वॉचटावर ऑनलाइन लाइब्रेरी
वॉचटावर
ऑनलाइन लाइब्रेरी
हिंदी
  • बाइबल
  • प्रकाशन
  • सभाएँ
  • g99 4/8 पेज 4-5
  • “बेशक आसमान खुला है”!

इस भाग के लिए कोई वीडियो नहीं है।

माफ कीजिए, वीडियो डाउनलोड नहीं हो पा रहा है।

  • “बेशक आसमान खुला है”!
  • सजग होइए!–1999
  • उपशीर्षक
  • मिलते-जुलते लेख
  • अग्नि-गुब्बारे और “ज्वलनशील हवा”
  • हवा के साथ-साथ
    सजग होइए!–2002
  • हवाई जहाज़ कैसे आया?
    सजग होइए!–1999
  • पाठकों से प्रश्‍न
    प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1992
  • पृष्ठ दो
    सजग होइए!–2002
और देखिए
सजग होइए!–1999
g99 4/8 पेज 4-5

“बेशक आसमान खुला है”!

“उड़ने की चाहत सदियों पुरानी है,” इतिहासकार बॆरटॉल्ट लाउफर ने वैमानिकी का प्राचीन इतिहास (अंग्रेज़ी) में कहा। प्राचीन यूनानी, मिस्री, अश्‍शूरी और पूर्वी पौराणिक इतिहास में ऐसे राजाओं, देवताओं और शूरवीरों की अनेक कथाएँ हैं जिन्होंने उड़ना चाहा। लगभग हर किस्से में बताया गया है कि मनुष्यों ने पक्षियों की तरह पंख लगाकर उड़ने की कोशिश की।

उदाहरण के लिए, चीनी लोग बुद्धिमान और साहसी सम्राट शून की कहानी बताते हैं। कहा जाता है कि वह यीशु मसीह के जन्म से २,००० से ज़्यादा साल पहले जीया। कथा के अनुसार शून एक जलते हुए अन्‍न-भंडार के ऊपर फँस गया था, सो उसने अपने ऊपर पंख लगाये और उड़कर अपनी जान बचायी। एक और कहानी है कि वह एक मीनार पर से नीचे कूदा और ज़मीन पर सही-सलामत उतरने के लिए उसने सरकंडे की दो बड़ी टोपियाँ पैराशूट की तरह इस्तेमाल कीं।

यूनानी लोगों में डॆडलस की ३,००० साल पुरानी कहानी है जो एक महान कलाकार और आविष्कारक था। उसे और उसके पुत्र इकरस को क्रीट में कैद करके रखा गया था। सो उसने परों, रस्सी और मोम से पंख बनाये ताकि वे दोनों वहाँ से उड़कर भाग सकें। “बेशक आसमान खुला है और हम उसी रास्ते जाएँगे,” डॆडलस ने कहा। शुरू में, पंखों ने एकदम सही काम दिया। लेकिन इकरस आसमान में उड़ने की अपनी क्षमता से इतना खुश हो गया कि वह और ऊँचा उड़ता गया जब तक कि सूरज की गरमी से वह मोम न पिघल गयी जिसने उसके पंखों को बाँध रखा था। और फिर वह लड़का नीचे समुद्र में गिरकर मर गया।

ऐसी कहानियों ने आविष्कारकों और दार्शनिकों की कल्पनाओं को पंख लगा दिये जो सचमुच उड़ने के लिए तरस रहे थे। सा.यु. तीसरी सदी में ही चीनी लोग पतंगें बनाकर प्रयोग कर रहे थे और विमान-विज्ञान के अमुक सिद्धांतों को समझने लगे थे। यूरोप में तो इस किस्म के प्रयोग बहुत समय बाद शुरू हुए। १५वीं सदी में, वॆनिस के डॉक्टर जोवानी दा फोनटाना ने लकड़ी और कागज़ से बने साधारण रॉकॆटों के साथ प्रयोग किया और उन्हें बारूद से उड़ाया। सन्‌ १४२० के करीब, फोनटाना ने लिखा: “सचमुच मुझे इसमें कोई संदेह नहीं कि मनुष्य में ऐसे पंख लगाना संभव है जिन्हें नकली ढंग से फड़फड़ाया जा सके। उन पंखों की मदद से वह हवा में उड़ सकेगा और जगह-जगह जा सकेगा, मीनारों पर चढ़ सकेगा और समुद्र पार कर सकेगा।”

१६वीं सदी की शुरूआत में चित्रकार, मूर्तिकार और कुशल मॆकैनिकल इंजीनियर लीअनार्डो दा विन्ची ने हॆलिकॉप्टरों और पैराशूटों और ऐसे ग्लाइडरों के कच्चे खाके बनाए जिनके पंखों के सिरे हिलते हों। प्रमाण दिखाता है कि उसने अपने हवाई जहाज़ों के कुछ खाकों के मॉडल भी तैयार किये। लेकिन दा विन्ची का कोई भी डिज़ाइन असल में व्यावहारिक नहीं था।

उसके बाद की दो सदियों में साहसी मनुष्यों के प्रयासों की कई कहानियाँ हैं जिन्होंने अपने शरीर पर नकली पंख बाँधे और पहाड़ियों और मीनारों पर से कूदते हुए इन पंखों को फड़फड़ाकर उड़ने की कोशिश की। ये शुरूआती ‘परीक्षण पायलॆट’ निडर और जोखिम उठानेवाले लोग थे—लेकिन उनके प्रयास पूरी तरह असफल रहे।

अग्नि-गुब्बारे और “ज्वलनशील हवा”

सन्‌ १७८३ में विमान-विज्ञान में आश्‍चर्यजनक सफलता मिली जिसकी खबर पैरिस और फ्रांस के राज्यों में फैल गयी। ज़्होज़ॆफ-मीशॆल और ज़्हाक-एटयॆन मॉन्टगॉल्फियर नाम के दो भाइयों ने पाया कि वे कागज़ के छोटे-छोटे गुब्बारों में गरम हवा भरकर उन्हें आसमान में तेज़ी से और आसानी से उड़ा सकते हैं। उनका पहला बड़ा अग्नि-गुब्बारा कागज़ और कपड़े से बना था और उसमें आग का बदबूदार धुआँ भरा था। यह गुब्बारा अपनी पहली उड़ान में १,८०० मीटर से ज़्यादा ऊँचाई तक गया लेकिन इसमें कोई सवारी नहीं थी। नवंबर २१, १७८३ में, इस गुब्बारे में दो सवारियाँ बैठीं—जिन्हें जनता ने विमान-चालक कहा—और उन्होंने पैरिस के ऊपर २५ मिनट की सैर की। उसी साल के दौरान एक और आविष्कारक, ज़्हाक शार्ल ने पहला गैस-भरा गुब्बारा पेश किया। उसने गुब्बारे में हाइड्रोजन भरी जिसे उस समय “ज्वलनशील हवा” कहा जाता था।

जैसे-जैसे गुब्बारा टॆक्नॉलजी में सुधार हुआ, आसमान उत्साही विमान-चालकों के लिए बहुत तेज़ी से ‘खुलने’ लगा। १७८४ तक, गुब्बारे ३,४०० मीटर से ज़्यादा ऊँचाई तक पहुँच रहे थे। एक साल बाद ही ज़्हान-प्यॆर-फ्रान्सवा ब्लानशार ने एक हाइड्रोजन गुब्बारे में सफलतापूर्वक इंग्लिश चैनल पार किया और दुनिया की सबसे पहली हवाई डाक पहुँचायी। १८६२ तक, विमान-चालकों ने यूरोप और अमरीका की सैर कर ली थी और आठ किलोमीटर से ज़्यादा ऊँचाई तक पहुँचने में कामयाब हो गये थे!

लेकिन शुरू के ये विमान-चालक पूरी तरह हवा के सहारे थे; गुब्बारे की उड़ान में दिशा या गति को नियंत्रित करने का कोई उपाय नहीं था। १९वीं सदी के दूसरे भाग में गैसोलीन और बिजली से चलनेवाले विमान बनाये गये। इससे हवा में विमान-संचालन काफी हद तक संभव हो गया, लेकिन लंबे-पतले और हवा-से-हलके विमान बहुत धीरे उड़ते थे—आम तौर पर वे दस किलोमीटर से तीस किलोमीटर प्रति घंटे की गति से उड़ते थे। यदि मनुष्य को ‘हवा में उड़ना और जगह-जगह जाना’ था तो किसी नये तरीके की ज़रूरत थी, जैसे दा फोनटाना ने पहले ही बताया था।

[पेज 4 पर तसवीर]

पौराणिक डॆडलस और इकरस

[पेज 4 पर तसवीर]

लीअनार्डो दा विन्ची

[चित्र का श्रेय]

From the book Leonardo da Vinci, 1898

[पेज 4 पर तसवीर]

मॉन्टगॉल्फियर भाइयों ने सवारियाँ ले जानेवाला पहला गर्म-हवा गुब्बारा बनाया

    हिंदी साहित्य (1972-2025)
    लॉग-आउट
    लॉग-इन
    • हिंदी
    • दूसरों को भेजें
    • पसंदीदा सेटिंग्स
    • Copyright © 2025 Watch Tower Bible and Tract Society of Pennsylvania
    • इस्तेमाल की शर्तें
    • गोपनीयता नीति
    • गोपनीयता सेटिंग्स
    • JW.ORG
    • लॉग-इन
    दूसरों को भेजें