विश्व-दर्शन
प्रोजॆक्ट टाइगर कमज़ोर पड़ता है
सन् १९७३ में, भारत में अपने राष्ट्रीय जानवर को लुप्त होने से बचाने के लिए प्रोजॆक्ट टाइगर की शुरूआत की गई थी। उस समय भारत में बाघों की संख्या पहले ही घटकर १,८२७ हो चुकी थी। इस प्रोजॆक्ट को अंतर्राष्ट्रीय समर्थन व उल्लेखनीय सफलता मिली। सन् १९८९ तक भारत में बाघों की आबादी ४,००० पार कर गई थी। लेकिन अब, इंडिया टुडे के मुताबिक़, एक बार फिर बाघ ख़तरे में है। अनुमान है कि भारत में बाघों की संख्या ३,००० से भी कम हो गई है। क्यों? कुछ लोग कहते हैं कि अवैध-शिकारी औसतन हर रोज़ कम-से-कम एक बाघ मारते हैं। प्रोजॆक्ट टाइगर का मक़सद था बाघ को सुरक्षा देना। लेकिन लगता है कि यह ऐसा करने में समर्थ नहीं है। रिपोर्ट बताती है, “वन-रक्षक का, जिस पर अकसर गोली दाग दी जाती है, हौसला पस्त हो चुका है, उसके पास पूरा साजो-सामान नहीं है।” बाघ के लिए, “अस्तित्त्व की जगह विलुप्तता ले रही है।”
दिखते हैं बूढ़े मगर जवानी में मरते हैं
जैसा निम्नलिखित रिपोर्टें सूचित करती हैं, अनुसंधानकर्ता मानते हैं कि धूम्रपान करने से बुढ़ापा तेज़ी से आ सकता है। लंबे समय से धूम्रपान कर रहे लोगों के केशों की, समय से पहले ही सफ़ेद होने की संभावना चार गुना ज़्यादा है और गंजेपन या गंजे हो जाने की संभावना दोगुना है, ब्रिटॆन के लैन्सेट का कहना है। इस पर रिपोर्ट करते हुए, यूसी बर्कॆले वॆलनस लेट्टर ने विशिष्ट किया कि धूम्रपान नहीं करनेवालों की तुलना में धूम्रपान करनेवालों को झुर्रियाँ ज़्यादा होती हैं तथा उनके दाँत गिर जाने की संभावना दोगुना बढ़ जाती है। रिपोर्ट ब्रिटिश मेडिकल जरनल में दिए गए एक हालिए अध्ययन का ज़िक्र करती है जिसमें लिखा था कि धूम्रपान नहीं करनेवालों की तुलना में ऐसे लोग जो जीवन-भर धूम्रपान करते हैं, उनकी ७३ की आयु तक पहुँचने की बस ५० प्रतिशत उम्मीद है। इसके अलावा, गुड हाउसकीपिंग पत्रिका रिपोर्ट करती है कि “धूम्रपान करनेवालों के साथ रह रहे धूम्रपान नहीं करनेवाले लोगों को हृदय रोग से पीड़ित होने की संभावना २० प्रतिशत ज़्यादा है।”
सोने की खान खोदनेवाली दीमक
सन् १९८४ में एक ग्रामवासी ने नाइजर के अफ्रीकी देश में सोना पाया और उसके बाद होनेवाली सोने की होड़ ने अनेक देशों से खनिकों को उस क्षेत्र में आकर्षित किया। कनाडा के भूविज्ञानी क्रिस ग्लीसन ने बताया कि अफ्रीका की प्राचीन सभ्यताएँ सोने के भंडारों का पता लगाने के लिए दीमकों के टीलों का इस्तेमाल करती थीं। नाइजर में दीमक की एक जाति पायी जाती है जो बड़े-बड़े टीलें बनाती है। इन टीलों में से कुछ की ऊँचाई १.८ मीटर व व्यास १.८ मीटर होता है। राष्ट्रीय भूगोल (अंग्रेज़ी) पत्रिका समझाती है, जैसे-जैसे दीमक पानी की तलाश में गहरा खोदती जाती हैं,—कभी-कभी ७५ मीटर की गहराई तक—वैसे-वैसे टीलों का आकार बढ़ता जाता है। ग्लीसन ने इसी आशा से अनेक टीलों से नमूने निकाले जो उसे यह दिखाते कि उसे कहाँ खुदाई करनी है। अधिकांश नमूनों में सोना नहीं था, मगर कुछ में था! “जिस किसी भी टीले पर कुछ सोना होता था, उसमें पूरा-पूरा सोना भरा होता था,” उसने ऐसा पाया। असल बात यह है कि जैसे-जैसे दीमक पानी के लिए खोदती जाती हैं, जो भी चीज़ उनके रास्ते में आती है, उसे सतह पर लाया जाता है। इसमें सोना भी शामिल है।
बिजली का ख़तरा
दी ऑस्ट्रेलियन अख़बार रिपोर्ट करता है, ‘घातक बिजली का गिरना, लोग जितना सोचते हैं उससे ज़्यादा आम है।’ बिजली के गिरने से ऑस्ट्रेलिया में हर साल पाँच से दस लोग मरते हैं और इसकी ही वज़ह से १०० से ज़्यादा लोगों को चोट पहुँचती है, रिपोर्ट समझाती है। बिजली गिरनेवाली है, इसकी ख़तरे की घंटी कम बजती है, हालाँकि “कुछ लोगों ने जो खुद पर बिजली के गिरने से बाल-बाल बचे हैं, बताया है कि उनको महसूस हुआ कि उनके रोंगटे खड़े हो गए थे,” मॆलबर्न के मौसम विज्ञान विभाग का फिल ओल्फर्ड कहता है। आप पर बिजली गिरने से बचने की संभावना को बढ़ाने के लिए, ओल्फर्ड सलाह देता है कि आप गरजन-वर्षाओं से शरण लेने के लिए किसी मज़बूत इमारत का या धातु की रचनाओं से दूर किसी ठोस छतवाले वाहन के अंदर आसरा लें।
सेलुलर-टेलिफ़ोन शिष्टाचार
जेबी-आकार के सेलुलर टेलिफ़ोन की शुरूआत ने कुछ पुराने ज़माने के शिष्टाचार की ज़रूरत पर ज़ोर दिया है, फ़ार ईस्टर्न इकोनॉमिक रिव्यू के मुताबिक़। हांग कांग की व्यापार-संबंधी परामर्शदाता टीना लियू प्रोत्साहित करती है कि फ़ोन पर आपसे बात कर रहे व्यक्ति और जो शायद आपके आस-पास हों, उन दोनों के लिए आदर व लिहाज़ दिखाएँ। वह सलाह देती है कि साफ़-साफ़ बात करें मगर ज़ोर से नहीं और फ़ोन पर बात करते समय खाएँ या पीएँ नहीं। लियू सभाओं के दौरान मिले फ़ोन को कम करने की और मिले फ़ोन को दूसरी जगह लगाने या अस्पताल, पुस्तकालय, व सभाभवन जैसी जगहों में कंपामान घंटी-सूचक इस्तेमाल करने की भी सलाह देती है। सामाजिक अवसरों पर हस्तक्षेप करते हुए फ़ोन का जवाब देने से दोस्त या रिश्तेदार अपेक्षित महसूस कर सकते हैं। बाहर खाना खाने के संबंध में, लियू टिप्पणी करती है: “जब व्यक्ति के साथ कोई महिला होती है और वह फ़ोन पर बात करता है, तो उसे अपने दिए हुए फूलों के गुच्छों के मुरझा जाने से पहले ही फ़ोन पर अपनी बात ख़त्म कर देनी चाहिए।”
भूकंप अपूर्वसूचनीय
हाल की बात है, भूकंप विशेषज्ञों का एक अंतर्राष्ट्रीय समूह भूकंपों की वैज्ञानिक पूर्वसूचनीयता की चर्चा करने के लिए लंदन में मिला। उनका निष्कर्ष? “सौ से भी अधिक सालों से अनेक भूविज्ञानियों ने सोचा है कि [बड़े-बड़े भूकंपों] से पहले स्पष्टतया दिखने योग्य और पहचाने जाने योग्य पूर्वसूचनाएँ होंगी जिन्हें ख़तरे की घंटी बजाने के लिए आधार के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है,” ईऑस प्रकाशन में टोक्यो विश्वविद्यालय का डॉ. रॉबर्ट गॆलर लिखता है। इसके बजाय, सोच-विचार में एक मूलभूत बदलाव लाने की ज़रूरत है क्योंकि “संभवतः ऐसा लगता है कि एकल भूकंपों की घटना प्राकृतिक रूप से बिना पूर्वसूचना की होती है।” हालाँकि सटीक पूर्वसूचनाएँ देना शायद मुमकिन न हो, वैज्ञानिक ऐसे क्षेत्रों में भूकंपों की संभवाना और वह संभवतः कितना बड़ा होगा, इसका अनुमान लगा सकते हैं जहाँ भूकंप-संबंधी काफ़ी रिकार्ड हैं। मसलन, अमरीकी भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (अंग्रेज़ी) द्वारा बनाया गया एक नया नक़्शा सूचित करता है कि अगले ५० सालों के दौरान अमरीका के महाद्वीपों में कहाँ-कहाँ गंभीर कंपन हो सकता है। इस आँकड़े पर आधारित, सरकारी एजंसियाँ सुझाती हैं कि कैलिफ़ोर्निया की ७० से ज़्यादा प्रतिशत आबादी ऐसी जगहों पर निवास करती है जहाँ शायद ख़तरा हो।
विद्युत कारें और वातावरण
जर्मन ऑटोमोबाइल कंपनी ने यह पता लगाने के लिए अध्ययन किया कि पर्यावरण के लिए बैट्री से चलनेवाली कारें, पेट्रोल से चलनेवाले वाहनों से बेहतर हैं या नहीं। सूददुइतशी ज़ेइतुंग अख़बार के मुताबिक़, अध्ययन में १०० चालक शामिल थे जिन्होंने १९९२ तथा १९९६ के दरमियान १३ लाख किलोमीटर यात्रा की। ऐसा पाया गया कि विद्युत कारों में उनकी कम यात्रा-क्षमता होने के बावजूद कई फ़ायदे हैं: वे बग़ैर आवाज़ की चलीं और जहाँ उन्हें इस्तेमाल किया गया, वहाँ सीधे रूप से कोई उत्सर्जन नहीं हुआ। लेकिन, इन फ़ायदों पर एक बड़ी समस्या परदा डाल सकती है। बैट्रियों को रीचार्ज करने में ज़्यादा शुरूआती ऊर्जा की खपत होती है जितना कि पेट्रोल द्वारा चलनेवाले वाहनों में नहीं होतीं—प्रयोग पर निर्भर, १.५ से लेकर ज़्यादा-से-ज़्यादा ४ गुना तक—और इस ऊर्जा को कहीं-न-कहीं से उत्पन्न किया जाना ज़रूरी है। इस पर निर्भर करते हुए कि ऊर्जा कैसे उत्पन्न की जाती है, यह संभव है कि “वातावरण को, पेट्रोल से चलनेवाले ऑटोमोबाइल से कहीं ज़्यादा क्षति विद्युत कारों से पहुँचती है,” अख़बार टिप्पणी करता है।
पौधे विस्फोटक पदार्थ खाते हैं
चुकंदर के पौधों व एक क़िस्म के सेवार पौधों में, पुराने गोला-बारूदी स्थलों की भूमि व पानी से विस्फोटक पदार्थ निकालने तथा बिना किसी नुक़सान के इन्हें अपघटित करने की क़ाबिलीयत होती है, न्यू साइंटिस्ट पत्रिका रिपोर्ट करती है। ह्यूसटन, टॆकसस के राईस विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने पेरिविंकल और शुक-पंख, एक आम सेवार, को TNT खिलाया। सप्ताह-भर में, उनके ऊतकों में विस्फोटकों का कोई नामो-निशान नहीं रहा और पौधों को जलाने पर भी कोई विस्फोट नहीं हुआ। उसी समय, मेरीलैंड के विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने यह मालूम किया कि आम चुकंदर की कोशिकाएँ व निष्कर्षण, नाईट्रोग्लिसरिन को आत्मसात् कर इसे अपघटित कर सकते हैं। वैज्ञानिकों के दोनों समूहों ने पौधों को जीवाणुहीन बनाया ताकि यह साबित कर सकें कि इन्हें सूक्ष्म जीवों से कोई मदद नहीं मिलती है। “फ़िलहाल, पुराने गोला-बारूदी स्थलों पर निर्माण करने के लिए इन्हें फिर से इस्तेमाल करना आम तौर पर बहुत ही ख़तरनाक व महंगा है, लेकिन यह बदल सकता है यदि सस्ते में उगाए गए पौधों का भूमि व पानी से विस्फोटक पदार्थ निकाल कर इन्हें बिना किसी हानि के अपघटित करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है,” लेख कहता है। इसकी बहुत ज़रूरत है क्योंकि “समुद्र में गोला-बारूदी अवशेष को फेंकने की वर्तमान आदत को बदला जा रहा है।”
सहस्राब्दी पागलपन
“ऐसा लगता है कि यह २०वीं शताब्दी, जो संपूर्ण युद्ध की शताब्दी के तौर पर आरंभ हुई और परमाणु युग की ओर रूख़ ली, मनोरंजन के युग के रूप में समाप्त हो रही है,” न्यूज़वीक पत्रिका का कहना है। वर्ष १९९९ की नव वर्ष पूर्व-संध्या का उत्सव मनाने के लिए “पूरी पृथ्वी पर होटलें पहले ही पूरी तरह से आरक्षित हो चुके हैं।” लेकिन, एक वाद-विवाद बरक़रार है कि सहस्राब्दी का उदय बस कहाँ होगा। “विवाद किरॆबस के राष्ट्र में शुरू हुआ,” यू.एस.न्यूज़ एण्ड वर्ल्ड रिपोर्ट नोट करती है। “अंतर्राष्ट्रीय दिनांक रेखा इन द्वीपों के बीच से होते हुए जाती थी: जब पूर्वी किरॆबस में रविवार था, तो पश्चिम किरॆबस में सोमवार था।” राष्ट्र ने यह घोषणा करने के द्वारा समस्या को सुलझाया कि जनवरी १, १९९५ से, दिनांक रेखा उसके सबसे पूर्वी द्वीप, कारॆलीन के पूर्वी तट से होकर जाएगी। इसका अर्थ होता कि किरॆबस नए दिन की शुरूआत देखनेवाला सर्वप्रथम देश होगा। लेकिन, दूसरे राष्ट्र, जैसे कि टोंगा व न्यू ज़ीलैंड, “प्रथम” की प्रतिष्ठा चाहते थे। रॉयल ग्रेनिच ऑबसरवेट्री के मुताबिक़, सवाल महत्त्वहीन है। “चूँकि सितंबर विषुव से मार्च विषुव तक दक्षिण ध्रुव पर सूरज चमकता है, सहस्राब्दी सबसे पहले पृथ्वी के निचले भाग पर उदय होता है,” रिपोर्ट कहती है। लेकिन, ऑबसरवेट्री आगे कहता है कि ऐसा जनवरी १, २००१ को ही होगा—न कि २००० को।
चेतावनी: कोलोबस क्रॉस्सिंग
दक्षिण केन्या के तट के पास का डीआनी वन, पूर्वी अफ्रीका के उन कुछेक जगहों में से एक है जहाँ अभी भी कोलोबस बंदर फलता-फूलता है। इन जानवरों को जिस समस्या का सामना करना पड़ रहा है वह है कि वे इस व्यस्त समुद्र-तट की सड़क को सही-सलामत कैसे पार करें। एक अनुमान के मुताबिक़, हर महीने सड़क पर चलती कारों से कम-से-कम १२ बंदर मारे जाते हैं, पूर्वी अफ्रीकी वन्य जीवन संस्था की स्वारा पत्रिका रिपोर्ट करती है। डीआनी के चिंतित निवासियों के एक समूह ने इस संहार को कम करने के लिए कार्य करने का फ़ैसला किया। चालकों से ज़्यादा सावधान रहने के लिए आग्रह करने के अलावा, उन्होंने हाल ही में सड़क के काफ़ी ऊपर रस्से का एक पुल बनाया। बंदरों को पुल का इस्तेमाल करते हुए देख निवासी प्रोत्साहित हुए तथा वे और ज़्यादा पुल बनाने की योजना बना रहे हैं।