हमारे पाठकों से
बोलते ढोल सुंदर लेख “क्या अफ्रीकी ढोल सचमुच बोलते हैं?” (अगस्त ८, १९९७) पढ़ने के बाद मैं अपने शतायु दादाजी के पास यह पूछने गया कि यह कहानी सच्ची है या नहीं। उन्होंने कहा कि इसकी एक-एक बात सही है और मैं बहुत प्रभावित हुआ!
जी. एम. ओ., नाइजीरिया
इंटरनॆट मैं कंप्यूटर इंजीनियरिंग कर रहा हूँ और मैं “इंटरनॆट—क्या यह आपके लिए है?” (अगस्त ८, १९९७) श्रृंखला के लिए आपकी सराहना करना चाहता हूँ। लेख संक्षिप्त, ज्ञानवर्धक और वैज्ञानिक रूप से यथार्थ थे। आपने उस निरर्थक पूर्वधारणा और भय का समर्थन नहीं किया जिसके घेरे में इंटरनॆट आ गया है। दूसरी ओर, आपने असली खतरों को भी नहीं छिपाया।
एल. ई., इटली
मैं कंप्यूटर पढ़ाता हूँ और नवीनतम जानकारी रखने के लिए मैं अकसर कंप्यूटर-संबंधी पत्रिकाएँ खरीदता हूँ। उनमें से एक में भी वह साहस नहीं था कि इंटरनॆट की अच्छाइयों और बुराइयों के बारे में इतना खुलकर चर्चा करे।
ए. ए. एस., ब्राज़ील
पिछले दिनों इंटरनॆट के बारे में मैंने काफी कुछ सुना था, लेकिन मुझे अच्छी तरह समझ नहीं आया कि यह क्या है। आपकी लेख-श्रृंखला ने विषय को बहुत सरल और स्पष्ट रीति से समझाया।
ए. एच., भारत
आपने ऐसे ढंग से लिखा कि वे पाठक भी जिन्हें वर्ल्ड वाइड वॆब के बारे में थोड़ा या बिलकुल भी ज्ञान नहीं है आसानी से समझ सकते हैं। आपने हमें रुककर यह जाँचने में भी मदद दी कि इस सेवा को इस्तेमाल करने का क्या मोल होगा।
ई. के., इथियोपिया
मेरी ही ग़लती मैं १५ साल का हूँ और लेख “युवा लोग पूछते हैं . . . हमेशा मेरी ही ग़लती क्यों मानी जाती है?” (अगस्त ८, १९९७) पढ़कर मेरी आँखों से आँसू छलक पड़े। मैं घर में सबसे छोटा हूँ और हमेशा मुझे ही परेशान किया जाता है। इस विषय पर लिखने के लिए शुक्रिया।
एन. एच., अमरीका
फलते-फूलते बच्चे शानदार श्रृंखला “अपने बच्चों को फलने-फूलने में मदद दीजिए” (सितंबर ८, १९९७) के लिए मैं आपको शुक्रिया कहना चाहती हूँ। यह श्रृंखला मुझे बहुत उपयोगी और प्रोत्साहक लगी। मेरा बेटा तीन साल का है। इस लेख ने मुझे उसका दृष्टिकोण समझने और जिस रीति से मैं उसे अनुशासन देती हूँ उसमें सुधार करने में मदद दी। इन लेखों के लिए मैं पूरे दिल से यहोवा का शुक्रिया अदा करती हूँ।
पी. एस., इटली
लेख “कठोर बातें, कुचली भावनाएँ” मेरे दिल को छू गया। ज़िंदगी भर मैंने अपनी कटु आलोचना की है। मैं यह जानकर खुश हूँ कि कटु आलोचना करने के बजाय आप प्रेमपूर्वक उन सब की मदद करने की कोशिश करते हैं जिन्होंने बहुत दुःख सहा है। यहोवा आपको आशीष देता रहे और ऐसे लेख लिखने में मार्गदर्शन देता रहे जो इतने लाभकारी और सांत्वनादायी हैं।
एल. डी., कनाडा
मुझे आशा है कि ये लेख दूसरों की आँखें खोल देंगे और वे उस अंदरूनी उलझन का मूल कारण समझ सकेंगे जो हममें से कई लोगों ने सही है। इस विषय पर चर्चा करने के लिए शुक्रिया।
एल. बी., अमरीका
इस तरह के लेख मुझे मदद देते हैं कि नर्सरी स्कूल में एक शिक्षिका के रूप में अपना काम ज़्यादा अच्छी तरह कर सकूँ। हमें नयी-नयी जानकारी देते रहने और सुधार करने में मदद देने के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया।
जी. आर., मॆक्सिको
इन लेखों से मुझे कुछ आशा मिली है। मैं एक बिखरे परिवार से हूँ और अकसर मुझे लगता है कि मैं यहोवा की सेवा करने और अपनी नन्ही बेटी की परवरिश करने के लायक नहीं हूँ। मैं लेख में दिये गये सुझावों पर चलने की पूरी कोशिश करूँगी। परवाह करने के लिए शुक्रिया।
ए. ए., अमरीका