प्रव्रजन के रहस्य भेदना
स्पेन में सजग होइए! संवाददाता द्वारा
एक पुराना गीत है जो सैन व्हान कैपस्ट्रानो के पुराने मिशन सैन व्हान कैपस्ट्रानो, कैलिफॉर्निया, अमरीका में अबाबील के लौटने के बारे में बताता है। यह कहा जाता है कि हर साल मार्च १९ के दिन, बिना भूले वे वहाँ अपने घोंसलों में लौटती हैं।
यूरोपीय अबाबील भी एक ऐसी ही समय-सारणी का पालन करती हैं। एक स्पैनिश कहावत पूर्वकथन करती है कि मार्च १५ तक अबाबील का गीत फिर एक बार सुनाई देगा।
उत्तरी गोलार्ध में, ग्रामीण लोगों ने वसन्त के परम्परागत अग्रदूत, अबाबील के लौटने का हमेशा स्वागत किया है। लेकिन कुछ जिज्ञासुओं ने यह भी सोचा कि वे अपने शीतकाल की अनुपस्थिति के दौरान कहाँ गयी थीं। कुछ लोगों ने सोचा कि उन्होंने शीतस्वाप किया होगा। दूसरों ने सुझाया कि वे चाँद पर गयी थीं—किसी व्यक्ति ने अनुमान लगाया कि वे वहाँ दो महीनों में उड़कर जा सकती हैं। १६वीं सदी के स्वीडन के एक आर्कबिशप ने दावा किया कि अबाबील ने शीतकाल पानी के अन्दर, झीलों और दलदल की तह में सिमटकर एकसाथ गुज़ारीं। उसके निबन्ध में एक दृष्टान्त भी शामिल था जिसमें एक मछुए को अबाबीलों से भरे हुए जाल को खींचते हुए दिखाया गया था। ये विचार अब विलक्षण से लगते हैं, लेकिन सच्चाई कल्पना के जितनी ही अजीब थी।
इस सदी के दौरान पक्षीविज्ञानियों ने अध्ययन करने के लिए हज़ारों अबाबीलों के पैरों में छल्ला डाला है। छल्ला डाले हुए इन पक्षियों की एक छोटी, लेकिन महत्त्वपूर्ण संख्या अपने शीतकाल के आवास में पायी गयी। हालाँकि यह अविश्वसनीय प्रतीत होता है, ब्रिटेन और रूस के अबाबील को घर से हज़ारों किलोमीटर दूर एकसाथ शीतकाल गुज़ारते हुए पाया गया—अफ्रीका के बिलकुल दक्षिण-पूर्वी छोर में। उनके कुछ उत्तर अमरीकी साथी दक्षिण में आर्जेंटीना या चिली तक उड़ते हैं। और अबाबील ही एकमात्र पक्षी नहीं हैं जो इतना लम्बा सफ़र तय करती हैं। उत्तरी गोलार्ध के करोड़ों पक्षी दक्षिणी गोलार्ध में शीतकाल गुज़ारते हैं।
पक्षीविज्ञानी यह पता लगाकर दंग रह गए कि अबाबील जितना एक छोटा पक्षी, अगले वसन्त में उसी घोंसले में लौटने से पहले २२,५०० किलोमीटर का फेरा मार सकता है। यह जानने से कि अबाबील कहाँ गयी थीं, केवल अधिक पेचीदा सवाल ही उठे हैं।
“अबाबील, तुम अपना घोंसला क्यों छोड़ जाती हो?”
एक पक्षी भूमण्डल की दूसरी छोर तक क्यों सफ़र करता है? या, जैसे एक स्पैनिश कहावत कहती है, “अबाबील, तुम अपना घोंसला क्यों छोड़ जाती हो?” ठण्ड के कारण या खाना ढूँढने के लिए? बेशक, ठण्डे मौसम के आगमन के बजाय खाने की स्थिर सप्लाई की उनकी ज़रूरत इसका उत्तर है, क्योंकि ऐसे अनेक छोटे पक्षी प्रव्रजन नहीं करते जिन्हें ठण्डे शीतकाल से बचने में कठिनाई होती है। लेकिन पक्षी प्रव्रजन खाने की तलाश में केवल भटकना नहीं है। मानव प्रव्राजकों से भिन्न, पक्षी प्रव्रजन करते हैं चाहे समय अच्छा हो या नहीं।
वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि छोटे दिन प्रव्रजन की ललक को प्रेरित करते हैं। पतझड़ में पिंजरे में रखे गए पक्षी बेचैन हो उठते हैं जब दिन का प्रकाश कम होता है। यह तब भी सच है जब यह प्रभाव कृत्रिम रूप से पैदा किया जाता है और जब पक्षियों को जाँचकर्ताओं द्वारा पाला गया है। यहाँ तक कि पिंजरे में रखा हुआ पक्षी उस दिशा की ओर मुड़ जाता है जिसे वह सहज-ज्ञान से जानता है कि उसे अपनी प्रव्रजन के उड़ान के दौरान जाना है। स्पष्ट रूप से, वर्ष के एक विशिष्ट समय और एक निश्चित दिशा में प्रव्रजन करने की ललक जन्मजात है।
पक्षी लम्बी दूरी सफलतापूर्वक कैसे तय करते हैं? अनेक पक्षी बग़ैर किसी भौगोलिक विशेषतावाले महासागरों और रेगिस्तानों को पार करते हैं, और वे ऐसा दिन और रात, दोनों में करते हैं। कुछ जातियों में छोटे पक्षी अनुभवी वयस्कों की मदद के बिना अपने आप सफ़र करते हैं। किसी तरह वे तूफ़ानों या एकतरफ़ी हवाओं के बावजूद अपने मार्ग से लगे रहते हैं।
यात्रा करना—ख़ासकर विशाल महासागरों या रेगिस्तानों को पार करते समय—किसी हालत में आसान नहीं है। इस पर प्रवीणता हासिल करने के लिए मनुष्य को हज़ारों साल लगे। बेशक, क्रिस्टोफर कोलम्बस ने उन्नतांशमापी और चुम्बकीय कम्पास जैसे यात्री सहायकों के बग़ैर समुद्र में इतने दूर जाने का ख़तरा कभी मोल न लिया होता।a ऐसा होने के बावजूद भी, अपनी पहली जलयात्रा के अन्त के समय, पक्षियों ने उसे बहामास का रास्ता दिखाया। प्राचीन समुद्र-यात्रियों के रिवाज़ पर चलते हुए, उसने अपनी दिशा दक्षिण-पश्चिम की ओर मोड़ी जब उसने प्रव्रजक भू-पक्षियों को उस दिशा में उड़ते देखा।
सफल यात्रा एक स्थिर मार्ग से लगे रहने के लिए व्यवस्था और साथ ही स्थान का पता लगाने के लिए एक साधन की माँग करती है। सरल शब्दों में कहें तो, आपको यह जानने की ज़रूरत है कि आप अपनी मंज़िल के सम्बन्ध में कहाँ हैं और वहाँ पहुँचने के लिए आपको कौन-सी दिशा से जाना है। हम मनुष्य औज़ारों के बग़ैर ऐसे कार्य करने के लिए सज्जित नहीं हैं—लेकिन प्रमाणतः पक्षी हैं। धैर्यपूर्वक, वैज्ञानिकों ने थोड़े-थोड़े आँकड़ें इकट्ठा किए हैं जो इस बात पर प्रकाश डालता है कि पक्षी उड़ने के लिए सही दिशा का पता कैसे लगाते हैं।
कुछ जवाब
गृहगामी कबूतर पक्षी की यात्रा के रहस्यों को उघारने पर तुले हुए वैज्ञानिकों के मनपसन्द “गिनी पिग्ज़” हैं। सहिष्णु कबूतरों को तुषारित काँच के “चश्मे” लगाए गए हैं जिससे कि वे विशिष्ट निशानों को नहीं देख सकें। दूसरों को मार्गदर्शन के लिए पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र का इस्तेमाल करने से रोकने के लिए पीठ पर चुम्बकीय थैलों से सज्जित किया गया है। यह निश्चित करने के लिए कि वे न जान सकें कि उन्हें कहाँ ले जाया जा रहा है, कुछ पक्षियों को उस जगह तक ले जाते समय नशीली दवा भी दी गयी थी जहाँ से उन्हें छोड़ा जाना था। चतुर कबूतरों ने प्रत्येक बाधा को एक-एक करके पार किया, हालाँकि कुछ बाधाओं के सम्मिश्रण ने उन्हें सफलतापूर्वक अपने घर लौटने से रोका। स्पष्ट रूप से, पक्षी केवल एक ही यात्रा व्यवस्था पर निर्भर नहीं होते। वे कौन-से तरीक़े इस्तेमाल करते हैं?
कृत्रिम सूर्य या रात के आसमान का इस्तेमाल करने के द्वारा किए गए प्रयोग प्रदर्शित करते हैं कि पक्षी दिन में सूर्य की मदद से और रात में तारों की मदद से यात्रा कर सकते हैं। तब क्या जब आसमान बादलों से घिरा हुआ है? पक्षी पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र को इस्तेमाल करते हुए भी मार्ग निर्धारित कर सकते हैं, मानो उनके पास अन्तः-निर्मित कम्पास हो। उसी घोंसले या अटारी में लौटने के लिए उन्हें परिचित चिन्हों को पहचानने में भी समर्थ होना चाहिए। इसके अतिरिक्त, अनुसंधायकों ने पाया है कि पक्षी आवाज़ और गंध के प्रति मनुष्यों से कहीं ज़्यादा संवेदनशील होते हैं—हालाँकि वे नहीं जानते कि यह क्षमता यात्रा के लिए किस हद तक इस्तेमाल की जाती है।
‘पक्षी-सम्बन्धी नक़्शे’ का रहस्य
हालाँकि ये सब अनुसंधान यह स्थापित करने में सहायक रहे हैं कि पक्षी एक निश्चित दिशा में कैसे उड़ सकते हैं, फिर भी एक उलझानेवाली समस्या बनी रहती है। विश्वसनीय कम्पास होना एक बात है, लेकिन घर लौटने के लिए, आपको एक नक़्शे की भी ज़रूरत है—पहले यह पता लगाने के लिए कि आप कहाँ हैं और फिर सर्वोत्तम मार्ग की योजना बनाने के लिए।
पक्षी कौन-से ‘पक्षी-सम्बन्धी नक़्शे’ इस्तेमाल करते हैं? घर से सैकड़ों किलोमीटर दूर एक अनजान जगह में ले जाए जाने के बाद वे कैसे जानते हैं कि वे कहाँ हैं? वे सर्वोत्तम मार्ग का पता कैसे लगाते हैं, जबकि उन्हें मार्गदर्शित करने के लिए प्रत्यक्षतः उनके पास कोई नक़्शा या दिशा-सूचक पट्ट नहीं होता?
जीवविज्ञानी जेम्स एल. गोल्ड कहता है कि एक पक्षी की “नक़्शे की ज्ञानेंद्रीय, पशु के आचरण में सबसे भ्रामक और जिज्ञासा पैदा करनेवाले रहस्य के तौर पर सम्भवतः अपना स्थान बनाए रखता हुआ प्रतीत होता है।”
रहस्य के पीछे का दिमाग़
एक बात बिलकुल स्पष्ट है कि प्रव्रजन सहज आचरण है। पक्षियों की अनेक जातियाँ वर्ष के निश्चित समय में प्रव्रजन करने के लिए आनुवंशिक रूप से क्रमादेशित होती हैं, और वे सफलतापूर्वक यात्रा करने के लिए ज़रूरी क्षमताओं और इन्द्रियों के साथ जन्म लेते हैं। यह सहज-बुद्धि की क़ाबिलीयत कहाँ से आयी?
तर्कसंगत रूप से, ये सहज-बुद्धि केवल एक बुद्धिमान सृष्टिकर्ता से आ सकती है, जो पक्षियों के आनुवंशिक कोड को “क्रमादेशित” कर सकता है। परमेश्वर ने कुलपिता अय्यूब से सीधे पूछा: “क्या एक बाज़ तुझ से सिखता है कि कैसे उड़े जब वह अपने पंख दक्षिण की ओर फैलाता है?”—अय्यूब ३९:२६, टुडेज़ इंग्लिश वर्शन, अंग्रेज़ी।
पक्षियों के प्रव्रजन पर सौ साल के गहन अनुसंधान के बाद वैज्ञानिक पक्षियों के छोटे मस्तिष्क का आदर करने लगे हैं। मुख्य यात्री मार्गों को चिन्हित करने के बाद, कुछ पक्षी जो अविश्वसनीय दूरी तय करते हैं इस पर वैज्ञानिक केवल दंग रह सकते हैं। पीढ़ी-दर-पीढ़ी, वसन्त और पतझड़ में, करोड़ों प्रव्रजक पक्षी इस भूमण्डल का चक्कर काटते हैं। वे दिन में सूर्य की मदद से या रात में तारों की मदद से यात्रा करते हैं। बादलों से भरे मौसम में वे पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र का इस्तेमाल करते हैं, और परिचित भू-दृश्यों को पहचानना जल्दी से सीख जाते हैं। सम्भवतः वे ख़ुद को गंध या अवश्रव्य तरंगों से परिचित भी करा लेते हैं।
वे अपने सफ़र की कैसे ‘योजना बनाते’ हैं, यह एक रहस्य बना रहता है। हम जानते हैं कि सभी अबाबील कहाँ जाती हैं; हम नहीं जानते कि वे वहाँ कैसे पहुँचती हैं। परन्तु, जब हम अबाबीलों को पतझड़ में एकसाथ उड़ते देखते हैं, हम केवल रुककर उस परमेश्वर की बुद्धि पर ताज्जुब कर सकते हैं जिसने उनके प्रव्रजन को सम्भव बनाया।
[फुटनोट]
a उन्नतांशमापी अक्षांश का परिकलन करने के लिए इस्तेमाल किया जाता था।
[पेज 18 पर बक्स]
विश्व चैम्पियन प्रव्रजक
दूरी। १९६६ की उत्तरी गर्मियों में, नॉर्थ वेल्स, ग्रेट ब्रिटॆन में एक उत्तर-ध्रुवीय कुररी के पैर में छल्ला डाला गया था। उसी साल के दिसम्बर में, वह—बिलकुल सही—न्यू साउथ वेल्स, ऑस्ट्रेलिया में प्रकट हुई। वह छः महीनों में १८,००० किलोमीटर से भी अधिक उड़ी थी। एक ऐसा कार्य शायद ध्रुवीय कुररियों के लिए बिलकुल साधारण है। एक साल के दौरान, उनमें से कुछ पक्षी नियमित रूप से भू-मण्डल का चक्कर काटते हैं।
गति। अमरीकी सुनहरा टिट्टिभ सम्भवतः सबसे तेज़ प्रव्रजक हैं। इनमें से कुछ पक्षियों ने, हवाई को अलूशन द्वीप समूह, अलास्का से अलग करनेवाले ३,२०० किलोमीटर लम्बे महासागर को केवल ३५ घंटों में पार किया है—९१ किलोमीटर प्रति घंटे की औसत रफ़्तार से!
सहनशक्ति। उत्तर अमरीका की काली फटकी, जिनका वज़न सिर्फ़ २० ग्राम है, सबसे लम्बी दूरी तक उड़नेवाले पक्षी हैं। दक्षिण अमरीका के अपने सफ़र में, वे केवल साढ़े-तीन दिन में ३,७०० किलोमीटर बिना-रूके उड़कर अतलांतक को पार करते हैं। इस असाधारण क्षमता-परीक्षा की तुलना बिना-रुके १,९०० बार चार-मिनट में एक किलोमीटर भागनेवाले व्यक्ति से की गयी है। यह उड़ान वज़न के बारे में सतर्क व्यक्तियों का सपना भी है—फटकी अपने शरीर के वज़न का लगभग आधा वज़न इस्तेमाल कर लेती है।
वक़्त की पाबंदी। अबाबील के अतिरिक्त, लगलग भी (ऊपर दिखाया गया है) वक़्त की पाबंदी के लिए प्रसिद्ध है। भविष्यवक्ता यिर्मयाह ने लगलग का वर्णन एक ऐसे पक्षी के रूप में किया जो अपने “आने” के और “अपने नियत समयों को जानता है।” (यिर्मयाह ८:७) क़रीब पाँच लाख लगलग अब भी इस्राएल से हर वसन्त में गुज़रते हैं।
यात्रा कौशल। मैंक्स शियरवॉटर्स के लिए घर के जैसी और कोई जगह नहीं है। ग्रेट ब्रिटॆन में अपने घोंसले से निकाले गए एक मादा पक्षी को कुछ ५,००० किलोमीटर दूर, बॉस्टन, अमरीका में छोड़ा गया। उसने अतलांतक को साढ़े बारह दिनों में पार किया और अपने घर उस हवाई-पत्र से पहले पहुँच गयी जिसमें उसके छोड़े जाने का विवरण दिया गया था। यह कार्य और भी आश्चर्यकारी था क्योंकि ये पक्षी अपने प्रव्रजक सफ़र में कभी उत्तर अतलांतक पार नहीं करते।
[पेज 16 पर तसवीर]
लगलग हर साल समय पर अपने घौंसले में लौटता है
[पेज 17 पर तसवीर]
प्रव्रजक सारस एक सामान्य V-बनावट में
[पेज 15 पर चित्र का श्रेय]
Photo: Caja Salamanca y Soria