बाइबल का दृष्टिकोण
क्या सन्यासवाद बुद्धि का ज़रिया है?
“लौह बेड़ियाँ, ज़ंजीरें, काँटेदार करधनी व नुकीले कॉलर पहने हुए तपस्वी . . . दूसरे काँटों व कँटीली झाड़ियों में लोटते, जानबूझकर कीड़ों के लिए उन्हें डंक मारना आसान बनाते, आग से अपने आपको जलाते तथा अपने घावों को छेड़कर उन्हें दीर्घकालिक पीपमय स्राव बना देते। बहुत ही कम आहार लेना जहाँ बहुत आम बात थी, कुछ ने तो केवल सड़ा-गला या अन्यथा घिनौने भोजन खाने के द्वारा इसे और भी बदतर बना डाला।”—ईडेथ साइमॆन द्वारा लिखित संत (अंग्रेज़ी)।
ये सन्यासी थे। इन्होंने अपने आपसे इतना बुरा सलूक क्यों किया? पुस्तक दुनिया की ख़ातिर—बौद्ध व ईसाई मठवाद की भावना (अंग्रेज़ी) में, लेखक समझाते हैं कि “कम-से-कम सुकरात (सा.यु.पू. पाँचवीं सदी) के समय से लेकर, व्यापक रूप से यह समझा गया था कि एक ऐसा जीवन जो बहुत ही सादगी-भरा हो, जो कामुक व भौतिक सुखविलासों से बाधित न हो, वह असल बुद्धि की पूर्व तैयारी थी।” सन्यासी सोचते थे कि शरीर को यूँ नाश करने से उनकी आध्यात्मिक संवेदनशीलता काफ़ी बढ़ जाएगी और उन्हें सच्चे प्रबोधन की ओर ले जाएगी।
सटीक रूप से सन्यासवाद की परिभाषा देना मुश्किल है। कुछ लोगों के लिए, इसका अर्थ बस आत्मानुशासन या आत्मत्याग है। प्रारंभिक मसीही ऐसे सद्गुणों को अनमोल समझते थे। (गलतियों ५:२२, २३; कुलुसियों ३:५) स्वयं यीशु मसीह ने सरल जीवन की सलाह दी जो भौतिकवादी जीवन-शैली से होनेवाली चिंताओं से बाधित न हो। (मत्ती ६:१९-३३) लेकिन, बहुत बार, सन्यासवाद को बहुत गंभीर तथा अकसर आत्यंतिक कार्यों से जोड़ा जाता है, जैसे कि ऊपर वर्णित किए गए हैं। क्या ऐसे सन्यास-संबंधी कार्य, ख़ासकर इनके ज़्यादा आत्यंतिक रूप में, वास्तव में बुद्धि का ज़रिया हैं?
झूठे अनुमानों पर आधारित
सन्यासवाद को जन्म देनेवाले अनेक तत्वज्ञानों में से एक विचार यह है कि भौतिक वस्तुएँ व शारीरिक सुख अपने आपमें बुरे हैं और इस वज़ह ये आध्यात्मिक प्रगति के लिए रोड़े हैं। एक और धारणा जिसने सन्यासवाद को बढ़ावा दिया, वह है व्यापक रूप से स्वीकृत विश्वास कि मनुष्य, देह व आत्मा से बना है। सन्यासी विश्वास करते हैं कि भौतिक देह आत्मा का क़ैदखाना है और शरीर इसका शत्रु है।
बाइबल क्या कहती है? शास्त्र दिखाता है कि जब परमेश्वर ने पृथ्वी की सृष्टि पूरी की, तब उसने घोषणा की कि वह तमाम वस्तुएँ जो उसने बनायी हैं—उसकी सारी शारीरिक, भौतिक सृष्टि—‘बहुत ही अच्छी’ थीं। (उत्पत्ति १:३१) परमेश्वर का इरादा था कि अदन की वाटिका में पुरुष व स्त्री भौतिक चीज़ों का लुत्फ़ उठाएँ। अदन नाम का अर्थ ही “सुख-विलास” या “आनंद” है। (उत्पत्ति २:८, ९) आदम व हव्वा परिपूर्ण थे और पाप करने तक अपने सृष्टिकर्ता के साथ अच्छे रिश्ते का अनुभव करते थे। उस समय से, अपरिपूर्णता परमेश्वर व मनुष्य के बीच रोड़ा बन गयी। फिर भी, परमेश्वर के नैतिक नियमों के सामंजस्य में जब मनुष्यों की वाज़िब तमन्नाओं को तृप्त किया जाता या परमेश्वर-प्रदत्त शारीरिक सुख-विलासों का मज़ा लिया जाता है, तब परमेश्वर व उसके उपासकों के संचार के बीच कभी-भी रोड़ा नहीं बन सकता है!—भजन १४५:१६.
इसके अलावा, बाइबल स्पष्ट रूप से सिखाती है कि मिट्टी से सृष्ट व मांस से बना इंसान खुद एक जीव है। शास्त्र न तो इस धारणा का समर्थन करता है कि जीव या आत्मा शारीरिक देह के अंदर जकड़े किसी क़िस्म की अभौतिक व अमर हस्ती है, ना ही इस विचार का कि शरीर किसी तरह से व्यक्ति को परमेश्वर के साथ एक नज़दीकी रिश्ता रखने में बाधक बनता है।—उत्पत्ति २:७.
स्पष्टतया, सन्यासवाद की धारणा परमेश्वर के साथ मनुष्य के रिश्ते को एक विकृत रूप में प्रस्तुत करती है। प्रेरित पौलुस ने आगाह किया कि मसीही होने का दावा करनेवाले कुछ जन मूलभूत बाइबल सच्चाइयों के बजाय भरमानेवाले मानवी तत्वज्ञान पसंद करेंगे। (१ तीमुथियुस ४:१-५) ऐसी राय रखनेवाले कुछ लोगों के बारे में एक धार्मिक इतिहासकार कहता है: “इस विश्वास ने कि भौतिक वस्तु दुष्ट थी . . . और कि मनुष्यों की आत्मा को भौतिक वस्तु की उलझन से मुक्त किया जाना ज़रूरी है, तीव्र सन्यासवाद को प्रेरित किया। इसमें मांस खाने, लैंगिक सहवास इत्यादि की मनाही थी, जिसका पालन केवल कुलीन ‘परिपूर्ण जन’ यानी परफॆक्टी कर सकते, जो विशेष दीक्षा प्राप्त करते हैं।” बाइबल इस प्रकार की सोच का समर्थन नहीं करती तथा यह प्रारंभिक मसीहियों का विश्वास नहीं था।—नीतिवचन ५:१५-१९; १ कुरिन्थियों ७:४, ५; इब्रानियों १३:४.
सन्यासवाद की कोई ज़रूरत नहीं
यीशु और उसके चेले सन्यासी नहीं थे। उन्होंने विभिन्न सताहटों व परीक्षाओं को सहा, लेकिन ये परीक्षाएँ कभी-भी स्वयं अपने ऊपर लाए गए कष्ट नहीं थीं। प्रेरित पौलुस ने मसीहियों को सावधान रहने के लिए आगाह किया, नहीं तो भरमानेवाले मानवी तत्वज्ञान उन्हें परमेश्वर के वचन की सच्चाई से बहका देते और उन्हें अतर्कसंगत, आत्यंतिक अभ्यासों की ओर ले जाते। पौलुस ने विशेषकर “कठोर शारीरिक यंत्रणा” का ज़िक्र किया। उसने कहा: “ये वे बातें हैं, अर्थात् धार्मिक आडम्बर, आत्मत्याग और कठोर शारीरिक यंत्रणा, जिनमें निस्सन्देह ज्ञान का नाम तो है, परन्तु इनसे शारीरिक वासनाओं को रोकने में कोई लाभ नहीं होता।” (कुलुस्सियों २:८, २३, NHT) सन्यासवाद विशेष पवित्रता या सच्चे प्रबोधन की ओर नहीं ले जाता।
यह सच है कि मसीही आज्ञाकारिता का मार्ग कड़े यत्न व आत्मानुशासन को सूचित करता है। (लूका १३:२४; १ कुरिन्थियों ९:२७) परमेश्वर का ज्ञान पाने के लिए व्यक्ति को कड़ी मेहनत करने की ज़रूरत है। (नीतिवचन २:१-६) साथ ही, बाइबल में ऐसे लोगों के लिए ठोस सलाह है जो “अभिलाषाओं और सुखविलास” के शिकंजे में पड़ जाते हैं तथा जो “परमेश्वर के नहीं बरन सुखविलास ही के चाहनेवाले” लोग बन जाते हैं। (तीतुस ३:३; २ तीमुथियुस ३:४, ५) लेकिन, ये शास्त्रीय पाठ सन्यासवाद के अभ्यास का समर्थन नहीं करते। परिपूर्ण मनुष्य यीशु मसीह ने सुख-विलास के कई मौक़ों का लाभ उठाया जिनमें खान-पान, नाच-गाना शामिल था।—लूका ५:२९; यूहन्ना २:१-१०.
सच्ची बुद्धि कोमल [तर्कसंगत] है, न कि आत्यंतिक। (याकूब ३:१७) यहोवा परमेश्वर ने हमारी शारीरिक देह को जीवन के अनेक सुख-विलासों का मज़ा लेने की क्षमता से सृष्ट किया है। वह चाहता है कि हम ख़ुश रहें। उसका वचन हमें बताता है: “मैं ने जान लिया है कि मनुष्यों के लिये आनन्द करने और जीवन भर भलाई करने के सिवाय, और कुछ भी अच्छा नहीं; और यह भी परमेश्वर का दान है कि मनुष्य खाए-पीए और अपने सब परिश्रम में सुखी रहे।”—सभोपदेशक ३:१२, १३.
[पेज 28 पर चित्र का श्रेय]
Saint Jerome in the Cavern/The Complete Woodcuts of Albrecht Dürer/Dover Publications, Inc.