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नयी दुनिया अनुवाद—मसीही यूनानी शास्त्र
6 “यातना की सूली”

6 “यातना की सूली”

यूनानी में, σταυρός (स्टवरोस); लैटिन, क्रक्स

यीशु को कैलवरी यानी खोपड़ी स्थान नाम की जगह पर मौत की सज़ा दी गयी थी, और इसी घटना के सिलसिले में मत्ती 27:40 में “यातना की सूली” का ज़िक्र आता है। “यातना की सूली” यूनानी शब्द स्टवरोस का अनुवाद है। और इस बात का कोई सबूत नहीं है कि इस यूनानी शब्द का मतलब क्रूस या क्रॉस था। मसीह के आने से पहले, सदियों से गैर-ईसाई लोग क्रूस को एक धार्मिक निशानी के तौर पर इस्तेमाल करते थे।

प्राचीन यूनानी भाषा के शब्द स्टवरोस का मतलब सिर्फ एक लकड़ी का सीधा खंभा, लट्ठ या बल्ली था, जो नींव डालने के काम आता था। क्रिया स्टवरोओ का मतलब था लट्ठों का बाड़ा बनाना, या लकड़ियों से घेराबंदी करना। मसीही यूनानी शास्त्र के लेखकों ने परमेश्‍वर की प्रेरणा से जब शास्त्र की किताबें लिखीं तो इसे आम (खिनी) यूनानी भाषा में लिखा। उन्होंने भी स्टवरोस शब्द का इस्तेमाल उसी मायने में किया जो प्राचीन यूनानी भाषा में था, यानी लकड़ी का सीधा खंभा या लट्ठ जिसमें आड़ी लकड़ी नहीं लगी होती। इस बात का कोई सबूत नहीं है कि इस शब्द का मतलब सीधी लकड़ी के अलावा कुछ और भी था। प्रेषित पतरस और पौलुस ने भी जब उस चीज़ का ज़िक्र किया जिस पर यीशु को यातना दी गयी और कीलों से ठोंका गया था, तो उन्होंने शब्द क्ज़ीलॉन का इस्तेमाल किया। इस खास संदर्भ में क्ज़ीलॉन शब्द का यही मतलब है, यानी लकड़ी का एक सीधा खंभा, जिसमें आड़ी लकड़ी न लगी हो। (प्रेषितों 5:30; 10:39; 13:29; गलातियों 3:13; 1 पतरस 2:24) सेप्टुआजेंट बाइबल में हमें क्ज़ीलॉन शब्द एज्रा 6:11 (2 एसद्रास 6:11) में मिलता है। उस आयत में क्ज़ीलॉन को एक सीधी लकड़ी बताया गया है जिस पर कानून तोड़नेवाले अपराधियों को लटकाया जाता था। इसी बात का ज़िक्र प्रेषितों 5:30; 10:39 में भी है।

अपनी एक किताब (एन एक्सपॉज़िट्री डिक्शनरी ऑफ न्यू टेस्टामेंट वर्डस्‌, 1966, पुनः-मुद्रण, खंड 1, पेज 256) में डब्ल्यू. ई. वाइन ने स्टवरोस का मतलब समझाते हुए कहा: “स्टवरोस (σταυρός) का पहला मतलब है, एक सीधा लट्ठ या खंभा। इस पर मुजरिमों को कीलों से ठोंककर मार डाला जाता था। स्टवरोओ शब्द के संज्ञा और क्रिया रूप, दोनों का मतलब है, लकड़ी के खंभे या लट्ठ से बाँधना। ये दोनों चर्च के क्रूस या क्रॉस से बिलकुल अलग हैं, जिसमें दो लकड़ियाँ होती हैं। क्रूस के आकार की शुरूआत प्राचीन कसदिया में हुई थी और इसे वहाँ और आस-पास के दूसरे देशों में, यहाँ तक कि मिस्र में भी तम्मूज़ देवता की निशानी के तौर पर इस्तेमाल किया जाता था। यह क्रॉस इस देवता के नाम के पहले अक्षर T (अँग्रेज़ी में Tau) के आकार में हुआ करता था। तीसरी सदी के बीच तक आते-आते, चर्च ने मसीही विश्‍वास की कुछ शिक्षाएँ या तो छोड़ दी थीं या वह लोगों को ये शिक्षाएँ तोड़-मरोड़कर अपने हिसाब से सिखाने लगा था। इस तरह चर्च ने सच्चे मसीही विश्‍वास के खिलाफ बगावत कर एक अलग धार्मिक व्यवस्था खड़ी कर दी और इसकी साख बढ़ाने के लिए, चर्च ने उन गैर-ईसाइयों का भी अपने धर्म में स्वागत किया जो मसीह को मानते तक नहीं थे। ज़्यादातर मामलों में, इन गैर-ईसाइयों को यह छूट दी गयी कि वे अपने धर्म की निशानियाँ और चिन्ह अपने पास रख सकते हैं। इसलिए, Tau या T की ऊपरी डंडी को नीचे कर, इस मशहूर चिन्ह को मसीह के क्रॉस की निशानी के रूप में अपना लिया गया।

लेविस और शॉर्ट का लिखा शब्दकोश बताता है कि लैटिन शब्द क्रक्स का असल में मतलब है, “एक पेड़, चौखटा, या लकड़ी के दूसरे औज़ार जिन पर मौत की सज़ा दी जाती थी। इन पर मुजरिमों को चढ़ाकर कीलें ठोंक दी जाती थीं या उन्हें लटकाया जाता था।” बाद में जाकर कहीं क्रक्स शब्द का मतलब “क्रॉस” या क्रूस भी बताया जाने लगा। लैटिन भाषा में सूली को, जो एक ही लकड़ी थी, क्रक्स सिम्पलैक्स कहा जाता था जिस पर किसी मुजरिम को मार डाला जाता था। यातना देने के ऐसे ही एक औज़ार की तसवीर, जस्टस लिपसियस (1547-1606) ने अपनी किताब (डी क्रूस लिब्री त्रेस, एंटवर्प, 1629, पेज 19) में दी है, जो अगले पन्‍ने पर दिखायी गयी है।

हरमैन फुल्डा की लिखी किताब [दास क्रूज़ अंड दू क्रूयिज़ियूंग (क्रूस और क्रूस पर चढ़ाना), 1878, पेज 109] कहती है: “सरेआम मौत की सज़ा देने के लिए जो जगहें चुनी गयी थीं, उनमें से कुछ जगहों पर पेड़ नहीं थे। इसलिए लकड़ी का एक सीधा खंभा ज़मीन में गाड़ दिया जाता था। इस पर मुजरिम को लटकाकर उसके हाथों को ऊपर कर उन्हें बाँध दिया जाता या उन पर कील ठोंक दिए जाते थे। कुछ मुजरिमों के तो पैर भी बाँधकर उन पर कील ठोंक दिए जाते थे।” इस जानकारी को पुख्ता करने के लिए फुल्डा ने ढेरों सबूत देने के बाद पेज 219 और 220 पर यह नतीजा पेश किया: “यीशु की मौत लकड़ी के एक सीधे खंभे पर हुई थी, यह कहने के लिए पेश है ये तीन सबूत (क) यीशु के ज़माने में मध्य-पूर्वी देशों में जिस लकड़ी पर मौत की सज़ा दी जाती थी उसके लिए पीढ़ी-दर-पीढ़ी इस्तेमाल किया जानेवाला शब्द (ख) यीशु की दुःख-तकलीफों का इतिहास भी सुराग देता है और (ग) यीशु की मौत के बारे में बताने के लिए शुरू के चर्च के फादरों ने जो शब्द इस्तेमाल किए।”

पॉल विलियम स्किमिड्‌ट, जो बासेल विश्‍वविद्यालय के प्रोफेसर थे, उन्होंने अपनी किताब दी गेसचिचटे जेसु (यीशु का इतिहास), भाग 2, ट्यूबिनगेन और लीपज़िग, सन्‌ 1904, पेज 386-394 में यूनानी शब्द स्टवरोस पर ब्यौरेदार जानकारी पेश की। पेज 386 पर उन्होंने कहा: “σταυρός [स्टवरोस] का मतलब है पेड़ का सीधा तना।” और यीशु को दी गयी मौत की सज़ा के बारे में उन्होंने पेज 387-389 पर लिखा: “खुशखबरी के लेखों के मुताबिक यीशु को कोड़े लगाने के अलावा, सिर्फ एक ही तरह की सज़ा दी गयी थी और वह थी, सूली पर चढ़ाने का रोमी लोगों का सबसे आसान तरीका। यीशु के बाहरी कपड़े उतार दिए गए और उसे एक सूली पर लटकाकर मार डाला गया था। और जिस जगह उसे सज़ा दी गयी थी, वहाँ तक खुद यीशु को ही यह सूली ढोकर या घसीटकर ले जानी पड़ी ताकि उसकी यह सज़ा और भी शर्मनाक साबित हो। . . . बड़े पैमाने पर मुजरिमों को सूली पर लटकाकर मार डालना इतना आम था कि इस बात की कोई गुंजाइश नहीं कि उस ज़माने में मौत की सज़ा देने का कोई और तरीका भी रहा हो: एक साथ 2,000 लोगों को वारुस ने (Jos. Ant. XVII 10. 10), क्वाद्रातुस ने (Jewish Wars II 12. 6), गवर्नर फेलिक्स ने (Jewish Wars II 15. 2 [13.2]), टाइटस ने (Jewish Wars VII.1[V11.1]) मौत की सज़ा दी थी।”

तो इस बात का कोई सबूत नहीं कि यीशु मसीह को क्रूस पर लटकाकर मार डाला गया था, जिसमें दो लकड़ियों को आपस में समकोण पर लगाया गया हो। क्रूस की धारणा गैर-ईसाई धर्मों से निकली है, इसलिए हम परमेश्‍वर के लिखित वचन में इस धारणा को जोड़कर कोई मिलावट नहीं करना चाहते। यूनानी शब्द स्टवरोस और क्ज़ीलॉन का जो सीधा मतलब है, हमने वही अनुवाद किया है। और क्योंकि यीशु ने स्टवरोस शब्द का इस्तेमाल उसके चेलों पर आनेवाली दुःख-तकलीफों, शर्म या यातना को दर्शाने के लिए किया था, इसलिए हमने स्टवरोस का अनुवाद “यातना की सूली” किया है, जबकि क्ज़ीलोन का अनुवाद “सूली” किया है ताकि क्ज़ीलॉन और स्टवरोस में फर्क पता लगे।

[पेज 606 पर तसवीर]

क्रक्स सिम्पलैक्स की तसवीर

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