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सजग होइए!–1999
g99 2/8 पेज 28-29

विश्‍व दर्शन

“सुपरबग्ज़” को लेकर खलबली

“सबसे असरदार ऎंटीबायॉटिक दवाएँ भी ‘सुपरबग्ज़’ पर काम नहीं कर रहीं, यह न सिर्फ चिकित्सा व्यवसाय के लिए बल्कि मरीज़ों के लिए भी चिंता की बात है,” दक्षिण अफ्रीकी स्टार अखबार कहता है। रोगविज्ञानी माइक डव चिताता है कि “जो रोग पहले नियंत्रण में आ गये थे या लगभग मिटा दिये गये थे वे परिवर्तन करके वापस आ रहे हैं।” ऎंटीबायॉटिक दवाओं का ज़रूरत से ज़्यादा इस्तेमाल करने के कारण तपेदिक (टीबी), मलेरिया, टाइफॉइड, गनोरिया, मॆनिनजाइटिस और न्यूमोनिया नये रूप में आ गये हैं जिनका इलाज करना बहुत ही मुश्‍किल होता जा रहा है और आधुनिक दवाओं का उन पर असर नहीं होता। साल में तीस लाख से ज़्यादा लोग सिर्फ टीबी से मरते हैं। मरीज़ निम्नलिखित बातें याद रखकर मदद कर सकते हैं: शुरू में, इस तरह के नुस्खे आज़माकर देखिए जैसे काफी तरल पदार्थ पीना, ज़रूरी आराम करना, और यदि आपका गला खराब हो तो गुनगुने पानी में नमक डालकर गरारे करना। अपने डॉक्टर पर दबाव मत डालिए कि आपको ऎंटीबायॉटिक्स दे—उसे तय करने दीजिए कि क्या सचमुच इनकी ज़रूरत है। यदि ऎंटीबायॉटिक दवाएँ दी जाती हैं तो हमेशा पूरा इलाज कीजिए, सुधार होने लगे तो भी। याद रखिए कि ऎंटीबायॉटिक्स सर्दी और फ्लू को दूर नहीं करेंगी, क्योंकि ये बैक्टीरिया के द्वारा नहीं, वाइरस के द्वारा होते हैं। डव ने कहा, “इस बहुत ही चिंताजनक विश्‍वव्यापी समस्या से लड़ने के लिए सभी को मिलकर काम करना चाहिए जो स्वास्थ्य महासंकट उत्पन्‍न कर सकती है।”

हताशा की भारी कीमत

“दुनिया में काम से नागा करने और घटिया दर्जे का उत्पादन करने का मुख्य कारण—शारीरिक बीमारियों से कहीं ज़्यादा—हताशा है,” ब्राज़ील का अखबार ऊ ग्लोबू कहता है। विश्‍व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट दिखाती है कि १९९७ में २,००,००० मौतों के ज़िम्मेदार मानसिक रोग थे। इसके अलावा, मूड में उतार-चढ़ाव जैसी छोटी-मोटी मानसिक गड़बड़ियों का दुनिया भर में १४.६ करोड़ से ज़्यादा लोगों के व्यावसायिक काम पर बुरा प्रभाव हुआ। यह संख्या दूसरे आँकड़ों से बड़ी है, जैसे १२.३ करोड़ कर्मियों को श्रवण समस्याओं के कारण परेशानी हुई और २.५ करोड़ लोगों की काम के समय दुर्घटना हुई। ऑक्सफर्ड यूनिवर्सिटी प्रोफॆसर गाइ गुडविन द्वारा किये गये एक अध्ययन के अनुसार, आनेवाले सालों में हताशा की समस्या बढ़ेगी, जिसके कारण समाज पर बहुत भार पड़ेगा क्योंकि उत्पादकता घटेगी और इलाज का खर्च बढ़ेगा। सिर्फ अमरीका में, हताशा के कारण पहले ही ५३ अरब डॉलर का सालाना नुकसान होता है।

बदला लेना उनका धंधा है

जापान में कहीं भी सेवा करने की क्षमता और “पूर्ण गोपनीयता” का वादा करते हुए, टोक्यो की एक कंपनी विज्ञापन देती है: “आपकी तरफ से हम आपका हिसाब चुकता कर देंगे।” मूल धारणा यह है कि “जिसने ग्राहक को दुःख पहुँचाया है उसे उसी किस्म का दुःख पहुँचाएँ,” इस सेवा कंपनी का मालिक कहता है। आसाही ईवनिंग न्यूज़ में रिपोर्ट किया गया, कंपनी “कानूनी रूप से बदला लेने का काम” करेगी, जैसे यह निश्‍चित करना कि “व्यक्‍ति की नौकरी और परिवार न रहे,” रिश्‍ते टूट जाएँ, और “यह निश्‍चित करना कि सहकर्मी की कुर्सी चली जाए या जिस बॉस ने लैंगिक दुर्व्यवहार किया है उसका अपमान किया जाए।” हर दिन करीब ५० लोग इस कंपनी को फोन करते हैं। उनमें से २० जन खून करवाने की बात करते हैं; लेकिन कंपनी का नियम है कि वह मार-धाड़ या कानून का उल्लंघन नहीं करती, “हालाँकि कभी-कभी वह इस हद तक पहुँच जाती है।” इस सेवा कंपनी में दर्जनों लोग काम करते हैं, जिनमें से अधिकतर लोग पूर्ण-समय की दूसरी नौकरियाँ भी करते हैं। कुछ लोग ऐसे हैं जिन्होंने स्वयं दुःख झेला है और जो बदला लेने में दूसरों की मदद करना चाहते हैं। “कौन जाने अतीत में आपने कुछ ऐसा किया हो जिसके कारण दूसरों ने आपसे बैर रख लिया हो। सावधान रहिए,” मालिक ने चिताया।

विवाह से स्वास्थ्य सुधरता है

विवाह करने से स्त्रियों और पुरुषों दोनों के “जीवन के दिन बढ़ते हैं, शारीरिक और भावात्मक स्वास्थ्य में बहुत सुधार होता है और आमदनी बढ़ती है,” द न्यू यॉर्क टाइम्स में एक अनुसंधायिका कहती है। यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो की प्रोफॆसर लिंडा जे. वेट द्वारा किया गया अध्ययन १९७२ में छपी एक रिपोर्ट का खंडन करता है कि विवाहित स्त्रियों को अधिक मनोवैज्ञानिक तनाव होता है। डॉ. वेट ने पाया कि “विवाह ऐसे कई तरीकों से लोगों के व्यवहार को बदल देता है जिनसे उन्हें फायदा होता है,” जैसे कम शराब पीना। प्रतीत होता है कि विवाह हताशा को भी कम कर देता है। असल में, “एक समूह के तौर पर अविवाहित पुरुष इस अध्ययन की शुरूआत में हताश थे और जो बाद में भी अविवाहित ही रहे वे ज़्यादा हताश हो गये।” लेकिन, यूनिवर्सिटी ऑफ मिनॆसोटा का डॉ. विलियम जे. डॉअर्टी बताता है कि आँकड़े औसत दिखाते हैं और इनका यह अर्थ नहीं कि हर कोई विवाह करके अधिक सुखी होता है या वे लोग जो गलत व्यक्‍ति से विवाह करते हैं वे सुखी और स्वस्थ होते हैं।

हिंसक हीरो

मीडिया में दिखायी जानेवाली हिंसा के प्रभाव के बारे में संयुक्‍त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन का एक अध्ययन दिखाता है कि बच्चों के कुछ पसंदीदा आदर्श मार-धाड़वाली फिल्मों के हीरो होते हैं। २३ देशों में १२ साल के पाँच हज़ार बच्चों का इंटरव्यू लिया गया। उनमें से २६ प्रतिशत बच्चों ने व्यवहार के लिए अपने आदर्श के रूप में इन फिल्मी हीरो को “पॉप स्टारों और संगीतकारों (१८.५ प्रतिशत), धार्मिक नेताओं, (८ प्रतिशत), या राजनेताओं (३ प्रतिशत) से कहीं ज़्यादा महत्त्व दिया,” ब्राज़ील का ज़्हूरनाल डा टार्डा कहता है। अध्ययन का अध्यक्ष, प्रोफॆसर जो ग्रोबल कहता है कि प्रत्यक्षतः बच्चे हिंसक हीरो को मुख्यतः इस बात का आदर्श मानते हैं कि कठिन स्थितियों से बचकर कैसे निकलें। ग्रोबल चिताता है, बच्चे हिंसा के जितना अधिक आदी होते हैं वे उतना ही अधिक उग्र व्यवहार कर सकते हैं। वह आगे कहता है: “मीडिया इस विचार को बढ़ावा देती है कि हिंसा सामान्य तरीका है और उससे लाभ होता है।” ग्रोबल ने इस बात पर ज़ोर दिया कि माता-पिता अपने बच्चों को वह मार्गदर्शन देने में मुख्य भूमिका निभाते हैं जो उन्हें कल्पना और वास्तविकता के बीच भेद करने में मदद देता है।

“जवान स्त्रियों का सबसे बड़ा हत्यारा”

आर्थिक रूप से विकसित देशों में, तपेदिक (टीबी) अकसर ६५ साल से ज़्यादा उम्र के पुरुषों को होती है, नैनडो टाइम्स रिपोर्ट करता है। लेकिन रिपोर्ट कहती है कि विश्‍वव्यापी स्तर पर, विश्‍व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यू.एच.ओ.) के अनुसार टीबी रोग “दुनिया में जवान स्त्रियों का सबसे बड़ा हत्यारा” बन गया है। “पत्नियाँ, माताएँ, और कमाऊ स्त्रियाँ अपनी जवानी में ही खत्म हो रही हैं,” डब्ल्यू.एच.ओ. के विश्‍वव्यापी तपेदिक कार्यक्रम का डॉ. पॉल डोलिन कहता है। यर्टबॉरी, स्वीडन में हाल ही में एक चिकित्सा सॆमिनार हुआ। वहाँ इकट्ठा हुए विशेषज्ञों ने कहा कि दुनिया भर में ९० करोड़ से ज़्यादा स्त्रियाँ टीबी से संक्रमित हैं। उनमें से करीब दस लाख स्त्रियाँ हर साल मरेंगी और ऐसी अधिकतर स्त्रियों की उम्र १५ से ४४ साल के बीच है। ब्राज़ील के अखबार ऑ ऎस्टाडॉ ड साऊँ पाउलू के अनुसार, इस मृत्यु दर का एक कारण यह है कि अनेक स्त्रियाँ बीमारी ठीक होने से पहले, बीच में ही इलाज छोड़ देती हैं।

ज़मीन पर रहनेवाले केकड़े और पारिस्थितिकी

जंगल की ज़मीन पर गिरी पत्तियों और कूड़े को चींटियाँ, दीमक, और दूसरे कीड़े खाद बना देते हैं, लेकिन उष्णकटिबंधी वर्षा-प्रचुर वनों में क्या होता है जहाँ समय-समय पर बाढ़ आ जाती है? वहाँ यह काम ज़मीन पर रहनेवाले केकड़े करते हैं। यूनिवर्सिटी ऑफ मिशिगन, अमरीका का एक परिस्थिति-विज्ञानी दंग रह गया जब उसने कोस्टा रीका के प्रशांत तट पर जंगल के एक विशाल क्षेत्र में देखा कि ज़मीन पर कोई पत्ती नहीं है लेकिन उसके बदले में वहाँ ढेर सारे बड़े-बड़े गड्ढे हैं। रात के समय उसने देखा कि ज़मीन पर रहनेवाले केकड़े—एक एकड़ में करीब २४,०००—सूखी पत्तियों, फलों और अंकुरों की तलाश में निकले और उन्हें अपने तीन फुट गहरे बिल के अंदर ले गये। ये केकड़े गहरी जड़वाले पेड़ों को पोषण देने में सहायता करते हैं। आठ इंच के इन केकड़ों के पास साँस लेने के लिए थोड़े फर्क गलफड़े होते हैं। ये प्रजनन के लिए ही समय-समय पर समुद्र में जाते हैं। जंगल की संपूर्ण पारिस्थितिकी इन जीवों के काम से तय होती है, लंदन का द टाइम्स रिपोर्ट करता है।

घर में एकसाथ भोजन करना

कनाडा का अखबार टोरॉन्टो स्टार कहता है कि ५२७ किशोरों का अध्ययन किया गया और उनमें से जो किशोर हफ्ते में कम-से-कम पाँच बार अपने परिवार के साथ भोजन करते थे उनके लिए “नशीले पदार्थों का सेवन करने या हताश होने की संभावना कम थी, वे स्कूल में ज़्यादा दिल लगाते थे और साथियों के साथ उनका ज़्यादा अच्छा संबंध था। जिन किशोरों को ‘असंतुलित’ कहा गया वे अपने परिवार के साथ हफ्ते में ज़्यादा-से-ज़्यादा तीन दिन भोजन करते थे।” मनोविज्ञानी ब्रूस ब्राएन दावा करता है कि घर में रात का भोजन एकसाथ करना “अच्छे परिवार की खूबी है।” एकसाथ भोजन करने से पारिवारिक बँधन और रिश्‍ते मज़बूत होते हैं और संचार कौशल बढ़ता है, रिपोर्ट कहती है। एकसाथ भोजन करने से मेज़ पर खाने का सलीका सीखने और बातचीत करने, हँसी-मज़ाक करने और प्रार्थना करने का मौका मिलता है। उस परिवार की एक सयानी लड़की जहाँ हमेशा एकसाथ भोजन किया जाता था, कहती है कि यदि हमने हमेशा ऐसा नहीं किया होता तो “मुझे नहीं लगता कि मैं उनके इतने करीब होती जितना कि अब हूँ।”

तंबाकू उद्योग खेलों का प्रायोजन करता है

तंबाकू उद्योग अपने उत्पादों को बढ़ावा देने के लिए खेल प्रतियोगिताओं और दूसरे मनोरंजन का बहुत प्रयोग करता है। इससे “खेलों . . . और सिगरॆट पीने के बीच एक सकारात्मक संबंध” बनता है, ऑस्ट्रेलिया के विक्टोरियन हॆल्थ प्रोमोशन फाउन्डेशन की रॉन्डा गैलबली कहती है। इसके फलस्वरूप, खेलों में अकसर बड़ी चतुराई से किया गया तंबाकू का विज्ञापन लोगों को तंबाकू का सेवन करने के लिए लुभा सकता है। ब्रिटॆन में कैंसर रिसर्च कैंपेन ने पाया कि “जो लड़के टीवी पर फॉर्मूला वन मोटर रेसिंग देखने का आनंद लेते हैं उनके लिए धूम्रपान शुरू करने की संभावना लगभग दोगुनी है,” समाचार एजॆंसी पानॉस रिपोर्ट करती है। “पूरे यूरोप में तंबाकू कंपनियाँ सिर्फ कार रेसिंग के प्रायोजन के लिए हर साल कई करोड़ डॉलर खर्च करती हैं।” और कारें चलता-फिरता विज्ञापन हैं और अकसर टीवी पर दिखायी देती हैं।

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