अच्छा तनाव, बुरा तनाव
“चूँकि तनाव किसी भी ज़रूरत में शरीर की अनिश्चित प्रतिक्रिया है, इसलिए हर व्यक्ति हमेशा कुछ हद तक तनाव में रहता है।” —डॉ. हान्स सॆलया।
वायलिन वादक को धुन छेड़नी है तो उसके वाद्य की तारें कसी होनी चाहिए—लेकिन कुछ हद तक ही। यदि वे ज़्यादा कसी हों, तो टूट जाएँगी। लेकिन यदि तारें ज़्यादा ढीली हों, तो उनसे कोई आवाज़ नहीं निकलेगी। सही खिंचाव ठीक-ठीक होता है, न ज़्यादा ढीला और न ज़्यादा कसा।
तनाव के साथ भी कुछ ऐसा ही है। बहुत ज़्यादा तनाव हानिकर हो सकता है, जैसा हम देख चुके हैं। लेकिन बिलकुल भी तनाव न हो, ऐसी स्थिति के बारे में क्या? जबकि यह सुनने में तो अच्छा लग सकता है, लेकिन सच्चाई यह है कि आपको तनाव की ज़रूरत है—कम-से-कम थोड़ा तो चाहिए ही। उदाहरण के लिए, कल्पना कीजिए कि सड़क पार करते समय, आप अचानक देखते हैं कि एक कार बड़ी तेज़ी से आपकी ओर आ रही है। तनाव ही आपको समर्थ करता है कि वहाँ से हटें—जल्दी से!
लेकिन तनाव सिर्फ आपात-स्थितियों में ही उपयोगी नहीं है। रोज़मर्रा के काम करने के लिए भी आपको तनाव की ज़रूरत है। हर कोई हर समय कुछ हद तक तनाव में होता है। ‘तनाव से बचने का एक ही तरीका है, मर जाओ,’ डॉ. हान्स सॆलया कहता है। वह आगे कहता है, यह कथन कि “वह तनाव में है” उतना ही निरर्थक है जितना कि यह कहना, “उसे ताप है।” “ऐसी अभिव्यक्तियों से असल में हमारा अर्थ होता है,” सॆलया कहता है, “ज़रूरत-से-ज़्यादा तनाव या शारीरिक ताप।” इस संदर्भ में कहें तो मनोरंजन में भी तनाव होता है, और सोते समय भी होता है, क्योंकि आपका दिल धड़कता रहता है और आपके फेफड़े काम करते रहते हैं।
तीन प्रकार के तनाव
जैसे तनाव की अलग-अलग हदें होती हैं, वैसे ही इसके अलग-अलग प्रकार भी होते हैं।
दैनिक जीवन के दबावों से अतिपाती तनाव (अक्यूट स्ट्रॆस) उत्पन्न होता है। अकसर, यह दुःखद स्थितियों से जुड़ा होता है जिनसे जूझने की ज़रूरत होती है। क्योंकि ये स्थितियाँ इत्तिफाकी और थोड़े समय की होती हैं, आम तौर पर तनाव को सँभाला जा सकता है। हाँ, ऐसे भी लोग होते हैं जो एक-के-बाद-एक संकट में पड़ते रहते हैं—सचमुच, ऐसा लगता है कि गड़बड़ी उनके व्यक्तित्व का हिस्सा है। इस स्तर के अतिपाती तनाव को भी बस में किया जा सकता है। लेकिन, पीड़ित व्यक्ति शायद तब तक बदलाव न करना चाहे जब तक कि उसे समझ नहीं आ जाता कि उसकी अशांत जीवन-शैली का उस पर और उसके आस-पास के लोगों पर क्या प्रभाव हो रहा है।
जबकि अतिपाती तनाव कुछ समय का होता है, जीर्ण तनाव लंबे समय तक रहता है। पीड़ित व्यक्ति को तनावपूर्ण स्थिति से निकलने का कोई रास्ता नहीं सूझता, चाहे वह गरीबी की मार हो या नीरस नौकरी—अथवा नौकरी न होने—का दुःख हो। पारिवारिक समस्याएँ खत्म होने का नाम न लें तो भी जीर्ण तनाव हो सकता है। अपाहिज रिश्तेदार की देखभाल करना भी तनाव ला सकता है। कारण जो भी हो, जीर्ण तनाव अपने शिकार को दिनों-दिन, हफ्तों-हफ्ते, महीनों-महीने पस्त करता चला जाता है। “जीर्ण तनाव के बारे में सबसे बुरी बात यह है कि लोग इसके आदी हो जाते हैं,” इस विषय पर एक पुस्तक कहती है। “लोग अतिपाती तनाव को तुरंत महसूस कर लेते हैं क्योंकि वह नया-नया होता है; वे जीर्ण तनाव को नज़रअंदाज़ कर देते हैं क्योंकि वह पुराना, जाना-पहचाना, और कभी-कभी तो सामान्य-सा बन चुका होता है।”
सदमा-तनाव (ट्रॉमैटिक स्ट्रॆस) एक बड़ी त्रासदी से लगे धक्के के कारण होता है, जैसे बलात्कार, दुर्घटना, या प्राकृतिक विपदा। अनेक युद्ध सेनानी और यातना शिविर उत्तरजीवी इस प्रकार के तनाव से पीड़ित रहते हैं। सालों बाद तक सदमे की यादें ताज़ा रहना, साथ ही छोटी-छोटी घटनाओं में भी अत्यधिक संवेदनशीलता दिखाना सदमा-तनाव के लक्षण हो सकते हैं। कभी-कभी पीड़ित व्यक्ति की अवस्था को सदमा-उपरांत तनाव विकार (PTSD) करार दिया जाता है।—ऊपर दिया गया बक्स देखिए।
तनाव के प्रति अति-संवेदनशील
कुछ लोग कहते हैं कि वर्तमान में तनाव आने पर हम जिस तरह प्रतिक्रिया दिखाते हैं वह काफी हद तक इस पर निर्भर करती है कि अतीत में हमने कितना और किस प्रकार का तनाव झेला है। वे कहते हैं कि सदमेवाली घटनाओं से मस्तिष्क का रसायन “संतुलन” बिगड़ सकता है, और व्यक्ति भविष्य में तनाव के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाता है। उदाहरण के लिए, दूसरे विश्व युद्ध के ५५६ सेनानियों के एक अध्ययन में, डॉ. लॉरॆंस ब्रास ने पाया कि जो युद्ध-कैदी नहीं रहे थे उनकी तुलना में, मस्तिष्क-आघात (स्ट्रोक) का जोखिम उनके बीच आठ गुना ज़्यादा था जो युद्ध-कैदी रहे थे—असल सदमे के ५० साल बाद भी। “युद्ध-कैदी होने का तनाव इतना अधिक था कि इसने भविष्य में तनावपूर्ण स्थिति में इन लोगों की प्रतिक्रिया को बदल दिया—इसने उन्हें अति-संवेदनशील बना दिया।”
विशेषज्ञ कहते हैं कि बचपन में झेली तनावपूर्ण घटनाओं को कम महत्त्व का नहीं समझा जाना चाहिए क्योंकि इनका बहुत प्रभाव हो सकता है। “जिन बच्चों ने सदमा सहा होता है उनमें से अधिकतर को डॉक्टर के पास नहीं ले जाया जाता,” डॉ. जीन किंग कहती है। “वे समस्या को पार कर जाते हैं, अपना जीवन आगे बढ़ाते जाते हैं, और सालों बाद हमारे दफ्तर में [डॉक्टर के पास] पहुँच जाते हैं, वे अवसाद या दिल की बीमारी से पीड़ित होते हैं।” उदाहरण के लिए, माता या पिता को खोने का सदमा लीजिए। “बचपन में उतना बड़ा तनाव सहना मस्तिष्क के आंतरिक संतुलन को स्थायी रूप से बिगाड़ सकता है,” डॉ. किंग कहती है, “वह सामान्य, रोज़मर्रा के तनाव को सँभालने में उतना सक्षम नहीं रहता।”
निःसंदेह, एक व्यक्ति तनाव की स्थिति में कैसी प्रतिक्रिया दिखाता है यह अनेक अन्य बातों पर भी निर्भर हो सकता है, जिनमें उसका शारीरिक गठन और तनावपूर्ण घटनाओं से निपटने में उसकी मदद करने के लिए उसे उपलब्ध साधन शामिल हैं। लेकिन, तनाव का कारण जो भी हो, उसे सँभाला जा सकता है। माना, यह आसान नहीं है। डॉ. रेचल यहूदा कहती है: “तनाव के प्रति अति-संवेदनशील व्यक्ति को यह कहना कि निश्चिंत रहो, अनिद्रा-रोग से पीड़ित व्यक्ति को यह कहने के समान होगा कि आराम से सो जाओ।” लेकिन, व्यक्ति तनाव को घटाने के लिए काफी कुछ कर सकता है। अगला लेख यही दिखाएगा।
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नौकरी का तनाव—“विश्वव्यापी समस्या”
संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट कहती है: “तनाव २०वीं सदी की एक अति गंभीर स्वास्थ्य समस्या बन गया है।” कार्यस्थल पर यह स्पष्ट रूप से दिखता है।
● ऑस्ट्रेलिया में सरकारी कार्यकर्ताओं द्वारा तनाव मुआवज़ा माँगनेवालों की संख्या मात्र तीन साल में ९० प्रतिशत बढ़ गयी।
● फ्रांस में एक सर्वेक्षण ने प्रकट किया कि ६४ प्रतिशत नर्सें और ६१ प्रतिशत शिक्षिकाएँ कहती हैं कि जिस तनावपूर्ण वातावरण में वे काम करती हैं उसके बारे में वे परेशान हैं।
● तनाव-संबंधी बीमारियों पर हर साल अमरीका अंदाज़न २०० अरब डॉलर खर्च करता है। कुल औद्योगिक दुर्घटनाओं में तकरीबन ७५ से ८५ प्रतिशत तनाव से संबंधित हैं।
● अनेक देशों में पाया गया कि पुरुषों की तुलना में स्त्रियाँ तनाव से ज़्यादा पीड़ित रहती हैं, संभवतः इसलिए कि उन्हें घर और दफ्तर के बीच ज़्यादा काम सँभालने होते हैं।
यू.एन. की रिपोर्ट कहती है, नौकरी का तनाव निश्चित ही एक “विश्वव्यापी समस्या” है।
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PTSD—असामान्य अनुभव होने पर सामान्य प्रतिक्रिया
‘कार दुर्घटना के तीन महीने बाद भी मेरा रोना बंद नहीं होता था, मैं रात भर सो नहीं पाती थी। घर से बाहर निकलने में ही डर लगता था।’—लवीज़।
लवीज़ सदमा-उपरांत तनाव विकार (PTSD) से पीड़ित है। यह कमज़ोर करनेवाली बीमारी है जिसमें किसी सदमेवाली घटना के बारे में बार-बार और बेचैन करनेवाली यादें या सपने आते हैं। PTSD से पीड़ित व्यक्ति शायद बहुत जल्दी घबरा जाए और हमेशा चौकन्ना भी रहे। उदाहरण के लिए, मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ माइकल डेविस एक वियतनामी सेनानी के बारे में बताता है जो अपनी शादी के दिन किसी कार से फटाके की आवाज़ सुनकर झाड़ियों में कूद पड़ा। “वातावरण में ऐसा हर संकेत रहा होगा जो उसे बताता कि सब कुछ ठीक-ठाक है,” डेविस कहता है। “यह २५ साल बाद की बात है; अब वह अमरीका में था, वियतनाम में नहीं; . . . वह सफेद सूट पहने हुए था, फौज की वर्दी नहीं। लेकिन जब वह पुरानी याद ताज़ा हुई, वह सुरक्षा के लिए दौड़ा।”
लड़ाई के मैदान में पहुँचा सदमा PTSD का मात्र एक कारण है। द हार्वर्ड मॆंटल हॆल्थ लॆटर के अनुसार, यह विकार ऐसी किसी “घटना या घटनाक्रम” का अंजाम हो सकता है “जिसमें सचमुच मौत हो जाती है या मौत का खतरा होता है या भारी चोट पहुँचती है या शारीरिक चोट का खतरा होता है। यह कोई प्राकृतिक विपदा, दुर्घटना, या इंसानी काम हो सकता है: बाढ़, भूकंप, कार दुर्घटना, बमबारी, गोलीबारी, यातना, अपहरण, हमला, बलात्कार, या बाल दुर्व्यवहार।” किसी सदमेवाली घटना को देखना या उसके बारे में जानना—संभवतः सजीव वर्णन या तसवीरों के द्वारा—PTSD के लक्षण उत्पन्न कर सकता है, खासकर यदि ऐसा परिवार के सदस्यों या नज़दीकी दोस्तों के साथ हुआ हो।
यह सही है कि अलग-अलग लोगों पर सदमे का अलग-अलग असर होता है। “सदमा सहनेवाले अधिकतर लोगों में गंभीर मनोवैज्ञानिक लक्षण उत्पन्न नहीं होते, और जब लक्षण दिखायी देते हैं तब भी ज़रूरी नहीं कि वे PTSD का रूप लें,” द हार्वर्ड मॆंटल हॆल्थ लॆटर बताता है। उनके बारे में क्या जिनका तनाव PTSD में बदल जाता है? समय के गुज़रने पर कुछ लोग सदमे से जुड़ी भावनाओं को सँभालने में समर्थ हो जाते हैं और उन्हें राहत मिल जाती है। दूसरे सदमेवाली घटना के अनेक सालों बाद भी उन यादों को भूल नहीं पाते।
जिस भी स्थिति में हों, जो PTSD से पीड़ित हैं—और जो उनकी मदद करना चाहते हैं—उन्हें याद रखना चाहिए कि सदमे से उबरने के लिए धीरज की ज़रूरत है। बाइबल मसीहियों को प्रोत्साहन देती है कि “हताश प्राणों से सांत्वनापूर्वक बोलो” और “सब के प्रति सहनशील बनो।” (१ थिस्सलुनीकियों ५:१४, NW) लवीज़, जिसका ज़िक्र शुरूआत में किया गया था, पाँच महीने बाद जाकर कहीं फिर से कार चलाने का साहस जुटा पायी। “मैंने जो प्रगति की है उसके बावजूद,” उसने दुर्घटना के चार साल बाद कहा, “कार चलाना अब मेरे लिए पहले जैसा सुखद अनुभव कभी नहीं होगा। यह एक काम है जो मुझे करना ही है, सो मैं करती हूँ। लेकिन दुर्घटना के बाद जो मेरी हालत थी उससे तो अब मैं काफी बेहतर हो गयी हूँ।”
[पेज 9 पर तसवीर]
अनेक दफ्तर-कर्मी तनावग्रस्त हैं
[पेज 9 पर तसवीर]
सभी तनाव आपके लिए बुरा नहीं