वॉचटावर ऑनलाइन लाइब्रेरी
वॉचटावर
ऑनलाइन लाइब्रेरी
हिंदी
  • बाइबल
  • प्रकाशन
  • सभाएँ
  • bi7 मत्ती 1:1-28:20
  • मत्ती

इस भाग के लिए कोई वीडियो नहीं है।

माफ कीजिए, वीडियो डाउनलोड नहीं हो पा रहा है।

  • मत्ती
  • नयी दुनिया अनुवाद—मसीही यूनानी शास्त्र
नयी दुनिया अनुवाद—मसीही यूनानी शास्त्र
मत्ती

मत्ती के मुताबिक खुशी का संदेश

1 इस किताब में यीशु के जीवन का इतिहास है, जो मसीह* है। वह अब्राहम के वंश से, और उसके वंशज दाविद के वंश से था। पेश है यीशु की वंशावली:

 2 अब्राहम से इसहाक पैदा हुआ

इसहाक से याकूब;

याकूब से यहूदा और उसके भाई पैदा हुए;

 3 यहूदा से पेरेस और ज़ेरह पैदा हुए जिनकी माँ तामार थी;

पेरेस से हेस्रोन;

हेस्रोन से एराम पैदा हुआ;

 4 एराम से अम्मीनादाब पैदा हुआ;

अम्मीनादाब से नहशोन;

नहशोन से सलमोन पैदा हुआ।

 5 सलमोन से बोअज़ पैदा हुआ, बोअज़ की माँ राहाब थी।

बोअज़ से ओबेद पैदा हुआ; ओबेद की माँ रूत थी।

ओबेद से यिशै पैदा हुआ।

 6 यिशै से राजा दाविद पैदा हुआ;

 दाविद से सुलैमान पैदा हुआ। सुलैमान उस स्त्री से पैदा हुआ जो पहले उरिय्याह की पत्नी थी;

 7 सुलैमान से रहूबियाम पैदा हुआ;

रहूबियाम से अबिय्याह पैदा हुआ;

अबिय्याह से आसा पैदा हुआ;

 8 आसा से यहोशापात पैदा हुआ;

यहोशापात से यहोराम पैदा हुआ;

यहोराम से उज़िय्याह पैदा हुआ।

 9 उज़िय्याह से योताम पैदा हुआ;

योताम से आहाज़ पैदा हुआ;

आहाज़ से हिज़किय्याह पैदा हुआ।

10 हिज़किय्याह से मनश्‍शे पैदा हुआ।

मनश्‍शे से आमोन पैदा हुआ;

आमोन से योशिय्याह पैदा हुआ।

11 योशिय्याह से यकोन्याह और उसके भाई पैदा हुए। उस दौरान, यहूदियों को बंदी बनाकर बैबिलोनिया देश ले जाया गया।

12 बैबिलोनिया देश में यकोन्याह से शालतिएल पैदा हुआ;

शालतिएल से ज़रुब्बाबेल पैदा हुआ;

13 ज़रुब्बाबेल से अबीहूद पैदा हुआ;

अबीहूद से एल्याकीम पैदा हुआ;

एल्याकीम से अज़ोर पैदा हुआ;

14 अज़ोर से सादोक पैदा हुआ;

सादोक से अखीम पैदा हुआ;

अखीम से एलीहूद पैदा हुआ;

15 एलीहूद से एलियाज़र पैदा हुआ;

एलियाज़र से मत्तान पैदा हुआ;

मत्तान से याकूब पैदा हुआ;

16 याकूब से यूसुफ पैदा हुआ जो मरियम का पति था। मरियम ने यीशु को जन्म दिया जो मसीह* कहलाता है।

17 अब्राहम से दाविद तक सारी पीढ़ियाँ मिलाकर चौदह पीढ़ियाँ हुईं। दाविद से लेकर यहूदियों को बैबिलोनिया देश ले जाए जाने के वक्‍त तक चौदह पीढ़ियाँ हुईं। बैबिलोनिया देश ले जाए जाने के वक्‍त से मसीह तक चौदह पीढ़ियाँ हुईं।

18 मगर, यीशु मसीह का जन्म इस तरह से हुआ। उसकी माँ मरियम की सगाई यूसुफ से हो चुकी थी। मगर उनकी शादी से पहले जब वह कुँवारी ही थी, तब परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति* की ताकत से मरियम गर्भवती हुई। 19 उसका पति* यूसुफ एक नेक इंसान था। वह लोगों के सामने मरियम का तमाशा नहीं बनाना चाहता था। इसलिए उसने चुपके से मरियम को तलाक* देने का इरादा किया। 20 जब वह इन बातों के बारे में सोच-विचार करने के बाद सो गया, तो उसे सपने में अचानक यहोवा* का स्वर्गदूत दिखायी दिया। स्वर्गदूत ने उससे कहा: “यूसुफ, दाविद के वंशज, तू मरियम से शादी* करने से मत डर, क्योंकि जो उसके गर्भ में है वह परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति की ताकत से है। 21 मरियम एक बेटे को जन्म देगी। तू उसका नाम यीशु* रखना, क्योंकि वह अपने लोगों का उनके पापों से उद्धार करेगा।” 22 यह सबकुछ इसलिए हुआ ताकि यहोवा का यह वचन पूरा हो, जो उसने अपने भविष्यवक्‍ता के ज़रिए कहा था: 23 “देखो, कुँवारी गर्भवती होगी और एक बेटे को जन्म देगी। वे उसका नाम इम्मानुएल रखेंगे,” जिसका मतलब है, “परमेश्‍वर हमारे साथ है।”

24 तब यूसुफ नींद से जाग उठा और उसने वैसा ही किया जैसा यहोवा के दूत ने उसे हिदायत दी थी। वह अपनी पत्नी को अपने घर ले आया। 25 मगर जब तक मरियम ने बेटे को जन्म न दिया, तब तक यूसुफ ने उसके साथ संभोग न किया। यूसुफ ने उस बच्चे का नाम यीशु रखा।

2 यीशु का जन्म यहूदिया प्रदेश के बेतलेहेम में हो चुका था। उन दिनों हेरोदेस* यहूदिया का राजा था। यीशु के जन्म के कुछ समय बाद, देखो! पूरब से ज्योतिषी* राजधानी यरूशलेम में आए। 2 वे यह पूछने लगे: “यहूदियों का जो राजा पैदा हुआ है, वह कहाँ है? क्योंकि जब हम पूरब में थे, तो हमने उसका तारा देखा था। इसलिए हम उसे प्रणाम करने आए हैं।” 3 यह बात सुनकर राजा हेरोदेस घबरा गया, और यरूशलेम के सभी लोगों में खलबली मच गयी। 4 इसलिए हेरोदेस ने सभी प्रधान याजकों और शास्त्रियों* को इकट्ठा किया और वह उनसे पूछने लगा कि मसीह का जन्म कहाँ होना है।* 5 उन्होंने कहा: “यहूदिया के बेतलेहेम में; क्योंकि भविष्यवक्‍ता के ज़रिए यह लिखवाया गया है, 6 ‘हे यहूदा के इलाके के बेतलेहेम, तू यहूदा के प्रधानों के बीच किसी भी मायने में सबसे छोटा शहर नहीं; क्योंकि तुझी में से इस्राएल का सबसे बड़ा प्रधान निकलेगा जो चरवाहे की तरह मेरी प्रजा इस्राएल की अगुवाई करेगा।’ ”

7 तब हेरोदेस ने चुपके से उन ज्योतिषियों को बुलवाया। फिर उनसे अच्छी तरह पूछताछ कर पता लगाया कि उन्हें यह तारा पहली बार कब नज़र आया था। 8 फिर उसने यह कहकर उन्हें बेतलेहेम भेजा: “जाओ और अच्छी तरह ढूँढ़कर उस बच्चे का पता लगाओ। जब वह तुम्हें मिल जाए तो आकर मुझे खबर देना, ताकि मैं भी जाकर उसे प्रणाम कर सकूँ।” 9 राजा हेरोदेस की यह बात सुनने के बाद ज्योतिषी वहाँ से निकल पड़े। तब देखो! वही तारा जो उन्हें उस वक्‍त दिखायी दिया था जब वे पूरब में थे, उनके आगे-आगे चलने लगा और जाकर उस घर के ऊपर ठहर गया जहाँ वह बच्चा था। 10 जब उन्होंने तारे को ठहरते देखा, तो उनकी खुशी का ठिकाना न रहा। 11 जब वे उस घर के अंदर गए, तो बच्चे को उसकी माँ मरियम के साथ देखा। उन्होंने बच्चे के आगे गिरकर उसे प्रणाम किया। साथ ही, उन्होंने अपना-अपना खज़ाना खोलकर उसे सोना, लोबान और गंधरस तोहफे में दिए। 12 मगर परमेश्‍वर ने सपने में उन्हें चेतावनी दी कि हेरोदेस के पास फिर न जाना। इसलिए वे दूसरे रास्ते से अपने देश लौट गए।

13 उनके चले जाने के बाद, देखो! यहोवा का दूत यूसुफ को सपने में दिखायी दिया और उससे कहने लगा: “उठ, बच्चे और उसकी माँ को लेकर मिस्र भाग जा। जब तक मैं तुझसे न कहूँ, तब तक वहीं रहना; क्योंकि हेरोदेस इस बच्चे को मार डालने के लिए इसकी तलाश करनेवाला है।” 14 इसलिए यूसुफ उठा और बच्चे और उसकी माँ को लेकर रात ही में मिस्र के लिए चल पड़ा 15 वह हेरोदेस की मौत तक वहीं रहा। इस तरह, वह बात पूरी हुई जो यहोवा ने अपने भविष्यवक्‍ता के ज़रिए कही थी: “मैंने अपने बेटे को मिस्र देश से बुलाया।”

16 जब हेरोदेस ने देखा कि ज्योतिषियों ने उसके साथ चालाकी की है, तो वह गुस्से से आग-बबूला हो गया। तब उसने अपने सेवकों को यह हुक्म दिया: ‘जाओ और बेतलेहेम और उसके आसपास के सभी ज़िलों में जितने लड़के दो साल और उससे कम उम्र के हैं उन सबको मार डालो।’ उसने ज्योतिषियों से पूछताछ करने के बाद कि उन्हें तारा कब दिखायी दिया था, यह काम करवाया था। 17 इस घटना से वह बात पूरी हुई जो यिर्मयाह भविष्यवक्‍ता से कहलवायी गयी थी: 18 “रामा में रोने और बड़े विलाप की आवाज़ सुनायी दी; यह राहेल है जो अपने बच्चों के लिए रो रही है और किसी भी तरह का दिलासा नहीं चाहती, क्योंकि वे अब नहीं रहे।”

19 हेरोदेस के मरने के बाद, देखो! मिस्र में यहोवा का स्वर्गदूत यूसुफ को सपने में दिखायी दिया। 20 स्वर्गदूत ने यूसुफ से कहा: “उठ, बच्चे और उसकी माँ को लेकर इस्राएल देश के लिए रवाना हो जा, क्योंकि जो बच्चे की जान लेना चाहते थे वे मर चुके हैं।” 21 इसलिए यूसुफ उठा और बच्चे और उसकी माँ को लेकर इस्राएल देश में दाखिल हुआ। 22 मगर यह सुनकर कि अरखिलाउस अपने पिता हेरोदेस की जगह राजा बनकर यहूदिया पर राज कर रहा है, वह वहाँ जाने से डरा। साथ ही, सपने में परमेश्‍वर ने उसे चेतावनी दी थी, इसलिए वह गलील प्रदेश में चला गया। 23 वह आकर नासरत नाम के शहर में बस गया। इससे ये शब्द पूरे हुए जो भविष्यवक्‍ताओं से कहलवाए गए थे: “वह एक नासरी कहलाएगा।” 

3 उन दिनों यूहन्‍ना बपतिस्मा देनेवाला यहूदा के वीरान इलाकों में आया। 2 वह यह प्रचार करने लगा: “पश्‍चाताप करो, क्योंकि स्वर्ग का राज पास आ गया है।” 3 दरअसल यूहन्‍ना वही है जिसके बारे में यशायाह भविष्यवक्‍ता के ज़रिए ये वचन कहलवाए गए थे: “सुनो! वीराने में कोई यह पुकार लगा रहा है, ‘यहोवा का मार्ग तैयार करो, उसकी सड़कें सीधी करो।’ ” 4 इस यूहन्‍ना के कपड़े, ऊँट के बालों से बने थे। वह चमड़े का कमरबंध बाँधा करता था और उसका खाना टिड्डियाँ और जंगली शहद था। 5 तब यरूशलेम और सारे यहूदिया और यरदन नदी के आस-पास के सारे इलाके से लोग निकलकर उसके पास आने लगे। 6 वे सबके सामने अपने पापों को मान लेते थे और यूहन्‍ना उन्हें यरदन नदी में बपतिस्मा* देता था।

7 फिर बहुत-से फरीसी* और सदूकी* भी बपतिस्मे की जगह पर आए। जब यूहन्‍ना की नज़र उन पर पड़ी, तो उसने उनसे कहा: “अरे साँप के संपोलो, किसने तुम्हें आगाह कर दिया कि तुम आनेवाले कहर से भाग सकते हो? 8 इसलिए पश्‍चाताप दिखानेवाले फल पैदा करो। 9 खुद को यह भरोसा मत दिलाओ कि ‘हम तो अब्राहम के वंशज हैं।’ क्योंकि मैं तुमसे कहता हूँ कि परमेश्‍वर इन पत्थरों से अब्राहम के लिए संतान पैदा कर सकता है। 10 पेड़ों की जड़ पर कुल्हाड़ा रखा जा चुका है। हर वह पेड़ जो बढ़िया फल नहीं लाता, उसे काटा और आग में झोंका जाएगा। 11 मैं तो तुम्हारे पश्‍चाताप की वजह से तुम्हें पानी से बपतिस्मा देता हूँ। मगर जो मेरे बाद आनेवाला है, वह मुझसे कहीं शक्‍तिशाली है। मैं उसकी जूतियाँ उतारने के भी लायक नहीं हूँ। वह तुम लोगों को पवित्र शक्‍ति से और आग से बपतिस्मा देगा।* 12 उसके हाथ में भूसी अलग करनेवाला उसाने का बेलचा है और वह अपने खलिहान को पूरी तरह साफ करेगा और अपने गेहूँ को तो इकट्ठा कर गोदाम में रखेगा, मगर भूसी को उस आग में जला देगा जिसे बुझाया नहीं जा सकता।”

13 फिर यीशु गलील प्रदेश से यरदन नदी के किनारे यूहन्‍ना के पास आया ताकि उससे बपतिस्मा ले। 14 मगर यूहन्‍ना ने यह कहकर उसे रोकने की कोशिश की: “मुझे तो खुद तेरे हाथ से बपतिस्मा लेने की ज़रूरत है, और तू मेरे पास आया है?” 15 जवाब में यीशु ने उससे कहा: “इस वक्‍त ऐसा ही होने दे। क्योंकि हमारे लिए यह सही है कि हम इस तरह परमेश्‍वर की सारी मरज़ी* पूरी करें।” तब यूहन्‍ना ने उसे नहीं रोका। 16 बपतिस्मा लेने के बाद यीशु फौरन पानी में से ऊपर आया। तभी आकाश खुल गया, और उसने परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति को एक कबूतर के रूप में उस पर उतरते देखा। 17 साथ ही, स्वर्ग से परमेश्‍वर की आवाज़ आयी: “यह मेरा प्यारा बेटा है। मैंने इसे मंज़ूर किया है।”

4 तब, परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति के असर में यीशु वीराने में गया। वहाँ शैतान* ने उसकी परीक्षा लेने के लिए उसे फुसलाने की कोशिश की। 2 यीशु ने चालीस दिन और चालीस रात तक उपवास किया था, फिर उसे भूख लगी। 3 तब फुसलानेवाला आया और उससे कहा: “अगर तू सचमुच परमेश्‍वर का बेटा है, तो इन पत्थरों से बोल कि ये रोटियाँ बन जाएँ।” 4 मगर जवाब में यीशु ने कहा: “यह लिखा है, ‘इंसान सिर्फ रोटी से ज़िंदा नहीं रह सकता, बल्कि उसे यहोवा के मुँह से निकलनेवाले हर वचन से ज़िंदा रहना है।’ ”

5 इसके बाद, शैतान उसे अपने साथ पवित्र शहर यरूशलेम ले गया और उसे मंदिर की चारदीवारी के ऊपर* लाकर खड़ा किया। 6 उसने यीशु से कहा: “अगर तू सचमुच परमेश्‍वर का बेटा है, तो यहाँ से नीचे छलाँग लगा दे। क्योंकि शास्त्र में लिखा है, ‘परमेश्‍वर अपने स्वर्गदूतों को तेरी रक्षा करने का हुक्म देगा। वे तुझे हाथों-हाथ उठा लेंगे, ताकि ऐसा न हो कि तेरा पैर किसी पत्थर से चोट खाए।’ ” 7 यीशु ने शैतान से कहा: “यह भी लिखा है, ‘तू अपने परमेश्‍वर यहोवा की परीक्षा न लेना।’ ”

8 फिर शैतान उसे अपने साथ बहुत ही ऊँचे पहाड़ पर ले गया। और उसे दुनिया के तमाम राज्य और उनकी शानो-शौकत दिखायी।* 9 फिर उसने यीशु से कहा: “अगर तू बस एक बार मेरे सामने गिरकर मेरी उपासना करे, तो मैं यह सबकुछ तुझे दे दूँगा।” 10 तब यीशु ने उससे कहा: “दूर हो जा शैतान! क्योंकि यह लिखा है, ‘तू सिर्फ अपने परमेश्‍वर यहोवा की उपासना कर और उसी की पवित्र सेवा कर।’ ” 11 तब शैतान उसे छोड़कर चला गया। और देखो! स्वर्गदूत आकर यीशु की सेवा करने लगे।

12 जब यीशु ने सुना कि यूहन्‍ना को गिरफ्तार कर लिया गया है, तो वह वहाँ से गलील चला गया। 13 फिर नासरत छोड़ने के बाद वह कफरनहूम में रहने लगा, जो झील के किनारे ज़बूलून और नप्ताली के ज़िलों में है। 14 इससे वह वचन पूरा हुआ जो यशायाह भविष्यवक्‍ता से कहलवाया गया था: 15 “हे ज़बूलून के देश और नप्ताली के देश, समुद्र के रास्ते पर यरदन के उस पार, गैर-यहूदियों के गलील! 16 जो लोग अंधकार में बैठे थे, उन्होंने एक बड़ी रौशनी देखी। जो मौत के साए के देश में बैठे थे, उन पर रौशनी चमकी।” 17 उस वक्‍त से यीशु ने प्रचार करना और यह कहना शुरू किया: “पश्‍चाताप करो, क्योंकि स्वर्ग का राज पास आ गया है।”

18 गलील झील* के किनारे चलते-चलते यीशु ने शमौन को, जो पतरस कहलाता है और उसके भाई अन्द्रियास को झील में जाल डालते देखा। वे दोनों मछुवारे थे। 19 उसने उनसे कहा: “मेरे पीछे हो लो। जिस तरह तुम मछलियाँ इकट्ठी करते हो, मैं तुम्हें इंसानों को इकट्ठा करनेवाले बनाऊँगा।” 20 तब वे फौरन अपने जाल छोड़कर उसके पीछे हो लिए। 21 वहाँ से आगे बढ़ने पर यीशु ने याकूब और यूहन्‍ना को देखा। ये दोनों भाई थे और जब्दी नाम के आदमी के बेटे थे। वे अपने पिता जब्दी के साथ नाव में अपने जाल ठीक कर रहे थे। तब यीशु ने उन्हें भी बुलाया। 22 वे फौरन नाव और अपने पिता को छोड़कर उसके पीछे हो लिए।

23 यीशु सारे गलील प्रदेश का दौरा करता हुआ, उनके सभा-घरों में सिखाता और राज की खुशखबरी का प्रचार करता रहा। साथ ही वह लोगों के बीच हर तरह की बीमारी और हर तरह की दुर्बलता को दूर करता रहा। 24 यहाँ तक कि उसकी खबर दूर सारे सीरिया प्रांत तक फैल गयी। लोग हर तरह की तकलीफ के मारों को उसके पास ले आए, जो तरह-तरह की बीमारियों और पीड़ाओं से दुःखी थे। उनमें ऐसे लोग भी थे जिनमें दुष्ट स्वर्गदूत समाए थे और मिरगी और लकवे के मारे भी थे। यीशु ने उन सबको चंगा किया। 25 नतीजा यह हुआ कि गलील और दिकापुलिस* और यरूशलेम और यहूदिया से और यरदन के पार से, भीड़-की-भीड़ उसके पीछे हो ली।

5 जब यीशु ने भीड़ को देखा, तो वह पहाड़ पर चढ़ गया। फिर जब वह बैठ गया, तो उसके चेले उसके पास आए। 2 तब वह उन्हें ये बातें सिखाने लगा:

3 “सुखी हैं वे जिनमें परमेश्‍वर से मार्गदर्शन पाने की भूख है,* क्योंकि स्वर्ग का राज उन्हीं का है।

4 सुखी हैं वे जो मातम मनाते हैं, क्योंकि उन्हें दिलासा दिया जाएगा।

5 सुखी हैं वे जो कोमल स्वभाव के हैं, क्योंकि वे धरती के वारिस होंगे।

6 सुखी हैं वे जो न्याय* होते देखने की भूख और प्यास से तड़पते हैं, क्योंकि वे तृप्त किए जाएँगे।

7 सुखी हैं वे जो दयालु हैं, क्योंकि उन पर दया की जाएगी।

8 सुखी हैं वे जो दिल के साफ हैं, क्योंकि वे परमेश्‍वर को देखेंगे।

9 सुखी हैं वे जो शांति कायम करते हैं, क्योंकि वे ‘परमेश्‍वर के बेटे’ कहलाएँगे।

10 सुखी हैं वे जो सही काम करने की वजह से ज़ुल्म सहते हैं, क्योंकि स्वर्ग का राज उन्हीं का है।

11 सुखी हो तुम जब लोग तुम्हें मेरे चेले होने की वजह से बदनाम करें और तुम पर ज़ुल्म ढाएँ और झूठ बोल-बोलकर तुम्हारे खिलाफ हर तरह की बुरी बात कहें। 12 तब तुम आनंद मनाना और खुशी के मारे उछलना। इसलिए कि स्वर्ग में तुम्हारे लिए बड़ा इनाम है। उन्होंने तुमसे पहले के भविष्यवक्‍ताओं पर भी इसी तरह ज़ुल्म ढाए थे।

13 तुम पृथ्वी के नमक हो। लेकिन अगर नमक फीका हो जाए, तो क्या फिर उसे किसी तरह दोबारा नमकीन किया जा सकता है? नहीं, वह किसी काम का नहीं रहता। उसे बाहर सड़कों पर फेंक दिया जाता है और वह लोगों के पैरों तले रौंदा जाता है।

14 तुम दुनिया की रौशनी हो। जो शहर पहाड़ पर बसा हो, वह छिप नहीं सकता। 15 लोग दीपक जलाकर उसे टोकरी* से ढककर नहीं रखते, बल्कि दीपदान पर रखते हैं। इससे घर के सब लोगों को रौशनी मिलती है। 16 उसी तरह तुम्हारी रौशनी लोगों के सामने चमके, जिससे वे तुम्हारे भले काम देखकर स्वर्ग में रहनेवाले तुम्हारे पिता की महिमा करें।

17 यह मत सोचो कि मैं मूसा के कानून या भविष्यवक्‍ताओं के वचनों को रद्द करने आया हूँ। मैं उन्हें रद्द करने नहीं, बल्कि पूरा करने आया हूँ। 18 मैं तुमसे सच कहता हूँ कि आकाश और पृथ्वी चाहे मिट जाएँ, मगर जब तक मूसा के कानून में लिखी सारी बातें पूरी न हो लें, तब तक इसका छोटे-से-छोटा अक्षर या एक बिंदु भी पूरा हुए बिना हरगिज़ न मिटेगा। 19 इसलिए जो कोई इसमें लिखी छोटी-से-छोटी आज्ञाओं में से किसी एक को तोड़ता है और लोगों को भी वैसा ही सिखाता है, वह स्वर्ग के राज में दाखिल होने के लायक नहीं होगा।* मगर जो इन्हें मानता और इन्हें सिखाता भी है, वह स्वर्ग के राज में दाखिल होने के लायक होगा।* 20 क्योंकि मैं तुमसे कहता हूँ कि अगर तुम्हारे नेक काम* शास्त्रियों और फरीसियों के नेक कामों से बढ़कर न हों, तो तुम स्वर्ग के राज में हरगिज़ दाखिल न होगे।

21 तुम सुन चुके हो कि गुज़रे ज़माने के लोगों से कहा गया था, ‘तू खून न करना; और जो कोई खून करता है उसे अदालत के सामने जवाब देना पड़ेगा।’ 22 मगर मैं तुमसे कहता हूँ कि हर वह इंसान जिसके दिल में अपने भाई के खिलाफ गुस्से की आग सुलगती रहती है, उसे अदालत के सामने जवाब देना पड़ेगा। और हर वह इंसान जो घृणित शब्दों* से अपने भाई का तिरस्कार करता है, उसे सबसे बड़ी अदालत* के सामने जवाब देना पड़ेगा। और हर वह इंसान जो अपने भाई से कहता है, ‘अरे चरित्रहीन मूर्ख!’ वह गेहन्‍ना* की आग में डाले जाने की सज़ा के लायक ठहरेगा।

23 इसलिए, अगर तू मंदिर में वेदी के पास अपनी भेंट ला रहा हो और वहाँ तुझे याद आए कि तेरे भाई को तुझसे कुछ शिकायत है, 24 तो तू अपनी भेंट वहीं वेदी के सामने छोड़ दे और जाकर पहले अपने भाई के साथ सुलह कर और जब तू लौट आए तब अपनी भेंट चढ़ा।

25 जो तेरे खिलाफ मुकद्दमा दायर करने जा रहा हो, उसके साथ तू रास्ते में ही जल्द-से-जल्द सुलह कर ले। कहीं ऐसा न हो कि वह तुझे न्यायाधीश के हवाले कर दे और न्यायी तुझे प्यादे के हवाले कर दे और तुझे कैदखाने में डाल दिया जाए। 26 मैं तुझसे सच कहता हूँ, जब तक तू एक-एक पाई* न चुका दे, तब तक तू वहाँ से किसी भी हाल में न छूट सकेगा।

27 तुम सुन चुके हो कि कहा गया था, ‘तू शादी के बाहर यौन-संबंध* न रखना।’ 28 मगर मैं तुमसे कहता हूँ कि हर वह आदमी जो किसी स्त्री को ऐसी नज़र से देखता रहता है जिससे उसके मन में स्त्री के लिए वासना पैदा हो, वह अपने दिल में उस स्त्री के साथ व्यभिचार* कर चुका। 29 अगर तेरी दायीं आँख तुझसे पाप करवा रही है, तो उसे नोंचकर निकाल दे और दूर फेंक दे। तेरे लिए यह ज़्यादा भला है कि तू अपना एक अंग गँवा दे, बजाय इसके कि तेरा पूरा शरीर गेहन्‍ना में झोंक दिया जाए। 30 और अगर तेरा दायाँ हाथ तुझसे पाप करवा रहा है, तो उसे काटकर दूर फेंक दे। तेरे लिए यह ज़्यादा भला है कि तू अपना एक अंग गँवा दे, बजाय इसके कि तेरा पूरा शरीर गेहन्‍ना में डाला जाए।

31 यह भी कहा गया था, ‘जो कोई अपनी पत्नी को तलाक देता है, वह उसे एक तलाकनामा दे।’ 32 लेकिन मैं तुमसे कहता हूँ कि हर वह आदमी जो व्यभिचार* के अलावा किसी और वजह से अपनी पत्नी को तलाक देता है, वह उसे शादी के बाहर यौन-संबंध रखने के खतरे में डालता है। और जो कोई ऐसी तलाकशुदा स्त्री से शादी करता है, वह शादी के बाहर यौन-संबंध रखने का गुनहगार है।

33 इसके अलावा, तुमने यह भी सुना है कि गुज़रे ज़माने के लोगों से कहा गया था, ‘तू ऐसी कसम न खाना जिसे तू पूरा न करे, मगर तू यहोवा के सामने मानी मन्‍नतें पूरी करना।’ 34 लेकिन मैं कहता हूँ: तू कभी कसम न खाना, न स्वर्ग की क्योंकि वह परमेश्‍वर की राजगद्दी है। 35 न ही पृथ्वी की, क्योंकि यह उसके पाँवों की चौकी है; न यरूशलेम की, क्योंकि यह उस महाराजा का शहर है। 36 न ही तू अपने सिर की कसम खाना, क्योंकि तू एक बाल तक को सफेद या काला नहीं कर सकता। 37 बस तुम्हारी ‘हाँ’ का मतलब हाँ हो, और ‘न’ का मतलब न। इसलिए कि इससे बढ़कर जो कुछ कहा जाता है वह शैतान से होता है।

38 तुम सुन चुके हो कि कहा गया था, ‘आँख के बदले आँख और दाँत के बदले दाँत।’ 39 लेकिन मैं तुमसे कहता हूँ: जो दुष्ट है उसका मुकाबला मत करो; इसके बजाय, जो कोई तेरे दाएँ गाल पर थप्पड़ मारे, उसकी तरफ दूसरा गाल भी कर दे। 40 और अगर कोई तुझ पर अदालत में मुकद्दमा कर तेरा कुरता लेना चाहे, तो उसे अपना ओढ़ना भी दे दे; 41 और अगर कोई अधिकारी तुझे जबरन सेवा में एक मील ले जाए, तो तू उसके साथ दो मील चला जा। 42 जो कोई तुझसे माँगता है, उसे दे दे और जो तुझसे बिन ब्याज के उधार लेना चाहे उसे देने से इनकार मत कर।

43 तुम सुन चुके हो कि कहा गया था, ‘तुझे अपने पड़ोसी से प्यार करना है और अपने दुश्‍मन से नफरत।’ 44 लेकिन मैं तुमसे कहता हूँ: अपने दुश्‍मनों से प्यार करते रहो और जो तुम पर ज़ुल्म कर रहे हैं, उनके लिए प्रार्थना करते रहो। 45 इस तरह तुम स्वर्ग में रहनेवाले अपने पिता के बेटे होने का सबूत दो, क्योंकि वह अच्छे और बुरे, दोनों तरह के लोगों पर अपना सूरज चमकाता है और नेक और दुष्ट दोनों पर बारिश बरसाता है। 46 क्योंकि अगर तुम उन्हीं से प्यार करो जो तुमसे प्यार करते हैं, तो तुम्हें इसका क्या इनाम मिलेगा? क्या कर-वसूलनेवाले* भी ऐसा ही नहीं करते? 47 और अगर तुम सिर्फ अपने भाइयों को ही नमस्कार करो, तो कौन-सा अनोखा काम करते हो? क्या गैर-यहूदी भी ऐसा ही नहीं करते? 48 इसलिए तुम सिद्ध बनो, जैसे स्वर्ग में रहनेवाला तुम्हारा पिता भी सिद्ध है।

6 खबरदार रहो कि तुम लोगों को दिखाने के लिए उनके सामने नेकी के काम न करो; नहीं तो तुम अपने पिता से जो स्वर्ग में है, कोई फल न पाओगे। 2 इसलिए जब तू दान* करे, तो अपने आगे-आगे तुरही न बजवा, जैसे कपटी सभा-घरों और गलियों में बजवाते हैं, ताकि लोग उनकी बड़ाई करें। मैं तुमसे सच कहता हूँ, वे अपना पूरा फल पा चुके। 3 मगर जब तू दान करे, तो इस तरह करना कि तेरे बाएँ हाथ को भी न मालूम पड़े कि तेरा दायाँ हाथ क्या कर रहा है, 4 जिससे तेरा दान गुप्त रहे। तब तेरा पिता जो गुप्त काम को देख रहा है, तुझे इसका बदला देगा।

5 जब तुम प्रार्थना करो, तो कपटियों की तरह मत करो; क्योंकि उन्हें सभा-घरों और सड़कों के चौराहे पर खड़े होकर प्रार्थना करना अच्छा लगता है ताकि लोग उन्हें देखें। मैं तुमसे सच कहता हूँ, वे अपना पूरा फल पा चुके। 6 लेकिन जब तू प्रार्थना करे, तो अपने घर के अंदर के कमरे में जा और दरवाज़ा बंद करने के बाद अपने पिता से जिसे कोई देख नहीं सकता,* प्रार्थना कर, तब तेरा पिता जो तेरा हर काम देख सकता है,* वह तुझे इसका फल देगा। 7 मगर प्रार्थना करते वक्‍त, दुनिया के लोगों की तरह बार-बार एक ही बात न दोहरा, क्योंकि वे सोचते हैं कि उनके बहुत ज़्यादा बोलने से परमेश्‍वर उनकी सुनेगा। 8 इसलिए, तुम उनके जैसे न बनना, क्योंकि परमेश्‍वर जो तुम्हारा पिता है तुम्हारे माँगने से पहले जानता है कि तुम्हें किन चीज़ों की ज़रूरत है।

9 इसलिए, तुम इस तरह प्रार्थना करना:

‘हे हमारे पिता तू जो स्वर्ग में है, तेरा नाम पवित्र किया जाए। 10 तेरा राज आए। तेरी मरज़ी, जैसे स्वर्ग में पूरी हो रही है, वैसे ही धरती पर भी पूरी हो।* 11 आज के इस दिन की रोटी हमें दे; 12 जैसे हमने अपने खिलाफ पाप करनेवालों* को माफ किया है, वैसे ही तू भी हमारे पापों* को माफ कर। 13 जब हम पर परीक्षा आए तो हमें गिरने न दे, मगर हमें उस दुष्ट शैतान से बचा।’

14 अगर तुम दूसरों के अपराध माफ करोगे, तो तुम्हारा स्वर्गीय पिता भी तुम्हें माफ करेगा। 15 लेकिन अगर तुम दूसरों के अपराध माफ नहीं करोगे, तो तुम्हारा पिता भी तुम्हारे अपराध माफ नहीं करेगा।

16 जब तुम उपवास करते हो, तो पाखंडियों की तरह मुँह लटकाए रहना बंद करो, क्योंकि वे अपना चेहरा गंदा रहने देते हैं ताकि लोग उन्हें देखकर जानें कि वे उपवास कर रहे हैं। मैं तुमसे सच कहता हूँ, वे अपना पूरा फल पा चुके। 17 लेकिन जब तू उपवास करे, तो अपने सिर में तेल लगा और मुँह धो, 18 ताकि इंसान नहीं, बल्कि तेरा पिता जिसे इंसान की आँखें देख नहीं सकतीं, उसे मालूम हो कि तू उपवास कर रहा है। तब तेरा पिता जो तेरा हर काम देख सकता है,* वह तुझे इसका फल देगा।

19 अपने लिए पृथ्वी पर धन जमा करना बंद करो, जहाँ कीड़ा और ज़ंग उसे खा जाते हैं और जहाँ चोर सेंध लगाकर चुरा लेते हैं। 20 इसके बजाय, अपने लिए स्वर्ग में धन जमा करो, जहाँ न तो कीड़ा, न ही ज़ंग उसे खाते हैं और जहाँ न तो चोर सेंध लगाकर चुराते हैं। 21 क्योंकि जहाँ तेरा धन होगा, वहीं तेरा दिल भी होगा।

22 आँख, शरीर का दीपक है। इसलिए अगर तेरी आँख एक ही चीज़ पर टिकी है, तो तेरा सारा शरीर रौशन रहेगा। 23 लेकिन अगर तेरी आँख बुरी बातों पर लगी है, तो तेरा सारा शरीर अंधियारा होगा। इसलिए अगर तेरी आँख ही जिसे शरीर को रौशन करना था असल में अंधियारी हो गयी है, तो तू* कितने गहरे अंधकार में है!

24 कोई भी दो मालिकों का दास बनकर सेवा नहीं कर सकता; क्योंकि या तो वह एक से नफरत करेगा और दूसरे से प्यार या वह एक से जुड़ा रहेगा और दूसरे को तुच्छ समझेगा। तुम परमेश्‍वर के दास होने के साथ-साथ धन-दौलत की गुलामी नहीं कर सकते।

25 इसलिए मैं तुमसे कहता हूँ: अपनी जान के लिए चिंता करना बंद करो कि तुम क्या खाओगे या क्या पीओगे, न ही अपने शरीर के लिए चिंता करो कि तुम क्या पहनोगे। क्या जीवन, भोजन से और शरीर कपड़े से बढ़कर नहीं? 26 आकाश में उड़नेवाले पंछियों को ध्यान से देखो, क्योंकि वे न तो बीज बोते, न कटाई करते, न ही गोदामों में भरकर रखते हैं, फिर भी तुम्हारा स्वर्गीय पिता उन्हें खिलाता है। क्या तुम्हारा मोल उनसे बढ़कर नहीं? 27 तुममें ऐसा कौन है जो चिंता कर एक पल के लिए भी अपनी ज़िंदगी बढ़ा सके?* 28 तुम यह चिंता क्यों करते हो कि तुम्हारे पास पहनने के लिए कपड़े कहाँ से आएँगे? मैदान में उगनेवाले सोसन के फूलों से सबक सीखो, वे कैसे बढ़ते हैं; वे न तो कड़ी मज़दूरी करते हैं, न ही सूत कातते हैं। 29 मगर मैं तुमसे कहता हूँ कि राजा सुलैमान भी अपने पूरे वैभव में इन फूलों की तरह सज-धज न सका। 30 इसलिए, अगर परमेश्‍वर मैदान में उगनेवाले घास-फूस को, जो आज है और कल आग* में झोंक दिया जाएगा, ऐसे शानदार कपड़े पहनाता है, तो अरे, कम विश्‍वास रखनेवालो, क्या वह तुम्हें न पहनाएगा? 31 इसलिए कभी-भी चिंता न करना, न ही यह कहना, ‘हम क्या खाएँगे?’ या, ‘हम क्या पीएँगे?’ या, ‘हम क्या पहनेंगे?’ 32 क्योंकि इन्हीं सब चीज़ों के पीछे दुनिया के लोग दिन-रात भाग रहे हैं। मगर तुम्हारा स्वर्गीय पिता जानता है कि तुम्हें इन सब चीज़ों की ज़रूरत है।

33 इसलिए, तुम पहले उसके राज और उसके स्तरों के मुताबिक जो सही* है उसकी खोज में लगे रहो और ये बाकी सारी चीज़ें भी तुम्हें दे दी जाएँगी। 34 इसलिए, अगले दिन की चिंता कभी न करना, क्योंकि अगले दिन की अपनी ही चिंताएँ होंगी। आज के लिए आज की मुसीबत काफी है।

7 दोष लगाना बंद करो ताकि तुम पर दोष न लगाया जाए। 2 इसलिए कि जैसे तुम दोष लगाते हो, वैसे ही तुम पर भी दोष लगाया जाएगा। जिस नाप से तुम नापते हो, वे भी उसी नाप से तुम्हारे लिए भी नापेंगे।* 3 तो फिर, तू क्यों अपने भाई की आँख में पड़े तिनके को देखता है, मगर अपनी आँख में पड़े लट्ठे के बारे में नहीं सोचता? 4 या तू अपने भाई से यह कैसे कह सकता है, ‘आ मैं तेरी आँख का तिनका निकाल दूँ,’ जबकि देख! तेरी अपनी ही आँख में एक लट्ठा पड़ा है? 5 अरे कपटी! पहले अपनी आँख से लट्ठा निकाल, तब तू साफ-साफ देख सकेगा कि अपने भाई की आँख से तिनका कैसे निकालना है।

6 पवित्र चीज़ें कुत्तों को मत दो, न ही अपने मोती सुअरों के आगे फेंको, ऐसा न हो कि वे अपने पैरों से उन्हें रौंदें और पलटकर तुम्हें फाड़ डालें।

7 माँगते रहो और तुम्हें दे दिया जाएगा; ढूँढ़ते रहो और तुम पाओगे; खटखटाते रहो और तुम्हारे लिए खोला जाएगा। 8 क्योंकि हर कोई जो माँगता है, उसे मिलता है और जो ढूँढ़ता है, वह पाता है और हर कोई जो खटखटाता है, उसके लिए खोला जाएगा। 9 आखिर तुममें ऐसा कौन आदमी है जिसका बेटा अगर उससे रोटी माँगे, तो वह उसे एक पत्थर पकड़ा दे? 10 या अगर वह मछली माँगे, तो उसे एक साँप पकड़ा दे? क्या वह ऐसा करेगा?  11 इसलिए जब तुम दुष्ट होते हुए भी यह जानते हो कि अपने बच्चों को अच्छे तोहफे कैसे देने हैं, तो तुम्हारा पिता जो स्वर्ग में है, वह और भी बढ़कर अपने माँगनेवालों को अच्छी चीज़ें क्यों न देगा!

12 इसलिए जो कुछ तुम चाहते हो कि लोग तुम्हारे साथ करें, तुम भी उनके साथ वैसा ही करो। दरअसल, मूसा के कानून और भविष्यवक्‍ताओं की शिक्षाओं का निचोड़ यही है।

13 सँकरे फाटक से अंदर जाओ, क्योंकि चौड़ा और खुला है वह रास्ता जो विनाश की तरफ ले जाता है, और उस पर जानेवाले बहुत हैं। 14 जबकि सँकरा है वह फाटक और तंग है वह रास्ता, जो जीवन की तरफ ले जाता है और उसे पानेवाले थोड़े हैं।

15 झूठे भविष्यवक्‍ताओं से खबरदार रहो जो भेड़ों के वेश में तुम्हारे पास आते हैं, मगर अंदर से भूखे, खूँखार भेड़िए हैं। 16 उनके फलों* से तुम उन्हें पहचान लोगे। क्या लोग कभी कँटीली झाड़ियों से अंगूर या जंगली पौधों से अंजीर पाते हैं? 17 उसी तरह, हरेक अच्छा पेड़ बढ़िया फल लाता है, मगर सड़ा हुआ हर पेड़ खराब फल लाता है। 18 अच्छा पेड़ खराब फल नहीं ला सकता, न ही सड़ा हुआ पेड़ बढ़िया फल ला सकता है। 19 हर वह पेड़ जो बढ़िया फल नहीं लाता, वह काटा और आग में झोंका जाता है। 20 इसलिए, तुम झूठे भविष्यवक्‍ताओं को उनके फलों से पहचान लोगे।

21 जो मुझे ‘हे प्रभु, हे प्रभु’ कहते हैं, उनमें से हर कोई स्वर्ग के राज में दाखिल नहीं होगा, मगर जो मेरे स्वर्गीय पिता की मरज़ी पूरी कर रहा है, वही दाखिल होगा। 22 उस दिन बहुत-से लोग मुझसे कहेंगे, ‘हे प्रभु, हे प्रभु, क्या हमने तेरे नाम से भविष्यवाणी नहीं की और तेरे नाम से, लोगों में समाए दुष्ट स्वर्गदूतों को नहीं निकाला और तेरे नाम से बहुत-से शक्‍तिशाली काम नहीं किए?’ 23 तब मैं उनसे साफ-साफ कह दूँगा: मैंने तुम्हें कभी नहीं जाना! अरे दुराचारियो, मेरे सामने से दूर हो जाओ।

24 इसलिए हर कोई जो मेरी इन बातों को सुनता है और इन पर चलता है, वह उस समझदार आदमी जैसा साबित होगा जिसने अपना घर चट्टान पर बनाया। 25 फिर ज़बरदस्त बरसात हुई, बाढ़-पर-बाढ़ आयी और आँधियाँ चलीं और उस घर से टकरायीं, फिर भी वह नहीं गिरा क्योंकि उसकी नींव चट्टान पर बनायी गयी थी। 26 लेकिन हर कोई जो मेरी ये बातें सुनता है मगर इन पर नहीं चलता, वह उस मूर्ख जैसा साबित होगा जिसने अपना घर रेत पर बनाया। 27 और ज़बरदस्त बरसात हुई, बाढ़-पर-बाढ़ आयी और आँधियाँ चलीं और उस घर से टकरायीं, और वह ढह गया और उसका सर्वनाश हो गया।”

28 जब यीशु ये बातें कह चुका, तो उसका ऐसा असर हुआ कि भीड़ उसका सिखाने का तरीका देखकर दंग रह गयी। 29 क्योंकि यीशु उन्हें उनके शास्त्रियों की तरह नहीं, बल्कि ऐसे इंसान की तरह सिखा रहा था जिसके पास बड़ा अधिकार हो।

8 जब यीशु उस पहाड़ से नीचे उतर आया, तो भीड़-की-भीड़ उसके पीछे हो ली। 2 और देखो! एक कोढ़ी उसके पास आया और झुककर उसे प्रणाम करने और यह कहने लगा: “प्रभु, बस अगर तू चाहे, तो मुझे शुद्ध कर सकता है।” 3 इस पर, यीशु ने अपना हाथ बढ़ाकर उसे यह कहते हुए छूआ: “हाँ, मैं चाहता हूँ। शुद्ध हो जा।” उसी पल उसका कोढ़ दूर हो गया और वह शुद्ध हो गया। 4 तब यीशु ने उससे कहा: “देख किसी को मत बताना। मगर, जाकर खुद को याजक को दिखा और मूसा ने जो भेंट ठहरायी है वह चढ़ा, ताकि वे खुद इस बात के गवाह हों।”

5 जब यीशु कफरनहूम में आया, तो एक सेना-अफसर* उसके पास आकर उससे बिनती करने 6 और यह कहने लगा: “साहब, मेरा नौकर लकवे का मारा घर में पड़ा है और बड़ी पीड़ा में तड़प रहा है।” 7 यीशु ने उससे कहा: “जब मैं वहाँ आऊँगा, तो उसे चंगा करूँगा।” 8 जवाब में उस सेना-अफसर ने कहा: “प्रभु, मैं इस लायक नहीं कि तू मेरी छत तले आए, मगर बस तू अपने मुँह से कह दे और मेरा नौकर ठीक हो जाएगा। 9 क्योंकि मैं भी किसी और के अधिकार के अधीन हूँ और मेरे नीचे भी सिपाही हैं और जब मैं एक से कहता हूँ, ‘जा!’ तो वह जाता है और दूसरे से कहता हूँ ‘आ!’ तो वह आता है और अपने दास से कहता हूँ ‘यह कर!’ और वह करता है।” 10 यह सुनकर यीशु ने ताज्जुब किया और अपने पीछे आनेवालों से कहा: “मैं तुमसे सच कहता हूँ, मैंने इस्राएल में किसी एक में भी ऐसा ज़बरदस्त विश्‍वास नहीं पाया। 11 मगर मैं तुमसे कहता हूँ कि पूरब से और पश्‍चिम से बहुत-से लोग आएँगे और स्वर्ग के राज में अब्राहम, इसहाक और याकूब के साथ खाने की मेज़ से टेक लगाकर बैठेंगे, 12 जबकि राज के बेटे बाहर अंधेरे में फेंक दिए जाएँगे। वहाँ उनका रोना और दाँत पीसना होगा।” 13 तब यीशु ने उस सेना-अफसर से कहा: “जा। जैसा तू ने विश्‍वास किया है, वैसा ही तेरे लिए हो।” और उसी पल उस अफसर का नौकर चंगा हो गया।

14 और यीशु पतरस के घर आया और देखा कि पतरस की सास बुखार में पड़ी है। 15 तब यीशु ने उसका हाथ छूआ और उसका बुखार उतर गया, तब वह उठी और उसकी सेवा में लग गयी। 16 मगर जब शाम हो गयी, तब लोग उसके पास ऐसे बहुत-से लोगों को लाने लगे जिनमें दुष्ट स्वर्गदूत* समाए थे। यीशु ने इन दुष्ट स्वर्गदूतों को सिर्फ बोलकर ही निकाल दिया और उन सभी लोगों को चंगा किया जो तकलीफ के मारे थे। 17 ताकि वह वचन पूरा हो सके जो यशायाह भविष्यवक्‍ता के ज़रिए कहा गया था: “उसने हमारी बीमारियाँ खुद ले लीं और हमारे रोग उठा ले गया।”

18 जब यीशु ने अपने चारों तरफ लोगों की भीड़ देखी, तो उसने चेलों को हुक्म दिया कि नाव को उस पार ले जाएँ। 19 तब एक शास्त्री ने आकर उससे कहा: “गुरु, तू जहाँ कहीं जाएगा, मैं तेरे पीछे चलूँगा।” 20 मगर यीशु ने उससे कहा: “लोमड़ियों की माँदें और आकाश के पंछियों के बसेरे होते हैं, मगर इंसान के बेटे के पास कहीं सिर टिकाने की भी जगह नहीं है।” 21 तब एक और चेले ने यीशु से कहा: “प्रभु, मुझे इजाज़त दे कि मैं चला जाऊँ और पहले अपने पिता को दफना दूँ।” 22 यीशु ने उससे कहा: “मेरे पीछे चलता रह और मुरदों को अपने मुरदे दफन करने दे।”

23 जब यीशु एक नाव पर चढ़ गया, तो चेले भी उसके साथ हो लिए। 24 तब अचानक झील में ऐसी ज़ोरदार आँधी उठी कि लहरें नाव को ढकने लगीं; मगर यीशु सो रहा था। 25 और चेले उसके पास आए और यह कहते हुए उसे जगाने लगे: “प्रभु, हमें बचा, हम नाश होनेवाले हैं!” 26 मगर यीशु ने उनसे कहा: “अरे, कम विश्‍वास रखनेवालो, तुम्हारे दिल क्यों काँप रहे हैं?” फिर उसने उठकर उस आँधी और लहरों को डाँटा और बड़ा सन्‍नाटा छा गया। 27 यह देखकर चेले हैरत में पड़ गए और कहने लगे: “यह कैसा शख्स है कि आँधी और समुद्र भी इसका हुक्म मानते हैं?”

28 इसके बाद, यीशु उस पार गदरेनियों के इलाके में पहुँचा। वहाँ दो आदमी थे जिनमें दुष्ट स्वर्गदूत समाए थे। वे कब्रों के बीच से निकलकर यीशु के सामने आए। वे इतने खूँखार थे कि कोई भी उस रास्ते से गुज़रने की हिम्मत नहीं करता था। 29 और देखो! वे चिल्लाकर कहने लगे: “हे परमेश्‍वर के बेटे, हमारा तुझसे क्या लेना-देना? क्या तू ठहराए हुए वक्‍त से पहले हमें तड़पाने आया है?” 30 उनसे काफी दूरी पर सुअरों का एक बड़ा झुंड चर रहा था। 31 इसलिए दुष्ट स्वर्गदूत यह कहकर यीशु से बिनती करने लगे: “अगर तू हमें निकाल रहा है, तो हमें सुअरों के उस झुंड में भेज दे।” 32 तब यीशु ने उनसे कहा: “जाओ!” और वे निकलकर सुअरों में समा गए। तब अचानक सुअरों का पूरा झुंड बड़ी तेज़ी से टीले की तरफ दौड़ा और वहाँ से गिरकर झील में डूब मरा। 33 मगर सूअर चरानेवाले भाग खड़े हुए और शहर में जाकर सारा किस्सा कह सुनाया और उन आदमियों के बारे में भी बताया, जिनमें दुष्ट स्वर्गदूत समाए थे। 34 तब देखो! सारा शहर निकलकर यीशु को देखने आया। जब उन्होंने यीशु को देखा, तो उससे बहुत बिनती करने लगे कि वह उनके इलाके से चला जाए।

9 तब यीशु नाव पर चढ़कर पार चला गया और अपने शहर में आ गया। 2 और देखो! कुछ लोग, लकवे के मारे हुए एक आदमी को बिस्तर पर लिटाकर ला रहे थे। जब यीशु ने उनका विश्‍वास देखा, तो लकवे के मारे आदमी से कहा: “हिम्मत रख बेटे, तेरे पाप माफ किए गए।” 3 और देखो! कुछ शास्त्री अपने मन में कहने लगे: “यह आदमी परमेश्‍वर की तौहीन कर रहा है।” 4 यह जानते हुए कि वे क्या सोच रहे हैं, यीशु ने उनसे कहा: “तुम क्यों अपने दिलों में बुरी बातें सोच रहे हो? 5 असल में, क्या कहना ज़्यादा आसान है, तेरे पाप माफ किए गए या यह कहना कि उठ और चल-फिर? 6 मगर इसलिए कि तुम जान लो कि इंसान के बेटे को धरती पर पाप माफ करने का अधिकार है . . .” फिर यीशु ने लकवे के मारे हुए से कहा: “खड़ा हो, अपना बिस्तर उठा और अपने घर जा।” 7 तब वह आदमी उठ बैठा और अपने घर चला गया। 8 यह देखकर भीड़ पर भय छा गया और उन्होंने परमेश्‍वर की बड़ाई की, जिसने एक इंसान को ऐसा अधिकार दिया था।

9 फिर जब यीशु वहाँ से आगे जा रहा था, तो उसकी नज़र मत्ती नाम के एक आदमी पर पड़ी, जो कर-वसूली के दफ्तर में बैठा था। यीशु ने उससे कहा: “मेरा चेला बन जा और मेरे पीछे हो ले।” इस पर मत्ती वहाँ से उठा और यीशु के पीछे हो लिया। 10 बाद में जब वह घर में मेज़ से टेक लगाए बैठा था, तो देखो! बहुत-से कर-वसूलनेवाले और दूसरे ऐसे पापी आए और वे भी यीशु और उसके चेलों के साथ खाने बैठे। 11 मगर यह देखकर फरीसी उसके चेलों से कहने लगे: “तुम्हारा गुरु कर-वसूलनेवालों और पापियों के साथ क्यों खाता है?” 12 उनकी बात सुनकर यीशु ने कहा: “जो सेहतमंद हैं, उन्हें वैद्य की ज़रूरत नहीं होती, मगर बीमारों को होती है। 13 इसलिए जाओ और इस बात का मतलब सीखो, ‘मैं बलिदान नहीं, बल्कि दया चाहता हूँ।’ क्योंकि मैं धर्मियों को नहीं, बल्कि पापियों को बुलाने आया हूँ।”

14 फिर यूहन्‍ना के चेले यीशु के पास आए और पूछने लगे: “क्या वजह है कि हम और फरीसी तो उपवास रखते हैं, मगर तेरे चेले उपवास नहीं रखते?” 15 इस पर यीशु ने उनसे कहा: “जब दूल्हा अपने दोस्तों के साथ है, उस दौरान क्या उसके दोस्त मातम मनाएँगे? नहीं। मगर वे दिन आएँगे जब दूल्हे को उनसे जुदा कर दिया जाएगा और तब वे उपवास करेंगे। 16 कोई भी पुराने कपड़े पर नए* कपड़े से पैवंद काटकर नहीं लगाता; क्योंकि नए पैवंद की पूरी ताकत पुराने कपड़े को खींच लेगी और चीरा पहले से ज़्यादा बड़ा हो जाएगा। 17 न ही लोग पुरानी मश्‍कों में नयी दाख-मदिरा भरते हैं; लेकिन अगर वे भरें, तो मश्‍कें फट जाती हैं और मदिरा बह जाती है और मश्‍कें नष्ट हो जाती हैं। मगर लोग नयी मदिरा नयी मश्‍कों में भरते हैं, और दोनों सही-सलामत रहती हैं।”

18 जब यीशु उन्हें ये बातें बता रहा था, तब देखो! एक धर्म-अधिकारी जो उसके पास आया था, उसने झुककर यीशु को प्रणाम किया और कहा: “अब तक मेरी बच्ची मर चुकी होगी; फिर भी तू चल और उस पर अपना हाथ रख, तो वह फिर से जी उठेगी।”

19 तब यीशु उठा और उसके पीछे गया और चेले भी उसके साथ हो लिए। 20 तब देखो! एक स्त्री जो बारह साल से खून बहने की बीमारी से पीड़ित थी, वह यीशु के पीछे आयी और उसके कपड़े की झालर छू ली। 21 क्योंकि वह मन-ही-मन कहती थी: “अगर मैं उसके कपड़े को ही छू लूँगी, तो अच्छी हो जाऊँगी।” 22 यीशु ने मुड़कर उसे देखा और कहा: “बेटी हिम्मत रख; तेरे विश्‍वास ने तुझे ठीक किया है।” उसी घड़ी वह स्त्री अच्छी हो गयी।

23 जब वह उस धर्म-अधिकारी के घर पहुँचा, तो उसकी नज़र बाँसुरी बजानेवालों और शोरगुल करती भीड़ पर पड़ी। 24 यीशु ने उनसे कहा: “यहाँ से चले जाओ, क्योंकि बच्ची मरी नहीं बल्कि सो रही है।” इस पर वे उसकी खिल्ली उड़ाते हुए उस पर हँसने लगे। 25 जब भीड़ को बाहर कर दिया गया, तब यीशु अंदर गया और बच्ची का हाथ अपने हाथ में लिया और वह उठ बैठी। 26 इस बात की चर्चा उस पूरे इलाके में फैल गयी।

27 जब यीशु वहाँ से आगे जा रहा था, तो दो अंधे उसके पीछे-पीछे यह पुकारते हुए आने लगे: “हे दाविद के वंशज, हम पर दया कर।” 28 जब यीशु घर के अंदर गया, तो वे अंधे उसके पास आए। तब यीशु ने उनसे पूछा: “क्या तुम्हें विश्‍वास है कि मैं यह कर सकता हूँ?” उन्होंने जवाब दिया: “हाँ, प्रभु।” 29 तब उसने उनकी आँखों को छूकर कहा: “तुम्हारे विश्‍वास के मुताबिक तुम्हारे लिए हो।” 30 और वे अपनी आँखों से देखने लगे। फिर यीशु ने उन्हें कड़ी हिदायत दी: “देखो, किसी को पता न चले।” 31 मगर बाहर जाने के बाद उन्होंने उस पूरे इलाके में सबको उसके बारे में बता दिया।

32 फिर जब वे बाहर जा रहे थे तो देखो! लोग एक गूँगे को, जिसमें एक दुष्ट स्वर्गदूत समाया था, उसके पास लाए। 33 और जब दुष्ट स्वर्गदूत निकाल दिया गया, तो वह गूँगा बोलने लगा। यह देखकर भीड़ हैरत में पड़ गयी और कहने लगी: “इस्राएल में ऐसा कभी नहीं देखा गया।” 34 मगर फरीसी कहने लगे: “यह तो दुष्ट स्वर्गदूतों के राजा की मदद से इन्हें निकालता है।”

35 यीशु सब शहरों और गाँवों का दौरा करने निकला, और वह उनके सभा-घरों में सिखाता और राज की खुशखबरी का प्रचार करता गया। वह हर तरह की बीमारी और हर तरह की दुर्बलता को दूर करता रहा। 36 जब उसने भीड़ को देखा तो वह तड़प उठा, क्योंकि वे उन भेड़ों की तरह थे जिनकी खाल खींच ली गयी हो और जिन्हें बिन चरवाहे के यहाँ-वहाँ भटकने के लिए छोड़ दिया गया हो। 37 तब उसने अपने चेलों से कहा: “बेशक, कटाई के लिए फसल बहुत है, मगर मज़दूर थोड़े हैं। 38 इसलिए खेत के मालिक से बिनती करो कि वह कटाई के लिए और मज़दूर भेज दे।”

10 फिर यीशु ने अपने बारह चेलों को पास बुलाया और उन्हें दुष्ट स्वर्गदूतों* पर अधिकार दिया, ताकि वे उन्हें लोगों में से निकालें और हर तरह की बीमारी और हर तरह की दुर्बलता दूर करें।

2 इन बारह प्रेषितों* के नाम ये हैं: पहला, शमौन जो पतरस* कहलाता है, और उसका भाई अन्द्रियास; और याकूब और यूहन्‍ना, जो जब्दी के बेटे थे; 3 फिलिप्पुस और बरतुलमै*; थोमा और कर वसूलनेवाला मत्ती*; हलफई का बेटा याकूब, और तद्दी*; 4 जोशीला शमौन और यहूदा इस्करियोती, जिसने बाद में उसे धोखे से पकड़वाया।

5 इन बारहों को यीशु ने ये आदेश देकर भेजा: “गैर-यहूदियों के इलाकों में न जाना, न ही सामरिया के किसी शहर में दाखिल होना। 6 इसके बजाय, इस्राएल के घराने की खोयी हुई भेड़ों के पास ही जाना। 7 जहाँ जाओ वहाँ यह कहकर प्रचार करना, ‘स्वर्ग का राज पास आ गया है।’ 8 बीमारों को चंगा करो, मुरदों को ज़िंदा करो, कोढ़ियों को शुद्ध करो, दुष्ट स्वर्गदूतों को निकालो। तुमने मुफ्त पाया है, मुफ्त दो। 9 अपने कमर-बंध की जेबों में न तो सोने, न चाँदी और न ताँबे के पैसे लेना। 10 न ही सफर के लिए खाने की पोटली या दो-दो कुरते या जूतियाँ या लाठी लेना, क्योंकि काम करनेवाला भोजन पाने का हकदार है।

11 तुम जिस किसी शहर या गाँव में जाओ, तो अच्छी तरह ढूँढ़ो कि वहाँ कौन योग्य है और जब तक उस शहर या गाँव से न निकलो, तब तक उसी के यहाँ ठहरे रहना। 12 जब तुम किसी घर के अंदर जाओ, तो घर के लोगों को नमस्कार करते हुए उन्हें शांति की आशीष दो। 13 और अगर वह घराना योग्य है, तो वह शांति जिसकी तुमने आशीष दी है, उस पर आने दो। लेकिन अगर वह योग्य न हो, तो तुम्हारी शांति तुम्हारे पास लौट आने दो। 14 जिस घर या शहर में कोई तुम्हें अंदर नहीं आने देता या तुम्हारे वचन नहीं सुनता, तो वहाँ से बाहर निकलते वक्‍त अपने पैरों की धूल झाड़ देना।* 15 मैं तुमसे सच कहता हूँ कि न्याय के दिन उस शहर के हाल से, सदोम और अमोरा देश का हाल ज़्यादा सहने लायक होगा।

16 देखो! मैं तुम्हें भेड़ों की तरह भेड़ियों के बीच भेज रहा हूँ; इसलिए साँपों की तरह सतर्क मगर फिर भी कबूतरों की तरह सीधे होने का सबूत दो। 17 लोगों से सावधान रहो; क्योंकि वे तुम्हें अदालतों* के हवाले कर देंगे और अपने सभा-घरों में तुम्हें कोड़े लगवाएँगे। 18 मेरी वजह से तुम्हें राज्यपालों और राजाओं के सामने पेश किया जाएगा, ताकि उन पर और गैर-यहूदियों पर गवाही हो। 19 मगर, जब वे तुम्हें पकड़वाएँगे, तो यह चिंता न करना कि तुम क्या कहोगे और कैसे कहोगे। जो तुम्हें बोलना है वह उस वक्‍त तुम जान जाओगे। 20 इसलिए कि बोलनेवाले सिर्फ तुम नहीं, बल्कि तुम्हारे पिता की पवित्र शक्‍ति है जो तुम्हारे ज़रिए बोलती है। 21 भाई, भाई को मरवाने के लिए सौंप देगा और पिता अपने बच्चों को। बच्चे अपने माँ-बाप के खिलाफ खड़े होंगे और उन्हें मरवा डालेंगे। 22 मेरे नाम की वजह से तुम सब लोगों की नफरत के शिकार बनोगे। मगर जो अंत तक धीरज धरेगा, वही उद्धार पाएगा। 23 जब वे एक शहर में तुम पर ज़ुल्म ढाएँ तो दूसरे शहर भाग जाना; क्योंकि मैं तुमसे सच कहता हूँ कि तुम इस्राएल के शहरों का यह दौरा पूरा भी न कर पाओगे कि इंसान का बेटा आ जाएगा।

24 चेला अपने गुरु से बड़ा नहीं होता, न ही दास अपने मालिक से। 25 एक चेले का अपने गुरु जैसा और दास का अपने मालिक जैसा बनना ही बहुत है। जब लोगों ने घर के मालिक को ही बालज़बूल* कहा है, तो उसके घर के लोगों को क्यों न कहेंगे? 26 इसलिए, उनसे मत डरो; क्योंकि ऐसा कुछ नहीं जो ढका गया हो, और खोला न जाएगा, और जिसे राज़ रखा गया हो और जाना न जाएगा। 27 जो मैं तुम्हें अंधेरे में बताता हूँ उसे उजाले में कहो; और जो मैं तुम्हारे कानों में फुसफुसाकर कहता हूँ, उसका घर की छतों पर चढ़कर प्रचार करो। 28 उनसे मत डरो जो शरीर को घात कर सकते हैं, मगर जीवन* को नहीं, इसके बजाय उससे डरो जो जीवन और शरीर दोनों को गेहन्‍ना* में मिटा सकता है। 29 क्या एक पैसे* में दो चिड़ियाँ नहीं बिकतीं? फिर भी उनमें से एक भी तुम्हारे पिता के जाने बगैर ज़मीन पर नहीं गिरती। 30 तुम्हारे सिर का एक-एक बाल तक गिना हुआ है। 31 इसलिए मत डरो: तुम्हारा मोल बहुत चिड़ियों से कहीं बढ़कर है।

32 तो फिर, जो कोई लोगों के सामने यह स्वीकार करता है कि वह मेरी तरफ है, मैं भी अपने पिता के सामने जो स्वर्ग में है उसे स्वीकार कर लूँगा। 33 मगर जो कोई लोगों के सामने मुझसे इनकार करता है, मैं भी अपने पिता के सामने जो स्वर्ग में है, उससे इनकार कर दूँगा। 34 यह न सोचो कि मैं धरती पर शांति लाने आया हूँ; मैं शांति लाने नहीं बल्कि तलवार चलवाने आया हूँ। 35 क्योंकि मैं बेटे को बाप के, बेटी को माँ के और बहू को उसकी सास के खिलाफ करने आया हूँ। 36 वाकई, एक आदमी के दुश्‍मन उसके अपने ही घराने के लोग होंगे। 37 जो मुझसे ज़्यादा अपने पिता या अपनी माँ से लगाव रखता है, वह मेरे लायक नहीं; और जो मुझसे ज़्यादा अपने बेटे या अपनी बेटी से लगाव रखता है, वह मेरे लायक नहीं है। 38 जो कोई अपनी यातना की सूली* नहीं उठाता और मेरे पीछे-पीछे चलना नहीं चाहता, वह मेरा चेला बनने के लायक नहीं। 39 जो अपनी जान बचाता है वह इसे खोएगा और जो मेरी खातिर अपनी जान गँवाता है वह इसे पाएगा।

40 जो तुम्हें स्वीकार करता है वह मुझे भी स्वीकार करता है, और जो मुझे स्वीकार करता है, वह उसे भी स्वीकार करता है जिसने मुझे भेजा है। 41 जो किसी भविष्यवक्‍ता को इसलिए स्वीकार करता है कि वह भविष्यवक्‍ता है, उसे वही इनाम मिलेगा जो एक भविष्यवक्‍ता को मिलता है। जो किसी नेक इंसान को इसलिए स्वीकार करता है कि वह नेक है, उसे वही इनाम मिलेगा जो उस इंसान को मिलता है जो नेक है। 42 जो कोई इन छोटों में से किसी एक को, चेला जानकर सिर्फ एक प्याला ठंडा पानी पीने को देता है, तो मैं तुमसे सच कहता हूँ कि वह अपना इनाम हरगिज़ न खोएगा।”

11 जब यीशु अपने बारह चेलों को हिदायतें दे चुका, तो वह वहाँ से दूसरे शहरों में सिखाने और प्रचार करने निकल पड़ा।

2 लेकिन जब जेल में यूहन्‍ना ने मसीह के कामों की चर्चा सुनी, तो उसने अपने चेलों को उसके पास भेजा 3 और उससे पूछा: “वह जो आनेवाला था, क्या तू ही है, या हम किसी और की भी आस लगाएँ?” 4 जवाब में यीशु ने उनसे कहा: “जाओ, और जो तुम देखते और सुनते हो, जाकर उसकी खबर यूहन्‍ना को दो: 5 अंधे देख रहे हैं और लंगड़े चल-फिर रहे हैं, कोढ़ी शुद्ध किए जा रहे हैं, बहरे सुन रहे हैं और मरे हुओं को ज़िंदा किया जा रहा है। गरीबों को खुशखबरी सुनायी जा रही है। 6 सुखी है वह जो मेरे बारे में संदेह नहीं करता।”*

7 जब वे वहाँ से जा रहे थे, तो यीशु भीड़ से यूहन्‍ना के बारे में यह कहने लगा: “तुम बाहर वीराने में क्या देखने गए थे? हवा से इधर-उधर हिलते किसी सरकंडे को? 8 फिर तुम क्या देखने गए थे? क्या रेशमी मुलायम कपड़े पहने किसी आदमी को? रेशमी मुलायम कपड़े पहननेवाले तो राजाओं के महलों में होते हैं। 9 तो आखिर तुम क्यों गए थे? एक भविष्यवक्‍ता को देखने? हाँ। और मैं तुमसे कहता हूँ, भविष्यवक्‍ता से भी किसी बड़े को। 10 यह वही है जिसके बारे में लिखा है, ‘देख! मैं खुद अपना दूत तेरे आगे भेज रहा हूँ, जो तेरे आगे-आगे तेरा रास्ता तैयार करेगा!’ 11 मैं तुम लोगों से सच कहता हूँ, जितने स्त्रियों से जन्मे हैं, उनमें यूहन्‍ना बपतिस्मा देनेवाले से बड़ा कोई भी नहीं हुआ है। मगर जो स्वर्ग के राज में बाकियों से छोटा है, वह यूहन्‍ना से बड़ा है। 12 मगर यूहन्‍ना बपतिस्मा देनेवाले के दिनों से अब तक, स्वर्ग का राज वह लक्ष्य है जिस तक पहुँचने के लिए, लोग ज़ोर लगा रहे हैं और जो पुरज़ोर कोशिश कर रहे हैं, वे उसे अपने कब्ज़े में ले रहे हैं। 13 क्योंकि सारे भविष्यवक्‍ताओं की और मूसा के कानून की भविष्यवाणियाँ, यूहन्‍ना के समय तक भविष्यवाणियाँ थीं। 14 अगर तुम इस बात को मानो, तो ‘एलिय्याह जिसका आना तय है,’ वह यही है। 15 कान लगाकर सुनो और मैं जो कह रहा हूँ उसे समझने की कोशिश करो।

16 मैं इस पीढ़ी की तुलना किससे करूँ? यह उन बच्चों जैसी है जो बाज़ारों में बैठे अपने साथ खेलनेवाले बच्चों को पुकारते और 17 कहते हैं, ‘हमने तुम्हारे लिए बाँसुरी बजायी मगर तुम न नाचे; हमने विलाप किया, मगर तुमने शोक में छाती न पीटी।’ 18 वैसे ही यूहन्‍ना, औरों की तरह न खाता आया न पीता, फिर भी लोग कहते हैं, ‘उसमें दुष्ट स्वर्गदूत समाया है।’ 19 जबकि इंसान का बेटा औरों की तरह खाता-पीता आया, फिर भी लोग कहते हैं, ‘देखो! यह आदमी पेटू और पियक्कड़ है, और कर-वसूलनेवालों और पापियों का दोस्त है।’ लेकिन बुद्धि अपने कामों से सही साबित होती है।”

20 इसके बाद, यीशु उन शहरों को धिक्कारने लगा, जिनमें उसने अपने ज़्यादातर शक्‍तिशाली काम किए थे, क्योंकि उन्होंने पश्‍चाताप नहीं किया: 21 “हे खुराजीन, तुझ पर हाय! हे बैतसैदा, तुझ पर हाय! क्योंकि जो शक्‍तिशाली काम तुममें हुए थे, अगर वे सोर और सीदोन* में हुए होते, तो वहाँ के लोगों ने टाट ओढ़कर और राख में बैठकर कब का पश्‍चाताप कर लिया होता। 22 इसलिए मैं तुमसे कहता हूँ, न्याय के दिन तुम्हारे हाल से सोर और सीदोन का हाल ज़्यादा सहने लायक होगा। 23 और कफरनहूम तू, क्या तू सोचता है कि तुझे आकाश तक ऊँचा किया जाएगा? तू तो नीचे कब्र* में जाएगा; क्योंकि जो शक्‍तिशाली काम तुझ में किए गए थे, अगर वे सदोम देश में हुए होते, तो वह आज के दिन तक बना रहता। 24 इसलिए मैं तुम लोगों से कहता हूँ कि न्याय के दिन तुम्हारे हाल से सदोम देश का हाल ज़्यादा सहने लायक होगा।”

25 उस वक्‍त यीशु ने कहा: “हे पिता, स्वर्ग और पृथ्वी के मालिक, मैं सबके सामने तेरी बड़ाई करता हूँ कि तू ने ये बातें बुद्धिमानों और ज्ञानियों से तो छिपा रखीं, मगर नन्हे-मुन्‍नों पर प्रकट की हैं। 26 हाँ, हे पिता, क्योंकि तुझे ऐसा ही करना मंज़ूर हुआ। 27 मेरे पिता ने सबकुछ मेरे हवाले किया है, और कोई बेटे को पूरी तरह नहीं जानता सिवा पिता के, न ही पिता को कोई पूरी तरह जानता है सिवा बेटे के और सिवा उसके जिस पर बेटा उसे प्रकट करना चाहे। 28 हे लोगो, तुम जो कड़ी मज़दूरी से थके-माँदे और बोझ से दबे हो, तुम सब मेरे पास आओ, मैं तुम्हें तरो-ताज़ा करूँगा। 29 मेरा जूआ अपने ऊपर लो* और मुझसे सीखो,* क्योंकि मैं कोमल-स्वभाव का, और दिल से दीन हूँ और तुम ताज़गी पाओगे। 30 इसलिए कि मेरा जूआ आरामदायक और मेरा बोझ हल्का है।”

12 उस वक्‍त यीशु सब्त* के दिन अपने चेलों के साथ खेतों से होकर जा रहा था। उसके चेलों को भूख लगी और वे अनाज की बालें तोड़कर खाने लगे। 2 यह देखकर फरीसियों ने उससे कहा: “देख! तेरे चेले सब्त के दिन वह काम कर रहे हैं, जिसे करना कानून के खिलाफ है।” 3 यीशु ने उनसे कहा: “क्या तुमने नहीं पढ़ा कि जब दाविद और उसके आदमी भूखे थे, तब उसने क्या किया? 4 किस तरह वह परमेश्‍वर के भवन में गया और उन्होंने चढ़ावे की वे रोटियाँ खायीं, जिन्हें खाना उसके और उसके साथियों के लिए कानून के खिलाफ था, बल्कि वे रोटियाँ सिर्फ याजकों के लिए थीं? 5 या क्या तुमने मूसा के कानून में नहीं पढ़ा कि सब्त के दिनों में, मंदिर में सेवा करनेवाले याजक सब्त के ठहराए नियम न मानते हुए भी निर्दोष ठहरते हैं? 6 मगर मैं तुमसे कहता हूँ, यहाँ वह है जो मंदिर से भी बढ़कर है। 7 लेकिन, अगर तुम ने इस बात के मायने समझ लिए होते कि ‘मैं दया चाहता हूँ, बलिदान नहीं,’ तो तुम निर्दोषों को दोषी न ठहराते। 8 क्योंकि इंसान का बेटा सब्त के दिन का प्रभु है।”

9 उस जगह से चले जाने के बाद यीशु उनके सभा-घर में गया। 10 और देखो! वहाँ एक आदमी था जिसका एक हाथ सूखा हुआ था। तब कुछ लोगों ने उससे पूछा, “क्या सब्त के दिन चंगा करना सही है?” ताकि उन्हें उस पर इलज़ाम लगाने की कोई वजह मिल सके। 11 उसने उनसे कहा: “तुममें ऐसा कौन आदमी होगा जिसके पास एक भेड़ हो और अगर वह सब्त के दिन गड्ढे में गिर जाए, तो वह उसे पकड़कर बाहर न निकाले? 12 अगर ऐसा है, तो एक इंसान का मोल एक भेड़ से कितना ज़्यादा है! इसलिए सब्त के दिन एक भला काम करना सही है।” 13 तब उसने उस आदमी से कहा: “अपना हाथ आगे बढ़ा।” जब उसने हाथ आगे बढ़ाया तो उसका हाथ दूसरे हाथ की तरह अच्छा हो गया। 14 मगर फरीसी बाहर निकल गए और यीशु के खिलाफ आपस में सलाह करने लगे कि उसे कैसे खत्म किया जा सकता है। 15 जब यीशु को यह पता चला, तो वह वहाँ से निकलकर चला गया। बहुत-से लोग भी उसके पीछे हो लिए और उसने उन सबको चंगा किया। 16 मगर उसने उन्हें सख्ती से हुक्म दिया कि उसके बारे में किसी पर ज़ाहिर न करें; 17 ताकि ये वचन पूरे हों जो यशायाह भविष्यवक्‍ता से कहलवाए गए थे:

18 “देखो! मेरा सेवक जिसे मैंने चुना है, मेरा प्यारा, जिसे मैंने दिल* से मंज़ूर किया है! मैं उस पर अपनी पवित्र शक्‍ति डालूँगा और वह राष्ट्रों को साफ-साफ दिखाएगा कि सच्चा न्याय क्या होता है। 19 वह न तो झगड़ा करेगा, न ही ज़ोर से चिल्लाएगा, न ही उसकी आवाज़ बड़ी सड़कों में किसी को सुनायी देगी। 20 वह झुके हुए सरकंडे को न कुचलेगा और टिमटिमाती बाती को न बुझाएगा, जब तक कि वह कामयाबी के साथ न्याय कायम न कर दे। 21 वाकई, राष्ट्र उसके नाम पर आशा रखेंगे।”

22 इसके बाद वे उसके पास एक आदमी को लाए, जिसमें एक दुष्ट स्वर्गदूत समाया था, और वह आदमी अंधा और गूंगा था। यीशु ने दुष्ट स्वर्गदूत को निकालकर उस आदमी को चंगा किया जिससे वह गूंगा बोलने और देखने लगा। 23 इस पर भीड़ आपे में न रही और कहने लगी: “कहीं यही तो दाविद का वंशज नहीं?” 24 यह सुनने पर फरीसियों ने कहा: “यह आदमी, दुष्ट स्वर्गदूतों के राजा बालज़बूल* की मदद के बिना दुष्ट स्वर्गदूतों को नहीं निकालता।” 25 यह जानते हुए कि वे क्या सोच रहे हैं, यीशु ने उनसे कहा: “ऐसा हर राज्य जिसमें फूट पड़ जाए, उजड़ जाता है और ऐसा हर शहर या घर जिसमें फूट पड़ जाए, टिक नहीं पाएगा। 26 उसी तरह, अगर शैतान ही शैतान को निकाले, तो उसमें फूट पड़ गयी है और वह खुद अपने खिलाफ हो गया है। तो फिर उसका राज्य कैसे टिका रहेगा? 27 और फिर, अगर मैं बालज़बूल की मदद से दुष्ट स्वर्गदूतों को निकालता हूँ, तो तुम्हारे बेटे किसकी मदद से इन्हें निकालते हैं? इस वजह से वे ही तुम्हारे न्यायी ठहरें। 28 लेकिन अगर मैं परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति की मदद से दुष्ट स्वर्गदूतों को निकालता हूँ, तो परमेश्‍वर के राज ने वाकई तुम्हें आ घेरा है। 29 या कोई किसी बलवान के घर में घुसकर उसके सामान पर कैसे कब्ज़ा कर सकता है, जब तक कि वह पहले उस बलवान को पकड़कर बाँध न दे? और इसके बाद वह उसका घर लूट सकेगा। 30 जो मेरी तरफ नहीं है, वह मेरे खिलाफ है और जो मेरे साथ नहीं बटोरता, वह तित्तर-बित्तर कर देता है।

31 इसलिए, मैं तुमसे कहता हूँ कि इंसानों का हर तरह का पाप और निंदा की बातें माफ की जाएँगी, मगर पवित्र शक्‍ति के खिलाफ निंदा माफ न की जाएगी। 32 मिसाल के लिए, अगर कोई इंसान के बेटे के खिलाफ कोई बात कहेगा, तो उसे माफ किया जाएगा। मगर जो कोई पवित्र शक्‍ति के खिलाफ बोलता है, उसे इसकी माफी नहीं दी जाएगी। नहीं, न तो इस व्यवस्था में न ही आनेवाली दुनिया की व्यवस्था में।

33 अगर तुम बढ़िया पेड़ हो, तो तुम्हारा फल भी बढ़िया होगा, और अगर तुम सड़ा हुआ पेड़ हो, तो तुम्हारा फल भी सड़ा हुआ होगा, क्योंकि एक पेड़ अपने फल से पहचाना जाता है। 34 अरे, साँप के संपोलो, जब तुम दुष्ट हो तो अच्छी बातें कैसे कह सकते हो? क्योंकि जो दिल में भरा है वही मुँह पर आता है। 35 अच्छा इंसान अपनी अच्छाई के खज़ाने से अच्छी चीज़ें निकालता है, जबकि दुष्ट इंसान अपनी दुष्टता के खज़ाने से दुष्टता की चीज़ें निकालता है। 36 मैं तुमसे कहता हूँ कि ऐसी हर नुकसानदेह बात के लिए जो लोग बोलते हैं, उन्हें न्याय के दिन लेखा देना होगा। 37 तुझे अपनी बातों की वजह से निर्दोष ठहराया जाएगा या अपनी बातों की वजह से ही दोषी करार दिया जाएगा।”

38 जवाब में कुछ शास्त्रियों और फरीसियों ने यीशु से कहा: “हे गुरु, हम चाहते हैं कि तू हमें एक निशानी* दिखाए।” 39 यीशु ने जवाब में उनसे कहा: “एक दुष्ट और विश्‍वासघाती* पीढ़ी हमेशा कोई निशानी देखने की ताक में लगी रहती है। मगर इसे योना भविष्यवक्‍ता की निशानी को छोड़ और कोई निशानी नहीं दी जाएगी। 40 ठीक जैसे योना एक बड़ी मछली के पेट में तीन दिन और तीन रात रहा, वैसे ही इंसान का बेटा धरती के गर्भ में तीन दिन और तीन रात रहेगा। 41 नीनवे के लोग न्याय के वक्‍त में इस पीढ़ी के साथ उठेंगे और इसे दोषी ठहराएँगे; क्योंकि नीनवे के लोगों ने योना का प्रचार सुनकर पश्‍चाताप किया था, मगर देखो! यहाँ वह मौजूद है जो योना से भी बड़ा है। 42 दक्षिण की रानी को न्याय के वक्‍त में इस पीढ़ी के साथ उठाया जाएगा और वह इसे दोषी ठहराएगी; क्योंकि वह सुलैमान की बुद्धि की बातें सुनने के लिए पृथ्वी की छोर से आयी थी, मगर देखो! यहाँ वह मौजूद है जो सुलैमान से भी बड़ा है।

43 जब एक दुष्ट स्वर्गदूत किसी आदमी से बाहर निकल आता है, तो वह आराम की कोई जगह तलाशता हुआ वीरान जगहों में फिरता है, मगर नहीं पाता। 44 तब वह कहता है, ‘मैं अपने जिस घर से निकला था, उसमें फिर लौट जाऊँगा।’ वह आकर पाता है कि वह घर न सिर्फ खाली पड़ा है बल्कि झाड़ा-बुहारा और सजा-सजाया है। 45 तब वह जाकर अपने से भी ज़्यादा दुष्ट सात और स्वर्गदूतों को अपने साथ ले आता है और वे उस आदमी में समाकर वहीं बस जाते हैं। तब उस आदमी की हालत, पहले से भी बदतर हो जाती है। इस दुष्ट पीढ़ी का भी यही हाल होगा।”

46 जब यीशु भीड़ से बात कर ही रहा था, तो देखो! उसकी माँ और उसके भाई आकर बाहर खड़े हो गए और वे उससे बात करना चाहते थे। 47 तब किसी ने यीशु से कहा: “देख! तेरी माँ और तेरे भाई बाहर खड़े हैं और तुझसे बात करना चाहते हैं।” 48 तब यीशु ने उसे जवाब देते हुए कहा: “कौन है मेरी माँ, और कौन हैं मेरे भाई?” 49 फिर उसने अपना हाथ अपने चेलों की तरफ बढ़ाकर कहा: “देखो! ये रहे मेरी माँ और मेरे भाई! 50 क्योंकि जो कोई स्वर्ग में रहनेवाले मेरे पिता की मरज़ी पूरी करता है, वही है मेरा भाई, मेरी बहन और माँ।”

13 उस दिन यीशु घर से निकलने के बाद झील के किनारे बैठा हुआ था। 2 तब भारी तादाद में लोग उसके पास इकट्ठा हो गए, इसलिए वह एक नाव पर चढ़कर बैठ गया और सारी भीड़ किनारे पर खड़ी हुई थी। 3 फिर वह उन्हें मिसालों से बहुत-सी बातें बताने लगा: “देखो! एक बीज बोनेवाला बीज बोने निकला। 4 जब वह बो रहा था, तो कुछ बीज रास्ते के किनारे गिरे और पंछी आकर उन्हें खा गए। 5 कुछ बीज ऐसी जगह गिरे जहाँ ज़्यादा मिट्टी नहीं थी, क्योंकि मिट्टी के नीचे चट्टान थी। उनके अंकुर फौरन दिखायी देने लगे, क्योंकि वहाँ मिट्टी गहरी नहीं थी। 6 लेकिन जब सूरज निकला, तो वे झुलस गए और जड़ न पकड़ने की वजह से सूख गए। 7 कुछ और बीज काँटों में गिरे और कंटीले पौधों ने बढ़कर उन्हें दबा लिया। 8 मगर कुछ और बीज बढ़िया मिट्टी पर गिरे और उनमें फल आना शुरू हुआ। किसी में सौ गुना, किसी में साठ गुना तो किसी में तीस गुना। 9 कान लगाकर सुनो और मैं जो कह रहा हूँ उसे समझने की कोशिश करो।”

10 फिर चेले यीशु के पास आकर उससे पूछने लगे: “तू लोगों से मिसालों में क्यों बात करता है?” 11 जवाब में उसने कहा: “स्वर्ग के राज के पवित्र रहस्यों की समझ तुम्हें दी गयी है, मगर उन लोगों को नहीं दी गयी। 12 क्योंकि जिस किसी के पास है, उसे और भी ज़्यादा दिया जाएगा और उसके पास बहुत हो जाएगा। मगर जिस किसी के पास नहीं है, उससे वह तक ले लिया जाएगा जो उसके पास है। 13 मैं इसलिए उनसे मिसालों में बात करता हूँ, क्योंकि वे देखते हुए भी नहीं देख रहे और सुनते हुए भी नहीं सुन रहे, न ही वे इसके मायने समझ पाते हैं। 14 उन पर यशायाह की यह भविष्यवाणी पूरी होती है, जो कहती है, ‘तुम लोग सुनोगे मगर सुनते हुए भी हरगिज़ इसके मायने न समझ पाओगे। और देखोगे मगर देखते हुए भी हरगिज़ न देख पाओगे। 15 क्योंकि इन लोगों का दिल पत्थर* हो चुका है। वे अपने कानों से सुनते तो हैं, मगर सुनकर कुछ करते नहीं। उन्होंने अपनी आँखें मूंद ली हैं; ताकि वे कभी अपनी आँखों से न देख सकें और न कभी अपने कानों से सुन पाएँ और न ही कभी अपने दिलों से इसके मायने समझ पाएँ, जिससे कि वे पलटकर लौट आएँ और मैं उन्हें चंगा करूँ।’

16 मगर सुखी हो तुम क्योंकि तुम्हारी आँखें देखती हैं और तुम्हारे कान सुनते हैं। 17 मैं तुमसे सच कहता हूँ, बहुत-से भविष्यवक्‍ताओं और नेक लोगों की तमन्‍ना थी कि वह देखें जो तुम देख रहे हो, मगर न देख सके और वे बातें सुनें जिन्हें तुम सुन रहे हो, मगर न सुन सके।

18 इसलिए, अब तुम बीज बोनेवाले की मिसाल पर ध्यान दो। 19 जो इंसान राज का वचन सुनता तो है मगर उसके मायने नहीं समझता, उसके दिल में जो बोया गया था उसे वह दुष्ट, शैतान आकर छीन ले जाता है। यह वही बीज है जो रास्ते के किनारे बोया गया था। 20 जो चट्टानी जगहों पर बोया गया था, यह वह इंसान है जो वचन को सुनता है और उसे फौरन खुशी-खुशी स्वीकार कर लेता है। 21 मगर उसमें जड़ नहीं होती, इसलिए वह थोड़े वक्‍त के लिए रहता है, और जब वचन की वजह से उसे क्लेश या ज़ुल्म सहना पड़ता है, तो फौरन वचन पर विश्‍वास करना छोड़ देता है। 22 जो काँटों के बीच बोया गया है, यह वह इंसान है जो वचन को सुनता तो है, मगर इस ज़माने* की ज़िंदगी की चिंता और भ्रम में डालनेवाली पैसे की ताकत वचन को दबा देती है और वह फल नहीं लाता। 23 जो बढ़िया मिट्टी में बोया गया है, यह वह इंसान है जो वचन को सुनता है और उसके मायने समझता है और वाकई फल लाता है। यह सौ गुना, वह साठ गुना तो कोई और तीस गुना फल पैदा करता है।”

24 यीशु ने भीड़ के सामने एक और मिसाल पेश करते हुए कहा: “स्वर्ग का राज एक ऐसे आदमी की तरह है, जिसने अपने खेत में बढ़िया बीज बोया। 25 लेकिन जब लोग रात को सो रहे थे, तो उसका दुश्‍मन आया और गेहूँ के बीच जंगली पौधे के बीज बोकर चला गया। 26 जब पौधे बड़े हुए और उनमें बालें आयीं, तो जंगली पौधे भी दिखायी देने लगे। 27 इसलिए घर-मालिक के दासों ने आकर उससे कहा, ‘मालिक, क्या तू ने अपने खेत में बढ़िया बीज न बोया था? तो फिर उसमें जंगली पौधे कहाँ से उग आए?’ 28 मालिक ने कहा, ‘यह एक दुश्‍मन का काम है।’ उन्होंने उससे कहा, ‘तो क्या तू चाहता है कि हम जाकर जंगली पौधों को उखाड़ लाएँ?’ 29 उसने कहा, ‘नहीं; कहीं ऐसा न हो कि जंगली पौधे उखाड़ते वक्‍त तुम उनके साथ गेहूँ भी उखाड़ लो। 30 कटाई के वक्‍त तक दोनों को साथ-साथ बढ़ने दो और कटाई के दिनों में मैं काटनेवालों से कहूँगा, पहले जंगली दाने के पौधे उखाड़ लो और उन्हें जलाने के लिए गट्ठरों में बाँध दो, उसके बाद जाकर तुम गेहूँ को मेरे गोदाम में जमा करो।’ ”

31 उसने एक और मिसाल उनके सामने पेश करते हुए कहा: “स्वर्ग का राज राई के दाने की तरह है, जिसे एक आदमी ने लेकर अपने खेत में बो दिया। 32 राई का दाना असल में सब बीजों में सबसे छोटा होता है, मगर जब बढ़ता है तो साग-सब्ज़ियों में सबसे बड़ा हो जाता है और एक पेड़ बन जाता है। यहाँ तक कि आकाश के पंछी आकर उसकी डालियों पर बसेरा करते हैं।”

33 उसने उन्हें एक और मिसाल बतायी: “स्वर्ग का राज खमीर की तरह है, जिसे लेकर एक स्त्री ने करीब दस किलो* आटे में गूंध दिया, आखिर में सारा आटा खमीरा हो गया।”

34 यीशु ने भीड़ से ये सारी बातें मिसालों में कहीं। वाकई, वह बगैर मिसाल के उनसे बात नहीं करता था, 35 ताकि यह बात पूरी हो जो भविष्यवक्‍ता से कहलवायी गयी थी: “मैं मिसालों के साथ अपना मुँह खोलूँगा, और जो बातें दुनिया की शुरूआत से छिपी रही हैं, उन्हें ज़ाहिर करूँगा।”

36 इसके बाद यीशु भीड़ को विदा कर घर में गया। उसके चेले उसके पास आए और कहने लगे: “हमें खेत के जंगली पौधों की मिसाल का मतलब समझा।” 37 जवाब में उसने कहा: “बढ़िया बीज बोनेवाला, इंसान का बेटा है। 38 खेत, दुनिया है। बढ़िया बीज, राज के बेटे हैं। मगर जंगली दाने के पौधे, उस दुष्ट के बेटे हैं 39 और जिस दुश्‍मन ने इन्हें बोया है, वह शैतान* है। कटाई, दुनिया की व्यवस्था का आखिरी वक्‍त है और कटाई करनेवाले स्वर्गदूत हैं। 40 इसलिए, ठीक जैसे जंगली दाने के पौधों को उखाड़कर आग में जला दिया जाता है, वैसे ही इस व्यवस्था के आखिर में होगा। 41 इंसान का बेटा अपने स्वर्गदूतों को भेजेगा और वे उसके राज से उन सब लोगों को बटोरकर निकालेंगे, जो दूसरों के लिए पाप करने की वजह बनते हैं* और ऐसों को भी जो दुराचार करते हैं। 42 स्वर्गदूत उन्हें आग की भट्ठी में झोंक देंगे, जहाँ उनका रोना और दाँत पीसना होगा। 43 मगर जो परमेश्‍वर की नज़र में नेक हैं, वे उस वक्‍त अपने पिता के राज में सूरज की तरह तेज़ चमकेंगे। कान लगाकर सुनो और मैं जो कह रहा हूँ उसे समझने की कोशिश करो।

44 स्वर्ग का राज ज़मीन में छिपे एक खज़ाने की तरह है, जिसे पाकर एक आदमी ने दोबारा वहीं दबा दिया। उसने खुशी के मारे जाकर अपना सबकुछ बेच दिया और वह ज़मीन खरीद ली।

45 इसके अलावा, स्वर्ग का राज एक ऐसे व्यापारी की तरह है, जो बेहतरीन किस्म के मोतियों की तलाश में घूमता है। 46 और जब उसे एक बेशकीमती मोती मिला, तो उसने जाकर फौरन अपना सबकुछ बेच दिया और वह मोती खरीद लिया।

47 साथ ही, स्वर्ग का राज एक बड़े जाल की तरह है, जिसे समुद्र में डाला गया और जिसने हर किस्म की मछलियाँ समेट लीं। 48 जब वह जाल भर गया तो वे उसे खींचकर किनारे पर लाए और बैठकर बढ़िया मछलियों को बर्तनों में इकट्ठा किया, जबकि गंदी मछलियों को उन्होंने फेंक दिया। 49 इस दुनिया की व्यवस्था के आखिर में भी ऐसा ही होगा: स्वर्गदूत जाकर दुष्टों को नेक जनों से अलग करेंगे। 50 और दुष्टों को आग की भट्ठी में डाल देंगे, जहाँ उनका रोना और दाँत पीसना होगा।

51 क्या तुमने इन सब बातों के मायने समझ लिए हैं?” उन्होंने कहा: “हाँ।” 52 तब उसने उनसे कहा: “अगर ऐसा है, तो हर वह उपदेशक जो लोगों को सिखाता है और जिसने स्वर्ग के राज की शिक्षा पायी है, वह ऐसे घर-मालिक की तरह है जो अपने खज़ाने के भंडार से नयी और पुरानी चीज़ें बाहर लाता है।”

53 जब यीशु ये मिसालें दे चुका, तो इसके कुछ वक्‍त बाद वह उस इलाके के पार चला गया। 54 वह उस इलाके में आया जहाँ वह पला-बढ़ा था। और वह उनके सभा-घर में उन्हें सिखाने लगा। उसकी बातें सुनकर लोग हैरान रह गए और कहने लगे: “इस आदमी को ऐसी बुद्धि और ऐसे शक्‍तिशाली काम करने की काबिलीयत कहाँ से मिली? 55 क्या यह बढ़ई का बेटा नहीं? क्या इसकी माँ का नाम मरियम नहीं, और इसके भाई याकूब, यूसुफ, शमौन और यहूदा नहीं? 56 और इसकी बहनें, क्या वे सब हमारे बीच नहीं? तो फिर, इस आदमी को ये सारी बातें कहाँ से आ गयीं?” 57 इसलिए उन्होंने उस पर यकीन नहीं किया। मगर यीशु ने उनसे कहा: “एक भविष्यवक्‍ता का अपने इलाके और अपने घर को छोड़ कहीं और अनादर नहीं होता।” 58 उनके विश्‍वास की कमी की वजह से उसने वहाँ ज़्यादा चमत्कार नहीं किए।

14 उस वक्‍त ज़िला-शासक* हेरोदेस* ने यीशु के बारे में खबर सुनी 2 और अपने सेवकों से कहा: “यह बपतिस्मा देनेवाला यूहन्‍ना ही है। उसे मरे हुओं में से जी उठाया गया है और इसी वजह से उससे ये शक्‍तिशाली काम हो रहे हैं।” 3 हेरोदेस ने अपने भाई फिलिप्पुस की पत्नी हेरोदियास की वजह से, यूहन्‍ना को गिरफ्तार कर लिया और उसे ज़ंजीरों में बाँधकर कैदखाने में डलवा दिया था। 4 क्योंकि यूहन्‍ना हेरोदेस से कहा करता था: “तू ने जो हेरोदियास को अपनी पत्नी बना लिया है, यह सही नहीं किया।” 5 हालाँकि हेरोदेस यूहन्‍ना को मार डालना चाहता था, मगर लोगों से डरता था, क्योंकि वे यूहन्‍ना को एक भविष्यवक्‍ता मानते थे। 6 मगर जब हेरोदेस का जन्मदिन मनाया जा रहा था, तो हेरोदियास की बेटी उसमें नाची और हेरोदेस को इस कदर खुश किया 7 कि उसने कसम खाकर यह वादा किया कि वह उससे जो कुछ माँगेगी वह उसे दे देगा। 8 तब उसने, अपनी माँ के सिखाने पर कहा: “तू मुझे यहीं एक थाल में यूहन्‍ना बपतिस्मा देनेवाले का सिर ला दे।” 9 यह सुनकर राजा दुःखी तो हुआ, फिर भी उसने जो कसमें खायी थीं और उसके साथ जो लोग बैठे थे, उनकी वजह से उसने हुक्म दिया कि लड़की को यूहन्‍ना का सिर दे दिया जाए। 10 उसने आदमी भेजा और कैदखाने में यूहन्‍ना का सिर कटवा दिया। 11 उसका सिर एक थाल पर रखकर लाया गया और उस लड़की को दे दिया गया और वह इसे अपनी माँ के पास ले गयी। 12 बाद में यूहन्‍ना के चेले आकर उसकी लाश ले गए और उसे दफना दिया और आकर यीशु को खबर दी। 13 यह सुनकर यीशु वहाँ से किसी सुनसान जगह में एकांत पाने के लिए नाव पर निकल पड़ा। मगर जब लोगों की भीड़ ने सुना, तो वे शहरों से पैदल ही उसके पीछे गए।

14 जब यीशु नाव से उतरा, तो उसने बड़ी भीड़ देखी। उन्हें देखकर वह तड़प उठा और उसने उनके बीमारों को चंगा किया। 15 मगर जब शाम हुई, तो चेलों ने उसके पास आकर कहा: “यह जगह सुनसान है और बहुत देर भी हो चुकी है। इसलिए भीड़ को विदा कर, ताकि वे आस-पास के गाँवों में जाकर अपने खाने के लिए कुछ खरीद लें।” 16 मगर यीशु ने उनसे कहा: “उन्हें जाने की ज़रूरत नहीं: तुम्हीं उन्हें कुछ खाने को दो।” 17 चेलों ने उससे कहा: “हमारे पास यहाँ पाँच रोटियों और दो मछलियों को छोड़ और कुछ नहीं है।” 18 उसने कहा: “रोटी और मछली मेरे पास लाओ।” 19 इसके बाद यीशु ने भीड़ को घास पर आराम से बैठ जाने का हुक्म दिया और पाँच रोटियाँ और दो मछलियाँ लीं और आकाश की तरफ देखकर उसने प्रार्थना में धन्यवाद दिया और रोटियाँ तोड़ने के बाद उसने चेलों को बाँट दीं और चेलों ने उन्हें भीड़ में बाँट दिया। 20 तब उन सब ने भरपेट खाया और उन्होंने बचे हुए टुकड़े उठाए जिनसे बारह टोकरियाँ भर गयीं। 21 खानेवालों में करीब पाँच हज़ार आदमी थे, और उनके अलावा स्त्रियाँ और बच्चे भी थे। 22 फिर, यीशु ने बिना देर किए अपने चेलों को जबरन भेजा कि वे नाव पर चढ़कर उससे पहले उस पार चले जाएँ, जबकि वह खुद भीड़ को विदा कर रहा था।

23 आखिरकार, भीड़ को भेज देने के बाद, वह खुद प्रार्थना करने के लिए पहाड़ पर चला गया। हालाँकि बहुत रात बीत चुकी थी, फिर भी वह वहाँ अकेला था। 24 अब तक चेलों की नाव, किनारे से कुछ किलोमीटर* दूर जा चुकी थी और लहरों के थपेड़े नाव का आगे बढ़ना मुश्‍किल कर रहे थे, क्योंकि हवा का रुख उनके खिलाफ था। 25 मगर रात के चौथे पहर* यीशु पानी पर चलता हुआ उनके पास आया। 26 जब चेलों की नज़र उस पर पड़ी कि वह पानी पर चल रहा है, तो वे घबराकर कहने लगे: “हमें ज़रूर कोई वहम हो रहा है!” और वे डर के मारे ज़ोर से चिल्लाने लगे। 27 मगर यीशु ने फौरन उनसे कहा: “हिम्मत रखो, मैं ही हूँ। डरो मत।” 28 जवाब में पतरस ने उससे कहा: “प्रभु, अगर तू ही है, तो मुझे आज्ञा दे कि मैं पानी पर चलकर तेरे पास आऊँ।” 29 यीशु ने कहा: “आ!” इस पर पतरस नाव से उतरा और पानी पर चलता हुआ यीशु की तरफ जाने लगा। 30 मगर तूफान को देखकर वह डर गया और जब डूबने लगा, तो चिल्ला उठा: “प्रभु, मुझे बचा!” 31 यीशु ने फौरन अपना हाथ बढ़ाकर उसे थाम लिया और उससे कहा: “अरे, कम विश्‍वास रखनेवाले, तू ने शक क्यों किया?” 32 और जब वे दोनों नाव पर चढ़ गए, तो तूफान थम गया। 33 तब जो नाव में थे, उन्होंने झुककर उसे प्रणाम किया और कहा: “तू वाकई परमेश्‍वर का बेटा है।” 34 वे उस पार पहुँचकर गन्‍नेसरत की ज़मीन पर आ गए।

35 वहाँ के लोगों ने उसे पहचानकर आस-पास के सारे इलाके में खबर भेजी और लोग सब बीमारों को उसके पास ले आए। 36 और वे उससे बिनती करने लगे कि वह उन्हें अपने कपड़े की झालर को ही छू लेने दे। जितनों ने उसे छूआ वे पूरी तरह चंगे हो गए।

15 इसके बाद, यरूशलेम से फरीसी और शास्त्री, यीशु के पास आए और कहने लगे: 2 “आखिर क्यों तेरे चेले हमारे बुज़ुर्गों की ठहरायी हुई परंपराओं को तोड़ते हैं? मिसाल के लिए, खाना खाने से पहले वे अपने हाथ नहीं धोते।”*

3 यीशु ने उन्हें जवाब दिया: “तुम भी क्यों अपनी परंपरा की वजह से परमेश्‍वर की आज्ञा तोड़ते हो? 4 मिसाल के लिए, परमेश्‍वर ने कहा था, ‘अपने पिता और अपनी माँ का आदर कर।’ और ‘जो कोई अपने पिता या अपनी माँ को गाली दे, वह मार डाला जाए।’ 5 मगर तुम कहते हो, ‘जो कोई अपने पिता या अपनी माँ से कह देता है: “मेरे पास ऐसा जो कुछ है जिससे तुझे कभी फायदा पहुँच सकता था, वह अब परमेश्‍वर को समर्पित भेंट है,” 6 तो उसे अपने माता-पिता का आदर करने की कोई ज़रूरत नहीं।’ इस तरह तुमने अपनी परंपरा की वजह से परमेश्‍वर के वचन को रद्द कर दिया है। 7 अरे कपटियो, यशायाह ने तुम्हारे बारे में बिलकुल सही भविष्यवाणी की थी, जब उसने कहा, 8 ‘ये लोग होंठों से तो मेरा आदर करते हैं, मगर इनका दिल मुझसे कोसों दूर रहता है। 9 ये बेकार ही मेरी उपासना करते रहते हैं, क्योंकि ये इंसानों की आज्ञाओं को परमेश्‍वर की शिक्षाएँ बताकर सिखाते हैं।’ ” 10 तब यीशु ने भीड़ को अपने पास बुलाया और उनसे कहा: “सुनो और इसके मायने समझो: 11 जो मुँह में जाता है वह इंसान को दूषित नहीं करता; लेकिन जो उसके मुँह से बाहर निकलता है वही उसे दूषित करता है।”

12 इसके बाद चेलों ने उसके पास आकर कहा: “क्या तू जानता है कि फरीसियों को तेरी बात चुभ गयी है?” 13 जवाब में उसने कहा: “हर वह पौधा जिसे मेरे स्वर्गीय पिता ने नहीं लगाया, जड़ से उखाड़ा जाएगा। 14 उन्हें रहने दो। वे खुद तो अंधे हैं, मगर दूसरों को राह दिखाते हैं। अगर एक अंधा अंधे को राह दिखाए, तो दोनों किसी गड्ढे में जा गिरेंगे।” 15 यह सुनकर पतरस ने उससे कहा: “हमें उस मिसाल का मतलब समझा।” 16 इस पर उसने कहा: “क्या तुम भी अब तक नहीं समझ सके? 17 क्या तुम नहीं जानते कि मुँह में जानेवाली हर चीज़ आँतों से होती हुई, मल-कुंड में निकल जाती है? 18 मगर मुँह से जो बाहर निकलता है वह दिल से निकलता है, और ये चीज़ें एक इंसान को दूषित करती हैं। 19 मिसाल के लिए, दुष्ट विचार, हत्याएँ, शादी के बाहर यौन-संबंध, व्यभिचार, चोरियाँ, झूठी गवाही और निंदा की बातें, ये दिल से ही निकलती हैं। 20 यही चीज़ें इंसान को दूषित करती हैं। मगर बिना हाथ धोए खाना खाना उसे दूषित नहीं करता।”

21 अब यीशु वहाँ से निकलकर सोर और सीदोन के इलाकों में चला गया। 22 और देखो! वहाँ उस इलाके से एक स्त्री जो फीनीके की रहनेवाली थी उसके पास आयी और ज़ोर-ज़ोर से रोती-पुकारती हुई कहने लगी: “हे प्रभु, दाविद के वंशज, मुझ पर दया कर। मेरी बेटी को दुष्ट स्वर्गदूत ने बहुत बुरी तरह काबू में कर रखा है।” 23 मगर यीशु ने जवाब में उससे एक शब्द भी न कहा। इसलिए उसके चेले आए और यीशु से बिनती करने लगे: “इसे भेज दे; क्योंकि यह हमारे पीछे-पीछे रोती-पुकारती रहती है।” 24 इस पर उसने कहा: “मुझे इस्राएल के घराने की खोयी हुई भेड़ों को छोड़ किसी और के पास नहीं भेजा गया।” 25 जब वह स्त्री आयी तो उसके सामने झुककर प्रणाम करती हुई कहने लगी: “हे प्रभु, मेरी मदद कर!” 26 उसने जवाब दिया: “बच्चों की रोटी लेकर पिल्लों के आगे फेंकना सही नहीं है।” 27 तब स्त्री ने कहा: “सही कहा प्रभु; मगर फिर भी पिल्ले अपने मालिकों की मेज़ से गिरनेवाले टुकड़े तो खा ही लेते हैं।” 28 तब यीशु ने उससे कहा: “हे स्त्री, तेरा विश्‍वास बहुत बड़ा है। जैसा तू चाहती है, वैसा ही तेरे लिए हो।” और उसी घड़ी उसकी बेटी चंगी हो गयी।

29 फिर यीशु उस इलाके को पार कर गलील झील के पास आया, और वहाँ पहाड़ पर जाने के बाद, वहीं बैठा हुआ था। 30 तब भारी तादाद में लोग उसके पास आए और अपने साथ लूले-लंगड़े, अंधे, गूँगे और ऐसे ही बहुत-से लोगों को लाए और उसके पैरों के सामने डाल दिया, और उसने उन्हें चंगा किया। 31 जब भीड़ ने देखा कि गूँगे बोल रहे हैं, लंगड़े चल रहे हैं और अंधे देख रहे हैं, तो वे दंग रह गए और उन्होंने इस्राएल के परमेश्‍वर की बड़ाई की।

32 तब यीशु ने अपने चेलों को पास बुलाया और कहा: “इस भीड़ को देखकर मुझे तरस आता है, क्योंकि इन्हें मेरे साथ रहते हुए तीन दिन बीत चुके हैं और इनके पास खाने के लिए कुछ भी नहीं है। मैं इन्हें भूखा नहीं भेजना चाहता। कहीं वे रास्ते में ही पस्त न हो जाएँ।” 33 मगर चेलों ने उससे कहा: “यहाँ इस सुनसान जगह में हम इतनी रोटियाँ कहाँ से लाएँ कि इतनी बड़ी भीड़ भरपेट खा सके?” 34 इस पर यीशु ने उनसे कहा: “तुम्हारे पास कितनी रोटियाँ हैं?” उन्होंने कहा: “सात, और कुछ छोटी मछलियाँ भी हैं।” 35 तब उसने भीड़ को ज़मीन पर आराम से बैठने की हिदायत दी 36 फिर उसने वे सातों रोटियाँ और मछलियाँ लीं और प्रार्थना में धन्यवाद देने के बाद, वह उन्हें तोड़कर चेलों को देने लगा, और चेलों ने इन्हें भीड़ में बाँट दिया। 37 सबने भरपेट खाया और उन्होंने बचे हुए टुकड़े इकट्ठे किए जिनसे सात बड़े-टोकरे भर गए। 38 खानेवालों में करीब चार हज़ार आदमी थे, और उनके अलावा स्त्रियाँ और बच्चे भी थे। 39 आखिर में भीड़ को विदा करने के बाद, वह नाव पर चढ़ा और मगदन के इलाके में आया।

16 यहाँ फरीसी और सदूकी यीशु के पास आए और उसे परखने के लिए उससे कहा कि वह उन्हें आकाश से एक निशानी दिखाए। 2 यीशु ने जवाब में उनसे कहा: “[[जब शाम होती है, तो तुम कहा करते हो, ‘मौसम खुला रहेगा, क्योंकि आसमान का रंग चटक लाल है।’ 3 फिर सुबह के वक्‍त कहते हो, ‘आज मौसम सर्द और बरसाती होगा, क्योंकि आसमान का रंग लाल तो है, मगर धुँधला दिखायी देता है।’ तुम आसमान की सूरत देखकर उसका मतलब समझाना तो जानते हो, मगर इस समय की निशानियों को देखकर उनका मतलब नहीं समझा सकते।]]* 4 एक दुष्ट और विश्‍वासघाती* पीढ़ी हमेशा किसी हैरतअँगेज़ निशानी की ताक में लगी रहती है, मगर इसे योना की निशानी को छोड़ और कोई निशानी नहीं दी जाएगी।” यह कहने के बाद, वह उन्हें वहीं छोड़ आगे चला गया।

5 चेले उस पार जाने के वक्‍त अपने साथ रोटियाँ लेना भूल गए थे। 6 यीशु ने उनसे कहा: “अपनी आँखें खुली रखो और फरीसियों और सदूकियों के खमीर से चौकन्‍ने रहो।” 7 तब वे आपस में यह कहकर चर्चा करने लगे: “हम अपने साथ रोटियाँ नहीं लाए।” 8 यह जानकर यीशु ने कहा: “अरे कम विश्‍वास रखनेवालो, तुम क्यों आपस में चर्चा कर रहे हो कि तुम्हारे पास रोटियाँ नहीं हैं? 9 क्या तुम अब तक नहीं समझे या क्या तुम्हें पाँच हज़ार लोगों के लिए वे पाँच रोटियाँ याद नहीं और यह भी कि तुमने भरी हुई कितनी टोकरियाँ उठायी थीं? 10 या क्या तुम्हें चार हज़ार लोगों के लिए वे सात रोटियाँ याद नहीं और यह भी कि तुमने भरे हुए कितने बड़े-टोकरे उठाए थे? 11 तो फिर, तुम यह क्यों नहीं समझते कि मैंने तुमसे रोटियों के बारे में नहीं कहा? मगर यह कहा कि फरीसियों और सदूकियों के खमीर से चौकन्‍ने रहो।” 12 तब उनकी समझ में आ गया कि उसने रोटियों के खमीर से नहीं, बल्कि फरीसियों और सदूकियों की शिक्षाओं से उन्हें चौकन्‍ने रहने के लिए कहा है।

13 जब यीशु कैसरिया फिलिप्पी के इलाके में आया, तो अपने चेलों से पूछने लगा: “लोग क्या कहते हैं, इंसान का बेटा कौन है?” 14 उन्होंने कहा: “कुछ कहते हैं, यूहन्‍ना बपतिस्मा देनेवाला, दूसरे एलिय्याह और कोई-कोई कहते हैं यिर्मयाह या भविष्यवक्‍ताओं में से एक।” 15 यीशु ने उनसे कहा: “लेकिन तुम क्या कहते हो, मैं कौन हूँ?” 16 जवाब में शमौन पतरस ने उससे कहा: “तू जीवित परमेश्‍वर का बेटा, मसीह है।” 17 यीशु ने उससे कहा: “हे शमौन, योना के बेटे, सुखी है तू क्योंकि यह बात हाड़-माँस के इंसान ने नहीं, बल्कि मेरे पिता ने जो स्वर्ग में है, तुझ पर ज़ाहिर की है। 18 मैं तुझसे यह कहता हूँ, तू पतरस* है, और इस चट्टान पर मैं अपनी मंडली* खड़ी करूँगा और कब्र* के दरवाज़े उस पर हावी न हो सकेंगे। 19 मैं तुझे स्वर्ग के राज की चाबियाँ दूँगा और जो कुछ तू धरती पर बाँधेगा, वह स्वर्ग में बँधा हुआ होगा और जो कुछ तू धरती पर खोलेगा, वह स्वर्ग में खुला हुआ होगा।” 20 इसके बाद उसने चेलों को कड़ी हिदायत देकर कहा कि किसी से न कहें कि वह मसीह* है।

21 उस वक्‍त से यीशु मसीह ने अपने चेलों पर यह ज़ाहिर करना शुरू कर दिया कि उसका यरूशलेम जाना और वहाँ बुज़ुर्गों, प्रधान याजकों और शास्त्रियों के हाथों कई दुःख सहना और मार डाला जाना ज़रूरी है, और फिर उसे तीसरे दिन जी उठाया जाएगा। 22 इस पर पतरस उसे अलग ले गया और यह कहकर उसे झिड़कने लगा: “प्रभु, खुद पर दया कर; तेरे साथ ऐसा नहीं होगा।” 23 मगर, उसने पतरस से मुँह फेर लिया और कहा: “अरे शैतान, मेरे सामने से दूर हो जा! तू मेरे लिए ठोकर की वजह है, क्योंकि तेरी सोच परमेश्‍वर जैसी नहीं, बल्कि इंसानों जैसी है।”

24 इसके बाद, यीशु ने अपने चेलों से कहा: “अगर कोई मेरे पीछे आना चाहता है, तो वह खुद से इनकार करे और अपनी यातना की सूली* उठाए और मेरे पीछे चलता रहे। 25 क्योंकि जो कोई अपनी जान बचाना चाहता है वह उसे खोएगा, मगर जो कोई मेरी खातिर अपनी जान गँवाता है वह उसे पाएगा। 26 क्योंकि अगर एक इंसान सारा जहान हासिल कर ले, मगर इसकी कीमत चुकाने के लिए उसे अपनी जान देनी पड़े, तो इसका क्या फायदा? या एक इंसान अपनी जान के बदले में क्या देगा? 27 क्योंकि यह तय है कि इंसान का बेटा अपने पिता से मिले वैभव साथ ही अपने स्वर्गदूतों के साथ आएगा। तब वह हर एक को उसके चालचलन के मुताबिक बदला देगा। 28 मैं तुमसे सच कहता हूँ कि यहाँ जो खड़े हैं, उनमें से कुछ ऐसे हैं जो तब तक मौत का मुँह हरगिज़ न देखेंगे, जब तक कि पहले वे इंसान के बेटे को उसके राज में आता हुआ न देख लें।”

17 छः दिन बाद यीशु ने पतरस, याकूब और उसके भाई यूहन्‍ना को अपने साथ लिया। वह उनको एक ऊँचे पहाड़ पर ले गया, जहाँ इनके सिवा कोई और नहीं था। 2 उनके सामने उसका रूप बदल गया, और उसका चेहरा सूरज की तरह दमक उठा, और उसके कपड़े बिजली* की तरह चमकने लगे। 3 तभी अचानक उन्हें वहाँ मूसा और एलिय्याह दिखायी दिए, जो यीशु से बातें कर रहे थे। 4 यह देखकर पतरस ने यीशु से कहा: “प्रभु, हमारा यहाँ रहना अच्छा है। अगर तू चाहे तो मैं यहाँ तीन तंबू खड़े करता हूँ, एक तेरे लिए, एक मूसा के लिए और एक एलिय्याह के लिए।” 5 वह बोल ही रहा था कि तभी एक उजला बादल उन पर छा गया, और देखो! उस बादल में से यह आवाज़ आयी: “यह मेरा प्यारा बेटा है। मैंने इसे मंज़ूर किया है, इसकी सुनो।” 6 यह सुनने पर चेले औंधे मुँह गिर पड़े और बेहद डर गए। 7 तब यीशु उनके नज़दीक आया और उन्हें छूकर कहा: “उठो, डरो मत।” 8 जब उन्होंने नज़रें उठाकर देखा, तो वहाँ यीशु के सिवा किसी और को न पाया। 9 इसके बाद जब वे पहाड़ से नीचे उतर रहे थे, तो यीशु ने यह कहकर उन्हें हुक्म दिया: “जब तक इंसान के बेटे को मरे हुओं में से जी न उठाया जाए, तब तक इस दर्शन के बारे में किसी को न बताना।”

10 मगर चेलों ने उससे पूछा: “तो फिर, शास्त्री क्यों कहते हैं कि पहले एलिय्याह का आना ज़रूरी है?” 11 जवाब में उसने कहा: “एलिय्याह वाकई आ रहा है और वह सबकुछ बहाल करेगा। 12 मगर मैं तुमसे कहता हूँ कि एलिय्याह आ चुका है और उन्होंने उसे न पहचाना मगर उसके साथ वह सब किया जो वे करना चाहते थे। इसी तरह, इंसान के बेटे का भी उनके हाथों दुःख झेलना तय है।” 13 तब चेले समझ गए कि वह उनसे यूहन्‍ना बपतिस्मा देनेवाले के बारे में कह रहा था।

14 जब वे भीड़ की तरफ आए, तो एक आदमी यीशु के पास आया और उसके सामने घुटने टेके और कहा: 15 “प्रभु, मेरे बेटे पर दया कर, क्योंकि इसे मिरगी आती है और इसकी हालत बहुत खराब है। यह कभी आग में तो कभी पानी में गिर जाता है। 16 और मैं इसे तेरे चेलों के पास लाया, मगर वे इसे ठीक न कर सके।” 17 जवाब में यीशु ने कहा: “हे अविश्‍वासी और टेढ़ी पीढ़ी, मैं और कब तक तुम्हारे साथ रहूँ? और कब तक तुम्हारी सहूँ? उसे यहाँ मेरे पास लाओ।” 18 तब यीशु ने उस लड़के में समाए दुष्ट स्वर्गदूत को डाँटा और वह उसमें से निकल गया। उसी पल वह लड़का ठीक हो गया। 19 इसके बाद, चेले अकेले में यीशु के पास आए और उन्होंने कहा: “ऐसा क्यों हुआ कि हम उसे नहीं निकाल पाए?” 20 यीशु ने उनसे कहा: “तुम्हारे विश्‍वास की कमी की वजह से। क्योंकि मैं तुमसे सच कहता हूँ, अगर तुम्हारे अंदर राई के दाने के बराबर भी विश्‍वास है, तो तुम इस पहाड़ से कहोगे, ‘यहाँ से हटकर वहाँ चला जा,’ और वह चला जाएगा, और तुम्हारे लिए कुछ भी नामुमकिन न होगा।” 21* ——

22 जिस दौरान वे गलील में इकट्ठा थे, तब यीशु ने उनसे कहा: “यह तय है कि इंसान का बेटा धोखे से पकड़वाया जाए और लोगों के हवाले किया जाए। 23 वे उसे मार डालेंगे और तीसरे दिन उसे जी उठाया जाएगा।” यह सुनकर वे बहुत दुःखी हो गए।

24 उनके कफरनहूम आ जाने के बाद, पतरस के पास वे लोग आए जो मंदिर का कर* वसूला करते थे। उन्होंने पतरस से कहा: “क्या तुम्हारा गुरु मंदिर का कर नहीं देता?” 25 उसने कहा: “हाँ, देता है।” मगर जब वह घर के अंदर गया, तो यीशु ने उसके बोलने से पहले ही उससे पूछा, “शमौन, तू क्या सोचता है? दुनिया के राजा चुंगी या कर किससे लेते हैं? अपने बेटों से या परायों से?” 26 जब उसने कहा: “परायों से,” तो यीशु ने उससे कहा: “इसका मतलब है कि बेटे कर से मुक्‍त हैं। 27 लेकिन ऐसा न हो कि हमारी वजह से वे ठोकर खाएँ, इसलिए तू झील के किनारे जा और मछली पकड़ने के लिए काँटा डाल, और जो पहली मछली पकड़ में आए उसे लेना और जब तू उसका मुँह खोलेगा, तो तुझे उसमें चाँदी का एक सिक्का* मिलेगा। उसे ले जाकर अपने और मेरे लिए कर-वसूलनेवालों को दे देना।”

18 उस वक्‍त चेलों ने यीशु के पास आकर उससे पूछा: “स्वर्ग के राज में कौन सबसे बड़ा होगा?” 2 तब यीशु ने एक छोटे बच्चे को अपने पास बुलाकर उनके बीच खड़ा किया 3 और कहा: “मैं तुमसे सच कहता हूँ, जब तक कि तुम खुद को बदलकर* वैसे न बनो जैसे छोटे बच्चे होते हैं, तब तक तुम किसी भी हाल में स्वर्ग के राज में दाखिल न हो सकोगे। 4 इसलिए जो कोई इस छोटे बच्चे की तरह खुद को नम्र करेगा, वही स्वर्ग के राज में सबसे बड़ा होगा। 5 जो कोई मेरे नाम से इस बच्चे-समान किसी को स्वीकार करता है, वह मुझे भी स्वीकार करता है। 6 मगर जो कोई मुझ पर विश्‍वास करनेवाले इन छोटों में से किसी के विश्‍वास से गिर जाने* की वजह बनता है, उसके लिए ज़्यादा अच्छा है कि उसके गले में चक्की का वह पाट लटकाया जाए जिसे गधा खींचता है और उसे गहरे समुद्र के बीच डुबा दिया जाए।

7 इस दुनिया का बहुत बुरा हश्र होगा, क्योंकि यह विश्‍वास की राह में बाधाएँ* डालती है! बेशक, राह में बाधाएँ ज़रूर आएँगी, मगर हाय उस इंसान पर जो विश्‍वास की राह में बाधा बनता है! 8 इसलिए, अगर तेरा हाथ या पैर, तुझसे पाप करवा रहा है,* तो उसे काटकर दूर फेंक दे। तेरे लिए एक हाथ या पैर के बिना जीवन पाना भला है, बजाय इसके कि तू दोनों हाथों या दोनों पैरों समेत हमेशा जलनेवाली आग* से नाश किया जाए। 9 अगर तेरी आँख तुझसे पाप करवा रही है, तो उसे नोंचकर निकाल दे और दूर फेंक दे। तेरे लिए एक आँख के बिना जीवन पाना भला है, बजाय इसके कि तू दोनों आँखों समेत गेहन्‍ना* की आग में फेंका जाए। 10 ध्यान रहे कि तुम इन छोटों में से किसी को भी तुच्छ न समझो; इसलिए कि मैं तुमसे कहता हूँ कि स्वर्ग में इनके स्वर्गदूत हमेशा मेरे स्वर्गीय पिता के मुख के सामने रहते हैं। 11* ——

12 तुम क्या सोचते हो? अगर किसी आदमी की सौ भेड़ें हों और उनमें से एक भटक जाए, तो क्या वह बाकी निनानवे को पहाड़ों पर छोड़कर उस एक भटकी हुई भेड़ को ढूँढ़ने न निकलेगा? 13 अगर वह उसे मिल जाती है, तो मैं तुमसे कहता हूँ कि वह यकीनन उन निनानवे से बढ़कर, जो भटकी नहीं थीं, उस एक के लिए ज़्यादा खुशी मनाता है। 14 इसी तरह मेरा पिता जो स्वर्ग में है, नहीं चाहता कि इन छोटों में से एक भी नाश हो।

15 अगर तेरा भाई कोई पाप करता है, तो जा और अकेले में जब सिर्फ तू और वह हो, उसकी गलती उसे बता दे। अगर वह तेरी सुने, तो तू ने अपने भाई को पा लिया है। 16 लेकिन अगर वह तेरी नहीं सुनता, तो अपने साथ एक या दो जनों को ले जाकर उससे बात कर, ताकि हर मामला दो या तीन गवाहों के मुँह से साबित हो। 17 अगर वह उनकी नहीं सुनता, तो मंडली को बता। और अगर वह मंडली की भी नहीं सुनता, तो उसे एक गैर-यहूदी या कर-वसूलनेवाला समझकर छोड़ दे।

18 मैं तुमसे सच कहता हूँ, जो कुछ तुम धरती पर बाँधोगे, वह स्वर्ग में बँधा हुआ होगा और जो कुछ तुम धरती पर खोलोगे, वह स्वर्ग में खुला हुआ होगा। 19 मैं फिर तुमसे सच कहता हूँ, अगर तुममें से दो जन धरती पर किसी ज़रूरी बात के लिए एक मन होकर बिनती करें, तो स्वर्ग में मेरे पिता की तरफ से उनके लिए वैसा हो जाएगा। 20 इसलिए कि जहाँ दो या तीन मेरे नाम से इकट्ठा होते हैं, मैं वहाँ उनके बीच मौजूद होता हूँ।”

21 इसके बाद, पतरस ने आकर यीशु से पूछा: “प्रभु, अगर मेरा भाई मेरे खिलाफ पाप करता रहे, तो मैं कितनी बार उसे माफ करूँ? सात बार तक?” 22 यीशु ने उससे कहा: “मैं तुझसे कहता हूँ कि ‘सात बार तक’ नहीं, बल्कि सतहत्तर बार तक।

23 इसीलिए स्वर्ग का राज उस राजा की तरह है, जिसने अपने दासों से माँग की कि वे अपना-अपना कर्ज़ चुकता करें। 24 जब उसने हिसाब लेना शुरू किया, तो उसके सामने एक ऐसे दास को लाया गया जिस पर छः करोड़ दीनार* का कर्ज़ था। 25 मगर क्योंकि उसके पास कर्ज़ चुकाने का कोई ज़रिया न था, इसलिए उसके मालिक ने हुक्म दिया कि उस दास के साथ-साथ उसके बीवी-बच्चों को और जो कुछ उसका है वह सब बेचकर कर्ज़ की रकम चुकायी जाए। 26 तब वह दास उसके सामने गिड़गिड़ाने और यह कहने लगा, ‘मुझे थोड़ी और मोहलत दे, और मैं तेरी पाई-पाई चुका दूँगा।’ 27 यह देखकर मालिक का दिल तड़प उठा और उसने उस दास को छोड़ दिया और उसका सारा कर्ज़ माफ कर दिया। 28 लेकिन वही दास बाहर निकला और अपने एक संगी दास को ढूँढ़ा, जिसने उससे सौ दीनार* उधार लिए थे, और वह उसे पकड़कर उसका गला दबाने लगा और कहने लगा, ‘तू ने जो उधार लिया है वह वापस कर।’ 29 तब उसका संगी दास उसके पैर पड़ने और यह बिनती करने लगा, ‘मुझे थोड़ी और मोहलत दे, और मैं तेरा उधार चुका दूँगा।’ 30 मगर, उसने उसकी एक न सुनी और जाकर उसे तब तक के लिए जेल में डलवा दिया, जब तक कि वह अपना उधार न चुका दे। 31 जब उसके संगी दासों ने यह सब देखा, तो वे बहुत दुःखी हुए और उन्होंने जाकर अपने मालिक को सारी बात बता दी। 32 इसके बाद, मालिक ने उस पहले दास को बुलवा लिया और उससे कहा, ‘दुष्ट दास, जब तू मेरे सामने गिड़गिड़ाया था, तब मैंने तेरा सारा कर्ज़ माफ कर दिया था। 33 तो क्या तेरा यह फर्ज़ नहीं था कि तू भी बदले में अपने संगी दास पर वैसे ही दया करता, जैसे मैंने तुझ पर दया की थी?’ 34 तब मालिक का गुस्सा भड़क उठा और उसने उस दास को तब तक के लिए जेलरों के हवाले कर दिया, जब तक कि वह उसकी पाई-पाई न चुका दे। 35 इसी तरह, अगर तुममें से हरेक अपने भाई को दिल से माफ न करेगा, तो मेरा स्वर्गीय पिता भी तुम्हारे साथ इसी तरह पेश आएगा।”

19 जब यीशु ये बातें कह चुका, तो वह गलील से निकल पड़ा और यरदन के पार यहूदिया प्रदेश की सरहदों के पास आया। 2 भीड़-की-भीड़ उसके पीछे हो ली और उसने वहाँ लोगों को चंगा किया।

3 तब फरीसी यीशु को बातों में फँसाने के इरादे से उसके पास आए और कहने लगे: “क्या मूसा के कानून के हिसाब से यह सही है कि एक आदमी अपनी पत्नी को किसी भी वजह से तलाक दे सकता है?” 4 जवाब में यीशु ने कहा: “क्या तुमने नहीं पढ़ा कि जिसने उनकी सृष्टि की थी, उसने शुरूआत से ही उन्हें नर और नारी बनाया था 5 और कहा था, ‘इस वजह से पुरुष अपने पिता और अपनी माँ को छोड़ देगा और अपनी पत्नी से जुड़ा रहेगा, और वे दोनों एक तन होंगे’? 6 तो वे अब दो नहीं रहे बल्कि एक तन हैं। इसलिए जिसे परमेश्‍वर ने एक बंधन में बाँधा है,* उसे कोई इंसान अलग न करे।” 7 तब फरीसियों ने उससे कहा: “तो फिर मूसा ने तलाकनामा लिखकर पत्नी को तलाक देने की आज्ञा क्यों दी?” 8 यीशु ने उनसे कहा: “मूसा ने तुम्हारे दिलों की कठोरता की वजह से तुम्हें अपनी पत्नियों को तलाक देने की रिआयत दी, मगर शुरूआत से ऐसा नहीं था। 9 मैं तुमसे कहता हूँ कि जो कोई व्यभिचार को छोड़ किसी और वजह से अपनी पत्नी को तलाक देता है, और किसी दूसरी से शादी करता है, वह शादी के बाहर यौन-संबंध रखने का गुनहगार है।”

10 चेलों ने उससे कहा: “अगर एक पति का अपनी पत्नी के साथ ऐसा रिश्‍ता है, तो शादी न करना ही अच्छा है।” 11 उसने उनसे कहा: “सभी अपनी ज़िंदगी में इस बात के लिए जगह नहीं बनाते, मगर सिर्फ वे ही जिनके पास यह तोहफा है। 12 क्योंकि कुछ नपुंसक ऐसे हैं जो अपनी माँ के गर्भ से नपुंसक पैदा हुए हैं। कुछ ऐसे हैं जिन्हें आदमियों ने नपुंसक बना दिया है, और कुछ ऐसे भी हैं जिन्होंने स्वर्ग के राज की खातिर खुद को नपुंसक बना लिया है। जो राज की खातिर अविवाहित रह सकता है, वह रहे।”

13 इसके बाद, लोग छोटे बच्चों को यीशु के पास लाने लगे ताकि वह उन पर अपने हाथ रखे और उनके लिए प्रार्थना करे। मगर चेलों ने उन्हें डाँटा। 14 लेकिन यीशु ने कहा: “बच्चों को मेरे पास आने दो, उन्हें मत रोको, क्योंकि स्वर्ग का राज ऐसों ही का है।” 15 और उसने उन पर अपने हाथ रखे और फिर वहाँ से चला गया।

16 और देखो! एक आदमी उसके पास आया और कहने लगा: “गुरु, हमेशा की ज़िंदगी पाने के लिए मैं क्या अच्छा काम करूँ?” 17 यीशु ने उससे कहा: “तू मुझसे क्यों पूछता है कि अच्छा काम क्या है? सिर्फ एक ही है जो अच्छा है। लेकिन अगर तू ज़िंदगी पाना चाहता है, तो आज्ञाओं का पालन करता रह।” 18 उस आदमी ने उससे पूछा: “कौन-सी आज्ञाएँ?” यीशु ने कहा: “यही कि तू खून न करना, तू शादी के बाहर यौन-संबंध न रखना, तू चोरी न करना, तू झूठी गवाही न देना, 19 अपने पिता और अपनी माँ का आदर करना और तुझे अपने पड़ोसी से वैसे ही प्यार करना है जैसे तू खुद से करता है।” 20 उस नौजवान ने यीशु से कहा: “मैं ये सारी बातें मानता आया हूँ। अब मुझमें क्या कमी है?” 21 यीशु ने उससे कहा: “अगर तू सिद्ध होना चाहता है, तो जा और अपना सबकुछ बेचकर कंगालों को दे दे क्योंकि तुझे स्वर्ग में खज़ाना मिलेगा, और आकर मेरा चेला बन जा और मेरे पीछे हो ले।” 22 जब उस नौजवान ने यह बात सुनी, तो वह दुःखी होकर चला गया, क्योंकि उसके पास बहुत धन-संपत्ति थी। 23 लेकिन यीशु ने अपने चेलों से कहा: “मैं तुमसे सच कहता हूँ कि एक दौलतमंद आदमी का स्वर्ग के राज के अंदर जा पाना बहुत मुश्‍किल होगा।  24 मैं तुमसे फिर कहता हूँ, परमेश्‍वर के राज में एक दौलतमंद आदमी के दाखिल होने से, एक ऊँट का सुई के छेद से निकल जाना ज़्यादा आसान है।”

25 जब चेलों ने यह सुना, तो उन्होंने बेहद हैरानी ज़ाहिर की और कहा: “तो फिर, आखिर किसका उद्धार हो सकता है?” 26 यीशु ने सीधे उनकी आँखों में देखकर कहा: “इंसानों के लिए यह नामुमकिन है मगर परमेश्‍वर के लिए सबकुछ मुमकिन है।”

27 तब पतरस ने जवाब में उससे कहा: “देख! हम तो सब कुछ छोड़कर तेरे पीछे हो लिए हैं; फिर हमारे लिए इसमें क्या होगा?” 28 यीशु ने उनसे कहा: “मैं तुमसे सच कहता हूँ कि जब सबकुछ नया किया जाएगा और इंसान का बेटा अपनी महिमा की राजगद्दी पर बैठेगा, तब तुम भी जो मेरे पीछे हो लिए हो, बारह राजगद्दियों पर बैठकर इस्राएल के बारह गोत्रों का न्याय करोगे। 29 और जिस किसी ने मेरे नाम की खातिर घरों या भाइयों या बहनों या पिता या माँ या बच्चों को छोड़ा हो या ज़मीनें छोड़ी हों, वह इसका कई गुना पाएगा और हमेशा की ज़िंदगी का वारिस होगा।

30 मगर बहुत-से जो पहले हैं, वे आखिरी होंगे और जो आखिरी हैं वे पहले।

20 इसलिए कि स्वर्ग का राज उस मालिक जैसा है, जिसका अंगूरों का बाग था। वह तड़के सुबह बाहर निकला कि अपने बाग में दिहाड़ी पर काम करनेवाले मज़दूर लगाए। 2 उसने मज़दूरों के साथ दिन की मज़दूरी एक दीनार तय की और उन्हें अपने बाग में काम करने भेज दिया। 3 फिर वह तीसरे घंटे* के करीब बाहर निकला। तब उसने बाज़ार के चौक में कुछ और मज़दूरों को बेकार खड़े देखा। 4 बाग के मालिक ने उनसे कहा, ‘तुम भी मेरे बाग में जाओ और जो ठीक है वह मज़दूरी मैं तुम्हें दूँगा।’ 5 तब वे बाग में गए। वह फिर छठे* और नौवें घंटे* के करीब बाहर निकला और ऐसा ही किया। 6 आखिर में, वह ग्यारहवें घंटे* के करीब बाहर निकला और कई और मज़दूरों को खड़े पाया। तब बाग के मालिक ने उनसे पूछा, ‘तुम यहाँ दिन-भर क्यों बेकार खड़े रहे?’ 7 उन्होंने कहा, ‘क्योंकि किसी ने भी हमें मज़दूरी पर नहीं रखा।’ उसने उनसे कहा, ‘तुम भी मेरे अंगूरों के बाग में जाओ।’

8 जब शाम हुई, तो बाग के मालिक ने काम की देख-रेख करनेवाले आदमी से कहा, ‘मज़दूरों को बुला और जो आखिर में आए थे उनसे शुरूआत करते हुए सबसे पहले आनेवालों तक, सबको मज़दूरी दे दे।’ 9 जब ग्यारहवें घंटे में काम पर लगनेवाले आदमी आए, तो उनमें से हरेक को एक दीनार मिला। 10 जब सबसे पहले आनेवालों की बारी आयी, तो उन्होंने सोचा कि उन्हें ज़्यादा मज़दूरी मिलेगी। मगर उन्हें भी दिन की मज़दूरी के तौर पर एक ही दीनार दिया गया। 11 एक दीनार मिलने पर वे यह कहकर उस मालिक पर कुड़कुड़ाने लगे, 12 ‘ये जो आखिर में आए थे, इन्होंने बस एक ही घंटे काम किया; फिर भी तू ने उन्हें हमारे बराबर कर दिया, जिन्होंने सारा दिन मेहनत की और तपती धूप सही!’ 13 मगर मालिक ने उनमें से एक को जवाब देते हुए कहा, ‘देख भई, मैं तेरे साथ कुछ बुरा नहीं कर रहा। क्या तू मेरे यहाँ एक दीनार पर काम करने के लिए राज़ी नहीं हुआ था? 14 इसलिए, जो तेरा है वह ले और चला जा। मैंने जितना तुझे दिया है, उतना ही मैं आखिर में आनेवाले इस आदमी को देना चाहता हूँ। 15 क्या मुझे अधिकार नहीं कि अपने धन के साथ जो चाहे वह करूँ? या यह देखकर कि मैं अच्छा हूँ, तू अपनी दुष्टता* दिखा रहा है?’ 16 इस तरह, जो आखिरी हैं वे पहले होंगे और जो पहले हैं वे आखिरी।”

17 अब जब यीशु यरूशलेम की तरफ जा रहा था, तब उसने बारह चेलों को अलग ले जाकर राह में उनसे कहा: 18 “देखो! हम यरूशलेम जा रहे हैं और इंसान का बेटा प्रधान याजकों और शास्त्रियों के हवाले किया जाएगा और वे उसे मौत की सज़ा सुनाएँगे। 19 वे उसे दूसरी जातियों के लोगों के हवाले कर देंगे कि वे उसका मज़ाक उड़ाएँ और उसे कोड़े लगाएँ और सूली पर चढ़ाएँ, और तीसरे दिन उसे जी उठाया जाएगा।”

20 इसके बाद, जब्दी की पत्नी अपने दो बेटों के साथ यीशु के पास आयी और झुककर उसे प्रणाम किया। वह उससे कुछ माँगना चाहती थी। 21 यीशु ने उससे कहा: “तू क्या चाहती है?” वह बोली: “बस इतना वादा कर दे कि तेरे राज में मेरे ये दोनों बेटे, एक तेरे दाएँ और दूसरा तेरे बाएँ बैठे।” 22 यीशु ने जवाब में उसके बेटों से कहा: “तुम दोनों नहीं जानते कि तुम क्या माँग रहे हो। क्या तुम वह प्याला पी सकते हो, जिसे मैं पीनेवाला हूँ?” उन्होंने कहा: “हम पी सकते हैं।” 23 यीशु ने उनसे कहा: “तुम मेरा प्याला ज़रूर पीओगे, मगर मेरी दायीं या बायीं तरफ बैठने की इजाज़त देना मेरे अधिकार में नहीं, लेकिन ये जगह उनके लिए हैं, जिनके लिए मेरे पिता ने इन्हें तैयार किया है।”

24 जब बाकी दस ने इस बारे में सुना, तो वे उन दोनों भाइयों पर नाराज़ होने लगे। 25 मगर यीशु ने चेलों को अपने पास बुलाकर कहा: “तुम जानते हो कि दुनिया के अधिकारी उन पर हुक्म चलाते हैं और उनके बड़े लोग उन पर अधिकार जताते हैं। 26 मगर तुम्हारे बीच ऐसा नहीं है; बल्कि तुममें जो बड़ा बनना चाहता है, उसे तुम्हारा सेवक होना चाहिए, 27 और जो कोई तुममें पहला होना चाहता है, उसे तुम्हारा दास होना चाहिए। 28 जैसे इंसान का बेटा भी सेवा करवाने नहीं, बल्कि सेवा करने आया है और इसलिए आया है कि बहुतों की फिरौती के लिए अपनी जान बदले में दे।”

29 जब वे यरीहो से निकलकर बाहर जा रहे थे, तब एक बड़ी भीड़ यीशु के पीछे हो ली। 30 और देखो! दो अंधे सड़क के किनारे बैठे थे। जब उन्होंने सुना कि यीशु वहाँ से गुज़र रहा है तो वे ज़ोर-ज़ोर से पुकारने लगे: “हे प्रभु, दाविद के वंशज, हम पर दया कर!” 31 मगर भीड़ ने उन्हें कड़ाई से कहा कि चुप हो जाएँ। लेकिन वे और ज़ोर से चिल्लाकर कहने लगे: “हे प्रभु, दाविद के वंशज, हम पर दया कर!” 32 इस पर यीशु रुक गया, और उन्हें बुलाकर कहा: “तुम क्या चाहते हो, मैं तुम्हारे लिए क्या करूँ?” 33 उन्होंने कहा: “प्रभु, हमारी आँखें ठीक हो जाएँ।” 34 यह देखकर यीशु तड़प उठा, और उसने उनकी आँखें छुईं और वे फौरन देखने लगे और उसके पीछे हो लिए।

21 जब वे यरूशलेम के करीब आ गए और जैतून पहाड़ पर बसे बैतफगे गाँव पहुँचे, तब यीशु ने दो चेलों को 2 यह कहकर भेजा: “जो गाँव तुम्हें नज़र आ रहा है, उसमें जाओ। वहाँ जाते ही तुम्हें एक गधी और उसका बच्चा बंधा हुआ मिलेगा। उन्हें खोलकर मेरे पास ले आओ। 3 और अगर कोई तुमसे कुछ कहे तो कहना, ‘प्रभु को इनकी ज़रूरत है।’ तब वह उन्हें फौरन भेज देगा।”

4 ऐसा दरअसल इसलिए हुआ ताकि वह वचन पूरा हो सके जो भविष्यवक्‍ता से कहलवाया गया था: 5 “सिय्योन की बेटी से कह, ‘देख! तेरा राजा तेरे पास आ रहा है, वह कोमल स्वभाव का है और एक गधे पर, हाँ बोझ ढोनेवाली गधी के बच्चे पर सवार है।’ ”

6 तब वे चेले निकल पड़े और वैसा ही किया जैसा यीशु ने उन्हें आदेश दिया था। 7 वे उस गधी और उसके बच्चे को ले आए, और उन्होंने इन पर अपने ओढ़ने डाले और वह उन पर* बैठ गया। 8 तब भीड़ में से ज़्यादातर ने अपने ओढ़ने रास्ते में बिछाए जबकि दूसरों ने पेड़ों से डालियाँ काटकर रास्ते में बिछाना शुरू कर दिया। 9 भीड़ के जो लोग उसके आगे-आगे चल रहे थे और जो उसके पीछे-पीछे आ रहे थे, वे पुकारकर यह कहते रहे: “हम बिनती करते हैं, दाविद के वंशज को बचा ले!* धन्य है वह जो यहोवा के नाम से आता है! स्वर्ग में रहनेवाले, हम बिनती करते हैं, उसे बचा ले!”

10 जब वह यरूशलेम में दाखिल हुआ, तो पूरे शहर में तहलका मच गया और सब कहने लगे: “यह कौन है?” 11 और भीड़ के लोग उन्हें बताते रहे: “यह वही भविष्यवक्‍ता है, गलील के नासरत का यीशु!”

12 फिर यीशु मंदिर के अंदर गया। मंदिर में जो लोग बिक्री कर रहे थे, और जो खरीदारी कर रहे थे, उन सबको उसने खदेड़ दिया और पैसा बदलनेवाले सौदागरों की मेज़ें और कबूतर बेचनेवालों की चौकियाँ उलट दीं। 13 और उसने उनसे कहा: “यह लिखा है, ‘मेरा घर प्रार्थना का घर कहलाएगा’, मगर तुम इसे लुटेरों का अड्डा बना रहे हो।” 14 इसके बाद, अंधे और लंगड़े मंदिर में उसके पास आए, और उसने उन्हें चंगा किया।

15 जब प्रधान याजकों और शास्त्रियों ने उसके हैरतअँगेज़ काम देखे और मंदिर में लड़कों को यह पुकारते सुना, “दाविद के वंशज को बचा ले, हम बिनती करते हैं!” तो वे भड़क उठे। 16 उन्होंने उससे कहा: “क्या तू सुन रहा है, ये क्या कह रहे हैं?” यीशु ने उनसे कहा: “हाँ, क्या तुमने यह कभी नहीं पढ़ा, ‘नन्हे-मुन्‍नों और दूध-पीते बच्चों के मुँह से तू ने स्तुति करवायी है’?” 17 और वह उन्हें वहीं छोड़कर यरूशलेम शहर से बाहर बैतनिय्याह चला गया और वहीं रात बितायी।

18 तड़के सुबह जब वह यरूशलेम शहर की तरफ लौट रहा था तो उसे भूख लगी। 19 और रास्ते के किनारे जब एक अंजीर के पेड़ पर उसकी नज़र पड़ी तो वह उसके पास गया, मगर पत्तियों को छोड़ उसमें कुछ न पाया। तब उसने पेड़ से कहा: “अब से फिर कभी तुझमें फल न लगे।” और अंजीर का वह पेड़ उसी घड़ी सूख गया। 20 मगर जब चेलों ने इसे देखा, तो वे ताज्जुब करते हुए कहने लगे: “यह अंजीर का पेड़ फौरन कैसे सूख गया?” 21 जवाब में यीशु ने उनसे कहा: “मैं तुमसे सच कहता हूँ, अगर तुममें बस विश्‍वास हो और तुम ज़रा भी शक न करो, तो न सिर्फ वह करोगे जो मैंने इस अंजीर के पेड़ के साथ किया, बल्कि अगर तुम इस पहाड़ से कहो, ‘यहाँ से उखड़कर समुद्र में जा गिर,’ तो ऐसा ही हो जाएगा। 22 और तुम विश्‍वास के साथ प्रार्थना में जो कुछ माँगोगे, वह तुम्हें मिल जाएगा।”

23 जिस दौरान वह मंदिर में जाकर सिखा रहा था, तब प्रधान याजक और लोगों के बुज़ुर्ग उसके पास आए और उससे कहा: “तू ये सब किस अधिकार से करता है? और किसने तुझे यह अधिकार दिया है?” 24 जवाब में यीशु ने उनसे कहा: “मैं भी तुमसे एक बात पूछता हूँ। अगर तुम उसका जवाब दोगे, तो मैं भी तुम्हें बताऊँगा कि मैं ये सब किस अधिकार से करता हूँ: 25 जो बपतिस्मा यूहन्‍ना ने दिया, वह किसकी तरफ से था? स्वर्ग की तरफ से या इंसानों की तरफ से?” लेकिन वे आपस में सलाह-मशविरा करने लगे और यह कहने लगे: “अगर हम कहें, ‘स्वर्ग की तरफ से,’ तो वह हमसे कहेगा, ‘फिर क्यों तुमने उसका यकीन नहीं किया?’ 26 लेकिन अगर हम कहें, ‘इंसानों की तरफ से था,’ तो हमें भीड़ का डर है, क्योंकि वे सब यूहन्‍ना को एक भविष्यवक्‍ता मानते हैं।” 27 तो उन्होंने यीशु को जवाब दिया: “हम नहीं जानते।” इस पर उसने कहा: “न ही मैं तुम्हें यह बतानेवाला हूँ कि मैं किस अधिकार से यह सब करता हूँ।

28 तुम क्या सोचते हो? किसी आदमी के दो बेटे थे। उसने पहले के पास जाकर कहा, ‘बेटा जा और आज अंगूर के बाग में काम कर।’ 29 जवाब में इस पहले ने कहा, ‘जी पिताजी, मैं जाऊँगा’, मगर वह नहीं गया। 30 फिर दूसरे के पास जाकर पिता ने वही बात कही। उसने जवाब दिया, ‘मैं नहीं जाऊँगा।’ मगर बाद में उसे पछतावा महसूस हुआ और वह गया। 31 इन दोनों में से किसने अपने पिता की मरज़ी पूरी की?” उन्होंने कहा: “दूसरे ने।” यीशु ने उनसे कहा: “मैं तुम से सच कहता हूँ कि कर-वसूलनेवाले और वेश्‍याएँ तुमसे आगे परमेश्‍वर के राज में जा रहे हैं। 32 क्योंकि यूहन्‍ना सच्चाई की राह दिखाता हुआ तुम्हारे पास आया, मगर तुमने उसका यकीन नहीं किया। लेकिन, कर-वसूलनेवालों और वेश्‍याओं ने उसका यकीन किया, और यह देखने के बावजूद, तुम्हें बाद में भी पछतावा महसूस नहीं हुआ कि उसका यकीन करते।

33 एक और मिसाल सुनो: किसी मालिक ने अंगूरों का एक बाग लगाया और उसके चारों तरफ एक बाड़ा बनाया। उसने उसमें अंगूर रौंदने का हौद खोदा और एक बुर्ज खड़ा किया। फिर अंगूरों का बाग बागबानों को ठेके पर देकर परदेस चला गया। 34 जब अंगूरों की कटाई का मौसम आया, तो उसने अपने दासों को बागबानों के पास भेजा कि वे उसके हिस्से के फल ले आएँ। 35 मगर बागबानों ने उसके दासों को पकड़ लिया और एक को उन्होंने पीटा, दूसरे को मार डाला और तीसरे पर पत्थरवाह किया। 36 दोबारा उस आदमी ने कुछ और दासों को भेजा, जो गिनती में पहले से ज़्यादा थे, लेकिन बागबानों ने इनके साथ भी वैसा ही सलूक किया। 37 आखिर में उसने अपने बेटे को यह सोचकर उनके पास भेजा: ‘वे मेरे बेटे की ज़रूर इज़्ज़त करेंगे।’ 38 उसके बेटे को देखकर बागबानों ने आपस में कहा, ‘यह तो वारिस है। आओ, हम इसे मार डालें और इसकी विरासत अपनी कर लें!’ 39 तब उन्होंने उसे पकड़ लिया और अंगूरों के बाग के बाहर ले गए और मार डाला। 40 इसलिए जब बाग का मालिक आएगा, तो वह उन बागबानों के साथ क्या करेगा?” 41 उन्होंने कहा: “क्योंकि वे दुष्ट हैं, इसलिए वह उन्हें बुरी तरह नाश कर देगा और अंगूर के बाग का ठेका दूसरे बागबानों को दे देगा, जो फलों के मौसम में सही वक्‍त पर उसे फल दिया करेंगे।”

42 यीशु ने उनसे कहा: “क्या तुमने शास्त्र में कभी नहीं पढ़ा, ‘जिस पत्थर को राजमिस्त्रियों ने ठुकराया, वही कोने का मुख्य पत्थर बन गया है।’ क्या तुमने यह भी नहीं पढ़ा, ‘यह यहोवा की तरफ से हुआ है, और हमारी नज़र में लाजवाब है’? 43 इसलिए मैं तुमसे कहता हूँ, परमेश्‍वर का राज तुमसे ले लिया जाएगा और उस जाति को, जो इसके योग्य फल पैदा करती है, दे दिया जाएगा। 44 जो कोई इस पत्थर पर गिरेगा वह टुकड़े-टुकड़े हो जाएगा। और जिस किसी पर यह पत्थर गिरेगा, उसे यह पीसकर चकनाचूर कर देगा।”

45 जब प्रधान याजकों और फरीसियों ने उसकी मिसालें सुनीं, तो वे जान गए कि वह उन्हीं के बारे में बोल रहा है। 46 हालाँकि वे उसे पकड़ना चाहते थे, मगर वे भीड़ से डरते थे, क्योंकि सभी लोग यीशु को एक भविष्यवक्‍ता मानते थे।

22 यीशु ने आगे जवाब में फिर से उन्हें मिसालें देकर कहा: 2 “स्वर्ग का राज एक ऐसे राजा की तरह है, जिसने अपने बेटे की शादी की दावत दी। 3 उसने अपने दासों को उन लोगों को बुलाने भेजा, जिन्हें शादी की दावत का न्यौता दिया गया था। मगर वे नहीं आना चाहते थे। 4 राजा ने दोबारा दूसरे दासों को यह कहकर भेजा: ‘जिन्हें न्यौता दिया गया है उनसे जाकर कहो: “देखो! मैं खाना तैयार कर चुका हूँ, मेरे बैल और मोटे-ताज़े जानवर हलाल किए जा चुके हैं और सारी चीज़ें तैयार हैं। शादी की दावत में आ जाओ।” ’ 5 मगर उन्होंने ज़रा भी परवाह न की और अपने-अपने रास्ते चल दिए, कोई अपने खेत की तरफ, तो कोई अपने कारोबार के लिए। 6 जबकि बाकियों ने उसके दासों को पकड़ लिया, उनके साथ बुरा सलूक किया और उन्हें मार डाला।

7 तब राजा का गुस्सा भड़क उठा और उसने अपनी सेनाएँ भेजकर उन हत्यारों को नाश कर दिया और उनके शहर को जलाकर राख कर दिया। 8 इसके बाद, उसने अपने दासों से कहा, ‘शादी की दावत तो तैयार है, मगर जिन्हें न्यौता दिया गया था वे इसके लायक नहीं थे। 9 इसलिए शहर से बाहर निकलनेवाली सड़कों पर जाओ और वहाँ जो भी तुम्हें मिले, उसे शादी की दावत के लिए बुला लाओ।’ 10 इस पर वे दास सड़कों पर निकल गए और उन्हें जितने भी मिले, चाहे अच्छे, चाहे बुरे सभी को इकट्ठा किया। और वह भवन जहाँ शादी की रस्में होनी थीं, खाने की मेज़ पर बैठे लोगों से भर गया।

11 जब राजा मेहमानों का मुआयना करने अंदर आया, तो उसकी नज़र एक ऐसे आदमी पर पड़ी जिसने शादी की पोशाक नहीं पहनी थी। 12 तब उसने उससे कहा, ‘अरे भई, तू शादी की पोशाक पहने बिना यहाँ अंदर कैसे आ गया?’ वह कोई जवाब न दे सका। 13 तब राजा ने अपने सेवकों से कहा, ‘इसके हाथ-पैर बाँधकर इसे बाहर अंधेरे में फेंक दो। वहीं इसका रोना और दाँत पीसना होगा।’

14 इसलिए कि न्यौता पानेवाले तो बहुत हैं, मगर चुने गए थोड़े हैं।”

15 इसके बाद फरीसी चले गए और उन्होंने आपस में सलाह की कि किस तरह यीशु को उसी की बातों से फंसाएँ। 16 इसलिए उन्होंने अपने चेलों को हेरोदियों के दल के लोगों के साथ, उसके पास भेजा। उन्होंने यीशु से कहा: “गुरु, हम जानते हैं कि तू सच्चा है और सच्चाई से परमेश्‍वर का मार्ग सिखाता है और किसी की परवाह नहीं करता, क्योंकि तू इंसान की सूरत देखकर बात नहीं करता। 17 इसलिए हमें बता, तू क्या सोचता है? सम्राट* को कर देना सही है या नहीं?” 18 मगर यीशु ने उनकी दुष्टता जानते हुए कहा: “अरे कपटियो, तुम मेरी परीक्षा क्यों लेते हो? 19 मुझे कर का सिक्का दिखाओ।” तब वे उसके पास एक दीनार लाए। 20 यीशु ने उनसे पूछा: “इस पर किसकी सूरत और किसके नाम की छाप है?” 21 उन्होंने कहा: “सम्राट की।” तब उसने उनसे कहा: “इसलिए जो सम्राट का है वह सम्राट को चुकाओ, मगर जो परमेश्‍वर का है वह परमेश्‍वर को।” 22 जब उन्होंने यह सुना, तो वे बहुत ताज्जुब करने लगे और उसे छोड़कर चले गए।

23 उसी दिन सदूकी, जो कहते हैं कि मरे हुओं के फिर से जी उठने* की शिक्षा सच नहीं है, उसके पास आए और उससे कहा: 24 “गुरु, मूसा ने कहा था, ‘अगर कोई आदमी बेऔलाद मर जाए, तो उसका भाई उसकी पत्नी से शादी करे और अपने मरे हुए भाई के लिए औलाद पैदा करे।’ 25 हमारे यहाँ सात भाई थे। पहले ने शादी की और बेऔलाद मर गया। और अपने भाई के लिए अपनी पत्नी छोड़ गया। 26 ऐसा ही दूसरे और तीसरे के साथ हुआ, यहाँ तक कि सातों के साथ यही हुआ। 27 आखिर में वह स्त्री भी मर गयी। 28 तो मरे हुओं के जी उठने के वक्‍त, वह उन सातों में से किसकी पत्नी होगी? क्योंकि वे सभी उसके पति हो चुके थे।”

29 यीशु ने उन्हें जवाब दिया: “तुम बड़ी गलतफहमी में हो, क्योंकि तुम न तो शास्त्र को जानते हो, न ही परमेश्‍वर की शक्‍ति को। 30 क्योंकि मरे हुओं के जी उठने पर उनमें न तो पुरुष शादी करेंगे न स्त्रियाँ ब्याही जाएँगी, मगर वे स्वर्गदूतों की तरह होंगे। 31 जहाँ तक मरे हुओं के जी उठने की बात है, क्या तुमने वह नहीं पढ़ा जो परमेश्‍वर ने तुमसे कहा था, 32 ‘मैं अब्राहम का परमेश्‍वर और इसहाक का परमेश्‍वर और याकूब का परमेश्‍वर हूँ’? वह मरे हुओं का नहीं, बल्कि जीवितों का परमेश्‍वर है।” 33 यह सुनकर भीड़ उसकी शिक्षा से हैरान रह गयी।

34 जब फरीसियों ने सुना कि उसने सदूकियों का मुँह बंद कर दिया है, तो वे एक झुंड बनाकर उसके पास आए। 35 उनमें से एक ने, जो मूसा के कानून का अच्छा जानकार था, यीशु को परखने के लिए पूछा: 36 “गुरु, परमेश्‍वर के कानून में सबसे बड़ी आज्ञा कौन-सी है?” 37 उसने कहा: “ ‘तुझे अपने परमेश्‍वर यहोवा से अपने पूरे दिल, अपनी पूरी जान और अपने पूरे दिमाग से प्यार करना है।’ 38 यही सबसे बड़ी और पहली आज्ञा है। 39 और इसी की तरह यह दूसरी है, ‘तुझे अपने पड़ोसी से वैसे ही प्यार करना है जैसे तू खुद से करता है।’ 40 इन्हीं दो आज्ञाओं पर पूरा कानून और भविष्यवक्‍ताओं की शिक्षाएँ आधारित हैं।”

41 जिस दौरान फरीसी वहाँ जमा थे, तब यीशु ने उनसे पूछा: 42 “तुम मसीह के बारे में क्या सोचते हो? वह किसका वंशज है?” उन्होंने कहा: “दाविद का।” 43 उसने उनसे कहा: “तो फिर, क्यों दाविद पवित्र शक्‍ति से उभारे जाने पर उसे ‘प्रभु’ पुकारता है और कहता है, 44 ‘यहोवा ने मेरे प्रभु से कहा: “मेरी दायीं तरफ बैठ जब तक कि मैं तेरे दुश्‍मनों को तेरे पैरों तले न कर दूँ” ’? 45 इसलिए अगर दाविद उसे ‘प्रभु’ कहकर पुकारता है, तो वह उसका वंशज कैसे हुआ?” 46 और कोई भी जवाब में उससे एक शब्द तक न कह सका, न ही उस दिन से फिर किसी ने उससे कोई और सवाल पूछने की हिम्मत की।

23 इसके बाद यीशु, भीड़ से और अपने चेलों से बात करने लगा। उसने कहा: 2 “शास्त्री और फरीसी खुद मूसा की गद्दी पर बैठ गए हैं। 3 इसलिए वे जो कुछ तुम्हें बताते हैं वह सब करो और मानो, मगर उनके जैसे काम मत करो, क्योंकि जो वे कहते हैं वह खुद करते नहीं। 4 उनके बनाए हुए नियम भारी बोझ जैसे हैं, जिन्हें वे लोगों के कंधों पर लाद देते हैं, मगर उसे उठाने के लिए खुद ज़रा-सी उँगली तक नहीं लगाना चाहते। 5 वे सारे काम लोगों को दिखाने के लिए करते हैं। वे उन डिब्बियों को, जिनमें शास्त्र की आयतें लिखी होती हैं और जिन्हें वे तावीज़ों की तरह पहनते हैं, और भी चौड़ा बनाते हैं। वे अपने कपड़ों की झालरें और लंबी करते हैं। 6 उन्हें शाम की दावतों में सबसे खास जगह लेना और सभा-घरों में सबसे आगे की जगहों पर बैठना पसंद है। 7 उन्हें बाज़ारों के चौक में लोगों से नमस्कार सुनना और गुरु* कहलाना अच्छा लगता है। 8 मगर तुम गुरु न कहलाना, क्योंकि तुम्हारा गुरु एक है, जबकि तुम सब भाई हो। 9 और धरती पर किसी को अपना ‘पिता’* न कहना, क्योंकि तुम्हारा पिता एक है, जो स्वर्ग में है। 10 न ही तुम ‘नेता’ कहलाना, क्योंकि तुम्हारा एक ही नेता या अगुवा है, मसीह। 11 मगर तुम्हारे बीच जो सबसे बड़ा है, वह तुम्हारा सेवक बने। 12 जो कोई खुद को ऊँचा करता है, उसे नीचा किया जाएगा और जो कोई खुद को नीचे रखता है उसे ऊँचा किया जाएगा।

13 अरे कपटी शास्त्रियो और फरीसियो, धिक्कार है तुम पर! क्योंकि तुम लोगों के सामने स्वर्ग के राज का दरवाज़ा बंद कर देते हो। न तो तुम खुद अंदर जाते हो और न ही उनको जाने देते हो जो अंदर जाने पर हैं। 14* ——

15 अरे कपटी शास्त्रियो और फरीसियो, धिक्कार है तुम पर! क्योंकि तुम एक आदमी को अपने पंथ में लाने के लिए जल और थल में घूमते-फिरते हो, और जब वह तुम्हारे पंथ में आ जाता है, तो तुम उसे खुद से दुगुना गेहन्‍ना* के लायक* बना देते हो।

16 अरे अंधो, तुम जो दूसरों को राह दिखाते हो, धिक्कार है तुम पर, तुम जो कहते हो ‘अगर कोई मंदिर की कसम खाए तो कोई बात नहीं। लेकिन अगर वह मंदिर के सोने की कसम खाए तो अपनी कसम पूरी करना उसका फर्ज़ है।’ 17 अरे मूर्खो और अंधो! असल में बड़ा क्या है, सोना या मंदिर जिससे वह सोना पवित्र ठहरता है? 18 तुम यह भी कहते हो, ‘अगर कोई वेदी की कसम खाए तो कोई बात नहीं। लेकिन अगर वह उस पर रखी भेंट की कसम खाए, तो अपनी कसम पूरी करना उसका फर्ज़ है।’ 19 अरे अंधो! असल में बड़ा क्या है, भेंट या वेदी जिससे वह भेंट पवित्र ठहरती है? 20 इसलिए जो वेदी की कसम खाता है, वह उसकी और उस पर रखी सब चीज़ों की कसम खाता है। 21 जो मंदिर की कसम खाता है, वह उसकी और उसमें निवास करनेवाले की कसम खाता है। 22 जो स्वर्ग की कसम खाता है, वह परमेश्‍वर की राजगद्दी की और उस पर बैठनेवाले की कसम खाता है।

23 अरे कपटी शास्त्रियो और फरीसियो, धिक्कार है तुम पर! क्योंकि तुम पुदीने, सोए और जीरे का दसवाँ अंश तो देते हो, मगर मूसा के कानून की ज़्यादा अहमियत रखनेवाली बातों को, यानी न्याय और दया और विश्‍वासयोग्य होने को तुमने दरकिनार कर दिया है। ज़रूरी था कि तुम इन आज्ञाओं को मानते, साथ ही उन दूसरी आज्ञाओं को भी न छोड़ते। 24 अरे अंधो, तुम मच्छर को तो छानकर निकाल देते हो, मगर ऊँट को निगल जाते हो!

25 अरे कपटी शास्त्रियो और फरीसियो, धिक्कार है तुम पर! क्योंकि तुम उन प्यालों और थालियों की तरह हो जिन्हें सिर्फ बाहर से साफ किया जाता है, मगर अंदर से वे लूट के माल और बेलगाम ऐयाशी से भरे हैं। 26 अरे अंधे फरीसी, पहले प्याले और थाली को अंदर से साफ कर, तब वह बाहर से भी साफ हो जाएगा।

27 अरे कपटी शास्त्रियो और फरीसियो, धिक्कार है तुम पर! क्योंकि तुम सफेदी पुती कब्रों की तरह हो, जो बाहर से तो बहुत खूबसूरत दिखायी देती हैं, मगर अंदर मुरदों की हड्डियों और हर तरह की गंदगी से भरी होती हैं। 28 उसी तरह तुम भी बाहर से लोगों को बहुत नेक दिखायी देते हो, मगर अंदर से कपट और दुराचार से भरे हो।

29 अरे कपटी शास्त्रियो और फरीसियो, धिक्कार है तुम पर! क्योंकि तुम भविष्यवक्‍ताओं की कब्रें बनवाते हो और परमेश्‍वर के भक्‍तों की स्मारक-कब्रों को सजाते हो, 30 और तुम कहते हो, ‘अगर हम अपने बापदादों के ज़माने में होते, तो भविष्यवक्‍ताओं का खून बहाने में उनके साझेदार न होते।’ 31 इससे तुम खुद अपने खिलाफ गवाही देते हो कि तुम भविष्यवक्‍ताओं का खून करनेवालों की औलाद हो, 32 तो अपने बापदादों के पाप का घड़ा भर दो।

33 अरे, साँपो और ज़हरीले साँप के संपोलो, तुम गेहन्‍ना की सज़ा से बचकर कैसे भाग सकोगे? 34 इसलिए, मैं तुम्हारे पास भविष्यवक्‍ताओं और बुद्धिमानों और लोगों को सिखानेवाले उपदेशकों को भेज रहा हूँ। उनमें से कुछ को तुम मार डालोगे और सूली पर चढ़ाओगे और कुछ को अपने सभा-घरों में कोड़े लगाओगे और शहर-शहर उन पर ज़ुल्म ढाओगे। 35 जितने नेक जनों का खून धरती पर बहाया गया है, यानी नेक हाबिल से लेकर बिरिक्याह के बेटे जकर्याह तक, जिसे तुमने मंदिर और वेदी के बीच मार डाला था, उन सबका खून तुम्हारे सिर पर पड़े। 36 मैं तुमसे सच कहता हूँ कि ये सारी बातें इस पीढ़ी के सिर आ पड़ेंगी।

37 यरूशलेम, यरूशलेम, तू जो भविष्यवक्‍ताओं की हत्यारी नगरी है और जो तेरे पास भेजे जाते हैं उन पर पत्थरवाह करती है,—मैंने कितनी बार चाहा कि जैसे मुर्गी अपने चूज़ों को अपने पंखों तले इकट्ठा करती है, वैसे ही मैं भी तेरे बच्चों को इकट्ठा करूँ! मगर तुम लोगों ने यह नहीं चाहा। 38 देखो! तुम्हारा घर तुम्हारे हवाले छोड़ा जाता है। 39 मैं तुमसे कहता हूँ कि अब से तुम मुझे तब तक हरगिज़ न देखोगे जब तक कि यह न कहो, ‘धन्य है वह जो यहोवा के नाम से आता है!’ ”

24 यीशु मंदिर से निकलकर जा रहा था, मगर चेले उसे मंदिर की इमारतें दिखाने के लिए उसके पास आए। 2 जवाब में यीशु ने कहा: “क्या तुम यह सब नहीं देखते? मैं तुमसे सच कहता हूँ, यहाँ किसी भी हाल में एक पत्थर के ऊपर दूसरा पत्थर बाकी न बचेगा, जो ढाया न जाए।”

3 जब वह जैतून पहाड़ पर बैठा हुआ था, तब चेले अकेले में उसके पास आकर पूछने लगे: “हमें बता, ये सब बातें कब होंगी और तेरी मौजूदगी* की और दुनिया की व्यवस्था के आखिरी वक्‍त की क्या निशानी होगी?”

4 जवाब में यीशु ने उनसे कहा: “खबरदार रहो कि कोई तुम्हें गुमराह न करे। 5 इसलिए कि बहुत-से मेरे नाम से आएँगे और कहेंगे, ‘मैं ही मसीह हूँ,’ और बहुतों को गुमराह करेंगे। 6 तुम युद्धों का शोरगुल और युद्धों की खबरें सुनोगे; देखो तुम दहशत न खाना। क्योंकि इन सबका होना ज़रूरी है, मगर तभी अंत न होगा।

7 क्योंकि एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्र पर और एक राज्य दूसरे राज्य पर हमला करेगा। एक-के-बाद-एक कई जगहों पर अकाल पड़ेंगे और भूकंप होंगे। 8 ये सारी बातें प्रसव-पीड़ा की तरह मुसीबतों की सिर्फ शुरूआत होंगी।

9 तब लोग तुम्हें क्लेश दिलाने के लिए पकड़वाएँगे और तुम्हें मार डालेंगे और तुम मेरे नाम की वजह से सब राष्ट्रों की नफरत का शिकार बनोगे। 10 इसके बाद, बहुत-से ठोकर खाएँगे और एक-दूसरे के साथ विश्‍वासघात करेंगे और एक-दूसरे से नफरत करेंगे। 11 और बहुत-से झूठे भविष्यवक्‍ता उठ खड़े होंगे और बहुतों को गुमराह करेंगे। 12 और दुराचार के बढ़ जाने से ज़्यादातर लोगों का प्यार ठंडा हो जाएगा। 13 मगर जो अंत तक धीरज धरता है, वही उद्धार पाएगा। 14 और राज की इस खुशखबरी का सारे जगत* में प्रचार किया जाएगा ताकि सब राष्ट्रों पर गवाही हो; और इसके बाद अंत आ जाएगा।

15 इसलिए, जब तुम्हें वह उजाड़नेवाली घिनौनी चीज़, जिसके बारे में दानिय्येल भविष्यवक्‍ता के ज़रिए बताया गया था, एक पवित्र जगह में खड़ी नज़र आए (पढ़नेवाला समझ इस्तेमाल करे,) 16 तब जो यहूदिया में हों, वे पहाड़ों की तरफ भागना शुरू कर दें। 17 जो आदमी घर की छत पर हो, वह अपने घर से सामान ले जाने के लिए नीचे न उतरे। 18 और जो आदमी खेत में हो, वह अपना चोगा लेने के लिए घर वापस न लौटे। 19 उन दिनों, जो गर्भवती होंगी और जो बच्चे को दूध पिलाती होंगी, उनके लिए ये दिन क्या ही भयानक होंगे! 20 प्रार्थना करते रहो कि तुम्हारा भागना न तो सर्दियों के मौसम में, न ही सब्त के दिन* हो। 21 इसलिए कि इसके बाद ऐसा महा-संकट होगा जैसा दुनिया की शुरूआत से न अब तक हुआ और न फिर कभी होगा। 22 दरअसल, अगर वे दिन घटाए न गए होते, तो कोई* भी नहीं बच पाता; मगर चुने हुओं की खातिर वे दिन घटाए जाएँगे।

23 उस वक्‍त अगर कोई तुमसे कहे, ‘देखो! मसीह यहाँ है,’ या ‘वहाँ है!’ तो यकीन न करना। 24 क्योंकि झूठे मसीह और झूठे भविष्यवक्‍ता उठ खड़े होंगे और बड़े-बड़े चमत्कार और अजूबे दिखाएँगे, ताकि हो सके तो चुने हुओं को भी गुमराह कर दें। 25 देखो! मैंने तुम्हें पहले से आगाह कर दिया है। 26 इसलिए अगर लोग तुमसे कहें, ‘देखो! वह वीराने में है,’ तो बाहर न जाना; ‘देखो! वह अंदर के कमरों में है,’ तो यकीन न करना। 27 इसलिए कि जैसे बिजली पूरब से निकलकर पश्‍चिम तक चमकती दिखायी देती है, वैसे ही इंसान के बेटे की मौजूदगी भी होगी। 28 जहाँ लाश है, वहीं उकाब जमा होंगे।

29 उन दिनों के संकट के फौरन बाद, सूरज अंधियारा हो जाएगा, और चाँद अपनी रौशनी न देगा, और तारे आकाश से गिरेंगे और आकाश की शक्‍तियाँ हिलायी जाएँगी। 30 और इसके बाद इंसान के बेटे की निशानी आकाश में दिखायी देगी और इसके बाद धरती की सारी जातियाँ विलाप करती हुईं छाती पीटेंगी और वे इंसान के बेटे को शक्‍ति और बड़ी महिमा के साथ आकाश के बादलों पर आता देखेंगे। 31 और वह तुरही की बड़ी आवाज़ के साथ अपने स्वर्गदूतों को भेजेगा और वे उसके चुने हुओं को आकाश के इस छोर से लेकर उस छोर तक, चारों दिशाओं* से इकट्ठा करेंगे।

32 अब अंजीर के पेड़ की मिसाल से यह बात सीखो: जैसे ही उसकी नयी डाली नरम हो जाती है और उस पर पत्तियाँ आने लगती हैं, तो तुम जान लेते हो कि गर्मियों का मौसम पास है। 33 उसी तरह, जब तुम ये सब बातें होती देखो, तो जान लो कि इंसान का बेटा पास ही दरवाज़े पर है। 34 मैं तुमसे सच कहता हूँ कि जब तक ये सारी बातें न हो लें, तब तक यह पीढ़ी हरगिज़ न मिटेगी। 35 आकाश और पृथ्वी मिट जाएँगे, मगर मेरे शब्द किसी भी हाल में न मिटेंगे।

36 उस दिन और उस वक्‍त* के बारे में कोई नहीं जानता, न स्वर्ग के दूत, न बेटा, लेकिन सिर्फ पिता जानता है। 37 ठीक जैसे नूह के दिन थे, इंसान के बेटे की मौजूदगी भी वैसी ही होगी। 38 इसलिए कि जैसे जलप्रलय से पहले के दिनों में, जिस दिन तक नूह जहाज़* के अंदर न गया, उस दिन तक लोग खा रहे थे और पी रहे थे, पुरुष शादी कर रहे थे और स्त्रियाँ ब्याही जा रही थीं। 39 जब तक जलप्रलय आकर उन सबको बहा न ले गया, तब तक उन्होंने कोई ध्यान न दिया। इंसान के बेटे की मौजूदगी भी ऐसी ही होगी। 40 तब दो आदमी खेत में होंगे: एक को साथ ले लिया जाएगा और दूसरा छोड़ दिया जाएगा। 41 दो स्त्रियाँ हाथ से चक्की पीस रही होंगी: एक को साथ ले लिया जाएगा और दूसरी को छोड़ दिया जाएगा। 42 इसलिए, जागते रहो क्योंकि तुम नहीं जानते कि तुम्हारा प्रभु किस दिन आ रहा है।

43 लेकिन एक बात जान लो कि अगर घर के मालिक को पता होता कि चोर किस पहर आनेवाला है, तो वह जागता रहता और अपने घर में सेंध न लगने देता। 44 इस वजह से तुम भी तैयार रहने का सबूत दो, क्योंकि जिस घड़ी तुमने सोचा भी न होगा, उस घड़ी इंसान का बेटा आ रहा है।

45 तो असल में वह विश्‍वासयोग्य और सूझ-बूझ से काम लेनेवाला दास कौन है, जिसे उसके मालिक ने अपने घर के कर्मचारियों के ऊपर ठहराया कि उन्हें सही वक्‍त पर उनका खाना दे? 46 सुखी होगा वह दास अगर उसका मालिक आने पर उसे ऐसा ही करता पाए! 47 मैं तुमसे सच कहता हूँ, वह उसे अपनी सारी संपत्ति पर अधिकारी ठहराएगा।

48 लेकिन अगर कभी वह दुष्ट दास अपने दिल में कहने लगे, ‘मेरा मालिक देर लगा रहा है,’ 49 और अपने संगी दासों को पीटने लगे और बदनाम पियक्कड़ों के साथ खाने और पीने लगे, 50 तो उस दास का मालिक एक ऐसे दिन आएगा जिस दिन उसने उम्मीद भी न की होगी और उस घड़ी आएगा, जिसकी उसे खबर तक न होगी। 51 और वह उसे सख्त-से-सख्त सज़ा देगा और उसका हिस्सा कपटियों के साथ ठहराएगा। वहीं उसका रोना और दाँत पीसना होगा।

25 तब स्वर्ग का राज उन दस कुंवारियों जैसा होगा जिन्होंने अपने-अपने दीपक लिए और दूल्हे से मिलने के लिए बाहर निकलीं। 2 उनमें से पाँच मूर्ख थीं, और पाँच समझदार। 3 क्योंकि जो मूर्ख थीं, उन्होंने अपने दीपक तो लिए मगर अपने साथ कुप्पियों में तेल न लिया। 4 जबकि समझदार कुंवारियों ने दीपकों के साथ-साथ अपनी कुप्पियों में तेल भी लिया। 5 जब दूल्हा आने में देर कर रहा था, तो वे सब ऊँघने लगीं और सो गयीं। 6 ठीक आधी रात को एक पुकार मची, ‘देखो, दूल्हा आ रहा है! उससे मिलने बाहर चलो।’ 7 तब वे सभी कुंवारियाँ उठीं और अपना-अपना दीपक ठीक करने लगीं। 8 जो मूर्ख थीं उन्होंने समझदारों से कहा: ‘अपने तेल में से थोड़ा हमें दो, क्योंकि हमारे दीपक बुझनेवाले हैं।’ 9 लेकिन समझदारों ने इन शब्दों में जवाब दिया, ‘शायद यह हमारे लिए और तुम्हारे लिए पूरा न पड़े। इसके बजाय, तुम तेल बेचनेवालों के पास जाकर अपने लिए खरीद लाओ।’ 10 जिस दौरान वे खरीदने जा रही थीं, दूल्हा आ गया और जो कुंवारियाँ तैयार थीं, वे शादी की दावत के लिए उसके साथ अंदर चली गयीं। फिर दरवाज़ा बंद कर दिया गया। 11 बाद में बाकी कुंवारियाँ भी आयीं, और कहने लगीं, ‘साहब, साहब, हमारे लिए दरवाज़ा खोलो!’ 12 जवाब में दूल्हे ने कहा, ‘मैं सच कहता हूँ, मैं तुम्हें नहीं जानता।’

13 इसलिए जागते रहो, क्योंकि तुम न तो उस दिन को और न ही उस वक्‍त को जानते हो।

14 स्वर्ग का राज ठीक ऐसा है, जैसा एक आदमी जो परदेस जानेवाला था। उसने अपने दासों को बुलाकर उनके हाथों में अपना माल सौंपा ताकि उसकी देखभाल करें। 15 एक को उसने करीब पाँच तोड़े* चाँदी दी, दूसरे को करीब दो तोड़े और तीसरे को करीब एक तोड़ा चाँदी दी। हरेक को उसकी काबिलीयत के मुताबिक देकर वह परदेस चला गया। 16 जिस दास को पाँच तोड़े चाँदी मिली थी, वह फौरन गया और उसने उस चाँदी से कारोबार कर पाँच तोड़े और कमाए। 17 उसी तरह, जिसे दो तोड़े चाँदी मिली थी, उसने दो तोड़े और कमाए। 18 मगर जिसे सिर्फ एक तोड़ा चाँदी मिली थी, उसने अपने मालिक के चाँदी के सिक्के ज़मीन में गड्ढा खोदकर छिपा दिए।

19 बहुत दिन बीतने के बाद उन दासों का मालिक आया और उनसे हिसाब लिया। 20 जिसे पाँच तोड़े चाँदी मिली थी, वह अपने साथ और पाँच तोड़े लेकर आगे आया और कहा, ‘मालिक, तू ने मुझे पाँच तोड़े सौंपे थे। देख, मैंने पाँच तोड़े और कमाए हैं।’ 21 मालिक ने उससे कहा, ‘शाबाश, अच्छे और विश्‍वासयोग्य दास! तू थोड़ी चीज़ों में विश्‍वासयोग्य रहा। मैं तुझे बहुत-सी चीज़ों पर अधिकारी ठहराऊँगा। अपने मालिक की खुशी में शामिल हो जा।’ 22 इसके बाद, जिसे दो तोड़े चाँदी मिली थी, वह आगे आया और कहा, ‘मालिक, तू ने मुझे दो तोड़े चाँदी सौंपी थी। देख, मैंने दो तोड़े और कमाए हैं।’ 23 मालिक ने उससे कहा, ‘शाबाश, अच्छे और विश्‍वासयोग्य दास! तू थोड़ी चीज़ों में विश्‍वासयोग्य रहा। मैं तुझे बहुत-सी चीज़ों पर अधिकारी ठहराऊँगा। अपने मालिक की खुशी में शामिल हो जा।’

24 आखिर में, वह दास आगे आया जिसे एक तोड़ा चाँदी मिली थी। उसने कहा, ‘मालिक, मैं जानता था कि तू एक कठोर इंसान है, तू वहाँ कटाई करता है, जहाँ तू ने बोया नहीं, और वहाँ से बटोरता है जहाँ तू ने उसाया नहीं। 25 इसलिए मैं डर गया और मैंने जाकर तेरे चाँदी के सिक्के ज़मीन में छिपा दिए। यह ले, जो तेरा है, यह रहा।’ 26 जवाब में मालिक ने उससे कहा, ‘अरे दुष्ट और आलसी दास, तू जानता था न कि मैंने वहाँ कटाई की जहाँ बोया नहीं, और वहाँ से बटोरा जहाँ उसाया नहीं? 27 तो फिर, तुझे मेरे चाँदी के सिक्के साहूकारों के पास जमा कर देने चाहिए थे, ताकि लौटने पर जो मेरा है वह तो मैं पाता ही, साथ-साथ मैं उन पर ब्याज़ भी पाता।

28 इसलिए उससे वह चाँदी ले लो और जिसके पास दस तोड़े हैं, उसे दे दो। 29 इसलिए कि जिस किसी के पास है, उसे और ज़्यादा दिया जाएगा और उसके पास बहुत हो जाएगा। मगर जिसके पास नहीं है, उससे वह भी ले लिया जाएगा जो उसके पास है। 30 इस निकम्मे दास को बाहर अंधेरे में फेंक दो। वहीं उसका रोना और दाँत पीसना होगा।’

31 जब इंसान का बेटा अपनी पूरी महिमा के साथ आएगा और सब स्वर्गदूत उसके साथ होंगे, तब वह अपनी शानदार राजगद्दी पर बैठेगा। 32 और सब राष्ट्रों के लोग उसके सामने इकट्ठे किए जाएँगे। तब वह लोगों को एक-दूसरे से अलग करेगा, ठीक जैसे एक चरवाहा भेड़ों को बकरियों से अलग करता है। 33 वह भेड़ों को अपनी दायीं तरफ मगर बकरियों को बायीं तरफ करेगा।

34 इसके बाद राजा उन लोगों से जो उसकी दायीं तरफ हैं कहेगा, ‘मेरे पिता से आशीष पानेवालो, आओ, उस राज के वारिस बन जाओ जो दुनिया की शुरूआत से तुम्हारे लिए तैयार किया गया है। 35 इसलिए कि मैं भूखा था और तुमने मुझे खाने को दिया। मैं प्यासा था और तुमने मुझे पानी पिलाया। मैं अजनबी था और तुमने मेरी मेहमाननवाज़ी की। 36 मैं नंगा था, और तुमने मुझे कपड़े पहनाए। मैं बीमार पड़ा और तुमने मेरी देखभाल की। मैं जेल में था और तुम मुझसे मिलने आए।’ 37 तब नेक जन उसे इन शब्दों में जवाब देंगे, ‘प्रभु, हमने कब तुझे भूखा देखा और खिलाया, या प्यासा देखा और तुझे पानी पिलाया? 38 हमने कब तुझे एक अजनबी देखा और तेरी मेहमाननवाज़ी की, या नंगा देखकर तुझे कपड़े पहनाए? 39 हमने कब तुझे बीमार या जेल में देखा और तुझसे मिलने आए?’ 40 तब जवाब में राजा उनसे कहेगा, ‘मैं तुमसे सच कहता हूँ कि जितना भी तुमने मेरे इन छोटे-से-छोटे भाइयों में से किसी एक के साथ किया, वह मेरे साथ किया।’

41 इसके बाद राजा उन लोगों से जो उसकी बायीं तरफ हैं कहेगा, ‘हे शाप पानेवालो, मेरे सामने से दूर हो जाओ और हमेशा की आग से नाश* हो जाने की वही सज़ा पाने के लिए चले जाओ, जो शैतान* और उसके दूतों के लिए ठहरायी गयी है। 42 इसलिए कि मैं भूखा था, मगर तुमने मुझे खाने को कुछ न दिया। प्यासा था मगर तुमने मुझे पीने को कुछ न दिया। 43 मैं अजनबी था, मगर तुमने मेरी मेहमाननवाज़ी न की। नंगा था, मगर तुमने मुझे कपड़े न पहनाए; मैं बीमार पड़ा और जेल में था, मगर तुमने मेरी देखभाल न की।’ 44 तब वे भी इन शब्दों में उसे जवाब देंगे, ‘प्रभु, हमने कब तुझे भूखा या प्यासा या एक अजनबी या नंगा या बीमार या जेल में देखा और तेरी सेवा नहीं की?’ 45 तब राजा इन शब्दों में उन्हें जवाब देगा, ‘मैं तुमसे सच कहता हूँ कि जो कुछ तुमने मेरे इन छोटे-से-छोटे भाइयों में से किसी एक के साथ नहीं किया, वह मेरे साथ भी नहीं किया।’ 46 ये बुरे लोग हमेशा के लिए नाश* हो जाएँगे, मगर नेक जन हमेशा की ज़िंदगी पाएँगे।”

26 जब यीशु ये सारी बातें कह चुका, तो उसने अपने चेलों से कहा: 2 “तुम जानते हो कि अब से दो दिन बाद फसह का त्योहार पड़ता है और इंसान का बेटा सूली पर चढ़ाए जाने के लिए पकड़वाया जाएगा।”

3 इस दौरान, प्रधान याजक और लोगों के बुज़ुर्ग, कैफा नाम के महायाजक के आँगन में इकट्ठा हुए। 4 उन्होंने यीशु को छल से पकड़ने और मार डालने के लिए आपस में मशविरा किया। 5 मगर वे यह कहते रहे: “त्योहार के वक्‍त नहीं, ताकि लोगों में किसी तरह का हुल्लड़ न मचे।”

6 यीशु बैतनिय्याह में शमौन के घर में था, जो पहले एक कोढ़ी था। 7 उस दौरान, एक स्त्री संगमरमर की बोतल में बहुत महँगा खुशबूदार तेल लेकर यीशु के पास आयी। और जब वह मेज़ से टेक लगाए बैठा था, तो वह उसके सिर पर तेल उंडेलने लगी। 8 यह देखकर चेले भड़क उठे और कहने लगे: “यह बरबादी क्यों की गयी? 9 इस तेल को ऊँचे दामों में बेचकर पैसा गरीबों को दिया जा सकता था।” 10 यह जानते हुए कि वे आपस में क्या कह रहे हैं, यीशु ने उनसे कहा: “तुम इस स्त्री को क्यों सताते हो? इसने तो मेरी खातिर एक बेहतरीन काम किया है। 11 गरीब तो हमेशा तुम्हारे साथ होंगे, मगर मैं हमेशा तुम्हारे साथ नहीं रहूँगा। 12 जब इस स्त्री ने यह खुशबूदार तेल मेरे शरीर पर लगाया, तो मेरे दफन की तैयारी के लिए ऐसा किया। 13 मैं तुमसे सच कहता हूँ, सारी दुनिया में जहाँ कहीं खुशखबरी का प्रचार किया जाएगा, वहाँ इस स्त्री के इस काम को याद कर इसकी चर्चा की जाएगी।”

14 तब उन बारहों में से एक, जो यहूदा इस्करियोती कहलाता था, प्रधान याजकों के पास गया 15 और उनसे कहा: “अगर मैं उसे तुम्हारे हाथों पकड़वा दूँ, तो तुम मुझे क्या दोगे?” उन्होंने उसे चाँदी के तीस सिक्के देने की बात कही। 16 तब से यहूदा, यीशु को पकड़वाने के लिए किसी अच्छे मौके की ताक में लग गया।

17 बिन-खमीर की रोटियों के त्योहार के पहले दिन,* चेले यीशु के पास आए और उससे पूछने लगे: “तू कहाँ चाहता है कि हम तेरे लिए फसह का खाना खाने की तैयारी करें?” 18 उसने कहा: “शहर में फलाँ-फलाँ आदमी के पास जाओ और उससे कहो, गुरु कहता है, ‘मेरे लिए तय किया गया वक्‍त पास आ गया है। मैं अपने चेलों के साथ तेरे घर में फसह का त्योहार मनाऊँगा।’ ” 19 जैसा यीशु ने आदेश दिया था, चेलों ने वैसा ही किया और फसह के लिए सारी चीज़ें तैयार कर लीं।

20 जब शाम हुई, तो वह अपने बारह चेलों के साथ खाने की मेज़ से टेक लगाए था। 21 जिस दौरान वे खा रहे थे, उसने कहा: “मैं तुमसे सच कहता हूँ, तुममें से एक मुझे धोखे से पकड़वाएगा।” 22 यह सुनकर वे बहुत दुःखी हुए, और एक-एक कर उससे पूछने लगे: “प्रभु, वह मैं तो नहीं हूँ न?” 23 जवाब में उसने कहा: “जो मेरे साथ कटोरे में हाथ डालता है, वही है जो मुझे पकड़वाएगा। 24 सच है कि इंसान का बेटा तो जा ही रहा है, ठीक जैसा उसके बारे में लिखा है, मगर धिक्कार है उस आदमी पर जिसके हाथों इंसान का बेटा पकड़वाया जाएगा! उस आदमी के लिए अच्छा होता अगर वह पैदा ही न हुआ होता।” 25 तब यहूदा ने, जो उसे पकड़वानेवाला था, जवाब में कहा: “रब्बी, वह मैं तो नहीं हूँ न?” यीशु ने उससे कहा: “तू ने खुद यह कह दिया है।”

26 जब उनका खाना जारी था, तो यीशु ने एक रोटी ली और प्रार्थना में धन्यवाद देने के बाद उसे तोड़ा और चेलों को देते हुए कहा: “लो, खाओ। यह मेरे शरीर का प्रतीक है।” 27 फिर उसने एक प्याला लेकर प्रार्थना में धन्यवाद दिया और उन्हें यह कहकर दिया: “तुम सब इसमें से पीओ। 28 क्योंकि यह ‘करार के मेरे लहू’ का प्रतीक है, जिसे बहुतों की खातिर उनके पापों की माफी के लिए बहाया जाना है। 29 मगर मैं तुमसे कहता हूँ, मैं अब से किसी भी हाल में यह दाख-मदिरा* उस दिन तक न पीऊँगा, जिस दिन मैं अपने पिता के राज में तुम्हारे साथ नयी दाख-मदिरा न पीऊँ।” 30 आखिर में, वे परमेश्‍वर के गुणगान के भजन गाने के बाद जैतून पहाड़ की तरफ निकल पड़े।

31 इसके बाद यीशु ने उनसे कहा: “आज की रात मेरे साथ जो होगा उसकी वजह से, तुम सबका विश्‍वास डगमगा जाएगा। क्योंकि यह लिखा है, ‘मैं चरवाहे को मारूँगा और झुंड की भेड़ें तित्तर-बित्तर हो जाएँगी।’ 32 लेकिन मेरे जी उठाए जाने के बाद मैं तुमसे पहले गलील जाऊँगा।” 33 मगर पतरस ने उसे जवाब दिया: “तेरे साथ जो होगा उसकी वजह से चाहे बाकी सबका विश्‍वास क्यों न डगमगा जाए, मगर मेरा विश्‍वास कभी न डगमगाएगा!” 34 यीशु ने उससे कहा: “मैं तुझसे सच कहता हूँ, इसी रात, मुर्गे के बाँग देने से पहले, तू तीन बार मुझे जानने से इनकार करेगा।” 35 पतरस ने उससे कहा: “चाहे मुझे तेरे साथ मरना भी पड़े, तब भी मैं तुझे जानने से हरगिज़ इनकार न करूँगा।” बाकी सभी चेलों ने भी यही बात कही।

36 तब यीशु अपने चेलों के साथ गतसमनी नाम की जगह पर आया और उसने उनसे कहा: “जब तक मैं वहाँ जाकर प्रार्थना करूँ, तुम यहीं बैठे रहो।” 37 और उसने पतरस और जब्दी के दोनों बेटों को अपने साथ लिया। वह बहुत ही दुःखी और बेहाल होने लगा। 38 तब उसने उनसे कहा: “मेरा जी बेहद दुःखी है, यहाँ तक कि मेरी मरने जैसी हालत है। यहीं ठहरो और मेरे साथ जागते रहो।” 39 फिर थोड़ा आगे जाकर, वह अपने मुँह के बल गिरा और यह कहकर प्रार्थना करने लगा: “मेरे पिता, अगर हो सके तो यह प्याला* मेरे सामने से हटा दे। फिर भी, मेरी मरज़ी नहीं बल्कि तेरी मरज़ी पूरी हो।”

40 फिर वह अपने चेलों के पास आया और उन्हें सोता हुआ पाया। तब यीशु ने पतरस से कहा: “क्या तुम लोग मेरे साथ थोड़ी देर के लिए भी जाग न सके? 41 जागते रहो और लगातार प्रार्थना करते रहो, ताकि तुम परीक्षा में न पड़ो। दिल तो बेशक तैयार है, मगर शरीर कमज़ोर है।” 42 फिर वह दूसरी बार गया और यह कहकर प्रार्थना करने लगा: “मेरे पिता, अगर यह प्याला मेरे पीए बिना हट नहीं सकता, तो तेरी मरज़ी पूरी हो।” 43 वह फिर चेलों के पास आया और उन्हें सोता हुआ पाया, क्योंकि उनकी आँखें नींद से बोझिल थीं। 44 इसलिए वह उन्हें वहीं छोड़कर एक बार फिर गया और तीसरी बार वही बात कहकर प्रार्थना की। 45 इसके बाद वह अपने चेलों के पास आया और उनसे कहा: “तुम ऐसे वक्‍त में सो रहे हो और आराम कर रहे हो! देखो! वह वक्‍त आ गया है कि इंसान का बेटा धोखे से पापियों के हाथों में सौंपा जाए। 46 उठो, आओ चलें। देखो! मुझे पकड़वानेवाला पास आ गया है।” 47 जब वह बोल ही रहा था, तो देखो! यहूदा जो उन बारह में से एक था, आया और उसके साथ तलवारें और सोंटे लिए हुए लोगों की एक बड़ी भीड़ आयी जिसे प्रधान याजकों और लोगों के बुज़ुर्गों ने भेजा था।

48 उसे धोखा देनेवाले यहूदा ने उन्हें यह कहकर एक निशानी दी थी: “जिसे मैं चूमूंगा, वही यीशु है। उसे गिरफ्तार कर लेना।” 49 यहूदा ने सीधे यीशु के पास जाकर उससे कहा: “नमस्कार, रब्बी!” और उसे चूमा। 50 मगर यीशु ने उससे कहा: “तू यहाँ किस इरादे से आया है?” तब उन्होंने आगे बढ़कर यीशु को पकड़ लिया और उसे हिरासत में ले लिया। 51 मगर तभी यीशु के साथियों में से एक ने हाथ बढ़ाकर अपनी तलवार निकाली और महायाजक के दास पर वार कर उसका कान उड़ा दिया। 52 तब यीशु ने उससे कहा: “अपनी तलवार म्यान में डाल ले, इसलिए कि वे सभी जो तलवार उठाते हैं, तलवार ही से नाश होंगे। 53 तू क्या सोचता है कि मैं अपने पिता से यह बिनती नहीं कर सकता कि वह इसी पल स्वर्गदूतों की बारह पलटनों* से ज़्यादा मेरे पास भेज दे? 54 ऐसे में शास्त्र का लिखा कैसे पूरा होगा कि सबकुछ इसी तरह होना ज़रूरी है?” 55 उस घड़ी यीशु ने भीड़ से कहा: “क्या तुम मुझे तलवारें और सोंटे लेकर गिरफ्तार करने आए हो, मानो मैं कोई लुटेरा हूँ? मैं हर दिन मंदिर में बैठकर सिखाया करता था, फिर भी तुमने मुझे हिरासत में न लिया। 56 मगर यह सब इसलिए हुआ है कि भविष्यवक्‍ताओं के लिखे शास्त्रवचन पूरे हों।” तब सारे चेले उसे छोड़कर भाग गए।

57 जिन लोगों ने यीशु को गिरफ्तार किया वे उसे महायाजक कैफा के पास ले गए, जहाँ शास्त्री और बुज़ुर्ग इकट्ठा थे। 58 मगर पतरस काफी दूरी पर रहकर यीशु का पीछा करता रहा और महायाजक के आँगन तक आ गया और अंदर जाने के बाद वह घर के कर्मचारियों के साथ बैठ गया कि देखे इसका अंजाम क्या होता है।

59 इस दौरान प्रधान याजक और पूरी महासभा* यीशु के खिलाफ झूठी गवाही की खोज में थी ताकि उसे मरवा डालें। 60 मगर बहुत-से झूठे गवाहों के आगे आने के बावजूद उन्हें एक भी झूठी गवाही न मिली। बाद में दो गवाह आए 61 और उन्होंने कहा: “इस आदमी ने कहा है, ‘मैं परमेश्‍वर के इस मंदिर को ढा सकता हूँ और तीन दिन के अंदर इसे खड़ा कर सकता हूँ।’ ” 62 इस पर महायाजक ने उठकर यीशु से कहा: “क्या तेरे पास कोई जवाब नहीं? ये जो तेरे खिलाफ गवाही दे रहे हैं, इसके बारे में तुझे क्या कहना है?” 63 मगर यीशु चुप रहा। तब महायाजक ने उससे कहा: “मैं तुझे जीवित परमेश्‍वर की शपथ देता हूँ, हमें बता कि तू परमेश्‍वर का बेटा मसीह है या नहीं!” 64 यीशु ने उससे कहा: “तू ने खुद यह कह दिया है। फिर भी मैं तुम लोगों से कहता हूँ, अब से तुम इंसान के बेटे को उस शक्‍तिशाली परमेश्‍वर की दायीं तरफ बैठा और आकाश के बादलों पर आता देखोगे।” 65 तब महायाजक ने यह कहते हुए अपना चोगा फाड़ डाला: “इसने परमेश्‍वर की तौहीन की है! अब हमें और गवाहों की क्या ज़रूरत है? देखो! तुम लोगों ने यह तौहीन सुनी है। 66 तुम्हारी क्या राय है?” उन्होंने जवाब दिया: “यह मौत की सज़ा पाने के लायक है।” 67 इसके बाद, उन्होंने यीशु के मुँह पर थूका और उसे घूँसे मारे। दूसरों ने यह कहते हुए उसके मुँह पर थप्पड़ मारे: 68 “अरे मसीह, भविष्यवाणी कर। हममें से किसने तुझे मारा?”

69 पतरस बाहर आँगन में बैठा हुआ था। तब एक नौकरानी उसके पास आकर कहने लगी: “तू भी इस यीशु गलीली के साथ था!” 70 मगर उसने उन सबके सामने यह कहकर इनकार किया: “मैं नहीं जानता कि तू क्या कह रही है।” 71 जब वह बाहर निकलकर फाटक-घर की तरफ चला गया, तो एक और लड़की ने उसे देखकर वहाँ मौजूद लोगों से कहा: “यह आदमी यीशु नासरी के साथ था।” 72 एक बार फिर वह शपथ खाकर इनकार करने लगा: “मैं इस आदमी को नहीं जानता!” 73 थोड़ी देर के बाद आस-पास खड़े लोग पतरस के पास आकर उससे कहने लगे: “बेशक तू भी उनमें से एक है, क्योंकि तेरी बोली तेरा राज़ खोल रही है।” 74 तब वह खुद को कोसने और कसमें खाने लगा: “मैं इस आदमी को नहीं जानता!” उसी घड़ी एक मुर्गे ने बाँग दी। 75 तब पतरस को यीशु की कही यह बात याद आयी: “मुर्गे के बाँग देने से पहले, तू तीन बार मुझे जानने से इनकार करेगा।” और वह बाहर जाकर फूट-फूटकर रोने लगा।

27 जब सुबह हो गयी, तो सभी प्रधान याजकों और लोगों के बुज़ुर्गों ने यीशु को मरवा डालने के लिए आपस में सलाह-मशविरा किया। 2 वे उसे बाँधने के बाद ले गए और जाकर पीलातुस* के हवाले कर दिया।

3 जब उसे पकड़वानेवाले यहूदा ने देखा कि यीशु को मौत की सज़ा दी गयी है, तो उसका दिल उसे कचोटने लगा। उसने प्रधान याजकों और बुज़ुर्गों को चाँदी के वे तीस सिक्के लौटाते हुए 4 यह कहा: “मैंने एक नेक इंसान के खून का सौदा कर पाप किया है।” उन्होंने कहा: “इससे हमें क्या लेना? तू ही जान!” 5 तब वह चाँदी के सिक्के मंदिर में फेंककर वहाँ से चला गया और जाकर खुद को फाँसी लगा ली। 6 लेकिन प्रधान याजकों ने उन सिक्कों को लेकर कहा: “इन्हें मंदिर के खज़ाने में डालना सही नहीं है, क्योंकि यह खून की कीमत है।” 7 और उन्होंने आपस में मशविरा करने के बाद, उन सिक्कों से अजनबियों को दफनाने के लिए कुम्हार की ज़मीन खरीदी। 8 इसलिए वह ज़मीन आज के दिन तक “खून की ज़मीन” कहलाती है। 9 इससे वह वचन पूरा हुआ जो यिर्मयाह* भविष्यवक्‍ता से कहलवाया गया था: “उन्होंने चाँदी के तीस सिक्के लिए, यह वही दाम था जो उस आदमी की कीमत ठहरायी गयी थी, उसी के लिए जिसकी इस्राएल के कुछ बेटों ने कीमत ठहरायी थी। 10 और उन्होंने ये सिक्के कुम्हार की ज़मीन के लिए दिए, ठीक जैसे यहोवा ने मुझे आज्ञा दी थी।”

11 यीशु अब राज्यपाल के सामने खड़ा था। और राज्यपाल ने उससे यह सवाल किया: “क्या तू यहूदियों का राजा है?” यीशु ने जवाब दिया: “तू खुद यह कहता है।” 12 मगर जिस दौरान प्रधान याजक और बुज़ुर्ग उस पर इलज़ाम लगा रहे थे, तो उसने कोई जवाब न दिया। 13 तब पीलातुस ने उससे कहा: “क्या तू सुनता नहीं कि ये तेरे खिलाफ कितनी बातों की गवाही दे रहे हैं?” 14 फिर भी यीशु ने उसे कोई जवाब न दिया, यहाँ तक कि एक शब्द भी न कहा, इसलिए राज्यपाल को बड़ा ताज्जुब हुआ।

15 राज्यपाल का यह रिवाज़ था कि वह साल-दर-साल त्योहार के वक्‍त किसी एक कैदी को, जिसे लोग चाहते थे, रिहा कर दिया करता था। 16 ठीक उसी दौरान, बरअब्बा नाम का एक कुख्यात कैदी उनकी कैद में था। 17 इसलिए जब वे इकट्ठा हुए, तो पीलातुस ने उनसे पूछा: “तुम क्या चाहते हो, मैं तुम्हारे लिए किसे रिहा कर दूँ, बरअब्बा को या यीशु को जिसे मसीह कहा जाता है?” 18 क्योंकि वह जानता था कि उन्होंने ईर्ष्या की वजह से यीशु को उसके हवाले किया था। 19 इतना ही नहीं, जब वह न्याय-आसन पर बैठा हुआ था, तो उसकी पत्नी ने उसके पास यह संदेश भेजा: “तू उस नेक इंसान के मामले में दखल न देना, क्योंकि उसकी वजह से आज मैंने सपने में बहुत दुःख उठाया है।” 20 मगर प्रधान याजकों और बुज़ुर्गों ने भीड़ को यह माँग करने के लिए उकसाया कि बरअब्बा को रिहा किया जाए, मगर यीशु को मार डाला जाए। 21 अब राज्यपाल ने एक बार फिर उनसे पूछा: “तुम क्या चाहते हो, मैं दोनों में से किसे तुम्हारे लिए रिहा कर दूँ?” उन्होंने कहा: “बरअब्बा को।” 22 पीलातुस ने उनसे कहा: “तो फिर मैं इस यीशु के साथ, जिसे मसीह कहा जाता है, क्या करूँ?” उन सबने कहा: “इसे सूली पर चढ़ाया जाए!” 23 राज्यपाल ने कहा: “क्यों, इसने क्या बुरा किया है?” मगर वे और भी ज़ोर से चिल्लाते रहे: “इसे सूली पर चढ़ाया जाए!”

24 जब पीलातुस ने देखा कि उसके कहने का कोई फायदा नहीं हो रहा, बल्कि हुल्लड़ बढ़ता ही जा रहा है, तो उसने पानी लिया और भीड़ के सामने अपने हाथ धोते हुए कहा: “मैं इस आदमी के खून से निर्दोष हूँ। तुम ही जानो।” 25 इस पर सब लोगों ने जवाब में कहा: “उसका खून हमारे और हमारे बच्चों के सिर पर पड़े।” 26 तब उसने उनके लिए बरअब्बा को रिहा कर दिया। मगर यीशु को उसने कोड़े लगवाए और सूली पर चढ़ाने के लिए सौंप दिया।

27 इसके बाद, राज्यपाल के सैनिक यीशु को राज्यपाल के महल के अंदर ले गए और उन्होंने पूरे फौजी दस्ते को वहाँ उसके पास इकट्ठा कर लिया। 28 उन्होंने उसके कपड़े उतारकर उसे सुर्ख लाल रंग का एक कपड़ा पहनाया, 29 और काँटों का एक ताज बनाकर उसके सिर पर रख दिया और उसके दाएँ हाथ में एक सरकंडा दिया। फिर वे उसके सामने घुटने टेककर यह कहते हुए उसका मज़ाक उड़ाने लगे: “हे यहूदियों के राजा, यह दिन तुझे मुबारक हो!” 30 उन्होंने उस पर थूका और सरकंडा लेकर उसके सिर पर मारने लगे। 31 जब उन्होंने उसका खूब मज़ाक उड़ा लिया, तब आखिर में, उन्होंने वह कपड़ा उस पर से उतार लिया और उसी के कपड़े उसे पहनाकर सूली पर चढ़ाने के लिए ले गए।

32 जब वे जा रहे थे, तो उन्हें कुरेने शहर का रहनेवाला एक आदमी मिला जिसका नाम शमौन था। उन्होंने इस आदमी को ज़बरन सेवा के लिए पकड़ा कि वह यीशु की यातना की सूली* उठाकर ले चले। 33 जब वे गुलगुता नाम की एक जगह पहुँचे, जो ‘खोपड़ी स्थान’ कहलाती है, 34 तो उन्होंने यीशु को पीने के लिए पित्त मिली दाख-मदिरा दी। मगर उसने चखने के बाद, उसे पीने से इनकार कर दिया। 35 जब सैनिकों ने उसे सूली पर ठोंक दिया, तो उन्होंने चिट्ठियाँ डालकर उसका ओढ़ना आपस में बाँट लिया। 36 फिर वहाँ बैठकर वे उसकी पहरेदारी करने लगे। 37 साथ ही, उस पर जो इलज़ाम था, उन्होंने वह लिखकर उसके सिर के ऊपर सूली पर लगा दिया: “यह यहूदियों का राजा यीशु है।”

38 उसके साथ दो लुटेरों को सूली पर चढ़ाया गया था, एक उसकी दायीं तरफ और दूसरा बायीं तरफ था। 39 जो लोग वहाँ से आ-जा रहे थे, वे सिर हिला-हिलाकर उसकी बेइज़्ज़ती करने लगे 40 और कहने लगे: “अरे मंदिर के ढानेवाले और तीन दिन के अंदर उसे बनानेवाले, खुद को बचा ले! अगर तू परमेश्‍वर का बेटा है, तो यातना की सूली से नीचे उतर आ!” 41 इसी तरह, प्रधान याजक भी शास्त्रियों और बुज़ुर्गों के साथ मिलकर उसका मज़ाक उड़ाने लगे और यह कहने लगे: 42 “इसने दूसरों को तो बचाया, मगर खुद को बचा नहीं सकता! यह इस्राएल का राजा है। अब यह यातना की सूली से नीचे उतरकर आ जाए, तब हम इसका यकीन करेंगे। 43 इसने परमेश्‍वर पर भरोसा रखा है, अगर परमेश्‍वर इसे चाहता है, तो इसे बचाए, क्योंकि इसने कहा है, ‘मैं परमेश्‍वर का बेटा हूँ।’ ” 44 यहाँ तक कि जिन लुटेरों को उसके साथ सूली पर चढ़ाया गया था, वे भी इसी तरह उसे बुरा-भला कहने लगे।

45 छठे घंटे* से उस पूरे देश में अंधकार छा गया और नौवें घंटे* तक छाया रहा। 46 नौवें घंटे के करीब यीशु ने ज़ोर से पुकारते हुए कहा: “एली, एली, लामा शबकतानी?” जिसका मतलब है, “मेरे परमेश्‍वर, मेरे परमेश्‍वर, तू ने मुझे क्यों छोड़ दिया है?” 47 यह सुनने पर, वहाँ खड़े कुछ लोग कहने लगे: “यह आदमी एल्लियाह को पुकार रहा है।” 48 उनमें से एक ने फौरन दौड़कर एक स्पंज लिया और उसे खट्टी दाख-मदिरा में डुबोकर सरकंडे पर रखा और उसे पीने के लिए दिया। 49 मगर बाकियों ने कहा: “इसे रहने दो! देखते हैं, एल्लियाह इसे बचाने के लिए आता है कि नहीं।” [[एक और आदमी ने भाला लेकर उसकी पसलियों के बीच भोंका और खून और पानी बह निकला।]]* 50 यीशु ने एक बार फिर ज़ोर से चिल्लाकर दम तोड़ दिया।

51 तब देखो! मंदिर का परदा* ऊपर से नीचे तक फटकर दो टुकड़े हो गया, और भूकंप से धरती काँप उठी और चट्टानें फट गयीं। 52 कब्रें खुल गयीं और मौत की नींद में सोए बहुत-से पवित्र जनों के शव कब्रों से बाहर जा गिरे, 53 और कब्रिस्तान में मौजूद बहुत-से लोगों ने ये शव देखे। (और कुछ लोग जो कब्रों के पास गए थे, वे यीशु के जी उठाए जाने के बाद पवित्र शहर* आए।) 54 मगर सेना-अफसर और जो उसके साथ यीशु की पहरेदारी कर रहे थे, जब उन्होंने भूकंप और उन सारी घटनाओं को देखा, तो वे बहुत डर गए और कहने लगे: “वाकई, यह परमेश्‍वर का बेटा था।”

55 साथ ही, वहाँ बहुत-सी स्त्रियाँ, जो यीशु की सेवा करने के लिए उसके साथ गलील से आयी थीं, दूर खड़ी देख रही थीं। 56 उनमें मरियम मगदलीनी, याकूब और योसेस की माँ मरियम और जब्दी के बेटों की माँ भी थी।

57 अब दोपहर काफी बीत चुकी थी, इसलिए अरिमतियाह का यूसुफ नाम का एक अमीर आदमी वहाँ आया। वह भी यीशु का एक चेला बन चुका था। 58 इस आदमी ने पीलातुस के पास जाकर यीशु का शव माँगा। तब पीलातुस ने हुक्म दिया कि उसे शव दे दिया जाए। 59 यूसुफ ने शव लेकर उसे साफ बढ़िया मलमल में लपेटा, 60 और अपनी नयी कब्र में रखा, जिसे उसने चट्टान खोदकर बनवाया था। उस कब्र के दरवाज़े पर एक बड़ा पत्थर लुढ़काने के बाद, वह वहाँ से चला गया। 61 लेकिन मरियम मगदलीनी और दूसरी मरियम वहीं कब्र के सामने बैठी रहीं।

62 अगले दिन, यानी तैयारी के दिन* के बाद, प्रधान याजक और फरीसी, पीलातुस के सामने जमा हुए 63 और कहने लगे: “हुज़ूर, हमें याद आया है कि उस फरेबी ने जीते-जी कहा था, ‘तीन दिन बाद मुझे जी उठाया जाएगा।’ 64 इसलिए हुक्म दे कि तीसरे दिन तक कब्र की चौकसी की जाए, ताकि उसके चेले आकर उसे चुरा न ले जाएँ और लोगों से कहें कि ‘उसे मरे हुओं में से जी उठाया गया है!’ फिर यह आखिरी फरेब, पहले फरेब से भी बदतर होगा।” 65 पीलातुस ने उनसे कहा: “तुम पहरेदार ले जा सकते हो। और जैसा पहरा बिठाना चाहते हो वैसा बिठा दो।” 66 तब वे गए और कब्र का पहरा देने के लिए उन्होंने पत्थर को सीलबंद किया और पहरेदार तैनात कर दिए।

28 सब्त के बाद, हफ्ते के पहले दिन* मरियम मगदलीनी और दूसरी मरियम कब्र को देखने आयीं। उस वक्‍त सुबह का उजाला होने लगा था।

2 लेकिन देखो! इससे पहले एक बड़ा भूकंप हो चुका था। क्योंकि यहोवा का दूत स्वर्ग से उतर आया था। उसने आकर कब्र के मुँह पर रखा पत्थर लुढ़का दिया था और उस पर बैठा हुआ था। 3 उसका रूप बिजली जैसा था और उसके कपड़े बर्फ जैसे सफेद थे। 4 उसके खौफ से पहरेदार काँपने लगे थे और मुरदे जैसे हो गए थे।

5 मगर जब ये स्त्रियाँ कब्र पर आयीं, तो स्वर्गदूत ने उनसे कहा: “डरो मत। मैं जानता हूँ कि तुम यीशु को ढूँढ़ रही हो, जिसे सूली पर चढ़ाया गया था। 6 वह यहाँ नहीं है, क्योंकि जैसा उसने कहा था, उसे जी उठाया गया है। आकर यह जगह देखो जहाँ उसे लिटाया गया था। 7 अब तुम जल्दी जाओ और जाकर उसके चेलों को बताओ कि उसे मरे हुओं में से जी उठाया गया है। और यह भी बताओ कि वह तुम्हारे आगे गलील जा रहा है। वहाँ तुम उसे देखोगे। मैं तुम्हें यही संदेश देने आया हूँ।”

8 यह सुनकर वे फौरन कब्र के पास से निकल पड़ीं। वे डर गयी थीं मगर अब उनकी खुशी का ठिकाना न था। वे दौड़ी-दौड़ी जा रही थीं ताकि उसके चेलों को खबर दें। 9 तभी अचानक यीशु उनसे रास्ते में मिला और उसने कहा: “खुश रहो!” वे उसके पास गयीं और झुककर उसके पैर पकड़ लिए और उसे प्रणाम किया। 10 तब यीशु ने उनसे कहा: “डरो मत! जाकर मेरे भाइयों को खबर दो कि वे गलील चले जाएँ। वे मुझे वहाँ देखेंगे।”

11 जब ये स्त्रियाँ रास्ते में ही थीं, तो देखो! कब्र पर पहरा देनेवाले पहरेदारों में से कुछ शहर में गए और उन्होंने सारी घटनाएँ प्रधान याजकों को सुना दीं। 12 तब प्रधान याजकों ने, बुज़ुर्गों को बुलाया और उनके साथ सलाह-मशविरा करने के बाद, सैनिकों को घूस में बहुत चाँदी दी। 13 और उनसे कहा: “तुम यह कहना कि ‘रात में जब हम सो रहे थे, तब उसके चेले आए और उसे चुराकर ले गए।’ 14 और अगर यह बात राज्यपाल के कानों तक पहुँचेगी, तो हम उसे मना लेंगे और तुम्हारी सारी चिंता दूर कर देंगे।” 15 तब पहरेदारों ने चाँदी के सिक्के ले लिए और जो उन्हें बताया गया था वही बात फैला दी। और यहूदियों में यह बात आज के दिन तक फैली हुई है।

16 मगर वे ग्यारह चेले गलील में उस पहाड़ पर गए, जहाँ यीशु ने उन्हें इकट्ठा होने के लिए कहा था। 17 जब उन्होंने उसे देखा तो झुककर प्रणाम किया, मगर किसी-किसी ने शक किया। 18 यीशु उनके पास आया और उनसे यह कहा: “स्वर्ग में और धरती पर सारा अधिकार मुझे दिया गया है। 19 इसलिए जाओ और सब राष्ट्रों के लोगों को मेरा चेला बनना सिखाओ और उन्हें पिता, बेटे और पवित्र शक्‍ति* के नाम से बपतिस्मा दो। 20 और उन्हें वे सारी बातें मानना सिखाओ जिनकी मैंने तुम्हें आज्ञा दी है। और देखो! मैं दुनिया की व्यवस्था के आखिरी वक्‍त तक हमेशा तुम्हारे साथ हूँ।”

मत्ती 1:1 बाइबल के यूनानी पाठ में शब्द ‘मसीह’ (इब्रानी में मसीहा), यीशु के लिए एक उपाधि के तौर पर इस्तेमाल हुआ है और इसका मतलब है, ‘अभिषिक्‍त जन’ यानी परमेश्‍वर का अभिषिक्‍त राजा। यह कोई नाम नहीं है।

मत्ती 1:16 यानी, “परमेश्‍वर का अभिषिक्‍त जन।”

मत्ती 1:18 यूनानी नफ्मा। अतिरिक्‍त लेख 7 देखें।

मत्ती 1:19 यहूदियों के रिवाज़ के मुताबिक मंगेतर को पति कहा जाता था।

मत्ती 1:19 यहूदियों के रिवाज़ के मुताबिक सगाई तोड़ने के लिए तलाकनामा देना ज़रूरी होता था।

मत्ती 1:20 यह उन 237 जगहों में से एक जगह है, जहाँ परमेश्‍वर का नाम, ‘यहोवा’ इस अनुवाद के मुख्य पाठ में पाया जाता है। अतिरिक्‍त लेख 2 देखें।

मत्ती 1:20 शाब्दिक, “तू अपनी पत्नी मरियम को अपने घर लाने से मत डर।”

मत्ती 1:21 इब्रानी भाषा में “येशुआ,” जिसका मतलब है “यहोवा उद्धार करता है।”

मत्ती 2:1 यानी, हेरोदेस महान।

मत्ती 2:1 या, “मजूसी।”

मत्ती 2:4 शास्त्री, यीशु के ज़माने में परमेश्‍वर के कानून का मतलब समझानेवाले और इसके शिक्षक थे।

मत्ती 2:4 यानी, पवित्र शास्त्र के मुताबिक कहाँ जन्म होना है।

मत्ती 3:6 बपतिस्मे का मतलब किसी को पानी में पूरी तरह डुबकी देना है। यह एक धार्मिक रस्म है।

मत्ती 3:7 पहली सदी में पाया जानेवाला, यहूदी धर्म का एक प्रमुख पंथ।

मत्ती 3:7 यहूदी धर्म का एक प्रमुख पंथ, जो याजकवर्ग से जुड़ा था। सदूकी न तो मरे हुओं के जी उठने की शिक्षा पर, न ही स्वर्गदूतों के वजूद पर विश्‍वास करते थे।

मत्ती 3:11 यानी, पवित्र शक्‍ति से तुम्हारा अभिषेक करेगा और आग से तुम्हें नाश करेगा।

मत्ती 3:15 या, धार्मिकता।

मत्ती 4:1 शाब्दिक, “इब्‌लीस।” यूनानी में “दियाबोलोस,” जिसका मतलब है “निंदा करनेवाला।”

मत्ती 4:5 शाब्दिक, “परकोटे पर।”

मत्ती 4:8 शायद एक दर्शन में।

मत्ती 4:18 बाइबल में इस झील को गन्‍नेसरत झील, गलील झील और तिबिरियास झील भी कहा गया है।

मत्ती 4:25 या, “दस शहर।”

मत्ती 5:3 या, “की भीख माँगते हैं।”

मत्ती 5:6 या, “परमेश्‍वर की मरज़ी पूरी करने और उसकी आज्ञाओं को मानने।”

मत्ती 5:15 शाब्दिक, “नापने की टोकरी।”

मत्ती 5:19 शाब्दिक, “वह स्वर्ग के राज के संबंध में सबसे ‘छोटा’ कहलाएगा।”

मत्ती 5:19 शाब्दिक, “वह स्वर्ग के राज के संबंध में ‘महान’ कहलाएगा।”

मत्ती 5:20 या, धार्मिकता।

मत्ती 5:22 या, “ऐसे घटिया शब्द जिन्हें ज़बान पर लाना भी नागवार था।”

मत्ती 5:22 यानी, यहूदी महासभा।

मत्ती 5:22 यरूशलेम के बाहर कूड़ा-करकट जलाने की जगह। अतिरिक्‍त लेख 9 देखें।

मत्ती 5:26 शाब्दिक, “आखिरी क्वाद्रान,” जो एक दीनार का 1/64वाँ हिस्सा था।

मत्ती 5:27 या, “परस्त्रीगमन।”

मत्ती 5:28 या, शादी के बाहर यौन-संबंध।

मत्ती 5:32 यानी, हर किस्म के नाजायज़ यौन-संबंध। अतिरिक्‍त लेख 4 देखें।

मत्ती 5:46 कर-वसूलनेवालों को, लोग इज़्ज़त की नज़र से नहीं देखा करते थे।

मत्ती 6:2 शाब्दिक, “दया के दान।”

मत्ती 6:6 या, “जो गुप्त में है।”

मत्ती 6:6 या, “गुप्त में देखता है।”

मत्ती 6:10 या, “तेरी मरज़ी स्वर्ग और धरती दोनों में पूरी हो।”

मत्ती 6:12 शाब्दिक, “हमारे कर्ज़दारों।”

मत्ती 6:12 शाब्दिक, “हमारे कर्ज़।”

मत्ती 6:18 या, “जो गुप्त में देखता है।”

मत्ती 6:23 शाब्दिक, “तेरा शरीर।”

मत्ती 6:27 या, “अपनी आयु की लंबाई को हाथ-भर भी बढ़ा सके।”

मत्ती 6:30 या “तंदूर की आग।”

मत्ती 6:33 “इसमें परमेश्‍वर की मरज़ी पूरी करना और उसकी आज्ञाएँ मानना शामिल है।”

मत्ती 7:2 या, “वे तुम्हारे लिए नापेंगे।”

मत्ती 7:16 ज़ाहिर है, इसका मतलब उनके काम हैं।

मत्ती 8:5 या, “शतपति,” जिसकी कमान के नीचे सौ सैनिक होते थे।

मत्ती 8:16 यूनानी नफ्मा। अतिरिक्‍त लेख 7 देखें।

मत्ती 9:16 या, “अनसिकुड़े।”

मत्ती 10:1 यूनानी नफ्मा। अतिरिक्‍त लेख 7 देखें।

मत्ती 10:2 या, “भेजे गए।” यूनानी में “अपोस्टोलोस।”

मत्ती 10:2 “पतरस” को पाँच अलग-अलग नामों से पुकारा गया है: यहाँ “शमौन जो पतरस कहलाता है”; मत्ती 16:16 में “शमौन पतरस”; प्रेषि 15:14 में “सिमियन”; यूह 1:42 में “कैफा”; और सबसे ज़्यादा बार “पतरस” कहा गया है, जैसे मत्ती 14:28 में।

मत्ती 10:3 मतलब, “तुलमै का बेटा।” उसे नतनएल भी कहा जाता था। यूह 1:46; 21:2 देखें।

मत्ती 10:3 उसे लेवी भी कहा जाता था। लूका 5:27 देखें।

मत्ती 10:3 उसे “याकूब का बेटा यहूदा” भी कहा जाता था। लूका 6:16; यूह 14:22; प्रेषि 1:14 देखें।

मत्ती 10:14 पैरों की धूल झाड़ना इस बात की निशानी था कि ऐसा करनेवाले की ज़िम्मेदारी अब खत्म हुई।

मत्ती 10:17 या, “निचली यहूदी अदालतें।”

मत्ती 10:25 यह शैतान का एक और नाम है।

मत्ती 10:28 या, फिर से ज़िंदा होने की उम्मीद नहीं छीन सकता।

मत्ती 10:28 यरूशलेम के बाहर कूड़ा-करकट जलाने की जगह। अतिरिक्‍त लेख 9 देखें।

मत्ती 10:29 शाब्दिक, “असारियन,” एक दीनार का 1/16वाँ हिस्सा।

मत्ती 10:38 अतिरिक्‍त लेख 6 देखें।

मत्ती 11:6 या, “मुझ से ठोकर न खाए।”

मत्ती 11:21 ये गैर-यहूदी शहर थे।

मत्ती 11:23 यूनानी में “हेडिज़।” अतिरिक्‍त लेख 8 देखें।

मत्ती 11:29 या, “मेरे साथ मेरे जूए के नीचे आओ।”

मत्ती 11:29 या, “मेरे चेले बन जाओ।” न्यायि 7:17 देखें।

मत्ती 12:1 यहूदियों के लिए हफ्ते का सातवाँ दिन सब्त हुआ करता था। यह दिन, आराम के लिए और परमेश्‍वर की बातों पर ध्यान देने के लिए अलग रखा गया था।

मत्ती 12:18 यूनानी में, प्सीकी।

मत्ती 12:24 यह शैतान का एक और नाम है।

मत्ती 12:38 या, “चमत्कार।”

मत्ती 12:39 शाब्दिक, “व्यभिचारी।”

मत्ती 13:15 शाब्दिक, “मोटा हो गया है।”

मत्ती 13:22 या, “दुनिया की व्यवस्था।”

मत्ती 13:33 या, “तीन बड़े माप।”

मत्ती 13:39 यूनानी में “दियाबोलोस,” जिसका मतलब है, “निंदा करनेवाला।”

मत्ती 13:41 या, “जो चीज़ें ठोकर खिलाने की वजह बनती हैं।”

मत्ती 14:1 शाब्दिक, “तित्रअर्खेस,” यानी रोमी सम्राट की तरफ से किसी इलाके में राज करनेवाला शासक।

मत्ती 14:1 लूका 3:1 फुटनोट देखें।

मत्ती 14:24 शाब्दिक, “कई स्तादिया।” एक स्तादियोन करीब 185 मीटर के बराबर था।

मत्ती 14:25 यूनानियों और रोमियों के मुताबिक रात का आखिरी पहर (यानी सुबह करीब तीन बजे से लेकर सूरज निकलने तक)। निर्ग 14:24 और न्यायि 7:19 के मुताबिक, यहूदियों में रात को तीन पहरों में बाँटा जाता था, मगर बाद में उन्होंने रात को चार पहरों में बाँटने का रोमी तरीका अपना लिया। मर 13:35 के फुटनोट देखें।

मत्ती 15:2 इसका मतलब गंदे हाथों से खाना खाना नहीं, बल्कि रीति के मुताबिक हाथ धोने की यहूदी परंपरा से है।

मत्ती 16:3 दोहरे ब्रैकेट दिखाते हैं कि इनके अंदर की आयतें कुछ प्राचीन हस्तलिपियों में नहीं पायी जातीं, मगर ये दूसरी हस्तलिपियों में पायी जाती हैं।

मत्ती 16:4 शाब्दिक, “व्यभिचारी।”

मत्ती 16:18 यूनानी में इसका मतलब है, “पत्थर, या पत्थर का एक टुकड़ा।”

मत्ती 16:18 “मंडली” शब्द इन-इन लोगों के लिए इस्तेमाल होता है: सारी दुनिया के मसीहियों का समुदाय (जैसे, मत्ती 16:18; 1कुरिं 10:32), मसीहियों का वह दल जिसे स्वर्ग के जीवन के लिए चुना गया है (इब्रा 12:23), किसी इलाके के मसीही (प्रेषि 8:1; 1कुरिं 1:2; प्रका 1:11), या मसीहियों का एक दल जो किसी के घर में अपनी धार्मिक सभाएँ चलाते हैं (रोमि 16:5; फिले 2)।

मत्ती 16:18 यूनानी में “हेडिज़।” अतिरिक्‍त लेख 8 देखें।

मत्ती 16:20 यानी, परमेश्‍वर का अभिषिक्‍त जन।

मत्ती 16:24 अतिरिक्‍त लेख 6 देखें।

मत्ती 17:2 शाब्दिक, “रौशनी की तरह सफेद हो गए।”

मत्ती 17:21 यह आयत कुछ बाइबल अनुवादों में पायी जाती है, मगर इसे वेस्टकॉट और हॉर्ट के यूनानी पाठ में शामिल नहीं किया गया है, जो सबसे प्राचीन यूनानी हस्तलिपियों के मुताबिक है।

मत्ती 17:24 शाब्दिक, “दो द्राख्मा का एक सिक्का,” यानी करीब दो दिन की मज़दूरी।

मत्ती 17:27 शाब्दिक, “स्ताटेर।” चाँदी का वह सिक्का जो चार द्राख्मा यानी चार दिन की मज़दूरी के बराबर था।

मत्ती 18:3 शाब्दिक, “अपने मार्ग से न पलटो।”

मत्ती 18:6 या, “ठोकर खिलाने की।”

मत्ती 18:7 या, “ठोकर के पत्थर।”

मत्ती 18:8 या, “ठोकर खिला रहा है।”

मत्ती 18:8 जिसका मलतब है, “हमेशा के लिए नाश।”

मत्ती 18:9 यरूशलेम के बाहर कूड़ा-करकट जलाने की जगह। अतिरिक्‍त लेख 9 देखें।

मत्ती 18:11 मत्ती 17:21 फुटनोट देखें।

मत्ती 18:24 शाब्दिक, “10,000 तोड़े” या यूनानी में तालंतौन। तालंतौन, इब्रियों की भार मापने और मुद्रा की सबसे बड़ी इकाई थी। पहली सदी में एक यूनानी तोड़ा या तालंतौन 20.4 किलोग्राम सोने या चाँदी के बराबर होता था।

मत्ती 18:28 एक दीनार एक दिन की मज़दूरी थी। इस हिसाब से 100 दीनार, साल की कुल मज़दूरी का करीब एक-तिहाई हिस्सा था।

मत्ती 19:6 शाब्दिक, “जूए में जोड़ा है।”

मत्ती 20:3 यानी, सूरज निकलने के वक्‍त से गिनें, तो “तीसरा घंटा,” या सुबह करीब 9 बजे।

मत्ती 20:5 यानी, सूरज निकलने के वक्‍त से गिनें, तो “छठा घंटा,” या दोपहर करीब 12 बजे।

मत्ती 20:5 यानी, सूरज निकलने के वक्‍त से गिनें, तो “नौवाँ घंटा,” या दोपहर करीब 3 बजे।

मत्ती 20:6 यानी, सूरज निकलने के वक्‍त से गिनें, तो “ग्यारहवाँ घंटा,” या शाम करीब 5 बजे।

मत्ती 20:15 शाब्दिक, “तेरी आँख दुष्ट है।”

मत्ती 21:7 ज़ाहिर है, ओढ़नों पर।

मत्ती 21:9 शाब्दिक, “होसन्‍ना।”

मत्ती 22:17 यूनानी में “कैसर।”

मत्ती 22:23 या, “पुनरुत्थान।”

मत्ती 23:7 शाब्दिक, “रब्बी।” आदर और सम्मान की उपाधि, जिसका मतलब था, “मेरे महान; मेरे अति-श्रेष्ठ।”

मत्ती 23:9 यीशु ऐसे शब्दों के बारे में कह रहा था जिन्हें एक धार्मिक उपाधि के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है। जैसे अँग्रेज़ी में शब्द “फादर।”

मत्ती 23:14 मत्ती 17:21 फुटनोट देखें।

मत्ती 23:15 यरूशलेम के बाहर कूड़ा-करकट जलाने की जगह। अतिरिक्‍त लेख 9 देखें।

मत्ती 23:15 या, “के बेटे।”

मत्ती 24:3 अतिरिक्‍त लेख 5 देखें।

मत्ती 24:14 या, “पूरी धरती पर जहाँ-जहाँ लोग बसे हुए हैं।”

मत्ती 24:20 प्रेषि 1:12 फुटनोट देखें।

मत्ती 24:22 शाब्दिक, “शरीर।”

मत्ती 24:31 शाब्दिक, “चारों हवाओं से।”

मत्ती 24:36 शाब्दिक, “घड़ी।”

मत्ती 24:38 शाब्दिक, “बक्सा।” यह एक बड़े आयताकार बक्से जैसा जलपोत था। माना जाता है कि इस जलपोत के कोने चौकोर थे और निचला हिस्सा सपाट था।

मत्ती 25:15 तोड़े। यूनानी में, तालंतौन। पाँच तोड़े, करीब सौ किलोग्राम चाँदी के सिक्के थे। मत्ती 18:24 का फुटनोट देखें।

मत्ती 25:41 यूनानी में “दियाबोलोस,” जिसका मतलब है “निंदा करनेवाला।”

मत्ती 25:41 जिसका मतलब है, “हमेशा के लिए नाश”

मत्ती 25:46 या, “काट डाले जाएँगे।”

मत्ती 26:17 या, “त्योहार से एक दिन पहले।” यीशु के ज़माने में, आम तौर पर फसह का त्योहार बिन-खमीर की रोटियों के त्योहार का पहला दिन माना जाता था।

मत्ती 26:29 शाब्दिक, “अंगूर की बेल की उपज से बनी यह चीज़।”

मत्ती 26:39 यह ‘प्याला’ यीशु के लिए परमेश्‍वर की मरज़ी की निशानी था। जिसके मुताबिक यीशु को परमेश्‍वर की निंदा करने के झूठे इलज़ाम में मरना था।

मत्ती 26:53 एक ‘पलटन’, प्राचीन रोमी सेना के सैनिकों की सबसे बड़ी टुकड़ी थी। यहाँ इस शब्द का मतलब है, बड़ी तादाद।

मत्ती 26:59 महासभा, यहूदियों की सबसे बड़ी अदालत थी।

मत्ती 27:2 पीलातुस, उस वक्‍त यहूदिया इलाके का रोमी राज्यपाल था, जिस दौरान यीशु इस धरती पर सेवा कर रहा था।

मत्ती 27:9 ये वचन असल में जक 11:12, 13 पर आधारित हैं। मत्ती के दिनों में, भविष्यवक्‍ताओं की किताबों के संग्रह में यिर्मयाह की किताब सबसे पहली थी, इसलिए सभी भविष्यवक्‍ताओं की किताबों को मिलाकर ‘यिर्मयाह’ नाम दिया गया है, जिसमें जकर्याह की किताब भी शामिल थी। लूका 24:44 से मिलाएँ।

मत्ती 27:32 अतिरिक्‍त लेख 6 देखें।

मत्ती 27:45 मत्ती 20:5 पहला फुटनोट देखें।

मत्ती 27:45 मत्ती 20:5 दूसरा फुटनोट देखें।

मत्ती 27:49 दोहरे ब्रैकेट के बारे में जानकारी के लिए मत्ती 16:3 का फुटनोट देखें।

मत्ती 27:51 यह परदा परम-पवित्र और पवित्र स्थान के बीच था और इन्हें एक-दूसरे से अलग करता था।

मत्ती 27:53 यानी, यरूशलेम।

मत्ती 27:62 सब्त से पहले का दिन “तैयारी का दिन” कहलाता था। इस दिन यहूदी सब्त के दिन के लिए खाना तैयार करते थे और हर वह ज़रूरी काम पूरा कर लेते थे, जिसके लिए सब्त का दिन खत्म होने तक रुका नहीं जा सकता था। (निर्ग 16:5; 20:10 से मिलाएँ।)

मत्ती 28:1 यह वह दिन है जिसे हम आज रविवार कहते हैं। यहूदियों के लिए यह हफ्ते का पहला दिन हुआ करता था।

मत्ती 28:19 यूनानी नफ्मा। अतिरिक्‍त लेख 7 देखें।

    हिंदी साहित्य (1972-2025)
    लॉग-आउट
    लॉग-इन
    • हिंदी
    • दूसरों को भेजें
    • पसंदीदा सेटिंग्स
    • Copyright © 2025 Watch Tower Bible and Tract Society of Pennsylvania
    • इस्तेमाल की शर्तें
    • गोपनीयता नीति
    • गोपनीयता सेटिंग्स
    • JW.ORG
    • लॉग-इन
    दूसरों को भेजें