 एक मोटा-ताज़ा जवान बैल लाकर काटो कि हम खाएँ और खुशियाँ मनाएँ। 24 क्योंकि मेरा यह बेटा जो मर गया था, अब फिर से जीने लगा है। यह खो गया था और अब मिल गया है।’ और वे सब मिलकर खुशियाँ मनाने लगे।
25 उस आदमी का बड़ा बेटा खेत में था। जब वह घर के पास आ रहा था, तो उसे गाने-बजाने और नाचने की आवाज़ सुनायी दी। 26 इसलिए उसने एक नौकर को अपने पास बुलाकर पूछा कि यह सब क्या हो रहा है। 27 नौकर ने कहा, ‘तेरा भाई आया है और तेरे पिता ने एक मोटा-ताज़ा जवान बैल कटवाया है, क्योंकि अपने बेटे को सही-सलामत पाया है।’ 28 मगर बड़ा बेटा क्रोध से भर गया और वह घर के अंदर नहीं जाना चाहता था। तब उसका पिता बाहर आया और उसे मनाने लगा। 29 जवाब में उसने अपने पिता से कहा, ‘मैं इतने बरसों से तेरी गुलामी कर रहा हूँ, और मैंने एक बार भी तेरा हुक्म नहीं टाला, फिर भी तू ने मुझे कभी बकरी का एक बच्चा तक न दिया, ताकि मैं अपने दोस्तों के साथ मिलकर मौज कर सकता। 30 लेकिन जैसे ही तेरा यह बेटा, जिसने तेरी संपत्ति वेश्याओं पर उड़ा दी, वापस आया, तो तू ने इसके लिए मोटा-ताज़ा जवान बैल कटवाया।’ 31 इस पर पिता ने उससे कहा, ‘बच्चे, तू तो हमेशा से मेरे साथ है, और जो कुछ मेरा है वह सब तेरा ही तो है। 32 लेकिन यह सही है कि हम खुशियाँ मनाएँ और आनंद करें, क्योंकि तेरा यह भाई जो मर गया था, ज़िंदा हो गया है। हमने इसे खो दिया था, लेकिन अब पा लिया है।’ ”
16 तब यीशु ने अपने चेलों से यह भी कहा: “एक अमीर आदमी के यहाँ एक प्रबंधक था, जिसके खिलाफ उससे यह शिकायत की गयी कि वह तेरे माल की बरबादी कर रहा है। 2 इसलिए उसने प्रबंधक को बुलाया और उससे कहा: ‘मैं तेरे बारे में यह क्या सुन रहा हूँ? प्रबंधक के अपने काम का हिसाब दे, क्योंकि अब से तू मेरे घर का कारोबार नहीं देखेगा।’ 3 तब उस प्रबंधक ने अपने आपसे कहा, ‘अब मैं क्या करूँ, क्योंकि मेरा मालिक मुझे प्रबंधक के काम से हटा देगा? मुझमें मिट्टी खोदने की ताकत नहीं और भीख माँगने में मुझे शर्म आती है। 4 हाँ! मुझे समझ आ गया कि मुझे क्या करना चाहिए, ताकि जब मुझे प्रबंधक के काम से हटा दिया जाए, तो लोग मुझे अपने घरों में स्वीकार करें।’ 5 उसने अपने मालिक के कर्ज़दारों को एक-एक कर अपने पास बुलाया और पहलेवाले से कहा, ‘तुझे मेरे मालिक को कितना देना है?’ 6 उसने कहा, ‘दो हज़ार दो सौ लीटर* जैतून का तेल।’ प्रबंधक ने कहा, ‘अपना लिखित करारनामा वापस ले और बैठकर फौरन ग्यारह सौ लिख दे।’ 7 इसके बाद, उसने दूसरे से पूछा, ‘हाँ, तुझे कितना देना है?’ उसने कहा, ‘एक सौ सत्तर क्विन्टल* गेहूँ।’ उसने उससे कहा, ‘अपना लिखित करारनामा वापस ले और एक सौ छत्तीस लिख दे।’ 8 उस प्रबंधक के मालिक ने उसके बेईमान होने के बावजूद उसकी सराहना की, क्योंकि उसने होशियारी से काम लिया था। मैं तुमसे यह इसलिए कह रहा हूँ, क्योंकि इस दुनिया के लोग अपनी पीढ़ी के लोगों के साथ व्यवहार करने में, उन लोगों से ज़्यादा होशियार हैं जो रौशनी में हैं।
9 मैं तुमसे यह भी कहता हूँ, बेईमानी की दौलत से अपने लिए दोस्त बना लो, ताकि जब यह दौलत न रहे, तो ये दोस्त तुम्हें हमेशा कायम रहनेवाले निवासों में ले लें। 10 जो इंसान थोड़े में भरोसे के लायक है, वह बहुत में भी भरोसे के लायक होता है और जो थोड़े में बेईमान है, वह बहुत में भी बेईमान होता है। 11 इसलिए, अगर तुमने बेईमानी की दौलत के इस्तेमाल में खुद को भरोसे के लायक साबित नहीं किया है, तो कौन तुम्हें सच्ची दौलत सौंपेगा? 12 और जो किसी दूसरे का है, अगर उसके मामले में तुमने खुद को भरोसे के लायक साबित नहीं किया, तो कौन तुम्हें वह देगा जो तुम्हारे अपने लिए है? 13 कोई भी सेवक दो मालिकों का दास नहीं हो सकता। क्योंकि या तो वह एक से नफरत करेगा और दूसरे से प्यार, या वह एक से जुड़ा रहेगा और दूसरे को तुच्छ समझेगा। तुम परमेश्वर के साथ-साथ धन-दौलत के दास नहीं हो सकते।”
14 तब फरीसी जिन्हें पैसे से प्यार था, वे यीशु की ये सारी बातें सुनकर उसकी खिल्ली उड़ाने लगे। 15 इसलिए उसने उनसे कहा: “तुम वे हो जो इंसानों के सामने खुद को बड़े नेक बताते हो, मगर परमेश्वर तुम्हारे दिलों को जानता है। क्योंकि जो इंसानों के बीच बहुत बड़ी बात समझी जाती है वह परमेश्वर की नज़र में घिनौनी है।
16 दरअसल मूसा का कानून और भविष्यवक्ताओं के लेख यूहन्ना के समय तक के लिए थे। तब से परमेश्वर के राज का एक खुशखबरी के तौर पर ऐलान किया जा रहा है और हर किस्म का इंसान उस तक पहुँचने के लिए ज़ोर लगा रहा है। 17 आकाश और धरती का मिट जाना तो आसान है, लेकिन कानून के एक अक्षर का एक बिंदु भी बिना पूरा हुए मिट जाना नामुमकिन है।
18 जो कोई अपनी पत्नी को तलाक देता है और दूसरी से शादी करता है, वह शादी के बाहर यौन-संबंध रखने का गुनहगार है और जो कोई एक तलाकशुदा स्त्री से शादी करता है, वह शादी के बाहर यौन-संबंध रखने का गुनहगार है।
19 एक अमीर आदमी था जो बैंजनी और रेशमी कपड़े पहना करता था और हर दिन बड़े ठाठ-बाट से रहता और ऐश करता था। 20 मगर लाज़र नाम का एक भिखारी था जिसका शरीर फोड़ों से भरा हुआ था। उसे उस अमीर आदमी के फाटक के पास छोड़ दिया जाता था 21 और वह उसकी मेज़ से गिरनेवाले टुकड़े खाने के लिए तरसता था। हाँ, यहाँ तक कि कुत्ते आकर उसके फोड़े चाटा करते थे। 22 कुछ वक्त गुज़रने पर वह भिखारी मर गया और स्वर्गदूतों ने उसे लेकर अब्राहम के पास* पहुँचाया।
और वह अमीर आदमी भी मर गया और उसे गाड़ा गया। 23 कब्र* में जहाँ वह अमीर आदमी पीड़ा में था, उसने आँखें उठायीं और दूर अब्राहम को देखा और लाज़र को उसके सीने से लगा खड़ा देखा। 24 इसलिए उसने ज़ोर से पुकारकर कहा, ‘पिता अब्राहम, मुझ पर दया कर और लाज़र को मेरे पास भेज दे कि वह अपनी उंगली की छोर पानी में भिगोकर मेरी जीभ को ठंडा करे, क्योंकि मैं यहाँ इस धधकती आग में तड़प रहा हूँ।’ 25 मगर अब्राहम ने कहा, ‘बच्चे, याद कर कि तू ने अपनी सारी ज़िंदगी बढ़िया-बढ़िया चीज़ें बहुतायत में पायीं, मगर दूसरी तरफ लाज़र ने सिर्फ बुरा-ही-बुरा पाया। लेकिन, अब वह यहाँ आराम से है जबकि तू तड़प रहा है। 26 इसके अलावा, हमारे और तुम लोगों के बीच एक बड़ी खाई ठहरायी गयी है, ताकि यहाँ से जो उस पार तुम लोगों के पास जाना चाहे वह न जा सके, न ही वहाँ से लोग इस पार हमारे पास आ सकें।’ 27 तब उसने कहा, ‘अगर ऐसी बात है, तो हे पिता मैं तुझसे बिनती करता हूँ कि तू उसे मेरे पिता के घर भेज दे, 28 क्योंकि मेरे पाँच भाई हैं। वह जाकर उन्हें अच्छी तरह समझाए, कहीं ऐसा न हो कि वे इस जगह पहुँच जाएँ और उन्हें भी यह पीड़ा सहनी पड़े।’ 29 मगर अब्राहम ने कहा, ‘उनके पास मूसा और भविष्यवक्ताओं के वचन हैं, वे उनकी सुनें।’ 30 तब उसने कहा, ‘नहीं पिता अब्राहम, लेकिन अगर मरे हुओं में से कोई उनके पास जाएगा, तो वे पश्चाताप करेंगे।’ 31 लेकिन अब्राहम ने उससे कहा, ‘अगर वे मूसा और भविष्यवक्ताओं की नहीं सुनते, तो चाहे मरे हुओं में से कोई जी उठे, तो भी उन्हें यकीन नहीं दिलाया जा सकता।’ ”
17 फिर यीशु ने अपने चेलों से कहा: “ऐसा हो नहीं सकता कि विश्वास की राह में बाधाएँ* न आएँ। मगर हाय उस इंसान पर जो इनकी वजह बनता है। 2 ऐसे इंसान के लिए ज़्यादा अच्छा होगा कि उसके गले में चक्की का पाट लटकाया जाए और उसे समुद्र में फेंक दिया जाए, बजाय इसके कि वह इन छोटों में से किसी एक के पाप में पड़ने* की वजह बने। 3 खुद पर ध्यान दे। अगर तेरा भाई पाप करता है तो उसे डाँट, और अगर वह पश्चाताप करता है तो उसे माफ कर। 4 यहाँ तक कि अगर वह तेरे खिलाफ दिन में सात बार पाप करे और सात बार तेरे पास वापस आकर कहे, ‘मैं पछता रहा हूँ,’ तो तुझे उसे माफ करना है।”
5 फिर प्रेषितों ने प्रभु से कहा: “हमारा विश्वास बढ़ा।” 6 तब प्रभु ने कहा: “अगर तुम्हारे अंदर राई के दाने के बराबर भी विश्वास है, तो तुम शहतूत के इस पेड़ से कहोगे, ‘यहाँ से उखड़कर समंदर में जा लग!’ तो वह तुम्हारा कहना मानेगा।
7 तुममें ऐसा कौन है जिसका दास हल जोतता या भेड़-बकरियों की देखभाल करता हो और जब वह खेत से वापस आए, तो उससे कहे, ‘फौरन यहाँ आ और खाने के लिए मेज़ से टेक लगा’? 8 इसके बजाय क्या वह उससे यह न कहेगा, ‘मेरे शाम के खाने के लिए कुछ तैयार कर और जब तक मैं खा-पी न लूँ तब तक अंगोछे से कमर बाँधकर मेरी सेवा कर और उसके बाद तू खा-पी सकता है’? 9 क्या वह उस दास का एहसान मानेगा कि उसने वे सारे काम किए जो उसे करने के लिए दिए गए थे? 10 वैसे ही तुम भी, जब वे सब काम कर चुको जो तुम्हें दिए गए हैं, तो कहो, ‘हम निकम्मे दास हैं। हमें जो करना चाहिए था, बस वही हमने किया है।’ ”
11 जब यीशु यरूशलेम जा रहा था, तो वह इस सफर के दौरान सामरिया और गलील के बीच से होता हुआ निकला। 12 जब वह किसी गाँव में दाखिल हो रहा था, तो दस कोढ़ी उसे मिले, जो उसे दूर से देखकर खड़े हो गए। 13 उन्होंने ऊँची आवाज़ में उसे पुकारकर कहा: “हे गुरु यीशु, हम पर दया कर!” 14 जब यीशु की नज़र उन पर पड़ी, तो उसने उनसे कहा: “जाओ और खुद को याजकों को दिखाओ।” जिस वक्त वे जा रहे थे, वे शुद्ध हो गए। 15 उनमें से एक ने जब देखा कि वह ठीक हो गया है, तो ज़ोर-ज़ोर से परमेश्वर का गुणगान करता हुआ वापस आया। 16 वह यीशु के पाँवों पर मुँह के बल गिरा और उसका धन्यवाद करने लगा। और-तो-और, वह एक सामरी था। 17 जवाब में यीशु ने कहा: “क्या दसों के दस शुद्ध नहीं हुए थे? तो फिर, बाकी नौ कहाँ हैं? 18 क्या दूसरी जाति के इस आदमी को छोड़ और कोई भी ऐसा न निकला जो वापस आकर परमेश्वर की बड़ाई करता?” 19 उसने उससे कहा: “उठ और अपने रास्ते चला जा। तेरे विश्वास ने तुझे अच्छा किया है।”
20 मगर जब फरीसियों ने उससे पूछा कि परमेश्वर का राज कब आ रहा है, तो उसने उन्हें जवाब देते हुए कहा: “परमेश्वर का राज ऐसे अनोखे अंदाज़ से नहीं आ रहा कि उसे साफ-साफ देखा जा सके, 21 न ही लोग यह कहेंगे, ‘देखो यहाँ है!’ या ‘वहाँ है!’ इसलिए कि देखो! परमेश्वर का राज तुम्हारे ही बीच है।”
22 फिर उसने चेलों से कहा: “वह वक्त आएगा जब तुम इंसान के बेटे के दिनों में से एक दिन देखना चाहोगे, मगर न देख सकोगे। 23 लोग तुमसे कहेंगे, ‘देखो वहाँ है!’ या ‘देखो यहाँ है!’ तुम बाहर न जाना, न उनके पीछे भागना। 24 इसलिए कि जैसे बिजली कौंधने पर उसकी चमक आकाश के एक छोर से दूसरे छोर तक दिखायी देती है, इंसान के बेटे के प्रकट होने का दिन भी ऐसा ही होगा। 25 मगर, पहले यह ज़रूरी है कि वह बहुत दुःख-तकलीफें सहे और इस पीढ़ी के ज़रिए ठुकराया जाए। 26 और ठीक जैसा नूह के दिनों में हुआ था, वैसा ही इंसान के बेटे के दिनों में भी होगा: 27 जिस दिन तक कि नूह जहाज़* के अंदर न गया और जलप्रलय ने आकर उन सबको नाश न कर दिया, उस दिन तक लोग खा रहे थे, पी रहे थे, पुरुष शादी कर रहे थे और स्त्रियाँ ब्याही जा रही थीं। 28 और ठीक जैसा लूत के दिनों में हुआ था: लोग खा रहे थे, पी रहे थे, खरीदारी कर रहे थे, बिक्री कर रहे थे, बोआई कर रहे थे, घर बना रहे थे। 29 लेकिन जिस दिन लूत सदोम से बाहर आया, उस दिन आकाश से आग और गंधक बरसी और उन सबको नाश कर दिया। 30 जिस दिन इंसान के बेटे को प्रकट होना है, उस दिन भी ऐसा ही होगा।
31 उस दिन जो इंसान घर की छत पर हो मगर जिसका सामान घर के अंदर हो, वह इन्हें उठाने के लिए नीचे न उतरे। उसी तरह जो आदमी बाहर खेत में हो, वह भी पीछे छोड़ी हुई चीज़ों को लेने न लौटे। 32 लूत की पत्नी को याद रखो। 33 जो कोई अपनी जान बचाने की कोशिश करता है वह उसे खोएगा, लेकिन जो कोई इसे खोता है वह इसे बचाएगा। 34 मैं तुमसे कहता हूँ, उस रात दो आदमी एक बिछौने पर होंगे। एक को साथ ले लिया जाएगा, मगर दूसरे को छोड़ दिया जाएगा। 35 दो स्त्रियाँ एक ही चक्की से पीस रही होंगी। एक को साथ ले लिया जाएगा और दूसरी को छोड़ दिया जाएगा।” 36* —— 37 जवाब में उन्होंने उससे पूछा: “कहाँ प्रभु?” उसने कहा: “जहाँ लाश है, वहीं उकाब जमा होंगे।”
18 फिर यीशु ने उन्हें हमेशा प्रार्थना करते रहने और कभी हिम्मत न हारने की ज़रूरत के बारे में समझाने के लिए यह मिसाल दी: 2 “किसी शहर में एक न्यायाधीश था, जो न तो परमेश्वर का डर मानता था और न ही किसी इंसान की इज़्ज़त करता था। 3 उस शहर में एक विधवा थी जो बार-बार उसके पास जाती रही और कहती रही, ‘देख, मेरे मुद्दई से मुझे इंसाफ दिला।’ 4 बहुत समय तक तो वह नहीं माना, मगर बाद में वह अपने दिल में कहने लगा, ‘न तो मैं परमेश्वर का डर मानता हूँ, न ही किसी इंसान की इज़्ज़त करता हूँ, 5 फिर भी इस विधवा के लगातार मुझे परेशान करते रहने की वजह से मैं इसे ज़रूर इंसाफ दिलाऊँगा, ताकि ऐसा न हो कि यह बार-बार आती रहे और मेरा जीना दुश्वार कर दे।’ ” 6 फिर प्रभु ने कहा: “ध्यान दो कि उस न्यायाधीश ने बुरा होने के बावजूद क्या कहा! 7 बेशक, क्या वह अपने चुने हुओं की खातिर इंसाफ न करेगा, जो दिन-रात उससे फरियाद करते रहते हैं? परमेश्वर ज़रूर ऐसा करेगा, इसके बावजूद कि वह उनके मामले में सहनशीलता दिखाता है। 8 मैं तुमसे कहता हूँ, वह बड़ी तेज़ी से उन्हें इंसाफ दिलाएगा। फिर भी, जब इंसान का बेटा आएगा, तब क्या वह धरती पर वाकई यह विश्वास पाएगा?”
9 मगर उसने कुछ ऐसे लोगों से यह मिसाल भी कही जिन्हें खुद के बारे में यह यकीन था कि वे बहुत नेक हैं और बाकी सभी तुच्छ हैं: 10 “दो आदमी मंदिर में प्रार्थना करने गए। एक फरीसी था और दूसरा कर-वसूलनेवाला।* 11 फरीसी खड़ा होकर मन-ही-मन प्रार्थना में ये बातें कहने लगा, ‘हे परमेश्वर, मैं तेरा धन्यवाद करता हूँ कि मैं बाकियों जैसा नहीं हूँ, जो लुटेरे, बेईमान और बदचलन* हैं, और न ही इस कर-वसूलनेवाले जैसा हूँ। 12 मैं हफ्ते में दो बार उपवास रखता हूँ और जो कुछ पाता हूँ, उन सबका दसवाँ अंश देता हूँ।’ 13 मगर कर-वसूलनेवाला दूर खड़ा रहा और आकाश की तरफ आँखें भी न उठानी चाहीं, मगर छाती पीटते हुए कहता रहा: ‘हे परमेश्वर, मुझ पापी पर दया कर।’ 14 मैं तुमसे कहता हूँ, यह आदमी उस फरीसी से ज़्यादा नेक साबित होकर अपने घर गया। क्योंकि हर कोई जो खुद को ऊँचा करता है, उसे नीचा किया जाएगा, मगर जो खुद को नीचे रखता है, उसे ऊँचा किया जाएगा।”
15 फिर लोग अपने नन्हे-मुन्नों को भी उसके पास लाने लगे कि वह उन्हें अपने हाथ से छूए, मगर यह देखकर चेले उन्हें डाँटने लगे। 16 मगर यीशु ने यह कहते हुए नन्हे-मुन्नों को अपने पास बुलाया: “बच्चों को मेरे पास आने दो और उन्हें रोकने की कोशिश मत करो। क्योंकि परमेश्वर का राज ऐसों ही का है। 17 मैं तुमसे सच कहता हूँ, जो कोई परमेश्वर के राज को एक छोटे बच्चे की तरह स्वीकार नहीं करता, वह उसमें किसी भी तरह जा न पाएगा।”
18 किसी अधिकारी ने उससे यह सवाल पूछा: “अच्छे गुरु, मैं कौन-सा काम कर हमेशा की ज़िंदगी का वारिस बन सकता हूँ?” 19 यीशु ने उससे कहा: “तू मुझे अच्छा क्यों कहता है? कोई अच्छा नहीं है, सिवा एक के, और वह है परमेश्वर। 20 तू आज्ञाओं को तो जानता है, ‘शादी के बाहर यौन-संबंध न रखना, खून न करना, चोरी न करना, झूठी गवाही न देना, अपने पिता और अपनी माँ का आदर करना।’ ” 21 तब उसने कहा: “ये सारी बातें मैं लड़कपन से ही मानता आया हूँ।” 22 यह सुनने के बाद, यीशु ने उससे कहा: “तुझमें अब भी एक बात की कमी है: जो कुछ तेरे पास है, वह सब बेचकर कंगालों में बाँट दे, और तुझे स्वर्ग में खज़ाना मिलेगा। और आ, मेरा चेला बनकर मेरे पीछे हो ले।” 23 जब उसने यह सुना, तो वह बेहद दुःखी हुआ, क्योंकि वह बहुत अमीर था।
24 यीशु ने उसकी तरफ देखा और कहा: “जिनके पास पैसा है, उनके लिए परमेश्वर के राज में दाखिल हो पाना कितना मुश्किल होगा! 25 दरअसल, परमेश्वर के राज में एक दौलतमंद आदमी के दाखिल होने से, एक ऊँट का सिलाई की सुई के छेद से निकल जाना ज़्यादा आसान है।” 26 जिन्होंने यह सुना, उन्होंने कहा: “तो आखिर किसका उद्धार होना मुमकिन है?” 27 उसने कहा: “जो बातें इंसानों के लिए नामुमकिन हैं, वे परमेश्वर के लिए मुमकिन हैं।” 28 मगर पतरस ने कहा: “देख! हमने तो अपना सबकुछ छोड़ दिया है और तेरे पीछे हो लिए हैं।” 29 उसने उनसे कहा: “मैं तुमसे सच कहता हूँ, ऐसा कोई नहीं जिसने परमेश्वर के राज की खातिर घर या पत्नी या भाइयों या माँ-बाप या बच्चों को छोड़ा हो 30 और जो इस ज़माने में किसी तरह इन सबका कई गुना न पाए और आनेवाली दुनिया* में हमेशा की ज़िंदगी पाए।”
31 फिर यीशु उन बारहों को अलग ले गया और उनसे कहा: “देखो! हम यरूशलेम जा रहे हैं, और जो-जो बातें इंसान के बेटे के बारे में भविष्यवक्ताओं के ज़रिए लिखी गयी हैं, वे सब पूरी होंगी। 32 मिसाल के लिए, वह दूसरी जातियों के लोगों के हवाले कर दिया जाएगा और उसका मज़ाक उड़ाया जाएगा और उसके साथ बुरा सलूक किया जाएगा और उस पर थूका जाएगा। 33 वे उसे कोड़े लगाने के बाद मार डालेंगे, मगर तीसरे दिन वह जी उठेगा।” 34 लेकिन चेले इनमें से किसी भी बात के मायने न समझ पाए। मगर यह वचन उनसे छिपा रहा, और जो बातें कही गयी थीं, उन्हें वे नहीं जानते थे।
35 जिस दौरान वह यरीहो के करीब पहुँचनेवाला था, एक अंधा वहाँ सड़क के किनारे बैठा भीख माँग रहा था। 36 जब उस अंधे ने पास से गुज़रती भीड़ का शोर सुना, तो पूछने लगा कि यह क्या हो रहा है। 37 लोगों ने उसे बताया: “यीशु नासरी यहाँ से गुज़र रहा है!” 38 यह सुनकर उसने ज़ोर से पुकारकर कहा: “हे यीशु, दाविद के वंशज, मुझ पर दया कर!” 39 जो आगे-आगे जा रहे थे वे उसे कड़ाई से कहने लगे कि चुप हो जा, मगर वह और ज़्यादा ज़ोर से चिल्लाता रहा: “दाविद के वंशज, मुझ पर दया कर।” 40 तब यीशु रुककर खड़ा हो गया और हुक्म दिया कि उस आदमी को उसके पास लाया जाए। जब वह उसके पास आया, तो यीशु ने उससे पूछा: 41 “तू क्या चाहता है, मैं तेरे लिए क्या करूँ?” उसने कहा: “प्रभु, मेरी आँखों की रौशनी लौट आए।” 42 इसलिए यीशु ने उससे कहा: “अपनी आँखों की रौशनी पा। तेरे विश्वास ने तुझे ठीक किया है।” 43 उसी पल उसकी आँखों की रौशनी लौट आयी और वह तब से परमेश्वर की बड़ाई करता हुआ उसके पीछे हो लिया। साथ ही, यह देखने पर सभी लोगों ने परमेश्वर की बड़ाई की।
19 यीशु यरीहो में आया और उसके बीच से होकर जा रहा था। 2 यहाँ जक्कई नाम का एक आदमी था। वह कर-वसूलनेवालों का एक प्रधान था और बहुत अमीर था। 3 वह देखना चाहता था कि यह यीशु कौन है, मगर भीड़ की वजह से देख नहीं पा रहा था क्योंकि वह ठिंगना था। 4 इसलिए वह भागकर आगे गया और उसे देखने के लिए रास्ते में एक गूलर के पेड़ पर चढ़ गया, क्योंकि यीशु वहीं से गुज़रनेवाला था। 5 जब यीशु वहाँ पहुँचा, तो उसने ऊपर देखा और उससे कहा: “जक्कई, जल्दी से नीचे उतर आ, क्योंकि आज मुझे तेरे घर ठहरना है।” 6 तब वह जल्दी-जल्दी नीचे उतरा और बड़ी खुशी के साथ उसे अपना मेहमान बनाया। 7 मगर जब उन्होंने यह देखा, तो वे सब बड़बड़ाने लगे और कहने लगे: “यह एक ऐसे आदमी के घर ठहरने गया है जो पापी है।” 8 मगर जक्कई ने खड़े होकर प्रभु से कहा: “प्रभु देख! मैं अपनी आधी संपत्ति गरीबों को देता हूँ और मैंने जिस किसी का गैर-कानूनी तरीके से जबरन कुछ लूटा है, उसे मैं चौगुना वापस लौटाता हूँ।” 9 इस पर यीशु ने उससे कहा: “आज के दिन इस घर में उद्धार आया है, क्योंकि यह भी अब्राहम का एक वंशज है। 10 इसलिए कि जो खो गए हैं, इंसान का बेटा उन्हें ढूँढ़ने और उनका उद्धार करने आया है।”
11 जब चेले ये बातें सुन रहे थे, तो उसने एक मिसाल भी दी, क्योंकि वह यरूशलेम के करीब था और चेले यह सोच रहे थे कि परमेश्वर का राज बस कुछ ही पल में ज़ाहिर होनेवाला है। 12 इसलिए उसने कहा: “एक आदमी था जो शाही खानदान से था। वह दूर देश के लिए रवाना हुआ ताकि राज-अधिकार पाकर लौट आए। 13 इसलिए, उसने अपने दस दासों को बुलाकर उन्हें चाँदी के दस टुकड़े* दिए और उनसे कहा, ‘जब तक मैं वापस न आऊँ, तब तक इससे व्यापार करो।’ 14 मगर उसके देश के लोग उससे नफरत करते थे और उन्होंने उसके पीछे-पीछे यह कहने के लिए राजदूतों का एक दल भेजा, ‘हम नहीं चाहते कि यह आदमी हमारा राजा बने।’
15 जब वह राज-अधिकार हासिल करने के बाद आखिरकार लौट आया, तो उसने हुक्म दिया कि उन दासों को बुलाया जाए जिन्हें उसने चाँदी दी थी, ताकि पता लगा सके कि उन्होंने उनसे व्यापार कर क्या कमाया है। 16 तब पहला दास उसके सामने हाज़िर हुआ और कहने लगा, ‘मालिक, तेरी चाँदी के टुकड़े से मैंने चाँदी के दस टुकड़े कमाए हैं।’ 17 तब मालिक ने उससे कहा, ‘शाबाश, अच्छे दास! तू ने एक छोटी-सी बात में विश्वासयोग्य होने का सबूत दिया है, इसलिए मैं तुझे दस शहरों का अधिकारी बनाता हूँ।’ 18 अब दूसरा आकर कहने लगा, ‘मालिक, तेरे चाँदी के टुकड़े से मैंने चाँदी के पाँच टुकड़े कमाए हैं।’ 19 मालिक ने उससे भी कहा, ‘मैं तुझे भी पाँच शहरों के ऊपर अधिकारी बनाता हूँ।’ 20 मगर एक और आया और कहने लगा, ‘मालिक, यह रहा तेरा चाँदी का टुकड़ा जिसे मैंने कपड़े में बाँधकर अलग रख दिया था। 21 मैं तुझसे डरता था, क्योंकि तू एक कठोर आदमी है। तू वह पैसा निकालता है जो तू ने जमा नहीं किया और वह फसल काटता है जो तू ने नहीं बोयी।’ 22 मालिक ने उससे कहा, ‘अरे दुष्ट दास, मैं तेरे ही मुँह की बात से तेरा फैसला करता हूँ। तू जानता था न कि मैं एक कठोर आदमी हूँ। मैं वह पैसा निकालता हूँ जो मैंने जमा नहीं किया और उस फसल की कटाई करता हूँ, जिसे मैंने नहीं बोया? 23 तो फिर, तू ने मेरी चाँदी साहूकारों के पास जमा क्यों नहीं की? तब जब मैं लौटता तो अपनी चाँदी के साथ-साथ ब्याज़ भी पाता।’
24 तब जो आस-पास खड़े थे उनसे मालिक ने कहा, ‘यह चाँदी का टुकड़ा इससे ले लो और उसे दे दो जिसके पास दस हैं।’ 25 मगर उन्होंने कहा, ‘मालिक, उसके पास तो पहले से दस टुकड़े हैं!’— 26 ‘मैं तुमसे कहता हूँ, जिस किसी के पास है, उसे और ज़्यादा दिया जाएगा। मगर जिसके पास नहीं है, उससे वह भी ले लिया जाएगा जो उसके पास है। 27 मेरे जो दुश्मन नहीं चाहते थे कि मैं उनका राजा बनूँ, उन्हें यहाँ लाओ और मेरे सामने उन्हें कत्ल करो।’ ”
28 जब यीशु ये बातें कह चुका, तो वह आगे-आगे चलता हुआ यरूशलेम की तरफ बढ़ने लगा। 29 जब वह जैतून नाम पहाड़ पर बैतफगे और बैतनिय्याह के पास पहुँचा, तो उसने दो चेलों को यह कहते हुए आगे भेजा: 30 “जो गाँव तुम्हें नज़र आ रहा है उसमें जाओ, और उसमें दाखिल होने पर तुम्हें एक गधी का बच्चा बंधा हुआ मिलेगा, जिस पर आज तक कोई आदमी नहीं बैठा। उसे खोलकर ले आओ। 31 लेकिन अगर कोई तुमसे पूछे, ‘तुम इसे क्यों खोल रहे हो?’ तो कहना, ‘प्रभु को इसकी ज़रूरत है।’ ” 32 तब जिन्हें भेजा गया था, वे निकले और ठीक जैसा उसने कहा था वैसा ही पाया। 33 लेकिन जब वे गधी के बच्चे को खोल रहे थे, तब उसके मालिक ने उनसे कहा: “तुम इस गधी के बच्चे को क्यों खोल रहे हो?” 34 उन्होंने कहा: “प्रभु को इसकी ज़रूरत है।” 35 और वे उसे यीशु के पास ले गए और उन्होंने उस गधी के बच्चे के ऊपर अपने ओढ़ने बिछाए और यीशु को उस पर सवार किया।
36 जैसे-जैसे वह आगे बढ़ रहा था, वे सड़क पर उसके आगे-आगे अपने कपड़े बिछाते रहे। 37 जैसे ही वह उस सड़क के पास पहुँचा जो जैतून पहाड़ से नीचे की तरफ जाती है, तो उसके चेलों की सारी भीड़, उन सभी शक्तिशाली कामों की वजह से जो उन्होंने देखे थे, खुशियाँ मनाते हुए ऊँची आवाज़ से परमेश्वर की बड़ाई करने लगी 38 और कहने लगी: “धन्य है वह जो यहोवा के नाम से राजा बनकर आ रहा है! स्वर्ग में शांति और सबसे ऊँचे पर विराजनेवाले की महिमा हो!” 39 लेकिन, भीड़ में से कुछ फरीसियों ने उससे कहा: “गुरु, अपने चेलों को डाँट।” 40 मगर जवाब में उसने कहा: “मैं तुमसे कहता हूँ, अगर ये खामोश रहे तो पत्थर बोल उठेंगे।”
41 जब वह शहर के करीब पहुँचा, तो उसने शहर को देखा और उसकी वजह से रोने लगा, 42 और कहने लगा: “काश आज के दिन तू ने, हाँ तू ने, उन बातों को समझा होता जिनका नाता शांति से है—लेकिन अब ये तेरी आँखों से छिपा दी गयी हैं। 43 क्योंकि तुझ पर वे दिन आएँगे जब तेरे दुश्मन तेरे चारों तरफ नुकीले लट्ठों से घेराबंदी कर तुझे घेर लेंगे और हर तरफ से तुझे दबाएँगे। 44 वे तुझे और तेरे बच्चों को जो तुझमें रहते हैं ज़मीन पर दे मारेंगे और तुझ में एक पत्थर पर दूसरा पत्थर न छोड़ेंगे, क्योंकि तू ने उस वक्त को न समझा जब तुझे जाँचा जा रहा था।”
45 यीशु मंदिर के अंदर गया और वहाँ जो बिक्री कर रहे थे उन्हें बाहर खदेड़ते हुए कहने लगा: 46 “यह लिखा है, ‘मेरा घर, प्रार्थना का घर कहलाएगा,’ मगर तुम लोगों ने इसे लुटेरों का अड्डा बना दिया है।”
47 वह हर दिन मंदिर में सिखाता रहा। मगर प्रधान याजक और शास्त्री और जनता के खास-खास लोग उसका खात्मा करने की कोशिश में लगे हुए थे। 48 मगर उन्हें ऐसा करने का सही मौका नहीं मिल पा रहा था, क्योंकि सारे लोग उसकी सुनने के लिए हमेशा उसे घेरे रहते थे।
20 उन दिनों के दौरान, एक दिन जब वह लोगों को मंदिर में सिखा रहा था और खुशखबरी का ऐलान कर रहा था, तो प्रधान याजक और शास्त्री, बुज़ुर्गों के साथ उसके पास आए, 2 और सबके सामने उससे यह पूछने लगे: “हमें बता कि तू ये सब किस अधिकार से करता है, या कौन है वह जिसने तुझे यह अधिकार दिया है।” 3 जवाब में उसने कहा: “मैं भी तुमसे एक सवाल पूछता हूँ, और तुम मुझे जवाब दो: 4 यूहन्ना का बपतिस्मा स्वर्ग की तरफ से था या इंसानों की तरफ से?” 5 तब वे आपस में मशविरा करते हुए कहने लगे: “अगर हम कहें, ‘स्वर्ग की तरफ से,’ तो वह कहेगा, ‘तो फिर क्यों तुमने उसका यकीन नहीं किया?’ 6 लेकिन अगर हम कहें, ‘इंसानों की तरफ से,’ तो सब लोग हम पर पत्थरवाह करेंगे, इसलिए कि उन्हें यकीन है कि यूहन्ना एक भविष्यवक्ता था।” 7 इसलिए उन्होंने जवाब दिया कि हम नहीं जानते कि किसकी तरफ से था। 8 तब यीशु ने उनसे कहा: “न ही मैं तुम्हें यह बतानेवाला हूँ कि मैं किस अधिकार से यह सब करता हूँ।”
9 फिर वह लोगों को यह मिसाल बताने लगा: “एक आदमी ने अंगूरों का एक बाग लगाया और बागबानों को ठेके पर देकर काफी समय के लिए परदेस चला गया। 10 मगर अंगूरों की कटाई का मौसम आने पर उसने एक दास को बागबानों के पास भेजा, ताकि वे अंगूरों की फसल में से उसका हिस्सा दें। मगर बागबानों ने उस दास को पीटने के बाद उसे खाली हाथ भेज दिया। 11 फिर उसने एक और दास को उनके पास भेजा। उन्होंने इसे भी पीटा और बेइज़्ज़त किया और खाली हाथ भेज दिया। 12 फिर भी उसने तीसरे को भेजा। उन्होंने इसे भी घायल कर बाहर फेंक दिया। 13 इस पर बाग के मालिक ने कहा, ‘मैं क्या करूँ? मैं अपने प्यारे बेटे को भेजूँगा। वे ज़रूर इसकी इज़्ज़त करेंगे।’ 14 जब बागबानों की नज़र उसके बेटे पर पड़ी, तो वे आपस में कहने लगे, ‘यह तो वारिस है। आओ हम इसे मार डालें, तब यह विरासत हमारी हो जाएगी।’ 15 इस पर वे उसे खदेड़कर बाग के बाहर ले गए और मार डाला। अब बाग का मालिक उनके साथ क्या करेगा? 16 वह आकर उन बागबानों का खात्मा करेगा और अंगूरों का बाग दूसरों को ठेके पर दे देगा।”
यह सुनने पर उन्होंने कहा: “ऐसा कभी न हो!” 17 मगर उसने उन्हें देखा और कहा: “तो फिर, यह जो बात लिखी है, इसका क्या मतलब है, ‘जिस पत्थर को राजमिस्त्रियों ने ठुकराया, वही कोने का मुख्य पत्थर बन गया है’? 18 हर कोई जो उस पत्थर पर गिरेगा वह टुकड़े-टुकड़े हो जाएगा। और जिस किसी पर यह पत्थर गिरेगा, उसे यह पीसकर चकनाचूर कर देगा।”
19 तब शास्त्रियों और प्रधान याजकों ने चाहा कि उसे किसी तरह उसी घड़ी पकड़ लें, क्योंकि वे समझ गए थे कि उसने यह मिसाल उन्हीं को मन में रखकर दी है। मगर वे लोगों से डरते थे। 20 वे उस पर कड़ी नज़र रखे हुए थे। तब उन्होंने किराए के जासूस भेजे कि वे उसके सामने नेक होने का ढोंग करें, ताकि उसी की बातों में उसे पकड़ सकें और उसे सरकार के और राज्यपाल के अधिकार के हवाले कर सकें। 21 उन्होंने यह कहकर उससे सवाल किया: “गुरु, हम जानते हैं कि तू सही-सही बोलता और सिखाता है और बिलकुल भेदभाव नहीं करता, बल्कि तू सच्चाई के मुताबिक परमेश्वर का मार्ग सिखाता है: 22 हमें बता कि हमारे लिए सम्राट* को कर देना सही है या नहीं?” 23 मगर उसने उनकी चालाकी भाँप ली और उनसे कहा: 24 “मुझे एक दीनार दिखाओ। इस पर किसकी सूरत और किसके नाम की छाप है?” उन्होंने कहा: “सम्राट की।” 25 उसने उनसे कहा: “तो फिर, जो सम्राट का है, वह सम्राट को चुकाओ, मगर जो परमेश्वर का है वह परमेश्वर को।” 26 वे इस बात में लोगों के सामने उसे पकड़ न सके, मगर उसके जवाब से हैरान रह गए और एक शब्द भी न कहा।
27 मगर कुछ सदूकी, जो कहते हैं कि मरे हुओं के फिर से जी उठने* की शिक्षा सच नहीं है, उसके पास आए और यह कहते हुए उससे सवाल करने लगे: 28 “गुरु, मूसा ने हमारे लिए लिखा है, ‘अगर कोई आदमी बेऔलाद मर जाए, तो उसके भाई को चाहिए कि वह अपने मरे हुए भाई की पत्नी से शादी कर ले और अपने भाई के लिए उससे औलाद पैदा करे।’ 29 ऐसा हुआ कि सात भाई थे। पहले ने शादी की मगर वह बेऔलाद मर गया। 30 तब दूसरे ने अपने भाई की पत्नी से शादी कर ली मगर वह भी बेऔलाद मर गया 31 फिर तीसरे ने उससे शादी की और वह भी बेऔलाद मर गया। इसी तरह उन सातों भाइयों के साथ हुआ: एक-एक कर उन्होंने उस स्त्री से शादी की लेकिन बेऔलाद मर गए। 32 आखिर में, वह स्त्री भी मर गयी। 33 तो मरे हुओं के जी उठने के वक्त, वह इन सात भाइयों में से किसकी पत्नी होगी? क्योंकि सातों उसे अपनी पत्नी बना चुके थे।”
34 यीशु ने उनसे कहा: “इस ज़माने* में लोग शादी करते हैं और अपनी बेटियों की शादी करवाते हैं, 35 मगर जो उस ज़माने में जीवन पाने और मरे हुओं में से जी उठने के लायक समझे जाएँगे, वे शादी नहीं करेंगे और पति या पत्नी नहीं बनेंगे। 36 दरअसल वे फिर कभी नहीं मर सकते, क्योंकि वे स्वर्गदूतों की तरह होंगे और मरे हुओं में से जी उठने की वजह से परमेश्वर के बेटे-बेटियाँ ठहरेंगे। 37 मगर यह बात कि मरे हुओं को ज़िंदा किया जाता है, मूसा ने भी झाड़ी के किस्से में ज़ाहिर की है, जहाँ वह यहोवा को ‘अब्राहम का परमेश्वर, इसहाक का परमेश्वर और याकूब का परमेश्वर’ कहता है। 38 वह मरे हुओं का नहीं, बल्कि जीवितों का परमेश्वर है, इसलिए कि वे सभी उसकी नज़र में ज़िंदा हैं।” 39 यह सुनकर शास्त्रियों में से कुछ ने कहा: “गुरु, तू ने बढ़िया तरीके से बात की।” 40 इसके बाद उनमें और हिम्मत न रही कि उससे एक भी सवाल कर सकें।
41 फिर उसने उनसे कहा: “वे यह कैसे कहते हैं कि मसीह, दाविद का वंशज है? 42 क्योंकि दाविद खुद भजनों की किताब में कहता है, ‘यहोवा ने मेरे प्रभु से कहा: “मेरी दायीं तरफ बैठ, 43 जब तक कि मैं तेरे दुश्मनों को तेरे पाँवों के नीचे न कर दूँ।” ’* 44 इसलिए, जब दाविद उसे ‘प्रभु’ कहकर पुकारता है, तो वह उसका वंशज कैसे हुआ?”
45 इसके बाद, जिस दौरान सब लोग उसकी सुन रहे थे, तब यीशु ने चेलों से कहा: 46 “शास्त्रियों से खबरदार रहो, जिन्हें लंबे-लंबे चोगे पहनकर घूमना और बाज़ारों के चौक में लोगों से नमस्कार सुनना पसंद है और सभा-घरों में सबसे आगे की जगहों पर बैठना और शाम की दावतों में सबसे खास जगह लेना उन्हें अच्छा लगता है, 47 लेकिन वे विधवाओं के घर हड़प जाते हैं और दिखावे के लिए लंबी-लंबी प्रार्थनाएँ करते हैं। ये बहुत भारी दंड पाएँगे।”
21 फिर उसने नज़र उठायी और देखा कि अमीर लोग दान-पात्रों में अपना-अपना दान डाल रहे हैं। 2 तब उसने एक ज़रूरतमंद विधवा को दो पैसे* डालते देखा। 3 यह देखकर उसने कहा: “मैं तुमसे सच-सच कहता हूँ, इस विधवा ने गरीब होते हुए भी, उन सबसे ज़्यादा डाला है। 4 इसलिए कि उन सभी ने अपनी बहुतायत में से दान डाला, मगर इस स्त्री ने अपनी तंगी में से, जो कुछ उसके जीने का सहारा था वह सबकुछ डाल दिया।”
5 बाद में, जब उनमें से कुछ मंदिर के बारे में बात कर रहे थे कि वह कैसे शानदार पत्थरों और समर्पित की हुई चीज़ों से सजाया गया है, 6 तो उसने कहा: “तुम ये जो चीज़ें देख रहे हो, ऐसे दिन आएँगे जब यहाँ एक पत्थर के ऊपर दूसरा पत्थर बाकी न बचेगा जो ढाया न जाए।” 7 तब चेलों ने उससे पूछा: “गुरु, ये सब बातें असल में कब होंगी और उस वक्त की क्या निशानी होगी जब इनका होना तय है?” 8 उसने कहा: “खबरदार रहो कि तुम गुमराह न किए जाओ। इसलिए कि बहुत-से मेरे नाम से आएँगे और कहेंगे, ‘मैं वही हूँ,’ और ‘तय किया हुआ वक्त पास आ गया है।’ उनके पीछे मत जाना। 9 इसके अलावा, जब तुम युद्धों और हंगामों की खबरें सुनो, तो दहशत न खाना। इसलिए कि पहले इन सबका होना ज़रूरी है, मगर अंत फौरन नहीं आएगा।”
10 इसके बाद, यीशु आगे उनसे कहने लगा: “एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्र पर और एक राज्य दूसरे राज्य पर हमला करेगा। 11 बड़े-बड़े भूकंप होंगे और एक-के-बाद-एक कई जगहों पर महामारियाँ फैलेंगी और अकाल पड़ेंगे। लोगों को खौफनाक नज़ारे दिखायी देंगे और आकाश से बड़ी-बड़ी निशानियाँ दिखायी देंगी।
12 मगर इन सब बातों के होने से पहले लोग तुम्हें पकड़वाएँगे और तुम पर ज़ुल्म ढाएँगे और तुम्हें सभा-घरों और जेलखानों के हवाले कर देंगे और मेरे नाम की खातिर तुम्हें राजाओं और राज्यपालों के सामने पेश किया जाएगा। 13 यह तुम्हारे लिए गवाही देने का मौका होगा। 14 इसलिए अपने दिलों में यह बात बिठा लो कि तुम पहले से यह तैयारी न करोगे कि अपनी सफाई में क्या-क्या कहना है। 15 इसलिए कि मैं तुम्हें ऐसे शब्द* और ऐसी बुद्धि दूँगा, जिसका तुम्हारे सारे विरोधी एक-साथ मिलकर भी मुकाबला नहीं कर पाएँगे, न ही उसकी काट कर पाएँगे। 16 इतना ही नहीं, तुम्हारे माता-पिता और भाई और रिश्तेदार और दोस्त तक तुम्हारे साथ विश्वासघात कर तुम्हें पकड़वाएँगे और तुममें से कुछ को मरवा डालेंगे। 17 मेरे नाम की वजह से तुम सब लोगों की नफरत के शिकार बनोगे। 18 लेकिन फिर भी तुम्हारे सिर का एक बाल तक बाँका न होगा। 19 तुम धीरज धरने की वजह से अपनी जान बचा पाओगे।
20 जब तुम यरूशलेम को डेरा डाली हुई फौजों से घिरा हुआ देखो, तब जान लेना कि उसके उजड़ने का समय पास आ गया है। 21 इसके बाद जो यहूदिया में हों, वे पहाड़ों की तरफ भागना शुरू कर दें और जो यरूशलेम शहर के अंदर हों, वे बाहर निकल जाएँ और जो देहातों में हों वे इस शहर के अंदर न जाएँ। 22 क्योंकि ये दिन बदला चुकाने के दिन होंगे, ताकि जितनी बातें लिखी हैं वे सब पूरी हों। 23 उन दिनों, जो गर्भवती होंगी और जो बच्चे को दूध पिलाती होंगी, उनके लिए ये दिन क्या ही भयानक होंगे! इसलिए कि देश में घोर तंगहाली होगी और लोगों पर बड़ा क्रोध भड़केगा। 24 और वे तलवार से मौत के घाट उतारे जाएँगे और उन्हें बंदी बनाकर सारे राष्ट्रों में ले जाया जाएगा। और जब तक इन राष्ट्रों के लिए तय किया हुआ वक्त पूरा न हो जाए, तब तक यरूशलेम इन राष्ट्रों के पैरों तले रौंदा जाएगा।
25 साथ ही, सूरज, चाँद और तारों में निशानियाँ दिखायी देंगी और धरती पर राष्ट्र बड़ी मुसीबत में होंगे, क्योंकि समुद्र के गरजने और उसकी बड़ी हलचल की वजह से उन्हें बचने का कोई रास्ता नहीं सूझेगा। 26 साथ ही, धरती पर और क्या-क्या होनेवाला है इस फिक्र और डर के मारे लोगों के जी में जी न रहेगा, इसलिए कि आकाश की शक्तियाँ हिलायी जाएँगी। 27 और इसके बाद वे इंसान के बेटे को एक बादल में शक्ति और बड़ी महिमा के साथ आता देखेंगे। 28 लेकिन जब ये बातें होने लगें, तो तुम सिर उठाकर सीधे खड़े हो जाना, क्योंकि तुम्हारे छुटकारे का वक्त पास आ रहा होगा।”
29 यीशु ने उन्हें एक मिसाल दी: “अंजीर के पेड़ और दूसरे सभी पेड़ों पर गौर करो: 30 जब उनमें नयी पत्तियाँ निकल आती हैं, तो यह देखकर तुम जान जाते हो कि गर्मियों का मौसम पास है। 31 इसी तरह, जब तुम ये बातें होती देखो, तो जान लो कि परमेश्वर का राज पास है। 32 मैं तुमसे सच कहता हूँ कि जब तक ये सारी बातें पूरी न हो लें, तब तक यह पीढ़ी हरगिज़ न मिटेगी। 33 आकाश और पृथ्वी मिट जाएँगे, मगर मेरे शब्द किसी भी हाल में न मिटेंगे।
34 मगर खुद पर ध्यान दो कि हद-से-ज़्यादा खाने और पीने से और ज़िंदगी की चिंताओं के भारी बोझ से कहीं तुम्हारे दिल दब न जाएँ और वह दिन तुम पर पलक झपकते ही अचानक 35 फंदे की तरह न आ पड़े। इसलिए कि वह दिन धरती पर रहनेवाले सभी लोगों पर आ पड़ेगा। 36 इसलिए, आँखों में नींद न आने दो, और हर घड़ी प्रार्थना और मिन्नत करते रहो ताकि जिन बातों का होना तय है, उन सबसे बचने और इंसान के बेटे के सामने खड़े रहने में तुम कामयाब हो सको।”
37 इस तरह, यीशु दिन के वक्त मंदिर में सिखाया करता था, मगर रात के वक्त शहर से बाहर चला जाता और जैतून नाम पहाड़ पर ठहरा करता था। 38 सब लोग मंदिर में उसकी सुनने के लिए सुबह जल्दी उसके पास आ जाते थे।
22 बिन-खमीर की रोटियों का त्योहार, जो फसह कहलाता है, नज़दीक आ रहा था। 2 और प्रधान याजक और शास्त्री यीशु को अपने रास्ते से हटाना चाहते थे मगर उन्हें लोगों का डर था, इसलिए वे कोई बढ़िया तरकीब ढूँढ़ रहे थे। 3 मगर शैतान, यहूदा में समा गया, जो इस्करियोती कहलाता था और जिसकी गिनती उन बारहों में होती थी। 4 वह निकलकर प्रधान याजकों और मंदिर के सरदारों से यह बात करने गया कि यीशु को धोखे से उनके हवाले करने की बढ़िया तरकीब क्या होगी। 5 इस पर, वे बड़े खुश हुए और उसे चाँदी के सिक्के देने के लिए राज़ी हो गए। 6 यहूदा मान गया और तब से उसे पकड़वाने के लिए किसी ऐसे बढ़िया मौके की ताक में रहने लगा जब उसके आस-पास भीड़ न हो।
7 अब बिन-खमीर की रोटियों के त्योहार का दिन आया, जब फसह का पशु बलि किया जाना ज़रूरी था। 8 यीशु ने पतरस और यूहन्ना को यह कहकर भेजा: “जाओ और हमारे लिए फसह के खाने की तैयारी करो।” 9 उन्होंने पूछा: “तू कहाँ चाहता है कि हम इसकी तैयारी करें?” 10 उसने कहा: “देखो! जब तुम शहर में जाओगे तो तुम्हें एक आदमी पानी का घड़ा उठाए हुए मिलेगा। उसके पीछे-पीछे उस घर में जाना जिसमें वह दाखिल होगा। 11 तुम उस घर के मालिक से कहना, ‘गुरु तुझसे पूछता है: “मेहमानों का वह कमरा कहाँ है, जहाँ मैं अपने चेलों के साथ फसह का खाना खाऊँ?” ’ 12 फिर वह तुम्हें एक बड़ा और सजा हुआ ऊपर का कमरा दिखाएगा। वहाँ इसकी तैयारी करना।” 13 इसलिए वे निकल पड़े और जैसा उसने बताया था ठीक वैसा ही पाया, और उन्होंने फसह की तैयारी की।
14 कुछ वक्त के बाद जब वह घड़ी आयी, तो वह खाने की मेज़ से टेक लगाकर बैठा और उसके प्रेषित भी उसके साथ खाने बैठे। 15 यीशु ने उनसे कहा: “मेरी बड़ी तमन्ना थी कि मैं दुःख झेलने से पहले तुम्हारे साथ फसह का यह भोज खाऊँ। 16 क्योंकि मैं तुमसे कहता हूँ कि जब तक कि यह परमेश्वर के राज में पूरा न हो, तब तक मैं इसे फिर न खाऊँगा।” 17 फिर एक प्याला लेकर उसने प्रार्थना में धन्यवाद दिया और कहा: “इसे लो और तुम एक-एक कर इसमें से पीओ। 18 इसलिए कि मैं तुमसे कहता हूँ कि मैं यह दाख-मदिरा* तब तक फिर न पीऊँगा जब तक परमेश्वर का राज नहीं आता।”
19 साथ ही, उसने एक रोटी ली और प्रार्थना में धन्यवाद दिया और उसे तोड़कर उन्हें यह कहते हुए दी: “यह मेरे शरीर का प्रतीक है, जो तुम्हारी खातिर दिया जाना है। मेरी याद में ऐसा ही किया करना।” 20 जब वे शाम का खाना खा चुके, तो उसने इसी तरह प्याला भी लिया और कहा: “यह प्याला उस नए करार का प्रतीक है जो मेरे लहू के आधार पर बाँधा गया है, जो तुम्हारी खातिर बहाया जाना है।
21 मगर देखो! मेरे पकड़वानेवाले का हाथ मेरे साथ मेज़ पर है। 22 क्योंकि इंसान का बेटा तो जा ही रहा है, ठीक जैसे उसके लिए ठहराया गया है। लेकिन धिक्कार है उस आदमी पर जिसके हाथों वह पकड़वाया जाएगा!” 23 इसलिए वे आपस में चर्चा करने लगे कि आखिर उनमें से वह कौन है जो ऐसा करनेवाला है।
24 मगर साथ ही उनके बीच इस बात पर गरमा-गरम बहस छिड़ गयी कि उनमें सबसे बड़ा किसे समझा जाए। 25 मगर उसने उनसे कहा: “दुनिया के राजा लोगों पर हुक्म चलाते हैं, और जो अधिकार रखते हैं, वे दाता कहलाते हैं। 26 मगर तुम्हें ऐसा नहीं होना है। इसके बजाय, जो तुम्हारे बीच सबसे बड़ा है वह सबसे छोटा बने, और जो प्रधान जैसा है, वह सेवक जैसा बने। 27 इसलिए कि कौन ज़्यादा बड़ा है, जो खाने के लिए मेज़ से टेक लगाए हुए है या जो सेवा कर रहा है? क्या वही नहीं जो मेज़ से टेक लगाए हुए है? मगर मैं तुम्हारे बीच सेवक जैसा हूँ।
28 मगर तुम वे हो जो मेरी परीक्षाओं के दौरान लगातार मेरे साथ रहे। 29 ठीक जैसे मेरे पिता ने मेरे साथ एक राज के लिए करार किया है, वैसे ही मैं भी तुम्हारे साथ एक राज के लिए करार करता हूँ, 30 कि तुम मेरे राज में मेरी मेज़ पर खाओ-पीओ, और राजगद्दियों पर बैठकर इस्राएल के बारह गोत्रों का न्याय करो।
31 शमौन, शमौन, देख! शैतान ने तुम लोगों को गेहूँ की तरह फटकने और छानने की माँग की है। 32 मगर मैंने तेरे लिए मिन्नत की है कि तू अपना विश्वास खो न दे। जब तू पश्चाताप कर लौट आए, तो अपने भाइयों को मज़बूत करना।” 33 तब पतरस ने उससे कहा: “प्रभु, मैं तो तेरे साथ जेल जाने और मरने के लिए भी तैयार हूँ।” 34 मगर उसने कहा: “पतरस, मैं तुझसे कहता हूँ, आज जब तक तू मुझे जानने से तीन बार इनकार न करेगा, मुर्गा बाँग न देगा।”
35 उसने चेलों से यह भी कहा: “जब मैंने तुम्हें बटुए और खाने की पोटली और जूतियों के बगैर भेजा था, तो क्या तुम्हें किसी चीज़ की कमी हुई थी?” उन्होंने कहा: “नहीं!” 36 फिर उसने उनसे कहा: “मगर अब जिसके पास बटुआ है वह उसे ले ले और खाने की पोटली भी ले। जिसके पास कोई तलवार न हो वह अपना बागा बेचकर एक खरीद ले। 37 इसलिए कि मैं तुमसे कहता हूँ कि यह जो बात लिखी है, ज़रूरी है कि यह मुझमें पूरी हो, ‘और उसकी गिनती दुराचारियों में हुई।’ इसलिए कि मेरे बारे में जो लिखा है, वह पूरा हो रहा है।” 38 तब उन्होंने कहा: “प्रभु, देख! यहाँ दो तलवारें हैं।” उसने उनसे कहा: “ये काफी हैं।”
39 फिर वह बाहर निकलकर अपने दस्तूर के मुताबिक जैतून पहाड़ पर गया। उसके चेले भी उसके पीछे-पीछे गए। 40 उस जगह पहुँचकर उसने उनसे कहा: “प्रार्थना में लगे रहो ताकि तुम परीक्षा में न पड़ो।” 41 वह उनसे कुछ दूर* आगे गया और घुटने टेककर प्रार्थना करने 42 और यह कहने लगा: “हे पिता, अगर तेरी मरज़ी हो, तो यह प्याला* मेरे सामने से हटा दे। मगर जो मेरी मरज़ी है, वह नहीं बल्कि वही हो जो तेरी मरज़ी है।” 43 तब स्वर्ग से एक दूत उसके सामने प्रकट हुआ और उसकी हिम्मत बँधायी। 44 मगर वह असहनीय वेदना से गुज़रते हुए और भी गिड़गिड़ाकर प्रार्थना करता रहा। उसका पसीना खून की बूँदें बनकर ज़मीन पर गिर रहा था। 45 वह प्रार्थना कर उठा और अपने चेलों के पास गया और देखा कि वे सो रहे थे, क्योंकि वे बेहद दुःख की वजह से पस्त हो चुके थे। 46 उसने उनसे कहा: “तुम सो क्यों रहे हो? उठो और प्रार्थना में लगे रहो, ताकि तुम परीक्षा में न पड़ो।”
47 जब वह बोल ही रहा था, तो देखो! एक भीड़ वहाँ आयी और उसके आगे-आगे यहूदा नाम का आदमी चल रहा था, जो उन बारहों में से एक था। वह यीशु को चूमने के लिए उसके पास आया। 48 मगर यीशु ने उससे कहा: “यहूदा, क्या तू इंसान के बेटे को चूमकर धोखे से पकड़वाता है?” 49 जो उसके साथ थे, जब उन्होंने देखा कि क्या होनेवाला है, तो उन्होंने कहा: “प्रभु, क्या हम तलवार चलाएँ?” 50 यहाँ तक कि उनमें से एक ने महायाजक के दास पर तलवार चलाकर उसका दायाँ कान उड़ा दिया। 51 मगर जवाब में यीशु ने कहा: “बहुत हो चुका।” और यीशु ने उस दास का कान छूकर उसे ठीक किया। 52 तब यीशु ने प्रधान याजकों और मंदिर के सरदारों और बुज़ुर्गों से जो उसे पकड़ने के लिए वहाँ आए थे, कहा: “क्या तुम मुझे तलवारें और सोंटे लेकर पकड़ने आए हो, मानो मैं कोई लुटेरा हूँ? 53 जब मैं हर दिन तुम्हारे बीच मंदिर में था, तब तुमने मुझ पर हाथ न डाले। मगर यह वक्त तुम्हारा है और अंधकार का अधिकार है।”
54 तब वे उसे गिरफ्तार कर ले गए और महायाजक के घर में ले आए। मगर पतरस कुछ दूरी पर रहते हुए उनका पीछा करता रहा। 55 जब वे आँगन के बीच आग जलाकर एक-साथ बैठ गए, तो पतरस भी उनके बीच बैठा हुआ था। 56 मगर एक नौकरानी ने उसे आग के सामने बैठा देखा और उस पर ऊपर-नीचे निगाह डाली और कहा: “यह आदमी भी उसके साथ था।” 57 मगर उसने यह कहते हुए इनकार कर दिया: “मैं उसे नहीं जानता।” 58 थोड़ी ही देर बाद किसी और ने उसे देखकर कहा: “तू भी उनमें से एक है।” मगर पतरस ने कहा: “नहीं भई, मैं नहीं हूँ।” 59 फिर करीब एक घंटा गुज़रने के बाद, एक और आदमी ज़ोर देकर यह कहने लगा: “बेशक, यह आदमी भी उसके साथ था। क्योंकि यकीनन, यह एक गलीली है!” 60 मगर पतरस ने कहा: “मैं नहीं जानता कि तू क्या कह रहा है।” वह बोल ही रहा था कि उसी घड़ी एक मुर्गे ने बाँग दी। 61 और प्रभु ने मुड़कर पतरस को देखा और पतरस को प्रभु की कही यह बात याद आयी: “आज मुर्गे के बाँग देने से पहले, तू तीन बार मुझे जानने से इनकार करेगा।” 62 और वह बाहर जाकर फूट-फूटकर रोने लगा।
63 जिन आदमियों ने यीशु को हिरासत में ले लिया था, वे उसका मज़ाक उड़ाने और उसे मारने लगे। 64 वे उसका मुँह ढककर उससे पूछते थे: “भविष्यवाणी कर। तुझे किसने मारा?” 65 वे उसकी निंदा करते हुए उसके खिलाफ बहुत-सी बातें कहते रहे।
66 जब दिन निकल आया तो लोगों के बुज़ुर्गों की सभा इकट्ठी हुई, जिसमें प्रधान याजक और शास्त्री भी थे, और वे उसे अपनी महासभा* के भवन में ले गए और उससे पूछा: 67 “अगर तू मसीह है, तो हमें बता दे।” मगर उसने कहा: “अगर मैं तुम्हें बताऊँ तो भी तुम हरगिज़ यकीन न करोगे। 68 इतना ही नहीं, अगर मैं तुमसे सवाल करूँ, तो तुम मुझे हरगिज़ जवाब न दोगे। 69 मगर अब से इंसान का बेटा परमेश्वर के शक्तिशाली दाएँ हाथ की तरफ बैठा हुआ होगा।” 70 इस पर उन सभी ने कहा: “तो क्या तू परमेश्वर का बेटा है?” उसने उनसे कहा: “तुम खुद कह रहे हो कि मैं हूँ।” 71 उन्होंने कहा: “अब हमें और गवाही की क्या ज़रूरत है? इसलिए कि हमने खुद इसके मुँह से सुन लिया है।”
23 तब वे सब-के-सब उठे और सारी भीड़ उसे पीलातुस के पास ले चली। 2 वहाँ पहुँचकर वे उस पर ये इलज़ाम लगाने लगे: “यह आदमी हमारी जाति को बगावत के लिए भड़काता है, सम्राट* को कर देने से मना करता है और कहता है कि मैं खुद मसीह राजा हूँ।” 3 तब पीलातुस ने उससे पूछा: “क्या तू यहूदियों का राजा है?” जवाब में यीशु ने उससे कहा: “तू खुद यह कह रहा है।” 4 तब पीलातुस ने प्रधान याजकों और सारी भीड़ से कहा: “मैं इस आदमी को दोषी नहीं पाता।” 5 मगर वे और भी ज़ोर देकर कहने लगे: “यह सारे यहूदिया में, यहाँ तक कि गलील से लेकर इस जगह तक लोगों को सिखा-सिखाकर भड़काता है।” 6 यह सुनकर पीलातुस ने पूछा कि क्या यह आदमी गलीली है, 7 और यह पता कर लेने के बाद कि वह उस इलाके से है जो हेरोदेस* के अधिकार में है, उसने उसे हेरोदेस के पास भेज दिया। हेरोदेस इन दिनों यरूशलेम में मौजूद था।
8 जब हेरोदेस ने यीशु को देखा तो बेहद खुश हुआ, इसलिए कि वह एक अरसे से उसे देखना चाहता था। हेरोदेस ने उसके बारे में सुन रखा था और उम्मीद कर रहा था कि यीशु उसके सामने कोई चमत्कार दिखाए। 9 इसलिए हेरोदेस उससे बहुत देर तक कई सवाल करता रहा, मगर यीशु ने कोई जवाब न दिया। 10 लेकिन, प्रधान याजक और शास्त्री बड़े तैश में बार-बार खड़े हो-होकर उस पर इलज़ाम लगाते रहे। 11 तब हेरोदेस ने अपने सैनिकों के साथ मिलकर उसकी बेइज़्ज़ती की और उसे एक शानदार कपड़ा पहनाकर उसका मज़ाक उड़ाया और उसे वापस पीलातुस के पास भेज दिया। 12 उसी दिन हेरोदेस और पीलातुस के बीच दोस्ती हो गयी, जबकि इससे पहले तक उनमें आपस में दुश्मनी थी।
13 तब पीलातुस ने प्रधान याजकों, अधिकारियों और लोगों को इकट्ठा किया 14 और उनसे कहा: “तुम इस आदमी को मेरे पास यह कहकर लाए कि यह लोगों को बगावत के लिए भड़काता है और देखो! मैंने तुम्हारे सामने इसकी जाँच-पड़ताल की है, मगर मुझे उन इलज़ामों का कोई आधार नहीं मिला जो तुमने इस आदमी के खिलाफ लगाए हैं। 15 यहाँ तक कि हेरोदेस को भी कोई वजह न मिली, इसलिए उसने इसे वापस हमारे पास भेज दिया है। इसने ऐसा कोई काम नहीं किया है जिसके लिए यह मौत की सज़ा के लायक ठहरे। 16 इसलिए मैं इसे पिटवाकर छोड़ देता हूँ।” 17* —— 18 मगर उनके साथ सारी भीड़ चिल्ला उठी और कहने लगी: “इसका काम तमाम कर और हमारे लिए बरअब्बा को रिहा कर दे!” 19 (बरअब्बा को शहर में बगावत और कत्ल की किसी वारदात के लिए जेल में डाला गया था।) 20 एक बार फिर पीलातुस ने उनसे बात की, क्योंकि वह यीशु को रिहा करना चाहता था। 21 तब वे चीख-चीखकर यह कहने लगे: “इसे सूली पर चढ़ा दे! सूली पर चढ़ा दे!” 22 उसने तीसरी बार उनसे कहा: “क्यों, इस आदमी ने ऐसा क्या बुरा किया है? मैंने इसमें ऐसा कुछ नहीं पाया जिसके लिए इसे मौत की सज़ा दी जाए। इसलिए मैं इसे पिटवाकर छोड़ देता हूँ।” 23 इस पर वे उतावले होकर ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाने लगे और उसे सूली पर चढ़ाने की माँग करने लगे। उनका चिल्लाना इस कदर ज़ोर पकड़ता गया 24 कि पीलातुस ने हारकर उनकी मान ली और यह फैसला सुनाया कि उनकी माँग पूरी की जाए: 25 उसने उस आदमी को तो रिहा कर दिया, जिसे बगावत और कत्ल के लिए जेल में डाला गया था और जिसकी वे माँग कर रहे थे, जबकि यीशु को उनकी मरज़ी के मुताबिक मार डालने के लिए सौंप दिया।
26 जब वे उसे ले जा रहे थे, तो उन्होंने शमौन नाम के एक आदमी को पकड़ा जो कुरेने का रहनेवाला था और देहात से आ रहा था। उन्होंने यातना की सूली* उस पर रख दी कि उसे उठाकर यीशु के पीछे-पीछे चले। 27 उसके पीछे लोगों की बड़ी भीड़ चल रही थी जिसमें स्त्रियाँ भी थीं, जो दुःख के मारे छाती पीट-पीटकर उसके लिए विलाप कर रही थीं। 28 यीशु ने पलटकर उन स्त्रियों को देखा और कहा: “यरूशलेम की बेटियो, मेरे लिए रोना बंद करो। इसके बजाय, खुद अपने और अपने बच्चों के लिए रोओ। 29 क्योंकि, देखो! वे दिन आ रहे हैं जब लोग कहेंगे, ‘सुखी हैं वे स्त्रियाँ जो बाँझ हैं और जिन्होंने किसी बच्चे को जन्म नहीं दिया और किसी को दूध नहीं पिलाया!’ 30 तब वे पहाड़ों से कहने लगेंगे, ‘हम पर गिर पड़ो!’ और पहाड़ियों से कहेंगे, ‘हमें ढक लो!’ 31 क्योंकि जब उन्होंने हरे पेड़ के साथ ऐसा किया है, तो उस वक्त क्या हाल होगा जब यह सूख जाएगा?”
32 उसके साथ दो और आदमियों को, जो अपराधी थे, मार डालने के लिए ले जाया जा रहा था। 33 जब वे खोपड़ी कहलानेवाली जगह पर पहुँचे, तो वहाँ उन्होंने उसे और उन दो अपराधियों को सूली पर चढ़ा दिया। एक उसकी दायीं तरफ था और दूसरा बायीं तरफ। 34 [[मगर यीशु यह कह रहा था: “पिता, इन्हें माफ कर, इसलिए कि ये नहीं जानते कि क्या कर रहे हैं।”]]* उन्होंने उसके कपड़ों का आपस में बँटवारा करने के लिए चिट्ठियाँ डालीं। 35 और लोग वहाँ खड़े देख रहे थे। मगर उनके धर्म-अधिकारी* यह कहते हुए उसकी खिल्ली उड़ाते रहे: “इसने दूसरों को तो बचाया। लेकिन अगर यह परमेश्वर का भेजा हुआ मसीह और उसका चुना हुआ है तो अब खुद को बचा ले।” 36 यहाँ तक कि सैनिकों ने भी उसका मज़ाक उड़ाया और उसके पास आकर उसे खट्ठी दाख-मदिरा देते हुए 37 कहा: “अगर तू यहूदियों का राजा है, तो खुद को बचा ले।” 38 साथ ही, ऊपर यह लिखकर लगा दिया गया: “यह यहूदियों का राजा है।”
39 यही नहीं, उसके साथ लटकाया गया एक अपराधी उसे ताना मारने लगा: “तू तो मसीह है न? तो फिर खुद को बचा और हमें भी।” 40 जवाब में दूसरे ने उसे डाँटकर कहा: “क्या तुझे परमेश्वर का ज़रा भी डर नहीं, जबकि तू भी वही सज़ा पा रहा है? 41 हम तो न्याय के हिसाब से वाकई इस सज़ा के लायक हैं, क्योंकि हमने जो काम किए हैं उन्हीं का अंजाम भुगत रहे हैं। मगर इस इंसान ने तो कोई बुरा काम नहीं किया है।” 42 फिर वह कहने लगा: “यीशु, जब तू अपने राज में आए, तो मुझे याद करना।” 43 तब यीशु ने उससे कहा: “मैं आज तुझसे सच कहता हूँ, तू मेरे साथ फिरदौस* में होगा।”
44 यह दिन का करीब छठा घंटा* था, फिर भी पूरी धरती पर अंधकार छा गया और नौवें घंटे* तक छाया रहा, 45 क्योंकि सूरज की रौशनी नहीं रही। तब मंदिर का परदा बीच से फटकर दो टुकड़े हो गया। 46 यीशु ने ज़ोर से पुकारते हुए कहा: “पिता, मैं अपनी जान* तेरे हवाले करता हूँ।” जब वह यह कह चुका, तो उसने दम तोड़ दिया। 47 जो कुछ हुआ उसे देखकर सेना-अफसर यह कहते हुए परमेश्वर की बड़ाई करने लगा: “वाकई यह इंसान नेक था।” 48 वहाँ जमा हुई भीड़ के लोगों ने जब यह सारा नज़ारा देखा, तो वे छाती पीटते हुए लौटने लगे। 49 इतना ही नहीं, उसकी जान-पहचानवाले सभी, कुछ दूरी पर खड़े थे। साथ ही, जो स्त्रियाँ गलील से उसके पीछे आयी थीं, वे भी खड़ी होकर यह सब देख रही थीं।
50 वहाँ यूसुफ नाम का एक आदमी था, जो धर्म-सभा* का सदस्य और एक अच्छा और नेक इंसान था। 51 उसने धर्म-अधिकारियों की साज़िश और काम में उन्हें अपना समर्थन नहीं दिया था। वह यहूदिया के लोगों के एक शहर अरिमतियाह का रहनेवाला था और परमेश्वर के राज की राह देख रहा था। 52 इस आदमी ने पीलातुस के पास जाकर यीशु का शव माँगा। 53 उसने शव नीचे उतारा और उसे बढ़िया मलमल में लपेटकर चट्टान में खोदी गयी कब्र में रखा, जिसमें इससे पहले किसी का भी शव नहीं रखा गया था। 54 यह तैयारी का दिन* था और शाम के झुटपुटे के साथ सब्त शुरू होनेवाला था। 55 मगर जो स्त्रियाँ पीछे-पीछे गलील से आयी थीं, वे भी साथ-साथ गयीं और कब्र को अच्छी तरह देखा और यह भी कि उसका शव कैसे रखा गया था। 56 तब वे लौट गयीं कि मसाले और खुशबूदार तेल तैयार करें। मगर हाँ, जैसी आज्ञा थी, उन्होंने सब्त के दिन आराम किया।
24 लेकिन हफ्ते के पहले दिन, वे स्त्रियाँ तैयार किए हुए खुशबूदार मसाले लेकर जल्दी सुबह कब्र पर गयीं। 2 मगर उन्होंने पाया कि पत्थर कब्र से दूर लुढ़का हुआ है, 3 और अंदर जाने पर उन्होंने वहाँ प्रभु यीशु का शव न पाया। 4 जब वे इस बात को लेकर बड़ी उलझन में थीं, तभी अचानक दो आदमी उनके पास आ खड़े हुए जिनकी पोशाक बिजली की तरह चमक रही थी। 5 वे स्त्रियाँ डर गयीं और उन्होंने अपना मुँह न उठाया। तब उन आदमियों ने उनसे कहा: “जो ज़िंदा है, उसे तुम मरे हुओं के बीच क्यों ढूँढ़ रही हो? 6 [[वह यहाँ नहीं है, बल्कि उसे ज़िंदा किया गया है।]]* याद करो कि जब वह गलील में ही था, तो उसने तुमसे क्या कहा था। 7 उसने कहा था कि ज़रूरी है कि इंसान का बेटा पापियों के हाथों में सौंपा जाए और सूली पर चढ़ाया जाए, मगर फिर तीसरे दिन जी उठे।” 8 तब उन्हें उसकी बातें याद आयीं, 9 और वे कब्र से लौट आयीं और इन सारी बातों की खबर उन ग्यारहों को और बाकी सभी को दी। 10 ये स्त्रियाँ थीं, मरियम मगदलीनी, योअन्ना और याकूब की माँ मरियम। इनके अलावा, उनके साथ की बाकी स्त्रियाँ भी प्रेषितों को ये बातें बता रही थीं। 11 मगर प्रेषितों और दूसरे चेलों को ये बातें कोरी बकवास लगीं और उन्होंने इन स्त्रियों का यकीन नहीं किया।
12 [[मगर पतरस उठा और कब्र की तरफ दौड़ा गया और झुककर कब्र के अंदर देखा कि वहाँ सिर्फ कफन की पट्टियाँ पड़ी हैं। इसलिए जो कुछ हुआ था, उस पर वह मन-ही-मन ताज्जुब करता हुआ चला गया।]]
13 मगर देखो! उसी दिन दो चेले इम्माऊस नाम के एक गाँव जा रहे थे, जो यरूशलेम से करीब ग्यारह किलोमीटर की दूरी पर है, 14 और जो-जो हुआ था, उन सबके बारे में वे एक-दूसरे से बात कर रहे थे।
15 जब वे आपस में चर्चा कर रहे थे, तो खुद यीशु उनके पास पहुँचकर उनके साथ-साथ चलने लगा। 16 मगर वे उसे पहचान न पाए। 17 उसने उनसे कहा: “ये क्या बातें हैं, जिनके बारे में तुम चलते-चलते आपस में बहस कर रहे हो?” तब वे रुककर खड़े हो गए और उनके चेहरों पर उदासी छायी हुई थी। 18 जवाब में क्लियुपास नाम के चेले ने उससे कहा: “क्या तू यरूशलेम में सबसे अलग रहनेवाला कोई परदेसी है, इसलिए नहीं जानता कि इस शहर में इन दिनों क्या-क्या हुआ है?” 19 तब उसने उनसे पूछा: “क्या-क्या हुआ है?” उन्होंने कहा: “यीशु नासरी के साथ जो-जो हुआ है। उसने ऐसा भविष्यवक्ता होने का सबूत दिया, जो परमेश्वर और सब लोगों के सामने अपने कामों और वचनों में शक्तिशाली था। 20 हमारे प्रधान याजकों और धर्म-अधिकारियों ने उसे मौत की सज़ा दिए जाने और सूली पर चढ़ाए जाने के लिए सौंप दिया। 21 मगर हम यह उम्मीद लगाए बैठे थे कि यह वही है जो इस्राएल को छुटकारा दिलाने के लिए ठहराया गया है। और हाँ, इसके अलावा, इन सब घटनाओं को हुए आज तीसरा दिन हो चुका है। 22 और-तो-और, हमारे बीच कुछ स्त्रियों ने भी हमें हैरत में डाल दिया है, क्योंकि वे सुबह-सुबह कब्र पर गयी थीं, 23 मगर उन्हें उसका शव नहीं मिला और वे आकर यह कहने लगीं कि उन्हें स्वर्गदूत भी दिखायी दिए, जो कह रहे थे कि वह ज़िंदा है। 24 इसके अलावा, हममें से कुछ उसकी कब्र पर गए, तो जैसा स्त्रियों ने बताया था, ठीक वैसा ही पाया, मगर उसे न देखा।”
25 तब उसने उनसे कहा: “अरे, नासमझ लोगो, और भविष्यवक्ताओं की कही सब बातों पर मुश्किल से विश्वास करनेवालो! 26 क्या मसीह के लिए यह ज़रूरी नहीं था कि वह ये सारे दुःख झेले और फिर अपनी महिमा पाए?” 27 उसने मूसा से शुरू कर सारे भविष्यवक्ताओं की किताबों में, यानी सारे शास्त्र में जितनी भी बातें उसके बारे में लिखी थीं, उन सबका मतलब उन्हें खोलकर समझाया।
28 आखिरकार वे उस गाँव के नज़दीक आ पहुँचे जहाँ वे जा रहे थे और उसने ऐसे दिखाया जैसे वह सफर पर आगे जा रहा हो। 29 मगर उन्होंने यह कहकर उस पर दबाव डाला: “हमारे साथ रुक जा, क्योंकि शाम होने पर है और दिन ढल चुका है।” तब वह उनके यहाँ रुकने के लिए अंदर गया। 30 जब वह उनके साथ खाने के लिए मेज़ से टेक लगाए था, तो उसने रोटी ली, प्रार्थना में धन्यवाद कर उसे तोड़ा और उन्हें देने लगा। 31 तब उनकी आँखें खुल गयीं और वे उसे पहचान गए और वह उनके सामने से गायब हो गया। 32 उन्होंने एक-दूसरे से कहा: “जब वह सड़क पर हमसे बात कर रहा था और शास्त्र का मतलब हमें खोल-खोलकर समझा रहा था, तो क्या हमारे दिल की धड़कनें तेज़ नहीं हो गयी थीं?” 33 तब उसी घड़ी वे उठे और यरूशलेम लौटे, और उन्होंने उन ग्यारहों को दूसरे चेलों के साथ इकट्ठा पाया, 34 जो कह रहे थे: “यह सच है कि प्रभु जी उठा है और वह शमौन को दिखायी दिया है!” 35 फिर इन लोगों ने भी वे सारी घटनाएँ बतायीं जो सड़क पर हुई थीं और कैसे रोटी तोड़ने के ज़रिए वह उन पर ज़ाहिर हुआ था।
36 जब वे इन बातों के बारे में बता ही रहे थे, तब यीशु खुद उनके बीच आ खड़ा हुआ [[और उनसे कहा: “तुम्हें शांति मिले।”]] 37 मगर दहशत और डर की वजह से, उन्होंने सोचा कि यह ज़रूर कोई स्वर्गदूत है। 38 इसलिए उसने उनसे कहा: “तुम क्यों परेशान हो रहे हो, और क्यों तुम्हारे दिलों में शक पैदा हो रहा है? 39 मेरे हाथ और मेरे पैर देखो कि यह मैं ही हूँ। मुझे छूओ और देखो, क्योंकि स्वर्गदूत का हाड़-माँस नहीं होता, जैसा कि तुम मेरा देख रहे हो।” 40 [[और यह कहते हुए उसने उन्हें अपने हाथ और पैर दिखाए।]] 41 मगर वे अभी भी मारे खुशी और हैरत के यकीन नहीं कर रहे थे। तब उसने उनसे कहा: “क्या तुम्हारे पास खाने के लिए यहाँ कुछ है?” 42 उन्होंने उसे भुनी हुई मछली का एक टुकड़ा दिया 43 और उसने लेकर उन सबकी नज़रों के सामने खाया।
44 तब उसने उनसे कहा: “ये मेरी वही बातें हैं, जो मैंने तुम्हारे साथ रहते हुए तुम्हें बतायी थीं कि मूसा के कानून और भविष्यवक्ताओं की किताबों और भजनों में मेरे बारे में जो कुछ लिखा है, वह सब पूरा होना ज़रूरी है।” 45 तब उसने शास्त्रों का मतलब समझने के लिए उनके दिमाग पूरी तरह खोल दिए, 46 और उसने उनसे कहा: “इस तरह यह लिखा है कि मसीह दुःख झेलेगा और तीसरे दिन मरे हुओं में से जी उठेगा। 47 फिर यरूशलेम से शुरूआत करते हुए सब राष्ट्रों में, उसके नाम से पापों की माफी पाने के लिए पश्चाताप करने का प्रचार किया जाएगा। 48 तुम्हें इन बातों की गवाही देनी है। 49 और देखो! मैं तुम पर वह शक्ति भेज रहा हूँ, जिसका वादा मेरे पिता ने किया है। मगर जब तक तुम ऊपर से यह शक्ति हासिल न कर लो, तब तक इसी शहर में रहना।”
50 वह उन्हें बैतनिय्याह तक बाहर ले आया और अपने हाथ ऊपर उठाकर उन्हें आशीष दी। 51 जब वह उन्हें आशीष दे रहा था, तो वह उनसे जुदा होने लगा और ऊपर स्वर्ग की तरफ उठाया जाने लगा। 52 उन्होंने झुककर उसे प्रणाम किया और बड़ी खुशी के साथ यरूशलेम लौट गए। 53 वे लगातार मंदिर में परमेश्वर की बड़ाई करते रहे।
लूका 1:6 यह उन 237 जगहों में से एक जगह है, जहाँ परमेश्वर का नाम, ‘यहोवा’ इस अनुवाद के मुख्य पाठ में पाया जाता है। अतिरिक्त लेख 2 देखें।
लूका 1:17 यूनानी नफ्मा। अतिरिक्त लेख 7 देखें।
लूका 1:34 शाब्दिक, “मैं पुरुष को नहीं जानती।”
लूका 1:67 यूनानी नफ्मा। अतिरिक्त लेख 7 देखें।
लूका 1:69 शाब्दिक, “उद्धार करनेवाला सींग खड़ा किया है।”
लूका 2:1 यूनानी में “कैसर।”
लूका 2:1 या, “पूरी दुनिया।”
लूका 2:11 यानी “परमेश्वर का अभिषिक्त जन।”
लूका 2:27 यूनानी नफ्मा। अतिरिक्त लेख 7 देखें।
लूका 3:1 यानी, हेरोदेस अन्तिपास, हेरोदेस महान का बेटा।
लूका 3:1 शाब्दिक, “तित्रअर्खेस” यानी रोमी सम्राट के लिए प्रांत के चौथाई इलाके पर शासन करनेवाला।
लूका 3:3 बपतिस्मे का मतलब किसी को पानी में पूरी तरह डुबकी देना है। यह एक धार्मिक रस्म है।
लूका 3:12 कर-वसूलनेवालों को, लोग इज़्ज़त की नज़र से नहीं देखा करते थे।
लूका 3:16 मत्ती 3:11 फुटनोट देखें।
लूका 4:2 यूनानी में “दियाबोलोस,” जिसका मतलब है “निंदा करनेवाला।”
लूका 4:9 शाब्दिक, “परकोटे।”
लूका 4:16 मत्ती 12:1 फुटनोट देखें।
लूका 5:1 या, गलील झील।
लूका 5:21 शास्त्री, यीशु के ज़माने में परमेश्वर के कानून का मतलब समझानेवाले और इसके शिक्षक थे।
लूका 6:13 या, “भेजे गए।” यूनानी में “अपोस्टोलोस।”
लूका 7:2 या, “शतपति,” जिसकी कमान के नीचे सौ सैनिक होते थे।
लूका 7:23 या, “मुझ से ठोकर न खायी हो।”
लूका 7:35 शाब्दिक, “बच्चों।”
लूका 8:12 यूनानी में “दियाबोलोस,” जिसका मतलब है “निंदा करनेवाला।”
लूका 8:30 मत्ती 26:53 फुटनोट देखें।
लूका 8:55 यूनानी नफ्मा। अतिरिक्त लेख 7 देखें।
लूका 9:5 मत्ती 10:14 फुटनोट देखें।
लूका 9:23 अतिरिक्त लेख 6 देखें।
लूका 10:13 ये गैर-यहूदी शहर थे।
लूका 10:15 यूनानी में “हेडिज़।” अतिरिक्त लेख 8 देखें।
लूका 10:35 शाब्दिक, “दो दीनार।”
लूका 11:15 शाब्दिक, “बालज़बूल।”
लूका 11:20 शाब्दिक, “उँगली।”
लूका 11:33 या, “नापने की टोकरी।”
लूका 11:38 मत्ती 15:2 फुटनोट देखें।
लूका 12:5 यरूशलेम के बाहर कूड़ा-करकट जलाने की जगह। अतिरिक्त लेख 9 देखें।
लूका 12:6 शाब्दिक, “असारियन,” एक दीनार का 1/16वाँ हिस्सा।
लूका 12:25 शाब्दिक, “अपनी उम्र की लंबाई को हाथ-भर भी बढ़ा सके।”
लूका 12:33 शाब्दिक, “दया के दान।”
लूका 12:38 दूसरा पहर, रात के करीब नौ बजे से आधी रात तक होता था। मर 13:35 के फुटनोट देखें।
लूका 12:38 तीसरा पहर, आधी रात से लेकर रात के करीब तीन बजे तक होता था। मर 13:35 के फुटनोट देखें।
लूका 12:59 शाब्दिक, “आखिरी लेप्टान।”
लूका 13:4 शाब्दिक, “कर्ज़दार।”
लूका 13:21 शाब्दिक, ‘तीन सआ।’
लूका 13:31 लूका 3:1 फुटनोट देखें।
लूका 14:27 अतिरिक्त लेख 6 देखें।
लूका 15:1 कर-वसूलनेवालों को, लोग इज़्ज़त की नज़र से नहीं देखा करते थे।
लूका 15:8 शाब्दिक, “द्राख्मा,” जो 3.40 ग्राम चाँदी का यूनानी सिक्का था।
लूका 16:6 शाब्दिक, ‘सौ बत।’ एक बत करीब 22 लीटर के बराबर होता था।
लूका 16:7 शाब्दिक, ‘सौ कोर।’ एक कोर करीब 170 किलोग्राम के बराबर होता था, और ‘सौ कोर’ 17,000 किलोग्राम।
लूका 16:22 शाब्दिक, “गोद में या सीने के पास सबसे करीब।”
लूका 16:23 यूनानी में “हेडिज़।” अतिरिक्त लेख 8 देखें।
लूका 17:1 या, “ठोकर खिलाने की वजह।”
लूका 17:2 या “ठोकर खाने।”
लूका 17:27 मत्ती 24:38 फुटनोट देखें।
लूका 17:36 यह आयत कुछ बाइबल अनुवादों में पायी जाती है, मगर इसे वेस्टकॉट और हॉर्ट के यूनानी पाठ में शामिल नहीं किया गया है, जो सबसे प्राचीन यूनानी हस्तलिपियों के मुताबिक है।
लूका 18:10 लूका 15:1 फुटनोट देखें।
लूका 18:11 या, “शादी के बाहर यौन-संबंध रखनेवाले।”
लूका 18:30 या, “दुनिया की व्यवस्था।”
लूका 19:13 शाब्दिक, “दस मीना।” मीना यूनानी तौल की एक इकाई थी, जो 340 ग्राम चाँदी के बराबर थी। एक मीना करीब तीन महीने की मज़दूरी के बराबर था।
लूका 20:22 यूनानी में “कैसर।”
लूका 20:27 या, “पुनरुत्थान।”
लूका 20:34 या, “दुनिया की व्यवस्था।”
लूका 20:43 शाब्दिक, “चौकी न बना दूँ।”
लूका 21:2 शाब्दिक, “दो लेप्टा।” एक लेप्टा यहूदियों का सबसे छोटा सिक्का था, जो पीतल या ताँबे का हुआ करता था। दो लेप्टा एक दिन की मज़दूरी का 1/64वाँ हिस्सा था।
लूका 21:15 शाब्दिक, “मुँह।”
लूका 22:18 शाब्दिक, “अंगूर की बेल की उपज से बनी यह चीज़।”
लूका 22:41 या, “पत्थर को जितनी दूर फेंका जा सकता है, करीब उतनी दूर।”
लूका 22:42 मत्ती 26:39 फुटनोट देखें।
लूका 22:66 मत्ती 26:59 फुटनोट देखें।
लूका 23:2 यूनानी में “कैसर।”
लूका 23:17 यह आयत कुछ बाइबल अनुवादों में पायी जाती है, मगर इसे वेस्टकॉट और हॉर्ट के यूनानी पाठ में शामिल नहीं किया गया है, जो सबसे प्राचीन यूनानी हस्तलिपियों के मुताबिक है।
लूका 23:26 अतिरिक्त लेख 6 देखें।
लूका 23:34 दोहरे ब्रैकेट दिखाते हैं कि इनके अंदर की आयतें कुछ प्राचीन हस्तलिपियों में नहीं पायी जातीं, मगर ये दूसरी हस्तलिपियों में पायी जाती हैं।
लूका 23:35 शाब्दिक, “शासक।”
लूका 23:43 यानी, एक खूबसूरत बाग जैसी धरती, जहाँ कोई दुःख-तकलीफ न होगी।
लूका 23:44 मत्ती 20:5 पहला फुटनोट देखें।
लूका 23:44 मत्ती 20:5 दूसरा फुटनोट देखें।
लूका 23:46 यूनानी नफ्मा। अतिरिक्त लेख 7 देखें।
लूका 23:50 या, “यहूदी महासभा।”
लूका 23:54 मत्ती 27:62 फुटनोट देखें।
लूका 24:6 मत्ती 16:3 फुटनोट देखें।