विश्व-दर्शन
ख़तरनाक ग़लतफ़हमियाँ
वर्ष १९७७ में संसार की सबसे बुरी विमान दुर्घटना में एक छोटे-से शब्द के अर्थ के बारे में हुई ग़लतफ़हमी का हाथ था, दी यूरोपियन अख़बार रिपोर्ट करता है। विमान 747 के डच विमान-चालक ने रेडियो से बताया कि वह “टेक-ऑफ़ पर” है, जिसे टॆनरीफ़े, कनॆरी आइलॆंड्स, वायु यातायात नियंत्रक ने इस अर्थ में समझा कि विमान गतिहीन है। लेकिन विमान-चालक का अर्थ था कि उसका विमान बहुत ही धुँध-भरी उड़ान-पट्टी पर दौड़ रहा है और टेक ऑफ़ करने ही वाला है। फलस्वरूप, वह विमान दूसरे 747 विमान से टकरा गया और ५८३ लोगों की मौत हो गयी। उसी तरह, १९९६ में भारत, दिल्ली के पास आकाश में हुई टक्कर में ३४९ लोग मारे गये। इसमें भी ख़राब भाषा कौशल एक कारण था। हालाँकि बड़ी ग़लतियाँ कम ही होती हैं और विमान कर्मियों को मानक विमान-चालन अंग्रेज़ी में कड़ा प्रशिक्षण मिलता है, फिर भी कुछ वायुयान कर्मी विमान-चालन के केवल विशेष शब्द जानते हैं। जब कोई आपात-स्थिति होती है, तब उनका भाषा कौशल उनका साथ छोड़ सकता है। सही विमान-चालन संचार निश्चित करने के लिए विशेषज्ञ सलाह देते हैं कि पाइलट कैबिन को कंप्यूटर टॆक्नॉलजी से सज्जित किया जाना चाहिए।
संसार भर में अवैध ड्रग प्रयोग
अंतर्राष्ट्रीय व्यापार और उपज की कुल आमदनी का ८ प्रतिशत अवैध ड्रग्स से मिलता है, जो कि हर साल लगभग ४०० अरब डॉलर है, यू.एन. की एक रिपोर्ट कहती है। यह ३३२ पन्नों की रिपोर्ट ग़ैर-कानूनी ड्रग्स के विश्वव्यापी प्रभाव के बारे में पहला विस्तृत अध्ययन है। यह दिखाती है कि संसार की क़रीब २.५ प्रतिशत जनसंख्या—लगभग १४ करोड़ लोग—चरस या उससे बना हशिश पीते हैं। तीन करोड़ लोग एमफ़ॆटामीन क़िस्म के उद्दीपक प्रयोग करते हैं, १.३ करोड़ लोग किसी तरह की कोकीन प्रयोग करते हैं, और ८० लाख लोग हेरोइन प्रयोग करते हैं। जबकि कानून-प्रवर्तन एजन्सियों ने हज़ारों टन चरस, कोकीन, हेरोइन, और मॉरफ़ीन ज़ब्त की है, उससे भी ज़्यादा मात्रा पकड़ी जाने से बच गयी है। कोकीन ज़ब्त करने की दर क़रीब ३० प्रतिशत है और केवल १० से १५ प्रतिशत हेरोइन ज़ब्त की जाती है, रिपोर्ट ने कहा। अंतर्राष्ट्रीय ड्रग व्यापार बहुत जटिल है। “समस्या ने इतना विश्वव्यापक रूप ले लिया है कि एक-एक देश अकेले इसका सामना नहीं कर सकते,” यू.एन. ड्रग-नियंत्रण कार्यक्रम का महा-निदेशक, जोर्जो जाकोमॆली कहता है।
रिमोट कंट्रोल किसके हाथ में है?
इटली में, EURISPES (राजनैतिक, आर्थिक और सामाजिक अध्ययन संस्थान) के शोधकर्ताओं ने टी.वी. देखने की आदतों पर एक अध्ययन के परिणाम हाल ही में प्रकाशित किये। लगभग २,००० इतालवी परिवारों का इंटरव्यू लिया गया। उनसे यह भी पूछा गया कि उनके परिवार में टी.वी. रिमोट कंट्रोल को ज़्यादातर कौन अपने हाथ में रखता और चलाता है। एक अख़बार के लेख ने रिमोट कंट्रोल को परिवार में अधिकार की आधुनिक छड़ी कहा। अधिकतर घरों में कहा गया कि यह पिता के हाथ में रहता है। चैनल चुनने के मामले में फ़ैसला कौन करता है, इसमें दूसरे नंबर पर बच्चे थे। घर में रिमोट कंट्रोल पकड़ने के अधिकार की खींचा-तानी में माँ सबसे पीछे थी।
संक्रामक रोग बढ़ रहे हैं
“पिछले २० सालों में, ३० एकदम नयी और बहुत ही संक्रामक बीमारियाँ उभर आयी हैं,” नासाउशी नॉइ प्रॆसी रिपोर्ट करता है। इनमें से अधिकतर बीमारियों—जैसे ईबोला, एड्स, और हॆपाटाइटिस सी—के लिए कोई इलाज नहीं है। इसके अलावा, मलेरिया, हैज़ा, और तपेदिक जैसी संक्रामक बीमारियाँ भी बढ़ रही हैं। क्यों? विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, “अनेक रोग फिर से उभर रहे हैं क्योंकि बढ़ती संख्या में विषाणुओं पर तरह-तरह की ऐन्टीबायोटिक दवाओं का असर नहीं हो रहा है। कम संख्या में नयी ऐन्टीबायोटिक दवाएँ बनायी जा रही हैं क्योंकि इसकी प्रणाली बहुत महँगी है।” इस रुख़ को बदलने की कोशिश में, WHO ने सरकारों और औषधीय कंपनियों से निवेदन किया है कि “नयी ऐन्टीबायोटिक दवाओं के उत्पादन और संक्रामक रोगों को जाँचने के उन्नत तरीक़ों में ज़्यादा पैसा लगाएँ।” वर्ष १९९६ में संक्रामक रोगों के कारण संसार भर में क़रीब ५.५ करोड़ लोगों की मौत हुई।
“पवित्र नगर” में घटती भक्ति
हालाँकि इसे पवित्र नगर कहा जाता है और कैथोलिक चर्च का प्रमुख इसका बिशप है, फिर भी रोम के लोग असल में उतने धार्मिक नहीं हैं जितना कि शायद कुछ लोग सोचते हों। थर्ड यूनिवर्सिटी ऑफ़ रोम द्वारा किये गये एक राष्ट्रीय सर्वेक्षण के अनुसार, सभी इतालवियों में से क़रीब १० प्रतिशत कहते हैं कि उन्हें मसीहियत में दिलचस्पी “ज़रा भी नहीं,” लेकिन रोम में यह संख्या बढ़कर १९ प्रतिशत हो जाती है। दूसरे २१ प्रतिशत रोमियों को कैथोलिक चर्च में “थोड़ी” दिलचस्पी है, अख़बार ला रेपूबलीका कहता है। दूसरी ओर, उनमें से केवल १० प्रतिशत को धर्म में बहुत दिलचस्पी है। समाजविज्ञानी रोबर्टो चीपरीआनी के अनुसार, प्रति ४ रोमियों में से १ ही मनोवृत्ति और व्यवहार के बारे में चर्च के नियमों का पालन करता है।
भारत टी.बी. की चपेट में
तपेदिक (टी.बी.) जीवाणु को नियंत्रण में लाने के कड़े प्रयासों के बावजूद, विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) दावा करता है कि भारत में प्रति २ वयस्कों में से १ टी.बी. से संक्रमित है। भारत के ९० करोड़ से अधिक लोगों के बीच, हर साल २० लाख से अधिक लोगों को सक्रिय टी.बी. हो जाती है और इससे मरनेवाले ५,००,००० तक होते हैं, अख़बार दी एशियन एज रिपोर्ट करता है। WHO के अनुसार, संक्रमित लोगों की संख्या और उसके कारण इस रोग से दूसरों के संक्रमित होने का ख़तरा बहुत अधिक है। टी.बी. से संक्रमित लोगों को न केवल यह बीमारी झेलनी पड़ती है; उन्हें इस बीमारी से जुड़े कलंक के साथ भी जीना पड़ता है। इसके कारण पड़ोसी, मालिक, और सहकर्मी ठुकरा सकते हैं। जिन जवान दुलहनों के बारे में पता चलता है कि उन्हें टी.बी. है, उन्हें यह सोचकर कि वे बच्चे पैदा करने के योग्य नहीं हैं, अकसर अपने माता-पिता के पास वापिस भेज दिया जाता है।
अंग-भंग लड़कियाँ, किशोरावस्था प्रसव
“हर साल लगभग २० लाख लड़कियों का अंग-भंग किया जाता है,” बच्चों के स्वास्थ्य, पोषण, और शिक्षा के बारे में संयुक्त राष्ट्र बाल निधि प्रकाशन, राष्ट्रों की प्रगति (अंग्रेज़ी) का १९९६ संस्करण कहता है। “इसके ७५% क़िस्से इथियोपिया, कॆन्या, नाइजीरिया, मिस्र, सुडान और सोमालिया में होते हैं। जबूटी और सोमालिया में, ९८% लड़कियों का अंग-भंग किया जाता है।” पीड़ा के अलावा, इस प्रक्रिया से संक्रमण, अत्यधिक रक्तस्राव, बाँझपन, और मृत्यु हो सकती है। “कोई धर्म अंग-भंग की माँग नहीं करता। यह कौमार्य सुरक्षित रखने, विवाह-योग्यता निश्चित करने, और लैंगिकता सीमित रखने के लिए बनायी गयी परंपरा है,” रिपोर्ट कहती है। स्त्रियों के अधिकारों और बाल कल्याण से संबंधित समूह और संगठन अब सरकारों पर दबाव डाल रहे हैं कि इस प्रथा को ग़ैर-कानूनी बना दिया जाए।
दूसरी रिपोर्ट दिखाती है कि अनेक देशों में किशोरावस्था प्रसव एक सतत समस्या है। उदाहरण के लिए, औद्योगीकृत देशों को देखें तो अमरीका में इसकी दर सबसे ऊँची है: १५ से १९ वर्षीय, प्रति १,००० लड़कियों द्वारा हर साल ६४ प्रसव। जापान में इसकी दर सबसे कम है। वहाँ हर साल ऐसे चार प्रसव होते हैं। किशोरावस्था प्रसव न केवल युवती के विकास, शिक्षा, और अवसरों को प्रभावित करते हैं, परंतु वे शिशुओं के लिए भी समस्याएँ उत्पन्न कर सकते हैं, जैसे घटिया देखरेख, ग़रीबी, और अस्थिर वातावरण।
प्रदूषण और बालावस्था कैंसर
महामारी-विज्ञानियों के एक दल ने २२,४०० ब्रिटिश बच्चों पर किये गये एक २७-वर्षीय अध्ययन का विश्लेषण करने के बाद पाया कि जो बच्चे किसी प्रदूषण स्रोत के पाँच किलोमीटर के दायरे में पैदा हुए थे, उन्हें दूसरे बच्चों की तुलना में श्वेतरक्तता (ल्यूकीमिया) और बालावस्था के अन्य कैंसर होने का २० प्रतिशत ज़्यादा ख़तरा था। हवा से फैलनेवाले प्रदूषकों के संपर्क में आना “वह अति संभव साधन” है जिसके द्वारा बालावस्था कैंसर के मामलों में बढ़त हुई, लंदन का द टाइम्स रिपोर्ट करता है। प्रतीत होता है कि इसके ज़िम्मेदार प्रदूषक हैं तेल रिफ़ाइनरियों, वाहन फ़ैक्ट्रियों, अनाभिकीय विद्युत केंद्रों, इस्पात कारख़ानों, और सिमॆंट कारख़ानों जैसे औद्योगिक संयंत्रों द्वारा फेंका गया पॆट्रोल का धुआँ या दूसरे वाष्पशील कार्बनिक रसायन। अध्ययन यह रिपोर्ट भी देता है कि जो बच्चे मोटरमार्गों और रेलमार्गों के चार किलोमीटर के दायरे में जन्मे थे, उनमें कैंसर द्वारा मरनेवालों की संख्या अधिक थी। पॆट्रोल और डीज़ल ईंधन इसका कारण प्रतीत होते हैं, रिपोर्ट के लेखकों का दावा है।
खून और एच.आई.वी. संक्रमण
संसार भर में एच.आई.वी./एड्स से संक्रमित क़रीब २.२ करोड़ लोगों में से ९० प्रतिशत से अधिक लोग विकासशील देशों में रहते हैं। “विकासशील देशों में १० प्रतिशत तक नये एच.आई.वी. संक्रमण रक्ताधान के कारण होते हैं,” लंदन-स्थित एक सूचना संगठन, पानॉस रिपोर्ट करता है। अनेक देशों में, खून सप्लाई सुरक्षित नहीं है क्योंकि एच.आई.वी. की प्रयोगशाला जाँच पूरी तरह विश्वसनीय नहीं है। उदाहरण के लिए, पाकिस्तान में कुल रक्त केंद्रों (ब्लड बैंक) में से आधे से भी कम केंद्रों में एच.आई.वी. जाँचने के उपकरण हैं। फलस्वरूप, वहाँ सभी नये एच.आई.वी. संक्रमणों में से १२ प्रतिशत संक्रमण रक्ताधान के कारण होते हैं। एड्स के पहले मामले क़रीब १५ साल पहले रिपोर्ट किये गये थे, तब से अब तक संसार भर में लगभग तीन करोड़ लोगों को एच.आई.वी. संक्रमण हुआ है, जिस विषाणु से एड्स रोग होता है।
किशोरावस्था सॆक्स
नाइजीरिया के अख़बार वीकॆंड कॉनकॉर्ड के अनुसार, एक हालिया अध्ययन ने पाया कि “नाइजीरिया के युवा दुनिया में लैंगिक रूप से सबसे सक्रिय [युवाओं] में से हैं।” १४ से १९ वर्षीय कुछ ६८ प्रतिशत लड़कों और ४३ प्रतिशत लड़कियों ने स्वीकार किया कि उन्होंने “यौवनारंभ के कुछ ही समय बाद” संभोग किया था। इसके कारण अनेक अनचाहे गर्भ ठहरे हैं। एक अलग अध्ययन दिखाता है कि “नाइजीरिया में १९ साल से कम [उम्र की] युवतियों की कुल मौतों में से ७१ प्रतिशत गर्भपात जटिलताओं से संबंधित थीं,” कॉनकॉर्ड कहता है।
हाथ-धोना संकट
फ्राँसीसी चिकित्सा समाचार-पत्र ल कोटीड्याँ डू मेडसाँ के एक हालिया लेख ने एक चिंताजनक रुख़ पर ध्यान खींचा जो बढ़ता नज़र आ रहा है—खाना खाने से पहले और शौच जाने के बाद हाथ न धोना। डॉ. फ्रेडेरीक साल्डमान के अनुसार, शारीरिक साफ़-सफ़ाई में यह छोटी-सी कमी एक बड़ा आहार-संबंधी जोखिम है और एक व्यापक समस्या जान पड़ती है। लेख एक अध्ययन का उल्लेख करता है जिसके अनुसार अंग्रेज़ी मयख़ानों में रखी मूँगफली की कटोरियों में १२ अलग-अलग लोगों के पेशाब के कण पाये गये। एक अमरीकी स्कूल में एक और अध्ययन ने प्रकट किया कि जब शिक्षक ने निगरानी रखकर नियमित रूप से बच्चों के हाथ धुलवाये, तब पाचन समस्याओं के कारण स्कूल से नाग़ा करनेवाले बच्चों की संख्या ५१ प्रतिशत कम हो गयी और श्वास समस्याओं के कारण नाग़ा करनेवालों की संख्या २३ प्रतिशत कम हो गयी। अंत में लेख इसके महत्त्व पर ज़ोर देता है कि बच्चों को शिशुपन से शारीरिक साफ़-सफ़ाई के ऐसे बुनियादी नियम सिखाए जाने चाहिए।
हाथी संचार
हाथी के वाक्तंतु इतने बड़े होते हैं कि जो स्वर वे उत्पन्न करते हैं उनकी मूल आवृत्ति प्रति सॆकॆंड २० आवर्तन या उससे भी कम होती है—जो मनुष्य को सुनाई देने के स्तर से बहुत कम है। ऐसी गहरी आवाज़ें आसानी से दूर तक जाती हैं, और हाथी उन्हें डेढ़ किलोमीटर की दूरी से भी पहचान सकते हैं। वे १५० तक अलग-अलग आवाज़ों को पहचान सकते हैं, और परिवार के सदस्यों तथा अपने झुंड के दूसरे हाथियों से मिले संकेतों के हिसाब से क़दम उठाते हैं। आम तौर पर हाथी अजनबियों की आवाज़ों को अनसुना कर देते हैं या उन्हें सुनकर खिसिया जाते हैं। कॆन्या के आमबोसॆली नैशनल पार्क में शोध अध्ययनों के बाद, ब्रिटॆन में यूनिवर्सिटी ऑफ़ ससिक्स की पशु व्यवहारवादी, डॉ. कैरन मकोम ने बताया कि “वाक् संचार के ऐसे विस्तृत नॆटवर्क किसी दूसरे स्तनधारी जीव ने प्रदर्शित नहीं किये हैं,” लंदन का द टाइम्स रिपोर्ट करता है।