प्रकाशगृह रक्षक—मंद पड़ता पेशा
कनाडा में सजग होइए! संवाददाता द्वारा
“इस काम से बढ़कर मुझे कोई दूसरा काम नहीं पसंद,” प्रकाशगृह रक्षकों ने बारंबार कहा है। एक आदमी ने १०६ साल पुराने प्रकाशगृह में रक्षक बनने के लिए टोरॉन्टो, कनाडा की प्लास्टिक फैक्ट्री में मैनेजर का पद छोड़ दिया। उसने कहा कि इस काम ने उसे अपनी “उम्र से १० साल छोटा” होने का एहसास दिया।
प्रकाशगृह रक्षक की मुख्य ज़िम्मेदारी होती है कि नाविकों को अच्छा प्रकाश देता रहे। उसे कोहरा-भोंपू बजाने और उसका रखरखाव करने के साथ-साथ रेडियो द्वारा मछुवारों और गुज़रते जहाज़ों को मौसम की जानकारी भी देनी पड़ती है।
अतीत में, प्रकाशगृह रक्षकों को तेल की टंकियाँ भरकर, बत्तियों को जलाकर, और लैंप के शीशों पर से धूआँ साफ करके रखना होता था। रक्षकों के लिए यह अनोखी बात नहीं थी कि जब बत्तियों को जल्दी-से ठीक नहीं किया जा सकता था अथवा जब कोहरा-भोंपू खराब हो जाता था तब जहाज़ों को सुरक्षित स्थान पर मार्गदर्शित करने के लिए रात भर संकेत-दीप को हाथ से घुमाते रहें अथवा रात भर हथौड़े से कोहरा-घंटी को बजाते रहें!
तूफान पार करना
भयंकर तूफान बड़ी चिंता का कारण है। एक बार, एक प्रकाशगृह रक्षक ने कुछ देखा जिसे उसने “बड़ा-सा सफेद बादल” समझा लेकिन वह असल में एक प्रचंड लहर थी! वह लहर १५-मीटर ऊँची चट्टान तक उछली और रक्षक के घर तक पहुँच गयी। इस एक लहर ने इतना नुकसान कर दिया जितना कि कोई बड़ा तूफान करता।
एक और अवसर पर, पूरी रात एक सनसनाते बवंडर में लहरें पबनिको बंदरगाह, नोवा स्कॉटिआ के प्रकाशगृह से टकराती रहीं। रक्षक और उसका परिवार बस प्रतीक्षा और आशा ही कर सकते थे। सुबह तक बवंडर शांत हो गया था। लेकिन जब रक्षक बाहर गया, तब वह यह देखकर दंग रह गया कि प्रकाशगृह के आस-पास की ज़मीन गायब हो गयी थी। चारों तरफ बस पानी ही पानी था!
अकेलापन और उकताहट
अकेलेपन के बारे में पूछे जाने पर, एक प्रकाशगृह रक्षक मन-ही-मन मुसकाया और बोला: “लोग हमसे कहते हैं, ‘भई, आप इतना अकेलापन कैसे बरदाश्त कर लेते हैं?’ और हम पलटकर पूछते हैं, ‘यह बताइए, आप शहर के शोर-शराबे और उलझनों को कैसे बरदाश्त कर लेते हैं?’”
पहले के समय में, अमरीका में ज़्यादा दूर के प्रकाशगृहों को पुस्तकों के छोटे-छोटे संग्रह उपलब्ध कराये जाते थे। इस प्रकार, वर्ष १८८५ तक ४२० पुस्तकालय चल रहे थे। प्रत्यक्षतः, प्रकाशगृह रक्षक अच्छे पाठक बन गये।
मंद पड़ता पेशा
हाल के सालों में पत्थरों से बने और मनुष्यों द्वारा चलाये गये प्रकाशगृहों की जगह स्टील के ढाँचेवाले दुर्गों ने ले ली है जिनमें शक्तिशाली कौंधती बत्तियाँ होती हैं। अब मल्लाहों को धुँधले संकेत-दीप या हलकी लपट को देखने के लिए अंधेरे में आँखें नहीं गड़ानी पड़तीं। आज, शक्तिशाली टंग्स्टन हैलोजेन लैंप और तेज़, कान-फोड़ू कोहरा-संकेत नाविक को समुद्र के खतरों से आगाह करते हैं।
प्रकाशगृहों से संकेत पाने के लिए सज्जित जहाज़ अब अपनी स्थिति जानते हैं चाहे कोहरा कितना ही घना क्यों न हो। आधुनिक टॆक्नॉलजी नाविक को समुद्र के एक तट से दूसरे तट तक इस विश्वास के साथ यात्रा करने में समर्थ करती है कि वह तट के पास खतरनाक बालू-भीत्ति, संकटपूर्ण शैल-भीत्ति, और जोखिम-भरी चट्टानों से बच सकता है।
आधुनिक टॆक्नॉलजी के फलस्वरूप, प्रकाशगृह रक्षक विश्व-पटल से तेज़ी से लुप्त हो रहे हैं। ऐसा महसूस करते हुए कि उसके जीवन का एक हिस्सा हमेशा के लिए जाता रहा, एक प्रकाशगृह रक्षक ने अपने द्वीप-घर को छोड़ते समय, जहाँ वह २५ साल तक रहा था, उदास होकर कहा: “यहाँ हमारा जीवन बहुत बढ़िया था। असल में हम तो इसे कभी नहीं छोड़ना चाहते थे।”
अभी-भी, घूमती बत्तियों, सहायक बत्तियों, आपात बत्तियों, ध्वनि संकेतों, और रेडार संकेतों को जाँच-मरम्मत की ज़रूरत होती है, और प्रकाशगृहों का अभी-भी रखरखाव करना पड़ता है। प्रकाशगृहों की जाँच-मरम्मत अब सफरी तकनीशियन करते हैं।
जो प्रकाशगृह रक्षकों की अनेक सालों की सेवा की कदर करते हैं उनकी भावनाएँ ऑगस्टा, मेन के एक पुरुष की भावनाओं के जैसी हैं, जिसने शोकित होकर कहा: “निश्चित ही अब प्रकाशगृह की तरफ देखने में पहली जैसी बात नहीं रहेगी जब हम जान गये हैं कि प्रकाश को अब कंप्यूटर नियंत्रित कर रहा है, कि लोग वहाँ से जा चुके हैं।”
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पहला प्रकाशगृह
लिखित इतिहास में पहला प्रकाशगृह मिस्र के टॉलमी द्वितीय के शासन के दौरान पूरा हुआ था। इसका निर्माण सा.यु.पू. ३०० के करीब किया गया था, और यह फॆरॉस द्वीप पर स्थित था। आज जहाँ ऎलॆक्ज़ान्ड्रिया बंदरगाह का प्रवेश-स्थान है यह उसके पास ही था। इसे बनाने में २० साल लगे थे और २५ लाख डॉलर का खर्च आया था।
ऐतिहासिक लेख संकेत देते हैं कि यह करीब ९० मीटर ऊँचा था। इसके ऊपरी कक्ष में समुद्र की दिशा में खिड़कियाँ थीं, जिनके पीछे लकड़ी की आग या शायद मशालें रहती थीं। जोसीफस के अनुसार, इन्हें कुछ ५० किलोमीटर की दूरी से देखा जा सकता था।
पत्थर के इस विशाल निर्माण को विश्व के सात आश्चर्यों में से एक माना जाता था। इसकी धधकती आग ने १,६०० सालों तक चेतावनी प्रकाश का काम किया। और बाद में यह शायद एक भूकंप में नाश हो गया।
जैसे-जैसे सदियाँ गुज़रीं, संसार भर के बंदरगाहों पर विभिन्न आकार-प्रकार के हज़ारों प्रकाशगृह बनाए गये। पत्थरों से बने पुराने प्रकाशगृह आज राष्ट्रीय, प्रांतीय, ज़िला, और नगर उद्यानों में संग्रहालयों और पर्यटक आकर्षण के रूप में अस्तित्त्व में हैं और लाखों लोग इन्हें देखते हैं।
[पेज 16 पर तसवीर]
केप स्पियर प्रकाशगृह, न्यूफाउंडलॆंड, कनाडा