छोटे लोग, बड़े तनाव
“निःसंदेह, बच्चों के दुःख छोटे होते हैं, लेकिन बच्चा भी तो वैसा ही है।”—परसि बिश शैली।
नीचे दिए गए लंबी टोपी के चित्र को देखिए। पहली नज़र में टोपी के किनारे की चौड़ाई से उसकी लंबाई ज़्यादा लगती है। लेकिन, वास्तव में, चौड़ाई और लंबाई दोनों समान हैं। आसानी से आयामों का ग़लत अनुमान लग सकता है।
बच्चे के तनाव के आयामों का ग़लत अनुमान लगाना वयस्कों के लिए उतना ही आसान है। कुछ लोग तर्क करते हैं, ‘बच्चों की समस्याएँ इतनी मामूली होती हैं।’ लेकिन ऐसा सोचना भ्रामक है। बालतनाव! (Childstress!) पुस्तक चेतावनी देती है, “वयस्कों को कठिनाइयों को उनके परिमाण से नहीं, बल्कि उन से उत्पन्न हुई पीड़ा के परिमाण से आँकना चाहिए।”
कई किस्सों में वयस्क जितना समझते हैं उससे ज़्यादा बच्चे की पीड़ा के परिमाण होते हैं। इसकी पुष्टि एक अध्ययन द्वारा की गयी जिसमें माता-पिताओं को अपने बच्चों की भावात्मक स्थिति का अनुमान लगाने के लिए कहा गया। लगभग सभी ने जवाब दिया कि उनके बच्चे “बहुत ख्प्ताश” थे। लेकिन, जब बच्चों को उनके माता-पिता से अलग सवाल पूछे गए, तब अधिकांश बच्चों ने अपने आप को “नाख्प्ताश” और यहाँ तक कि “अति दुःखी” भी वर्णित किया। बच्चे ऐसी आशंकाओं का सामना करते हैं जिन्हें माता-पिता बहुत कम समझते हैं।
डॉ. काओरू यामामोटो द्वारा संचालित एक और अध्ययन में, बच्चों के एक समूह को जीवन की २० घटनाओं को सात-मुद्दे के तनाव मापक्रम पर क्रमबद्ध करने के लिए कहा गया। फिर वयस्कों के एक समूह ने उन्हीं घटनाओं को क्रमबद्ध किया यह सोचकर कि एक बच्चा इन्हें कैसे क्रमबद्ध करता। वयस्कों ने २० में से १६ विषयों पर ग़लत अनुमान लगाया! डॉ. यामामोटो अंत में कहते हैं, “हम सब सोचते हैं कि हम अपने बच्चों को जानते हैं, लेकिन वास्तव में हम अकसर उस बात को न देखते, न सुनते, और न ही समझते हैं जिससे वे वास्तव में व्याकुल हैं।”
माता-पिताओं को जीवन के अनुभवों को एक नई दृष्टि से देखना सीखना चाहिए: एक बच्चे की नज़रों से। (बक्स देखिए.) यह विशेषकर आज ज़रूरी है। बाइबल ने पूर्वबताया कि “अन्तिम दिनों में बड़े तनाव के संकटपूर्ण समय आरंभ होंगे . . . जिनसे निपटना कठिन होगा और जिसे सहन करना कठिन होगा।” (२ तीमुथियुस ३:१, दी एम्प्लीफाइड बाइबल) ऐसे तनाव से बच्चे उन्मुक्त नहीं हैं; अकसर वे इसके मूल शिकार होते हैं। जबकि बच्चों के कुछ तनाव सामान्यतः “जवानी की अभिलाषाएँ” हैं, अन्य तनाव काफ़ी असामान्य होते हैं और विशेष ध्यान देने के योग्य हैं।—२ तीमुथियुस २:२२.
[पेज 5 पर बक्स]
एक बच्चे की नज़रों से
माता या पिता की मृत्यु = दोष। एक जनक के प्रति क्षणिक क्रोध भरे विचारों को याद करते हुए, एक बच्चा अपने मन में उसकी मृत्यु के लिए ज़िम्मेदारी की गुप्त भावनाएँ रख सकता है।
तलाक़ = परित्याग। बच्चे का तर्क कहता है कि अगर माता-पिता एक दूसरे से प्रेम करना छोड़ सकते हैं, तो वे शायद उससे भी प्रेम करना छोड़ दें।
पियक्कड़पन = तनाव। क्लॉडिया ब्लैक लिखती है: “एक पियक्कड़ घर में, हर दिन का भय, परित्याग, अस्वीकृति, असंगति, और वास्तविक या संभावित हिंसा को बढ़ावा देने वाला वातावरण एक कार्यात्मक, स्वस्थ वातावरण नहीं है।”
माता-पिता का झगड़ा = भय। चौबीस विद्यार्थियों के एक अध्ययन ने प्रकट किया कि माता-पिता के झगड़े इतने तनावपूर्ण होते हैं कि इनके परिणाम बार-बार उल्टी होना, घबराहट से मुख संकुचन, बालों का गिरना, वज़न का घटना या बढ़ना, और फोड़े थे।
अत्युपलब्धि = कुण्ठा। मेरी सूज़न मिलर लिखती है, “जहाँ कहीं बच्चे जाते हैं “ऐसा प्रतीत होता है कि वे वयस्कों द्वारा उनके लिए आयोजित प्रतिस्पर्धा में शामिल हैं।” स्कूल, घर, और खेल-कूद में भी, सर्वोत्तम होने के दबाव से बच्चा कभी जीतता नहीं, और यह दौड़ कभी समाप्त नहीं होती।
नवजात भाई या बहन = नुक़सान। अब जबकि माता-पिता का ध्यान और स्नेह बाँटना पड़ता है, एक बच्चे को लगता है कि उसने भाई या बहन पाने के बजाय अपने माता-पिता को खो दिया है।
स्कूल = अलग होने की चिंता। एमी के लिए, अपनी माँ को छोड़कर स्कूल जाना मानो हर दिन छोटी मौत मरना था।
ग़लतियाँ = अपमान। डॉ. ऐन ऐपस्टाइन कहती है कि अपने अस्थिर आत्म-धारणा के कारण, बच्चे “कुछ बातों को हक़ीक़त से कहीं अधिक गंभीर समझते हैं।” उसने पाया कि अपमान, बाल आत्महत्या का एक सबसे सामान्य प्रेरक है।
विकलाँगताएँ = कुण्ठा। शारीरिक या मानसिक रीति से विकलाँग बच्चे को असहानुभूतिपूर्ण समकक्षों के मज़ाक के साथ-साथ, उन शिक्षकों और पारिवारिक सदस्यों की अधीरता को भी सहना पड़ता है जो ऐसी बातों पर निराशा व्यक्त करते हैं जिनको करना उस बच्चे की योग्यता के बिल्कुल बाहर है।
[पेज 4 पर तसवीर]
पुराने फ़ैशन की लंबी टोपी