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सजग होइए!–1995
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हमारा बहुमूल्य वायुमंडल

मई ४, १९६१ के दिन मालकम रॉस और विक प्रेदर ३४.६ किलोमीटर की ऊँचाई तक ऊपर उठे। उस समय, एक नया कीर्तिमान स्थापित करने के विचार से रॉस प्रभावित नहीं हुआ। वह उस नज़ारे से प्रभावित हुआ जो सावधानीपूर्वक झिलमिली उठाकर गॉन्डोला के बाहर पहली बार देखने पर उसे नज़र आया।

“जब हम ३०,५०० मीटर की ऊँचाई पर पहुँचे, तब वह दृश्‍य,” वह याद करता है, “निहायत ही शानदार था।” वायुमंडल की भिन्‍न परतों को चिह्नित करनेवाले रंगों को देखकर रॉस आश्‍चर्यचकित हुआ। पहले, व्योममंडल का रंग “शुभ्र और श्‍वेत-नीला” है, जो पृथ्वी के लगभग १६ किलोमीटर ऊपर तक फैला है। फिर गहरा नीला समतापमंडल और काला होता जाता है जब तक कि अंतरिक्ष में पूरी तरह अन्धकार न छा जाए। रॉस ने नैशनल जियोग्राफिक (अंग्रेज़ी) में लिखा “शान्त विस्मय से हमने वायुमंडल की दैवी ख़ूबसूरती को निहारा।”

वाक़ई, हमारा ख़ूबसूरत वायुमंडल निहारने लायक़ है।

जीवन पोषक

असल में, हमारा वायुमंडल हवा का एक समुद्र है जो पृथ्वी को क़रीब ८० किलोमीटर की ऊँचाई तक घेरता है। उसका वज़न ५०,००० खरब टन से भी ज़्यादा है और समुद्र-तल पर १.०३ किलोग्राम प्रति वर्ग सेंटीमीटर के बल से हमारे सर पर दबाव डालता है। उस वायु दबाव के बग़ैर हम ज़िन्दा नहीं रह पाते, क्योंकि यह हमारे शरीर के तरल पदार्थों का वाष्पीकरण होने से रोकता है। ऊपरी वायुमंडल में मनुष्य को जीवित रखने के लिए पर्याप्त वायु दबाव की कमी है। इसलिए रॉस और प्रेदर को दाबानुकूलित अंतरिक्ष-पोशाक पहननी पड़ी। “कृत्रिम दबाव के बग़ैर,” रॉस ने समझाया, “हमारा ख़ून उबलने लगता, और हमारी रक्‍त-वाहिकाएँ और अंग फट जाते।”

बेशक, साँस लेते रहने के लिए भी हमें इतनी प्रचुर मात्रा में हवा की ज़रूरत है। बहरहाल, हम में से ज़्यादातर लोग इसके बारे में गंभीरता से नहीं सोचते हैं क्योंकि हम इसे देख नहीं सकते। प्राचीन समय के एक धार्मिक मनुष्य ने क़दरदानी दिखाते हुए कहा: “[परमेश्‍वर] सब को जीवन और स्वास और सब कुछ देता है।”—प्रेरितों १७:२४, २५.

हमारे वायुमंडल के बग़ैर, उस धूल को ऊँचाई पर रोके रखने के लिए कोई माध्यम नहीं होता जिसके आस-पास पानी की बूँदे बनती हैं। सो बारिश नहीं होती। अगर हमारा वायुमंडल न होता तो हम सूरज की सीधी किरणों से झुलस जाते, और हम रात को जम जाते। शुक्र है, वायुमंडल एक कम्बल की तरह काम करता है और सूरज की कुछ गर्मी को रोकता है ताकि रातें ज़्यादा ठंडी न हों।

इसके अलावा, वायुमंडल हमें बाहरी अंतरिक्ष से पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करनेवाली ऐसी उल्काओं से सुरक्षा प्रदान करता है जो शायद पृथ्वी के निवासियों को हानि पहुँचातीं। “अंतरिक्ष से ठोस पिण्ड” हरबर्ट रील अपनी किताब इंट्रोडक्शन टू द ऐट्‌मॉस्फियर (अंग्रेज़ी) में कहता है, “वायुमंडल की बाहरी सीमा में प्रतिदिन आते हैं जिनकी कुल अनुमानित मात्रा कई हज़ार टन होती है।” लेकिन, पृथ्वी की सतह पर पहुँचने से पहले ही ज़्यादातर उल्काएँ विघटित हो जाती हैं।

वायुमंडल जीवन की हमारी ख़ुशी को बढ़ाता है। वह हमें हमारा ख़ूबसूरत नीला आसमान, रोएँदार सफ़ेद बादल, स्फूर्तिदायक बारिश और शानदार सूर्योदय और सूर्यास्त प्रदान करता है। इसके अलावा, वायुमंडल के बग़ैर हम जिन्हें चाहते हैं उनकी आवाज़ नहीं सुन पाते; ना ही हम अपना मन-पसन्द संगीत सुन पाते। क्यों? क्योंकि ध्वनि तरंगों को एक पदार्थ की ज़रूरत होती है जिसके माध्यम से वे यात्रा कर सकें। हवा ध्वनि का एक सबसे बेहतरीन वाहक है, जबकि बाहरी अंतरिक्ष में कोई ध्वनि सुनाई नहीं देती।

एक अद्‌भुत मिश्रण

प्राचीन समयों में लोग वायुमंडल को एक एकल पदार्थ समझते थे। फिर, १८वीं सदी के आख़िरी भाग में, वैज्ञानिकों ने यह खोज निकाला कि यह ख़ासकर दो संपूरक गैसों से बना है, नाइट्रोजन और ऑक्सीजन। वायुमंडल का लगभग ७८ प्रतिशत नाइट्रोजन है और २१ प्रतिशत ऑक्सीजन; शेष १ प्रतिशत ऑरगान, जलवाष्प, कार्बन डाइऑक्साइड, नियॉन, हीलियम, क्रिपटॉन, हाइड्रोजन, जीनान, और ओज़ोन जैसी गैसों से बना है।

निश्‍चित ही, ऑक्सीजन एक जीवन-पोषक गैस है जिसे हमारा शरीर साँस लेने के द्वारा आत्मसात करता है। हमारे वायुमंडल में ऑक्सीजन का स्तर पृथ्वी पर जीवन के लिए बिलकुल सही है। अगर ऑक्सीजन का स्तर उल्लेखनीय रूप से गिर जाता, तो हम निद्रालू हो जाते और आख़िरकार होश गवाँ बैठते। अगर उसकी मात्रा बहुत ज़्यादा हो जाती, तो कहा जाता है कि जंगल की गीली टहनियाँ और घास भी सुलग जाती।

नाइट्रोजन ऑक्सीजन का सबसे बेहतरीन तनूकारक है, लेकिन वह जीवन का पोषण करने में सिर्फ़ एक निष्क्रिय भूमिका नहीं निभाता है। ज़िन्दा रहने के लिए सभी जीवों को इसकी ज़रूरत है। पौधे वायुमंडल में से, बिजली और एक ख़ास क़िस्म के जीवाणु की सहायता से नाइट्रोजन प्राप्त करते हैं। क्रमशः, हम जो खाना खाते हैं उससे हम नाइट्रोजन प्राप्त करते हैं।

यह एक आश्‍चर्य है कि हमारा वायुमंडल ऑक्सीजन और नाइट्रोजन का सही अनुपात बनाए रखता है। सूक्ष्मजीवों के बहुमूल्य काम की वजह से नाइट्रोजन वायुमंडल में लौटाया जाता है। ऑक्सीजन के बारे में क्या? आग में और मनुष्यों और जानवरों के साँस लेने के द्वारा इसकी बड़ी मात्रा में ख़पत होती है। फिर भी वायुमंडल २१ प्रतिशत ऑक्सीजन के अपने स्तर को बनाए रखता है। कैसे? प्रकाश-संश्‍लेषण के द्वारा—हरे पत्तों और शैवाल में एक रासायनिक प्रक्रिया—जो वायुमंडल में हर दिन एक अरब टन से भी ज़्यादा ऑक्सीजन छोड़ता है।

प्रकाश-संश्‍लेषण कार्बन डाइऑक्साइड के बग़ैर नहीं हो सकता। यह अल्पमात्रा में पायी जानेवाली गैस है जो वायुमंडल का सिर्फ़ ०.०३ प्रतिशत ही बनती है। प्रकाश की मदद से, पौधे बढ़ने के लिए और फल, गिरीदार फल, अनाज, और सब्ज़ियाँ उत्पन्‍न करने के लिए कार्बन डाइऑक्साइड पर निर्भर करते हैं। हमारे ग्रह को गरम रखने के लिए कार्बन डाइऑक्साइड गर्मी को वापस पृथ्वी की ओर प्रतिबिम्बित भी करता है। लेकिन अगर अत्यधिक लकड़ी, कोयला, प्राकृतिक गैस और तेल के जलने से कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा बढ़ जाती, तो पृथ्वी का तापमान आख़िरकार इतना गरम हो जाता कि जीवन समाप्त हो जाता। दूसरी ओर, अगर कार्बन डाइऑक्साइड काफ़ी कम हो जाता, तो प्रकाश-संश्‍लेषण समाप्त हो जाता और हम भूखों मरते।

ओज़ोन एक और अल्पमात्रा में पायी जानेवाली गैस है जिस पर पृथ्वी का जीवन निर्भर करता है। वायुमंडल के समतापमंडल नामक ऊपरी हिस्से में ओज़ोन सूरज से आनेवाली परा-बैंगनी किरणों को सोख लेता है। इस प्रकार हम पृथ्वी पर इन हानिकारक परा-बैंगनी किरणों से सुरक्षा पाते हैं।

वाक़ई, वायुमंडल के बारे में हम जितना ज़्यादा सीखते हैं, आश्‍चर्य करने के लिए हमारे पास उतने ही ज़्यादा कारण हैं। नाइट्रोजन, ऑक्सीजन, और अल्पमात्रा में पायी जानेवाली अन्य गैसों का संघटन बिलकुल सही है। संतुलन बनाए रखने के लिए पृथ्वी का आकार भी बिलकुल सही है। अगर पृथ्वी थोड़ी और छोटी होती और उसका वज़न कम होता, तो उसका गुरुत्वाकर्षण बहुत कमज़ोर होता और हमारा ज़्यादातर बहुमूल्य वायुमंडल अंतरिक्ष में उड़ जाता।

“दूसरी ओर,” विज्ञान पाठ्यपुस्तक एन्वायरन्मेंट ऑफ लाइफ (अंग्रेज़ी) कहती है, “अगर पृथ्वी का आकार इसके वर्तमान आकार से थोड़ा और बड़ा होता, तो बढ़ी हुई गुरुत्वाकर्षण शक्‍ति बड़ी मात्रा में गैसों को रोके रखती। . . . वायुमंडल की गैसों के बीच का नाज़ुक संतुलन बिगड़ जाता।”

लेकिन, अफ़सोस की बात है कि मनुष्य की आधुनिक जीवन-शैली उस “नाज़ुक संतुलन” को बिगाड़ रही है। परिस्थिति कितनी गंभीर है, और क्या आशा है कि हमारे बहुमूल्य वायुमंडल को नाश होने से बचाया जाएगा?

[पेज 5 पर बक्स/तसवीर]

जब सूर्यास्त बेहतर दिखते हैं

वायुमंडल सूरज की किरणों को एक ऐसे ढंग से प्रतिबिम्बित करता है जिससे कि आसमान को एक प्रीतिकर नीला रूप मिलता है। जैसे-जैसे सूरज क्षितिज की ओर ढलता है, उसकी किरणों को और ज़्यादा वायुमंडल से होकर गुज़रना पड़ता है। यह भिन्‍न शोख़ रंगों को पैदा करता है जिसे शहरी लोग शायद ही कभी देख सकें।

औद्योगिक शहरों में सूर्यास्त आम तौर पर फीके होते हैं और उनमें लाल रंग की आभा को छोड़कर अन्य रंगों का अभाव होता है। न्यू साइंटिस्ट (अंग्रेज़ी) पत्रिका कहती है कि, अगर क्षेत्र बहुत ही प्रदूषित है, तो “सूरज एक फीके लाल चक्र की तरह लगता है जो शायद क्षितिज तक पहुँचने से पहले ही धुंधला हो जाए।”

“असामान्य रूप से साफ़, अप्रदूषित वायुमंडल में,” उपरोक्‍त पत्रिका समझाती है, “सूर्यास्त के रंग ख़ासकर शोख़ होते हैं। सूरज चटकीला पीला होता है और साथ ही लगे आसमान में नारंगी और पीले की आभा होती है। जैसे-जैसे सूरज क्षितिज के नीचे ओझल होता है, रंग धीरे-धीरे नारंगी से नीले में बदलते जाते हैं। सूरज के ग़ायब हो जाने के बाद भी निचले बादल उसकी रोशनी को प्रतिबिम्बित करते रहते हैं।”

ज़रा उन ख़ूबसूरत सूर्यास्तों की विविधता के बारे में कल्पना कीजिए जिनका आनन्द एक प्रदूषण-मुक्‍त संसार में लिया जाएगा!—प्रकाशितवाक्य २१:३-५.

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