“चुपचाप बैठकर ध्यान दो!”
ध्यान अभाव अतिसक्रियता विकार के साथ जीना
“काफ़ी समय से जिम ने कहा था कि कैल बस बिगड़ गया था और अगर हम—मतलब मैं—सही-सही क़दम उठाएँ तो वह ठीक हो जाएगा। अब यहाँ यह डॉक्टर है जो हमसे कह रहा है कि क़सूर मेरा नहीं था, हमारा नहीं था, कैल के टीचर का नहीं था; हमारे नन्हें से लड़के को सचमुच कुछ समस्या थी।”
कैल ध्यान अभाव अतिसक्रियता विकार (ए.डी.एच.डी.) से पीड़ित है, एक ऐसी स्थिति से जिसकी विशेषताएँ हैं ध्यान न लगना, आवेगशील आचरण, और अतिसक्रियता। अनुमान लगाया जाता है कि इस विकार से स्कूल की उम्र के सभी ३ से ५ प्रतिशत बच्चे प्रभावित हैं। “उनके मन टीवी सेट की तरह हैं जिसमें ख़राब चैनल सिलॆक्टर हैं,” शिक्षा विशेषज्ञा प्रिसिल्ला एल. वेल कहती है। “एक विचार दूसरे की ओर ले जाता है, बग़ैर किसी व्यवस्था या अनुशासन के।”
आइए ए.डी.एच.डी. के तीन प्रमुख लक्षणों पर संक्षिप्त में विचार करें।
ध्यान न लगना: ए.डी.एच.डी. से पीड़ित बच्चा अनावश्यक बातों को छोड़कर केवल एक विषय पर ध्यान केंद्रित नहीं कर सकता। अतः, वह असंगत दृश्यों, आवाज़ों, और गंधों से आसानी से विकर्षित हो जाता है।a वह ध्यान दे रहा है, लेकिन कोई भी विशिष्ट बात उसका ध्यान आकर्षित नहीं करती। वह निर्धारित नहीं कर सकता कि कौन-सी बात उसकी प्रमुख एकाग्रता के योग्य है।
आवेगशील आचरण: ए.डी.एच.डी. से पीड़ित बच्चा नतीज़े पर ग़ौर किए बिना, सोचने से पहले क़दम उठाता है। वह ठीक-ठीक योजना नहीं बनाता या परख नहीं करता, और कभी-कभार तो उसके काम ख़तरनाक होते हैं। “वह सड़क के बीचों-बीच दौड़ जाता है, क़गार पर चढ़ जाता है, पेड़ पर चढ़ जाता है,” डॉ पॉल वॆन्डर लिखता है। “इसके परिणामस्वरूप उसके हिस्से में ज़्यादा घाव, खरोंच, छिलन आते हैं और डॉक्टर के पास ज़्यादा चक्कर लगाने पड़ते हैं।”
अतिसक्रियता: अतिसक्रिय बच्चे हमेशा बेचैन होते हैं। वे चुपचाप बैठ नहीं सकते। “जब वे बड़े हो जाते हैं तब भी,” डॉ. गॉर्डन सर्फ़ोन्टाइन अपनी पुस्तक छिपा हुआ अपंगत्व (अंग्रेज़ी) में लिखता है, “ध्यान से देखने पर पता चलेगा कि पाँव, बाँह, हाथ, होंठ या जीभ की किसी प्रकार की हलचल लगातार चालू है।”
फिर भी, कुछ बच्चे जिनका ध्यान नहीं लगता और आवेगशील हैं वे अतिसक्रिय नहीं हैं। कभी-कभी उनके विकार को बस ध्यान अभाव विकार, या ए.डी.डी. कहा जाता है। डॉ. रोनल्ड गोल्डबर्ग समझाता है कि ए.डी.डी. “बग़ैर किसी अतिसक्रियता के भी हो सकता है। या यह अतिसक्रियता की किसी भी मात्रा से हो सकता है—शायद ही दिखनेवाली अतिसक्रियता से लेकर, क्रोधित करनेवाली, और अत्यन्त असमर्थ करनेवाली अतिसक्रियता तक।”
ए.डी.एच.डी. किस कारण होता है?
सालों से, ध्यान की समस्याओं का दोष सभी को, ख़राब परवरिश से लेकर फ़्लोरसॆंट बत्तियों तक को दिया गया है। अभी यह समझा जाता है कि ए.डी.एच.डी. कुछ विशिष्ट मस्तिष्क कार्य-प्रणालियों में गड़बड़ी से सम्बन्धित है। १९९० में मानसिक स्वास्थ्य की राष्ट्रीय संस्था ने ए.डी.एच.डी. के लक्षणोंवाले २५ वयस्कों की जाँच की और यह पाया कि वे मस्तिष्क के उन्हीं क्षेत्रों में ग्लूकोज़ को अधिक धीमी गति से उपापचय करते हैं जो हालचाल और ध्यान को नियंत्रित करते हैं। ए.डी.एच.डी. के क़रीब ४० प्रतिशत मामलों में, लगता है कि व्यक्ति की आनुवंशिक रचना एक भूमिका अदा करती है। अतिसक्रिय बाल पुस्तक (अंग्रेज़ी) के अनुसार, अन्य तत्व जो ए.डी.एच.डी. से सम्बन्धित हो सकते हैं वे हैं गर्भावस्था के दौरान माँ द्वारा शराब या नशीली दवाओं का सेवन, सीसे का ज़हर, और कुछ मामलों में, आहार।
ए.डी.एच.डी. किशोर और वयस्क
हाल के वर्षों में डॉक्टरों ने पाया है कि ए.डी.एच.डी. केवल एक बचपन की अवस्था ही नहीं है। “विशिष्ट रूप से,” डॉ. लैरी सिल्वर कहता है, “माता-पिता एक बच्चे को उपचार के लिए लाएँगे और कहेंगे, ‘मैं जब छोटा था तब मैं भी ऐसा ही था।’ फिर वे स्वीकार करेंगे कि क़तार में खड़े रहने, सभाओं में चुपचाप बैठे रहने, काम पूरा करने में उन्हें अभी भी समस्याएँ होती हैं।” अब यह समझा जाता है कि ए.डी.एच.डी. से पीड़ित सभी बच्चों में से क़रीब आधे बच्चों के कुछ लक्षण किशोरावस्था और वयस्कता तक भी बने रहते हैं।
किशोरावस्था के दौरान, ए.डी.एच.डी. से पीड़ित बच्चे शायद जोख़िमवाले आचरण से बाल-अपराध में परिवर्तित हो जाएँ। “मुझे डर लगा रहता था कि वह कॉलेज नहीं जा पाएगा,” एक ए.डी.एच.डी. से पीड़ित किशोर की माँ कहती है। “अब मैं सिर्फ़ यह दुआ माँगती हूँ कि वह जेल न जाए।” यह बात कि ऐसे डर वैध हो सकते हैं एक अध्ययन से दिखाया जाता है जिसमें १०३ अतिसक्रिय युवाओं की तुलना १०० बच्चों के एक यथास्थ समूह से की गयी जिन्हें यह विकार नहीं था। “२०सादि के अपने आरम्भ में,” न्यूज़वीक (अंग्रेज़ी) रिपोर्ट करती है, “अतिसक्रिय समूह के बच्चों में गिरफ़्तारी के रिकार्डों की सम्भावना दुगनी थी, महापराध के दोष की सम्भावना पाँच गुना थी और क़ैद में सज़ा काटने के समय की सम्भावना नौ गुना थी।”
एक वयस्क के लिए ए.डी.एच.डी. ख़ास समस्याएँ खड़ी करता है। डॉ. एड्ना कोपलैंड कहती है: “एक अतिसक्रिय लड़का शायद एक ऐसा वयस्क बने जो बारबार नौकरी बदलता है, बहुत बार बरख़ास्त किया जाता है, पूरा दिन यूँ ही गवाँ देता है और बेचैन रहता है।” जब उसका कारण नहीं समझा जाता तो ये लक्षण एक विवाह को नुक़सान पहुँचा सकते हैं। “सीधी-साधी बातचीत में,” ए.डी.एच.डी. से पीड़ित एक पुरुष की पत्नी कहती है, “वो उन सभी बातों को भी नहीं सुनते जो मैंने कहीं। यह ऐसा है मानो हमेशा वे कहीं और खोए रहते हैं।”
बेशक, ये गुण अनेक लोगों में सामान्य हैं—कम-से-कम कुछ हद तक। “आपको पूछना पड़ता है कि क्या ये लक्षण हमेशा से हैं,” डॉ. जॉर्ज डॉरी कहता है। उदाहरण के लिए, वह नोट करता है कि अगर पुरुष केवल अपनी नौकरी गवाँने के बाद से या उसकी पत्नी के एक बच्चे को जन्म देने के बाद से भुलक्कड़ रहा है, तो यह विकार नहीं है।
इसके अतिरिक्त, अगर किसी को सचमुच ए.डी.एच.डी. है, तो उसके लक्षण व्यापक होंगे—अर्थात्, वे व्यक्ति के जीवन के लगभग हर पहलू को प्रभावित करते हैं। एक अक़लमंद, उत्साहपूर्ण पुरुष, ३८-वर्षीय गैरी के साथ भी ऐसा ही था जो लगता है कि विकर्षित हुए बिना एक भी काम पूरा नहीं कर सकता था। पहले ही वह १२० नौकरियाँ छोड़ चुका है। “मैंने बस यह मान लिया था कि मैं सफल हो ही नहीं सकता,” उसने कहा। लेकिन गैरी और दूसरे अनेकों—बच्चों, किशोरों, और वयस्कों—को ए.डी.एच.डी. का सामना करने के लिए मदद दी गयी है। कैसे?
[फुटनोट]
a क्योंकि औरतों के मुक़ाबले ज़्यादा पुरुष प्रभावित हैं, हम पीड़ित व्यक्ति का ज़िक्र पुल्लिंग में करेंगे।