विश्व-दर्शन
हिंसक सवारियाँ
व्यापारिक विमान-कंपनियाँ रिपोर्ट करती हैं कि क्रोधित सवारियों का हिंसक व्यवहार तेज़ी से बढ़ रहा है। उड़ान में देरी और गुमशुदा सामान जैसी बातों से परेशान होकर, सवारी “उड़ान परिचारकों पर थूकते, भोजन की ट्रे फेंकते और कभी-कभार कर्मचारियों पर हाथ उठाते हैं। कभी-कभी तो वे विमान चालकों पर भी हमला बोल देते हैं,” द न्यू यॉर्क टाइम्स रिपोर्ट करता है। अधिकारीगण ख़ासकर उड़ते विमानों में हो रहे ऐसे हमलों से चिंतित हैं, क्योंकि इनके परिणामस्वरूप विमान दुर्घटनाएँ हो सकती हैं। एक विमान-कंपनी हर महीने मौखिक या शारीरिक हमलों के लगभग १०० मामले रिपोर्ट करती है। टाइम्स कहता है कि “शांति भंग करनेवाली सवारियाँ स्त्री-पुरुष, भिन्न-भिन्न जाति के, विभिन्न आयु के लोग होते हैं और वे किफ़ायती वर्ग, व्यवसाय वर्ग, या प्रथम वर्ग में वैसे ही बेहूदा ढंग से पेश आते हैं। लगभग हर तीन में से एक व्यक्ति पीया हुआ होता है।”
मिरगीग्रस्त लोगों के लिए कुत्तों से मदद
इंग्लैंड में मिरगीग्रस्त लोगों को होनेवाले मिरगी के दौरे के बारे में आग़ाह करने के लिए कुत्तों को प्रशिक्षित किया जा रहा है। इससे मरीज़ को दौरे के लिए तैयार होने के लिए पर्याप्त समय मिलेगा, लंदन का द टाइम्स रिपोर्ट करता है। “दौरे के दौरान भौंकने के लिए कुत्ते को इनाम दिए जाने के परिणामस्वरूप,” विकलांग लोगों के लिए कुत्तों को प्रशिक्षित करने में माहिर एक चैरिटी की निर्देशिका समझाती हैं, “पीड़ित व्यक्ति में दौरे से तुरंत पहले होनेवाले चिन्हों तथा लक्षणों को उसने अच्छी तरह पहचान लिया है। यह जानते हुए कि ऐसी प्रतिक्रिया के लिए उसे इनाम मिलेगा, कुत्ता ऐसे चिन्हों के प्रति ज़्यादा सक्रिय हो जाता है।”
कोई डॉक्टरी “जवानी का सोता” नहीं
जराचिकित्सक ऑन्द्रेया प्रात्स के मुताबिक़, जवानी को क़ायम रखने के लिए ली गयी फैशनपरस्त दवाइयों से, जैसे कि अमुक हार्मोन, शायद “कोई-न-कोई लाभ हो लेकिन ये शायद आपकी सेहत को काफ़ी नुक़सान भी पहुँचाएँ।” वृद्धावस्था के ख़िलाफ़ संघर्ष में, “नयी-नयी आदतें नयी-नयी दवाइयों से ज़्यादा प्रभावकारी होती हैं,” डॉ. प्रात्स सलाह देती हैं। ब्राज़िल की सूपरीनटरासॉन्ता पत्रिका कहती है, जीवनकाल को बढ़ानेवाली अच्छी आदतों में शायद पर्याप्त नींद पाना, शांत मनोभाव बनाए रखना, टहलना और थोड़ा-बहुत व्यायाम करना, मानसिक तौर पर मेहनत करना, तथा वसा से दूर रहना शामिल है। फलों व सब्ज़ियों में पाए जानेवाले विटामिन व खनिज ग्रहण करना भी महत्त्वपूर्ण है। बुढ़ाने में शरीर की तमाम कोशिकाएँ शामिल होती हैं, और कोई एकल तत्व साथ-साथ शरीर के समस्त विभिन्न अंगों को लाभ नहीं पहुँचा सकता।
भोजन बनाना—एक विलुप्त होती कला?
ऑस्ट्रेलिया के क्वीन्सलैंड प्रांत में खान-पान आदतों पर किए गए १२ महीने के एक अध्ययन के मुताबिक़, खाना पकाना विलुप्त होती कला बन सकती है। द कुरियर मेल रिपोर्ट करता है कि २५ की आयु के नीचे के अधिकांश लोगों में अपना ख़ुद का भोजन पकाने का आवश्यक हुनर नहीं है। अध्ययन की लेखिका, जन-स्वास्थ्य लेक्चरर मार्गरॆट विंजॆट ने कहा कि अतीत में युवा लोग—ख़ासकर लड़कियाँ—घर पर अपनी-अपनी माँ से या स्कूल में पकाना सीखा करती थीं। लेकिन आजकल ऐसा लगता है कि अधिकांश युवा लोग, जिनमें लड़कियाँ शामिल हैं, खाना बनाना नहीं जानते और यह नहीं लगता कि उन्हें सीखने में रुचि है। अनेक लोग पहले से तैयार भोजन या झटपट भोजन पसंद करते हैं। कुछ लोग मानते हैं कि ऐसी आहार-संबंधी आदतें उच्च रक्तचाप, मधुमेह, व हृदयरोग में वृद्धि की ओर ले जा सकती हैं।
वयस्क स्तनधारी जीव का पहला क्लोन
स्कॉटलैंड के शोधकर्ताओं ने फरवरी के अंत में इस ऐलान से दुनिया को चौंका दिया कि उन्होंने एक वयस्क भेड़ के डीएनए से एक क्लोन किया हुआ मेम्ना उत्पन्न किया। हालाँकि भ्रूणीय कोशिकाओं का क्लोन किया जाना सालों से होता आ रहा है, अब तक अनेक वैज्ञानिकों ने ऐसा सोचा था कि एक वयस्क स्तनधारी जीव का आनुवंशिक जुड़वा उत्पन्न करना नामुमकिन है। शोधकर्ताओं ने कहा कि, सैद्धांतिक रूप से मनुष्यों पर भी यही तरीक़ा लागू किया जा सकता है—यानि किसी वयस्क से ली गयी कोशिका के डीएनए को आनुवंशिक तौर पर हू-ब-हू, लेकिन ज़्यादा युवा जुड़वे को उत्पन्न करने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। लेकिन, अंतर्राष्ट्रीय हॆरल्ड ट्रीब्यून के मुताबिक़, परियोजना की अगुवाई करनेवाले वैज्ञानिक ईअन विलमॆट इस विचार को नीतिशास्त्रीय रूप से अस्वीकारयोग्य समझते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन इससे सहमत है, और विरोध में कहता है कि मानव का क्लोन करना ‘प्रयोग का आत्यंतिक रूप’ होगा, द जरनल ऑफ़ दी अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन रिपोर्ट करती है।
बचपन में दमा होने का संबंध तिलचट्टों से
स्वास्थ्य-संबंधी अमरीकी राष्ट्रीय संस्थानों के लिए किया गया एक पाँच-वर्षीय अध्ययन, बीच शहर में रहनेवाले बच्चों में दमे की बढ़ती बीमारी के लिए तिलचट्टों को क़सूरवार ठहरा रहा है, न्यू यॉर्क का डेली न्यूज़ रिपोर्ट करता है। दमे से ग्रस्त १,५२८ बच्चों में से, जिन पर सात शहरों में अध्ययन किया गया, ३७ प्रतिशत बच्चों को तिलचट्टों से बहुत एलर्जी थी। ऐसे बच्चे जिन्हें एलर्जी थी तथा जिनके शयनकक्षों में तिलचट्टों की भरमार थी, उन्हें दमे से पीड़ित दूसरे बच्चों की तुलना में अस्पताल में भर्ती होने की ज़रूरत की संभावना तीन गुना ज़्यादा थी। अध्ययन के मुखिया डॉ. डेविड रोसॆनस्ट्राइक ने तिलचट्टों के फंदे, कीटनाशक, बोरिक अम्ल के इस्तेमाल, तथा अच्छी तरह साफ़-सफ़ाई के द्वारा तिलचट्टों से लड़ने के लिए प्रोत्साहित किया। पूरे घर को वैक्युम क्लीनर से साफ़-सफ़ाई करने से धूल में मिले तिलचट्टों के मल का सफ़ाया करने में मदद होती है, उन्होंने कहा। “आपको खाद्य पदार्थ व पानी के किसी भी स्रोत को हटाना ज़रूरी है,” डॉ. रोसॆनस्ट्राइक आगे कहते हैं, “ख़ासकर पानी के रिसाव या टपकन को। तिलचट्टों को जीवित रहने के लिए पानी ज़रूरी है।”