विश्व-दर्शन
बच्चे जो ज़्यादा अच्छी तरह पढ़ते और लिखते हैं
कनाडा का समाचारपत्र ग्लोब एण्ड मेल (अंग्रेज़ी) रिपोर्ट करता है, “बच्चों को पढ़कर सुनाना उनकी लेखन क्षमताओं को बढ़ाता है।” ओन्टारियो, कनाडा के शिक्षा मंत्रालय द्वारा संचालित हाल के परीक्षणों के परिणामों के अनुसार, जिन विद्यार्थियों ने कहा कि बड़े होते वक़्त उन्हें अकसर कहानियाँ पढ़कर सुनायी जाती थीं, उन्होंने ऐसे विद्यार्थियों के मुक़ाबले परीक्षाओं में बेहतर काम किया, जिन्हें बहुत कम या कभी भी किताबें पढ़कर सुनायी नहीं गयी थीं। ग्लोब ने यह भी कहा कि “जो विद्यार्थी पढ़ने में अच्छे थे वे लिखाई में भी अच्छे थे” और कि “जो विद्यार्थी स्कूल के आवश्यक पाठ्यक्रम के अलावा पढ़ाई करते हैं, वे पढ़ने और लिखने दोनों में ज़्यादा अच्छे थे।” ओन्टारियो शिक्षक संघ के प्रमुख के अनुसार, परीक्षण के परिणामों ने प्रकट किया कि “विद्यार्थी जो १४ साल की उम्र तक पढ़ते नहीं हैं या उन्हें नियमित रूप से पढ़कर बताया नहीं जाता, वे उसके बाद नहीं पढ़ेंगे।”
बाइबल में हेर-फेर करना
ऑक्सफर्ड यूनीवर्सिटी प्रॆस ने अपूर्व परिवर्तनों के साथ बाइबल का एक नया अनुवाद तैयार किया है। “राजनैतिक रूप से सही” होने की कोशिश में, यह अनुवाद ऐसे कथन नहीं देता, जिन पर लिंग-सम्बन्धी पक्षपात, जातिवाद, या यहूदी-विरोधी से दूषित होने की व्याख्या देने का आरोप लगाया जा सकता है। उदाहरण के लिए, यह नया अनुवाद परमेश्वर का उल्लेख “पिता-माँ” के तौर पर करता है। यीशु “मनुष्य का पुत्र” नहीं होगा बल्कि, इसके बजाय, “मानव” होगा। इस अनुवाद में यहूदियों का यीशु मसीह को मारने का कोई उल्लेख नहीं है। यहाँ तक कि खब्बू व्यक्तियों के विरुद्ध कथित पूर्वाग्रह का आरोप भी मिट जाएगा जब परमेश्वर का “दायाँ हाथ” उसका “शक्तिमान हाथ” बनता है, द सन्डे टाइम्स् (अंग्रेज़ी) कहता है।
मछुवाही ख़तरे में
जब भिन्न राष्ट्रों के मछुवाही बेड़े, क्षेत्र और मछुवाही अधिकारों के लिए झगड़ रहे हैं, वर्ल्डवॉच इन्स्टीट्यूट द्वारा दी गयी रिपोर्ट चिताती है कि संसार की मछली की पकड़ अपने शिखर तक पहुँच गयी है और अब असल में पृथ्वी के अधिकांश भागों में घट रही है। जबकि रिपोर्ट यह स्वीकार करती है कि पर्यावरण में प्रदूषण संसार-भर में समुद्री जीवन के कम होने में एक तत्त्व रहा है, रिपोर्ट कहती है कि वाणिज्यिक मछुवाही उद्योग द्वारा बहुत ज़्यादा मछली पकड़ना, अटलान्टिक और प्रशांत महासागर तथा ब्लैक और भूमध्य सागर में पकड़ी गयीं मछलियों की कम होती संख्या का मुख्य कारण है। आजाँस् फ्राँस-प्रॆस समाचार सेवा कहती है कि वर्ल्डवॉच रिपोर्ट के अनुसार, कुछ क्षेत्रों में पकड़ ३० प्रतिशत तक कम हो गयी है और अगर समुद्र के संसाधनों का वर्तमान कुप्रबन्ध जारी रहा, तो अक्षरशः लाखों मछुआरे जल्द ही बेरोज़गार हो जाएँगे।
घोंसले के सूप की बढ़ती क़ीमत
हाँग काँग और अन्य एशियाई शहरों के भोजनालयों में, एक पसन्दीदा व्यंजन है, खाने-योग्य घोंसला, जिसका अकसर सूप बनाया जाता है। इन्टरनैश्नल हैरल्ड ट्रिब्यून (अंग्रेज़ी) के अनुसार, अनेक चीनी पकाए गए घोंसलों को न सिर्फ़ एक स्वादिष्ट भोजन बल्कि एक स्वास्थ्यवर्धक टॉनिक भी समझते हैं। परिरक्षण दल अनुमान लगाते हैं कि १९९२ में सिर्फ़ हाँग काँग ने क़रीब १ करोड़ ७० लाख बतासी घोंसलों का इस्तेमाल किया था। लेकिन, बहुत ज़्यादा घोंसले एकत्रित करने से, घोंसलों की थोक क़ीमत अपूर्व $५०० प्रति किलो तक बढ़ गयी है, और अच्छी क्वालिटी के घोंसले इससे आठ गुना क़ीमत में बिक सकते हैं। घोंसले बनानेवाले बतासियों के लिए इसकी क़ीमत कहीं ज़्यादा है। घोसलों को एकत्रित करते वक़्त अंडों और चूज़ों के नाश का परिणाम कुछ प्रकार के बतासियों की संख्या में कमी और दूसरों का विलोपन हुआ है।
क्षयरोग से संघर्ष में हारना
पैरिस में ला पिटये-सालपेत्रीअर हॉस्पिटल के जीवाणुविज्ञान-विषाणुविज्ञान विभाग के प्रमुख, प्रोफ़ॆसर ज़ाक ग्रोसे के अनुसार, रोग के विरुद्ध लड़ाई में, क्षयरोग से संघर्ष “विश्वव्यापी स्तर पर पूरी तरह असफल रहा है।” अगर मरीज़ों का इलाज न किया गया, तो क्षयरोग की मृत्यु दर लगभग ५० प्रतिशत है। जबकि संसार के लगभग आधे क्षयरोग पीड़ितों के लिए रोग निदान और इलाज उपलब्ध नहीं है, प्रोफ़ॆसर ग्रोसे ने स्पष्ट किया कि वास्तविक संकट यह है कि टॆक्नॉलॉजी में विकसित देशों में, जहाँ ऐन्टीबायोटिक सहज रूप से उपलब्ध हैं, सिर्फ़ आधे लोग जिन्हें यह रोग है अपना इलाज पूरी तरह ठीक होने तक जारी रखते हैं। “बाक़ी के आधे लोग अपना इलाज नहीं करवाते, या बहुत ही अनियमित रूप से करवाते हैं, जिसके कारण मृत्यु दर काफ़ी ज़्यादा बढ़ जाती है (इलाज किए जानेवालों का २५ प्रतिशत) और साथ ही ट्यूबरकल बैसिलस की एक ऐसी नस्ल पैदा होती है जो ऐन्टिबायोटिक का प्रतिरोध करती है।”
तारीफ़ तनाव को रोकती है
जर्मनी में हर साल दिल का दौरा पड़ने से २,००,००० लोगों की मौत होती है। इसका मुख्य कारण क्या है? “तनाव,” समाचारपत्र सूडोश सीतुँग रिपोर्ट करता है, क्योंकि जर्मनी में काम करना “पूर्ण वचनबद्धता, निरन्तर तनाव” की माँग करता है। काम की जगह पर तनाव का परिणाम बीमारी की वजह से अनुपस्थिति की ऊँची दर होती है और यह शारीरिक या भावात्मक थकान की ओर ले जा सकता है। हर दूसरी नर्स तनाव के लक्षणों से पीड़ित होती है, और ३ में से १ शिक्षक समयपूर्व सेवानिवृत्ति लेता है, अनेक “दिमाग़ी तनाव” के कारण ऐसा करते हैं। स्वास्थ्य बीमा कम्पनियाँ अध्ययन कर रही हैं कि काम की जगह पर तनाव को कैसे कम करें। एक अध्ययन, जो सैंकड़ों मध्यम वर्ग की कम्पनियों में किया गया, दिखाता है कि कौन-सी बात योगदान देनेवाला तत्त्व प्रतीत होती है: जिन कर्मचारियों का सर्वेक्षण किया गया उनमें, ४४ प्रतिशत को काम की जगह पर कभी कोई तारीफ़ नहीं मिलती थी।
समय-पूर्व वृद्धावस्था को रोकें
“लोग घरों को बच्चों के अनुकूल करते हैं। क्यों न उन्हें वृद्ध जनों के अनुकूल करें?” साओ पौलो यूनीवर्सिटी का जरा-चिकित्सक, वीलसीन ज़ाकोब फीलयो पूछता है। वृद्ध जनों के लिए ज़्यादा सुरक्षित घरों के अलावा, वह सुझाव देता है कि वे अपनी पेशी-तंत्र को मज़बूत करने के लिए व्यायाम करें ताकि गिरने के ख़तरे को कम करें। दीर्घायु के सबसे बड़े शत्रु कौन हैं? साओ पौलो यूनीवर्सिटी के ही प्लास्टिक शल्यचिकित्सक, रोज़र्यो ईज़ार नवस के अनुसार, ये शत्रु हैं “स्थानबद्ध जीवन-शैली, असंतुलित आहार (विशेषकर भोजन जिसमें बहुत चर्बी हो), धूम्रपान, हद से ज़्यादा शराब पीना, तनाव, नींद की कमी।” ज़ॉरनॉल डा टारडे समझाता है कि अत्यधिक तनाव प्रतिरक्षण तंत्र को कमज़ोर कर देता है, “जो कि विभिन्न रोगों और साथ ही वृद्धावस्था के आगमन से नज़दीकी से जुड़ा हुआ है।” डॉ. नवस यह भी दावा करता है: “जीवन में अरुचि समय-पूर्व वृद्धावस्था का एक मुख्य कारण है।”
शरीर-छेदन में स्वास्थ्य ख़तरा
“लोग शरीर के ऐसे अंगों में छेद करवा रहे हैं जिनमें सालों पहले छेद नहीं करवाया जाता था,” कनाडा में कैलगरी स्वास्थ्य सेवाओं के लिए परिवेश-सम्बन्धी स्वास्थ्य का निदेशक, जॉन पॆलटन कहता है। द वैन्कूवर सन (अंग्रेज़ी) में एक रिपोर्ट के अनुसार, इसमें भौंहे, होंठ, जीभ और नाभि सम्मिलित हैं। इस बढ़ते हुए फ़ैशन से एड्स और हॆपटाइटिस बी और सी के फैलने के डर ने अल्बर्टा हॆल्थ इन्स्टीट्यूट में ‘परिवेश-सम्बन्धी स्वास्थ्य सेवाओं’ को शरीर-छेदन को नियंत्रित करने के लिए निर्देशन देने को उकसाया है। “नए दर्जे आख़िरकार सब प्रकार की अनियंत्रित व्यक्तिगत सेवाओं को समाविष्ट करेंगे, जैसे कि दाग़ना, बालों की वैक्सिंग करवाना, गोदना, इलॆक्ट्रोलिसिस और संवेदनात्मक वंचन,” और इन नियमों की एक रूपरेखा पर सार्वजनिक स्वास्थ्य अधिकारियों और इस उद्योग द्वारा पुनर्विचार किया जाएगा, रिपोर्ट आगे कहती है। जहाँ तक कान में छेद करनेवाले शरीर-छेदन उपकरण के प्रयोग की बात है, एक व्यक्ति जो यह प्रक्रिया करता है स्वीकार करता है: “हमने संक्रमण लगने के कारण लोगों को अस्पताल जाते हुए देखा है। असल में यह सचमुच डरावना है।”
क़ैद दर बढ़ रही है
जैसे-जैसे संसार-भर में अपराध बढ़ता है, वैसे-वैसे क़ैद दर बढ़ती है। रूस की क़ैद दर ५५८ प्रति १,००,००० व्यक्ति है, और उसके बाद है अमरीका जिसकी ५१९ प्रति १,००,००० व्यक्ति है। उसके बाद आता है दक्षिण अफ्रीका जिसकी ३६८ है, सिंगापुर जिसकी २२९ है, और कनाडा जिसकी ११६ है। भूतपूर्व सोवियत संघ के टूटने के समय से, रूस में हत्या और अन्य अपराध बहुत ज़्यादा बढ़े हैं, और वहाँ क़ैद की दर बढ़कर अमरीका से भी आगे निकल गयी है, जो अपराध दर में पहले सबसे आगे था। अनेक यूरोपीय राष्ट्रों में लोगों को गिरफ़्तार करने की दर अमरीका की क़ैद दर का छठवाँ भाग क्यों है? “एक स्पष्टीकरण तो यह है कि जबकि राष्ट्रों के बीच कुल अपराध दर में फर्क़ कम है, हिंसा अमरीका, रूस और दक्षिण अफ्रीका में ज़्यादा व्याप्त है,” यू.एस.न्यूज़ एण्ड वर्ल्ड रिपोर्ट (अंग्रेज़ी) कहता है। “कारण चाहे जो भी हों, क़ैद की दरों में भिन्नता संभवतः बढ़ेगी।”
विश्वविद्यालय संकट में
“अफ्रीका के उपेक्षित विश्वविद्यालय बंद होने की स्थिति में आ पहुँचे हैं,” जोहानिसबर्ग का वीकेन्डस्टार (अंग्रेज़ी) रिपोर्ट करता है। पैसों की कमी के कारण, कम्प्यूटर कम हैं, और कुछ मामलों में टेलिफ़ोन की तारें काट दी गयी हैं। एक विश्वविद्यालय के ३५,००० पंजीकृत विद्यार्थी हैं, लेकिन आरंभ में इसे सिर्फ़ ५,००० के लिए बनाया गया था। यूगान्डा में एक भूतपूर्व प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय में, प्राध्यापकों के सिर्फ़ आधे स्थान भरे हुए हैं। इस विश्वविद्यालय में एक प्राध्यापक की तनख़ाह प्रत्यक्षतः हर महीने लगभग $१९ है। हड़ताल करनेवाले प्राध्यापकों या विद्यार्थियों के परिणामस्वरूप कुछ विश्वविद्यालय महीनों से बंद पड़े हैं। केन्या के एक प्रोफ़ॆसर ने टिप्पणी की: “अफ्रीका में शैक्षिक आत्म-संहार बद से बदतर होता जा रहा है।”