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  • विश्‍व दर्शन
  • सजग होइए!–1996
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  • स्त्रियों के लिए अतिरिक्‍त कार्य-भार
  • “टी.बी. टाइम बम”
  • एक सचमुच बड़ा, सचमुच बदबूदार फूल
  • बग़ैर दर्द के सोना
  • १९९५ में “अधि-सॆकंड” जोड़ा गया
  • सूर्यप्रकाश मनोबल बढ़ाता है
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  • बाइबल समयों में यरूशलेम पुरातत्वविज्ञान क्या प्रकट करता है?
    प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1997
सजग होइए!–1996
g96 7/8 पेज 29

विश्‍व दर्शन

स्त्रियों के लिए अतिरिक्‍त कार्य-भार

क्या पुरुष और स्त्रियाँ घर का सारा काम बराबर बाँटते हैं? जर्मन फॆडरल ऑफिस ऑफ़ स्टैटिस्टिक्स द्वारा लिए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार नहीं। अर्थशास्त्री नोरबर्ट श्‍वार्ट्‌स और डीटर शैफर ने ७,२०० परिवारों को घर का सारा काम करने में बिताए गए समय का विश्‍लेषण करने और रिकार्ड रखने के लिए कहा। सर्वेक्षण में ऐसे काम शामिल थे जैसे बर्तन धोना, ख़रीदारी करना, बीमार रिश्‍तेदारों की देखभाल करना और कार की छोटी-मोटी मरम्मत करना। “इस बात को मद्देनज़र रखे बिना कि उनके पास एक नौकरी है या नहीं, स्त्रियाँ बिन-पगार का काम करने में पुरुषों से दुगना समय बिताती हैं,” सूदेउत्शे ज़ीतूंग रिपोर्ट करता है।

“टी.बी. टाइम बम”

क्षयरोग (TB) के नए-नए प्रकार जो अनेक औषधियों के प्रतिरोधी हैं, हर सप्ताह भारत में १०,००० लोगों को मौत के घाट उतार रहे हैं, अख़बार इन्डियन एक्सप्रॆस (अंग्रेज़ी) रिपोर्ट करता है। विश्‍व स्वास्थ्य संगठन के क्रेग क्लॉट के अनुसार, भारत “एक टी.बी. टाइम बम पर बैठा है।” संसार भर में, १.७५ अरब लोग क्षयरोग जीवाणुओं से संक्रामित हैं। विशेषज्ञों का एक दल, जो ब्रितानवी चिकित्सीय पत्रिका द लैन्सॆट द्वारा प्रायोजित एक सभा के लिए ४० देशों से उपस्थित हुए थे, कहता है कि औषधीय कम्पनियाँ बाज़ार में नई औषधियाँ लाने के लिए ज़रूरी पैसा लगाने के लिए अनिच्छुक हैं क्योंकि अधिकांश मामले ग़रीब विकासशील देशों में होते हैं।

एक सचमुच बड़ा, सचमुच बदबूदार फूल

दुनिया का सबसे बड़ा फूल वाक़ई एक अनोखी सृष्टि है। रैफ़्लीज़िया नामक यह फूल लगभग एक बस के पहिए के आकार का होता है और उसे खिलने के लिए इतना समय लगता है जितना एक मनुष्य को गर्भधारण से जन्म तक बढ़ने के लिए लगता है। और आकार ही एकमात्र कारण नहीं है जिसकी वज़ह से यह फूल एक गुलदस्ते के लिए नहीं चुना जाता। इससे बदबू आती है। मक्खियों को आकर्षित करने के लिए, जिनकी उसे परागण करने के लिए ज़रूरत होती है, रैफ़्लीज़िया सड़ रही मछलियों की तरह बदबू छोड़ता है। अतीत में, वर्षा-प्रचुर वनों में, जहाँ रैफ़्लीज़िया पैदा होते हैं, रहनेवाले मलेशियाई गाँववालों ने उसे इब्‌लीस की कटोरी नाम दिया है और देखते ही उसे काट डाला है। परन्तु, साऊथ चायना मॉर्निंग पोस्ट (अंग्रेज़ी) के अनुसार, मलेशिया के किनाबालू के राज्य उद्यान ने उस विरल फूल को बचाने के लिए क़दम उठाया है ताकि वैज्ञानिक उसका अतिरिक्‍त अध्ययन करें। स्थानीय गाँववाले अब पर्यटकों को रैफ़्लीज़िया के फोटो लेने के लिए जंगल में ले जाने के द्वारा अतिरिक्‍त पैसा कमाते हैं। बेशक, अनेक लोग एक सीमित दूरी बनाए रखते हैं।

बग़ैर दर्द के सोना

कुछ बिन-परची की दर्द की दवाएँ अनिद्रारोग में योगदान दे सकती हैं, टफ़्ट्‌स युनिवर्सिटी डायट एण्ड न्यूट्रीशन लॆटर रिपोर्ट करता है। “यह इसलिए है क्योंकि दर्द-निवारक के कुछ प्रमुख छाप में एक कप कॉफी के जितना, अथवा उससे ज़्यादा कैफ़ीन होती है।” कैफ़ीन को—एक मन्द उत्प्रेरक—अकसर ऐस्परीन और अन्य दर्द-नाशकों की प्रभावकारिता को बढ़ाने के लिए उनके साथ मिलाया जाता है। दरअसल, कुछ लोकप्रिय छाप की दो-गोली डोज़ में क़रीब १३० मिलीग्राम तक कैफ़ीन होती है। यह कॉफ़ी के “सामान्य कप में पायी जानेवाली ८५ मिलीग्राम से बहुत ज़्यादा है।” अतएव यह समाचारपत्र सुझाता है कि “क्रियाशील सामग्री” देखने के लिए एक दर्द-नाशक के लेबल को देखें यह पता लगाने के लिए कि कहीं उसमें कैफ़ीन तो नहीं।

१९९५ में “अधि-सॆकंड” जोड़ा गया

ऐसा लगता है कि पृथ्वी का परिक्रमण समय मापने का सबसे विश्‍वसनीय तरीक़ा नहीं है। द न्यू यॉर्क टाइम्स्‌ (अंग्रेज़ी) के अनुसार, वैज्ञानिकों के पास समय मापने का एक अधिक यथार्थ तरीक़ा है—सीज़ीयम परमाणु। परमाणु घड़ी के महत्त्वपूर्ण भाग के रूप में इस्तेमाल किया गया, यह सीज़ीयम परमाणु एक सॆकंड में ठीक ९,१९,२६,३१,७७० बार दोलन करता है। इस रफ़्तार से, यह परमाणु घड़ी “३,७०,००० वर्षों में क़रीब एक सॆकंड की ग़लती” का दावा करती है। इसकी तुलना में, पृथ्वी की परिक्रमा क़रीब दस लाख गुना कम यथार्थ है, और यही कारण है कि समय-समय पर एक “अधि-सॆकंड” जोड़ा जाना चाहिए। समयपाल लोगों के एक अन्तरराष्ट्रीय निकाय ने १९९५ के अन्त में एक ऐसे “अधि-सॆकंड” को जोड़ने का फ़ैसला किया। इसने “हमारे ग्रह की परिक्रमा और समय के बहाव को” मेल खाने दिया। परन्तु, इस शोध के लिए वैज्ञानिक शायद ही श्रेय ले सकते हैं। आख़िरकार, “घड़ी के अवपरमाण्विक कण, अंशतः, भूमण्डलीय व्यवस्थाओं की विशाल क्रमबद्धता की नक़ल करते हैं,” टाइम्स्‌ कहता है।

सूर्यप्रकाश मनोबल बढ़ाता है

इमारत में अधिक सूर्यप्रकाश लाना “और अधिक उत्पादनशीलता” और “अनुपस्थिति के कारण कम दिनों के नुक़सान” में परिणित होता है, द वॉल स्ट्रीट जर्नल (अंग्रेज़ी) रिपोर्ट करती है। मूलतः जिसे ऊर्जा बचाने के तरीक़े के रूप में आरम्भ किया गया था, इमारत की रचना जिससे कार्यक्षेत्र में धूप आती है, उन्‍नत कर्मचारी मनोबल के बड़े प्रतिफलों में परिणित हो रहा है। उदाहरणार्थ, जब एक बहुत ही बड़ी एरोस्पेस कम्पनी लॉकहीड कॉर्पोरेशन ने सनीवेल, कैलिफॉर्निया में एक नया दफ़्तर खोला, उसकी ऊर्जा-कुशल रूपरेखा ने “सर्वतोपरि ऊर्जा के ख़र्च को आधा कर दिया है।” परन्तु, जिस बात की लॉकहीड ने अपेक्षा नहीं की थी, वह थी कि उसके कर्मचारी अपने नए परिवेश को इतना पसन्द करते हैं कि १५ प्रतिशत से “अनुपस्थिति गिर गयी।” एक इमारत में अधिक धूप आने देने के लाभों को खुदरे व्यापारियों में भी देखा गया है। एक सौदागर ने पाया कि कृत्रिम प्रकाश के बजाय प्राकृतिक प्रकाश का इस्तेमाल करनेवाली दुकानों में बिक्री “उल्लेखनीय रूप से अधिक” थी।

एक जल-दर्शक विश्‍व

“अगली सदी के युद्ध पानी के लिए होंगे,” विश्‍व बैंक के पर्यावरण उपाध्यक्ष, इस्माएल सॆरागिल्डींग आगाह करते हैं। सॆरागिल्डींग के अनुसार, ८० देशों में पहले से ही पानी की कमी है जो स्वास्थ्य और अर्थ-व्यवस्थाओं को ख़तरे में डालती है। परन्तु समस्या यह नहीं है कि पृथ्वी में पर्याप्त पानी उपलब्ध नहीं है। “पृथ्वी पर ताज़े पानी की कुल मात्रा मानव आबादी की सभी सम्भावनीय ज़रूरतों से बढ़कर है,” जल-विज्ञानी रॉबर्ट ऑम्ब्रोजी कहते हैं। अधिकांश संकट ख़राब जल व्यवस्था के कारण होते हैं। सिंचाई में इस्तेमाल होनेवाला आधा पानी ज़मीन में रिस जाता है या वाष्पित हो जाता है। शहर जल-आपूर्ति प्रणाली अपने पानी में से ३० से ५० प्रतिशत, और कभी-कभी तो उससे भी ज़्यादा पानी चू देती है। “ऐसा समय आ रहा है,” द इकोनॉमिस्ट कहती है, “जब पानी को तेल की तरह एक मूल्यवान संसाधन समझा जाना चाहिए, हवा की तरह मुफ़्त नहीं।”

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