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  • “एक अंधयुग में ज्योति की किरण”
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सजग होइए!–1997
g97 7/8 पेज 14-15

“एक अंधयुग में ज्योति की किरण”

जर्मनी में सजग होइए! संवाददाता द्वारा

एक इतिहासकार ने नात्सी युग में यहोवा के साक्षियों के इतिहास का इस प्रकार वर्णन किया। अवसर था वृत्तचित्र यहोवा के साक्षी नात्सी आक्रमण के सामने दृढ़ रहते हैं (जर्मन) का पहला जन प्रदर्शन जो रावॆनस्ब्रुक स्मारक, जर्मनी में हुआ। यह विडियो साहस और विश्‍वास का एक मर्मस्पर्शी वृत्तांत सुनाता है जो नात्सी युग के २४ उत्तरजीवियों और साथ ही इतिहास और धर्म के १० विद्वानों द्वारा बताया गया है।

रावॆनस्ब्रुक नज़रबंदी शिविर में कभी सैकड़ों यहोवा के साक्षी बंद थे। कुछ उत्तरजीवी साक्षी जिन्हें ५० से अधिक साल पहले नात्सियों ने कारावास में डाला था, पहला-प्रदर्शन के लिए उपस्थित थे। उन्होंने तथा इतिहासकारों और सरकारी अधिकारियों ने उन दुःखद दिनों को याद किया जब नात्सी सत्ता के आतंक का शासन पूरे यूरोप पर छाया हुआ था। उपस्थित क़रीब ३५० व्यक्‍तियों ने उन सैकड़ों साक्षियों की मसीही खराई के प्रेरक वृत्तांतों को सुना जिन्होंने अपने विश्‍वास को त्यागने के बजाय साहसपूर्वक मृत्यु को स्वीकार किया।

समाचार माध्यम ध्यान देता है

पहला-प्रदर्शन के दिन, नवंबर ६, १९९६ को सुबह बर्लिन के एक होटल में एक संवाददाता सम्मेलन आयोजित किया गया। पत्रकारों ने विडियो के कुछ भाग देखे और फिर विद्वानों के भाषण सुने जिन्होंने इस नए वृत्तचित्र के महत्त्व के बारे में टिप्पणी की। उन्होंने बताया कि यह इतिहास के एक बहुत कम ज्ञात परंतु महत्त्वपूर्ण पहलू के बारे में बताता है। नॉइनगामे स्मारक के निर्देशक, डॉ. डॆट्‌लॆफ्‌ गॉर्बॆ ने समझाया: “हमें—जो यहोवा के साक्षी हैं और जो नहीं हैं—बैंजनी त्रिकोणवाले [साक्षी क़ैदियों द्वारा पहना गया पहचान चिन्ह] क़ैदियों का इतिहास भूलना नहीं चाहिए। यह अंधयुग में ज्योति की किरण थी।”

अनेक साक्षी उत्तरजीवी जो दृढ़ रहते हैं में दिखाई दिए, अपने अनुभवों के बारे में बताने के लिए वहाँ उपस्थित थे। क्या वे अपनी पीड़ाओं के बारे में कटु थे? उनके शांत और उल्लसित चहरे दिखा रहे थे कि ऐसा नहीं था।

सवाल-जवाब के एक सत्र के बाद, पत्रकारों को क़रीब ६४ किलोमीटर दूर रावॆनस्ब्रुक स्मारक में वृत्तचित्र दृढ़ रहते हैं के पहला-प्रदर्शन के लिए आमंत्रित किया गया। लगभग सभी ने आमंत्रण स्वीकार किया।

पहला-प्रदर्शन

शरद के इस ठंडे दिन के काले आसमान और हलकी बारिश की जगह रावॆनस्ब्रुक स्मारक की बगल में हाल ही में मरम्मत किए हुए सभागृह में उत्तेजित माहौल था। रावॆनस्ब्रुक, ज़ॉक्सनहाउज़न, और ब्रैंडनबर्ग स्मारकों की स्थापना के तत्कालीन निर्देशक, प्रोफ़ेसर युर्गन दित्बर्नर ने कहा: “राष्ट्रीय समाजवाद के अधीन यहोवा के साक्षियों द्वारा प्रदर्शित नैतिक साहस का आदर किया जाना चाहिए . . . हम इन लोगों की यादों का पूर्ण आदर करते हैं जिन्होंने अपने विश्‍वास को त्यागा नहीं और परिणामस्वरूप जिन्हें पीड़ाओं और यहाँ तक कि मृत्यु का भी सामना करना पड़ा।”

ब्रैंडनबर्ग, जर्मनी के शिक्षा, युवा, और खेल मंत्री, अंगेलीका पेतर ने एक संदेशा भेजा जिसे पढ़ा गया था। उसमें घोषणा की गई थी: “यह महत्त्वपूर्ण है कि हम आज यहोवा के साक्षियों की अनुकरणीय दृढ़ता को याद करें।” रावॆनस्ब्रुक स्मारक की निर्देशिका, डॉ. ज़ीग्रिट यॉकोबाइट्‌ ने कहा: “मैं इस पहला-प्रदर्शन का उत्सुकता और आनंद से इंतज़ार कर रही हूँ। मैं मानती हूँ कि यह हम सब के लिए एक ख़ास दिन है।”

फिर विडियो शुरू करने के लिए रोशनी कम की गई। ७८ मिनट के लिए आठ देशों से उपस्थित उत्तरजीवी ही नहीं परंतु श्रोतागण के भी सभी जनों ने जर्मन इतिहास के इस दर्दनाक अध्याय की त्रासदी और विजय का पुनः अनुभव किया। अनेक लोग अपने आँसू नहीं रोक पाए जब इन साधारण लोगों ने सबसे भयंकर परिस्थितियों में प्रेम और विश्‍वास के असाधारण कार्यों के बारे में बताया।

तालियों की गड़गड़ाहट के कम होने पर, इतिहासकार योआख़ीम गोरलिट्‌स ने ब्रैंडनबर्ग में मृत्युदंड दिए गए एक साक्षी के आख़िरी शब्द पढ़े। गोरलिट्‌स ने वह नोट सिर्फ़ दो हफ़्ते पहले ब्रैंडनबर्ग स्मारक और पुरालेखागार में, जिसका वह निर्देशक है, ख़ोजबीन करते वक़्त पाया था। उसका गला भर आया जब उसने इस वफ़ादार मसीही के शब्द पढ़े जिसमें वह अपने संगी विश्‍वासियों को प्रोत्साहित कर रहा था कि वे अपने प्रभु के सच्चे ठहरें। फिर गोरलिट्‌स समाप्ति में बोला: “सज्जनो और महिलाओ, मैं विश्‍वास करता हूँ कि यहोवा के साक्षियों के बारे में यह फ़िल्म हमारे शैक्षिक कार्य में एक महत्त्वपूर्ण योगदान देगी।”

इतिहासकार वुल्फ ब्रेबॆक ने बताया कि “इस फ़िल्म के द्वारा एक महत्त्वपूर्ण नया ख़ज़ाना जुड़ गया है—उत्तरजीवियों की आवाज़ें जो बहुत ही कम सुनी गई हैं, और . . . न बचनेवालों की आवाज़ें।” डॉ. गॉर्बॆ ने आगे कहा: “यह उन मनुष्यों के महत्त्वपूर्ण अनुभव हैं जिन्हें परमेश्‍वर पर विश्‍वास और बाइबल की प्रतिज्ञाओं पर भरोसे ने शक्‍ति दी कि वे उस भयानक समय में दृढ़ रहें।”

कार्यक्रम की उचित समाप्ति के तौर पर, एक बार फिर कई साक्षी उत्तरजीवियों ने श्रोतागण को संबोधित किया। सब लोगों को यह स्पष्ट था कि इन दृढ़निश्‍चयी मसीहियों के पास अब भी वही दृढ़ विश्‍वास है जिसने उनकी अनेक परीक्षाओं के समय उन्हें बनाए रखा था।

इस पहला-प्रदर्शन के बाद यहोवा के साक्षियों और वृत्तचित्र दृढ़ रहते हैं के बारे में जर्मनी के समाचारपत्रों में ३४० से अधिक लेख छपे हैं। कई रेडियो कार्यक्रमों में भी, जिनमें से एक राष्ट्रीय रेडियो स्टेशन से था, अच्छी रिपोर्टें दी गई थीं।

वृत्तचित्र दृढ़ रहते हैं को बाद में कम-से-कम २४ भाषाओं में उपलब्ध कराया जाएगा। एक संपादित लघु क्लासरूम वर्शन भी कुछ समय बाद बनाया जाएगा। विडियो की प्रज्ञाप्ति के पश्‍चात्‌ अधिकाधिक शिक्षकों ने अपने पाठ्यचर्या के भाग के तौर पर वृत्तचित्र दृढ़ रहते हैं का इस्तेमाल करना शुरू किया है ताक़ि युवा लोगों को पूर्वधारणा, समकक्षी दबाव, और अंतःकरण की आवाज़ जैसे महत्त्वपूर्ण विषयों के बारे में विचार करने में मदद दें।

इस संसार में, जो घृणा और विश्‍वासघात से विभाजित है, कितना सामयिक है कि खराई की यह कहानी लोगों को बतायी जाए! वाक़ई, इन वफ़ादार मसीहियों की पीड़ाएँ व्यर्थ नहीं रही हैं।—इब्रानियों ६:१०.

[पेज 15 पर तसवीर]

बर्लिन संवाददाता सम्मेलन। बाएँ से: डॉ. डॆट्‌लॆफ्‌ गॉर्बॆ, महाकांड उत्तरजीवी शीमोन लीब्स्टर और फ्रांज़ व्हूलफार्ट तथा इतिहासकार वुल्फ ब्रेबॆक

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