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सजग होइए!–1996
g96 4/8 पेज 12-16

नाग क्या आप उससे मिलना चाहेंगे?

भारत में सजग होइए! संवाददाता द्वारा

क्या आप चाहेंगे? अधिकांश वयस्क शायद जवाब दें नहीं। लेकिन ज़रूरी नहीं कि एक बच्चे का जवाब भी यही हो। साँपों का डर, जिसमें नाग भी शामिल है, बच्चों में या यहाँ तक कि जानवरों में एक स्वाभाविक लक्षण नहीं है। साँपों के बारे में विरुचि का कारण हो सकता है ऐसी जानकारी जो विश्‍वसनीय नहीं है, बढ़ा-चढ़ाकर बतायी गयी कहानियाँ, कथाएँ और भ्रम।

हाँ, जब हम आपको एक नाग से मिलने का आमंत्रण देते हैं, तो हमारा अर्थ है सुरक्षित दूरी से! नाग बहुत ही ज़हरीले होते हैं, और हम किसी एक के पास जाकर उसे छूने के लिए अपना हाथ बढ़ाना नहीं चाहेंगे। संभवतः ना ही नाग हम से मिलने के लिए रुका रहेगा; हमारे आने की आहट सुनकर, वह एक सुरक्षित छिपने के स्थान में जल्द ही घुस जाएगा। सो आइए हम इस दिलचस्प प्राणी के बारे में कुछ चित्ताकर्षक तथ्यों को जानने भर से, नाग से मिलने की संतुष्टि पाएँ।

नाग उपगण सरपॆन्टॆस के सरीसृप हैं और एलापिडे वंश के हैं, वह नाम जो खाँचेदार विषदन्तों वाले ज़हरीले साँपों को दिया गया है। ऑस्ट्रेलिया से एशिया के उष्णकटिबन्धी क्षेत्रों तक और अफ्रीका से अरेबिया और शीतोष्ण कटिबन्ध तक नाग की क़रीब १२ जातियाँ फैली हुई हैं। नागों में सबसे डरावना है नागराज, या हामाड्राइड। यह संसार का सबसे बड़ा ज़हरीला साँप है जिसकी लम्बाई तीन से पाँच मीटर होती है। यह जंगल या दलदल की घनी झाड़ियों को पसन्द करता है, जहाँ भरपूर वर्षा होती है। यह दक्षिणी चीन, फिलिपींस, इन्डोनेशिया, मलेशिया, म्यानमार और भारत के भागों में पाया जा सकता है। स्याह काली पूँछ, हरित-पीले शरीर पर, जो उम्र के साथ-साथ गहरे जैतूनी रंग का हो जाता है, रंगीन धारियों, और उसके फन पर छोटी चित्तियों के चकत्तों से वह काफ़ी सुंदर दिखता है।

नाग की अन्य जातियाँ लम्बाई में औसतन एक से दो मीटर तक होती हैं। भारत का निवासी और वहाँ व्यापक रूप से पाया जानेवाला, चश्‍मेधारी नाग है जिसके फन पर अनोखी आकृति होती है, जो ऐनक के जैसी लगती है। यह काला, गाढ़ा भूरा, या पीला-सा सफ़ेद हो सकता है, और उसके गिरेबान पर चौड़ी, गाढ़ी धारी होती है और उसके लम्बे शरीर पर सफ़ेद और पीली चित्तीदार धारियाँ होती हैं। एक-चश्‍मी नाग का, जो श्रीलंका साथ ही पूर्वी और उत्तरपूर्वी भारत में पाया जाता है, रंग ज़्यादा हल्का और फन कुछ छोटा और ज़्यादा गोलाकार होता है, जिस पर एक ही सफ़ेद चक्र होता है, जिससे उसे उसका नाम मिलता है। उत्तरपश्‍चिमी भारत और पाकिस्तान में हम स्याह काला नाग पाते हैं। अफ्रीका में, अन्य नागों के साथ-साथ, रिंगाल या थूकनेवाला नाग, और मिस्र का नाग भी होता है। मिस्र के नाग का रंग गहरा और फन पतला होता है। यह संभवतः वह विषैला साँप है जिसे रानी क्लीयोपेट्रा की मृत्यु का श्रेय दिया जाता है।

साँप केवल अपनी ही जाति के साँपों से जोड़ा बनाते हैं, और वे एक अनोखी तेज़ गंध से आकर्षित होते हैं। अन्य साँपों से नाग परिवार में ज़्यादा रुचि दिखाता है, नर और मादा अकसर साथ-साथ रहते हैं। मादा नागराज उन चंद साँपों में से एक है जो एक घोंसला बनाने के लिए जानी जाती है। वह सूखी पत्तियों को एक टीले में बटोरती है जो क़रीब ३० सेंटीमीटर ऊँचा होता है और उसमें २० से ५० अंडे रखती है। उसके बाद वह अपने शरीर से उस टीले के चारों ओर कुंडली मारकर वहीं रहती है, लगभग दो महीनों के ऊष्मायन तक, बिना भोजन किए, और नर भी अकसर पास ही रहता है। दूसरे नाग, घोंसला तैयार किए बिना, अपने अंडों की रक्षा करने के लिए उनके पास ही रहते हैं।

संपोले खोल को चीरने और ख़ुद को मुक्‍त करने के लिए अंड दन्त का प्रयोग करते हैं, जो बाद में गिर जाता है। बाहर आने पर वे पूर्णतया विकसित विष थैलियों और विषदन्त सहित पूरी तरह से स्वतंत्र होते हैं। वे अपनी जीभ बार-बार बाहर फहराते हैं, अपने परिसर का स्वाद लेते हैं, और रासायनिक जानकारी को अपनी तालू में जेकबसन नामक अंग तक पहुँचाते हैं। यह सूँघने की इन्द्रिय से जुड़ा हुआ है; स्वाद और गन्ध मिलकर साँप को उसका शिकार ढूँढने, साथी ढूँढने या परभक्षियों से बचने में मदद करते हैं।

संपोला तेज़ी से बड़ा होता है और थोड़े ही समय में अपनी केंचुली झाड़ देता है, जो बहुत ज़्यादा तंग हो गयी है। यह अनोखी क्रिया नियमित रूप से दोहरायी जाती है, क्योंकि नाग अपने सारे जीवनकाल में बढ़ता रहता है, जो २० से अधिक साल हो सकता है। केंचुली उतारने के एक या दो सप्ताह पहले से, साँप सुस्त हो जाता है, उसकी चमड़ी का रंग फीका पड़ जाता है, और उसकी आँखें दूधिया-नीले रंग की हो जाती हैं। उसके बाद अचानक, आँखें साफ़ हो जाती हैं, और पत्थरों पर अपना सिर रगड़कर, साँप केंचुली को अपने मुँह के क़रीब चीरता है। अब वह अक्षरशः रेंगकर अपनी केंचुली से बाहर आता है जब यह पलटकर उतरती जाती है, आँखों पर पारदर्शी आवरण से ठीक नीचे पूँछ तक। अब एक सजीव, चमकदार, नया दिखनेवाला साँप अपने सामान्य काम-काज में लग जाने के लिए तैयार है।

हवा का तापमान नागों पर बड़ा प्रभाव करता है। जैसे मौसम ठंडा होता है, वे धीमे पड़ जाते हैं और निष्क्रिय भी हो जाते हैं, केवल तभी हिलते-डुलते हैं जब तापमान बढ़ता है। बहुत ज़्यादा गर्मी उनके लिए जानलेवा हो सकती है। नागराज को छोड़, जिसका भोजन साँप है, उनका आहार होता है चूहे, मूषक, मेंढक, छिपकलियाँ, पंछी, और अन्य छोटे जानवर। शिकार के पकड़े जाने के बाद, ज़हर का प्रवेश उसे शिथिल कर देता है। उसे पूरा का पूरा निगल लिया जाता है, क्योंकि नाग भोजन को चबाने के योग्य नहीं होता। चमड़ी के लचीलेपन और जबड़े की लचक के कारण, नाग एक ऐसे जानवर को गटक सकता है जो उसके सिर से दो या तीन गुना ज़्यादा बड़ा हो। जब शिकार मुँह को पूरी तरह से अवरुद्ध किए हुए है, साँप अपनी श्‍वास-नली के प्रवेश मार्ग को अवरोधन से आगे ले जाकर साँस लेता है, ठीक जैसे एक तैराक स्नॉर्कल का प्रयोग करता है। पीछे की ओर मुड़े हुए दाँतों की कतारें अब साँप के शरीर में शिकार को आगे बढ़ाती हैं। वह भोजन को धीरे-धीरे पचाने के लिए किसी एकान्त स्थान में चला जाता है, और शायद अनेक दिनों तक फिर नहीं खाता। नाग बिना खाए महीनों जी सकता है, और अपने शरीर में संचित चर्बी का प्रयोग करता है।

साँप सतर्क होते हैं। (मत्ती १०:१६ देखिए।) नाग का बचाव है या तो भाग निकलना, शायद रेंगकर एक चट्टान के नीचे या अपने बिल में चले जाना, या निश्‍चल रहना और इस प्रकार नज़र से बच जाना। आमना-सामना होने पर, वह शत्रु को डराने के लिए खड़ा हो जाता है और फुंफकारते हुए अपना फन फैलाता है। जब कोई चारा नहीं रहता तब वह डँसता है।

साँप का डँसना

ग्रामीण अफ्रीका और एशिया में साँप के डँसने की अकसर ख़बर नहीं दी जाती, लेकिन ऐसा लगता है कि संसार-भर में हर साल क़रीब दस लाख लोगों को ज़हरीले साँप डँसते हैं। हताहतों की सबसे बड़ी संख्या भारत में होती है—क़रीब १०,००० प्रति वर्ष—शायद अधिकांश की मृत्यु चश्‍मेधारी नाग से होती है। दस प्रतिशत नागों के डंक घातक सिद्ध होते हैं।

नाग अनेक साँपों से धीमा होता है; उसका एक मुख्य शत्रु, फुर्तीला नेवला उसे मात दे सकता है। साँप पर झपटना, फिर उसके प्रहार से बार-बार बचना, यों नेवला नाग को हतोत्साहित और अनिश्‍चित कर देता है। फन पर पीछे से वार करके, वह उसकी गरदन तोड़ देता है। अनेक साँप कुंडली बनाकर वार करते हैं, जिससे उनकी पहुँच जान सकना मुश्‍किल हो जाता है, लेकिन नाग अपने शरीर को उठाता है और सीधे झुककर प्रहार करता है। इस दूरी को आँका जा सकता है, और क्योंकि उसकी गति तुलनात्मक रूप से धीमी होती है, एक व्यक्‍ति उसकी पहुँच से दूर जा सकता है।

कुछ नाग, जैसे दक्षिण अफ्रीका के काली गरदन वाले नाग, रिंगाल और उत्तरपूर्वी भारत के नाग थूकने के द्वारा अपनी रक्षा करते हैं। ऊँचे उठकर और शिकार की ओर अपने विषदन्तों का निशाना साधकर, यह साँप, छोड़ी गयी हवा से, दो मीटर से ज़्यादा की दूरी तक ज़हर की दो पतली फुहारें छोड़ सकता है। त्वचा पर इससे कोई हानि नहीं होती, लेकिन अगर यह आँखों में प्रवेश कर जाए, तो यह तात्कालिक अंधेपन का और अगर इसे तुरन्त साफ़ करके नहीं निकाला जाए तो स्थायी अंधेपन का कारण हो सकता है। विचित्र बात है, ऐसा लगता है कि यह साँप आँखों का निशाना साधने के योग्य है।

मान लीजिए अगर एक नाग आपको डँस लेता है, तो आपको क्या करना चाहिए? साँप के जबड़ों के अग्रभाग में दो छोटे, अंदर की ओर मुड़े हुए, जड़ित विषदन्तों से, साँप की दाढ़ों में ज़हर की थैलियों से विष को दबाकर निकाला जाता है। ये विषदन्त त्वचा को भेदते हैं और विष का इंजेक्शन देते हैं जैसे एक हाइपोडर्मिक सुई करती। साँप के डँसने का एकमात्र निश्‍चित इलाज है सर्पविषरोधी जो चार ज़हरीले साँपों के विष से तैयार किया जाता है। २०वीं शताब्दी की शुरूआत में, भारत पहला देश था जिसने सर्पविषरोधी का व्यापक रूप से प्रयोग किया। सर्पविषरोधी चूर्ण ठंडी जगह में रखे बिना पाँच साल तक प्रभावकारी होता है; अपने पुनर्गठित रूप में इसका इंजेक्शन दिया जाता है।

नाग के डँसने के लक्षण होते हैं उस स्थान पर दर्द और सूजन, नज़र धुँधलाना, लड़खड़ाना, स्वरयंत्र का अंगघात, और धीमी होती श्‍वसनक्रिया। अगर बड़ी मात्रा में विष प्रवेश कर चुका है और कोई इलाज नहीं किया जाता तो क़रीब दो घंटों में मृत्यु हो जाती है।

सँपेरा

साँप को मंत्रमुग्ध करना मनोरंजन का एक बड़ा पुराना तरीक़ा है। हालाँकि ज़्यादातर पूर्व में इसका चलन है, कुछ पश्‍चिमी सर्कसों ने इसे अपने खेलों में शामिल किया है। अपने अनोखे फन और आशंकित हाव-भाव के कारण, चश्‍मेधारी नाग सबसे ज़्यादा प्रयोग किया गया लोकप्रिय साँप है, लेकिन प्रभावशाली दिखनेवाले अन्य साँप, जैसे कि शाही साँप और अजगर का भी प्रयोग किया जाता है। एक सँपेरे की हैसियत से, एक कुशल तमाशा दिखानेवाला अपनी बीन बजाता है, नाग अपनी टोकरी से उठता है और अपनी सामान्य रक्षात्मक स्थिति में आकर अपना फन फैलाता है। सँपेरा जब हिलता-डुलता है तो साँप भी जो उस पर नज़र रखे हुए है प्रतिक्रिया दिखाता है, वह हमले के लिए हमेशा तैयार रहता है। सँपेरों द्वारा प्रयोग किए गए अनेक नागों के विषदन्त निकाल दिए जाते हैं, लेकिन कुछ व्यक्‍ति ज़हरीले साँपों के साथ काम करने का जोख़िम उठाते हैं।

प्राचीन भारत में भ्रमणकारी सँपेरा धार्मिक विचार और कथाएँ सुनानेवाला भी हुआ करता था, जिसके कारण वह काफ़ी लोकप्रिय होता था। आज होटलों के बाहर प्रदर्शन करना ज़्यादा लाभकर होता है जहाँ पर्यटक ढेर सारे चित्र लेते हैं। कुछ सँपेरे घरों पर आते हैं और घर के मालिक को बताते हैं कि उसके बड़े बग़ीचे में संभवतः साँप हैं। निर्धारित राशि के लिए, वह उन्हें पकड़ने का प्रस्ताव रखता है। वह झाड़ियों में घुस जाता है, और कुछ समय बाद, जिस दौरान उसकी बीन की आवाज़ सुनने में आती है, वह साँपों से भरा एक थैला लिए लौटता है। निःसंदेह, घर का मालिक बुद्धिमान होता अगर उस पर नज़र रखता या कम-से-कम यह देख लेता कि क्या वह अपने साथ साँपों की थैली लाया है!

सर्प-उद्यान शिक्षित करते हैं

सर्प-उद्यान रेंगनेवाले जन्तुओं में दिलचस्पी को बढ़ावा देते हैं। वे संशोधन प्रायोजित करते हैं, साँप के डँसने की रोकथाम और इलाज के बारे में शिक्षित करते हैं, और मनुष्य के लोभ और अज्ञानता से साँपों की सुरक्षा के लिए काम करते हैं। नागों को उनकी सुंदर खालों के लिए मारा गया है, जिनसे कमरबंद, पर्स, जूते और अन्य विलास-वस्तुएँ बनती हैं। भारत में एक साल में चमड़ा-उद्योग के लिए एक करोड़ से अधिक साँपों को मारा गया था। साँपों को मारा जाता है और तुरन्त उनकी खाल निकाल दी जाती है। भारत में इस खाल को रंगने के लिए वनस्पति रंजकों का प्रयोग किया जाता है, और चमकाने के लिए पॉलिश की जाती है और कभी-कभी प्रलाक्षा रस चढ़ाया जाता है कि उसे चमकदार और जल-प्रतिरोधक बनाया जाए।

नाग बहुत ही मूल्यवान होता है। यह चूहों और अन्य कीड़े-मकौड़ों को मारने के द्वारा कई टन अनाज बचाता है। इसका विष सर्पविषरोधी, दर्दनाशक और अन्य दवाएँ प्रदान करता है। बम्बई में टाटा मॆमोरियल कैंसर इंस्टिट्यूट, कैंसर की कोशिकाओं पर नाग के विष के प्रभाव का अध्ययन कर रहा है।

क्या आपने नाग से मिलने का आनन्द लिया? रमणीय, उपयोगी, तैयार, अपनी रक्षा करने के लिए सुसज्जित। इसे और अच्छी तरह से जानना हमें पशुजगत के एक बहुत ही बदनाम सदस्य को समझने में मदद कर सकता है।

[पेज 15 पर बक्स]

नाग की उपासना और अंधविश्‍वास

प्राचीन समय से नाग की उपासना अस्तित्व में रही है। मोहनजोदाड़ो में, जो पुरातत्त्वज्ञानियों द्वारा ढूँढ निकाली गयी सबसे पुरानी सभ्यताओं में से एक है, पायी गयी मुहरों पर नाग का रूपांकन पाया जाता है। सामान्य युग पूर्व तीसरी शताब्दी से आज तक, भारत में लाखों लोगों ने नागों में अंधविश्‍वास-भरी श्रद्धा रखी है। दिलचस्पी की बात है, नाग की अनेक कहानियों को असल ऐतिहासिक घटनाओं के इर्द-गिर्द बनायी गयी मिथ्या कथाएँ समझा जा सकता है।

सृष्टि की “कहानी” उस समय के बारे में बताती है जब विश्‍व में प्रकाश न था। अन्धकारमय अंतरिक्षीय जल से पहले तेजोमय विष्णु देव की सृष्टि हुई, उसके बाद आकाश, पृथ्वी और पाताल की। बचे-कुचे तत्व से शेष (अर्थात्‌ बचा हुआ भाग) नामक एक बड़ा नाग सृष्ट किया गया। कथाओं के अनुसार, शेष के ५ से १,००० सिर हैं, और चित्रों में विष्णु को कुंडली लगाए हुए शेष पर, उसके अनेक सिरों के खुले फन की ओट में लेटा हुआ दिखाया जाता है। माना जाता है कि भूकम्प शेष के जम्हाई लेने से होते हैं, और उसके मुँह से आग या उसका विष युग की समाप्ति पर संसार का विनाश करता है।

हिन्दू कथा-शास्त्र में, नागा नामक नाग की एक जाति बतायी गयी है, जो नीचे के संसार, अर्थात्‌ नागलोक या पाताल में बसते हैं। वानर-देव हनुमान दावा करता है कि “परिपूर्ण युग” में, सारे मानव पावन थे, केवल एक ही धर्म था, और कोई पिशाच या नाग नहीं थे। सर्प पृथ्वी की संपत्ति के रखवाले थे और बड़े ज्ञान और तिलस्मी शक्‍तियों के मालिक थे। शेष को, जिसे कभी-कभी वासूकी भी कहा जाता है, देवताओं द्वारा दूध के समुद्र का मंथन करने के लिए प्रयोग किया गया था ताकि अमृत निकले, ऐसा रस जो अमरता देता। जिस पाताल पर नागों का राज्य है उसे एक सबसे बढ़िया जगह के रूप में दर्शाया जाता है; जो योद्धा युद्ध में मरते हैं उन्हें वहाँ ऐसे सुखों के मिलने की प्रतिज्ञा की जाती है जो कल्पना से परे हैं।

लेकिन, सभी पौराणिक नागों को हितकर नहीं माना जाता। एक “कहानी” कृष्ण, विष्णु के एक अवतार और एक बड़े, ख़तरनाक पिशाच-नाग, कालिया के बीच एक मुक़ाबले का वर्णन करती है। चित्रों में विजयी कृष्ण को उस बड़े सर्प के सिर पर अपना पाँव रखे हुए दिखाया जाता है।

अपने बच्चों को साँप के डंक से सुरक्षित रखने के लिए, स्त्रियाँ मनासा या दुर्गामाँ की उपासना करती हैं, जो नागों की रानी है। नागपंचमी के पर्व पर, साँप के भक्‍त नागों की मूर्तियों पर और साँप के बिल में दूध और लहू तक उंडेलते हैं। नागों की पत्थर या चाँदी की मूर्तियों की उपासना की जाती है और मंदिरों में ऐसी स्त्रियाँ इनका चढ़ावा चढ़ाती हैं जिन्हें एक नर बालक को जन्म देने की आस होती है।

फ़िल्मों में नाग

पौराणिक कथाओं का नाग, भारत में फ़िल्मों का एक बहुत ही लोकप्रिय विषय है—१९२८ से ४० से भी अधिक फ़िल्में बनायी गयी हैं। सामान्य रूप से नाग को अच्छाई के रक्षक, अपने भक्‍तों के सहायक और दुष्टों के विनाशक के रूप में दिखाया जाता है। इच्छाधारी नागों की कथा लोकप्रिय है, जिनके पास कहा जाता है कि मानव रूप धारण करने की शक्‍ति होती है। कहा जाता है कि उनका एक ही वफ़ादार साथी होता है। अगर उस साथी को मार दिया जाता है, तो यह नाग उस हत्यारे की तस्वीर मृत साँप की आँखों में देख सकता है, और प्रतिशोध लेने के लिए निकल पड़ता है। यह अनेक फ़िल्मों के लिए एक उत्तेजनापूर्ण आधार बन जाता है। इस कहानी पर सर्प-नृत्य हावी होते हैं; सँपेरे के संगीत जैसा संगीत होता है, नृत्य करनेवाले साँप के हाव-भाव की नक़ल करते हैं, यहाँ तक कि ज़मीन पर रेंगते हैं।

एक वृत्त-चित्र, शक्‍ति, राजस्थान, भारत में एक जलसे में फ़िल्माया गया था, जहाँ हर अगस्त में लाखों साँप को पूजनेवाले रेगिस्तान में इकट्ठा होते हैं। चिलचिलाती धूप में और ५० डिग्री सेल्सियस से ज़्यादा के तापमान में, वे ख़ुद को लोहे की छड़ों से मारते हैं और तपती रेत पर अपने पेट के बल, दो किलोमीटर से भी अधिक की दूरी तक, रेंगते हुए सर्प-देवता गोगा के मंदिर तक जाते हैं। कहा जाता है कि सा.यु. दसवीं शताब्दी में एक ऐतिहासिक राजा, गोगा ने शत्रु को साँपों से भरे क्षेत्र में ले जाने के द्वारा, जहाँ साँपों के काटने से सेना की संख्या बहुत कम हो गयी, अपने लोगों को मुस्लिम आक्रमणकारियों से बचाया था।

[पेज 16 पर बक्स]

नाग द्वारा बचाए गए

भारत में सस्तूर गाँव के दो परिवारों के पास एक नाग के प्रति आभारी होने का कारण है। सितम्बर ३०, १९९३ के दिन, प्रातः ३:५० पर, नाग की तेज़ फुंफकार से उनकी नींद खुल गयी जब वह रेंगता हुआ उनके मकान से बाहर निकल गया। वे उसे मारने के लिए खेतों तक उसके पीछे गए। प्रातः ४ बजे मध्य भारत में एक भीषण भूकंप ने उनके गाँव को तहस-नहस कर दिया और लगभग हरेक व्यक्‍ति को मार दिया। ये दो परिवार बच गए—नाग की पूर्व-चेतावनी व्यवस्था का शुक्र है!

[पेज 12, 13 पर तसवीरें]

पीछे से और सामने से एशियाई नाग का दृश्‍य

आंतरिक चित्र: गर्म पत्थर पर बैठकर धूप का मज़ा लेते हुए एक काला नाग अपना फन फैलाता है

[चित्र का श्रेय]

Pictures on pages 12 to 16: A. N. Jagannatha Rao, Trustee, Madras Snake Park Trust

[पेज 14 पर तसवीरें]

सामने से और पीछे से काले नाग का दृश्‍य

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