तनाव—“धीमा ज़हर”
“हम हमेशा लोगों को यह कहते हुए सुनते हैं, ‘इतना तनाव मत पालो कि बीमार पड़ जाओ।’ उन्हें शायद पता भी नहीं कि इस कथन का सचमुच जैविक आधार है।”—डॉ. डेविड फॆलटन।
जिल एक अविवाहित माँ है। उसका एक किशोर वय बेटा है। उसकी जमा पूँजी घटती जा रही है। अपने माता-पिता के साथ उसके संबंध में तनाव है। उसके पास तनावग्रस्त होने का पर्याप्त कारण था। फिर, अचानक ही उसकी बाँह पर खुजली और जलन पैदा करनेवाले ददोरे हो गये। उसने ऐन्टीबायॉटिक्स, कॉर्टिसोन क्रीम, और ऐन्टीहिस्टामाइन्स आज़माकर देखीं, लेकिन इनमें से किसी से भी फायदा नहीं हुआ। इसके बजाय, ददोरे जिल के पूरे बदन पर और चेहरे पर भी फैल गये। तनाव से सचमुच उसे खुजली हो रही थी।
जिल को एक ऐसे चर्मरोग क्लिनिक में भेजा गया जहाँ मरीज़ों की भावात्मक अवस्था की जाँच की जाती है। “हम यह जानने की कोशिश करते हैं कि उनके जीवन में क्या हो रहा है,” क्लिनिक का सह-संस्थापक, डॉ. थॉमस ग्रैग कहता है। वह अकसर देखता है कि जिन लोगों की चर्म समस्याएँ अड़ियल होती हैं, उन्हें चिकित्सा के साथ-साथ तनाव को कम करने में मदद की ज़रूरत होती है। “यह कहना उपयुक्त नहीं होगा कि आपकी भावनाओं या व्यवहार के कारण चर्म रोग होता है,” डॉ. ग्रैग स्वीकार करता है। “लेकिन हम कह सकते हैं कि त्वचा विकारों में व्यक्ति की भावात्मक अवस्था का बड़ा योग हो सकता है, और व्यक्ति को अपने जीवन में तनाव कम करने में मदद दिये बिना, हमें बस बार-बार स्टीरॉइड क्रीम नहीं लिख देनी चाहिए।”
जिल को लगता है कि तनाव को सँभालना सीखने से सचमुच उसने अपनी चमड़ी बचा ली। “कभी-कभी ददोरे फिर से उभर आते हैं, लेकिन मेरी त्वचा अब उतनी खराब नहीं जितनी कि पहले थी,” वह कहती है। यह कोई अनोखा किस्सा है? जी नहीं। अनेक डॉक्टरों का मानना है कि अनेक चर्म रोगों में तनाव का योग होता है, जैसे शीतपित्त (हाइव्स), विचर्चिका (सराइसिस), मुँहासे, और एक्ज़ीमा। लेकिन तनाव का प्रभाव आपकी त्वचा पर ही नहीं, उससे अधिक हो सकता है।
तनाव और आपका प्रतिरक्षा तंत्र
हाल के शोध दिखाते हैं कि तनाव आपके प्रतिरक्षा तंत्र को दबा सकता है, जिससे कई संक्रामक रोग लगने का खतरा हो सकता है। “तनाव आपको बीमार तो नहीं करता,” विषाणुविज्ञानी रॉनल्ड ग्लासर कहता है। “लेकिन आपके प्रतिरक्षा तंत्र को प्रभावित करके यह आपके बीमार होने का जोखिम अवश्य बढ़ा देता है।” इसका बहुत ठोस आधार है कि तनाव का संबंध ज़ुकाम, फ्लू, और हर्पीज़ के साथ है। हालाँकि हम निरंतर ऐसे विषाणुओं के संपर्क में आते हैं, तो भी हमारा प्रतिरक्षा तंत्र आम तौर पर उनसे लड़कर हमारा बचाव कर लेता है। लेकिन कुछ विशेषज्ञ कहते हैं कि जब व्यक्ति भावात्मक उलझन में होता है, तब ये बचाव-क्रियाएँ शायद काम न कर पाएँ।
इससे संबंधित जैविक प्रक्रियाएँ अभी पूरी तरह समझ नहीं आयी हैं। जब आप तनाव में होते हैं तब कुछ हार्मोन आपको कार्य के लिए उत्तेजित करते हैं। लेकिन कुछ लोगों का अनुमान है कि जब ये हार्मोन रक्तधारा में प्रवाहित होते हैं ये आपकी प्रतिरक्षा क्रियाओं में बाधा डाल सकते हैं। आम तौर पर, यह चिंता का कारण नहीं होता, क्योंकि ये हार्मोन बस थोड़े समय के लिए सक्रिय होते हैं। लेकिन, कुछ लोगों का कहना है कि यदि एक व्यक्ति लंबे समय तक और बहुत ज़्यादा तनाव का सामना करता है, तो उसके प्रतिरक्षा तंत्र को बहुत हानि पहुँच सकती है और वह जल्दी बीमार पड़ सकता है।
यह शायद इसका कारण समझा सके कि क्यों कनाडा के डॉक्टरों का अनुमान है कि उनके पास आनेवाले ५० से ७० प्रतिशत मरीज़ तनाव-संबंधी शिकायतें लेकर आते हैं, आम तौर पर इनमें सिरदर्द, अनिद्रा, थकान, और पेट की समस्याएँ होती हैं। अमरीका में, यह संख्या अनुमानतः ७५ से ९० प्रतिशत है। डॉ. जीन किंग को लगता है कि वह राई का पहाड़ नहीं बना रही जब वह कहती है: “लंबा तनाव धीमे ज़हर की तरह है।”
न तो एकमात्र कारण, न ही एकमात्र इलाज
उपरोक्त बातों के बावजूद, वैज्ञानिक निश्चित नहीं हैं कि अकेले ही तनाव प्रतिरक्षा तंत्र को इतना प्रभावित कर सकता है कि व्यक्ति बीमार पड़ जाए। अतः, पूरे अधिकार से यह नहीं कहा जा सकता कि जिस किसी को तनाव होता है, चाहे लंबे अरसे तक ही क्यों न हो, वह ज़रूर बीमार पड़ेगा। इसके विपरीत, यह भी नहीं कहा जा सकता कि तनाव का न होना इसकी गारंटी है कि स्वास्थ्य अच्छा होगा। न ही इस गलत धारणा पर चलना बुद्धिमानी की बात है कि चिकित्सीय उपचार न कराएँ, आशावादी होने और सकारात्मक सोच-विचार रखने से बीमारी को दूर भगाया जा सकता है। डॉ. डैनियल गोलमन चिताता है: “इस आकर्षक धारणा ने कि मनोवृत्ति हर बीमारी का इलाज है इस विषय में बहुत गड़बड़ी और गलतफहमी फैलायी है कि किस हद तक बीमारी का संबंध मन से है, और संभवतः उससे भी बदतर यह कभी-कभी लोगों में दोषभाव उत्पन्न करती है मानो बीमारी होना उनके किसी कुकर्म या आध्यात्मिक अयोग्यता का चिन्ह है।”
इसलिए, यह समझना आवश्यक है कि शायद ही कभी किसी बीमारी का एकमात्र कारण निश्चित किया जा सकता है। फिर भी, तनाव और बीमारी के बीच का संबंध यह सीखने की बुद्धिमत्ता स्पष्ट करता है कि जब भी संभव हो तब इस “धीमे ज़हर” को कैसे कम करें।
इस पर विचार करने से पहले कि तनाव कैसे कम किया जा सकता है, आइए इस पर ध्यान दें कि तनाव की प्रकृति कैसी होती है और कैसे कुछ मामलों में यह आपके लिए अच्छा भी हो सकता है।
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कुछ बीमारियाँ जिनका संबंध तनाव से जोड़ा गया है
● एलर्जी
● संधिशोथ (अर्थराइटिस)
● दमा
● पीठ, गर्दन और कंधों में दर्द
● ज़ुकाम
● अवसाद (डिप्रॆशन)
● अतिसार (डायरिया)
● फ्लू
● अमाशय और आँतों की बीमारियाँ
● सिरदर्द
● दिल की बीमारियाँ
● अनिद्रा रोग
● आधासीसी (माइग्रेन)
● पॆप्टिक अल्सर
● लैंगिक दुष्क्रिया
● त्वचा विकार
[पेज 6 पर तसवीर]
बड़ी संख्या में लोग तनाव के कारण डॉक्टर के पास जाते हैं