विश्व-दर्शन
किताबें पढ़ना अब भी लोकप्रिय है
नीति विज्ञान संस्थान द्वारा किए गए सर्वेक्षण के अनुसार, कंप्यूटर टेकनॉलजी ने अभी तक ब्रितानवियों की पढ़ने की आदतों को नहीं बदला है। जैसा कि द टाइम्स में रिपोर्ट किया गया, “सर्वेक्षण किए गए लोगों में से लगभग आधों ने, एक ऐसा अनुपात जो १९८९ से थोड़ा ही बदला है, कहा कि वे आजकल आनंद के लिए किताब पढ़ रहे हैं।” महिलाएँ पुरुषों से ज़्यादा पढ़ती हैं और ५५ पार व्यक्ति सबसे बड़े पढ़ाकू हैं। रसोई-शास्त्र की किताबें सबसे ज़्यादा लोकप्रिय हैं, उनके बाद नंबर आता है अपराध या रोमांचक कथाओं, रोमानी उपन्यासों और २०वीं-शताब्दी कथा-साहित्य का। हालाँकि ३० प्रतिशत घरों में कंप्यूटर है, सिर्फ़ ७ प्रतिशत कंप्यूटर CD-ROM जो कि किताब का प्रतिद्वंद्वी है, चला सकते हैं। और लॆपटॉप कंप्यूटर से भिन्न, द टाइम्स कहती है एक रोचक किताब किसी समुद्र-तट पर या एक व्यस्त गली की भीड़ में धूल के कण पड़ने से ख़राब नहीं होती, और एक सुंदर तरीक़े से रची गई किताब “कलात्मक रूप से उतनी ही मनभावनी हो सकती है जितनी कि उसकी विषय-वस्तु पुष्टिकर होती है।”
“अनजान दुश्मनों” की खोज
कोरीएरे देल्ला सेरा कहता है कि सन् १९९७ में रोम, इटली में रहनेवाले लोगों के लिए एलर्जियाँ या परागज ज्वर, हर बार की अपेक्षा दो महीने पहले शुरू हो गया। एक एलर्जी-विशेषज्ञ के अनुसार पराग-कणों के इस जल्दी हमले का कारण है “ग्रह के औसत तापमान में आम वृद्धि, जिसने सर्दियों की अवधि को स्पष्ट रूप से घटा दिया है।” यह समाचार पत्र बताता है कि “अच्छा मौसम अपने साथ अनजान पराग-कण लाया है, जिनका सामना करने में इस क्षेत्र के विशेषज्ञ असमर्थ हैं।” “अनजान कारण की खोज” पहले ही शुरू हो चुकी है, लेकिन फ़िलहाल, “मरीज़ एलर्जियों से परेशान हैं, जिनके कारणों का पता नहीं चल पा रहा है।”
“पवित्र” बंदर—एक मुसीबत
प्राइमॆटोलॉजिस्ट इकबाल मलिक कहती हैं कि रीसस बंदर भारत में वृंदावन में सदियों से रहते आ रहे हैं। बंदरों को कई लोगों द्वारा पूज्य समझा जाता है और हिंदुओं के इस पवित्र शहर में उन्हें पकड़े जाने का डर नहीं है और उन्हें खुलेआम घूमने-फिरने दिया जाता रहा है—यानी कि, अभी तक। न्यू साइंटिस्ट पत्रिका के अनुसार, हाल के सालों में रीसस जनसंख्या तेज़ी से बढ़ी है क्योंकि उन्हें खाना खिलानेवाले तीर्थयात्रियों की संख्या बढ़ी है। माना जाता है कि बंदरों को खाना खिलाने से समृद्धि आती है। लेकिन सालों के दौरान, बंदर लगभग पूरी तरह से ख़ैरात पर निर्भर हो गए हैं क्योंकि वहाँ बहुत कम पेड़-पौधे हैं। “उन्होंने खाने के लिए थैले चुराना और घरों में घुसना शुरू कर दिया है।” स्थानीय लोग बंदरों की जनसंख्या का ६० प्रतिशत तक पकड़वाने और ग्रामीण इलाक़ों में स्थानांतरित करने पर सहमत हो गए हैं। मलिक कहती हैं: “भगवान् मुसीबत बन गए हैं।”
फिर से पानी
न्यू साइंटिस्ट का कहना है कि “एक ऐसे अग्निशामक रसायन के लिए लंबी खोजबीन, जो ओज़ोन परत को नुक़सान न पहुँचाता हो, अंत में . . . पानी तक ले आई है। सैकड़ों तरह की प्रायोगिक आग बुझाने के बाद, ट्रॉनहेम में नॉर्वीजन फ़ायर रीसर्च लेबॉरेट्री इस निष्कर्ष पर पहुँची है कि पानी की सूक्ष्म फुहारें, ओज़ोन-नाशक हॆलोनों का उपयुक्त विकल्प हैं, जिन्हें अग्निशामकों में अब भी व्यापक रूप से इस्तेमाल किया जा रहा है।” हॆलोन—कार्बन, ब्रोमीन और फ्लोरीन के यौगिक—आग को हवा की सप्लाई बंद कर देता है। पानी की बूँदें भी ऐसा ही करती हैं। वाष्पित होकर और अपने वास्तविक आयतन से १,७०० गुना फैलकर ऑक्सीजन को हटा देती हैं। सिर्फ़ एक स्थिति जिसमें वे कम प्रभावकारी पाई गईं, वह थी छोटी सुलगती आग में, जो पानी को वाष्पित करने के पर्याप्त तापमान तक नहीं थीं। लेकिन हॆलोनों के लिए कृत्रिम विकल्प अब भी खोजे जा रहे हैं चूँकि पानी के साथ एक और समस्या है: इसे बेचने से बहुत सारा पैसा नहीं मिलता।
अब—हॆपटाइटिस G
जापान में डॉक्टरों ने इस बात की पुष्टि की है कि रक्ताधान के बाद एक महीने के अंदर, मरीज़ हॆपटाइटिस G वाइरस से संक्रमित हो गए, एक नई क़िस्म जिसे १९९५ में अमरीका में पहचाना गया था। लिवर-कैंसर के उन मरीज़ों के रक्त का पुनःनिरीक्षण करने पर, जिनकी १९९२ और १९९४ के बीच टोक्यो के टोरानोमॉन अस्पताल में शल्य-चिकित्सा की गई थी, डॉक्टरों ने पाया कि ५५ में से २ मरीज़ शल्य-चिकित्सा से पहले ही संक्रमित हो चुके थे और ७ अन्य बाद में। डॉक्टरों ने कहा कि जो संदूषित रक्त ७ मरीज़ों में से प्रत्येक ने प्राप्त किया था, वह तक़रीबन ७१ दाताओं से आया था। यह संकेत करता है कि इस्तेमाल किए गए रक्त का १.४ प्रतिशत रक्त नए वायरस से संदूषित था। आसाही ईवनिंग न्यूज़ का कहना है कि हॆपटाइटिस G वाइरस के बारे में बहुत कम जानकारी है, साथ ही इस बारे में भी कि कितने प्रतिशत संक्रमित लोगों में हॆपटाइटिस या लिवर कैंसर अभी और उभरेगा।
“सहस्राब्दि समस्या”
“सहस्राब्दि समस्या, सन् २००० समस्या, या सिर्फ़ ‘Y2K’ कहलानेवाली,” यह “आधुनिक कंप्यूटिंग की संभवतः सबसे अपंगकारी शक्तियों में से एक है,” कहती है यू.एस. न्यूज़ एण्ड वर्ल्ड रिपोर्ट। यह १९६० में शुरू हुई जब कंप्यूटर महँगे थे और उनकी मॆमोरी (स्मरणशक्ति) सीमित थी। जगह बचाने के लिए, कंप्यूटर प्रोग्रामरों ने साल की आख़िरी केवल दो संख्याओं को लेकर तारीख़ें लिखीं। कंप्यूटर के लिए, सन् १९९७ सिर्फ़ “९७” था। समस्या क्या हुई? “जनवरी १, २००० के दिन, संसार भर के लगभग ९० प्रतिशत कंप्यूटर हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर ‘सोचेंगे’ कि यह १९०० का पहला दिन है।” ग़लतियाँ पहले ही हो चुकी हैं। न्यूज़वीक कहती है, “एक राज्य कारागृह में, इस समस्या की वजह से कंप्यूटरों ने कई क़ैदियों की सज़ाओं के हिसाब-किताब में गड़बड़ी कर दी, जिन्हें छोड़ दिया गया। दुकानों और रेस्तराँ में कुछ क्रॆडिट कार्ड ठुकरा दिए गए जब उनकी ‘००’ समाप्ति तिथि ने कंप्यूटरों को उलझन में डाल दिया। और कई राज्यों में ट्रक ड्राइवरों ने अपने अंतर्राज्यीय लाइसेंसों को रद्द पाया जब कंप्यूटर उन नवीनीकरण प्रार्थना-पत्रों को नहीं निपटा सके जिनमें सहस्राब्दि के आगे की तारीख़ें थीं।” संसार भर की कंपनियों को तारीख़ों के कोड बदलने के लिए अनुमानित ६०० अरब डॉलर ख़र्च करने पड़ेंगे—और वे उम्मीद करते हैं कि वे ऐसा बाक़ी रहे दो सालों में कर सकते हैं।
हाथी के गोबर से काग़ज़
जब पड़ोसियों ने माइक बूगारा को अपने आँगन में, बर्तनों में हाथी का गोबर उबालते देखा, तो यह समझने में मुश्किल नहीं कि वे बड़े चिंतित थे। कुछ ने सोचा कि वह जादू-टोना कर रहा है, लेकिन हक़ीक़त में वह काग़ज़ बना रहा था। श्री बूगारा ने पहले केले, बाजरे और सफ़ेदे के पत्तों से काग़ज़ बनाया था। लेकिन केन्या के हाथियों की जनसंख्या से प्राप्त होनेवाले अधिक-रेशेदार गोबर की ढेरों सप्लाई को देखकर इस उत्साही संरक्षणवादी ने इससे काग़ज़ बनाने की सोची। उसने निर्णय किया कि “इस नस्ल को ज़िंदा रखने के महत्त्व के बारे में लोगों में जागरूकता” बढ़ाने का यह एक अच्छा तरीक़ा होगा, न्यू साइंटिस्ट पत्रिका रिपोर्ट करती है। अब उसका बनाया हाथी के गोबर का काग़ज़, इस साल केन्या वन्यजीवन सेवा की ५०वीं वर्षगाँठ के आमंत्रण-पत्रों के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है।
भोजन से फैलनेवाले संक्रमण
जामा (द जर्नल ऑफ़ दी अमॆरिकन मॆडिकल असोसिएशन) रिपोर्ट करती है कि “साल भर ताज़े उत्पाद की क़िस्मों” के लिए बढ़ी हुई उपभोक्ता-माँग, साथ ही “एक ऐसा विश्वव्यापी बाज़ार जो उत्पादों को रातों-रात संसार भर में पहुँचा सकता है,” अमरीका में भोजन से फैलनेवाली नई-नई बीमारियों की शुरूआत में योगदान दे रहे हैं। पिछले दस सालों में किए गए अध्ययनों के आधार पर, वैज्ञानिक अनुमान लगाते हैं कि भोजन से फैलनेवाले रोगाणु “अमरीका में हर साल ६५ लाख से ८.१ करोड़ लोगों को बीमार करते हैं और लगभग ९००० मौतों का कारण बनते हैं।” कुछ विशेषज्ञों का यह भी मानना है कि जैविक रूप से उगाए गए भोजन (पशुओं की खाद डालकर उगाए गए भोजन) की बढ़ी खपत ने इस समस्या में योगदान दिया हो। जामा रिपोर्ट के अनुसार, “ई कॉली गाय के गोबर की खाद में ७० दिन तक ज़िंदा रह सकता है और यदि रोगाणुओं को मारने के लिए गर्मी या नमक और प्रिज़रवेटिव का इस्तेमाल न किया जाए, तो खाद डालकर उगाए गए भोजन में यह पनप सकता है।”
हैज़े की बिना-खर्च रोकथाम
वैज्ञानिक विश्वास करते हैं कि उन्होंने हैज़े की रोकथाम के लिए बिना-खर्च का एक तरीक़ा ढूँढ़ निकाला है—साड़ियों से पीने का पानी छानना! अमरीका के मॆरीलॆंड विश्वविद्यालय और बंग्लादेश में ढाका के दस्त-संबंधी अनुसंधान के अंतर्राष्ट्रीय केंद्र के अनुसंधानकर्ताओं ने पाया कि हैज़ा-फैलानेवाले बैक्टीरिया, पानी में रहनेवाले कोपपॉडों की आंत में निवास करते हैं जो कि प्लवक-जैसे क्रस्टेशियन होते हैं। साड़ी की चार परतों से पानी छानने पर, ९९ प्रतिशत से भी ज़्यादा बैक्टीरिया निकाले जा सकते हैं। बाद में साड़ी को दो घंटे तक धूप में रखने, या बारिश के मौसम में किसी सस्ते विसंक्रामक से धोने के द्वारा विसंदूषित किया जा सकता है। लंदन का समाचार-पत्र दि इंडिपॆंडॆंट रिपोर्ट करता है कि फील्ड परीक्षण इस साल शुरू होंगे जब प्रभावित इलाक़ों में रहनेवाले लोगों को सिखाया जाएगा कि प्रक्रिया को कैसे काम में लाएँ।