हमारे पाठकों से
जाति भेद मैं १२ साल की हूँ। कल ही मुझे स्कूल में जाति भेद पर गृहकार्य मिला। मैं आधी भारतीय हूँ। आज मुझे आपका लेख “मसीही लोग और जाति भेद” (अप्रैल ८, १९९८) मिला। मेरी स्कूल की पुस्तकों में इस विषय को उतने विस्तार से नहीं समझाया गया है जितना कि आपने समझाया है।
एस. एस. एन., अमरीका
तनाव को सँभालना मैं जानी-मानी पत्रिकाओं में थकान, शिथिलता और मानसिक रूप से पस्त होने के बारे में पढ़ चुका हूँ। लेकिन उन्हें पढ़ने के बाद मैं अकसर इस सोच में पड़ जाता हूँ कि क्या मेरे पास और संघर्ष करने का दम है! मैं यह देखकर खुश हुआ कि तनाव को सँभालने के बारे में आपके १५ सुझावों में से एक में भी हिम्मत हारने का सुझाव नहीं था। (“आप तनाव को सँभाल सकते हैं!,” अप्रैल ८, १९९८) इसके बजाय, उन्होंने दिखाया कि अपने जीवन को आगे बढ़ाते हुए तनाव कैसे कम करें।
जे. बी., बोलिविया
ये लेख सही समय पर आये, क्योंकि मैं चिंता से ग्रस्त हूँ। मैं पूर्ण-समय की सुसमाचारक हूँ और मैंने सोचा कि मुझे ऐसी समस्याएँ नहीं होनी चाहिए। इन लेखों को पढ़ते समय मेरी आँखों से आँसू बह निकले। मुझे एहसास हुआ कि यहोवा अपने सेवकों की बहुत परवाह करता है और समझता है कि हम पर क्या गुज़र रही है।
डी. एम., इटली
मुझे इन्हीं लेखों की ज़रूरत थी क्योंकि मैं एक तनावपूर्ण रोग, विचर्चिका (सराइसिस) से पीड़ित हूँ। कभी-कभी मुझे लगता है कि यहोवा की दृष्टि में मेरा कोई महत्त्व नहीं, लेकिन आपके लेख ने मुझे दिखाया कि ऐसी बात नहीं। वह सचमुच मेरी परवाह करता है—इस हद तक कि उसने मुझे तनाव के बारे में पूरी जानकारी दी है।
एस. एस., ब्राज़ील
मैं अपने पूरे दिल से बक्स “PTSD—असामान्य अनुभव होने पर सामान्य प्रतिक्रिया” के लिए आपको शुक्रिया कहना चाहती हूँ। मुझे बचपन में सदमे पहुँचे और जबकि पुरानी यादें अब भी मुझे सताती हैं, इस लेख से मुझे बहुत सांत्वना मिली।
आर. एन., अमरीका
मुझे ये लेख बहुत ज्ञानवर्धक लगे। क्योंकि शैतान से आनेवाले दबाव बढ़ रहे हैं हमें विश्वास में बने रहने के लिए इस किस्म की जानकारी की ज़रूरत है। इन्होंने मुझे एहसास दिलाया कि आप हमारी समस्याओं में गहरी दिलचस्पी लेते हैं और उनसे जूझने में हमारी मदद करते हैं।
वी. टी., फिजी
ज़्यादा सफल होना मैं स्कूल में पढ़ती हूँ और आपको “युवा लोग पूछते हैं . . . क्या मैं स्कूल में ज़्यादा सफल हो सकता हूँ?” (अप्रैल ८, १९९८) के लिए शुक्रिया कहना चाहती हूँ। हालाँकि मेरे नंबर हमेशा औसत से ज़्यादा रहे हैं, फिर भी मुझे कभी ऐसा नहीं लगा कि मुझे और ज़्यादा मेहनत करनी चाहिए। लेकिन इस दिलचस्प और प्रेरणा देनेवाले लेख के कारण मुझे साफ दिखता है कि मैं उचित लक्ष्य रखकर ज़्यादा सफल हो सकती हूँ।
बी. आर., अमरीका
मैं १४ साल की हूँ। असल में कभी मेरी समझ में यह नहीं आया कि पढ़ाई कैसे करूँ। मैंने सोचा कि कुछ बातें आगे चलकर मेरे कोई काम नहीं आएँगी सो उन्हें सीखना बेकार है। पर इस लेख को पढ़कर मैंने अपना विचार बदल लिया। साथ ही, मैं आपका धन्यवाद करना चाहती हूँ कि आपने बहुत ही व्यावहारिक रूप से यह समझाया कि कैसे पढ़ाई करें!
के. एफ., जापान