अफ्रीकी स्कूल उसने क्या सिखाया?
घाना में सजग होइए! संवाददाता द्वारा
अफ्रीकी स्कूल? कुछ पाश्चात्य लोग यह जानने पर शायद चकित होंगे कि एक ऐसी व्यवस्था बीते समयों में वास्तव में अस्तित्व में थी। दुःख की बात है, अफ्रीकी व्यक्तियों का एक भाला पकड़े हुए धमकानेवाले जंगली के तौर पर चलचित्रों द्वारा प्रस्तुत छवि को लोगों के मनों से निकलने में समय लगा है। अनेक लोग यह कल्पना ही नहीं कर सकते कि प्राचीन अफ्रीकी को किसी तरह शिक्षित समझा जा सकता था।
यह वास्तव में सच है कि अफ्रीकी जिनकी परवरिश परंपरागत समाजों में होती थी किताबी पढ़ाई और औपचारिक कक्षा प्रशिक्षण नहीं प्राप्त करते थे। लेकिन, यूरोपीय रीति की औपचारिक शिक्षा को इस महाद्वीप में लाने से काफ़ी समय पहले, अनेक अफ्रीकी समाजों में प्रभावकारी शिक्षण प्रणालियाँ थीं जो बच्चों को अपनी स्थानीय संस्कृति में कार्य करने और उन्नति करने के लिए सुसज्जित होने में मदद करती थी। उदाहरण के लिए घाना के त्वी-भाषी लोग, अकान के शिक्षण के बारे में विचार कीजिए।
गृह शिक्षण
अकान लोगों के बीच घर बुनियादी विद्यालय था। बच्चे का शिक्षण तब शुरू होता था जब वह अपने माता-पिता से बोलना सीखता। उसी समय, उसे सही शिष्टाचार के बारे में अपने पहले पाठ भी प्राप्त होते थे। उदाहरण के लिए, जब घर पर आया एक अतिथि एक बच्चे का अभिवादन करता, तो बच्चे को सही, शिष्ट जवाब सिखाया जाता। बाद में, जब बच्चे को दूतकार्य के लिए भेजा जाता, उसे किसी भी संदेश को देने का शिष्ट तरीक़ा बताया जाता।
अतः अकान का शैक्षिक तत्त्वज्ञान बाइबल नीतिवचन २२:६ में व्यक्त किए गए तत्त्वज्ञान से भिन्न नहीं था: “लड़के को शिक्षा उसी मार्ग की दे जिस में उसको चलना चाहिये, और वह बुढ़ापे में भी उस से न हटेगा।” माता-पिता, ख़ास तौर पर पिता, शिशु-पालन में दिलचस्पी लेता था। एक अकान नीतिवचन है: “यदि एक बच्चा अपनी माँ जैसा नहीं बनता तो वह अपने पिता जैसा बनता है।”
जैसे-जैसे बच्चा बड़ा होता, वैसे-वैसे उसके शिक्षण की संपूर्णता भी बढ़ती। जीवन के बारे में सबक़ किताबों के द्वारा नहीं, परन्तु, मनगढ़ंत कहानियों द्वारा बताए जाते थे। जैसे वे कहानियाँ जो एक मिथ्य मकड़ी के बारे में है जिसे क्वाकू एनानसे कहा जाता है। बच्चे इन कहानियों को कितना पसन्द करते थे! शाम की हवा में, या एक ठण्डी चाँदनी रात को, वे आग के चारों ओर बैठकर विजय और पराजय की इन कहानियों का पूरा आनन्द लेते।
एक विख्यात कहानी बताती है कि एनानसे ने संसार की सारी बुद्धि को एक घड़े में डालने के लिए पूरी पृथ्वी का सफ़र किया। अपने कार्य को प्रतीयमानतः पूरा करने पर उसने घड़े को एक पेड़ पर ऊँचा लटकाने का निर्णय किया ताकि कोई अन्य व्यक्ति उस बुद्धि तक पहुँच न सके। उसने पेड़ पर मुश्किल चढ़ाई शुरू की, और बुद्धि से भरा घड़ा धागे से बंधा उसके पेट से लटका हुआ था। जब वह प्रयास कर रहा था, उसका पहलौठा पुत्र, टिकूमे आया और एनानसे को पुकारने लगा: “आह, पिताजी! कौन है जो अपने पेट पर घड़ा रखकर पेड़ पर चढ़ता है? उसे अपने पीठ पर क्यों नहीं रखते ताकि आपको चढ़ने में आसानी हो?” एनानसे ने नीचे अपने पुत्र की ओर देखा और चिल्लाया: “तुमने मुझे सिखाने की जुर्रत कैसे की?”
लेकिन अब यह स्पष्ट था कि उसके घड़े के बाहर अब भी कुछ बुद्धि बची थी! इस समझ से क्रोधित, एनानसे ने घड़े को नीचे फेंका, जिससे वह टूट गया और सारी बुद्धि बिखर गयी। जो वहाँ पहुँचनेवाले पहले लोग थे वे सबसे बुद्धिमान बन गए। सबक: बुद्धि पर किसी एक व्यक्ति का अधिकार नहीं। अतः एक अकान कहेगा: “एक व्यक्ति से एक समिति नहीं बनती।”—नीतिवचन १५:२२; २४:६ से तुलना कीजिए।
जीवन के कौशल
अकान शिक्षा में जीवन के कौशल का प्रशिक्षण भी शामिल था। अधिकतर लड़के उनके पिता के व्यवसाय को अपनाते थे—सामान्यतः खेती। लेकिन अन्य कौशल भी थे जिन्हें सीखा जाना था, जैसे शिकार करना, ताड़ी निकालना, और टोकरी बुनाई जैसे शिल्प। लकड़ी की नक़्क़ाशी करना या बुनाई करने के ज़्यादा परिष्कृत कार्यों के लिए लड़कों को उत्कृष्ट शिल्पियों के पास शिक्षित किया जाता था। और लड़कियाँ? उनका प्रशिक्षण मुख्यतः वनस्पति तेल निकालना, साबुन और बर्तन बनाना, सूत बुनना, और ऐसे अन्य घरेलू कौशल पर केंद्रित था।
विज्ञान भी पारंपरिक स्कूल के “पाठ्यक्रम” में शामिल था। औषधीय जड़ी-बूटियों का, उनके बनाने और तैयार करने का ज्ञान पिता से पुत्र को या दादा से पोते को दिया जाता था। एक बच्चा उँगलियों, और साथ ही कंचों, पत्थरों और डंडे पर निशानों का इस्तेमाल करते हुए संख्याओं की गिनती करना भी सीखता था। ओवारे और ड्राउट जैसे खेलों ने गणना के कौशल को भी बढ़ाया।
खुले अदालत सत्रों में उपस्थित होने से, युवा अकान राजनैतिक और न्यायिक प्रणालियों में अंतर्दृष्टि प्राप्त करते। अंत्येष्टियाँ और साथ ही उत्सव के अवसर, स्थानीय शोकगीत, काव्य, इतिहास, संगीत, बाजा बजाना, और नृत्य को आत्मसात करने के मौक़े थे।
सामुदायिक ज़िम्मेदारी
अकान लोगों के बीच, बच्चा समाज से वियुक्त नहीं था। छोटी उम्र से ही उसे समुदाय के प्रति उसकी ज़िम्मेदारी की पहचान करायी जाती थी। इस बारे में वह अपने पहले पाठ तब सीखता जब वह अपने दोस्तों के साथ खेलता। बड़े होने पर वह सामुदायिक मज़दूरी जैसे सहकारी कार्यों में भाग लेता। जब वह ग़लत व्यवहार करता, तब उसे न केवल उसके माता-पिता द्वारा परन्तु समुदाय के किसी भी वयस्क सदस्य द्वारा सज़ा दी जाती। वास्तव में, यह माना जाता था कि किसी भी ग़लत व्यवहार करनेवाले बच्चे को अनुशासित करना एक वयस्क की नैतिक बाध्यता थी।
ऐसा अनुशासन अच्छी तरह से स्वीकार किया जाता था क्योंकि बच्चों को बड़ों के प्रति गहरा आदर दिखाना सिखाया जाता था। असल में, अकान लोग कहते थे: “एक वृद्ध स्त्री केवल एक व्यक्ति की ही दादी नहीं होती है।” अतः बुज़ुर्गों के प्रति आदर और उनकी सेवा एक बाध्यता थी। और कोई भी बच्चे के बारे में, जो बिना उचित कारण के किसी वयस्क की सेवा करने से इनकार करता, उसके माता-पिता को बताया जाता था।
धार्मिक शिक्षा
अकान बहुत ही धार्मिक थे। प्रकृति और अज्ञात विश्व के प्रति उनकी एक श्रद्धालु मनोवृत्ति थी। यह सच है कि वे बहुदेववादी थे, अर्थात् अनेक ईश्वरों में विश्वास करनेवाले। फिर भी, अकान एक सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति के अस्तित्व पर विश्वास करते थे। (रोमियों १:२०) “परमेश्वर,” किसी भी ईश्वर, के लिए अकान शब्द है ओन्यामे। लेकिन, सृष्टिकर्ता का वर्णन करने के लिए वह शब्द अकान लोगों को अपर्याप्त प्रतीत हुआ। इसलिए, उन्होंने उसे ओन्यानकोपोन कहा, जिसका अर्थ है “वह परमेश्वर जो अकेला महान व्यक्ति है।”
छोटे ईश्वरों की उपासना की जाती थी यह मानते हुए कि वह उस एक महान परमेश्वर की व्यवस्था थी। उनके मन में यह वैसे ही था जैसे सर्वश्रेष्ठ मुखिया की सेवा उससे छोटे क्षेत्रीय मुखियाओं की सेवा करने के द्वारा की जाती थी। किसी भी हालत में हर अकान बच्चे को यह धर्म सिखाया जाता था।
आज पारंपरिक शिक्षा
हाल के वर्षों में लाखों अफ्रीकी लोगों ने बड़े शहरों में प्रवास बदला है जहाँ स्कूल शिक्षण ने शिक्षा के पारंपरिक तरीक़ों का लगभग स्थान ले लिया है। फिर भी, परंपरागत अफ्रीकी स्कूल कुछ समुदायों में, ख़ासकर ग्रामीण इलाकों सें अब भी कार्य करते हैं। जी हाँ, कुछ अफ्रीकी लोगों ने दोनों परंपरागत और औपचारिक शिक्षण का फ़ायदा प्राप्त किया है!
उदाहरण के लिए, घाना के ऎल्फ्रेड नामक एक मसीही सेवक के बारे में विचार कीजिए। एक औपचारिक शिक्षण का आनन्द लेने के बावजूद, पारंपरिक जीवन-रीति के अनेक पहलुओं का वह गहरा आदर करता है। ऎल्फ्रेड कहता है: “मेरे अनेक अनपढ़ रिश्तेदार, हालाँकि उनको केवल अपना पारंपरिक शिक्षण प्राप्त है, जीवन के व्यावहारिक पहलुओं के बहुत अच्छे शिक्षक है। उनमें से संगी मसीहियों के साथ कार्य करने से मैंने अपने संदेश को सरल, स्पष्ट रीति से प्रस्तुत करने के अनेक प्रभावकारी तरीक़े सीखे हैं। अतः मैं पारंपरिक पृष्ठभूमि वाले लोगों, साथ ही औपचारिक शिक्षा प्राप्त लोगों से बात कर सकता हूँ। अकसर, मैं एक नीतिवचन या दृष्टांत लेता हूँ जो इन लोगों द्वारा इस्तेमाल किया जाता है, उसे परिष्कृत करता हूँ, और उसे अपने बाइबल भाषणों में शामिल करता हूँ। यह अकसर श्रोतागण से उत्साहपूर्ण तालियाँ प्राप्त करता है! लेकिन, वास्तव में, श्रेय उन पारंपरिक तौर पर प्रशिक्षित पुरुषों और स्त्रियों को दिया जाना चाहिए।”
तो स्पष्टतः, अफ्रीकी स्कूल के अनेक प्रशंसनीय पहलू हैं और वह तिरस्कार नहीं, आदर के योग्य है। इसने शिल्प-वैज्ञानिक आश्चर्यों को उत्पन्न नहीं किया होगा, लेकिन इसने एक मज़बूत पारिवारिक ढाँचा, समुदाय का बोध, और कुशाग्रबुद्धि वाले, आकर्षक हास्य भाव वाले, तथा उदार, पहुनाई करने की प्रवृत्ति वाले लोगों को उत्पन्न किया है। अतः, यह आश्चर्य की बात नहीं है कि शहरों में रहनेवाले अनेक अफ्रीकी लोग, समय-समय पर उनसे भेंट करने के द्वारा उन रिश्तेदारों से संपर्क बनाए रखने की कोशिश करते हैं जो ग्रामीण इलाकों में रहते हैं। ऐसे अवसरों पर उलझनवाले क्षण भी होते हैं। जब पारंपरिक तौर-तरीक़ों की बात आती है तब शहर में रहनेवाले अकसर लड़खड़ा जाते हैं। उदाहरण के लिए, अकसर वे नहीं जानते कि जब आप एक समूह के साथ हाथ मिलाते हैं तो “उचित” तरीक़ा है, दाएँ से बाएँ जाना। फिर भी, ऐसी भेंट परस्पर स्फूर्तिदायक साबित हो सकती हैं।
फिर भी, यह स्वीकार किया जाना चाहिए कि जबकि अफ्रीकी पारंपरिक स्कूल ने श्रद्धा और भक्ति सिखाई उसने यहोवा और उसके पुत्र, यीशु मसीह के बारे में जीवनदायी ज्ञान को नहीं प्रदान किया। (यूहन्ना १७:३) यहोवा के साक्षी इस अत्यावश्यक ज्ञान को प्रदान करने के लिए अकान और अन्य अफ्रीकी जनजातीय समूहों के बीच कार्य करने में विशेषाधिकार प्राप्त हैं। उन्होंने हज़ारों अफ्रीकी लोगों को, जिन्हें औपचारिक शिक्षण प्राप्त नहीं है, पढ़ना और लिखना सिखाया है ताकि वे परमेश्वर के वचन का स्वयं अध्ययन कर सकें। उन लोगों के लिए जो “अपनी आध्यात्मिक ज़रूरत के प्रति सचेत हैं,” यह सबसे महत्त्वपूर्ण शिक्षण है जो एक व्यक्ति कभी संभवतः प्राप्त कर सकता है।—मत्ती ५:३, NW.
[पेज 25 पर तसवीरें]
अकान लोगों के बीच, बच्चे को समुदाय के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी की पहचान करायी जाती थी
[पेज 26 पर तसवीरें]
यहोवा के साक्षियों के राज्यगृह शैक्षिकता कक्षाएँ प्रदान करते हैं