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नयी दुनिया अनुवाद—मसीही यूनानी शास्त्र
मरकुस

मरकुस के मुताबिक खुशी का संदेश

1 यीशु मसीह के बारे में खुशखबरी यूँ शुरू होती है: 2 जैसा यशायाह भविष्यवक्‍ता की किताब में लिखा है: “(देख! मैं अपना दूत तेरे आगे भेज रहा हूँ, जो तेरे लिए राह तैयार करेगा।)* 3 सुनो! वीराने में कोई यह पुकार लगा रहा है: ‘यहोवा* का मार्ग तैयार करो, उसकी सड़कें सीधी करो,’ ” 4 इसी के मुताबिक, यूहन्‍ना बपतिस्मा देनेवाला वीरान इलाकों में आया। उसने यह प्रचार किया कि लोगों को बपतिस्मा* लेने की ज़रूरत है, जो इस बात की निशानी ठहरेगा कि उन्होंने अपने पापों के लिए पश्‍चाताप किया है और वे परमेश्‍वर से इनकी माफी पाना चाहते हैं। 5 इसलिए सारे यहूदिया प्रदेश और यरूशलेम शहर के सब रहनेवाले निकलकर यूहन्‍ना के पास जाने लगे। वे अपने पापों को खुलकर मान लेते थे और वह उन्हें यरदन नदी में बपतिस्मा देता था। 6 यूहन्‍ना ऊँट के बालों से बनी पोशाक पहनता था और चमड़े का कमरबंध बाँधा करता था। वह टिड्डियाँ और जंगली शहद खाता था। 7 वह यह प्रचार करता था: “मेरे बाद जो आनेवाला है वह मुझसे कहीं शक्‍तिशाली है। मैं इस लायक भी नहीं कि झुककर उसकी जूतियों के फीते खोलूँ। 8 मैं तो तुम्हें पानी से बपतिस्मा देता हूँ, मगर वह तुम्हें पवित्र शक्‍ति* से बपतिस्मा देगा।”*

9 उन्हीं दिनों यीशु, गलील प्रदेश के नासरत शहर से यूहन्‍ना के पास आया और उसने यरदन नदी में यूहन्‍ना से बपतिस्मा लिया। 10 जैसे ही यीशु पानी से ऊपर आया, उसने आकाश को खुलते और पवित्र शक्‍ति को कबूतर के रूप में अपने ऊपर उतरते देखा। 11 फिर स्वर्ग से परमेश्‍वर की आवाज़ सुनायी दी: “तू मेरा प्यारा बेटा है, मैंने तुझे मंज़ूर किया है।”

12 इसके बाद, पवित्र शक्‍ति ने यीशु को फौरन वीराने में जाने के लिए उकसाया। 13 यीशु चालीस दिन तक वीराने में ही रहा, जहाँ शैतान उसकी परीक्षा लेने के लिए उसे फुसलाने की कोशिश करता रहा। वह जंगली जानवरों के बीच रहा, और स्वर्गदूतों ने उसकी सेवा की।

14 फिर यूहन्‍ना के गिरफ्तार होने के बाद, यीशु गलील गया और परमेश्‍वर की खुशखबरी सुनाने लगा। 15 उसने यह प्रचार किया: “तय किया गया वक्‍त आ चुका है और परमेश्‍वर का राज पास आ गया है। इसलिए लोगो, पश्‍चाताप करो और इस खुशखबरी पर विश्‍वास करो।”

16 फिर यीशु ने गलील झील* के किनारे चलते-चलते शमौन और उसके भाई अन्द्रियास को देखा। वे दोनों मछुवारे थे और झील में अपने जाल डाल रहे थे। 17 तब यीशु ने उनसे कहा: “मेरे पीछे हो लो, और जिस तरह तुम मछलियाँ इकट्ठी करते हो, मैं तुम्हें इंसानों को इकट्ठा करनेवाले बनाऊँगा।” 18 तब वे फौरन अपने जाल छोड़कर उसके पीछे हो लिए। 19 थोड़ी और दूर चलने पर यीशु ने याकूब और यूहन्‍ना को देखा। ये दोनों भाई थे और जब्दी नाम के आदमी के बेटे थे। वे अपनी नाव में जाल ठीक कर रहे थे। 20 उसने बिना देर किए उन्हें बुलाया। तब वे अपने पिता जब्दी को मज़दूरों के साथ नाव में छोड़ यीशु के पीछे चल दिए। 21 इसके बाद ये लोग कफरनहूम शहर गए।

जैसे ही सब्त* का दिन आया, यीशु वहाँ के एक सभा-घर में गया और लोगों को सिखाने लगा। 22 लोग उसका सिखाने का तरीका देखकर दंग थे, क्योंकि वह उन्हें शास्त्रियों* की तरह नहीं, बल्कि अधिकार रखनेवाले की तरह सिखा रहा था। 23 उसी वक्‍त सभा-घर में एक आदमी था जिसमें एक दुष्ट स्वर्गदूत समाया था। उस दुष्ट दूत के वश में वह आदमी चिल्लाया: 24 “हे यीशु नासरी, हमें तुझसे क्या लेना-देना? क्या तू हमें नाश करने आया है? मैं जानता हूँ तू असल में कौन है, तू परमेश्‍वर का भेजा हुआ पवित्र जन है।” 25 मगर यीशु ने उसे डाँटते हुए कहा: “खामोश रह, और उसमें से बाहर निकल जा!” 26 तब उस दुष्ट स्वर्गदूत ने उस आदमी को मरोड़ा और फिर बड़ी ज़ोर से चीखता हुआ उसमें से बाहर निकल गया। 27 यह देखकर लोग इस कदर हैरत में पड़ गए कि आपस में कहने लगे, “यह क्या है? एक नयी तालीम! वह दुष्ट स्वर्गदूतों को भी अधिकार के साथ आज्ञा देता है, और वे उसकी मानते हैं।” 28 और यीशु की चर्चा बड़ी तेज़ी से गलील के आस-पास के सारे इलाके में चारों तरफ फैल गयी।

29 इसके बाद, वे फौरन सभा-घर से निकलकर शमौन और अन्द्रियास के घर गए। याकूब और यूहन्‍ना भी उनके साथ थे। 30 शमौन की सास बीमार थी और बुखार में पड़ी थी, और उन्होंने फौरन यीशु को उसके बारे में बताया। 31 यीशु उसके पास गया और उसका हाथ पकड़कर उसे उठाया। तब उसका बुखार उतर गया और वह उनकी सेवा करने लगी।

32 फिर शाम होने के बाद जब सूरज ढल चुका था तब लोग उन सभी को जो बीमार थे और जिनमें दुष्ट स्वर्गदूत समाए थे, यीशु के पास लाने लगे। 33 यहाँ तक कि पूरा शहर उनके दरवाज़े पर जमा हो गया। 34 तब उसने तरह-तरह की बीमारियों के शिकार बहुत-से लोगों को चंगा किया और कई दुष्ट स्वर्गदूतों को निकाला। मगर वह उन दुष्ट स्वर्गदूतों को बोलने नहीं देता था, क्योंकि वे जानते थे कि वह मसीह* है।

35 अगली सुबह, जब अंधेरा ही था, तब यीशु उठकर बाहर गया और किसी एकांत जगह की तरफ निकल पड़ा। वहाँ वह प्रार्थना करने लगा। 36 मगर, शमौन और उसके साथी उसकी खोज में निकल पड़े 37 और यीशु को पाकर उससे कहा: “सब लोग तुझे ढूँढ़ रहे हैं।” 38 मगर उसने उनसे कहा: “आओ हम कहीं और आस-पास के दूसरे कसबों में जाएँ, ताकि मैं वहाँ भी प्रचार कर सकूँ, क्योंकि मैं इसी वजह से निकला हूँ।” 39 यीशु वहाँ से गया और सारे गलील प्रदेश से होता हुआ उनके सभा-घरों में प्रचार करता और लोगों में समाए दुष्ट स्वर्गदूतों को निकालता रहा।

40 फिर उसके पास एक कोढ़ी भी आया। उसने यीशु के सामने घुटने टेककर गिड़गिड़ाते हुए कहा: “बस, अगर तू चाहे तो मुझे शुद्ध कर सकता है।” 41 उस कोढ़ी को देखकर यीशु तड़प उठा और उसने अपना हाथ बढ़ाकर उसे छूआ और कहा: “हाँ, मैं चाहता हूँ। शुद्ध हो जा।” 42 उसी पल उसका कोढ़ गायब हो गया और वह शुद्ध हो गया। 43 इसके बाद, यीशु ने उसे सख्त हिदायत दी और यह कहते हुए उसे फौरन विदा किया: 44 “देख, किसी से कुछ न कहना। मगर, जाकर खुद को याजक को दिखा और शुद्ध हो जाने के बारे में मूसा ने जो-जो हिदायत दी है उसके मुताबिक अपनी भेंट चढ़ा ताकि वे खुद इस बात के गवाह हों।” 45 लेकिन वहाँ से निकलते ही वह आदमी सबको बताने लगा। और उसने यह किस्सा इस कदर मशहूर कर दिया कि इसके बाद यीशु खुलेआम किसी शहर में दाखिल न हो सका। बल्कि वह एकांत इलाकों में ही रहा। फिर भी, लोग हर कहीं से उसके पास आते रहे।

2 मगर कुछ दिन बाद, यीशु फिर कफरनहूम में आया और चारों तरफ खबर फैल गयी कि वह घर आ गया है। 2 इसलिए वहाँ लोगों की भीड़ लग गयी, और वह घर लोगों से खचाखच भर गया। यहाँ तक कि दरवाज़े में घुसने तक की जगह न रही। यीशु उन्हें परमेश्‍वर के वचन सुनाने लगा। 3 तब लोग एक लकवे के मारे हुए को वहाँ लाए, जिसे चार आदमी उठाए हुए थे। 4 मगर भीड़ की वजह से वे उसे अंदर यीशु के नज़दीक न ले जा सके। इसलिए जहाँ यीशु बैठा था, उन्होंने ठीक उसके ऊपर घर की छत को खोदा और खोल दिया और लकवे के मारे हुए को उसकी खाट समेत नीचे उतार दिया। 5 जब यीशु ने उनका विश्‍वास देखा, तो उसने लकवे के मारे आदमी से कहा: “बेटे, तेरे पाप माफ किए गए।” 6 वहाँ कुछ शास्त्री बैठे थे जो अपने दिलों में कहने लगे: 7 “यह आदमी ऐसे क्यों बोल रहा है? यह परमेश्‍वर की तौहीन कर रहा है। परमेश्‍वर के सिवा और कौन पापों को माफ कर सकता है?” 8 मगर यीशु ने फौरन अपने मन में जान लिया कि वे अपने दिलों में क्या सोच रहे हैं। इसलिए यीशु ने उनसे कहा: “तुम क्यों अपने दिलों में ये बातें सोच रहे हो? 9 इस लकवे के मारे से क्या कहना ज़्यादा आसान है, ‘तेरे पाप माफ किए गए,’ या यह कहना कि ‘उठ, और अपनी खाट उठा और चल-फिर’? 10 मगर इसलिए कि तुम जान लो कि इंसान के बेटे को इस धरती पर पाप माफ करने का अधिकार दिया गया है,” . . . यीशु ने लकवे के मारे हुए से कहा: 11 “मैं तुझसे कहता हूँ, खड़ा हो, अपनी खाट उठा और अपने घर जा।” 12 तब वह आदमी उठ बैठा और फौरन अपनी खाट उठाकर सबके देखते बाहर निकल गया। यह देखकर सभी दंग रह गए और यह कहकर परमेश्‍वर की बड़ाई करने लगे: “हमने पहले ऐसा कभी नहीं देखा।”

13 फिर यीशु निकलकर झील के किनारे गया और लोगों की सारी भीड़ उसके पास आती रही और वह उन्हें सिखाने लगा। 14 फिर चलते-चलते उसने हलफई के बेटे लेवी को कर-वसूली के दफ्तर में बैठे देखा और उससे कहा: “मेरा चेला बन जा और मेरे पीछे हो ले।” और वह उठकर उसके पीछे हो लिया। 15 बाद में वह लेवी के घर खाना खाने के लिए मेज़ से टेक लगाए था और बहुत-से कर-वसूलनेवाले* और दूसरे ऐसे पापी, यीशु और उसके चेलों के साथ खाने बैठे थे। ये लोग बड़ी तादाद में वहाँ जमा थे। उनमें से कई ऐसे थे जो यीशु के चेले बन गए थे। 16 मगर जब फरीसी-दल के कुछ शास्त्रियों ने देखा कि वह पापियों और कर-वसूलनेवालों के साथ खाना खा रहा है, तो वे उसके चेलों से कहने लगे: “यह कर-वसूलनेवालों और पापियों के साथ खाता है?” 17 यह सुनकर यीशु ने उनसे कहा: “जो भले-चंगे हैं, उन्हें वैद्य की ज़रूरत नहीं होती, मगर बीमारों को होती है। मैं धर्मियों को नहीं, बल्कि पापियों को बुलाने आया हूँ।”

18 यूहन्‍ना के चेले और फरीसी उपवास किया करते थे। इसलिए वे यीशु के पास आए और उससे पूछा: “क्या बात है कि यूहन्‍ना के चेले और फरीसियों के चेले उपवास रखते हैं, मगर तेरे चेले उपवास नहीं रखते?” 19 तब यीशु ने उनसे कहा: “जब तक दूल्हे के दोस्तों के साथ दूल्हा है, क्या वे उपवास रख सकते हैं? नहीं रख सकते। जब तक दूल्हा उनके साथ रहता है, तब तक वे उपवास नहीं रख सकते। 20 मगर वे दिन आएँगे जब दूल्हे को उनसे जुदा कर दिया जाएगा, तब उस दिन वे उपवास करेंगे। 21 कोई भी पुराने कपड़े पर नए कपड़े से पैवंद काटकर नहीं लगाता। अगर लगाए, तो नए पैवंद की पूरी ताकत पुराने कपड़े को खींच लेती है और चीरा पहले से ज़्यादा बड़ा हो जाता है। 22 न ही कोई पुरानी मश्‍कों में नयी दाख-मदिरा भरता है। अगर वह भरे तो मदिरा मश्‍कों को फाड़ देगी और मदिरा के साथ-साथ मश्‍कें भी नष्ट हो जाएँगी। मगर लोग नयी मदिरा, नयी मश्‍कों में भरते हैं।”

23 ऐसा हुआ कि यीशु सब्त के दिन खेतों से होकर जा रहा था और उसके चेले चलते-चलते अनाज की बालें तोड़ने लगे। 24 इस पर फरीसी उससे कहने लगे: “यह देख! ये सब्त के दिन ऐसा काम क्यों कर रहे हैं जो कानून के खिलाफ है?” 25 मगर यीशु ने कहा: “क्या तुमने कभी नहीं पढ़ा कि जब दाविद और उसके आदमी भूखे थे और उनके पास खाने के लिए कुछ नहीं था, तब दाविद ने क्या किया? 26 क्या तुमने प्रधान याजक अबियातार के ब्यौरे में नहीं पढ़ा कि किस तरह दाविद परमेश्‍वर के भवन में गया और चढ़ावे की रोटियाँ खायीं और कुछ अपने साथियों को भी दीं, जबकि याजकों के सिवा किसी और का ये रोटियाँ खाना मूसा के कानून के खिलाफ था?” 27 यीशु ने आगे कहा: “सब्त का दिन इंसान के लिए बना है, न कि इंसान सब्त के दिन के लिए। 28 लेकिन, इंसान का बेटा सब्त के दिन का भी प्रभु है।”

3 एक बार फिर वह किसी सभा-घर में गया और वहाँ एक आदमी मौजूद था जिसका हाथ सूखा हुआ था। 2 इसलिए फरीसी यीशु पर नज़र जमाए हुए थे कि देखें वह उस आदमी को सब्त के दिन चंगा करता है या नहीं, ताकि वे उस पर इलज़ाम लगा सकें। 3 तब यीशु ने उस सूखे हाथवाले आदमी से कहा: “उठ और यहाँ बीच में खड़ा हो जा।” 4 इसके बाद उसने उनसे पूछा: “परमेश्‍वर के कानून के हिसाब से सब्त के दिन क्या करना सही है, किसी का भला करना या बुरा करना? किसी की जान बचाना या किसी की जान लेना?” मगर वे चुप्पी साधे रहे। 5 उनके दिलों की कठोरता देखकर यीशु बेहद दुःखी हुआ और उसने क्रोध से भरकर उन सब पर नज़र डाली और उस आदमी से कहा: “अपना हाथ आगे बढ़ा।” जब उसने हाथ बढ़ाया, तो उसका हाथ ठीक हो गया। 6 यह देखकर फरीसी बाहर निकल गए और उसी वक्‍त हेरोदियों के दल के साथ मिलकर यीशु के खिलाफ साज़िश करने लगे कि किस तरह उसका खात्मा किया जा सके।

7 मगर यीशु वहाँ से निकलकर अपने चेलों के साथ झील की तरफ चला गया। तब गलील और यहूदिया प्रदेश से भारी तादाद में लोग उसके पीछे हो लिए। 8 यहाँ तक कि उसके बड़े-बड़े कामों की चर्चा सुनकर यरूशलेम और इदूमिया और यरदन पार के इलाकों और सोर और सीदोन के आस-पास से भारी तादाद में लोग उसके पास आए। 9 उसने अपने चेलों से कहा कि एक छोटी नाव उसके लिये हर वक्‍त तैयार रखें, ताकि वह भीड़ से दब न जाए। 10 यीशु ने बहुतों को चंगा किया था, इसलिए जितनों को तरह-तरह की दर्दनाक बीमारियाँ थीं वे उसे छूने के लिए उस पर गिरे पड़ते थे। 11 वे लोग भी जिनमें दुष्ट स्वर्गदूत* समाए थे, जब कभी उसे देखते, तो उसके आगे गिर पड़ते और चिल्लाकर कहते: “तू परमेश्‍वर का बेटा है।” 12 मगर उसने कई बार उन्हें कड़ाई से हुक्म दिया कि यह ज़ाहिर न करें कि वह कौन है।

13 फिर यीशु एक पहाड़ पर चढ़ गया। इसके बाद, उसने उन चेलों को अपने पास बुलाया जिन्हें वह बुलाना चाहता था और वे उसके पास आए। 14 यीशु ने इनमें से बारह चेलों का एक दल बनाया और उन्हें “प्रेषित”* नाम भी दिया। यीशु ने यह इसलिए किया ताकि वे लगातार उसके साथ रहें और वह उन्हें प्रचार के लिए भेज सके। 15 और उनके पास दुष्ट स्वर्गदूतों को निकालने का अधिकार हो।

16 जिन बारहों का दल उसने बनाया वे थे, शमौन जिसे उसने पतरस नाम दिया, 17 जब्दी का बेटा याकूब और याकूब का भाई यूहन्‍ना (इन्हें यीशु ने बोअनरगिस नाम दिया, जिसका मतलब है गर्जन के बेटे), 18 अन्द्रियास, फिलिप्पुस, बरतुलमै, मत्ती, थोमा, हलफई का बेटा याकूब, तद्दी, जोशीला शमौन 19 और यहूदा इस्करियोती, जिसने बाद में उसे धोखे से पकड़वाया।

फिर यीशु एक घर में गया। 20 तब एक बार फिर लोगों की इतनी भीड़ जमा हो गयी कि यीशु और उसके चेले खाना तक न खा सके। 21 जब यीशु के घरवालों ने इन सब बातों की चर्चा सुनी, तो वे निकले ताकि उसे पकड़कर अपने साथ ले जाएँ, क्योंकि वे कह रहे थे: “उसका दिमाग फिर गया है।” 22 जो शास्त्री यरूशलेम से आए थे, वे कह रहे थे: “उसमें बालज़बूल है और वह, दुष्ट स्वर्गदूतों के राजा की मदद से, लोगों में समाए दुष्ट दूतों को निकालता है।” 23 तब यीशु ने उन्हें अपने पास बुलाया और मिसालें देकर उनसे कहा: “शैतान खुद शैतान को कैसे निकाल सकता है? 24 अगर किसी राज्य में फूट पड़ जाए, तो वह राज्य टिक नहीं सकता। 25 और अगर किसी घर में फूट पड़ जाए तो वह घर टिक नहीं सकता। 26 उसी तरह, अगर शैतान अपने ही खिलाफ उठ खड़ा हो और उसमें फूट पड़ जाए, तो वह टिक नहीं सकता, बल्कि उसका अंत हो जाएगा। 27 सच तो यह है कि कोई किसी बलवान के घर में घुसकर उसका सामान तब तक लूट नहीं सकता जब तक कि वह पहले उस बलवान को पकड़कर बाँध न दे, और इसके बाद वह उसका घर लूट सकेगा। 28 मैं तुमसे सच कहता हूँ कि इंसानों की सब बातें माफ की जाएँगी, चाहे उन्होंने जो भी पाप किए हों और निंदा करने के लिए चाहे जो भी निंदा की बातें कही हों। 29 मगर जो कोई पवित्र शक्‍ति के खिलाफ निंदा करेगा, उसे कभी माफ नहीं किया जाएगा, बल्कि वह ऐसे पाप का दोषी होगा जो कभी नहीं मिटेगा।” 30 यीशु ने यह इसलिए कहा, क्योंकि वे कह रहे थे: “उसमें एक दुष्ट स्वर्गदूत* है।”

31 फिर उसकी माँ और उसके भाई आए और उन्होंने बाहर खड़े होकर उसे बुलाने के लिए कहा। 32 क्योंकि भीड़ उसके चारों तरफ बैठी थी, इसलिए उन्होंने उससे कहा: “देख! तेरी माँ और तेरे भाई बाहर खड़े हैं और तुझसे मिलना चाहते हैं।” 33 मगर उसने जवाब दिया: “कौन है मेरी माँ और कौन हैं मेरे भाई?” 34 फिर उसने उन लोगों पर नज़र दौड़ाते हुए, जो उसके चारों तरफ घेरा बनाकर बैठे थे, यह कहा: “देखो, ये रहे मेरी माँ और मेरे भाई! 35 जो कोई परमेश्‍वर की मरज़ी पूरी करता है, वही है मेरा भाई, मेरी बहन, और मेरी माँ।”

4 एक बार फिर वह झील के किनारे सिखाने लगा। मगर वहाँ उसके पास लोगों की बड़ी भीड़ इकट्ठी हो गयी। इसलिए वह एक नाव पर चढ़ गया और झील में किनारे से थोड़ी दूरी पर नाव में बैठकर भीड़ को सिखाने लगा, लेकिन सारी भीड़ किनारे पर थी। 2 तब वह उन्हें मिसालें देकर कई बातें सिखाने लगा और उन्हें शिक्षा देते हुए यह कहा: 3 “ध्यान से सुनो। एक बीज बोनेवाला बीज बोने निकला। 4 जब वह बो रहा था, तो कुछ बीज रास्ते के किनारे गिरे और पंछी आकर उन्हें खा गए। 5 कुछ बीज ऐसी जगह गिरे जहाँ ज़्यादा मिट्टी नहीं थी, क्योंकि मिट्टी के नीचे चट्टान थी। इन बीजों के अंकुर फौरन दिखायी देने लगे, क्योंकि वहाँ मिट्टी गहरी नहीं थी। 6 लेकिन जब सूरज निकला, तो वे झुलस गए और जड़ न पकड़ने की वजह से सूख गए। 7 कुछ और बीज काँटों में गिरे और कंटीले पौधों ने बढ़कर उन्हें दबा लिया और वे फल नहीं लाए। 8 मगर कुछ और बीज बढ़िया मिट्टी पर गिरे, और वे उगे और बढ़े और उनमें फल आना शुरू हुआ। किसी में तीस गुना, किसी में साठ गुना और किसी में सौ गुना।” 9 यीशु ने आगे कहा: “कान लगाकर सुनो और मैं जो कह रहा हूँ उसे समझने की कोशिश करो।”

10 भीड़ के जाने के बाद जब यीशु अकेला था, तो जो चेले उसके पास थे वे उन बारहों के साथ उससे इन मिसालों के बारे में सवाल पूछने लगे। 11 यीशु ने उनसे कहा: “परमेश्‍वर के राज के पवित्र रहस्य की समझ तुम्हें दी गयी है, मगर बाहरवालों के लिए सब बातें मिसालें ही हैं, 12 ताकि वे देखें, और देखते हुए भी देख न पाएँ और सुनें और सुनते हुए भी इसके मायने न समझ पाएँ, न ही कभी पलटकर लौट आएँ और उन्हें माफी दी जाए।” 13 फिर उसने उनसे कहा: “तुम यह मिसाल नहीं समझते तो फिर बाकी सब मिसालों का मतलब कैसे समझोगे?

14 बोनेवाला वचन बोता है। 15 रास्ते के किनारे जहाँ वचन बोया गया: ये वे लोग हैं जो वचन सुनते हैं, मगर फौरन शैतान आता है और उनमें बोया गया वचन ले जाता है। 16 वैसे ही जो चट्टानी जगहों में बोए जाते हैं: ये वे लोग हैं जो वचन को सुनते ही उसे खुशी-खुशी स्वीकार करते हैं। 17 मगर उन लोगों में जड़ नहीं होती, इसलिए वे थोड़े वक्‍त के लिए कायम रहते हैं। फिर जैसे ही वचन की वजह से उन पर क्लेश आता है या ज़ुल्म होता है, तो वे वचन पर विश्‍वास करना छोड़ देते हैं। 18 कुछ और बीज हैं जो काँटों के बीच बोए गए हैं: ये वे लोग हैं जिन्होंने वचन सुना तो है, 19 मगर इस ज़माने* की ज़िंदगी की चिंताएँ और भ्रम में डालनेवाली पैसे की ताकत और बाकी सब चीज़ों की चाहतें उनमें समा जाती हैं और वचन को दबा देती हैं और वे फल नहीं लाते। 20 आखिर में, जो बढ़िया मिट्टी में बोए गए हैं: ये वे लोग हैं जो वचन को सुनते हैं और इसे खुशी-खुशी मानते हैं और तीस गुना, साठ गुना और सौ गुना फल लाते हैं।”

21 फिर यीशु ने उनसे आगे कहा: “क्या दीपक जलाने के बाद कोई उसे टोकरी* से ढककर या पलंग के नीचे रखता है? क्या उसे लाकर एक दीवट के ऊपर नहीं रखा जाता? 22 ऐसा कुछ भी नहीं जो छिपाया गया हो और बेनकाब न किया जाए। ऐसी कोई भी चीज़ नहीं जिसे बड़ी सावधानी से छिपाया गया हो और जो निकलकर खुले में न आए। 23 कान लगाकर सुनो और मैं जो कह रहा हूँ उसे समझने की कोशिश करो।”

24 फिर यीशु ने उनसे यह भी कहा: “तुम जो सुनते हो, उस पर ध्यान दो। जिस नाप से तुम नापते हो, उसी से तुम्हारे लिए भी नापा जाएगा, हाँ, तुम्हें उससे भी ज़्यादा दिया जाएगा। 25 क्योंकि जिसके पास है उसे और दिया जाएगा। लेकिन जिसके पास नहीं है, उससे वह भी ले लिया जाएगा जो उसके पास है।”

26 फिर उसने आगे कहा: “परमेश्‍वर का राज ऐसा है जैसे कोई आदमी ज़मीन पर बीज छितराता है। 27 वह आदमी रात होने पर सो जाता है और सुबह होने पर उठ जाता है। इस दौरान, जैसे-जैसे दिन बीतते हैं, बीज में अंकुर फूटते हैं और वह अपने-आप बढ़ता है लेकिन कैसे यह वह आदमी नहीं जानता।  28 ज़मीन अपने-आप धीरे-धीरे फल लाती है, पहले घास जैसा अंकुर निकलता है, फिर डंठल और आखिरकार तैयार दाने की बाल। 29 मगर जैसे ही दाना पक जाता है, वह आदमी हँसिया चलाता है, क्योंकि कटाई का वक्‍त आ गया है।”

30 यीशु ने उनसे आगे कहा: “हम परमेश्‍वर के राज को किसके जैसा बताएँ, या क्या मिसाल देकर उसे समझाएँ? 31 वह राई के दाने की तरह है, जो ज़मीन में बोए जाने के वक्‍त धरती के सारे बीजों में सबसे छोटा था— 32 लेकिन बोए जाने के बाद जब वह उगता है, तो सभी साग-सब्ज़ियों से बड़ा हो जाता है। उसमें ऐसी बड़ी-बड़ी डालियाँ लगती हैं कि उसकी छाँव में आकाश के पंछी आकर बसेरा करते हैं।”

33 तो इस तरह की कई मिसालें देकर, जितना वे समझ सकते थे, उसके मुताबिक यीशु उनको परमेश्‍वर का वचन सुनाया करता था। 34 वाकई, वह बगैर मिसाल के लोगों से बात नहीं करता था, मगर अपने चेलों को अकेले में उन सब बातों का मतलब समझाता था।

35 उस दिन, जब शाम ढल गयी तो यीशु ने चेलों से कहा: “आओ हम उस पार चलें।” 36 इसलिए, भीड़ को विदा करने के बाद, वे उसे नाव में जिस तरह वह था, उसी तरह ले चले और वहाँ उसके साथ दूसरी नौकाएँ भी थीं। 37 अब एक ज़ोरदार आँधी चलने लगी और लहरें नाव से इतनी ज़ोर से टकराने लगीं कि नाव पानी से पूरी तरह भरने पर थी। 38 मगर यीशु नाव के पिछले हिस्से में, एक बड़े तकिए पर सिर रखकर सो रहा था। इसलिए चेलों ने उसे जगाया और उससे कहा: “गुरु, क्या तुझे फिक्र नहीं कि हम नाश होनेवाले हैं?” 39 यह सुनकर वह उठा और उसने आँधी को डाँटा और लहरों से कहा: “श्‍श्‍श! खामोश हो जाओ!” तब आँधी थम गयी और बड़ा सन्‍नाटा छा गया। 40 फिर यीशु ने उनसे कहा: “तुम्हारे दिल क्यों काँप रहे हैं? क्या अब तक तुममें ज़रा भी विश्‍वास नहीं?” 41 मगर उनमें अजीब-सा डर समा गया और वे एक-दूसरे से कहने लगे: “आखिर यह कौन है कि आँधी और समुद्र तक इसका हुक्म मानते हैं?”

5 फिर वे झील के उस पार गिरासेनियों के इलाके में पहुँचे। 2 जैसे ही यीशु नाव से उतरा, तो एक आदमी जो एक दुष्ट स्वर्गदूत के वश में था, कब्रों के बीच से निकलकर उसके सामने आया। 3 यह आदमी कब्रों के बीच भटकता फिरता था। कोई भी उसे बाँधकर रखने में कामयाब नहीं हो सका था, यहाँ तक कि ज़ंजीरों से भी नहीं, 4 क्योंकि उसे कई बार बेड़ियों और ज़ंजीरों से बाँधा गया था, मगर वह ज़ंजीरों को तोड़ डालता और बेड़ियों के टुकड़े-टुकड़े कर देता था। और किसी में इतनी ताकत नहीं थी कि उसे काबू में कर सके। 5 वह रात-दिन कब्रों और पहाड़ों के बीच चिल्लाता रहता और पत्थरों से खुद को ज़ख्मी करता था। 6 लेकिन जैसे ही दूर से उसकी नज़र यीशु पर पड़ी, तो वह भागकर उसके पास गया और झुककर उसे प्रणाम किया। 7 फिर ज़ोर से चिल्लाने के बाद उसने कहा: “हे यीशु, परम-प्रधान परमेश्‍वर के बेटे, मेरा तुझसे क्या लेना-देना? मैं तुझे परमेश्‍वर की शपथ देता हूँ, मुझे मत तड़पा,” 8 यह उसने इसलिए कहा क्योंकि यीशु उससे कह रहा था: “हे दुष्ट स्वर्गदूत, इस आदमी से बाहर निकल जा।” 9 मगर फिर यीशु उससे पूछने लगा: “तेरा नाम क्या है?” उसने कहा: “मेरा नाम पलटन* है, क्योंकि हम बहुत सारे हैं।” 10 और उसने बार-बार यीशु से बिनती की कि वह उसे उस इलाके से बाहर न भेजे।

11 उस पहाड़ पर सुअरों का एक बड़ा झुंड चर रहा था। 12 इसलिए दुष्ट स्वर्गदूतों ने उससे यह बिनती की: “हमें उन सुअरों में भेज दे, ताकि हम उनमें समा जाएँ।” 13 और उसने उनको इजाज़त दे दी। इस पर वे दुष्ट स्वर्गदूत बाहर निकले और उन सुअरों में समा गए और करीब दो हज़ार सुअरों का यह पूरा झुंड बड़ी तेज़ी से टीले की तरफ दौड़ा और सारे सुअर एक-के-पीछे-एक झील में जा गिरे और डूब मरे। 14 मगर उनके चरवाहे वहाँ से भाग खड़े हुए और शहर और देहात में जाकर इसकी खबर दी। और लोग देखने आए कि वहाँ क्या हुआ था। 15 वे यीशु के पास आए और उन्होंने देखा कि वह आदमी जिसमें दुष्ट स्वर्गदूत समाया था, वहाँ बैठा हुआ है। वह कपड़े पहने है और बिलकुल ठीक दिमागी हालत में है। यह वही आदमी था जिसमें पहले पलटन समायी हुई थी। और लोग बहुत डर गए। 16 जिन्होंने यह सब कुछ अपनी आँखों से देखा था, उन्होंने लोगों को बताया कि जिस आदमी में दुष्ट स्वर्गदूत समाया था उसके साथ यह सब कैसे हुआ और सुअरों का क्या हाल हुआ। 17 इसलिए वे यीशु से बिनती करने लगे कि वह उनके ज़िलों से दूर चला जाए।

18 जब यीशु नाव पर चढ़ रहा था, तब वह आदमी जिसमें पहले दुष्ट स्वर्गदूत समाया था, उससे बिनती करने लगा कि यीशु उसे अपने संग आने दे। 19 मगर यीशु ने उसे आने न दिया बल्कि उससे कहा: “अपने घर, अपने रिश्‍तेदारों के पास जा और यहोवा ने जो कुछ तेरे लिए किया है और जो दया तुझ पर दिखायी है, वे सारी बातें उन्हें बता।” 20 तब वह आदमी वहाँ से चला गया और दिकापुलिस* में उन सारे कामों का ऐलान करने लगा, जो यीशु ने उसके लिए किए थे और सब लोग ताज्जुब करने लगे।

21 जब यीशु नाव से इस पार लौट आया, तब एक बड़ी भीड़ उसके पास जमा हो गयी; और वह झील के किनारे था। 22 वहाँ सभा-घर का एक अधिकारी आया, जिसका नाम याइर था। जैसे ही उसने यीशु को देखा तो उसके पैरों पर गिर पड़ा 23 और उससे बार-बार यह मिन्‍नत करने लगा: “मेरी बच्ची की हालत बहुत खराब है। मेहरबानी कर और मेरे साथ चल और उस पर अपने हाथ रख ताकि वह अच्छी हो जाए और जीती रहे।” 24 इस पर यीशु उसके साथ चल दिया। एक बड़ी भीड़ उसके पीछे थी और लोग उस पर गिरे पड़ते थे।

25 उस भीड़ में एक स्त्री थी जिसे बारह साल से खून बहने की बीमारी थी। 26 उसने कई वैद्यों के हाथों इलाज करवा-करवाकर बहुत दुःख उठाया था और उसके पास जो कुछ था, वह सब खर्च करने के बाद भी उसे कोई फायदा नहीं हुआ, उलटा उसकी हालत पहले से ज़्यादा बिगड़ गयी थी। 27 जब उसने यीशु के कामों की चर्चा सुनी, तो वह भीड़ में पीछे से आयी और उसके कपड़े को छूआ, 28 क्योंकि वह कहती थी: “अगर मैं उसके कपड़े को ही छू लूँगी, तो अच्छी हो जाऊँगी।” 29 उसी घड़ी उसका खून बहना बंद हो गया और उसने अपने शरीर में महसूस किया कि उसकी दर्दनाक बीमारी ठीक हो गयी है।

30 उसी घड़ी यीशु ने भी खुद में जान लिया कि उसके अंदर से शक्‍ति निकली है और उसने भीड़ में पीछे मुड़कर कहा: “मेरे कपड़ों को किसने छूआ?” 31 मगर उसके चेले उससे कहने लगे: “तू देख रहा है कि भीड़ तुझे कैसे दबाए जा रही है, फिर भी तू कह रहा है, ‘मुझे किसने छूआ?’” 32 लेकिन यीशु की आँखें उस स्त्री को ढूँढ़ रही थीं जिसने ऐसा किया था। 33 मगर वह स्त्री, यह जानते हुए कि उसके साथ क्या हुआ है, डरती और काँपती हुई आयी और उसके आगे गिर पड़ी और उसे पूरा हाल सच-सच बता दिया। 34 यीशु ने उससे कहा: “बेटी, तेरे विश्‍वास ने तुझे ठीक किया है। तंदुरुस्त रह और यह दर्दनाक बीमारी तुझे फिर कभी न हो।”

35 वह जब बोल ही रहा था, तो सभा-घर के उस अधिकारी के घर से कुछ आदमी आए और कहने लगे: “तेरी बेटी मर गयी! अब गुरु को और क्यों परेशान करें?” 36 मगर जब उनकी बातें यीशु के कानों में पड़ीं, तो उसने सभा-घर के अधिकारी से कहा: “मत डर, बस विश्‍वास रख।” 37 फिर उसने पतरस, याकूब और उसके भाई यूहन्‍ना को छोड़ किसी और को अपने पीछे आने नहीं दिया।

38 तब वे सभा-घर के अधिकारी के घर पहुँचे और उसने देखा कि वहाँ काफी हो-हल्ला मचा है। लोग रो रहे थे और ज़ोर-ज़ोर से मातम कर रहे थे। 39 यीशु ने अंदर कदम रखने के बाद उनसे कहा: “तुम क्यों हो-हल्ला मचाते और रोते हो? लड़की मरी नहीं, बल्कि सो रही है।” 40 इस पर वे उसकी खिल्ली उड़ाते हुए उस पर हँसने लगे। मगर, उन सबको बाहर भेजने के बाद यीशु लड़की के माँ-बाप और अपने साथियों को लेकर अंदर गया जहाँ वह लड़की थी। 41 फिर यीशु ने लड़की का हाथ अपने हाथ में लेकर कहा: “तलीता, कूमी,” जिसका मतलब है: “बच्ची, मैं तुझसे कहता हूँ, उठ!” 42 उसी वक्‍त वह लड़की उठ बैठी और चलने-फिरने लगी। वह बारह साल की थी। यह देखकर उनकी खुशी का ठिकाना न रहा। 43 मगर यीशु ने उन्हें बार-बार आज्ञा दी कि वे किसी को भी यह बात न बताएँ और कहा कि लड़की को कुछ खाने के लिए दिया जाए।

6 फिर वहाँ से रवाना होकर यीशु अपने इलाके में आया जहाँ वह पला-बढ़ा था और उसके चेले उसके साथ हो लिए। 2 जब सब्त का दिन आया, तो वह सभा-घर में सिखाने लगा। उसकी बात सुननेवाले ज़्यादातर लोग हैरान थे। उन्होंने कहा: “इस आदमी को ये बातें कहाँ से आ गयीं? और भला ऐसी बुद्धि इसने कहाँ से पायी और ऐसे शक्‍तिशाली काम इसके हाथों से कैसे हो रहे हैं? 3 यह तो वही बढ़ई है जो मरियम का बेटा और याकूब, यूसुफ, यहूदा और शमौन का भाई है, है कि नहीं? और इसकी बहनें यहाँ हमारे बीच हैं, हैं कि नहीं?” इसलिए उन्होंने उस पर यकीन नहीं किया। 4 मगर यीशु उनसे कहने लगा: “एक भविष्यवक्‍ता का अपने इलाके, अपने रिश्‍तेदारों और अपने घर को छोड़ कहीं और अनादर नहीं होता।” 5 इसलिए वह चंद बीमारों पर हाथ रखकर उन्हें चंगा करने के सिवा वहाँ और कोई शक्‍तिशाली काम नहीं कर पाया। 6 बेशक, उनके विश्‍वास की कमी देखकर उसे ताज्जुब हुआ। फिर वह उस इलाके के गाँव-गाँव में घूमकर सिखाने लगा।

7 फिर यीशु ने उन बारहों को बुलाया और उन्हें दो-दो की जोड़ी में भेजने के काम की शुरूआत की। उसने उनको दुष्ट स्वर्गदूतों पर अधिकार दिया। 8 साथ ही, उसने ये हिदायतें दीं कि वे सफर के लिए एक लाठी को छोड़ और कुछ न लें, न रोटी, न खाने की पोटली, न अपने कमरबंध में ताँबे के पैसे, 9 और दो-दो कुरते भी न लें,* बल्कि जूतियाँ कस लें। 10 यीशु ने उनसे आगे कहा: “जहाँ कहीं तुम किसी घर में दाखिल होते हो, वहाँ तब तक ठहरो जब तक कि उस इलाके को न छोड़ो। 11 जिस इलाके में तुम्हें स्वीकार न किया जाए, और तुम्हारी न सुनी जाए, वहाँ से बाहर निकलते वक्‍त अपने तलवों की धूल झाड़ देना,* ताकि उन पर गवाही हो।” 12 तब वे निकल पड़े और उन्होंने प्रचार किया ताकि लोग पश्‍चाताप कर सकें। 13 वे कई दुष्ट स्वर्गदूतों को निकालते और कई बीमारों पर तेल मलते और उन्हें चंगा करते थे।

14 यह बात राजा हेरोदेस* के कानों में पड़ी, क्योंकि यीशु का नाम मशहूर हो गया था। लोग कहते थे: “यूहन्‍ना बपतिस्मा देनेवाले को मरे हुओं में से जी उठाया गया है। इसीलिए उससे ये शक्‍तिशाली काम हो रहे हैं।” 15 मगर दूसरे कहते थे: “यह एलिय्याह है।” कुछ और लोग कहते थे: “यह भविष्यवक्‍ताओं जैसा कोई भविष्यवक्‍ता है।” 16 मगर जब हेरोदेस ने यह बात सुनी, तो वह कहने लगा: “यूहन्‍ना जिसका सिर मैंने कटवाया था, वही जी उठा है।” 17 हेरोदेस ने अपने भाई फिलिप्पुस की पत्नी हेरोदियास से खुद शादी कर ली थी। उसी की वजह से हेरोदेस ने यूहन्‍ना को गिरफ्तार कर लिया था, और उसे ज़ंजीरों में बाँधकर कैदखाने में डलवा दिया था। 18 इसकी वजह यह थी कि यूहन्‍ना ने हेरोदेस से बार-बार कहा था: “तू ने जो अपने भाई की पत्नी को अपनी बना लिया है, यह सही नहीं किया।” 19 इसलिए हेरोदियास यूहन्‍ना के खिलाफ मन में बैर पाले हुए थी। वह उसे मार डालना चाहती थी, मगर ऐसा न कर सकी थी। 20 क्योंकि हेरोदेस जानता था कि यूहन्‍ना नेक और पवित्र इंसान है। इसलिए वह उससे डरता था और उसे बचाए रखता था। वह यूहन्‍ना की बातें सुनने के बाद बड़ी उलझन में पड़ जाता था कि क्या करे। फिर भी वह खुशी से उसकी सुना करता था।

21 मगर एक दिन वह मौका आया जिसकी हेरोदियास को तलाश थी। उस दिन हेरोदेस का जन्मदिन था और उसने शाम की बड़ी दावत रखी जिसमें उसने बड़े-बड़े अधिकारियों और सेनापतियों और गलील के जाने-माने लोगों को बुलाया। 22 तब इसी हेरोदियास की बेटी वहाँ आयी और उसने नाचकर हेरोदेस के साथ-साथ उसकी दावत में मौजूद लोगों का दिल खुश किया। तब राजा ने उस लड़की से कहा: “तू जो चाहे मुझसे माँग ले, मैं तुझे दे दूँगा।” 23 हाँ, राजा ने कसम खायी: “तू जो चाहे माँग ले, मैं अपना आधा राज्य तक तुझे दे दूँगा।” 24 तब लड़की ने बाहर जाकर अपनी माँ से पूछा: “मैं क्या माँगूं?” उसकी माँ ने कहा: “यूहन्‍ना बपतिस्मा देनेवाले का सिर।” 25 उसी वक्‍त वह लड़की बड़ी तेज़ी से अंदर राजा के पास गयी और उसने यह माँग की: “मैं चाहती हूँ कि तू अभी, इसी वक्‍त मुझे एक थाल में यूहन्‍ना बपतिस्मा देनेवाले का सिर ला दे।” 26 यह सुनकर राजा बेहद दुःखी हुआ, फिर भी उसने जो कसमें खायी थीं, और वहाँ जो लोग बैठे थे, उनकी वजह से उसे टालना न चाहा। 27 इसलिए राजा ने फौरन एक अंगरक्षक भेजा और उसे यूहन्‍ना का सिर लाने का हुक्म दिया। वह गया और कैदखाने में जाकर उसका सिर काट डाला। 28 वह उसका सिर एक थाल में ले आया और लड़की को दिया, और लड़की ने उसे ले जाकर अपनी माँ को दिया। 29 जब यूहन्‍ना के चेलों को इसकी खबर मिली, तो वे आए और उसका शव ले गए और एक कब्र में रख दिया।

30 यीशु के सभी प्रेषित उसके सामने हाज़िर हुए और उन्होंने लोगों के बीच जो-जो काम किए थे और उन्हें जो-जो सिखाया था उन सबका ब्यौरा उसे दिया। 31 तब यीशु ने उनसे कहा: “आओ, तुम सब अलग किसी एकांत जगह में चलकर थोड़ा आराम कर लो।” क्योंकि वहाँ बहुत लोग आ-जा रहे थे और उन्हें खाने तक की फुरसत नहीं मिली थी। 32 इसलिए वे एक नाव पर चढ़कर किसी एकांत जगह के लिए निकल पड़े। 33 मगर लोगों ने उन्हें जाते देख लिया और बहुतों को इस बात का पता चल गया। तब सब शहरों से लोग पैदल दौड़कर उनसे पहले ही उस जगह जा पहुँचे। 34 जब यीशु नाव से उतरा तो उसने एक बड़ी भीड़ देखी और उन्हें देखकर वह तड़प उठा, क्योंकि वे उन भेड़ों की तरह थे जिनका कोई चरवाहा न हो। और वह उन्हें बहुत-सी बातें सिखाने लगा।

35 अब काफी वक्‍त बीत चुका था और उसके चेलों ने उसके पास आकर कहा: “यह जगह सुनसान है और काफी देर हो चुकी है। 36 इसलिए इन्हें विदा कर, ताकि वे आस-पास के देहातों और गाँवों में जाकर अपने खाने के लिए कुछ खरीद लें।” 37 जवाब में यीशु ने उनसे कहा: “तुम्हीं उन्हें कुछ खाने को दो।” यह सुनकर चेलों ने कहा: “क्या हम दो सौ दीनार* की रोटियाँ खरीदें और इन्हें खाने को दें?” 38 यीशु ने उनसे कहा: “जाओ देखो, तुम्हारे पास कितनी रोटियाँ हैं।” पता लगाकर उन्होंने कहा: “पाँच, और दो मछलियाँ भी हैं।” 39 फिर यीशु ने सब लोगों से कहा कि वे अलग-अलग टोलियाँ बनाकर हरी घास पर आराम से बैठ जाएँ। 40 वे सौ-सौ और पचास-पचास की टोलियों में बैठ गए। 41 अब यीशु ने उन पाँच रोटियों और दो मछलियों को लेकर आकाश की तरफ देखा और प्रार्थना में धन्यवाद दिया और रोटियाँ तोड़कर चेलों को देने लगा, ताकि वे उन्हें लोगों में बाँटें। उसने वे दो मछलियाँ भी सब के लिए बाँट दीं। 42 तब सब लोगों ने भरपेट खाया। 43 और उन्होंने बची हुई रोटियों के टुकड़े उठाए जिनसे बारह टोकरियाँ भर गयीं। इनके अलावा मछलियाँ भी थीं। 44 और रोटियाँ खानेवालों में आदमियों की गिनती पाँच हज़ार थी।

45 फिर यीशु ने बिना देर किए अपने चेलों को जबरन भेजा कि वे नाव पर चढ़कर, उससे पहले उस पार बैतसैदा की तरफ चले जाएँ, जबकि वह खुद भीड़ को विदा करने में लगा था। 46 मगर उनको अलविदा कहने के बाद, वह प्रार्थना करने के लिए एक पहाड़ पर चढ़ गया। 47 अब शाम ढल चुकी थी और नाव झील के बीच थी, मगर वह खुद अकेला पहाड़ पर था। 48 जब उसने देखा कि लहरों के थपेड़े नाव का आगे बढ़ना मुश्‍किल कर रहे हैं और वे नाव खेते-खेते बेहाल हो रहे हैं, क्योंकि हवा का रुख उनके खिलाफ था, तो रात के करीब चौथे पहर* वह झील पर चलते हुए उनके पास आया। मगर ऐसा लग रहा था जैसे वह उनसे आगे निकल जाना चाहता है। 49 जब चेलों की नज़र उस पर पड़ी कि वह पानी पर चल रहा है, तो उन्होंने सोचा: “हमें ज़रूर कोई वहम हो रहा है!” और वे ज़ोर से चिल्ला उठे। 50 क्योंकि वह उन सबको नज़र आ रहा था और वे घबरा गए थे। मगर उसने फौरन उनसे बात की और कहा: “हिम्मत रखो, मैं ही हूँ। डरो मत।” 51 फिर यीशु भी नाव पर चढ़कर उनके साथ हो लिया, और हवा थम गयी। वे मन-ही-मन बेहद हैरान थे, 52 क्योंकि रोटियों का चमत्कार देखने के बाद भी वे यीशु के बारे में अब तक नहीं समझ सके थे। उनके मन अभी-भी समझने में मंद थे।

53 जब वे इस पार किनारे पर पहुँचे, तो गन्‍नेसरत आए और वहीं पास में नाव का लंगर डाला। 54 मगर जैसे ही उन्होंने नाव से बाहर कदम रखा, लोगों ने यीशु को पहचान लिया। 55 और वे उस सारे इलाके में यहाँ-वहाँ दौड़े गए और बीमारों को खाटों पर डालकर उन जगहों पर ले गए, जहाँ-जहाँ उन्हें यीशु के होने की खबर मिलती थी। 56 यीशु जिन-जिन गाँवों या शहरों या देहातों में जाता था, लोग वहाँ के बाज़ारों में अपने बीमारों को रख देते थे और उससे बिनती करते थे कि वह उन्हें अपने कपड़े की झालर को ही छू लेने दे। और जितनों ने उसे छूआ, वे सभी चंगे हो गए।

7 अब फरीसी और कुछ शास्त्री जो यरूशलेम से वहाँ आए थे, उसके पास जमा हुए। 2 जब उन्होंने देखा कि यीशु के कुछ चेले दूषित हाथों से, जिसका मतलब था, बिना हाथ धोए खाना खाते हैं* . . . 3 दरअसल फरीसी और सारे यहूदी उन परंपराओं को सख्ती से मानते थे जो उनके बुज़ुर्गों ने ठहरायी थीं। इसलिए वे तब तक खाना नहीं खाते जब तक कि पहले कोहनी तक अपने हाथ न धो लें। 4 और बाज़ार से लौटने पर वे तब तक नहीं खाते जब तक कि पहले पानी छिड़ककर खुद को शुद्ध न कर लें। ऐसी कई और परंपराएँ उन्हें सख्ती से पालन करने के लिए मिली हैं। जैसे प्यालों और सुराहियों और ताँबे के बरतनों को पानी में डुबकी देकर धोना . . . 5 इन फरीसियों और शास्त्रियों ने यीशु से पूछा: “आखिर क्यों तेरे चेले हमारे बुज़ुर्गों की ठहरायी परंपराओं का पालन नहीं करते और दूषित हाथों से खाना खाते हैं?” 6 यीशु ने उनसे कहा: “यशायाह ने तुम कपटियों के बारे में बिलकुल सही भविष्यवाणी की थी, जैसा लिखा है: ‘ये लोग होंठों से तो मेरा आदर करते हैं, मगर इनके दिल मुझसे कोसों दूर रहते हैं। 7 ये बेकार ही मेरी उपासना करते हैं, क्योंकि ये इंसानों की आज्ञाओं को परमेश्‍वर की शिक्षाएँ बताकर सिखाते हैं।’ 8 इंसानों की परंपराओं को पकड़े रहने के लिए, तुम परमेश्‍वर की आज्ञाओं को छोड़ देते हो।”

9 उसने आगे कहा: “तुम अपनी परंपरा को बनाए रखने के लिए, कितनी चतुराई से परमेश्‍वर की आज्ञा को ताक पर रख देते हो। 10 मिसाल के लिए, मूसा ने कहा था: ‘अपने पिता और अपनी माँ का आदर कर,’ और ‘जो कोई अपने पिता या अपनी माँ को गाली दे वह मार डाला जाए।’ 11 मगर तुम लोग कहते हो: ‘अगर एक आदमी अपने पिता या अपनी माँ से कहता है: “मेरे पास जो कुछ है जिससे तुझे फायदा पहुँच सकता था वह कुरबान है, (इसका मतलब है कि वह चीज़ परमेश्‍वर को समर्पित एक भेंट है)”’— 12 इसलिए तुम ऐसे आदमी को अपने पिता या अपनी माँ के लिए कुछ भी नहीं करने देते। 13 इस तरह तुम अपनी ठहरायी हुई परंपरा की वजह से परमेश्‍वर के वचन को रद्द कर देते हो। और ऐसे कई काम तुम करते हो।” 14 फिर उसने भीड़ को दोबारा अपने पास बुलाया और वह उनसे कहने लगा: “तुम सब मेरी बात ध्यान से सुनो और इसके मायने समझो। 15 ऐसी कोई चीज़ नहीं जो बाहर से इंसान के अंदर जाकर उसे दूषित कर सके। मगर जो चीज़ें इंसान के अंदर से निकलती हैं, वही उसे दूषित करती हैं।” 16* ——

17 जब वह भीड़ से दूर एक घर में गया, तो उसके चेले उस मिसाल के बारे में उससे सवाल पूछने लगे। 18 तब उसने चेलों से कहा: “क्या तुम भी उनकी तरह समझ नहीं रखते? क्या तुम नहीं जानते कि बाहर की कोई भी चीज़ जो इंसान के अंदर जाती है, उसे दूषित नहीं कर सकती? 19 क्योंकि वह उसके दिल में नहीं बल्कि उसकी आँतों में जाती है, और फिर मल-कुंड में निकल जाती है?” इस तरह उसने खाने की सभी चीज़ों को शुद्ध ठहराया। 20 इसके बाद उसने कहा: “इंसान के अंदर से जो निकलता है, वही उसे दूषित करता है। 21 क्योंकि इंसानों के अंदर से ही, उनके दिलों से ही घातक विचार निकलते हैं, जैसे: व्यभिचार, चोरी, कत्ल, 22 शादी के बाहर यौन-संबंध, लालच, दुष्टता के काम, छल, बदचलनी, ईर्ष्या से भरी आँखें, निंदा, घमंड, कठोरता। 23 ये सभी दुष्ट बातें इंसान के अंदर से निकलती हैं और उसे दूषित करती हैं।”

24 वहाँ से उठकर यीशु सोर और सीदोन के इलाकों में गया। और वह एक घर में गया और नहीं चाहता था कि कोई उसके बारे में जाने। फिर भी, वह लोगों की नज़र से छिप न सका। 25 वहाँ एक स्त्री थी, जिसकी छोटी बच्ची में दुष्ट स्वर्गदूत था। वह स्त्री यीशु की खबर सुनकर फौरन आयी और उसके पैरों पर गिर पड़ी। 26 यह स्त्री यूनानी थी और सीरिया प्रांत के फिनीके इलाके की रहनेवाली थी। वह उससे बिनती करती रही कि मेरी बेटी में से दुष्ट स्वर्गदूत निकाल दे। 27 मगर यीशु उससे यह कहने लगा: “पहले बच्चों को जी भर के खा लेने दो, क्योंकि बच्चों की रोटी लेकर पिल्लों के आगे फेंकना सही नहीं है।” 28 मगर जवाब में स्त्री ने उससे कहा: “सही कहा साहब, मगर फिर भी पिल्ले बच्चों की मेज़ से गिरे टुकड़े तो खाते हैं।” 29 यह सुनकर यीशु ने उस स्त्री से कहा: “क्योंकि तू ने ऐसी बात कही है, इसलिए जा, दुष्ट स्वर्गदूत तेरी बेटी में से निकल चुका है।” 30 तब वह स्त्री अपने घर चली गयी और उसने पाया कि उसकी बच्ची बिस्तर पर लेटी है और दुष्ट स्वर्गदूत उसमें से निकल चुका है।

31 अब वह सोर के इलाकों से निकला और सीदोन से होकर दिकापुलिस* के इलाकों के बीच से होता हुआ वापस गलील झील पहुँचा। 32 यहाँ लोग उसके पास एक बहरे को लाए जो ठीक से बोल भी नहीं पाता था और उन्होंने यीशु से बिनती की कि वह अपना हाथ उस पर रखे। 33 यीशु उस आदमी को भीड़ से दूर, अलग ले गया और उसके कानों में अपनी उंगलियाँ डालीं और थूकने के बाद उसकी जीभ को छूआ। 34 फिर उसने आकाश की तरफ देखा और गहरी आह भरकर उससे कहा: “एफ्फतह,” जिसका मतलब है “खुल जा।” 35 तब उस आदमी की सुनने की शक्‍ति लौट आयी और उसकी जीभ के बंधन खुल गए और वह साफ-साफ बोलने लगा। 36 फिर यीशु ने उन्हें सख्त हिदायत दी कि किसी को कुछ न बताएँ। मगर जितना वह मना करता था, उतना ही ज़्यादा वे उसकी खबर फैलाते थे। 37 वाकई, लोग बेहद हैरान थे और उन्होंने कहा: “उसने सब कुछ बहुत अच्छा किया है। यहाँ तक कि वह बहरों को सुनने की और गूँगों को बोलने की शक्‍ति देता है।”

8 उन दिनों, जब एक बार फिर एक बड़ी भीड़ जमा थी और उनके पास खाने को कुछ न था, तो यीशु ने चेलों को बुलाकर उनसे कहा: 2 “इस भीड़ को देखकर मुझे तरस आता है, क्योंकि इन्हें मेरे साथ रहते हुए तीन दिन बीत चुके हैं और इनके पास खाने के लिए कुछ भी नहीं है। 3 अगर मैं इन्हें भूखा ही घर भेज दूँ, तो वे रास्ते में ही पस्त हो जाएँगे। इनमें से कुछ तो बहुत दूर से आए हैं।” 4 मगर उसके चेलों ने उससे कहा: “यहाँ इस सुनसान जगह पर कोई कहाँ से इतनी रोटियाँ लाए कि ये भरपेट खा सकें?” 5 फिर भी यीशु ने उनसे पूछा: “तुम्हारे पास कितनी रोटियाँ हैं?” उन्होंने कहा: “सात।” 6 फिर उसने भीड़ को ज़मीन पर आराम से बैठने की हिदायत दी और वे सातों रोटियाँ लीं, प्रार्थना में धन्यवाद दिया और तोड़कर अपने चेलों को देने लगा कि वे उन्हें बाँट दें। तब चेलों ने ये रोटियाँ लोगों में बाँट दीं। 7 उनके पास कुछ छोटी मछलियाँ भी थीं। उसने मछलियों के लिए प्रार्थना में धन्यवाद दिया और चेलों से कहा कि इन्हें भी बाँट दें। 8 तब लोगों ने भरपेट खाया और बचे हुए टुकड़े इकट्ठे किए, जिनसे सात बड़े-टोकरे भर गए। 9 खानेवालों में आदमियों की गिनती करीब चार हज़ार थी। आखिर में उसने उन्हें विदा किया।

10 वह फौरन अपने चेलों के साथ नाव पर चढ़ गया और दलमनूता के इलाकों में आया। 11 यहाँ फरीसी निकलकर आए और उससे बहस करने लगे। उन्होंने यीशु की परीक्षा करने के लिए माँग की कि वह उन्हें आकाश से कोई निशानी दिखाए। 12 तब उसने अपने दिल में गहरी आह भरी और कहा: “यह पीढ़ी हमेशा किसी हैरतअँगेज़ निशानी की ताक में क्यों रहती है? मैं सच कहता हूँ, इस पीढ़ी को कोई निशानी नहीं दी जाएगी।” 13 इसी के साथ, वह उन्हें छोड़कर फिर से नाव पर चढ़ गया और उस पार चला गया।

14 ऐसा हुआ कि चेले अपने साथ रोटियाँ लेना भूल गए थे और नाव में उनके पास एक रोटी को छोड़ और कुछ नहीं था। 15 यीशु ने यह कहकर उन्हें सख्ती से हुक्म दिया और खबरदार किया: “अपनी आँखें खुली रखो और फरीसियों के खमीर और हेरोदेस के खमीर से चौकन्‍ने रहो।” 16 इस पर वे एक-दूसरे से बहस करने लगे कि वे अपने साथ रोटियाँ क्यों नहीं लाए। 17 यह देखकर यीशु ने उनसे कहा: “तुम इस बात पर क्यों बहस कर रहे हो कि तुम्हारे पास रोटियाँ नहीं हैं? क्या तुम अभी-भी नहीं जान सके और इसके मायने नहीं समझ सके? क्या तुम्हारे मन समझने में मंद हो गए हैं? 18 ‘आँखें होते हुए भी तुम नहीं देखते और कान होते हुए भी तुम नहीं सुनते?’ क्या तुम्हें याद नहीं, 19 जब मैंने पाँच हज़ार आदमियों के लिए पाँच रोटियाँ तोड़ीं, तब तुमने टुकड़ों से भरी कितनी टोकरियाँ उठायी थीं?” उन्होंने कहा: “बारह।” 20 “जब मैंने चार हज़ार आदमियों के लिए सात रोटियाँ तोड़ीं, तब तुमने टुकड़ों से भरे हुए जो बड़े-टोकरे उठाए थे उनकी गिनती क्या थी?” उन्होंने कहा: “सात।” 21 इस पर यीशु ने उनसे कहा: “क्या तुम्हें अभी-भी समझ में नहीं आया कि मैं किस बारे में बात कर रहा हूँ?”

22 अब वे बैतसैदा में आए। यहाँ लोग उसके पास एक अंधे आदमी को लाए और उन्होंने यीशु से बिनती की कि वह उसे छूए। 23 उसने उस अंधे आदमी का हाथ पकड़ा और उसे गाँव के बाहर ले गया। यीशु ने उसकी आँखों पर थूककर अपने हाथ उस पर रखे और उससे पूछा: “क्या तुझे कुछ दिखायी दे रहा है?” 24 उस आदमी ने ऊपर देखा और कहा: “मुझे लोग दिखाई तो देते हैं, मगर ऐसे लग रहे हैं जैसे चलते-फिरते पेड़ हों।” 25 फिर यीशु ने दोबारा उस आदमी की आँखों पर हाथ रखे, और उसे साफ-साफ दिखायी दिया और वह अच्छा हो गया। अब उसे सबकुछ एकदम साफ-साफ दिखायी देने लगा। 26 तब यीशु ने यह कहकर उसे घर भेजा: “अभी गाँव में न जाना।”

27 यीशु और उसके चेले अब कैसरिया फिलिप्पी के गाँवों में जाने के लिए निकल पड़े। रास्ते में वह अपने चेलों से यह सवाल पूछने लगा: “लोग मेरे बारे में क्या कहते हैं, मैं कौन हूँ?” 28 उन्होंने कहा: “कुछ कहते हैं, यूहन्‍ना बपतिस्मा देनेवाला और दूसरे एलिय्याह, और कुछ कहते हैं भविष्यवक्‍ताओं में से एक।” 29 फिर उसने यही सवाल चेलों से पूछा: “लेकिन, तुम क्या कहते हो, मैं कौन हूँ?” पतरस ने जवाब दिया: “तू मसीह है।” 30 इस पर उसने उन्हें सख्त हिदायत दी कि किसी को उसके बारे में न बताएँ। 31 फिर यीशु चेलों को सिखाकर समझाने लगा कि यह ज़रूरी है कि इंसान का बेटा कई दुःख-तकलीफें सहे और बुज़ुर्ग, प्रधान याजक और शास्त्री उसे ठुकरा दें और वह मार डाला जाए। फिर तीन दिन बाद जी उठे। 32 वह बेधड़क होकर उन्हें यह बात बता रहा था। मगर पतरस उसे अलग ले गया और झिड़कने लगा। 33 इस पर यीशु ने मुड़कर अपने चेलों की तरफ देखा और पतरस को झिड़का और कहा: “अरे शैतान, मेरे सामने से दूर हो जा, क्योंकि तेरी सोच परमेश्‍वर जैसी नहीं, बल्कि इंसानों जैसी है।”

34 अब उसने भीड़ को अपने चेलों समेत पास बुलाया और उनसे कहा: “अगर कोई मेरे पीछे आना चाहता है, तो वह खुद से इनकार करे और अपनी यातना की सूली* उठाए और मेरे पीछे चलता रहे। 35 क्योंकि जो कोई अपनी जान बचाना चाहता है वह उसे खोएगा, मगर जो कोई मेरी और खुशखबरी की खातिर अपनी जान गँवाता है वह उसे बचाएगा। 36 वाकई, अगर एक इंसान सारा जहान हासिल कर ले और अपनी जान देकर इसकी कीमत चुकाए, तो उसे क्या फायदा? 37 एक इंसान अपनी जान के बदले भला क्या दे सकता है? 38 जो कोई इस विश्‍वासघाती* और पापी पीढ़ी के सामने मेरा चेला होने और मेरे वचनों पर विश्‍वास करने में शर्मिंदा महसूस करता है, इंसान का बेटा भी ऐसे को उस वक्‍त स्वीकार करने में शर्मिंदा महसूस करेगा, जब वह अपने पिता से मिले वैभव में पवित्र स्वर्गदूतों के साथ आएगा।”

9 यीशु ने उनसे यह भी कहा: “मैं तुमसे सच कहता हूँ, यहाँ जो खड़े हैं उनमें से कुछ ऐसे हैं जो तब तक मौत का मुँह हरगिज़ न देखेंगे, जब तक कि पहले वे परमेश्‍वर के राज को शक्‍ति के साथ राज करता हुआ न देख लें।” 2 इसके छः दिन बाद यीशु ने पतरस, याकूब और यूहन्‍ना को अपने साथ लिया और वह उनको एक ऊँचे पहाड़ पर ले गया, जहाँ इनके सिवा कोई और नहीं था। तब इनके सामने यीशु का रूप बदल गया। 3 उसके कपड़े चमकने लगे और इतने उजले सफेद हो गए जितना कि दुनिया का कोई भी धोबी धोकर सफेद नहीं कर सकता। 4 और चेलों को एलिय्याह और मूसा दिखायी दिए और वे दोनों यीशु से बातें कर रहे थे। 5 यह देखकर पतरस ने यीशु से कहा: “गुरु,* हमारा यहाँ रहना अच्छा है। इसलिए हमें तीन तंबू खड़े करने दे, एक तेरे लिए, एक मूसा के लिए और एक एलिय्याह के लिए।” 6 सच तो यह है कि पतरस की समझ में नहीं आ रहा था कि उसे क्या कहना चाहिए, क्योंकि वे बहुत डर गए थे। 7 फिर एक बादल उभरा और उन पर छा गया और बादल में से यह आवाज़ आयी: “यह मेरा प्यारा बेटा है, इसकी सुनो।” 8 मगर एकाएक जब चेलों ने आस-पास नज़र डाली तो देखा कि अब वहाँ उनके साथ यीशु के सिवा और कोई न था।

9 जब वे पहाड़ से नीचे उतर रहे थे, तो यीशु ने उन्हें सख्ती से आदेश दिया कि जब तक इंसान का बेटा मरे हुओं में से जी न उठे, तब तक उन्होंने जो देखा है वह किसी से न कहें। 10 चेलों ने यीशु की इस बात की गाँठ बाँध ली। मगर वे आपस में चर्चा करने लगे कि मरे हुओं में से जी उठने की जो बात उसने कही, उसका क्या मतलब है। 11 उन्होंने यीशु से यह सवाल किया: “शास्त्री क्यों कहते हैं कि पहले एलिय्याह का आना ज़रूरी है?” 12 उसने कहा: “यह बात सच है कि एलिय्याह पहले आएगा और सबकुछ बहाल करेगा। मगर एलिय्याह के आने का उन बातों से क्या नाता है जो इंसान के बेटे के बारे में शास्त्र में लिखी हैं, यानी इन बातों से कि उसे बहुत-सी दुख-तकलीफें झेलनी पड़ेंगी और उसके साथ ऐसा सलूक किया जाएगा, मानो उसका कोई मोल न हो? 13 मगर मैं तुमसे कहता हूँ कि एलिय्याह दरअसल आ चुका है और ठीक जैसा उसके बारे में लिखा है, उन्होंने उसके साथ वह सब किया जो वे करना चाहते थे।”

14 अब जब वे बाकी चेलों की तरफ आए, तो उन्होंने देखा कि लोगों की भीड़ उनके आस-पास खड़ी है और शास्त्री उनसे बहस कर रहे हैं। 15 मगर जैसे ही भीड़ ने यीशु को देखा, वे हक्के-बक्के रह गए और भागकर उसके पास आए और उसका स्वागत किया। 16 यीशु ने उनसे पूछा: “तुम उनके साथ किस बात पर बहस कर रहे हो?” 17 तब भीड़ में से एक ने जवाब दिया: “गुरु, मैं अपने बेटे को तेरे पास लाया था, क्योंकि उसमें एक गूँगा दुष्ट दूत समाया है। 18 और जहाँ कहीं वह मेरे बेटे को पकड़ता है, वहीं ज़मीन पर पटक देता है और मेरा बेटा मुँह से झाग निकालने लगता है, दाँत पीसता है और बिलकुल बेजान हो जाता है। मैंने तेरे चेलों से इस दुष्ट दूत को निकालने के लिए कहा, मगर वे निकाल न सके।” 19 यह सुनकर यीशु ने उनसे कहा: “हे अविश्‍वासी पीढ़ी, मैं और कब तक तुम्हारे साथ रहूँ? कब तक मैं तुम्हारी सहूँ? लड़के को मेरे पास लाओ।” 20 वे उसे यीशु के पास ले आए। मगर जैसे ही उस दुष्ट स्वर्गदूत ने यीशु को देखा, उसने लड़के को मरोड़ा और वह लड़का ज़मीन पर गिर पड़ा और लोटने और झाग उगलने लगा। 21 तब यीशु ने लड़के के पिता से पूछा: “इसकी यह हालत कब से है?” उसने कहा: “बचपन से। 22 इसकी जान लेने के लिए इस दुष्ट दूत ने कई बार इसे आग में झोंका है, तो कई बार पानी में गिराया है। लेकिन अगर तू कुछ कर सके, तो हम पर तरस खा और हमारी मदद कर।” 23 यीशु ने उससे कहा: “क्या तू यह कह रहा है, ‘अगर तू कुछ कर सके’? इंसान में विश्‍वास हो, तो उसके लिए सब कुछ मुमकिन है।” 24 उसी वक्‍त उस बच्चे का पिता पुकार उठा: “मुझमें विश्‍वास है, लेकिन जहाँ मेरे विश्‍वास में कमी है, वहाँ मेरी मदद कर!”

25 यह देखकर कि लोगों की एक भीड़ उनकी तरफ दौड़ी चली आ रही है, यीशु ने उस दुष्ट स्वर्गदूत को डाँटा और उससे कहा: “हे गूँगे और बहरे दूत, मैं तुझे हुक्म देता हूँ, उसमें से बाहर निकल आ और आइंदा कभी उसमें मत समाना।” 26 तब वह दुष्ट दूत ज़ोर से चिल्लाया और लड़के को बहुत मरोड़ने के बाद उसमें से निकल गया। वह लड़का मुरदा-सा हो गया, इसलिए ज़्यादातर लोग कहने लगे: “यह तो मर गया है!” 27 लेकिन यीशु ने उसका हाथ पकड़कर उसे उठाया और वह खड़ा हो गया। 28 इसके बाद, यीशु जब एक घर में गया तो उसके चेले अकेले में उससे पूछने लगे: “हम उस दुष्ट दूत को क्यों नहीं निकाल पाए?” 29 तब यीशु ने उनसे कहा: “इस किस्म का दुष्ट दूत प्रार्थना के सिवा किसी और तरीके से नहीं निकाला जा सकता।”

30 वे उस जगह से निकल पड़े और गलील से होकर गुज़रे, मगर यीशु नहीं चाहता था कि किसी को उनके सफर के बारे में मालूम पड़े। 31 क्योंकि इस दौरान वह अपने चेलों को सिखा रहा था और उन्हें यह बता रहा था: “इंसान का बेटा लोगों के हवाले किया जाएगा और वे उसे मार डालेंगे, लेकिन मारे जाने के बावजूद, वह तीन दिन बाद जी उठेगा।” 32 मगर वे उसकी बात नहीं समझ रहे थे और उससे सवाल पूछने से भी डरते थे।

33 फिर वे कफरनहूम आए। जब वह घर के अंदर था, तो यीशु ने उनसे यह सवाल किया: “तुम रास्ते में किस बात को लेकर झगड़ रहे थे?” 34 वे चुप्पी साधे रहे, क्योंकि वे रास्ते में इस बात को लेकर झगड़ रहे थे कि हम में बड़ा कौन है। 35 इसलिए वह बैठ गया और उसने उन बारहों को बुलाकर उनसे कहा: “अगर कोई सबसे बड़ा बनना चाहता है, तो ज़रूरी है कि वह सबसे छोटा बने और सबका सेवक बने।” 36 फिर उसने एक छोटे बच्चे को लेकर उनके बीच में खड़ा किया और उसे अपनी बाँहों में भरकर उनसे कहा: 37 “जो कोई मेरे नाम से इस बच्चे-समान किसी को स्वीकार करता है, वह मुझे स्वीकार करता है। और जो मुझे स्वीकार करता है, वह सिर्फ मुझे नहीं बल्कि उसे भी स्वीकार करता है जिसने मुझे भेजा है।”

38 यूहन्‍ना ने उससे कहा: “गुरु, हमने देखा कि एक आदमी तेरे नाम से दुष्ट स्वर्गदूतों को निकाल रहा है और हमने उसे रोकने की कोशिश की, क्योंकि वह हमारे साथ नहीं आता था।” 39 लेकिन यीशु ने कहा: “उसे रोकने की कोशिश मत करो, क्योंकि ऐसा कोई नहीं जो मेरे नाम से शक्‍तिशाली काम करे और पलटकर मुझे बदनाम भी कर सके। 40 क्योंकि जो हमारे खिलाफ नहीं, वह हमारे साथ है। 41 जो कोई तुम्हें इसलिए एक प्याला पानी पिलाता है कि तुम मसीह के हो, मैं तुमसे सच कहता हूँ कि वह हरगिज़ अपना इनाम न खोएगा। 42 लेकिन जो कोई विश्‍वास करनेवाले ऐसे छोटों में से किसी के विश्‍वास से गिर जाने की वजह बनता है, उसके लिए भला होगा कि उसके गले में चक्की का वह पाट लटकाया जाए जिसे गधा खींचता है, और उसे समुद्र में फेंक दिया जाए।

43 और अगर तेरा हाथ तुझसे पाप करवा रहा है तो उसे काट डाल। तेरे लिए एक हाथ के बिना जीवन पाना भला है, बजाय इसके कि तू दोनों हाथों समेत गेहन्‍ना* में डाला जाए, हाँ, उस आग में जो कभी बुझायी नहीं जा सकती। 44* —— 45 और अगर तेरा पैर तुझसे पाप करवा रहा है, तो उसे काट डाल। तेरे लिए एक पैर के बिना जीवन पाना भला है, बजाय इसके कि तू दोनों पैरों समेत गेहन्‍ना में डाला जाए। 46* —— 47 और अगर तेरी आँख तुझसे पाप करवा रही है, तो उसे निकालकर दूर फेंक दे। तेरे लिए एक आँख के बिना परमेश्‍वर के राज में दाखिल होना भला है, बजाय इसके कि तुझे दोनों आँखों समेत गेहन्‍ना में फेंका जाए, 48 जहाँ कीड़े कभी नहीं मरते और आग कभी नहीं बुझती।

49 क्योंकि ऐसे लोगों पर इस तरह आग बरसायी जाएगी, जैसे कोई इंसान नमक छिड़कता है। 50 नमक बढ़िया है, लेकिन नमक अगर कभी फीका हो जाए, तो तुम उसे किस चीज़ से ज़ायकेदार बनाओगे? खुद में नमक जैसा ज़ायका रखो और आपस में शांति बनाए रखो।”

10 यीशु उठा और वहाँ से निकलकर यरदन के पार और यहूदिया प्रदेश की सरहदों के पास आया। उसके पास फिर से भीड़ जमा हो गयी। और जैसा उसका दस्तूर था, वह उन्हें एक बार फिर सिखाने लगा। 2 अब फरीसी आए और यीशु की परीक्षा लेने के लिए उससे यह सवाल किया: एक आदमी के लिए अपनी पत्नी को तलाक देना मूसा के कानून के हिसाब से सही है या नहीं? 3 जवाब में उसने कहा: “मूसा ने तुम्हें क्या आज्ञा दी है?” 4 उन्होंने कहा: “मूसा ने तलाकनामा लिखकर पत्नी को तलाक देने की इजाज़त दी है।” 5 मगर यीशु ने उनसे कहा: “तुम्हारे दिलों की कठोरता की वजह से उसने तुम्हें यह आज्ञा लिखकर दी। 6 मगर, सृष्टि की शुरूआत से ‘परमेश्‍वर ने उन्हें नर और नारी बनाया था। 7 इस वजह से पुरुष अपने माता-पिता को छोड़ देगा 8 और पति-पत्नी दोनों एक तन होंगे।’ तो वे अब दो नहीं रहे बल्कि एक तन हैं। 9 इसलिए जिसे परमेश्‍वर ने एक बंधन में बाँधा है,* उसे कोई इंसान अलग न करे।” 10 एक बार फिर जब वह घर में था, तो चेले इस बारे में उससे सवाल पूछने लगे। 11 यीशु ने उनसे कहा: “जो कोई अपनी पत्नी को तलाक देता है और दूसरी से शादी करता है, वह उस पहली का हक मारने और शादी के बाहर यौन-संबंध रखने का गुनहगार है। 12 और अगर एक स्त्री अपने पति को तलाक देने के बाद कभी किसी दूसरे से शादी करती है, तो वह शादी के बाहर यौन-संबंध रखने की गुनहगार है।”

13 अब लोग यीशु के पास छोटे बच्चों को लाने लगे ताकि वह उन्हें अपने हाथ से छूए, मगर चेलों ने उन्हें डाँटा। 14 यह देखकर यीशु नाराज़ हुआ और उनसे कहा: “बच्चों को मेरे पास आने दो। उन्हें रोकने की कोशिश मत करो, क्योंकि परमेश्‍वर का राज ऐसों ही का है। 15 मैं तुमसे सच कहता हूँ, जो कोई परमेश्‍वर के राज को एक छोटे बच्चे की तरह स्वीकार नहीं करता वह उसमें किसी भी तरह दाखिल न होगा।” 16 और उसने बच्चों को अपनी बाँहों में लिया और उन पर हाथ रखकर उन्हें आशीष देने लगा।

17 जब वह निकलकर अपने रास्ते जा रहा था, तो एक आदमी दौड़कर आया और उसके सामने घुटनों के बल गिरा और उससे यह सवाल किया: “अच्छे गुरु, हमेशा की ज़िंदगी का वारिस बनने के लिए मैं क्या काम करूँ?” 18 यीशु ने उससे कहा: “तू मुझे अच्छा क्यों कहता है? कोई अच्छा नहीं है, सिवा एक के, और वह है परमेश्‍वर। 19 तू आज्ञाओं को तो जानता है, ‘खून न करना, शादी के बाहर यौन-संबंध न रखना, चोरी न करना, झूठी गवाही न देना, किसी को न ठगना, अपने पिता और अपनी माँ का आदर करना।’ ” 20 उस आदमी ने कहा: “गुरु, ये सारी बातें तो मैं लड़कपन से ही मानता आया हूँ।” 21 यीशु ने प्यार से उसकी तरफ देखा और कहा: “तुझमें एक चीज़ की कमी है: जा और जो कुछ तेरे पास है उसे बेचकर कंगालों को दे दे क्योंकि तुझे स्वर्ग में खज़ाना मिलेगा और आकर मेरा चेला बन जा और मेरे पीछे हो ले।” 22 मगर इस बात पर वह उदास हो गया और दुःखी होकर चला गया, क्योंकि उसके पास बहुत धन-संपत्ति थी।

23 यीशु ने चारों तरफ देखने के बाद अपने चेलों से कहा: “पैसेवालों के लिए परमेश्‍वर के राज में दाखिल होना कितना मुश्‍किल होगा!” 24 मगर चेले उसकी बातें सुनकर ताज्जुब करने लगे। इसलिए यीशु ने उनसे एक बार फिर कहा: “बच्चो, परमेश्‍वर के राज में दाखिल होना कितनी मुश्‍किल बात है! 25 परमेश्‍वर के राज में एक दौलतमंद आदमी के दाखिल होने से, एक ऊँट का सुई के छेद से निकल जाना ज़्यादा आसान है।” 26 इस पर उन्हें और भी हैरानी हुई और उन्होंने उससे कहा: “तो फिर, किसका उद्धार हो सकता है?” 27 यीशु ने सीधे उनकी तरफ देखते हुए कहा: “इंसानों के लिए यह नामुमकिन है, मगर परमेश्‍वर के लिए नहीं, क्योंकि परमेश्‍वर के लिए सबकुछ मुमकिन है।” 28 पतरस उससे कहने लगा: “देख! हम तो सबकुछ छोड़कर तेरे पीछे चल रहे हैं।” 29 यीशु ने कहा: “मैं तुम लोगों से सच कहता हूँ, ऐसा कोई नहीं जिसने मेरी और खुशखबरी की खातिर, घर या भाइयों या बहनों या पिता या माँ या बच्चों या खेतों को छोड़ा हो, 30 और जो इस ज़माने में घरों, भाइयों और बहनों और माँओं और बच्चों और खेतों का सौ गुना न पाए पर ज़ुल्मों के साथ, और आनेवाली दुनिया* में हमेशा की ज़िंदगी। 31 फिर भी, बहुत-से जो पहले हैं वे आखिरी होंगे और जो आखिरी हैं वे पहले।”

32 अब वे यरूशलेम के रास्ते पर बढ़े चले जा रहे थे और यीशु उनके आगे-आगे चल रहा था और चेलों को ताज्जुब हो रहा था। मगर जो उनके पीछे-पीछे चल रहे थे उन्हें डर लगने लगा। एक बार फिर वह उन बारहों को अलग ले गया और उन्हें वे बातें बताने लगा जो उस पर गुज़रनी तय थीं: 33 “देखो, हम यरूशलेम जा रहे हैं और इंसान का बेटा प्रधान याजकों और शास्त्रियों के हवाले किया जाएगा और वे उसे मौत की सज़ा सुनाएँगे और उसे दूसरी जातियों के लोगों के हवाले करेंगे। 34 वे उसका मज़ाक उड़ाएँगे और उस पर थूकेंगे और कोड़े लगाएँगे और उसे मार डालेंगे, मगर वह तीन दिन बाद जी उठेगा।”

35 जब्दी के दो बेटे, याकूब और यूहन्‍ना उसके पास आए और उससे कहा: “गुरु, हम चाहते हैं कि हम तुझसे जो कुछ कहें, तू हमारे लिए कर दे।” 36 उसने उनसे कहा: “तुम क्या चाहते हो, मैं तुम्हारे लिए क्या करूँ?” 37 उन्होंने कहा: “जब तू महिमा का पद पाएगा, तब हममें से एक को अपने दाएँ और दूसरे को अपने बाएँ बैठने देना।” 38 मगर यीशु ने उनसे कहा: “तुम नहीं जानते कि तुम क्या माँग रहे हो। क्या तुम वह प्याला पी सकते हो जिसे मैं पी रहा हूँ? या, क्या वह बपतिस्मा ले सकते हो जिसमें मेरा बपतिस्मा हो रहा है?” 39 उन्होंने कहा: “हम कर सकते हैं।” इस पर यीशु ने उनसे कहा: “जो प्याला मैं पी रहा हूँ, उसे तुम पीओगे, और जैसा बपतिस्मा मेरा हो रहा है, वैसा बपतिस्मा तुम्हारा भी होगा। 40 मगर मेरी दायीं या बायीं तरफ बैठने की इजाज़त देना मेरे अधिकार में नहीं, लेकिन ये जगह उनके लिए हैं जिनके लिए ये तैयार की गयी हैं।”

41 जब बाकी दस ने इस बारे में सुना, तो वे याकूब और यूहन्‍ना पर भड़कने लगे। 42 मगर यीशु ने चेलों को अपने पास बुलाकर उनसे कहा: “तुम जानते हो कि दुनिया में जिन्हें राज करनेवाले माना जाता है, वे लोगों पर हुक्म चलाते हैं और उनके बड़े-बड़े लोग उन पर अधिकार जताते हैं। 43 मगर तुम्हारे बीच ऐसा नहीं है, बल्कि तुममें जो बड़ा बनना चाहता है, उसे तुम्हारा सेवक होना चाहिए। 44 और जो कोई तुममें पहला होना चाहता है, उसे सबका दास होना चाहिए। 45 क्योंकि इंसान का बेटा भी सेवा करवाने नहीं, बल्कि सेवा करने आया है और इसलिए आया है कि बहुतों की फिरौती के लिए अपनी जान बदले में दे।”

46 और वे यरीहो शहर में आए। मगर जब यीशु और उसके चेले और भारी तादाद में लोग, यरीहो से बाहर जा रहे थे, तो (तिमाई का बेटा) बरतिमाई नाम का एक अंधा भिखारी सड़क के किनारे बैठा था। 47 जब उसने सुना कि यह यीशु नासरी है, तो वह चिल्लाकर कहने लगा: “दाविद के वंशज, यीशु, मुझ पर दया कर!” 48 इस पर कई लोगों ने उसे कड़ाई से कहा कि चुप हो जाए, मगर वह और ज़्यादा ज़ोर से चिल्लाता रहा: “दाविद के वंशज, मुझ पर दया कर!” 49 इस पर यीशु रुक गया और उसने कहा: “उसे बुलाओ।” और उन्होंने उस अंधे आदमी को यह कहकर बुलाया: “हिम्मत रख, खड़ा हो, वह तुझे बुला रहा है।” 50 उसने अपना चोगा फेंका और उछलकर खड़ा हो गया और यीशु के पास गया। 51 तब यीशु ने उससे कहा: “तू क्या चाहता है, मैं तेरे लिए क्या करूँ?” उस अंधे आदमी ने उससे कहा: “हे मेरे गुरु,* मेरी आँखों की रौशनी लौट आए।” 52 यीशु ने उससे कहा: “जा, तेरे विश्‍वास ने तुझे ठीक किया है।” उसी घड़ी उसकी आँखों की रौशनी लौट आयी और वह रास्ते में यीशु के पीछे हो लिया।

11 अब वे यरूशलेम के पास, जैतून पहाड़ पर बैतफगे और बैतनिय्याह गाँव पहुँचनेवाले थे। वहाँ उसने अपने दो चेलों को यह कहकर भेजा: 2 “जो गाँव तुम्हें नज़र आ रहा है उसमें जाओ। जैसे ही तुम उसमें दाखिल होगे, तुम्हें एक गधी का बच्चा बंधा हुआ मिलेगा, जिस पर आज तक कोई आदमी नहीं बैठा। उसे खोलकर ले आओ। 3 अगर कोई तुमसे कहता है, ‘तुम यह क्यों कर रहे हो?’ तो कहना, ‘प्रभु को इसकी ज़रूरत है, और वह इसे जल्द यहाँ वापस भेज देगा।’” 4 इसलिए वे चले गए और उन्होंने गली के नुक्कड़ पर एक दरवाज़े के पास गधी के बच्चे को बंधा हुआ पाया, और उन्होंने उसे खोल लिया। 5 मगर वहाँ खड़े कुछ लोग उनसे पूछने लगे: “तुम गधी के बच्चे को क्यों खोल रहे हो?” 6 चेलों ने इनसे ठीक वही कहा जो यीशु ने बताया था। तब उन्होंने चेलों को जाने दिया।

7 वे गधी के बच्चे को यीशु के पास ले आए। उन्होंने अपने ओढ़ने उस पर डाले और वह उस पर बैठ गया। 8 साथ ही, बहुतों ने अपने ओढ़ने रास्ते में बिछाए, जबकि दूसरों ने रास्ते के किनारे से पेड़ों की डालियाँ काटकर बिछा दीं। 9 जो लोग आगे-आगे चल रहे थे और जो पीछे-पीछे आ रहे थे, वे लगातार यह पुकार रहे थे: “बचा ले, हम बिनती करते हैं!* धन्य है वह जो यहोवा के नाम से आता है! 10 हमारे पुरखे दाविद का राज जो आ रहा है, धन्य हो! स्वर्ग में रहनेवाले, हम बिनती करते हैं, बचा ले!” 11 और यीशु यरूशलेम में दाखिल हुआ और मंदिर में गया। उसने आस-पास की सब चीज़ों पर नज़र डाली। मगर काफी वक्‍त हो चुका था, इसलिए वह उन बारहों के साथ बैतनिय्याह चला गया।

12 अगले दिन जब वे बैतनिय्याह से निकल चुके थे, तो यीशु को भूख लगी। 13 दूर से उसकी नज़र एक अंजीर के पेड़ पर पड़ी, जिसमें पत्तियाँ आयी हुई थीं। वह यह देखने के लिए उसके पास गया कि उसे शायद उसमें कुछ फल मिल जाएँ। मगर नज़दीक पहुँचने पर उसे पत्तियों को छोड़ कुछ न मिला, क्योंकि उस वक्‍त अंजीरों का मौसम नहीं था। 14 इसलिए उसने पेड़ से कहा: “अब से फिर कभी कोई तेरा फल न खा सके।” और उसके चेले सुन रहे थे।

15 अब वे यरूशलेम आए। वहाँ वह मंदिर गया और जो लोग मंदिर के अंदर बिक्री कर रहे थे और जो खरीदारी कर रहे थे, वह उन्हें वहाँ से खदेड़ने लगा। उसने पैसा बदलनेवाले सौदागरों की मेज़ें और कबूतर बेचनेवालों की चौकियाँ उलट दीं। 16 वह किसी को भी बर्तन लेकर मंदिर में से आने-जाने नहीं देता था। 17 मगर वह उन्हें सिखाता और यह कहता रहा: “क्या यह नहीं लिखा है कि ‘मेरा घर सब जातियों के लिए प्रार्थना का घर कहलाएगा’? मगर तुम लोगों ने इसे लुटेरों का अड्डा* बना दिया है।” 18 जब प्रधान याजकों और शास्त्रियों ने यह सुना, तो वे उसका खात्मा करने की तरकीब सोचने लगे, क्योंकि वे उससे डरते थे। इसलिए कि सारी भीड़ उसकी शिक्षा से लगातार दंग हो रही थी।

19 जब शाम हो गयी, तो वे रोज़ की तरह शहर से बाहर निकल गए। 20 मगर जब वे अगले दिन तड़के सुबह रास्ते से गुज़र रहे थे, तो उन्होंने देखा कि वह अंजीर का पेड़ जड़ तक सूख गया है। 21 इसलिए पतरस ने वह बात याद करते हुए उससे कहा: “गुरु, देख! वह अंजीर का पेड़ जिसे तू ने शाप दिया था, सूख गया है।” 22 जवाब में यीशु ने उनसे कहा: “परमेश्‍वर पर विश्‍वास रखो। 23 मैं तुमसे सच कहता हूँ कि जो कोई इस पहाड़ से कहे, ‘यहाँ से उखड़कर समुद्र में जा गिर,’ और अपने दिल में ज़रा भी शक न करे मगर विश्‍वास रखे कि जो वह कह रहा है वह हो जाएगा, तो उसके लिए वैसा ही हो जाएगा। 24 इसीलिए मैं तुमसे कहता हूँ, जो कुछ तुम प्रार्थना में माँगते हो, यह विश्‍वास रखो कि तुम उसे असल में पा चुके, और वह तुम्हें ज़रूर मिलेगा। 25 जब तुम प्रार्थना करने खड़े हो, तो तुम्हारे दिल में किसी के खिलाफ जो कुछ है उसे माफ करो। ताकि तुम्हारा पिता जो स्वर्ग में है, वह भी तुम्हारे अपराधों को माफ करे।” 26* ——

27 फिर वे यरूशलेम आए। जब वह मंदिर में टहल रहा था, तो प्रधान याजक और शास्त्री और बुज़ुर्ग उसके पास आए। 28 और उससे कहने लगे: “तू ये सब किस अधिकार से करता है? या किसने तुझे ये सब करने का अधिकार दिया है?” 29 यीशु ने उनसे कहा: “मैं भी तुमसे एक सवाल पूछता हूँ। तुम मुझे जवाब दो, तब मैं भी तुम्हें बताऊँगा कि मैं ये सब किस अधिकार से करता हूँ। 30 जो बपतिस्मा यूहन्‍ना ने दिया, वह स्वर्ग की तरफ से था या इंसानों की तरफ से? जवाब दो।” 31 वे आपस में सलाह-मशविरा करने लगे और यह कहने लगे: “अगर हम कहें, ‘स्वर्ग की तरफ से,’ तो वह कहेगा, ‘तो फिर क्यों तुमने उसका यकीन नहीं किया?’ 32 पर हम यह कहने की जुर्रत कैसे करें कि ‘इंसानों की तरफ से था’?”—क्योंकि इन धर्मगुरुओं को भीड़ का डर था, इसलिए कि सभी लोग मानते थे कि यूहन्‍ना वाकई एक भविष्यवक्‍ता था। 33 इसलिए उन्होंने यीशु को जवाब दिया: “हम नहीं जानते।” तब यीशु ने उनसे कहा: “न ही मैं तुम्हें यह बतानेवाला हूँ कि मैं किस अधिकार से यह सब करता हूँ।”

12 साथ ही, यीशु उन्हें ये मिसालें देने लगा: “किसी आदमी ने अंगूरों का बाग लगाया और उसके चारों तरफ एक बाड़ा बनाया। उसने अंगूर रौंदने का हौद खोदा और एक बुर्ज खड़ा किया। फिर वह अंगूरों का बाग बागबानों को ठेके पर देकर परदेस चला गया। 2 अंगूरों की कटाई का मौसम आने पर उसने एक दास को बागबानों के पास भेजा, ताकि वह अंगूरों की फसल में से उसका हिस्सा उनसे ले आए। 3 मगर बागबानों ने उस दास को पकड़ लिया, उसे पीटा और खाली हाथ भेज दिया। 4 फिर बाग के मालिक ने उनके पास एक और दास भेजा। बागबानों ने उसका सिर फोड़ दिया और उसे बेइज़्ज़त किया। 5 फिर मालिक ने एक और दास को भेजा और उन्होंने उसे मार डाला। मालिक ने और भी बहुतों को भेजा, मगर कुछ को उन्होंने पीटा तो कुछ को मार डाला। 6 अब मालिक के पास एक ही रह गया था, उसका प्यारा बेटा। उसने आखिर में यह सोचकर बागबानों के पास उसे भेजा, ‘वे मेरे बेटे की ज़रूर इज़्ज़त करेंगे।’ 7 मगर वे बागबान आपस में कहने लगे, ‘यह तो वारिस है। आओ हम इसे मार डालें, तब इसकी विरासत हमारी हो जाएगी।’ 8 तब उन्होंने उसे पकड़ लिया और मार डाला और उसे अंगूरों के बाग के बाहर फेंक दिया। 9 अब बाग का मालिक क्या करेगा? वह आकर उन बागबानों का खात्मा करेगा और अंगूरों का बाग दूसरों को ठेके पर दे देगा। 10 क्या तुमने शास्त्र के ये वचन कभी नहीं पढ़े, ‘जिस पत्थर को राजमिस्त्रियों ने ठुकराया, वही कोने का मुख्य पत्थर बन गया है।’ 11 क्या तुमने यह भी नहीं पढ़ा, ‘यह यहोवा की तरफ से हुआ है और हमारी नज़र में लाजवाब है’?”

12 यह सुनकर धर्मगुरु उसे पकड़ने का कोई तरीका ढूँढ़ने लगे, क्योंकि वे जान गए थे कि उसने यह मिसाल उन्हीं को मन में रखकर दी थी। लेकिन वे भीड़ से डरते थे। इसलिए वे उसे छोड़कर चले गए।

13 इसके बाद उन्होंने कुछ फरीसियों और हेरोदियों के दल के लोगों को यीशु के पास भेजा ताकि वे उसकी बातों में उसे पकड़ सकें। 14 वे उसके पास आए और बोले: “गुरु, हम जानते हैं कि तू सच्चा है और किसी की परवाह नहीं करता, क्योंकि तू इंसान की सूरत देखकर बात नहीं करता बल्कि सच्चाई के मुताबिक परमेश्‍वर का मार्ग सिखाता है: हमें बता कि सम्राट* को कर देना सही है या नहीं? 15 हमें कर देना चाहिए या नहीं?” उनका कपट भाँपकर यीशु ने उनसे कहा: “तुम मेरी परीक्षा क्यों लेते हो? एक दीनार लाकर मुझे दिखाओ।” 16 वे एक दीनार लाए। उसने उनसे कहा: “इस पर किसकी सूरत और किसके नाम की छाप है?” उन्होंने कहा: “सम्राट की।” 17 तब यीशु ने कहा: “जो सम्राट का है वह सम्राट को चुकाओ, मगर जो परमेश्‍वर का है वह परमेश्‍वर को।” यह जवाब सुनकर वे उस पर बहुत ताज्जुब करने लगे।

18 अब सदूकी लोग उसके पास आए। सदूकी कहते हैं कि मरे हुओं के फिर से जी उठने की शिक्षा सच नहीं है। इन सदूकियों ने यीशु से यह सवाल किया: 19 “गुरु, मूसा ने हमारे लिए लिखा है कि अगर कोई आदमी बेऔलाद मर जाए और अपनी पत्नी छोड़ जाए, तो उसके भाई को चाहिए कि वह अपने मरे हुए भाई की पत्नी से शादी कर ले और अपने भाई के लिए उससे औलाद पैदा करे। 20 सात भाई थे। पहले ने शादी की मगर बेऔलाद मर गया। 21 तब दूसरे भाई ने उसकी पत्नी से शादी कर ली, मगर वह भी बेऔलाद मर गया। तीसरे के साथ भी ऐसा ही हुआ। 22 सातों भाई बेऔलाद मर गए। आखिर में वह स्त्री भी मर गयी। 23 तो फिर, जब मरे हुए जी उठेंगे, तब वह उन सातों में से किसकी पत्नी होगी? क्योंकि सातों उसे अपनी पत्नी बना चुके थे।” 24 यीशु ने उनसे कहा: “तुम बड़ी गलतफहमी में हो। क्या इसकी वजह यह नहीं कि तुम न तो शास्त्र को जानते हो, न ही परमेश्‍वर की शक्‍ति को? 25 क्योंकि मरे हुओं के जी उठने पर उनमें न तो पुरुष शादी करेंगे न स्त्रियाँ ब्याही जाएँगी, मगर वे स्वर्गदूतों की तरह होंगे। 26 क्या तुमने मरे हुओं के जी उठने के बारे में, मूसा की किताब में झाड़ी के किस्से में नहीं पढ़ा कि कैसे परमेश्‍वर ने उससे कहा, ‘मैं अब्राहम का परमेश्‍वर और इसहाक का परमेश्‍वर और याकूब का परमेश्‍वर हूँ’? 27 वह मरे हुओं का नहीं बल्कि जीवितों का परमेश्‍वर है। तुम बड़ी गलतफहमी में हो।”

28 वहाँ आए शास्त्रियों में से एक उनकी बहस सुन रहा था। उसने यह देखकर कि यीशु ने उन्हें क्या ही बेहतरीन ढंग से जवाब दिया है, उससे पूछा: “सब आज्ञाओं में सबसे पहले कौन-सी आज्ञा आती है?” 29 यीशु ने जवाब दिया: “सबसे पहली यह है, ‘हे इस्राएल, सुन, हमारा परमेश्‍वर यहोवा एक ही यहोवा है। 30 और तुझे अपने परमेश्‍वर यहोवा से अपने पूरे दिल, अपनी पूरी जान, अपने पूरे दिमाग और अपनी पूरी ताकत से प्यार करना है।’ 31 और दूसरी यह है, ‘तुझे अपने पड़ोसी से वैसे ही प्यार करना है जैसे तू खुद से करता है।’ और कोई आज्ञा इनसे बढ़कर नहीं।” 32 तब उस शास्त्री ने उससे कहा: “गुरु, तू ने बिलकुल सही कहा। तेरी बात सच्चाई के मुताबिक है कि ‘वह एक ही है और उसको छोड़ कोई दूसरा नहीं है।’ 33 और उसे अपने पूरे दिल और अपनी पूरी समझ और अपनी पूरी ताकत से प्यार करना और अपने पड़ोसी से वैसे ही प्यार करना जैसे हम खुद से करते हैं, सारी होमबलियों और बलिदानों से कहीं बढ़कर है।” 34 यीशु ने यह जानकर कि उस शास्त्री ने समझदारी के साथ जवाब दिया है, उससे कहा: “तू परमेश्‍वर के राज से ज़्यादा दूर नहीं।” इसके बाद किसी की भी हिम्मत नहीं हुई कि यीशु से कोई और सवाल करे।

35 लेकिन, मंदिर में सिखाते वक्‍त यीशु ने उनसे यह कहा: “शास्त्री यह कैसे कहते हैं कि मसीह, दाविद का महज़ एक वंशज है? 36 दाविद ने खुद पवित्र शक्‍ति से उभारे जाने पर यह कहा है, ‘यहोवा ने मेरे प्रभु से कहा: “मेरी दायीं तरफ बैठ जब तक कि मैं तेरे दुश्‍मनों को तेरे पैरों तले न कर दूँ।”’ 37 दाविद तो खुद मसीह को ‘प्रभु’ कहकर पुकारता है, फिर वह दाविद का वंशज कैसे हुआ?”

लोगों की बड़ी भीड़ खुशी से उसकी सुन रही थी। 38 और सिखाते हुए उसने आगे यह कहा: “शास्त्रियों से खबरदार रहो। जिन्हें लंबे-लंबे चोगे पहनकर घूमना और बाज़ारों के चौक में लोगों से नमस्कार सुनना अच्छा लगता है। 39 और सभा घरों में सबसे आगे की जगहों पर बैठना और शाम की दावतों में सबसे खास जगह लेना उन्हें पसंद है। 40 मगर यही हैं वे जो विधवाओं के घर हड़प जाते हैं और दिखावे के लिए लंबी-लंबी प्रार्थनाएँ करते हैं। ये बहुत भारी दंड पाएँगे।”

41 फिर यीशु दान-पात्रों के सामने बैठ गया और देखने लगा कि लोगों की भीड़ कैसे इन दान-पात्रों में पैसे डाल रही है। वहाँ बहुत-से धनवान ढेरों सिक्के डाल रहे थे। 42 फिर एक गरीब विधवा आयी और उसने दो पैसे* डाले। 43 तब यीशु ने अपने चेलों को पास बुलाया और उनसे कहा: “मैं तुमसे सच कहता हूँ कि जो लोग दान-पात्रों में पैसे डाल रहे हैं उनमें इस गरीब विधवा ने सबसे ज़्यादा डाला है। 44 क्योंकि उन सभी ने अपनी बहुतायत में से डाला है, मगर इसने अपनी तंगी में से, जो कुछ उसके पास था यानी अपनी सारी जीविका डाल दी है।”

13 जब वह मंदिर से बाहर निकल रहा था, तो उसके चेलों में से एक ने उससे कहा: “गुरु, यह देख! कैसे-कैसे पत्थर और कैसी-कैसी इमारतें हैं!” 2 लेकिन यीशु ने उससे कहा: “क्या तू इन आलीशान इमारतों को देख रहा है? यहाँ किसी भी हाल में एक पत्थर के ऊपर दूसरा पत्थर बाकी न बचेगा जो ढाया न जाए।”

3 जब वह जैतून पहाड़ पर बैठा था, जहाँ से सामने मंदिर नज़र आता था, तब पतरस और याकूब और यूहन्‍ना और अन्द्रियास अकेले में उससे पूछने लगे: 4 “हमें बता, ये सब बातें कब होंगी और उस वक्‍त की क्या निशानी होगी जब इन सब बातों का अपने आखिरी वक्‍त में पहुँचना तय है?” 5 तब यीशु उनसे कहने लगा: “खबरदार रहो कि कोई तुम्हें गुमराह न करे। 6 बहुत-से लोग मेरे नाम से आएँगे और कहेंगे, ‘मैं वही हूँ’ और बहुतों को गुमराह करेंगे। 7 जब तुम युद्धों का शोरगुल और युद्धों की खबरें सुनो, तो दहशत न खाना। इन सबका होना ज़रूरी है, मगर तभी अंत न होगा।

8 क्योंकि एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्र पर और एक राज्य दूसरे राज्य पर हमला करेगा। एक-के-बाद-एक कई जगहों पर भूकंप होंगे और अकाल पड़ेंगे। ये बातें प्रसव-पीड़ा की तरह मुसीबतों की सिर्फ शुरूआत होंगी।

9 मगर तुम अपने बारे में खबरदार रहो। लोग तुम्हें निचली अदालतों के हवाले करेंगे और तुम सभा-घरों में पीटे जाओगे। तुम मेरी वजह से राज्यपालों और राजाओं के सामने कठघरे में पेश किए जाओगे ताकि उन पर गवाही हो। 10 साथ ही यह ज़रूरी है कि पहले सब राष्ट्रों में खुशखबरी का प्रचार किया जाए। 11 मगर जब वे तुम्हें अदालत के हवाले करने के लिए ले जा रहे होंगे, तो पहले से फिक्र न करना कि हम क्या कहेंगे। उस घड़ी तुम जान जाओगे कि तुम्हें क्या कहना है, इसलिए वही कहना क्योंकि बोलनेवाले तुम नहीं, बल्कि पवित्र शक्‍ति है। 12 भाई, भाई को मरवाने के लिए सौंप देगा और पिता अपने बच्चे को, और बच्चे अपने माँ-बाप के खिलाफ खड़े होंगे और उन्हें मरवा डालेंगे। 13 मेरे नाम की वजह से तुम सब लोगों की नफरत के शिकार बनोगे। मगर जो अंत तक धीरज धरता है, वही उद्धार पाएगा।

14 लेकिन जब तुम उस उजाड़नेवाली घिनौनी चीज़ को वहाँ खड़ी देखो जहाँ उसे खड़ा नहीं होना चाहिए (पढ़नेवाला समझ इस्तेमाल करे), तब जो यहूदिया में हों वे पहाड़ों की तरफ भागना शुरू कर दें। 15 जो आदमी घर की छत पर हो वह नीचे न उतरे, न ही कुछ लेने के लिए अपने घर के अंदर जाए। 16 जो आदमी खेत में हो वह अपना चोगा लेने या उन चीज़ों को लेने वापस न लौटे जो पीछे छूट गयी हैं। 17 उन दिनों, जो गर्भवती होंगी और जो बच्चे को दूध पिलाती होंगी, उनके लिए ये दिन क्या ही भयानक होंगे! 18 प्रार्थना करते रहो कि ऐसा सर्दियों के मौसम में न हो। 19 क्योंकि वे दिन ऐसे संकट के होंगे जैसा संकट सृष्टि की शुरूआत से, जो परमेश्‍वर ने रची है, न अब तक हुआ और न फिर कभी होगा। 20 दरअसल, यहोवा ने अगर वे दिन घटाए न होते, तो कोई* भी नहीं बच पाता। मगर चुने हुओं की खातिर जिन्हें परमेश्‍वर ने चुना है, उसने वे दिन घटाए हैं।

21 और फिर अगर कोई तुमसे कहे, ‘देखो! मसीह यहाँ है,’ ‘देखो! वह वहाँ है,’ तो यकीन न करना। 22 क्योंकि झूठे मसीह और झूठे भविष्यवक्‍ता उठ खड़े होंगे और चमत्कार और अजूबे दिखाएँगे, ताकि हो सके तो चुने हुओं को भी बहका लें। 23 इसलिए तुम चौकन्‍ने रहो। मैंने तुम्हें सब बातें पहले से बता दी हैं।

24 मगर उन दिनों, उस संकट के बाद सूरज अंधियारा हो जाएगा और चाँद अपनी रौशनी न देगा, 25 तारे आकाश से गिरेंगे और आकाश की शक्‍तियाँ हिलायी जाएँगी। 26 और फिर वे इंसान के बेटे को महाशक्‍ति और महिमा के साथ बादलों में आता देखेंगे। 27 और फिर वह स्वर्गदूतों को भेजेगा और पृथ्वी के इस छोर से लेकर आकाश के उस छोर तक चारों दिशाओं* से अपने चुने हुओं को इकट्ठा करेगा।

28 अंजीर के पेड़ की मिसाल से यह बात सीखो: जैसे ही उसकी नयी डाली नरम हो जाती है और उस पर पत्तियाँ आने लगती हैं, तो तुम जान लेते हो कि गर्मियों का मौसम पास है। 29 उसी तरह, जब तुम ये बातें होती देखो, तो जान लो कि इंसान का बेटा पास ही दरवाज़े पर है। 30 मैं तुमसे सच कहता हूँ कि जब तक ये सारी बातें न हो लें, तब तक यह पीढ़ी हरगिज़ न मिटेगी। 31 आकाश और पृथ्वी मिट जाएँगे, मगर मेरे शब्द नहीं मिटेंगे।

32 उस दिन या उस वक्‍त* के बारे में कोई नहीं जानता, न स्वर्ग के दूत, न बेटा, बल्कि पिता जानता है। 33 चौकन्‍ने रहो, आँखों में नींद न आने दो, क्योंकि तुम नहीं जानते कि तय किया हुआ वक्‍त कौन-सा है। 34 यह एक ऐसे आदमी की तरह है जिसने परदेस जाने के लिए अपना घर छोड़ा। उसने अपने दासों को अधिकार दिया और हरेक को उसका काम सौंपा और दरबान को जागते रहने का हुक्म दिया। 35 इसलिए जागते रहो, क्योंकि तुम नहीं जानते कि घर का मालिक कब आ रहा है, दिन ढलने पर,* या आधी रात* को या मुर्गे के बाँग देने के वक्‍त* या तड़के सुबह।* 36 ताकि जब वह अचानक आए, तो तुम्हें सोता हुआ न पाए। 37 मगर जो मैं तुमसे कहता हूँ, वही सब से कहता हूँ, जागते रहो।”

14 दो दिन बाद फसह और बिन-खमीर की रोटियों का त्योहार था। और प्रधान याजक और शास्त्री मौका ढूँढ़ रहे थे कि कैसे यीशु को छल से पकड़ें और मार डालें। 2 फिर भी वे बार-बार कह रहे थे: “त्योहार के वक्‍त नहीं, कहीं ऐसा न हो कि लोग हुल्लड़ मचा दें।”

3 बैतनिय्याह गाँव में शमौन नाम का एक आदमी था जो पहले कोढ़ी था। यीशु उसके घर पर खाने की मेज़ से टेक लगाए था। तब एक स्त्री संगमरमर की बोतल में, असली जटामाँसी का खुशबूदार तेल लेकर आयी, जो बहुत कीमती था। उस स्त्री ने संगमरमर की बोतल तोड़कर खोली और यीशु के सिर पर तेल उँडेलने लगी। 4 इस पर वहाँ मौजूद कुछ लोग भड़क उठे और आपस में कहने लगे: “इस खुशबूदार तेल को ऐसे बरबाद क्यों किया गया? 5 इसे तीन सौ दीनार से भी ज़्यादा दाम में बेचकर पैसा गरीबों को दिया जा सकता था!” उन्हें उस स्त्री पर बहुत गुस्सा आ रहा था। 6 मगर यीशु ने कहा: “इसे रहने दो। तुम इस स्त्री को क्यों सताते हो? इसने तो मेरी खातिर एक बेहतरीन काम किया है। 7 गरीब तो हमेशा तुम्हारे साथ होंगे और तुम जब कभी चाहो उनके साथ भलाई कर सकते हो, मगर मैं हमेशा तुम्हारे साथ नहीं रहूँगा। 8 वह जो कर सकती थी उसने किया है। मेरे दफनाए जाने की तैयारी में उसने पहले से मेरे शरीर पर खुशबूदार तेल मलने का काम किया है। 9 मैं तुमसे सच कहता हूँ, सारी दुनिया में जहाँ कहीं खुशखबरी का प्रचार किया जाएगा, वहाँ इस स्त्री के इस काम को याद कर इसकी चर्चा की जाएगी।”

10 यहूदा इस्करियोती जो बारहों में से एक था, निकलकर प्रधान याजकों के पास गया ताकि यीशु को धोखे से उनके हवाले कर दे। 11 जब उन्होंने उसकी बात सुनी तो वे बेहद खुश हुए और उसे चाँदी के सिक्के देने का वादा किया। तब से यहूदा इस ताक में लग गया कि कैसे सही मौका देखकर यीशु को पकड़वा दे।

12 बिन-खमीर की रोटियों के त्योहार के पहले दिन,* जब यहूदी अपने दस्तूर के मुताबिक फसह का पशु बलि करते थे, उसके चेलों ने उससे कहा: “तू कहाँ चाहता है कि हम जाकर तेरे लिए फसह का खाना खाने की तैयारी करें?” 13 इस पर उसने अपने दो चेलों को यह कहकर भेजा: “शहर में जाओ और तुम्हें एक आदमी पानी का घड़ा उठाए हुए मिलेगा। उसके पीछे-पीछे जाना। 14 वह जिस घर में दाखिल हो उस घर के मालिक से कहना, ‘गुरु पूछता है: “मेहमानों का वह कमरा कहाँ है, जहाँ मैं अपने चेलों के साथ फसह का खाना खाऊँ?” ’ 15 फिर वह तुम्हें एक बड़ा और सजा हुआ ऊपर का कमरा दिखाएगा। वहाँ हमारे लिए तैयारी करना।” 16 तब वे चेले निकले और शहर के अंदर गए और जैसा उसने बताया था ठीक वैसा ही पाया। और उन्होंने फसह की तैयारी की।

17 शाम होने पर वह बारहों के साथ आया। 18 और जब वे मेज़ से टेक लगाए खा रहे थे, तब यीशु ने कहा: “मैं तुमसे सच कहता हूँ, तुममें से एक जो मेरे साथ खा रहा है, मुझे धोखे से पकड़वाएगा।” 19 वे दुःखी होने लगे और एक-एक कर उससे कहने लगे: “वह मैं तो नहीं हूँ न?” 20 उसने उनसे कहा: “वह तुम बारहों में से एक है जो मेरे साथ एक ही कटोरे में निवाला डुबोकर खाता है। 21 सच है कि इंसान का बेटा तो जा ही रहा है, ठीक जैसा उसके बारे में लिखा है, मगर धिक्कार है उस आदमी पर जिसके हाथों इंसान का बेटा पकड़वाया जाएगा! उस आदमी के लिए अच्छा तो यह होता कि वह पैदा ही न हुआ होता।”

22 जब उनका खाना जारी था, तो यीशु ने एक रोटी ली, प्रार्थना में धन्यवाद किया और उसे तोड़कर उन्हें दिया और कहा: “यह लो, यह मेरे शरीर का प्रतीक है।” 23 फिर प्याला लेकर उसने प्रार्थना में धन्यवाद किया और उन्हें दिया और उन सबने उसमें से पीया। 24 तब यीशु ने उनसे कहा: “यह ‘करार के मेरे लहू’ का प्रतीक है जिसे बहुतों की खातिर बहाया जाना है। 25 मैं तुमसे सच कहता हूँ, मैं किसी भी हाल में यह दाख-मदिरा* उस दिन तक न पीऊँगा जिस दिन मैं परमेश्‍वर के राज में नयी दाख-मदिरा न पीऊँ।” 26 आखिर में, वे परमेश्‍वर के गुणगान के भजन गाने के बाद जैतून पहाड़ की तरफ निकल पड़े।

27 यीशु ने उनसे कहा: “तुम सबका विश्‍वास डगमगा जाएगा, क्योंकि लिखा है, ‘मैं चरवाहे को मारूँगा और भेड़ें तित्तर-बित्तर हो जाएँगी।’ 28 लेकिन मेरे जी उठाए जाने के बाद मैं तुमसे पहले गलील जाऊँगा।” 29 मगर पतरस ने उससे कहा: “चाहे ये सभी विश्‍वास से क्यों न डगमगा जाएँ, मगर मेरा विश्‍वास नहीं डगमगाएगा।” 30 इस पर यीशु ने उससे कहा: “मैं तुझसे सच कहता हूँ, आज ही, हाँ इसी रात मुर्गे के दो बार बाँग देने से पहले, तू तीन बार मुझे जानने से इनकार करेगा।” 31 मगर पतरस बार-बार ज़ोर देकर कहने लगा: “अगर मुझे तेरे साथ मरना भी पड़े, तब भी मैं तुझे जानने से हरगिज़ इनकार न करूँगा।” उसके साथ-साथ, बाकी चेले भी यही बात कहने लगे।

32 फिर वे गतसमनी नाम की जगह पर आए और उसने अपने चेलों से कहा: “जब तक मैं प्रार्थना करूँ, यहीं बैठे रहो।” 33 फिर उसने पतरस और याकूब और यूहन्‍ना को अपने साथ लिया। उसकी सदमे की सी हालत होने लगी और वह दुःख से बेहाल होने लगा। 34 उसने उनसे कहा: “मेरा जी बेहद दुःखी है, यहाँ तक कि मेरी मरने जैसी हालत है। यहीं ठहरो और जागते रहो।” 35 फिर थोड़ा आगे जाकर वह ज़मीन पर गिरकर प्रार्थना करने लगा कि अगर मुमकिन हो तो यह वक्‍त टल जाए। 36 और वह कहने लगा: “हे अब्बा, हे पिता, तेरे लिए सबकुछ मुमकिन है। यह प्याला* मेरे सामने से हटा दे। मगर जो मैं चाहता हूँ वह नहीं, बल्कि वही हो जो तू चाहता है।” 37 फिर वह आया और चेलों को सोता हुआ पाया और उसने पतरस से कहा: “शमौन, क्या तू सो रहा है? क्या तुझमें इतनी भी ताकत नहीं कि थोड़ी देर मेरे साथ जाग सके? 38 जागते रहो और प्रार्थना करते रहो ताकि तुम परीक्षा में न पड़ो। दिल तो बेशक तैयार है, मगर शरीर कमज़ोर है।” 39 फिर वह दोबारा गया और उसने फिर से वही सब कहकर प्रार्थना की। 40 और वह फिर से आया और उन्हें सोता हुआ पाया, क्योंकि उनकी आँखें नींद से भरी थीं। वे नहीं जानते थे कि उसे क्या जवाब दें। 41 फिर वह तीसरी बार उनके पास आया और कहा: “तुम ऐसे वक्‍त में सो रहे हो और आराम कर रहे हो! बहुत हुआ! वह वक्‍त आ गया है! देखो! इंसान का बेटा धोखे से पापियों के हाथों में सौंपा जाता है। 42 उठो, आओ चलें। देखो! मुझे पकड़वानेवाला पास आ गया है।”

43 जब वह बोल ही रहा था, तब उसी घड़ी यहूदा जो बारहों में से एक था, आया और उसके साथ तलवारें और सोंटे लिए हुए लोगों की भीड़ थी जिसे प्रधान याजकों और शास्त्रियों और बुज़ुर्गों ने भेजा था। 44 उसे धोखा देनेवाले यहूदा ने यह कहकर उन्हें पहले से एक निशानी दी थी: “जिसे मैं चूमूंगा, वही यीशु है। उसे गिरफ्तार कर लेना और होशियारी से ले जाना।” 45 वह सीधे यीशु की तरफ आया और पास आकर उससे कहा: “रब्बी!” और उसे चूमा। 46 तब उन्होंने उस पर हाथ डाले और उसे हिरासत में ले लिया। 47 मगर, वहाँ जो खड़े थे उनमें से एक चेले ने अपनी तलवार निकाली और महायाजक के दास पर वार कर उसका कान उड़ा दिया। 48 यीशु ने भीड़ से कहा: “क्या तुम मुझे तलवारें और सोंटे लेकर गिरफ्तार करने आए हो, मानो मैं कोई लुटेरा हूँ? 49 मैं हर दिन तुम्हारे बीच मंदिर में सिखाया करता था, फिर भी तुमने मुझे हिरासत में न लिया। यह इसलिए हुआ कि शास्त्र के वचन पूरे हों।”

50 तब सब चेले उसे छोड़कर भाग गए। 51 मगर एक नौजवान, जो अधनंगे शरीर पर बढ़िया मलमल का कपड़ा ओढ़े हुए था, थोड़ी दूरी पर रहकर उसके पीछे-पीछे आने लगा। मगर जब भीड़ ने उसे पकड़ने की कोशिश की, 52 तो वह अपना मलमल का कपड़ा छोड़ उनसे छूटकर अधनंगा भाग गया।

53 अब वे यीशु को महायाजक के पास ले गए और सारे प्रधान याजक और बुज़ुर्ग और शास्त्री वहाँ इकट्ठा हुए। 54 मगर पतरस, काफी दूरी पर उसका पीछा करते हुए महायाजक के आँगन तक आ गया। वह घर के कर्मचारियों के साथ तेज़ आग के सामने बैठा आग ताप रहा था। 55 इस दौरान, प्रधान याजक और पूरी महासभा* यीशु के खिलाफ गवाही की खोज में थी ताकि उसे मरवा डालें, मगर उन्हें एक भी गवाही न मिली। 56 बेशक, बहुत-से उसके खिलाफ झूठी गवाही दे रहे थे, मगर उनके बयान एक-दूसरे से मेल नहीं खाते थे। 57 साथ ही, कुछ लोग उसके खिलाफ खड़े होकर यह झूठी गवाही दे रहे थे: 58 “हमने इसे यह कहते सुना है कि मैं हाथ के बनाए इस मंदिर को ढा दूँगा और तीन दिन के अंदर दूसरा मंदिर खड़ा कर दूँगा जो हाथों से न बना हो।” 59 मगर इस बारे में भी उनके बयान एक-दूसरे से मेल नहीं खाते थे।

60 आखिर में महायाजक उनके बीच खड़ा हुआ और उसने यीशु से यह सवाल किया: “क्या तू जवाब में कुछ नहीं कहेगा? ये जो तेरे खिलाफ गवाही दे रहे हैं, इसके बारे में तुझे क्या कहना है?” 61 मगर यीशु चुप रहा और उसने कोई जवाब नहीं दिया। एक बार फिर महायाजक उससे सवाल करने लगा और उससे कहा: “क्या तू उस परमधन्य का बेटा, मसीह है?” 62 तब यीशु ने कहा: “हाँ मैं हूँ। और तुम लोग इंसान के बेटे को उस शक्‍तिशाली की दायीं तरफ बैठा और आकाश के बादलों के साथ आता देखोगे।” 63 इस पर महायाजक ने अपना अंदर का कुरता फाड़ डाला और कहा: “अब हमें और गवाहों की क्या ज़रूरत है? 64 तुम लोगों ने यह तौहीन सुनी है। तुम्हारी क्या राय है?” उन सबने उसे मौत की सज़ा के लायक ठहराया। 65 कुछ उस पर थूकने लगे और उसका मुँह ढाँपकर उसे घूँसे मारने लगे और उससे कहने लगे: “भविष्यवाणी कर, तुझे किसने मारा!” और प्यादों ने उसके मुँह पर थप्पड़ मारे और उसे ले गए।

66 जब पतरस नीचे आँगन में था, तो महायाजक की एक नौकरानी आयी। 67 पतरस को आग तापते देख, वह उस पर नज़रें गड़ाकर बोली: “तू भी इस नासरी यीशु के साथ था।” 68 मगर उसने यह कहकर इनकार किया: “न तो मैं उसे जानता हूँ न मुझे यह समझ आ रहा है कि तू क्या कह रही है।” तब वह बाहर ओसारे में चला गया। 69 वहाँ उस नौकरानी ने उसे देखकर, वहाँ खड़े लोगों से फिर कहा: “यह भी उनमें से एक है।” 70 पतरस फिर से इनकार करने लगा। थोड़ी देर के बाद, एक बार फिर आस-पास खड़े लोग पतरस से कहने लगे: “बेशक तू उनमें से एक है, क्योंकि यकीनन तू एक गलीली है।” 71 मगर वह खुद को कोसने और कसमें खा-खाकर कहने लगा: “मैं इस आदमी को नहीं जानता जिसकी तुम बात कर रहे हो।” 72 उसी घड़ी एक मुर्गे ने दूसरी बार बाँग दी और पतरस को यीशु की यह बात याद आयी: “मुर्गे के दो बार बाँग देने से पहले, तू तीन बार मुझे जानने से इनकार करेगा।” तब वह और सह न सका और फूट-फूटकर रोने लगा।

15 सुबह होते ही फौरन प्रधान याजकों के साथ बुज़ुर्गों और शास्त्रियों, यानी पूरी महासभा* ने आपस में सलाह-मशविरा किया। उन्होंने यीशु को बाँधा और उसे ले गए और पीलातुस* के हवाले कर दिया। 2 तब पीलातुस ने यीशु से सवाल किया: “क्या तू यहूदियों का राजा है?” जवाब में उसने कहा: “तू खुद यह कहता है।” 3 लेकिन प्रधान याजक उस पर कई बातों का इलज़ाम लगाने लगे। 4 अब पीलातुस एक बार फिर उससे सवाल करने लगा: “क्या तेरे पास कोई जवाब नहीं है? देख, ये तुझ पर कितने इलज़ाम लगा रहे हैं।” 5 मगर यीशु ने आगे कोई जवाब न दिया, इसलिए पीलातुस ताज्जुब करने लगा।

6 ऐसा था कि पीलातुस साल-दर-साल त्योहार के वक्‍त, किसी एक कैदी को जिसके लिए लोग फरियाद करते थे, रिहा कर दिया करता था। 7 उस वक्‍त बरअब्बा नाम का एक आदमी कुछ और बागियों के साथ कैद में था। इन सबने बगावत के दौरान खून किया था। 8 अब भीड़ ने ऊपर जाकर पीलातुस से फरियाद की कि जैसा वह उनके लिए करता आया है, वैसा ही करे। 9 जवाब में पीलातुस ने उनसे कहा: “क्या मैं तुम्हारे लिए यहूदियों के राजा को रिहा कर दूँ?” 10 क्योंकि वह जानता था कि प्रधान याजकों ने ईर्ष्या की वजह से यीशु को उसके हवाले किया है। 11 मगर प्रधान याजकों ने भीड़ को यह कहने के लिए भड़काया कि वह यीशु के बजाय बरअब्बा को रिहा करे। 12 एक बार फिर पीलातुस उनसे कहने लगा: “तो फिर मैं इस आदमी का क्या करूँ जिसे तुम यहूदियों का राजा कहते हो?” 13 एक बार फिर वे चिल्ला उठे: “उसे सूली पर चढ़ा दे!” 14 मगर पीलातुस ने उनसे कहा: “क्यों, इसने क्या बुरा किया है?” मगर वे और भी ज़ोर से चिल्लाने लगे: “उसे सूली पर चढ़ा दे!” 15 इस पर पीलातुस ने भीड़ को खुश करने के इरादे से उनके लिए बरअब्बा को रिहा कर दिया, और यीशु को कोड़े लगवाने के बाद, सूली पर चढ़ाए जाने के लिए सौंप दिया।

16 फिर सैनिक यीशु को राज्यपाल के महल के अंदर, आँगन में ले गए। उन्होंने पूरे फौजी दस्ते को वहाँ बुला लिया। 17 उन्होंने उसे बैंजनी कपड़ा पहनाया और काँटों का एक ताज बनाकर उसके सिर पर रखा। 18 वे यह कहकर उसे सलाम करने लगे: “हे यहूदियों के राजा, यह दिन तुझे मुबारक हो!” 19 साथ ही, वे सरकंडे से उसके सिर पर मारते और उस पर थूकते थे और उसके सामने घुटने टेककर उसे प्रणाम करते थे। 20 जब उन्होंने उसका खूब मज़ाक उड़ा लिया, तब आखिर में, उन्होंने वह बैंजनी कपड़ा उस पर से उतार दिया और उसी के कपड़े उसे पहना दिए। फिर वे उसे सूली पर चढ़ाने के लिए ले गए। 21 उस वक्‍त शमौन नाम का आदमी देहात से आ रहा था और वहाँ से गुज़र रहा था। वह कुरेने का रहनेवाला और सिकंदर और रूफुस का पिता था। सैनिकों ने उसे जबरन सेवा करने के लिए पकड़ा कि वह यीशु के लिए यातना की सूली* उठाकर ले चले।

22 फिर वे यीशु को गुलगुता नाम की जगह ले आए, जिसका मतलब है, ‘खोपड़ी स्थान।’ 23 यहाँ उन्होंने उसे नशीला मुर्र मिली हुई दाख-मदिरा पिलाने की कोशिश की, मगर उसने पीने से इनकार कर दिया। 24 और उन्होंने उसे सूली पर चढ़ा दिया और यह तय करने के लिए उसके कपड़ों पर चिट्ठी डाली कि कौन क्या लेगा और उन्हें आपस में बाँट लिया। 25 यह तीसरा घंटा* था और उन्होंने उसे सूली पर चढ़ाया। 26 उस पर जो इलज़ाम था, उसे लिखकर ऊपर लगा दिया गया, “यहूदियों का राजा।” 27 साथ ही, उन्होंने दो लुटेरों को उसके साथ सूली पर चढ़ाया, एक उसकी दायीं तरफ और दूसरा बायीं तरफ। 28* —— 29 जो लोग वहाँ से गुज़र रहे थे वे सिर हिला-हिलाकर उसकी बेइज़्ज़ती करते हुए कहते थे: “अरे वाह, मंदिर के ढानेवाले और तीन दिन के अंदर उसे बनानेवाले, 30 यातना की सूली से नीचे उतरकर खुद को बचा ले।” 31 इसी तरह, प्रधान याजक भी शास्त्रियों के साथ मिलकर यह कहते हुए आपस में उसका मज़ाक उड़ा रहे थे: “इसने दूसरों को तो बचाया, मगर खुद को बचा नहीं सकता! 32 इस्राएल का राजा मसीह अब यातना की सूली से नीचे उतरकर आए, ताकि हम देखें और यकीन करें।” यहाँ तक कि जिन्हें उसके साथ सूली पर चढ़ाया गया था, वे भी उसे बुरा-भला कह रहे थे।

33 जब छठा घंटा* हुआ, तो पूरे देश में अंधकार छा गया और नौवें घंटे* तक छाया रहा। 34 नौवें घंटे में यीशु ने ज़ोर से पुकारा: “एली, एली, लामा शबकतानी?” जिसका मतलब है: “मेरे परमेश्‍वर, मेरे परमेश्‍वर, तू ने मुझे क्यों छोड़ दिया है?” 35 इस पर पास खड़े कुछ लोग कहने लगे: “सुनो! यह एलिय्याह को पुकार रहा है।” 36 मगर उनमें से एक भागकर गया और एक स्पंज को खट्टी दाख-मदिरा में डुबोकर सरकंडे पर रखा और उसे यह कहते हुए पीने के लिए दिया: “इसे रहने दो! देखते हैं, एलिय्याह इसे नीचे उतारने के लिए आता है कि नहीं।” 37 लेकिन यीशु ने बड़े ज़ोर से चिल्लाकर दम तोड़ दिया। 38 तब मंदिर का परदा ऊपर से नीचे तक फटकर दो टुकड़े हो गया। 39 जब उसके सामने खड़े सेना-अफसर* ने देखा कि उसने इन हालात में दम तोड़ा है, तो उसने कहा: “वाकई यह इंसान, परमेश्‍वर का बेटा था।”

40 वहाँ कुछ स्त्रियाँ भी थीं, जो दूर खड़ी देख रही थीं। उनमें मरियम मगदलीनी, छोटे याकूब और योसेस की माँ मरियम और सलोमी भी थीं। 41 ये स्त्रियाँ उसके साथ-साथ रहती थीं और जब वह गलील में था तब उसकी सेवा करती थीं। साथ ही, वहाँ दूसरी बहुत-सी स्त्रियाँ थीं जो उसके साथ यरूशलेम आयी थीं।

42 दोपहर काफी बीत चुकी थी और यह तैयारी का दिन* था, यानी सब्त से पहले का दिन। 43 इसलिए अरिमतियाह का यूसुफ वहाँ आया जो महासभा का एक इज़्ज़तदार सदस्य था, और जो खुद परमेश्‍वर के राज की राह देख रहा था। वह हिम्मत कर पीलातुस के पास गया और उसने यीशु का शव माँगा। 44 मगर पीलातुस को ताज्जुब हुआ कि यीशु वाकई मर चुका है। इसलिए उसने सेना-अफसर को बुलाकर पूछा कि क्या वह मर चुका है। 45 पीलातुस ने सेना-अफसर से यह बात पक्की तरह जान लेने के बाद कि यीशु मर चुका है उसका शव यूसुफ को सौंप दिया। 46 तब यूसुफ बढ़िया मलमल खरीदकर ले आया और यीशु का शव नीचे उतारा और उसे मलमल में लपेटकर एक कब्र में रखा जो चट्टान खोदकर बनायी गयी थी। और उस कब्र के दरवाज़े पर एक पत्थर लुढ़काकर उसे बंद कर दिया। 47 मगर मरियम मगदलीनी और योसेस की माँ मरियम देखती रहीं कि उसे कहाँ रखा जा रहा है।

16 जब सब्त का दिन बीत गया, तो मरियम मगदलीनी और याकूब की माँ मरियम और सलोमी ने खुशबूदार मसाले खरीदे ताकि आकर उस पर मलें। 2 वे हफ्ते के पहले दिन बहुत सुबह, जब सूरज निकला ही था, कब्र पर आयीं। 3 वे आपस में कह रही थीं: “कौन हमारे लिए कब्र के मुँह से पत्थर हटाएगा?” 4 मगर जब उन्होंने नज़र उठाकर देखा, तो पत्थर पहले से ही दूर लुढ़का हुआ था, हालाँकि वह बहुत ही बड़ा था। 5 जब वे कब्र के अंदर गयीं, तो उन्होंने देखा कि एक नौजवान सफेद उजला चोगा पहने दायीं तरफ बैठा है, और वे हैरान रह गयीं। 6 उसने उनसे कहा: “हैरान मत हो। तुम यीशु नासरी को ढूँढ़ रही हो, जिसे सूली पर चढ़ाया गया था। उसे मरे हुओं में से जी उठाया गया है और वह यहाँ नहीं है। यह जगह देखो जहाँ उसे रखा गया था। 7 जाओ और जाकर पतरस से और उसके बाकी चेलों से कहो, ‘वह तुमसे पहले गलील जाएगा। वहाँ तुम उसे देखोगे, ठीक जैसा उसने तुमसे कहा था।’” 8 इसलिए जब वे बाहर निकलीं तो कब्र से भागीं, क्योंकि वे डर के मारे थर-थर काँप रही थीं और ज़बरदस्त हैरत ने उन्हें आ घेरा था। उन्होंने किसी को कुछ नहीं बताया, क्योंकि वे डरती थीं।

लंबी समाप्ति

कुछ प्राचीन हस्तलिपियों (कोडेक्स एलेक्ज़ैंड्रिनस, कोडेक्स एफ्रीमी, कोडेक्स बेज़ी) और प्राचीन अनुवादों (लैटिन वलगेट, क्युरेटोनियन सिरियक, सिरियक पेशिट्टा) में आगे यह लंबी समाप्ति दी गयी है, मगर कोडेक्स साइनाइटिकस, कोडेक्स वैटिकेनस और साइनाइटिक सिरियक कोडेक्स और अर्मेनियन वर्शन में यह नहीं पायी जाती:

9 हफ्ते के पहले दिन सुबह होते ही, जी उठने के बाद यीशु पहले मरियम मगदलीनी को दिखायी दिया, जिसमें से उसने सात दुष्ट स्वर्गदूतों को निकाला था। 10 वह गयी और जो यीशु के साथ रहा करते थे उन्हें जाकर इसकी खबर दी, क्योंकि वे मातम मना रहे थे और रो रहे थे। 11 मगर जब उन्होंने सुना कि वह जी उठा है और उसे दिखायी दिया है, तो यकीन न किया। 12 इसके अलावा, यह सब होने के बाद जब उनमें से दो देहात की तरफ जा रहे थे, तब यीशु उन्हें दूसरे रूप में दिखायी दिया और उनके साथ-साथ चल रहा था। 13 वे वापस आए और बाकियों को खबर दी। मगर उन्होंने इनका भी यकीन नहीं किया। 14 मगर बाद में जब वे खाने की मेज़ के सामने टेक लगाए थे, तो वह ग्यारहों को दिखायी दिया, और उसने उनके विश्‍वास की कमी और दिलों की कठोरता के लिए उन्हें उलाहना दी। क्योंकि उन्होंने उनका यकीन नहीं किया था जिन्होंने उसे मरे हुओं में से जी उठने के बाद देखा था। 15 और उसने उनसे कहा: “सारी दुनिया में जाओ और सब लोगों को खुशखबरी सुनाओ। 16 जो यकीन करता है और बपतिस्मा लेता है वह उद्धार पाएगा, मगर जो यकीन नहीं करता वह दोषी ठहराया जाएगा। 17 इसके अलावा, यकीन करनेवालों में ये अलग-अलग चमत्कार दिखायी देंगे: वे मेरे नाम से दुष्ट स्वर्गदूतों को निकालेंगे, अलग-अलग भाषाएँ बोलेंगे, 18 और वे अपने हाथों से साँपों को उठा लेंगे और अगर वे कोई ज़हरीली चीज़ पी जाएँ, तौभी वह उन्हें कोई नुकसान न पहुँचाएगी। वे बीमार लोगों पर अपने हाथ रखेंगे और वे चंगे हो जाएँगे।”

19 इस तरह प्रभु यीशु उनसे बातें करने के बाद स्वर्ग में उठा लिया गया और परमेश्‍वर की दायीं तरफ बैठ गया। 20 इसी के मुताबिक, चेले निकले और उन्होंने हर जगह प्रचार किया। इस दौरान प्रभु ने उनके साथ काम किया और उनके ज़रिए अलग-अलग चमत्कारों से उनके संदेश की गवाही दी।

छोटी समाप्ति

बाद की कुछ हस्तलिपियों और प्राचीन अनुवादों में मरकुस 16:8 के बाद यह छोटी समाप्ति पायी जाती है:

मगर जितनी बातों की उन्हें आज्ञा दी गयी थी, वे सब उन्होंने चंद शब्दों में उन्हें बता दीं जो पतरस के आस-पास थे। इसके अलावा, इन सब बातों के बाद, यीशु ने खुद उनके ज़रिए पूरब से पश्‍चिम तक, हमेशा के उद्धार के पवित्र और अविनाशी संदेश का ऐलान करवाया।

मर 1:2 मला 3:1 देखें, जहाँ से आयत का यह हिस्सा लिया गया है।

मर 1:3 यह उन 237 जगहों में से एक जगह है, जहाँ परमेश्‍वर का नाम, ‘यहोवा’ इस अनुवाद के मुख्य पाठ में पाया जाता है। अतिरिक्‍त लेख 2 देखें।

मर 1:4 बपतिस्मे का मतलब किसी को पानी में पूरी तरह डुबकी देना है। यह एक धार्मिक रस्म है।

मर 1:8 यूनानी नफ्मा। अतिरिक्‍त लेख 7 देखें।

मर 1:8 मत्ती 3:11 फुटनोट देखें।

मर 1:16 मत्ती 4:18 फुटनोट देखें।

मर 1:21 मत्ती 12:1 फुटनोट देखें।

मर 1:22 शास्त्री, यीशु के ज़माने में परमेश्‍वर के कानून का मतलब समझानेवाले और इसके शिक्षक थे।

मर 1:34 या, “अभिषिक्‍त जन; मसीहा।” मत्ती 1:1 फुटनोट देखें।

मर 2:15 कर-वसूलनेवालों को, लोग इज़्ज़त की नज़र से नहीं देखा करते थे।

मर 3:11 यूनानी नफ्मा। अतिरिक्‍त लेख 7 देखें।

मर 3:14 या, “भेजे गए।” यूनानी में “अपोस्टोलोस।”

मर 3:30 यूनानी नफ्मा। अतिरिक्‍त लेख 7 देखें।

मर 4:19 या, “दुनिया की व्यवस्था।”

मर 4:21 या, “नापने की टोकरी।”

मर 5:9 मत्ती 26:53 फुटनोट देखें।

मर 5:20 या, “दस शहर।”

मर 6:9 शाब्दिक, “दो-दो कुरते भी न पहनें।”

मर 6:11 मत्ती 10:14 फुटनोट देखें।

मर 6:14 लूका 3:1 फुटनोट देखें।

मर 6:37 दीनार, चाँदी का एक रोमी सिक्का था, जिसका वज़न 3.85 ग्राम था।

मर 6:48 मर 13:35 और मत्ती 14:25 के फुटनोट देखें।

मर 7:2 मत्ती 15:2 फुटनोट देखें।

मर 7:16 मत्ती 17:21 फुटनोट देखें।

मर 7:31 या, “दस शहर।”

मर 8:34 अतिरिक्‍त लेख 6 देखें।

मर 8:38 शाब्दिक, “व्यभिचारी।”

मर 9:5 इब्रानी में “रब्बी।”

मर 9:43 यरूशलेम के बाहर कूड़ा-करकट जलाने की जगह। अतिरिक्‍त लेख 9 देखें।

मर 9:44 मत्ती 17:21 फुटनोट देखें।

मर 9:46 मत्ती 17:21 फुटनोट देखें।

मर 10:9 शाब्दिक, “परमेश्‍वर ने जूए में जोड़ा है।”

मर 10:30 या, “दुनिया की व्यवस्था।”

मर 10:51 इब्रानी में “रब्बोनी।”

मर 11:9 शाब्दिक, “होसन्‍ना।”

मर 11:17 शाब्दिक, “गुफा।”

मर 11:26 मत्ती 17:21 फुटनोट देखें।

मर 12:14 यूनानी में “कैसर।”

मर 12:42 शाब्दिक, “दो लेप्टा।” एक लेप्टा यहूदियों का सबसे छोटा सिक्का था, जो पीतल या ताँबे का हुआ करता था। दो लेप्टा एक दिन की मज़दूरी का 1/64वाँ हिस्सा था।

मर 13:20 शाब्दिक, “शरीर।”

मर 13:27 शाब्दिक, “चारों हवाओं से।”

मर 13:32 शाब्दिक, “घड़ी।”

मर 13:35 “दिन ढलने पर।” यूनानियों और रोमियों के मुताबिक रात के चार पहरों का पहला पहर। यह पहर सूरज ढलने से लेकर रात के करीब नौ बजे तक होता था।

मर 13:35 “आधी रात।” यूनानियों और रोमियों के मुताबिक रात के चार पहरों का दूसरा पहर। यह पहर रात के करीब नौ बजे से आधी रात तक होता था।

मर 13:35 “मुर्गे के बाँग देने के वक्‍त।” यूनानियों और रोमियों के मुताबिक रात के चार पहरों का तीसरा पहर। यह पहर आधी रात से लेकर रात के करीब तीन बजे तक होता था।

मर 13:35 “तड़के सुबह।” यूनानियों और रोमियों के मुताबिक रात के चार पहरों का चौथा पहर। यह पहर सुबह करीब तीन बजे से लेकर सूरज निकलने तक होता था।

मर 14:12 मत्ती 26:17 फुटनोट देखें।

मर 14:25 शाब्दिक, “अंगूर की बेल की उपज से बनी यह चीज़।”

मर 14:36 मत्ती 26:39 फुटनोट देखें।

मर 14:55 मत्ती 26:59 फुटनोट देखें।

मर 15:1 मत्ती 26:59 फुटनोट देखें।

मर 15:1 मत्ती 27:2 फुटनोट देखें।

मर 15:21 अतिरिक्‍त लेख 6 देखें।

मर 15:25 मत्ती 20:3 फुटनोट देखें।

मर 15:28 मत्ती 17:21 फुटनोट देखें।

मर 15:33 मत्ती 20:5 पहला फुटनोट देखें।

मर 15:33 मत्ती 20:5 दूसरा फुटनोट देखें।

मर 15:39 या, “शतपति,” जिसकी कमान के नीचे सौ सैनिक होते थे।

मर 15:42 मत्ती 27:62 फुटनोट देखें।

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