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सजग होइए!–1998
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विश्‍व-दर्शन

बचपन में होनेवाले दस्त का इलाज

“वेनेज़वेला के शोधकर्ताओं ने एक वैक्सीन बनायी है जिससे बच्चों में दस्त की शिकायत लगभग पूरी तरह खत्म हो जाती है,” करैकस का द डेली जरनल कहता है। “यह वैक्सीन . . . रोटावाइरस दस्त से सुरक्षा देने के लिए बनायी गयी है, जो हर साल विकासशील देशों में पाँच साल से कम उम्र के करीब ८,७३,००० बच्चों की जान लेता है।” अमरीका में भी इस बीमारी के कारण १,००,००० से ज़्यादा शिशुओं और नन्हे बच्चों को हर साल अस्पताल का मुँह देखना पड़ता है। द न्यू इंग्लैंड जरनल ऑफ मॆडिसिन में प्रकाशित अध्ययन रिपोर्ट करता है कि इस वैक्सीन का इस्तेमाल करने पर वाइरस से ८८-प्रतिशत सुरक्षा मिली और गंभीर दस्त के कारण अस्पताल में भर्ती होनेवालों की संख्या ७० प्रतिशत घट गयी। लेकिन एक कमी है। “इलाज विकासशील देशों के लिए बहुत महँगा हो सकता है और वहीं इसकी सबसे ज़्यादा ज़रूरत है,” द डेली जरनल कहता है—उन देशों में “जहाँ स्वास्थ्य चिकित्सा पर हर साल प्रति व्यक्‍ति २० डॉलर से कम खर्च किया जाता है।” जब तक कि वैक्सीन को सस्ते में नहीं बनाया जा सकता, दस्त के कारण शरीर में पानी की कमी को पेय पदार्थ लेने के द्वारा पूरा किया जाना होगा। यह तरीका २० सालों से प्रभावकारी रूप से प्रयोग किया गया है।

काम, तनाव और दिल का दौरा

हृदय और रक्‍त-संचार समस्याओं का दूसरा सबसे बड़ा कारण है कार्यस्थल पर मानसिक तनाव। पहला कारण है धूम्रपान, फ्राँकफुर्टर रुन्टशाउ रिपोर्ट करता है। बर्लिन, जर्मनी में ‘व्यावसायिक सुरक्षा और स्वास्थ्य संघ संस्थान’ द्वारा किये गये एक सर्वेक्षण का सार देते हुए रिपोर्ट कहती है: “उन कर्मचारियों को सबसे ज़्यादा खतरा है जिन्हें फैसले करने की बहुत कम छूट है और जिनके काम में बहुत कम विविधता है। और यदि वे अपने फुरसत के समय भी दबाव में हैं, उदाहरण के लिए यदि वे अपना घर बना रहे हैं या किसी बीमार रिश्‍तेदार की सेवा कर रहे हैं, तो दिल का दौरा पड़ने का खतरा लगभग नौ गुना बढ़ जाता है।” एक विशेषज्ञ आग्रह करता है कि कर्मचारियों को फैसले करने की ज़्यादा छूट दी जानी चाहिए। “विभाग में सभी कर्मचारियों के बीच महीने में मात्र एक चर्चा से स्थिति सुधर सकती है।”

माँ का दूध बीमारियाँ कम करता है

पैरॆंट्‌स पत्रिका कहती है, “२ से ७ महीने के १,७०० से ज़्यादा शिशुओं का एक अध्ययन दिखाता है कि माँ का दूध पीनेवाले बच्चों को कान के संक्रमणों और दस्त का खतरा कम रहता है।” अमरीका में “रोग नियंत्रण और रोकथाम केंद्रों के शोधकर्ताओं ने पाया कि जिस शिशु को सिर्फ डब्बे का दूध पिलाया जाता है उसे उस शिशु की तुलना में जिसे सिर्फ माँ का दूध पिलाया जाता है, इनमें से एक-न-एक शिकायत होने का लगभग दो गुना खतरा रहता है।” लंबे अरसे से डॉक्टरों का विश्‍वास है कि माँ का दूध संक्रमण से सुरक्षा देता है क्योंकि यह माँ के रोगप्रतिकारकों को शिशु में पहुँचाता है, परंतु यह अध्ययन दिखाता है कि लाभ अनेक हैं। इस अध्ययन का एक लेखक, लॉरॆंस ग्रमर-स्ट्रॉन कहता है: “यह कहना सही है कि शिशु को पहले छः महीनों में माँ का दूध जितना ज़्यादा मिले, उतना अच्छा है।”

‘दुनिया में सबसे प्रभावकारी यातायात’

जब आपको शहरी इलाके में आठ किलोमीटर से कम दूरी का सफर करना है, तो साइकिल कार से जल्दी पहुँचा सकती है, कोलंबो, श्रीलंका का दी आइलैंड रिपोर्ट करता है। अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरणवादी समूह फ्रॆंड्‌स ऑफ दी अर्थ साइकिल को “पृथ्वी पर यातायात का सबसे प्रभावकारी साधन” कहता है। उनका कहना है कि साइकिल से सिर्फ एक गैलन पेट्रोल के बराबर खाद्य ऊर्जा पर २,४०० किलोमीटर तक प्रदूषण-मुक्‍त सफर किया जा सकता है, रिपोर्ट बताती है। उसमें आगे कहा गया है कि साइकिल का इस्तेमाल करने से स्वास्थ्य लाभ भी होते हैं।

सिज़ेरियन या सामान्य प्रसव?

ब्राज़ील के डॉक्टर और माताएँ अकसर सामान्य प्रसव की तुलना में सिज़ेरियन प्रसव पसंद करते हैं। डॉक्टर को लगता है कि “वह ज़्यादा प्रसव करवा सकता है, अपने क्लिनिक में ज़्यादा पैसा कमा सकता है और उसे अपनी छुट्टी का दिन बरबाद नहीं करना पड़ता,” वेज़्हा पत्रिका रिपोर्ट करती है। माताएँ “सामान्य प्रसव प्रक्रिया से नहीं गुज़रना चाहतीं ताकि पीड़ा न सहनी पड़े (लेकिन, सिज़ेरियन प्रसव के बाद काफी ज़्यादा पीड़ा होती है) और वे मानती हैं कि यह प्रक्रिया सौंदर्य की दृष्टि से शरीर के लिए लाभकारी है (जो कि यह नहीं है)।” सरकारी अस्पतालों में, एक-तिहाई जन्म सिज़ेरियन होते हैं और कुछ प्राइवेट अस्पतालों में यह दर ८० प्रतिशत तक है। “बच्चे का जन्म व्यापारिक वस्तु बन गया है,” डॉ. ज़्हवाउन लूईश कार्वाल्यू पीन्टू ऎ सील्वा कहता है। डॉ. सील्वा यूनिवर्सिटी ऑफ कैम्पीनस में प्रसूतिविज्ञान का प्रमुख है। “लोग अकसर यह भूल जाते हैं कि सामान्य प्रसव के विपरीत, सिज़ेरियन प्रसव एक ऑपरेशन है। इसमें ज़्यादा खून बहता है, ज़्यादा समय तक बेहोशी रहती है और संक्रमण की संभावना बढ़ जाती है।” इस डॉक्टर के अनुसार, “सिज़ेरियन सिर्फ तीन स्थितियों में किया जाना चाहिए: जब स्त्री या बच्चे की जान को खतरा हो, जब प्रसव-पीड़ा न उठ रही हो, या जब अचानक जटिलता उत्पन्‍न हो जाए,” वेज़्हा कहती है।

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