केला—एक अनोखा फल
हण्डुरास में सजग होइए! संवाददाता द्वारा
यूनानी और अरबी लोगों ने इसे “एक अनोखे फल का पेड़” कहा। सिकन्दर महान की सेनाओं ने इसे सा.यु.पू. ३२७ में भारत में पाया। एक पुरानी कहानी के अनुसार, भारत के ऋषि इसकी छाँव में आराम करते थे और इसका फल खाते थे। इसलिए इसे “बुद्धिमान लोगों का फल” कहा गया है। यह क्या है? यह है, केला!
लेकिन केला एशिया से कैरेबियन कैसे पहुँच गया? आरंभिक अरबी व्यापारी केले के पेड़ की जड़ें एशिया से अफ्रीका के पूर्वी तट ले गए। वहाँ १४८२ में पुर्तगाली अन्वेषकों ने केले के पेड़ बढ़ते देखे और कुछ जड़ें और उसका अफ्रीकी नाम, बनाना, कैनरी द्वीपों पर पुर्तगाली उपनिवेशों में ले गए। अगला क़दम था अटलांटिक पार करके पश्चिमी गोलार्ध तक यात्रा। यह कोलम्बस की समुद्र-यात्राओं के कुछ वर्षों बाद, १५१६ में हुआ। स्पेन के मिशनरी केले के पेड़ को कैरेबियन के द्वीपों और उष्णकटिबन्धी महाद्वीप पर ले गए। अतः, केंद्रीय और दक्षिणी अमरीका पहुँचने के लिए इस अनोखे फल के पेड़ को संसार का आधा चक्कर लगाना पड़ा।
रिपोर्ट के अनुसार, १६९० में केले को पहले कैरेबियन से न्यू इंग्लैंड ले जाया गया। प्यूरिटन लोगों ने इस विचित्र फल को उबाला और उन्हें पसन्द नहीं आया। लेकिन, दक्षिणी और केंद्रीय अमरीकी देशों में, साथ ही अन्य उष्णकटिबन्धी देशों में लाखों लोग कच्चे हरे केले को उबालकर बड़े चाव से खाते हैं।
केले के बागान
वर्ष १८७० और १८८० के बीच, केले का निर्यात करने की संभावना अनेक यूरोपीय और उत्तर अमरीकी सौदागरों को दिलचस्प लगने लगी। उन्होंने कंपनियाँ बनायीं और केले के बागान स्थापित किए, जिन्हें फ़िन्का कहा जाता है। इस उद्देश्य के लिए, श्रमिकों और इंजीनियरों को जंगल काटने पड़े, सड़कें बनानी पड़ीं, और रेलमार्ग तथा संचार व्यवस्था स्थापित करनी पड़ी। श्रमिकों और उनके परिवारों के लिए गाँव बनाए गए जिनमें गृह-व्यवस्था, स्कूल, और अस्पताल भी थे। संसार-भर में केले ले जाने के लिए भापचालित जलयानों की मार्ग-व्यवस्था की गयी। जैसे-जैसे उद्योग बढ़ता गया, केले-उगानेवाले देशों में कंपनियों ने ज़्यादा ज़मीन ख़रीद ली।
आज, उत्तर अमरीका में खाए जानेवाले ९० प्रतिशत से ज़्यादा केलों की सप्लाई लातिन-अमरीकी देश करते हैं। ब्राज़ील सबसे ज़्यादा निर्यात करता है। सूची पर हण्डुरास छठे नम्बर पर है, जो कि हर साल लगभग एक सौ करोड़ किलोग्राम केले निर्यात करता है।
केला कैसे उगता है
केले का पेड़ एक असल पेड़ नहीं होता। इसमें लकड़ी के रेशे नहीं होते। उसके बजाय, यह एक अतिविशाल शाक है जो खजूर के पेड़ के समान दिखता है। मौसम और मिट्टी पेड़ की वृद्धि और आकार निर्धारित करते हैं। केले गर्म, आर्द्र मौसम में और बढ़िया रेतीली दुमट मिट्टी में, जहाँ अच्छा निकास-जल हो, सबसे अच्छे उगते हैं। सबसे अच्छी वृद्धि के लिए, तापमान कभी-भी २० डिग्री सेल्सियस से कम नहीं होना चाहिए।
फसल शुरू करने के लिए, आपको क़लम लगानी पड़ती है, जिसे चूषक कहा जाता है। इसे बड़े पेड़ों में से ज़मीन के नीचेवाले तनों से काटा जाता है। अठारह फुट की दूरी पर एक फुट गहरे गड्ढे खोदकर इनमें क़लमें लगा दी जाती हैं। तीन से चार सप्ताह में हरे अंकुर दिखने लगते हैं, और कसकर मुड़ी हुई हरी पत्तियाँ अंकुरित होकर जैसे-जैसे बड़ी होती हैं खुलती जाती हैं। केले के पेड़ बहुत जल्दी बढ़ते हैं, एक दिन में लगभग तीन सेंटीमीटर। दस महीने बाद, पेड़ पूरी तरह विकसित हो जाता है और खजूर के पेड़ के समान दिखता है, यह तीन से छः मीटर तक ऊँचा होता है।
एक पूर्ण-विकसित पेड़ पर, उन पत्तों से जो एक बन्डल में बंध जाते हैं बैंजनी रंग की छोटी पत्तियों के साथ एक बड़ी कली निकलती है। फिर छोटे फूलों के गुच्छे निकलते हैं। एक पेड़ पर केलों का सिर्फ़ एक घौद लगता है, जिसका वज़न ३० से ५० किलोग्राम तक होता है। एक घौद में केले के ९ से लेकर १६ गुच्छे होते हैं। गुच्छे को हाथ कहा जाता है और हर गुच्छे में १० से २० केले लगते हैं। अतः, केलों को उँगलियाँ कहा जाता है।
केले पहले नीचे, ज़मीन की ओर उगते हैं, फिर बाहर और ऊपर की ओर, और इस प्रकार जाना-माना केला वक्र बनाते हैं। वृद्धि के दौरान पोषण और बचाव के बारे में क्या? कुछ समय बाद एक श्रमिक आकर कली को हटा देता है ताकि केलों को पेड़ से सारी ऊर्जा मिल सके। फिर वह फल को पॉलीएथिलीन के थेले से ढक देता है ताकि कीड़े बाहर रहें। चूँकि केले ऊपर की ओर बढ़ते हैं और बहुत भारी हो जाते हैं, हवा के कारण या फल के भार के कारण पेड़ को गिरने से बचाने के लिए उसे आस-पास के पेड़ों के तले से बाँध दिया जाता है। अन्त में, एक रंगीन फ़ीता थैले पर बाँध दिया जाता है यह दिखाने के लिए कि कब फल कटनी के लिए तैयार हो जाएगा।
हर दिन, पेड़ों के पत्तों पर छिड़काव करने के लिए विमान बागान के ऊपर से उड़ते हैं। यह उन्हें तीन मुख्य बीमारियों से बचाता है। एक है पनामा बीमारी, जिसमें फफूँदी कुछ पेड़ों को नाश कर देती है। लेकिन इन पेड़ों के बदले में ऐसे क़िस्म के पेड़ लगाए जाते हैं जो इस बीमारी का मुक़ाबला कर सकें। दूसरी है बैक्टीरिया से होनेवाली माको बीमारी। इससे प्रभावित पेड़ों को और ऐसे फूलों को हटाने से जो बीमारी-फैलानेवाले कीड़ों को आकर्षित करते हैं, इसे नियंत्रण में रखा जाता है। फिर सिगाटोका बीमारी है, जो पेड़ के पत्तों को नाश करती है लेकिन यदि जल्दी रासायनिक छिड़काव कर दिया जाए, तो केलों को नुक़सान नहीं पहुँचाती। केलों को बहुत पानी की ज़रूरत होती है। यह सिंचाई और उच्च-दाब छिड़काव व्यवस्था द्वारा दिया जाता है। यह भी कहा जा सकता है कि बागान को घास और जंगली पौधों से साफ़ रखा जाता है।
बागान से आपकी मेज़ तक
जिस समय फीते का रंग दिखाता है कि केले कटनी के लिए तैयार हैं, तो पहले उन्हें नापा जाता है यह निश्चित करने के लिए कि वह कटाई के लिए सही नाप के हैं। एक और महत्त्वपूर्ण तथ्य है कि केलों को कभी पेड़ पर पकने के लिए नहीं छोड़ा जाता, यहाँ तक कि स्थानीय उपभोग के लिए भी नहीं। ऐसा क्यों है? क्योंकि वे अपना स्वाद खो देंगे। यह निर्णय लेने से पहले कि फसल कब काटी जाए, इस पर विचार किया जाना चाहिए कि निर्यात कितनी दूर करना है और यह किस क़िस्म के वाहन द्वारा किया जाएगा। फिर एक श्रमिक अपने छुरे से गुच्छों को काटता है, और उन्हें पैकिंग-हाऊस भेज दिया जाता है। और कटनी के बाद केले के पेड़ का क्या किया जाता है? उसे काट दिया जाता है ताकि उसकी जगह पर उगाए जानेवाले नए पेड़ों के लिए खाद मिल सके।
पैकिंग-हाऊस में केलों को धोया जाता है, और पिचके हुए फलों को श्रमिकों और उनके परिवारों के खाने के लिए निकाल दिया जाता है। छोटे केलों को स्वाद देने के लिए और शिशु आहार के लिए प्रयोग किया जाता है। सबसे अच्छे केलों को १८ किलोग्राम के बक्सों में पैक करके प्रशीतित रेलगाड़ियों और जलयानों द्वारा बाहर भेज दिया जाता है।
डॉक पर फल की क्वालिटी की जाँच की जाती है, और उसका तापमान लिया जाता है। पेड़ से काट दिए जाने पर फल को बाज़ार पहुँचने तक हरा रहना चाहिए। चूँकि केला ख़राब होनेवाली चीज़ है, इसे १० से २० दिन के बीच तोड़ा, भेजा, और दूकानों में बेचा जाना चाहिए। फल को १२ से १३ डिग्री सेल्सियस के तापमान पर ठंडा रखा जाता है ताकि पके नहीं। आधुनिक परिवहन के कारण, केले केंद्रीय और दक्षिणी अमरीका से कनाडा और यूरोप जितनी दूर तक बिना किसी समस्या के भेजे जा सकते हैं।
व्यावहारिक मूल्य और पोषण
सौ या उससे भी ज़्यादा क़िस्म के केले होते हैं। बौना केला सामान्य क़िस्म का है, इसे मुख्यतः यूरोप, कनाडा, और संयुक्त राज्य अमरीका निर्यात किया जाता है। छोटे क़िस्म के केले जिनके छिलके निर्यात की दृष्टि से बहुत पतले होते हैं, हण्डुरास में बहुतायत में मिल सकते हैं। इन्हें मानसाना (सेब) और लाल जमाइका कहा जाता है।
केले के पत्तों में उपयोगी रेशे होते हैं जिन्हें उष्णकटिबन्धी देशों में विभिन्न प्रयोजनों के लिए प्रयोग किया जाता है। एक खुले बाज़ार में जाते समय, एक व्यक्ति को अकसर सड़क पर पत्तों का ढेर दिखता है। ये पत्ते गर्म-गर्म टमाली को लपेटने के लिए बेचे जाते हैं, जो कि विभिन्न देशों में एक बहुत ही लोकप्रिय भोजन है।
हण्डुरास में अनेक लोग अपने भोजन के साथ केला खाना पसन्द करते हैं। हण्डुरास के उत्तरी तट पर एक स्वादिष्ट व्यंजन माचूका कहलाता है। इसे बनाने के लिए, कच्चे केले को पीसा जाता है, मसाले मिलाए जाते हैं, और मिश्रण को केकड़ों के साथ नारियल के तेल में पकाया जाता है।
संयुक्त राज्य अमरीका में हर वर्ष लगभग ११ अरब केले खाए जाते हैं। एक बड़ी मात्रा में केले कनाडा और ब्रिटेन और यूरोप के अन्य देशों में भेजे जाते हैं। इस फल को खाने के क्या पौष्टिक लाभ हैं? केले विटामिन ए और सी, कार्बोहाइड्रेटस्, फोसफोरस, और पोटैशियम से भरपूर हैं।
केले के बहुत सारे उपयोग हैं! यह स्नैक्स्, सिरियल, फ्रूट चाट, पाइ, केक, और जी हाँ, मशहूर बनाना स्प्लिट में उपयुक्त है। लेकिन अगली बार जब आप एक पका हुआ केला खाते हैं, तो उसके उल्लेखनीय गुणों के बारे में सोचिए। इस फल का अपना ही आवरण होता है। यह विटामिनों और खनिजों से भरपूर है। जी हाँ, और वह केला शायद आधे संसार का चक्कर काटकर आपकी मेज़ पर आया हो।