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सजग होइए!–1996
g96 4/8 पेज 28-29

विश्‍व-दर्शन

ठण्डे पानी में निमज्जन से बचना

बर्फ़ीले पानी में गिरनेवाले लोग इतनी जल्दी क्यों मर जाते हैं, इसकी जाँच करनेवाले वैज्ञानिकों ने पाया है कि शीत सदमे के प्रति शरीर की स्वाभाविक प्रतिक्रिया है अतिश्‍वसन करना। “एकाएक श्‍वास का अन्तर्ग्रहण होने के बाद पानी का अंतर्वहन—और डूब जाना—होता है,” न्यू साइन्टिस्ट (अंग्रेज़ी) पत्रिका कहती है। अतिश्‍वसन को रोका नहीं जा सकता है। सो उत्तरजीविता, अपने सिर को पानी से तब तक ऊपर रखने पर निर्भर करती है जब तक कि हवा को निगलने की प्रतिक्रिया थम नहीं जाती, साधारणतया दो या तीन मिनट के अन्दर।

सच्चाई बोलने के लिए कोई बाध्यता नहीं

हाल के अमरीकी अदालती मुक़दमों ने दुनिया-भर के लोगों का ध्यान खींचा है और दर्शकों को चकित किया है। “जबकि अभियोक्‍ताओं के पास सच्चाई पेश करने की बाध्यता होती है, प्रतिवादी वकील अलग लक्ष्यों पर लगे रहते हैं,” द न्यू यॉर्क टाइम्स्‌ कहता है। “प्रतिवादी वकील का काम है कि वह मुवक्किल को रिहाई, एक हंग-जूरी (एक जूरर के मन में भी तर्कसंगत संदेह को बिठाने के द्वारा) या निम्नतम गम्भीर आरोपों पर दोषसिद्धि दिलाए।” “यह निश्‍चित करने के लिए उनकी कोई बाध्यता नहीं होती कि एक दोषी-नहीं अभिनिर्णय सही है,” न्यू यॉर्क विश्‍वविद्यालय कानून स्कूल के कानूनी नीतिशास्त्र का शिक्षक, स्टीफन गिल्लर्स्‌ कहता है। “हम जूरी से कहते हैं कि मुक़दमा सच्चाई के लिए खोज है, और हम उनसे यह कभी नहीं कहते कि प्रतिवादी वकील उन्हें उल्लू बनाने के लिए बाध्य हैं।” जब “ऐसे तथ्यों का सामना होता है जो मुवक्किल की ओर स्पष्ट रूप से संकेत करता है, तो वकीलों को अकसर जूरी के लिए कहानियाँ गढ़नी पड़ती हैं ताकि जूरी तथ्यों के बजाय उस पर विचार करें, जिससे कि वे उन तथ्यों को अनदेखा करके रिहाई के लिए वोट दें,” टाइम्स्‌ कहता है। तब क्या होता है जब वकील जानते हैं कि उनका मुवक्किल दोषी है लेकिन फिर भी वह मुवक्किल जूरी के साथ अपना सिक्का आजमाने की जिद्द करता है? “तब वकील यूरिया हीप की तरह, झूठी नम्रता से पूर्ण अदालत में जाएँगे, और अपने मुवक्किल की कहानी की सत्यनिष्ठा पर उनके गहरे विश्‍वास की घोषणा करेंगे, यह जानते हुए कि यह १०० प्रतिशत झूठी है,” गिल्लर्स्‌ कहता है।

मगरमच्छ समाचार

हाल ही में खोदकर निकाले गए एक प्राचीन मगरमच्छ के जीवाश्‍मी जबड़े, मगरमच्छ परिवार के “शायद सबसे पहले ज्ञात शाकभक्षी सदस्य को चित्रित” करता है, नेचर (अंग्रेज़ी) पत्रिका रिपोर्ट करती है। आधुनिक मगरमच्छ के लम्बे नुकीले दाँतों के बजाय, जिससे आज मनुष्य इतने भयभीत होते हैं, इस प्राचीन पुरखा के पास चपटे दाँत थे जो कहा जाता है कि घास चबाने के लिए बेहतर उपयुक्‍त थे। संकेत हैं कि यह जीव—यान्गसी नदी के दक्षिणी तट के नज़दीक एक पहाड़ी पर चीन के हूबे प्रदेश में चीनी और कॆनेडियन अन्वेषकों द्वारा खोजा गया—एक थल-निवासी भी था, न की एक उभयचर। इसका आकार? लम्बाई में इसकी माप लगभग तीन फीट थी।

बढ़ता दबाव

रियो डि जनेरो, ब्राज़िल में हाल के एक अध्ययन ने पाया कि चिकित्सीय देखरेख खोजनेवाले ३५ प्रतिशत से भी ज़्यादा लोग विभिन्‍न प्रकार के मानसिक व्याकुलता से पीड़ित थे, वेज़ा (अंग्रेज़ी) रिपोर्ट करती है। पत्रिका ने विश्‍व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यू.एच.ओ.) के लिए मानसिक-स्वास्थ्य निर्देशक, डॉ. ज़ोरज़े ऑल्बर्टू कोस्टा ई सीलवा से पूछा: “इन आँकड़ों को कैसे समझाया जा सकता है? क्या संसार बदतर हो गया है या क्या लोग मनोवैज्ञानिक रूप से कमज़ोर हो गए हैं?” उसका जवाब: “हम अति शीघ्र परिवर्तनों के समय में जी रहे हैं, जिसके कारण इस हद तक चिन्ता और दबाव उत्पन्‍न होता है जिसे मानव इतिहास में पहले कभी नहीं देखा गया।” दबाव का एक सामान्य स्रोत है, वह दावा करता है, रियो डि जनेरो में व्यापक हिंसा। यह अकसर अभिघातजोत्तर दबाव की ओर ले जाता है, जो, वह समझाता है, “लोगों को प्रभावित करता है जब वे किसी-न-किसी तरीक़े से जीवन को ख़तरे में डालनेवाली स्थिति में रहे हैं। दिन के दौरान वे लगभग सभी चीज़ों के सम्बन्ध में असुरक्षा प्रकट करते हैं। रात को उन्हें दुःस्वप्न आते हैं जिनमें वे उस घटना से फिर से गुज़रते हैं जिसने उनके जीवन को ख़तरे में डाला था।”

स्वास्थ्य असमानता

अमीर और ग़रीब राष्ट्रों के बीच स्वास्थ्य असमानता बढ़ती जा रही है। विश्‍व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यू.एच.ओ.) अनुमान लगाता है कि—कम-विकसित देशों में रहनेवालों के ५४ वर्षों की तुलना में—विकसित देशों में रहनेवाले और वहाँ जन्मे लोगों की औसतन जीवन प्रत्याशा ७६ वर्ष है। १९५० में, ग़रीब देशों में शिशु मृत्यु-दर, अमीर देशों में जितनी थी उससे तीन गुना ज़्यादा थी; अब यह १५ गुना ज़्यादा है। १९८० के दशक के अन्त तक, ग़रीब देशों में प्रसव-सम्बन्धी जटिलताओं की वजह से मृत्यु दर अमीर राष्ट्रों से १०० गुना ज़्यादा थी। डब्ल्यू.एच.ओ. कहता है कि समस्या में योग देता हुआ, यह तथ्य है कि ग़रीब देशों में रहनेवाले लोगों में से आधे से भी कम लोगों को साफ़ पानी और स्वास्थ्य-रक्षा सुलभ है। संयुक्‍त राष्ट्र के मुताबिक़, “सबसे कम विकसित देशों” की संख्या १९७५ में २७ से बढ़कर १९९५ में ४८ हो गयी है। संसार-भर में १३० करोड़ ग़रीब लोग हैं, और उनकी संख्या बढ़ती जा रही है।

सटीक जाड़े का कोट

हवाई-जहाज़ों से ध्रुवीय रीछों को देखने का प्रयास करनेवाले वैज्ञानिकों को बहुत कठिन समय झेलना पड़ता है—और केवल इस स्पष्ट वजह से नहीं कि रीछ सफ़ेद होते हैं और हिम-भूदृश्‍यों पर निवास करते हैं। पॉप्यूलर साइन्स्‌ (अंग्रेज़ी) के मुताबिक़, वैज्ञानिकों के पास ऐसा लगता था कि उस समस्या के लिए एक चतुर हल था: उन्होंने यह तर्क करते हुए संवेदी अवरक्‍त फ़िल्म इस्तेमाल की कि यह इन भीमकाय जीवों से निकलती हुई शरीर की ऊष्मा का आसानी से पता लगा सकेगी। लेकिन फ़िल्म खाली वापस आयी! ऐसा लगता है कि ध्रुवीय रीछ का कोट इतना प्रभावकारी ऊष्मा-रोधी है कि जानवर से मुश्‍किल से बहुत ही कम ऊष्मा निकल पाती है। पत्रिका यह भी नोट करती है कि कोट के बाल सूरज की परा-बैंगनी किरणों का बखूबी चालन करते हुए प्रतीत होते हैं, और उन्हें रीछ में ऐसी कोशिकाओं, जिन्हें “सौर कोशिकाएँ” कही जा सकती हैं, की ओर आकर्षित करते हैं जो किसी-न-किसी तरह से ऐसे प्रकाश को ऊष्मा में बदलने में समर्थ होते हैं।

बेहोश होते प्रशंसक

रॉक समारोहों में इतने सारे प्रशंसक बेहोश क्यों हो जाते हैं? बर्लिन, जर्मनी के विश्‍वविद्यालय अस्पताल के एक तंत्रिका-विज्ञानी ने हाल ही में उस घटना को जाँचा। बर्लिन के एक रॉक समारोह में, जिसमें मुख्यतः युवतियाँ उपस्थित थीं, प्रदर्शन के दौरान कुछ ४०० युवतियाँ बेहोश हो गयीं। डिस्कवर (अंग्रेज़ी) पत्रिका के मुताबिक़, तंत्रिका-विज्ञानी ने पाया कि बेहोश होनेवालियों में से ९० प्रतिशत आगे की पंक्‍तियों में खड़ी थीं। सामने की पंक्‍तियों की इन सीटों को पाने के लिए, लड़कियों ने लम्बी कतारों में घंटों इन्तज़ार किया था, और अनेकों ने हाल ही में खाया नहीं था या पिछली रात सोयी नहीं थीं। अन्य तथ्यों से—उनके ख़ुद का चीखना और पीछे की भीड़ से दबाव से—छाती पर दबाव पड़ा, जिससे रक्‍तचाप कम हो गया। इसने क्रमशः, मस्तिष्क को लहू की सप्लाई से वंचित कर दिया। इसके बाद बेहोशी होने लगी। जबकि तंत्रिका-विज्ञानी ने सलाह दी कि रॉक प्रशंसक पहले से खाएँ और सोएँ, सीटों पर बैठे रहें, और शो के दौरान शान्त और भीड़ से दूर रहें, उसने स्वीकार किया कि कुछ ही किशोर-किशोरी प्रशंसक संभवतः इसका अनुपालन करेंगे।

समय जहाँ जाता है

दिन कहाँ चला गया? अनेक लोग आडंबरपूर्ण रूप से यह सवाल पूछते हैं, लेकिन हाल के एक अध्ययन ने इसका जवाब वैज्ञानिक तौर पर देने का प्रयास किया। इलॆनॉय, अमरीका में एक अनुसंधान संस्था ने कुछ ऐसे ३,००० लोगों की दैनिक गतिविधियों का तीन-साल का अध्ययन संचालित किया जिनसे कहा गया था कि वे अपना समय कैसे बिताते हैं इसका एक जारी रिकार्ड रखें। समूह में, १८ की उम्र से लेकर ९० की उम्र तक के लोग थे और इसमें अनेक पृष्ठभूमियों के लोग थे। मुख्य समय-नाशक थी नींद। इसके बाद था काम, जो प्रति दिन औसतन १८४ मिनट लेता था। इसके पश्‍चात्‌ आया टीवी और वीडियो देखना, जो १५४ मिनट लेता था। धरेलू कामकाज़ ६६, सफ़र और आना-जाना करना ५१, बनाव-श्रंगार ४९, और बच्चा और पालतू जानवर की देखरेख २५ मिनट लेता था। सूचि के अन्त के क़रीब थी उपासना, जो प्रति दिन औसतन १५ मिनट लेती थी।

बच्चे की देखभाल मुफ़्त करना?

उपनगर के परेशान माता-पिताओं ने दूसरों से अपने बच्चों की देखभाल करवाने का एक नया तरीक़ा पाया है ताकि वे कुछ ख़रीदारी करने के लिए मुक्‍त हो सकें। वे अपने बच्चों को खिलौने की एक दुकान पर या एक बहुमीडिया कम्प्यूटर की दुकान पर छोड़ देते हैं। बच्चे, जो उच्च-तकनीकी मशीनों से मोहित होते हैं, माता-पिताओं के लौटने तक प्रदर्शन नमूनों के साथ खेलते रहते हैं। लेकिन, इसमें आश्‍चर्य की बात नहीं है कि विक्रेता इस रूख से प्रसन्‍न नहीं हैं, न्यूज़वीक (अंग्रेज़ी) पत्रिका रिपोर्ट करती है। वे शिकायत करते हैं कि कम-से-कम, बच्चे संभावित ग्राहकों को प्रदर्शन मॉडल्स का इस्तेमाल करने से रोकते हैं; यहाँ तक कि वे इन्हें तोड़ देते हैं। अन्य लोगों ने पाया है कि कुछ माता-पिता लौटकर शिकायत करते हैं यदि किसी ने उनके बच्चे का ध्यान नहीं रखा हो या उन्हें बाथरूम नहीं ले गया हो! अतः, कुछ दुकानें इस रूख से लड़ रही हैं—या तो प्रदर्शन कम्प्यूटरों को कम सुलभ बनाने के द्वारा या चौकीदार को बुलाने के द्वारा यदि वे ऐसे बच्चे पाते हैं जिनकी देखभाल कोई नहीं कर रहा हो।

नए मूल्य

रूसी युवा साथ ही सामान्यतः रूसी समाज मूल्यों के संकट से गुज़र रहे हैं। सेन्ट पीटरस्बर्ग, रूस में लिए गए हाल के एक सर्वेक्षण ने पाया कि युवाओं की मनोवृति “ऐसे मूल्यों” पर ज़ोर देती है “जो मानवजाति के लिए सामान्य हैं—अर्थात्‌, स्वास्थ्य, जीवन, संयुक्‍त-परिवार, और प्रेम साथ ही साथ व्यक्‍तिगत मूल्यों, जैसे क़ामयाबी, पेशा, सुख-साधन, और भौतिक सुरक्षा,” रूसी अख़बार, सॉक्ट-पीटरबर्गस्की रिपोर्ट करता है। अन्य प्रबल होनेवाले मूल्य माता-पिताओं, पैसे, ख़ैरियत, ख़ुशी, मित्रता, और ज्ञान पर केन्द्रित होते हैं। दिलचस्पी की बात है, अच्छा नाम होना और व्यक्‍तिगत स्वतंत्रता का आनन्द उठाना युवाओं के मन में अन्तिम दो स्थानों पर है। अन्तिम स्थान पर क्या है? ईमानदारी। रिपोर्ट निष्कर्ष निकालती है: “यदि झूठ बोलना उनके चारों तरफ़ है, तो बढ़ रही पीढ़ी के मन में [ईमानदारी] मूल्यहीन है।”

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