हम जिस तरह के कपड़े पहनते हैं—क्या उससे सचमुच कोई फर्क पड़ता है?
“क्या पहनूँ!” क्या मदद की यह पुकार जानी-पहचानी सुनायी पड़ती है? हाँ, आजकल के फैशन हाउस बेताबी से आपकी मदद करने के लिए—या फिर आपकी उलझन बढ़ाने के लिए—नये-नये डिज़ाइन आपके सामने पेश करते हैं।
आजकल जब आपसे कहा जाता है कि बढ़िया कपड़े नहीं, चलताऊ कपड़े पहनिए तो उलझन और भी बढ़ जाती है। १९९० से चल रहे इस उलटे रुख के बारे में एक फैशन लेख कहता है: “यह जानकर तसल्ली मिलती है कि थोड़े घिसे हुए, फीके-से, पुराने-से और बदरंग कपड़े पहनना ठीक ही नहीं बल्कि बहुत अच्छा माना जाता है।”
जी हाँ, हाल के सालों में ज़बरदस्त विज्ञापनों, टीवी स्टारों और दोस्तों साथ ही अपना ओहदा बढ़ाने और अपनी पहचान बनाने की ललक ने लोगों के पहनावे पर जादू-सा असर किया है। सबसे ज़्यादा असर जवानों पर हुआ है। उनमें से कुछ तो स्टाइलिश दिखने के लिए चोरी भी करते हैं।
इस दशक में जो स्टाइल खूब चल रहे हैं उनमें से कई स्टाइल बीते सालों के अजीबोगरीब चलन, जैसे हिप्पी क्रांति से लिये गये हैं। यह क्रांति दशक ६० में पाश्चात्य देशों में आयी थी। लंबी दाढ़ी, बिखरे हुए लंबे-लंबे बालों और मुचड़े हुए कपड़ों ने दिखाया कि पारंपरिक मान्यताओं को ठुकरा दिया गया है। लेकिन विद्रोही पहनावे ने देखादेखी करने, दबाव में आकर दूसरों के जैसा करने की नयी भावना भी पैदा कर दी।
पहनावा आज पहचान का सशक्त तरीका बन गया है। कपड़ों और खासकर टी-शर्ट से अच्छा विज्ञापन हो जाता है। ये चुपचाप पसंदीदा खेल और खिलाड़ियों और बाज़ार में आये उत्पादनों का विज्ञापन करते हैं। इन पर हँसी, उदासी, क्रोध, नैतिकता—या अनैतिकता—की बातें छपी होती हैं। ये ऐसे भी होते हैं कि होश उड़ा दें। हाल की न्यूज़वीक की सुर्खियों पर विचार कीजिए: “क्रूरता किशोरों के फैशन का दिखावा है।” लेख में २१ वर्षीय लड़का अपनी टी-शर्ट के बारे में यह कहता है: “मैं इसे इसलिए पहनता हूँ क्योंकि यह लोगों को बता देती है कि मैं किस मूड में हूँ। मैं किसी के कहे पर कुछ नहीं करता और मैं नहीं चाहता कि कोई मुझे तंग करे।”
अलग-अलग लोगों की टी-शर्ट के आगे-पीछे अलग-अलग संदेश हो सकता है। लेकिन यह साफ है कि लोग देखादेखी करते हैं—एक समूह के साथ अपनी पहचान कराने के लिए देखादेखी करते हैं या तो आस-पास फैली विद्रोह की आत्मा, पहले-मैं मनोवृत्ति, गुंडागर्दी और हिंसा की देखादेखी करते हैं। एक डिज़ाइनर अपने ग्राहकों की फरमाइश के हिसाब से कपड़ों में छेद बनाता है। “वे पिस्तौल के छेद, राइफल के छेद या मशीन-गन के छेद बनवा सकते हैं,” वह कहता है। “यह तो बस फैशन का दिखावा है।”
फैशन क्या दिखाता है?
“आम तौर पर कपड़े समाज में एक वर्ग के साथ अपनी पहचान कराने का तरीका हैं,” जेन ड टॆलीगा कहती है। वह सिडनी, ऑस्ट्रेलिया में पावरहाउस म्यूज़ियम में फैशन इंचार्ज है। वह आगे कहती है: “आप चुनाव करते हैं कि आप किस वर्ग के साथ पहचाने जाना चाहते हैं और फिर वैसे ही कपड़े पहनते हैं।” सिडनी यूनिवर्सिटी में मनोविज्ञान शिक्षिका, डॉ. डायना कॆनी ने कहा कि लोगों की पहचान करने के लिए पहनावा उतना ही महत्त्वपूर्ण है जितना महत्त्वपूर्ण धर्म, धन, रोज़गार, जाति, शिक्षा और घर का पता है। जॆट पत्रिका के अनुसार, अमरीका के एक ऐसे स्कूल में जहाँ तकरीबन सभी बच्चे श्वेत थे, “उन श्वेत लड़कियों के कारण” जातीय तनाव “बढ़ गया जिन्होंने चोटियाँ बनायी थीं, ढीले कपड़े पहने थे और दूसरे ‘हिप-हॉप’ फैशन किये हुए थे क्योंकि ये अश्वेत लोगों के फैशन समझे जाते हैं।”
एक वर्ग के अंदर भी अलग-अलग क्षेत्रों में अपने गुट के साथ लगाव दिखायी पड़ता है, जैसे संगीत के क्षेत्र में: “आम तौर पर,” मक्लीन्ज़ पत्रिका कहती है, “पहनावा व्यक्ति के मनपसंद संगीत से मेल खाता है: रॆगे संगीत प्रेमी चटकीले रंग और जमाइका की टोपी पहनते हैं, जबकि ग्रंज रॉक पसंद करनेवाले ऊनी टोपी और चॆकवाली कमीज़ पहनते हैं।” लेकिन मनपसंद पहनावा चाहे जो हो, लापरवाह, फटेहाल, गरीबी का मारा हुआ दिखने और ग्रंज कहलाने के लिए बहुत पैसे लग सकते हैं।
पहनावे के कायदों को क्या हो रहा है?
“हर चीज़ आम सोच के उलट है,” स्तंभलेखक वुडी हॉक्सवॆनडर कहता है। “पहले पुरुषों के फैशन के लिए सख्त कायदे हुआ करते थे लेकिन अब वह बात नहीं . . . आजकल तो सब कुछ ऐसा लगना चाहिए मानो यूँही उठाकर पहन लिया हो।” लेकिन किसी-किसी स्थिति में इस रुख से लापरवाह होने की मनोवृत्ति दिखायी पड़ सकती है। इससे आत्म-सम्मान की कमी या दूसरों के लिए आदर की कमी भी दिख सकती है।
शिक्षकों के बारे में छात्रों की राय क्या है, इस विषय में परसॆप्चुअल एण्ड मोटर स्किल्स पत्रिका का एक लेख बताता है कि “जीन्स पहननेवाले शिक्षक को क्लास में हँसी-मज़ाक करनेवाला समझा जाता है लेकिन उसके विचारों को सबसे कम आदर दिया जाता है और आम तौर पर उसे ऐसा शिक्षक माना जाता है जिसे कुछ नहीं आता-जाता।” यही पत्रिका टिप्पणी करती है कि “जीन्स पहननेवाली शिक्षिका को मौज-मस्ती करनेवाली और दोस्ताना समझा जाता है। वह खास अक्लमंद नहीं होती। उसे ज़्यादा आदर नहीं दिया जाता। वह शिक्षिका जैसी नहीं दिखती लेकिन आम तौर पर उसे पसंद किया जाता है।”
साथ ही, व्यवसाय जगत में फैशन का एक और दिखावा है: रोबीला पहनावा। हाल के सालों में ज़्यादा स्त्रियों ने कार्यस्थल में सफलता की सीढ़ी चढ़नी चाही है। “मैं ऐसे कपड़े पहनती हूँ कि मेरा रोब जमे,” एक प्रकाशन गृह की अफसर, मॆरी कहती है। “मैं सबसे फर्क दिखना चाहती हूँ। मैं अपने आपको ऐसे पेश करना चाहती हूँ मानो मैं अनोखी हूँ,” वह आगे कहती है। मॆरी ईमानदारी से बताती है कि उसका पूरा ध्यान अपने ही ऊपर है।
खूब चलनेवाले फैशन गिरजों में भी दिखते हैं। कुछ फैशन-परस्त लोग तो अपने नये-नये कपड़े दिखाने के लिए गिरजे जाते हैं। आज पादरी तो अपने लंबे-लंबे चोगों में सजे-धजे होते हैं, लेकिन जब वे मंच से देखते हैं तो अकसर कलीसिया जीन्स और खेल के जूते या ऊट-पटांग कपड़े पहने हुए दिखायी पड़ती है।
अपने अहं और अपनी पहचान के बारे में ऐसी सनक क्यों?
मनोविज्ञानी कहते हैं कि ऊट-पटांग पहनावा—खासकर युवाओं के बीच—अहंभाव का एक पहलू है क्योंकि यह दूसरों का ध्यान खींचने की इच्छा दिखाता है। मनोविज्ञानी कहते हैं कि यह “युवाओं की पुरानी प्रवृत्ति है कि वे अपनी ओर दूसरों का ध्यान खींचना चाहते हैं।” असल में, वे यह कह रहे होते हैं: “मेरे खयाल से आप मुझ पर उतने ही फिदा हैं जितना कि मैं अपने आप पर फिदा हूँ।”—अमॆरिकन जरनल ऑफ ऑर्थोसकायट्री।
कुछ धारणाएँ हैं जो मनुष्य के महत्त्व पर ज़ोर देती हैं और परमेश्वर को महत्त्वहीन दिखाती हैं। ऐसी ही धारणाओं ने इस विचार को भी (जो प्रायः व्यापार-जगत द्वारा फैलाया जाता है) बढ़ावा दिया है कि आप ही विश्वमंडल में सबसे महत्त्वपूर्ण व्यक्ति हैं। समस्या यह है कि अब ऐसे करीब छः अरब ‘सबसे महत्त्वपूर्ण’ व्यक्ति हो गये हैं। मसीहीजगत के धर्मों में भी लाखों लोग इस भौतिकवादी विचार के बहकावे में आ गये हैं, “आज जीवन का मज़ा लूटने” की कोशिश में लग गये हैं। (२ तीमुथियुस ३:१-५ से तुलना कीजिए।) साथ ही परिवार टूट रहे हैं और सच्चा प्रेम घट रहा है। यह सब देखकर कोई आश्चर्य नहीं होता कि अनेक लोग और खासकर युवा अपनी पहचान बनाने और सुरक्षा महसूस करने के लिए कुछ भी करने को तैयार हैं।
लेकिन, जो अपने पहनावे और परमेश्वर के साथ अपने संबंध के बारे में चिंता करते हैं वे खुद-ब-खुद यह पूछते हैं: किस हद तक मुझे बदलते फैशन के साथ-साथ चलना चाहिए? मैं कैसे जानूँ कि मेरा पहनावा ठीक है या नहीं? क्या मेरे पहनावे से मेरे बारे में गलतफहमी पैदा होती है और कहीं यह कोई गलत संदेश तो नहीं देता?
क्या मैंने ठीक तरह के कपड़े पहने हैं?
हम क्या पहनते हैं यह असल में अपनी-अपनी पसंद की बात है। हमारी पसंद अलग-अलग होती है और हमारी आर्थिक स्थिति भी अलग होती है। और अलग-अलग जगह, देश और मौसम के हिसाब से रिवाज़ भी अलग-अलग होते हैं। लेकिन आपकी स्थिति जो भी हो, इस सिद्धांत को ध्यान में रखिए: “हर एक बात का एक अवसर और प्रत्येक काम का, जो आकाश के नीचे होता है, एक समय है।” (सभोपदेशक ३:१) दूसरे शब्दों में, अवसर के हिसाब से कपड़े पहनिए। और दूसरी बात, ‘अपने परमेश्वर के साथ नम्रता [शालीनता] से चलिए।’—मीका ६:८.
इसका यह अर्थ नहीं कि पहनावे के बारे में बहुत सख्ती बरतें। इसके बजाय पहनावा ‘सुहावना’ होना चाहिए जो ‘संयम’ दिखाता हो। (१ तीमुथियुस २:९, १०) आम तौर पर बस आत्म-नियंत्रण रखने की ज़रूरत होती है। आत्म-नियंत्रण ऐसा गुण है जिसे वर्किंग वुमन पत्रिका सुरुचि और सुशिष्टता से जोड़ती है। इसे अच्छा व्यावहारिक नियम मानकर चलिए कि आपसे पहले कभी आपके कपड़ों पर लोगों का ध्यान न जाए और उनकी आँखें न चौंधिया जाएँ। वर्किंग वुमन कहती है: “ऐसे सँवरिये . . . कि लोग आपके कपड़ों से नज़रें हटाकर आपके गुणों को देख सकें।”
परसॆप्चुअल एण्ड मोटर स्किल्स पत्रिका कहती है: “पहनावा देखकर दूसरे क्या राय बनाते हैं और उन्हें क्या संदेश मिलता है, इसकी जाँच करनेवाली अनेक पुस्तकें दिखाती हैं कि दूसरों के बारे में शुरूआती राय बनाने में उनका पहनावा बहुत महत्त्व रखता है।” इसी संबंध में एक स्त्री जिसकी उम्र ४० साल से ज़्यादा है और जो पहले अपने पहनावे से दूसरों को आकर्षित करने की अपनी क्षमता पर घमंड करती थी, यह कहती है: “इसने मेरे लिए बड़ी मुसीबतें खड़ी कर दीं क्योंकि मेरे दफ्तर और मेरे निजी जीवन के बीच भेद करना मुश्किल हो गया। दफ्तर में हमेशा ऐसे लोग मिल जाते थे जो मुझे भोजन के लिए बाहर ले जाना चाहते थे।” एकदम फर्क स्टाइल के बारे में एक महिला अकाउंटॆंट कहती है: “मैंने देखा है कि पुरुष उन स्त्रियों के साथ कैसा व्यवहार करते हैं जो बिलकुल चलताऊ कपड़े पहनती हैं या एकदम पुरुषों की तरह दिखना चाहती हैं। उन्हें लड़ाका समझा जाता है और पुरुष उनके साथ उतनी नरमी से पेश नहीं आते।”
जॆफी नाम की एक युवती ने पाया कि जब उसने अजीब-से स्टाइल में अपने बाल कटवा लिये तो लोग उसे गलत समझने लगे। “मैं तो बस ‘फर्क’ दिखना चाहती थी,” वह बताती है। “लेकिन लोग मुझसे पूछने लगे, ‘क्या तुम सचमुच यहोवा की साक्षी हो?’ और यह सुनकर मुझे बहुत बुरा लगा।” जॆफी को अपने अंदर झाँककर अपने आपसे कुछ सवाल पूछने पड़े। असल में, क्या यह सच नहीं कि “जो मन में भरा है” वह न सिर्फ ज़बान पर आता है बल्कि हमारे पहनावे और श्रृंगार में भी दिखता है? (मत्ती १२:३४) आपका पहनावा क्या दिखाता है—ऐसा मन जो सृष्टिकर्ता की ओर ध्यान खींचना चाहता है या फिर अपनी ओर?
अपने पहनावे में “संयम” दिखाइए
इस पर भी विचार कीजिए कि आपके कपड़ों का आप पर क्या प्रभाव होता है। रोबीला और भड़कीला पहनावा आपके अहं को बढ़ा सकता है। ऊट-पटांग पहनावा आपके नकारात्मक विचारों को और पक्का कर सकता है। अपने मनपसंद फिल्म स्टार या खिलाड़ी या किसी दूसरे हीरो का विज्ञापन करती टी-शर्ट आपको हीरो उपासना—मूर्तिपूजा—की ओर ले जा सकती है। जी हाँ, आपके कपड़े दूसरों से बात करते हैं—और उन्हें आपके बारे में बताते हैं।
यदि आप दिल जीतने या दिल घायल करने के लिए सँवरते हैं तो आपके कपड़े आपके बारे में क्या कह रहे हैं? क्या आप व्यक्तित्व के उन लक्षणों को और पक्का नहीं कर रहे जिन्हें दूर करने के लिए आपको असल में संघर्ष करना चाहिए? इसके अलावा, आप किस किस्म के व्यक्ति को आकर्षित करने की कोशिश कर रहे हैं? रोमियों १२:३ (NHT) में लिखी सलाह अहंभाव, दिखावा और नकारात्मक सोच-विचार दूर करने में हमारी मदद कर सकती है। वहाँ प्रेरित पौलुस हमें सलाह देता है कि “कोई भी अपने आप को जितना समझना चाहिए उस से बढ़कर न समझे; परन्तु . . . सुबुद्धि से अपने आप को समझे।” “सुबुद्धि” का अर्थ है समझदार होना।
यह खासकर उनके लिए महत्त्वपूर्ण है जो ज़िम्मेदारी और भरोसे के पद पर हैं। उनके उदाहरण का दूसरों पर ज़बरदस्त प्रभाव होता है। स्वाभाविक है कि जो लोग मसीही कलीसिया में सेवा के विशेषाधिकार पाने के लिए आगे बढ़ रहे हैं वे और उनकी मसीही पत्नियाँ भी अपने पहनावे और श्रृंगार में शालीन और आदरपूर्ण मनोवृत्ति दिखाएँ। हम कभी उस मनुष्य की तरह नहीं बनना चाहेंगे जिसे यीशु ने विवाह-भोज का दृष्टांत देते समय अलग ही दिखाया: “जब राजा जेवनहारों के देखने को भीतर आया; तो उस ने वहां एक मनुष्य को देखा, जो ब्याह का वस्त्र नहीं पहिने था।” यह जानने के बाद कि इस मनुष्य के पास ऐसे भद्दे वस्त्र पहनने का कोई उचित कारण नहीं था, “राजा ने सेवकों से कहा, इस के हाथ पांव बान्धकर उसे बाहर अन्धियारे में डाल दो।”—मत्ती २२:११-१३.
इसलिए यह महत्त्वपूर्ण है कि माता-पिता अपनी कथनी और करनी से पहनावे के बारे में अपने बच्चों के अंदर अच्छी मनोवृत्ति विकसित करें और उन्हें सुरुचिपूर्ण पहनावा पसंद करना सिखाएँ। इसके लिए माता-पिता को अपने बेटे या बेटी के साथ तर्क करके कभी-कभी सख्ती बरतने की ज़रूरत पड़ सकती है। लेकिन कितना प्रोत्साहन मिलता है जब अचानक ही हमारे बच्चों के और हमारे उच्च कोटि के पहनावे और आचरण की सराहना की जाती है!
जी हाँ, यहोवा के सेवकों को दिखावे, महँगे फैशन और अहं से मुक्ति मिल गयी है। उनका मार्गदर्शन करने के लिए उनके पास ईश्वरीय सिद्धांत हैं, संसार की आत्मा नहीं। (१ कुरिन्थियों २:१२) यदि आप इन सिद्धांतों के अनुसार चलते हैं तो आपको अपने कपड़े चुनना बहुत कठिन काम नहीं लगना चाहिए। और जैसे बढ़िया फ्रेम से तसवीर में निखार आता है, वैसे ही आपके कपड़े आपके व्यक्तित्व को निखारेंगे। उनसे न तो आपका व्यक्तित्व दबेगा और न ही बिगड़ेगा। और आप परमेश्वर के सदृश्य बनने की जितनी ज़्यादा कोशिश करेंगे उतनी ही ज़्यादा आपकी आध्यात्मिक सुंदरता बढ़ेगी जो आपके कपड़ों से नहीं आँकी जाती।