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बाइबल का दृष्टिकोण

आपकी प्रार्थनाओं में आपकी भूमिका

एक ऐसे पहाड़ी ढाल पर जहाँ से शहर दिखता है, एक परेशान राजा अपने शानदार महल, फैली हुई राजधानी, और अपने घराने की दुःखद स्थिति पर विचार करने के लिए कुछ देर रुकता है। एक विशाल सेना दक्षिण की ओर इकट्ठा हुई है और अब शहर की ओर कूच कर रही है। उच्च-स्तरीय सरकारी अधिकारियों ने त्याग दिया है और जन-मत विद्रोहियों के पक्ष में चला गया है। उदास होकर, वह राजा परमेश्‍वर से प्रार्थना करता है। बहुत ही धार्मिक व्यक्‍ति होने की वजह से उसका विश्‍वास बढ़ जाता है कि परमेश्‍वर उसका निवेदन सुनेगा और षड्यंत्रकारियों के मनसूबों को विफल कर देगा। फिर, अपने देदीप्यमान शहर से मुड़कर वह पहाड़ से नीचे उतरता है और नदी के आगे जंगल की दिशा में उत्तर की ओर बढ़ता है। वह और क्या कर सकता है? स्थिति अब परमेश्‍वर के हाथों में हैं।

उसी तरह, नम्र विश्‍वासी लोग आज कठिनाई के समयों में प्रार्थना में परमेश्‍वर की ओर मुड़ते हैं। वे इस सांत्वनादायक आश्‍वासन के साथ मुड़ते हैं कि कैसे प्रार्थना करें, इस पर स्पष्ट मार्गदर्शन प्रदान करने के साथ-साथ, बाइबल प्रकट करती है कि यहोवा परमेश्‍वर ‘प्रार्थना का सुननेवाला’ है। (भजन ६५:२) हमें आश्‍वासन दिया गया है कि परमेश्‍वर को ढूँढनेवाले सभी सत्हृदयी लोगों की वह सुनेगा।

लेकिन, क्या विश्‍वास और प्रार्थना काफ़ी हैं? हम अपनी प्रार्थनाओं के परिणामों में क्या भूमिका निभाते हैं?

हम योगदान कैसे दे सकते हैं?

शुरू में ज़िक्र किया गया राजा, प्राचीन इस्राएल का राजा दाऊद था। अपने साज़िशी बेटे अबशालोम और उसके पाखंडी सलाहकार अहितोपेल के षड्यंत्र का सामना करने पर, उसने यरूशलेम से भागने और यर्दन नदी के पूर्वी भाग में महनैम के सुरक्षित विराने शहर में शरण लेने का चुनाव किया। सम्भवतः निराशा, हताशा, और चिन्ता से दबकर, उसने प्रार्थना में यहोवा से बिनती की, और कहा: “हे यहोवा, अहीतोपेल की सम्मति को मूर्खता बना दे।” (२ शमूएल १५:११-१५, ३०, ३१) लेकिन, दाऊद ने प्रार्थना करने के अलावा और भी कुछ किया। उसने अपनी प्रार्थना के सफल परिणाम के प्रति सकारात्मक तरीक़े से योगदान दिया। वह कैसे?

उसका योगदान उन परीक्षाओं से काफ़ी समय पहले शुरू हुआ जिनका उसने सामना किया। कई सालों तक, उसके राजा बनने से पहले से, दाऊद ने ख़ुद को यहोवा का एक निष्ठावान उपासक साबित किया। (१ शमूएल १६:१२, १३; प्रेरितों १३:२२) वह परमेश्‍वर के साथ घनिष्ठ बन गया। अतः, परीक्षा के समय दाऊद को विश्‍वास था कि यहोवा उसकी प्रार्थना सुनता और एक उपयुक्‍त तरीक़े से प्रतिक्रिया दिखाता।

आज भी यही सच है। अपनी प्रार्थनाओं के परिणाम में योगदान देने का अकसर एक मूल तरीक़ा है बाइबल की सलाह को एक नियमित जीवन-रीति के रूप में पालन करना। परमेश्‍वर-प्रदत्त सिद्धान्तों का पालन करना, उसके साथ एक नज़दीकी रिश्‍ता बढ़ाता है। परमेश्‍वर के साथ यह निकटता और विश्‍वास की रीति परीक्षाओं के शुरू होने से पहले होनी चाहिए। इसे एक ऐसी मजबूत नींव की तरह होना चाहिए जिस पर एक घर बनाया जाना है; इसे उस पर इमारत बनने के पहले वहाँ होना चाहिए। अतः हम—अब भी, परीक्षाएँ आने से पहले—अपनी अनेक प्रार्थनाओं के सफल परिणामों में योगदान दे सकते हैं।

एक सक्रिय भूमिका निभाइए!

हालाँकि यह सच है कि परमेश्‍वर के साथ दाऊद के रिश्‍ते ने एक महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की, उसने यह भी स्वीकार किया कि वह अपनी प्रार्थना की पूर्ति में एक निष्क्रिय दर्शक नहीं रह सकता था। इसके विपरीत, दाऊद ने एक सक्रिय भूमिका अदा की, जैसे उस बुद्धिमत्तापूर्ण मार्ग से स्पष्ट होता है जो उसने अपनी प्रार्थना के बाद अपनाया।

दाऊद के निष्ठावान दोस्तों में हूशै नामक एक एरेकी था। हूशै इस भागते हुए राजा से जलपाइयों के पहाड़ पर मिला। हालाँकि दाऊद के साथ निर्वासन में जाने के लिए इच्छुक, हूशै ने शहर में रहने के दाऊद के निवेदन को माना। उसे अबशालोम के प्रति निष्ठा का ढोंग करना, विश्‍वासघाती सलाहकार अहीतोपेल की परामर्श को विफल करने की कोशिश करना, और दाऊद को घटनाओं से अवगत रखना था। (२ शमूएल १५:३२-३७) जैसे आशा की गयी, हूशै अबशालोम का विश्‍वास जीतने में सफल हुआ। अब यहोवा हस्तक्षेप करता।

अक्लमंद, लेकिन कुटिल, अहीतोपेल ने एक बढ़िया तरक़ीब का प्रस्ताव रखा। उसने अबशालोम से दाऊद पर उसी रात हमला बोलने के लिए १२,००० पुरुषों को उसे देने का आग्रह किया, जब दाऊद अव्यवस्थित, असुरक्षित, बचकर भाग रहा था—एक ऐसा घातक प्रहार जो सफल क्रान्ति को तमाम कर देता! लेकिन, अनेक लोगों को चकित करते हुए, अबशालोम ने इस मामले में हूशै की सलाह ली। उसने अबशालोम को पुरुषों के एक ज़बरदस्त दल को इकट्ठा करने में कुछ समय बिताने की सलाह दी, जिसका निर्देशन ख़ुद अबशालोम करता। यहोवा के मार्गदर्शन के द्वारा, हूशै की सलाह स्वीकारी गयी। प्रमाणतः यह एहसास करते हुए कि हूशै की सलाह मानने का अर्थ निश्‍चित हार थी, अहीतोपेल अपने घर लौट गया और ख़ुदकुशी कर ली।—२ शमूएल १७:१-१४, २३.

इसमें कोई शक नहीं था कि यहोवा ने दाऊद की प्रार्थना का जवाब दिया था—ठीक जैसे उसने प्रार्थना की थी। अपनी प्रार्थना के सामंजस्य में कार्य करने का दाऊद का उदाहरण उन सभी लोगों के लिए एक मूल्यवान सबक़ प्रदान करता है जो प्रार्थना द्वारा परमेश्‍वर की सहायता चाहते हैं।

यहोवा अपना भाग अदा करेगा

यह सच है कि यीशु ने अपने अनुयायियों को अपनी रोज की रोटी के लिए प्रार्थना करना सिखाया और प्रतिज्ञा की कि अगर वे परमेश्‍वर के हितों को पहला स्थान देंगे, तो वह उनकी ज़रूरतों को पूरा करेगा। (मत्ती ६:११, ३३) उदाहरण के लिए, अगर एक व्यक्‍ति बेरोज़गार है, तो उसे भरण-पोषण के लिए अपनी प्रार्थना के सामंजस्य में, रोज़गार पाने या पैदा करने के लिए अपना भरसक करने के द्वारा क़दम उठाना चाहिए।

हमारी प्रार्थनाओं का विषय चाहे जो भी हो, परिणाम में योगदान देने की हमारी क्षमता में बहुत भिन्‍नता होती है। ऐसे अवसर होते हैं जब हम बहुत कुछ कर सकते हैं और ऐसे भी अवसर होते हैं जब हम, अगर कुछ कर भी सकें, तो बहुत कम कर सकते हैं। महत्त्वपूर्ण मुद्दा यह नहीं है कि हम क्या योगदान दे सकते हैं या क्या नहीं दे सकते बल्कि यह है कि क्या हम अपना भरसक कर रहे हैं।

हम निश्‍चित हो सकते हैं कि यहोवा हमारी स्थितियों और क्षमताओं को जानता है। उसे पूरी तरह एहसास है कि हमारे लिए क्या करना सम्भव है, और वह हमसे कभी उससे ज़्यादा करने की माँग नहीं करता जिसे हम पूरा नहीं कर सकते। चाहे हम बहुत ज़्यादा कर सकते हों या बहुत कम, यहोवा किसी भी कमी को पूरा करेगा। वह हमारे प्रयासों की क़दर करता है और उनका समर्थन करता है और सभी सम्बन्धित लोगों के लिए सर्वोत्तम परिणाम निकालने में वह हमारे प्रयासों के साथ कार्य करेगा।—भजन ३:३-७.

कठिनाई के बीच, राजा दाऊद विश्‍वास के साथ घोषणा कर सका: “उद्धार यहोवा ही की ओर से होता है; तेरी आशीष तेरी प्रजा पर है।” (भजन ३:८) ऐसा हो कि यहोवा की शक्‍ति में हमारा विश्‍वास, और साथ ही अपने भाग को अदा करना, चाहे बड़ा हो या छोटा, हमारी प्रार्थनाओं के सफल परिणामों की ओर ले जाए।

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