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g96 4/8 पेज 6-8

बेरोज़गारी क्यों?

अनेक देशों में कई लोगों को रोज़ी-रोटी कमाने के लिए, थकाऊ रफ़्तार से कई घंटों तक कड़ी मेहनत करनी पड़ती है, और शायद कम वेतन पर एक ख़तरनाक नौकरी भी करनी पड़ती हो। अन्य देशों में हाल के वर्षों तक अनेक लोग निश्‍चित थे कि एक बार जब उनकी एक बड़ी कम्पनी में या एक सरकारी विभाग में नौकरी लग गयी, तो सेवा-निवृत्ति तक उनके पास एक सुरक्षित नौकरी रहेगी। लेकिन आज नहीं लगता कि ऐसे कोई भी व्यवसाय या निगम रहे हैं जो किसी भी स्तर पर अनुकूल रोज़गार और सुरक्षा देने में समर्थ हैं। क्यों?

समस्या के कारण

हज़ारों युवा लोग अपनी पहली नौकरी ही नहीं ढूँढ पाते—चाहे उनके पास कॉलेज की डिग्री हो या न हो। उदाहरण के लिए, इटली में बेरोज़गार लोगों में से एक-तिहाई से अधिक लोग १५ और २४ की उम्र के बीच के लोग हैं। जो व्यक्‍ति पहले से ही काम कर रहे हैं और अपनी नौकरी को बचाने की कोशिश कर रहे हैं उनकी औसत उम्र बढ़ती जाती है, और इसलिए युवा लोगों के लिए श्रम-बाज़ार में आना ज़्यादा मुश्‍किल होता है। स्त्रियों में भी—श्रम-बाज़ार में जिनकी मौजूदगी बढ़ रही है—बेरोज़गारी की दर ऊँची है। अतः, नए कर्मचारियों की एक असाधारण रूप से बड़ी संख्या श्रम-बाज़ार में शामिल होने के लिए अब संघर्ष कर रही है।

पहली औद्योगिक मशीनों के समय से, तकनीकी नवीकरण ने कर्मचारियों की ज़रूरत को घटाया है। क्योंकि अनेक लोगों को लम्बी थकाऊ पालियों में काम करना पड़ता था, कामगारों ने यह आशा की कि मशीनें काम को घटाएँगी या यहाँ तक कि उसे समाप्त कर देंगी। स्वचलीकरण ने उत्पादन को बढ़ाया है और अनेक ख़तरों को मिटाया है, लेकिन इसने नौकरियों को भी कम किया है। जो बेकार हो जाते हैं अगर वे नए कौशल नहीं सीखते तो उन्हें दीर्घकालिक बेरोज़गारी का ख़तरा होता है।

हम अत्यधिक व्यापारिक वस्तुओं के ढेर तले दबने के ख़तरे में हैं। कुछ लोग महसूस करते हैं कि हम विकास की सीमाओं तक पहुँच चुके हैं। इसके अतिरिक्‍त, जितने कम लोगों को रोज़गार है, उतने कम लोग ख़रीदार होते हैं। इस प्रकार बाज़ार में जितना उपभोग किया जा सकता है उससे ज़्यादा उत्पादन होता है। आर्थिक रूप से लाभप्रद न रहने के कारण, बड़े-बड़े संयंत्र जिन्हें उत्पादन में अपेक्षित वृद्धियों को संभालने के लिए लगाया गया था उन्हें बन्द किया जा रहा है या परिवर्तित किया जा रहा है। लोग ऐसे चलन के शिकार होते हैं—वे जो बेरोज़गार हो जाते हैं। आर्थिक मन्दी में, कर्मचारियों की माँग कम हो जाती है और मन्दियों के दौरान खोयी गयी नौकरियाँ वृद्धि के समय के दौरान मुश्‍किल ही फिर से उत्पन्‍न होती हैं। स्पष्टतया, बेरोज़गारी के कारण अनेक हैं।

एक सामाजिक महामारी

क्योंकि इसका प्रभाव किसी पर भी हो सकता है, बेरोज़गारी एक सामाजिक महामारी है। कुछ देश ऐसे लोगों की सुरक्षा के लिए विभिन्‍न प्रक्रियाएँ चलाते हैं जो अब भी काम कर रहे हैं—उदाहरण के लिए, कम वेतन से सप्ताह में कम घंटे काम करना। लेकिन, इससे अन्य लोग जो काम की खोज में हैं उनकी संभावनाएँ मिट सकती हैं।

जिनके पास रोज़गार है और जो बेरोज़गार हैं, दोनों अधिकाधिक नौकरी-सम्बन्धी समस्याओं के बारे में बार-बार विरोध प्रकट करते हैं। लेकिन जहाँ बेरोज़गार नयी नौकरियों की माँग करते हैं, जिनके पास एक नौकरी है वे स्वयं अपनी सुरक्षा की रक्षा करने की कोशिश करते हैं—दो लक्ष्य जो हमेशा एक दूसरे के अनुकूल नहीं होते। “जिनके पास नौकरी होती है उन्हें अकसर ज़्यादा घंटे काम करने का निमंत्रण दिया जाता है। जिनके पास नौकरी नहीं है वे बेरोज़गार ही रहते हैं। समाज का दो भागों में बँटने का ख़तरा है . . . एक तरफ़, जो ज़्यादा घंटे काम करते हैं और दूसरी तरफ़, ये तिरस्कृत, बेरोज़गार जो लगभग पूरी तरह दूसरों के सद्‌भाव पर निर्भर होते हैं,” इतालवी पत्रिका पैनोरामा कहती है। विशेषज्ञ कहते हैं कि यूरोप में आर्थिक वृद्धि के फलों का मज़ा, जिनके पास नौकरी नहीं है उनके बजाय, मुख्यतः ऐसे लोगों ने उठाया है जो पहले ही काम कर रहे हैं।

इसके अलावा, बेरोज़गारी स्थानीय अर्थव्यवस्था की अवस्था के साथ जुड़ी हुई है, जिसके कारण कुछ देशों, जैसे कि जर्मनी, इटली, और स्पेन में एक क्षेत्र की ज़रूरतों तथा किसी और क्षेत्र की ज़रूरतों के बीच बड़ी भिन्‍नताएँ मौजूद होती हैं। क्या कर्मचारी नए कौशल सीखने के लिए या यहाँ तक कि किसी और क्षेत्र या किसी और देश में जाने के इच्छुक हैं? रोज़गार पाने में यह अकसर एक निर्णायक तत्व हो सकता है।

क्या कोई समाधान निकट हैं?

ज़्यादातर, आर्थिक उन्‍नति पर आशा लगायी जाती है। लेकिन कुछ लोग संदेही हैं और सोचते हैं कि ऐसी उन्‍नति लगभग वर्ष २००० तक नहीं होगी। दूसरों के विचार में समुत्थान शुरू हो चुका है, लेकिन यह परिणाम उत्पन्‍न करने में धीमा है, जैसा कि इटली में रोज़गार में हाल की गिरावट से प्रत्यक्ष है। ज़रूरी नहीं कि आर्थिक समुत्थान से बेरोज़गारी में घटाव आए। जबकि वृद्धि सीमित है, व्यापार संस्थान उनके पास जो कर्मचारी हैं उन्हें ज़्यादा अच्छी तरह प्रयोग करना पसन्द करते हैं बजाय इसके कि दूसरों को नौकरी पर रखें—अर्थात्‌, “बिन नौकरी की वृद्धि” होती है। इसके अलावा, बेरोज़गारों की संख्या अकसर उत्पन्‍न की गयी नयी नौकरियों की संख्या से ज़्यादा तेज़ी से बढ़ती है।

आज राष्ट्रीय अर्थव्यवस्थाएँ विश्‍वव्यापीकरण से गुज़र रही हैं। कुछ अर्थशास्त्री सोचते हैं कि बड़े, नए अधिराष्ट्रीय व्यापारिक क्षेत्रों की रचना, जैसे कि उत्तर अमरीकी मुक्‍त व्यापार समझौता (नाफता) और एशिया-प्रशांत आर्थिक सहयोग (एपैक) की रचना, भी शायद विश्‍व अर्थव्यवस्था को बल प्रदान करे। लेकिन, यह प्रवृत्ति बड़े-बड़े निगमों को उकसाती है कि ऐसी जगह स्थापित हों जहाँ श्रम-बल ज़्यादा सस्ता है, जिसके परिणामस्वरूप औद्योगीकृत राष्ट्रों में नौकरियाँ कम हो जाती हैं। उसी समय, जिन कर्मचारियों की आमदनी ज़्यादा नहीं है वे अपने पहले से ही कम वेतन को और भी कम होते हुए देखते हैं। यह इत्तफ़ाक़ नहीं कि अनेक देशों में, अनेक लोगों ने, हिंसात्मक रूप से भी, इन व्यापारिक समझौतों के विरुद्ध प्रदर्शन किया है।

विशेषज्ञ बेरोज़गारी से लड़ने के लिए अनेक तरीक़े सुझाते हैं। इस बात पर निर्भर करते हुए कि उनका सुझाव अर्थशास्त्रियों, राजनीतिज्ञों अथवा स्वयं कर्मचारियों द्वारा दिया गया था, कुछ तो विरोधात्मक भी होते हैं। ऐसे लोग हैं जो कर का बोझ घटाने के द्वारा कम्पनियों को कर्मचारी बढ़ाने की प्रेरणा देने का प्रस्ताव रखते हैं। कुछ व्यक्‍ति व्यापक सरकारी हस्तक्षेप की सलाह देते हैं। दूसरे काम को भिन्‍न रूप से वितरित करना और काम का समय कम करने का सुझाव देते हैं। ऐसा कुछ बड़ी कम्पनियों में पहले से ही किया गया है, हालाँकि पिछली शताब्दी में, सभी औद्योगीकृत राष्ट्रों में कार्यसप्ताह को बाकायदा घटा दिया गया था, लेकिन इससे बेरोज़गारी नहीं घटी है। “आख़िरकार,” अर्थशास्त्री रॆनाटो ब्रूनॆटा यह दावा करते हैं, “हर नीति व्यर्थ निकलती है, जिसमें क़ीमतें लाभों से ज़्यादा होती हैं।”

“हमें अपने आपको झाँसे में नहीं रखना चाहिए,” पत्रिका एल’एस्प्रेसो (इतालवी) आख़िर में कहती है, “यह समस्या कठिन है।” इतनी कठिन कि हल नहीं हो सकती? क्या बेरोज़गारी की समस्या का कोई समाधान है?

[पेज 8 पर बक्स]

एक प्राचीन समस्या

बेरोज़गारी एक पुरानी समस्या है। शताब्दियों से लोग अकसर अनचाहे ही अपने आपको बिना काम के पाते हैं। एक बार जब काम ख़त्म हो गया, तो बड़ी निर्माण परियोजनाओं में प्रयोग किए गए हज़ारों कर्मचारी अपने आप बेरोज़गार हो गए—कम-से-कम तब तक जब उन्हें कहीं और काम पर रखा न जाए। ऐसा कहना अतिश्‍योक्‍ति न होगी कि इस समय के दौरान वे कुछ-कुछ असुरक्षित जीवन जीते थे।

मध्यकालीन युगों के दौरान, “यद्यपि आधुनिक अर्थ में बेरोज़गारी की समस्या अब तक अस्तित्व में नहीं थी,” फिर भी बेरोज़गार अस्तित्व में थे। (ला डीसोकूपात्स्योनॆ नॆल्ला स्टोर्या [इतिहास में बेरोज़गारी]) लेकिन, उन दिनों में कोई भी व्यक्‍ति जो काम नहीं करते थे, उन्हें ज़्यादातर निकम्मे या आवारा समझा जाता था। १९वीं शताब्दी तक भी, अनेक ब्रिटिश विश्‍लेषकों ने “मुख्यतः बेरोज़गारों को ‘गुंडों’ और घुमक्कड़ों के साथ जोड़ा जो बाहर सोते थे या रात में सड़कों पर घूमते थे,” प्रोफ़ॆसर जॉन बर्नॆट समझाते हैं।—निष्क्रिय हाथ, (अंग्रेज़ी)।

“बेरोज़गारी की खोज” १९वीं शताब्दी के अन्त या २०वीं शताब्दी के आरम्भ के निकट हुई। इस समस्या का अध्ययन करने और इसका समाधान करने के लिए विशेष सरकारी आयोग गठित किए गए, जैसे कि १८९५ में “रोज़गार के अभाव से व्यथा” पर, ब्रिटिश हाऊस ऑफ़ कॉमन्स्‌ की प्रवरण समिति। नौकरी न होना एक सामाजिक महामारी हो गयी थी।

यह नया बोध नाटकीय रूप से बढ़ा, विशेषकर प्रथम विश्‍व युद्ध के बाद। इस युद्ध ने, अपने अंधाधुंध शस्त्र निर्माण से बेरोज़गारी को लगभग मिटा दिया था। लेकिन १९२० के दशक की शुरूआत से, पश्‍चिमी संसार ने अनेकों बार मन्दी का सामना किया जो आख़िरकार महा मन्दी में चरम पर पहुँची, जो १९२९ में शुरू हुई और इसने संसार की सभी औद्योगीकृत अर्थव्यवस्थाओं को प्रभावित किया। द्वितीय विश्‍व युद्ध के बाद, अनेक देशों ने एक नयी आर्थिक गरम-बाज़ारी का अनुभव किया और बेरोज़गारी में गिरावट आयी। लेकिन “आज की बेरोज़गारी की समस्या की शुरूआत को १९६० दशक के मध्य तक ले जाया जा सकता है,” आर्थिक सहयोग और विकास संगठन कहता है। श्रम बाज़ार पर एक नया प्रहार हुआ जिसका कारण १९७० के दशक का तेल संकट और कम्प्यूटरों के प्रयोग में तेज़ और असाधारण विस्तार था, जिसके परिणामस्वरूप कई लोगों को काम से निकाला गया। बेरोज़गारी बिना रुके ऊँची उठती जा रही है, और ऐसे सफ़ेद-पोश और प्रबंधकीय क्षेत्रों को भी भेद रही है जिन्हें कभी सुरक्षित समझा जाता था।

[पेज 7 पर तसवीर]

ज़्यादा नौकरियों की माँग करना बेरोज़गारी की समस्या का समाधान नहीं करेगा

[चित्र का श्रेय]

Reuters/Bettmann

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