बाइबल का दृष्टिकोण
क्या ग़रीबी के कारण चोरी करना उचित है?
“ग़रीबी मानव सुख की बड़ी दुश्मन है; यह निश्चित ही आज़ादी ख़त्म कर देती है और यह कुछ सद्गुणों को असंभव-सा तथा दूसरों को बहुत कठिन बना देती है।”—सैमुऎल जॉनसन, १८वीं-शताब्दी लेखक।
रोमी राजनेता मागनुस ऑरेलीअस कैसीअडोरस ने कहा: “ग़रीबी अपराध की जननी है।” ये विचार ऐसा संकेत देते दिखायी पड़ते हैं कि अमुक अपराध ग़रीबी का स्वाभाविक परिणाम हैं। आज प्रत्यक्षतः अनेक लोग इससे सहमत हैं, ख़ासकर तब जब अपराध चोरी का होता है।
यह विश्वास काफ़ी प्रचलित है कि दमन और ग़रीबी के कारण चोरी करना उचित है। रॉबिन हुड के बारे में १४वीं शताब्दी की मशहूर अंग्रेज़ी गाथाओं पर विचार कीजिए। ये एक ऐसे पौराणिक अपराधी का वर्णन करती हैं जो अमीरों से चुराकर ग़रीबों में बाँटता था। सदियों से उसे महान समझा जाता है।
माना, आज अनेक लोग अत्यधिक आर्थिक कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं। विश्व बैंक ने हाल ही में रिपोर्ट किया कि १.३१ अरब लोग दिन में एक डॉलर से कम पैसों में गुज़ारा कर रहे हैं। एक सर्वेक्षण में ७० प्रतिशत फिलीपींसवासियों ने कहा कि वे अपने आपको ग़रीब मानते हैं। ब्रज़िल में सबसे धनी २० प्रतिशत लोग सबसे ग़रीब २० प्रतिशत लोगों की तुलना में ३२ गुना अधिक कमाते हैं। ऐसी परिस्थितियाँ कुछ लोगों को इस हद तक कुंठित कर सकती हैं कि वे ज़िंदगी की अपनी दैनिक ज़रूरतों को पूरा करने के लिए कोई भी रास्ता अपनाते हैं, चोरी तक करते हैं।
बाइबल चोरी करने की स्पष्ट रूप से निंदा करती है। दस आज्ञाओं में से आठवीं आज्ञा कहती है: “तू चोरी न करना।” (निर्गमन २०:१५) फिर भी, बाइबल पर विश्वास करनेवाले अनेक लोग चोरी को तब उचित ठहराने के लिए प्रवृत्त होते हैं जब चोर दयनीय आर्थिक परिस्थितियों के कारण चोरी करता है।
यह गंभीर प्रश्न खड़े करता है: क्या ग़रीबी के कारण चोरी करना सचमुच उचित है? यदि एक व्यक्ति अत्यधिक आर्थिक तंगहाली में जी रहा है तो वह क्या करे? तब क्या यदि उसे बीमार या भूखे बच्चों की देखभाल करनी है? क्या ऐसे मामलों में यहोवा परमेश्वर चोरी करने की अनुमति देगा, ख़ासकर यदि चुराया गया सामान ऐसे लोगों का है जिनको उसकी ज़रूरत भी नहीं पड़ेगी?
परमेश्वर क्या कहता है?
चूँकि यीशु ने अपने पिता के व्यक्तित्व को प्रतिबिंबित किया, तो उसका उदाहरण हमें परमेश्वर के दृष्टिकोण को समझने में मदद दे सकता है। (यूहन्ना १२:४९) जब यीशु पृथ्वी पर था, वह ज़रूरतमंदों के साथ अपने व्यवहार में बहुत करुणामय था। बाइबल कहती है कि “जब उस ने भीड़ को देखा तो उस को लोगों पर तरस आया।” (मत्ती ९:३६) फिर भी, उसने किसी भी परिस्थिति में, कभी चोरी को अनदेखा नहीं किया। उसी प्रकार, हालाँकि परमेश्वर को ग़रीबों की परवाह है, वह ग़रीबी को चोरी करने का उचित कारण नहीं समझता। यशायाह ६१:८ में, बाइबल हमें बताती है कि परमेश्वर ‘अन्याय और डकैती से घृणा करता है।’ और प्रेरित पौलुस स्पष्ट रूप से बताता है कि चोर परमेश्वर के राज्य के वारिस न होंगे। सो हमें परमेश्वर का दृष्टिकोण अच्छी तरह मालूम है।—१ कुरिन्थियों ६:१०.
लेकिन, नीतिवचन ६:३० कहता है कि “जो चोर भूख के मारे अपना पेट भरने के लिये चोरी करे, उसको तो लोग तुच्छ नहीं जानते।” क्या यह कथन चोरी माफ़ करता है? बिलकुल नहीं। संदर्भ दिखाता है कि परमेश्वर फिर भी उस चोर को उसके अपराध के लिए दंडनीय ठहराता है। अगली आयत कहती है: “तौभी यदि वह पकड़ा जाए, तो उसको सातगुणा भर देना पड़ेगा; वरन अपने घर का सारा धन देना पड़ेगा।”—नीतिवचन ६:३१.
जबकि वह चोर जो भूख के कारण चोरी करता है उतना दोषी न हो जितना कि वह जो लालच के कारण या अपने शिकार को हानि पहुँचाने के अभिप्राय से चोरी करता है, तो भी जो परमेश्वर की स्वीकृति चाहते हैं उन्हें किसी प्रकार की चोरी का दोषी नहीं होना चाहिए। अत्यधिक ग़रीबी की हालत में भी, चोरी करना परमेश्वर का अपमान करता है। नीतिवचन ३०:८, ९ (NHT) इसे यूँ व्यक्त करता है: “प्रतिदिन की रोटी मुझे खिलाया कर कहीं ऐसा न हो कि . . . मैं घटी में पड़कर चोरी करूं और अपने परमेश्वर का नाम कलंकित करूं।” जी हाँ, चोर परमेश्वर के नाम को कलंकित करता है। क्योंकि चोरी करना एक प्रेमरहित कार्य है, यह पाप है, चाहे अमीर के ख़िलाफ़ किया गया हो या ग़रीब के। जो परमेश्वर और पड़ोसी से प्रेम करते हैं, उनके लिए चोरी करना कभी उचित नहीं है।—मत्ती २२:३९; रोमियों १३:९, १०.
यह तर्क सही नहीं कि जो व्यक्ति प्रतिकूल स्थिति में है उसके पास चोरी करने का अधिकार है। यह विचार तो मानो ऐसा कहने के बराबर होगा कि दुर्बल काठी के खिलाड़ी के पास वर्जित दवाएँ लेने का अधिकार है ताकि वह जीत सके। यदि वह जीत जाता है तो भी उसने बेईमानी की है। दूसरे उचित ही यह सोचेंगे कि उसने ग़लत तरीक़े अपनाकर उनकी विजय छीन ली है। यही बात चोर के लिए भी सही है। वह दूसरे की चीज़ को बेईमानी से लेता है। उसकी प्रतिकूल स्थिति उसके मार्ग को उचित नहीं ठहराती।
परमेश्वर की स्वीकृति चाहनेवाले किसी भी चोर को अपने चालचलन से पछतावा करने की ज़रूरत है। बाइबल सलाह देती है: “चोरी करनेवाला फिर चोरी न करे; बरन भले काम करने में अपने हाथों से परिश्रम करे।” (इफिसियों ४:२८) चोरी छोड़कर सच्चा पश्चाताप करनेवाले चोर निश्चित हो सकते हैं कि यहोवा उन्हें क्षमा करेगा।—यहेजकेल ३३:१४-१६.
ग़रीब क्या कर सकते हैं?
बाइबल प्रतिज्ञा करती है: “धर्मी को यहोवा भूखों मरने नहीं देता, परन्तु दुष्टों की अभिलाषा वह पूरी होने नहीं देता।” (नीतिवचन १०:३) परमेश्वर उनकी मदद नहीं करेगा जो अपनी अभिलाषाएँ पूरी करने के लिए जानबूझकर उसके नियम तोड़ते हैं। लेकिन वह उन पर करुणा करता है जो निष्कपटता से उसकी आज्ञा मानने की कोशिश करते हैं और वह ज़रूरत की चीज़ें पाने में उनके प्रयासों पर आशीष देगा।—भजन ३७:२५.
लाखों लोग पहले ही पता कर चुके हैं कि जब वे ईश्वरीय सिद्धांतों का पालन करते हैं, तब उनकी जीवन-स्थिति सुधरती है। उदाहरण के लिए, परिश्रम करने की और जूएबाज़ी, पियक्कड़पन, धूम्रपान, और नशीले पदार्थों का दुरुपयोग जैसे दुर्गुणों से दूर रहने की बाइबल सलाह पर अमल करने से वे अपनी असल ज़रूरतों को ज़्यादा अच्छी तरह पूरा करने में समर्थ हुए हैं। (गलतियों ५:१९-२१) यह माँग करता है कि वे विश्वास रखें, और जिन्होंने ऐसा किया है उन्होंने जाना है कि “यहोवा कैसा भला है” और कि वह उस पर भरोसा रखनेवालों की सचमुच मदद करता है।—भजन ३४:८.
[पेज 12 पर चित्र का श्रेय]
रॉबिन हुड: General Research Division/The New York Public Library/Astor, Lenox and Tilden Foundations