परमेश्वर की संतुलन की देन
“यह मात्र सी-लेग्स है,” मेरे दोस्तों ने मुझे बताया, “और यह कई दिनों तक रह सकता है।” वह अक्तूबर १९९० था, और मैंने अभी-अभी कैरीबीन पर सात-दिन की सैर के बाद समुद्री गश्त लगानेवाले एक जहाज़ से निकलकर सूखी भूमि पर क़दम रखा था। लेकिन, जिसे मैंने कुछ दिनों का होनेवाला अनुभव सोचा था, वह कई महीनों तक रहा। यह ऐसा था मानो मैं कभी उस जहाज़ से उतरा ही नहीं। मेरे प्रघाणी तंत्र, मस्तिष्क में इसकी केन्द्रीय सम्बन्धों के साथ आन्तरिक कर्ण के जटिल संतुलन तंत्र, के साथ कुछ गड़बड़ी हो गयी।
यह क्या है? यह कैसे कार्य करता है?
आपके संतुलन के लिए समन्वयी केन्द्र आपके मस्तिष्क के तल पर पाया जाता है जो मस्तिष्क नली कहलाती है। जब आप स्वस्थ हैं, तो आप अपना संतुलन बनाए रखते हैं क्योंकि असंख्य मनोवेग आपकी आँखों, आपकी माँस-पेशियों, और आपके प्रघाणी तंत्र से प्राप्त होते हैं।
आपकी आँखें मस्तिष्क नली को आपके बाहरी पास-पड़ोस के बारे में जारी संवेदी निवेश प्रदान करती हैं। आपकी माँस-पेशियों में संवेदी ग्राहक, जिन्हें प्रोप्रियोसॆपटर्स कहा जाता है, आपके मस्तिष्क को, जिस प्रकार की सतह पर आप चल रहे हैं या छू रहे हैं, इसके बारे में जानकारी देते हैं। लेकिन यह आपका प्रघाणी तंत्र है जो आन्तरिक मार्गदर्शक प्रणाली की तरह कार्य करता है जो आपके मस्तिष्क से कहता है कि आपका शरीर पृथ्वी और इसकी गुरुत्व-शक्ति के सम्बन्ध में हवा में कहाँ है।
प्रघाणी तंत्र पाँच भागों से बना है जो संतुलन से सम्बन्ध रखता है: तीन अर्धवृत्ताकार नली और दो कोश। अर्धवृत्ताकार नलियों का नाम उत्कृष्ठ नली, समतल (पार्श्वीय) नली, और निम्न (पृष्ठ) नली रखा गया है। दो कोशों को क्षुद्रकोश और लघुकोश कहा जाता है।
कमरे के किनारे पर जिस तरह दीवारें और फ़र्श एक कोने पर मिलते हैं, उसी तरह अर्धवृत्ताकार नलियाँ एक दूसरे के समकोण पर समतल में रहती हैं। नलियाँ मार्ग हैं जो खोपड़ी की सख़्त हड्डी में छुपे आन्तरकर्ण को बनाती हैं, जिसे शंखास्थि कहा जाता है। इस अस्थि-भूलभुलैया के अन्दर एक और आन्तरकर्ण है, जिसे झिल्लीयुक्त आन्तरकर्ण कहा जाता है। प्रत्येक झिल्लीयुक्त अर्धवृत्ताकार नली के अन्त में, कुछ होता है जो उभार की तरह लगता है, जिसे कलशिका कहा जाता है। झिल्लीयुक्त आन्तरकर्ण के अन्दर अन्तःकर्णोदक नामक एक ख़ास तरल होता है। और झिल्ली के बाहर परिलसीका नामक एक और तरल होता है जो एक अलग रासायनिक रचना का होता है।
कलशिका नामक नली के इस सूजे हुए भाग में गट्ठे के रूप में ख़ास रोम कोशिकाएँ हैं जो कम्बु-शिखर नामक लेसदार समूह में जड़ी हुई हैं। जब आप किसी दिशा में अपना सिर घुमाते हैं, तब अन्तःकर्णोदकी तरल ख़ुद नलियों की गति के कुछ-कुछ पीछे रह जाता है; और इसीलिए तरल कम्बु-शिखर और रोम गट्ठे को मोड़ देता है जो उसमें होते हैं। रोम गट्ठे की गति रोम कोशिका की विद्युत् विशेषताओं में परिवर्तन उत्पन्न करती हैं, और यह क्रमशः स्नायु कोशिकाओं के ज़रिए आपके मस्तिष्क को संदेश पहुँचाते हैं। संदेश न सिर्फ़ इन वैयक्तिक रोम कोशिकाओं से मस्तिष्क तक नीचे स्नायुओं के ज़रिए यात्रा करते हैं, जिन्हें अन्तर्गामी स्नायु कहते हैं, बल्कि मस्तिष्क से अपवाही स्नायुओं के ज़रिए प्रत्येक रोम कोशिका तक वापस भी आते हैं ताकि जब आवश्यक हो तब जानकारी क्षतिपूर्ति करनेवाली रोम कोशिका को जानकारी दे सके।
अर्धवृत्ताकार नलियाँ किसी भी दिशा में आपके सिर की कोणीय या चक्रीय गति का पता लगा सकती हैं, जैसे इसे आगे या पीछे की ओर झुकाना, एक तरफ़ या दूसरी तरफ़ इसे लिटाए रखना, या बाईं या दाईं तरफ़ इसे घुमाना।
दूसरी तरफ़, क्षुद्रकोश और लघुकोश रेखित त्वरणों का पता लगाते हैं; इसीलिए इन्हें गुरुत्व संवेदक कहा जाता है। उनमें भी रोम कोशिकाएँ होती हैं, और ये रोम कोशिकाएँ बिन्दु में होती हैं। उदाहरण के लिए, लघुकोश आपके मस्तिष्क को जानकारी भेजता है जो जब आप लिफ़्ट में ऊपर उठ रहे होते हैं, तब आपको ऊपर की ओर बढ़ने की अनुभूति देता है। क्षुद्रकोश मुख्य संसूचक है जो तब प्रतिक्रिया दिखाता है जब आप कार में जा रहे होते हैं और एकाएक उसे तेज़ करते हैं। यह आगे या पीछे की ओर ढकेले जाने की अनुभूति देने के लिए आपके मस्तिष्क को जानकारी भेजता है। फिर आपका मस्तिष्क निर्णय करने के लिए, जैसे आपकी स्पष्ट गति की प्रतिक्रिया में आपकी आँखों और अंगों को कैसे चलाना है, इस जानकारी को अन्य मनोवेगों के साथ जोड़ता है। यह आपको अपनी अवस्था बनाए रखने में मदद करता है।
यह एक अद्भुत प्रणाली है जो इसके अभिकल्पक, यहोवा परमेश्वर को आदर करती है। शोध-कर्ता वैज्ञानिक भी इसकी अभिकल्पना से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकते। जीव-विज्ञान और शरीरविज्ञान के प्रॉफ़ॆसर, ए. जे. हडस्पथ ने साइन्टिफिक अमेरिकन (अंग्रेज़ी) पत्रिका में लिखा: “लेकिन, अतिरिक्त कार्य जीव-विज्ञान-सम्बन्धी तंत्र के इस छोटे टुकड़े की संवेदनशीलता और जटिलता पर केवल अचरज की भावना बढ़ा सकता है।”
प्रघाणी तंत्र की अपक्रियाएँ
मेरे मामले में मेरी आन्तरिक कर्ण की समस्या का निदान ओटोस्पोनजियोसिस या कर्णगहनसम्पुटकाठिन्य के तौर पर किया गया। यह एक स्थिति है जहाँ वह हड्डी जिसमें एक व्यक्ति का प्रघाणी तंत्र होता है, मुलायम या स्पंजी हो जाती है। साधारणतया यह हड्डी बहुत सख़्त रहती है, यहाँ तक कि आपके शेष शरीर के अस्थि संघटक से भी सख़्त। ऐसा समझा जाता है कि मुलायम होने की प्रक्रिया में एक एन्जाइम उत्पन्न होता है जो आन्तरिक कर्ण के तरल में रिस जाता है और उसे रासायनिकी तौर पर विघटित करता है या वास्तव में तरल को ज़हरीला कर देता है। यह निरन्तर गति की बेतुकी अनुभूति उत्पन्न कर सकता है, यद्यपि आप शायद खड़े होंगे या शान्त लेटे होंगे।
मेरे लिए यह मेरे पैरों तले के फ़र्श को ऐसा कर रहा था मानो वह तंरग गति में लहरा रहा हो, कभी-कभी मीटर की एक तिहाई की जितनी ऊँचाई तक। लेटते वक़्त, मैंने ऐसा महसूस किया मानो मैं मीटर-भर ऊँची समुद्री लहरों के बीच एक चप्पुवाली नौका की तह में लेटा हुआ हूँ। किसी बेहोशी के दौरे की तरह यह अनुभूति आकर चली नहीं गई, लेकिन यह आयी और बिना रुके महीनों, दिन में २४ घंटे मेरे साथ थी। एकमात्र राहत मिली जब मैं सोते वक़्त बेहोश होता था।
वजहें और चिकित्साएँ
ओटोस्पोनजियोसिस/कर्णगहनसम्पुटकाठिन्य की वजह अब भी अज्ञात है, हालाँकि आनुवांशिक तत्व के साथ कुछ सम्बन्ध शायद शामिल हो। चिकित्सीय विज्ञान के लिए इस स्थिति का अध्ययन करना कठिन रहा है क्योंकि यह मनुष्यों के लिए अनोखी लगती है। विरले ही, यदि कभी हो तो, यह जानवरों में दिखती है। ओटोस्पोनजियोसिस कर्णक्ष्वेड (कान में घंटी बजना), सर का भारी-भारी महसूस होना, चक्कर-आने की जैसी भावना, असंतुलन की भावना, या भ्रमि (चक्कर) के विभन्न प्रकार उत्पन्न कर सकता है। वही स्थिति मध्य-कर्ण में रकाब के स्थिरीकरण उत्पन्न कर सकती है और प्रेरक श्रवण की कमी उत्पन्न कर सकती है। यदि ओटोस्पोनजियोसिस कर्णावर्त तक पहुँचता है, तो यह स्नायु क्रिया को नाश करने के द्वारा संवेदक-तंत्रिका श्रवण की कमी भी उत्पन्न कर सकता है।
इस स्थिति के लिए उपचार होते हैं। कुछ में शल्यचिकित्सा शामिल है (जुलाई ८, १९८८, सजग होइए!, अंग्रेज़ी का पृष्ठ १९ देखिए); अन्य, कैल्शियम और फ्लोराइड संपूरकों के ज़रिए अस्थि विकृति को रोकने की कोशिश करते हैं। कभी-कभी चीनी-मुक्त आहारों का सुझाव दिया जाता है क्योंकि आन्तरिक कर्ण रक्त-शर्करा के लिए अत्यधिक भूखा होता है। दरअसल, आन्तरिक कर्ण की समतुल्य मात्रा के मस्तिष्क को जितनी चीनी लगती है, आन्तरिक कर्ण को अपने आपको बल प्रदान करने के लिए उससे तीन गुणा ज़्यादा चीनी की ज़रूरत होती है। एक स्वस्थ कर्ण बहुत अच्छी तरह से रक्त-शर्करा में सामान्य उतार-चढ़ाव को संभालता है; लेकिन एक दफ़ा जब कर्ण को क्षति हो जाती है, ये उतार-चढ़ाव आपके चक्कर खाने का कारण हो सकते हैं। एक दफ़ा आपके आन्तरिक कर्ण को क्षति हो जाती है तो कैफ़ीन और मदिरा भी हानिकारक प्रतीत हो सकते हैं। हालाँकि इस लेख की शुरूआत में ज़िक्र की गयी समुद्री गश्त लगानेवाली जहाज़ी सैर ने वास्तव में इस समस्या को उत्पन्न नहीं किया था, तापमान, नमी, और भोजन की आदतों में परिवर्तनों ने संभवतः असंतुलन को उत्पन्न किया।
आपका आन्तरिक कर्ण आपके लिए सुनने से ज़्यादा कार्य करता है। एक अद्भुत और आश्चर्यजनक तरीक़े से, यह आपको अपना संतुलन बनाए रखने में मदद करता है। इसकी अभिकल्पना से हमें अपने सृष्टिकर्ता की दस्तकारी पर ताज्जुब होना चाहिए, और इससे हमें उसके सृष्टिकर्तृत्व के लिए अपना मूल्यांकन को गहराना चाहिए।—योग दिया हुआ।
[पेज 26 पर रेखाचित्र/तसवीर]
(भाग को असल रूप में देखने के लिए प्रकाशन देखिए)
आपका विस्मयकारी प्रघाणी तंत्र
बाहरी दृश्य
उत्कृष्ट नली
अण्डाकार खिड़की
कर्णावर्त
गोलाकार खिड़की
निम्न नली
समतल नली
भीतरी दृश्य
शंखास्थि
झिल्लीयुक्त आन्तरकर्ण
कलशिका
लघुकोश
लम्ब गति संसूचक
कर्णावर्त
सुनने का अंग
बिन्दु
क्षुद्रकोश
शिखा
समतल गति संसूचक
कोणीय गति को नापता है