विश्व-दर्शन
बच्चे नशीली दवाओं के आगे क्यों झुक जाते हैं
“हम अपने बच्चों को नशीली दवाओं और शराब के चक्कर में पड़ने से कैसे दूर रख सकते हैं और ऐसा क्यों है कि कुछ बच्चों को ‘साफ़-साफ़ मना करने’ में दूसरे बच्चों से ज़्यादा आसानी होती है?” ये सवाल हाल ही में पैरॆंट्स (अंग्रेज़ी) पत्रिका में उठाए गए, जिसने यूनिवर्सिटी ऑफ़ ऐरिज़ोना, अमरीका में अनुसंधायकों द्वारा किए गए एक अध्ययन में कुछ संभव जवाबों का पता लगाया। अध्ययन ने छठवीं और सातवीं कक्षा के लगभग १,२०० बच्चों की जाँच की, और ख़तरे के अलग-अलग दस तत्वों पर ध्यान केंद्रित किया जिन पर बच्चों को नशीली दवा और शराब के दुष्प्रयोग के लिए प्रभावित करने का संदेह है। दो प्रमुख तत्व थे “सहपाठी दबाव के प्रति प्रवण होना, और ऐसे दोस्तों का होना जिन्होंने शराब या नशीली दवाओं का इस्तेमाल किया था।” दूसरी ओर, अध्ययन ने पाया कि शैक्षिक उपलब्धि एक निवारक भूमिका अदा कर सकती है—शायद इसलिए कि यह स्वाभिमान बढ़ाती है और विरल ही द्रव्य का दुरुपयोग करनेवालों के साथ दोस्ती को बढ़ावा देती है।
भयंकर-रोमांच का सम्मोहन
“किशोरों को भयंकर-रोमांच का चसका लग गया है,” कनाडा का द ग्लोब एण्ड मेल (अंग्रेज़ी) रिपोर्ट करता है। अख़बार कहता है कि “भयंकर-रोमांच ट्रेडिंग कार्ड्स, कॉमिक पुस्तकें, कलाकृति, फ़िल्में और यहाँ तक कि संगीत भी होते हैं, किशोरों के दायरों में सब कुछ गरम है।” पाठ्य सामग्री की ऐसी दहलानेवाली रुचि को पूरा करने के लिए, एक पुस्तक प्रकाशक ने किशोरों के लिए भयंकर-रोमांच की किताबों का प्रकाशन साल में चार से बढ़ाकर महीने में एक कर दिया। अन्य प्रकाशक एक महीने में दो भयंकर-रोमांच की किताबें प्रकाशित करते हैं। भयंकर-रोमांच का ऐसा सम्मोहन क्यों? लेखक शॉन रीअन के अनुसार, “एक ऐतिहासिक दृष्टिकोण से, जब कोई बेचैनी या दुःख होता है, तब भयंकर-रोमांच हमेशा लोकप्रिय रहा है।” द ग्लोब के अनुसार, श्री. रीअन ने कहा: “१९९० के दशक में, हम स्पष्ट रूप से सरकार से असंतुष्ट हैं, अपराध से दुःखी और भयभीत हैं। ये ऐसे समय हैं जब भयंकर-रोमांच लोकप्रिय बन जाता है।”
ठीक तरह से हाथ धोना
डॉक्टर कहते हैं कि नियमित रूप से अपने हाथ धोने का सरल कार्य “उन कीटाणुओं और वाइरसों को दूर करने में मदद करता है जिनके कारण सर्दी, शीतज्वर, गल शोथ, पेट की गड़बड़ी और अधिक गंभीर बीमारियाँ होती हैं,” द टोरण्टो स्टार (अंग्रेज़ी) रिपोर्ट करता है। अख़बार आगे कहता है: “मॉन्ट्रियल महामारीविज्ञानी डॉ. चूल्यो सोटो द्वारा किया गया . . . अध्ययन दिखाता है कि ठीक तरह से हाथ धोना वाइरल और जीवाण्विक बीमारियों के फैलाव को उल्लेखनीय रूप से कम कर सकता है—ऊपरी श्वसन-सम्बन्धी बीमारियों में कुछ ५४ प्रतिशत और दस्त के मामलों में ७२ प्रतिशत।” द कॆनेडियन पेडियाट्रिक सोसाइटी सुझाती है कि हाथों को ठीक से धोने में, बहते पानी में हाथ भिगोना, ३० की गिनती तक उन्हें साबुन से घिसना, ५ की गिनती तक उन्हें बहते पानी में धोना, और अन्त में, दूसरों द्वारा अप्रयुक्त तौलिए से या पेपर तौलिए से या एक हैन्ड्स-फ्री ड्रायर से हाथ सुखाना शामिल होना चाहिए। रॆस्तराँ, हॉट डॉग दुकानों, और भोजनालयों में खाना देनेवालों को हाथ धोने पर ख़ासकर बारीकी से ध्यान देने की ज़रूरत है।
ग़रीबों की दुर्दशा
कोपनहेगन, डॆनमार्क में हुए हाल ही के संयुक्त राष्ट्र के एक सम्मेलन, सामाजिक विकास के लिए विश्व शिखर-सम्मेलन के अनुसार, संसार-भर में ग्रामीण ग़रीब बेहद तकलीफ़ में हैं। इस शिखर-सम्मेलन में यह रिपोर्ट किया गया कि एक अरब से भी ज़्यादा लोग दयनीय ग़रीबी में रहते हैं और उनमें से क़रीब आधे लोग रोज़ भूखे रहते हैं। बेरोज़गारी इस समस्या में योगदान देती है। बेकार या अपूर्ण रोज़गार करनेवालों की कुल संख्या के अनुमान ८० करोड़ जितने ऊँचे हैं। इन सब के मद्दे नज़र, संसार के कुछ ३० प्रतिशत नियोज्य श्रमिक दल प्रभावकारी रूप से नियोजित नहीं है। लगभग १.१ अरब से १.३ अरब लोग प्रति दिन एक (अमरीकी) डॉलर से कम की आमदनी पर जीते हैं। निरक्षरता से, जो निश्चित ही समस्या को तीव्र करती है, अब कुछ ९०.५ करोड़ लोग पीड़ित हैं। उनकी संख्या शीघ्रता से कम नहीं हो रही है; १३ करोड़ बच्चे स्कूल नहीं जाते हालाँकि वे योग्य हैं, और उनकी संख्या वर्ष २००० तक १४.४ करोड़ तक बढ़ने की अपेक्षा है।
उत्तर-जीवन या विभ्रम?
प्रसार माध्यम अकसर “मृत्यु-निकट अनुभवों” के वृत्तान्तों का प्रचार करते हैं जहाँ उन मरीज़ों ने, जो मृत्यु के निकट थे, बाद में उत्तर-जीवन की झलक देखने का दावा करते हैं। जर्मनी के तंत्रिका-विज्ञानियों के एक दल के प्रयोगों ने हाल ही में सुझाया कि ऐसे अनुभव ऑक्सिजन के अभाव के कारण होते हैं, जिसके परिणामस्वरूप विभ्रम होता है। डच अख़बार डा कोई एन एमलॉन्डीर के अनुसार, उस दल ने ४२ तन्दुरुस्त युवाओं का अध्ययन किया जिन्हें अति-संवातन द्वारा अधिकतम २२ सेकण्ड के लिए बेहोश किया गया था। उसके बाद, इन युवाओं ने अनुभूतियों और दृश्यों का वर्णन किया जो “मृत्यु-निकट अनुभवों” के उल्लेखनीय रूप से समान थे। कुछ युवाओं ने शोख रंग और प्रकाश देखने, ख़ुद को विहंगम दृष्टि से देखने, सुखद माहौल में प्रिय जनों को देखने, आदि का रिपोर्ट किया। अधिकांश युवाओं ने इन अनुभूतियों को सुखद और शान्तिमय के तौर पर वर्णन किया—इस हद तक कि वे फिर होश में नहीं आना चाहते थे।
आधी पृथ्वी वीरान
“मनुष्यजाति के भरसक प्रयासों के बावजूद, पृथ्वी ग्रह के भूभाग का आधे से थोड़ा ज़्यादा भाग अब भी वीरान है,” न्यू साइंटिस्ट (अंग्रेज़ी) पत्रिका रिपोर्ट करती है। एक नए अध्ययन ने “पाया कि नौ करोड़ वर्ग-किलोमीटर भूमि, कुल भूमि क्षेत्र का क़रीब ५२ प्रतिशत भाग अब भी अस्पृष्ट है।” यह १९८९ के सर्वेक्षण के नतीजों से इतना ज़्यादा क्यों है, जिसने इस ग्रह के केवल एक-तिहाई भाग को वीराने के रूप में सूचीबद्ध किया? क्योंकि कन्ज़र्वेशन इन्टरनैशनल के ली हाना के इस नवीनतम अध्ययन में, पहले इस्तेमाल किए गए न्यूनतम ४,०००-वर्ग-किलोमीटर के बजाय, १,००० वर्ग-किलोमीटर जितने छोटे क्षेत्र भी शामिल किए गए। लेख ने कहा कि “एक और भी गहन अध्ययन ग्रह के शायद और अधिक ऐसे भाग को उघारे जो मनुष्यों द्वारा अस्पृष्ट है।” बहरहाल, हाना ने बताया कि अस्पृष्ट भूमि का काफ़ी भाग “चट्टान, बर्फ़ और उड़ती हुई रेत है,” जो दोनों, मनुष्यों और वन्य जीव-जन्तुओं के लिए रहने लायक़ नहीं है। “ग्रह के क़रीब तीन-चौथाई से भी ज़्यादा भाग में नैसर्गिक आवास की जगह मानवी संस्पर्श ने ले ली है,” उसने कहा। सर्वेक्षण के तीन वर्ग थे: अस्पृष्ट (५२ प्रतिशत), अंशतः स्पृष्ट (२४ प्रतिशत), और शासित (२४ प्रतिशत)।
जानवरों के लिए यातायात बत्तियाँ?
जानवरों का सड़क पार करना वाहन-चालकों और जानवरों, दोनों के लिए काफ़ी समय से एक संभाव्य ख़तरा रहा है। फ्रांस की प्रकृति पत्रिका टेर सोवाज़ रिपोर्ट करती है कि रात में जंगल के रास्तों को पार करनेवाले जानवरों के कारण हुई अनेक दुर्घटनाओं के परिणामस्वरूप, फ्रॆंच नैशनल ऑफ़िस ऑफ़ फॉरेस्ट्स के तकनीशियनों ने एक आश्चर्यजनक खोज की है। जानवर लाल बत्ती देखकर रुक जाते हैं! प्रयोगों ने दिखाया है कि लाल प्रकाश की बारम्बारता के असर से जानवर अल्पकालिक रूप से निश्चल हो जाते हैं। फ्रांस में जंगल के रास्तों पर, आनेवाली गाड़ियों के हॆडलाईट्स के प्रकाश को खींचनेवाले लाल परिवर्तक लगाए गए हैं, लेकिन प्रकाश को चालक की ओर पुनःप्रतिबिम्बित करने के बजाय, यह जंगल में प्रतिबिम्बित किया जाता है। रास्ते पर आने के पहले, अब जानवर प्रकाश के ग़ायब होने तक रुकते हैं।
बीमारी में शैय्या-विश्राम के नुक़सान
“बीमारी में लम्बे समय तक शैय्या-विश्राम, मरीज़ों को लाभ की तुलना ज़्यादा नुक़सान पहुँचा सकता है,” लंदन का द टाइम्स् (अंग्रेज़ी) दावा करता है। कुछ ५० साल पहले, चिकित्सक सर रिचर्ड ऐशर ने इस मानक चिकित्सीय प्रथा पर सवाल उठाया और घनास्रता, माँसपेशिय तान का क्षय, हड्डियों में कैल्शियम की कमी, पथरी, क़ब्ज़, और हताशा जैसे स्वास्थ्य ख़तरों पर ध्यान आकर्षित किया। तब से अध्ययनों ने इस चेतावनी की पुष्टि की है, और शव-परीक्षाएँ दिखाती हैं कि घनास्रता के जोखिम के बाद घातक फुप्फुसीय रक्तस्त्रोतरोधन, मृत्यु के पहले शैय्या-विश्राम करने के समय से सीधे रूप से सम्बन्धित है। दूसरी ओर, डॉक्टर गृध्रसी और गर्भावस्था के आख़िरी चरणों में जटिलताओं के कारण तीव्र पीठ दर्द के मामलों में शैय्या-विश्राम का समर्थन करते हैं। वाक़ई, अन्य तीव्र और गंभीर बीमारियों में, विश्राम करने के सिवाय शायद सचमुच और कोई चारा नहीं हो। लेकिन, डॉक्टर विश्वास करते हैं कि एक बार संकट टल जाने के बाद, बिस्तर से उठना और घूमना-फिरना स्वास्थ्यलाभ को तेज़ करता है।
संतानहीन दम्पतियों के लिए नयी आशा?
एक नयी चिकित्सीय तकनीक बाँझ दम्पतियों को अपने बाँझपन को दूर करने के लिए मदद कर रही है, फ्रांस की समाचार एजेन्सी फ्रांस-प्रॆस रिपोर्ट करती है। इस तकनीक में, जिसकी शुरूआत डॆनमार्क में हुई थी, स्त्री के अन्दर एक अण्डाणु पर एक नर शुक्राणु रखने के लिए काँच की बहुत ही नुकीली सुई का इस्तेमाल करना शामिल है। हालाँकि इस तकनीक में बहुत सावधानी बरतनी पड़ती है और बड़ी कुशलता की ज़रूरत होती है (एक शुक्राणु का माप एक मिलीमीटर का दो हज़ारवाँ भाग है; एक अण्डाणु, एक मिलीमीटर का दसवाँ भाग), यह तरीक़ा सफल साबित हुआ है। इसमें अतिरिक्त लाभ है कि यह स्त्री के शरीर के अन्दर होता है और किसी गुमनाम दाता के बजाय उसके पति का शुक्राणु इस्तेमाल किया जाता है—अतः नाज़ुक नैतिक और धार्मिक सवालों को टाला जाता है। क्योंकि सभी बाँझ दम्पतियों में से एक तिहाई दम्पतियों में निम्न-गुणवत्ता का शुक्राणु बाँझपन का कारण होता है, इस तकनीक को इस्तेमाल करनेवाला एक डॉक्टर महसूस करता है कि अब अनेक दम्पतियों को परिवार शुरु करने की नवीकृत आशा हो सकती है।