हवाई जहाज़ कैसे आया?
आखिरकार हवा-से-भारी हवाई जहाज़ बनाने में डिज़ाइनरों को सफलता कैसे मिली? उन्होंने उड़ान के असली उस्तादों—पक्षियों—की ओर फिर से ध्यान दिया। १८८९ में ऑटो लिलयनतॉल नाम के जर्मन इंजीनियर ने स्टॉर्क पक्षी के उड़ने के तरीके से प्रेरित होकर पुस्तक “पक्षियों की उड़ान उड्डयन का आधार” (जर्मन) प्रकाशित की। दो साल बाद उसने अपना पहला साधारण-सा ग्लाइडर बनाया। करीब २,००० बार ग्लाइडर उड़ान भरने के बाद, १८९६ में लिलयनतॉल एक-पंखी विमान में अभ्यास करते समय अपनी जान गँवा बैठा। फ्रांस में जन्मे अमरीकी इंजीनियर, ऑक्टाव शनूट ने लिलयनतॉल के डिज़ाइन में सुधार किये और दो-पंखी ग्लाइडर बनाया। यह भी हवा-से-भारी हवाई जहाज़ के डिज़ाइन में भारी प्रगति का प्रतीक था।
अब राइट भाई आये। ऑरविल और विलबर राइट की डेटन (ओहायो, अमरीका) में साइकिल की दुकान थी। उन्होंने लिलयनतॉल और शनूट की उपलब्धियों को आधार बनाया और १९०० में ग्लाइडिंग प्रयोग शुरू कर दिये। राइट भाइयों ने धीरे-धीरे और कायदे से अगले तीन सालों तक काम किया और किटी हॉक, उत्तरी कैरोलाइना में बार-बार उड़ान प्रयोग किये। उन्होंने पवन सुरंगों की मदद से नये डिज़ाइन विकसित किये। और पहली पवन सुरंग धोबी के माँड़ के डब्बे से बनायी। अपनी पहली बलयुक्त उड़ान के लिए, उन्होंने चार-सिलिंडरोंवाला, १२-अश्वशक्ति का इंजन बनाया और उसे एक नये विमान के निचले पंख पर लगा दिया। विमान के पिछले रडर की दोनों ओर एक-एक प्रोपॆलर लगा हुआ था। इंजन ने लकड़ी के इन दो प्रोपॆलरों को बल प्रदान किया।
दिसंबर १४, १९०३ में राइट भाइयों का नया आविष्कारी विमान लकड़ी की उड़ान पट्टी से पहली बार उड़ा—और साढ़े तीन सॆकॆंड तक हवा में रहा! तीन दिन बाद इन भाइयों ने फिर से उस विमान को उड़ाया। आखिरकार वह पूरे एक मिनट तक हवा में रहा और २६० मीटर की दूरी तय की। हवाई जहाज़ उड़ाने में सफलता मिल गयी थी।a
आश्चर्य की बात है कि इस उल्लेखनीय उपलब्धि पर बाकी की दुनिया ने शायद ही कोई ध्यान दिया। जनवरी १९०६ में जाकर कहीं द न्यू यॉर्क टाइम्स ने राइट भाइयों की कहानी छापी और कहा कि उनका “हवाई जहाज़” पूरी गोपनीयता में बनाया गया था और इन भाइयों को १९०३ में “हवा में उड़ने में थोड़ी-सी सफलता” मिली थी। असल में, ऑरविल ने इस ऐतिहासिक उड़ान के दिन ही अपने पिता को तार भेजा और कहा कि प्रॆस को सूचना दे दें। लेकिन, उस समय अमरीका में केवल तीन अखबारों ने इस कहानी को छापने का कष्ट उठाया।
हवाई जहाज़ों का कोई व्यावसायिक भविष्य नहीं?
उड्डयन के शुरूआती सालों में आम दुनिया को इसके बारे में शंका थी। यहाँ तक कि उड्डयन के क्षेत्र में जाने-माने प्रयोगकर्ता, शनूट ने १९१० में कहा: “कुशल विशेषज्ञों की राय है कि हवाई जहाज़ के व्यावसायिक भविष्य के बारे में सोचना बेकार है। यह अभी-भी बहुत भार नहीं उठा सकता और आगे भी कभी नहीं उठा सकेगा, इसलिए यह सवारियों या माल को ढोने के लिए इस्तेमाल नहीं हो पाएगा।”
इसके बावजूद, राइट भाइयों की शुरूआती उड़ानों के बाद के सालों में विमान-विज्ञान में तेज़ी से प्रगति हुई। पाँच साल के अंदर इन भाइयों ने दो सवारियोंवाला दो-पंखी विमान बना लिया था जो ७१ किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से ४३ मीटर की ऊँचाई तक उड़ सकता था। १९११ में पहले अमरीकी हवाई जहाज़ ने महाद्वीप पार किया; न्यू यॉर्क से कैलिफॉर्निया के सफर में ४९ दिन लगे! पहले विश्वयुद्ध के दौरान, विमानों की रफ्तार १०० किलोमीटर प्रति घंटा से बढ़कर २३० किलोमीटर प्रति घंटा हो गयी। जल्द ही वे ९,००० मीटर की ऊँचाई तक उड़ने लगे।
दशक १९२० में वैमानिकी के नये-नये कीर्तिमान सुर्खियों में आते रहे। दो अमरीकी सेना अधिकारियों ने १९२३ में पहली बार बिना रुके अमरीका के एक छोर से दूसरे छोर तक उड़ान भरी। उन्होंने पूरे देश का यह सफर २७ घंटे से भी कम समय में पूरा किया। चार साल बाद चार्ल्स ए. लिंडबर्ग ने बिना रुके ३३ घंटे और २० मिनट में न्यू यॉर्क से पैरिस तक का सफर पूरा करके रातोंरात नाम कमा लिया।
इस बीच, उभरती व्यावसायिक एअरलाइनों ने सवारियों को आकर्षित करना शुरू कर दिया था। १९३९ के अंत तक, हवाई सफर इतना लोकप्रिय हो गया था कि अमरीकी एअरलाइनें साल में करीब ३० लाख सवारियाँ ढो रही थीं। दशक १९३० के आखिर में विमान DC-3 बहुत चल रहा था जो सिर्फ २१ सवारियों को २७० किलोमीटर प्रति घंटे की तेज़ रफ्तार से ले जाता था; लेकिन दूसरे विश्वयुद्ध के बाद, काफी ज़्यादा बड़े और ज़्यादा शक्तिवाले व्यावसायिक विमान आने लगे, जिनकी रफ्तार ४८० किलोमीटर प्रति घंटे से ज़्यादा थी। ब्रिटॆन ने १९५२ में व्यावसायिक टर्बोजॆट विमान सेवा शुरू की। और १९७० में ४००-सीटोंवाले बोइंग 747 जैसे जम्बो-जॆट आये।
सन् १९७६ में एक और सफलता हाथ लगी जब ब्रिटिश और फ्रांसीसी इंजीनियरों की एक टीम ने त्रिकोण-पंखी विमान, कॉनकॉर्ड बनाया। वह १०० सवारियों को ध्वनि की दोगुनी गति से ले जा सकता है—उसकी गति २,३०० किलोमीटर प्रति घंटे से ज़्यादा है। लेकिन इन व्यावसायिक पराध्वनिक (सुपरसॉनिक) विमानों को चलाने का बहुत खर्च आता है इसलिए इनका व्यापक इस्तेमाल नहीं हो पाता।
दुनिया का नक्शा बदलना
यदि आपने हवाई सफर नहीं किया है तो भी टॆक्नॉलजी में तेज़ी से हुई इस प्रगति ने आपके जीवन को भी बदला होगा। दुनिया भर में विमान से सामान इधर-उधर भेजा जा रहा है; अकसर जो भोजन हम खाते हैं, जो कपड़े हम पहनते हैं और जो मशीनरी हम दफ्तर या घर में इस्तेमाल करते हैं वे महासागर पार या महाद्वीप पार से विमान द्वारा लायी गयी होती हैं। हवाई डाक के द्वारा पत्र और पार्सल एक देश से दूसरे देश फटाफट पहुँच जाते हैं। रोज़ का काम निपटाने के लिए व्यावसायिक कंपनियाँ विमानों द्वारा प्रदान की गयी कुरियर सेवाओं का सहारा लेती हैं। जो सामान और सेवाएँ हमें उपलब्ध हैं और उनके लिए हम जो कीमत देते हैं उस सब में हवाई जहाज़ों का हाथ है।
उड्डयन के कारण बड़े सामाजिक बदलाव भी आये हैं। इसमें कोई शक नहीं कि उड्डयन के कारण दुनिया बहुत छोटी हो गयी है। चंद घंटों के अंदर, आप दुनिया में मानो कहीं भी पहुँच सकते हैं—हाँ, आपके पास पैसा होना चाहिए। अब खबर को पहुँचने में देर नहीं लगती और न ही लोगों को।
प्रगति की कीमत
लेकिन ऐसी प्रगति की कीमत चुकानी पड़ी है। हवा में ढेरों विमान उड़ने के कारण कुछ लोगों को डर है कि आसमान ज़्यादा खतरनाक होता जा रहा है। हर साल निजी और व्यावसायिक विमानों की दुर्घटनाओं में बहुत लोगों की जान जाती है। “बहुत स्पर्धा होने के कारण, अनेक एअरलाइनें अब सुरक्षा के वे अतिरिक्त उपाय नहीं करतीं जो पहले नियमित रूप से किये जाते थे। पहले उन पर आया अतिरिक्त खर्च सवारियों से वसूल कर लिया जाता था,” फॉरच्यून पत्रिका कहती है। द फॆडरल एविएशन एडमिनिस्ट्रेशन को अमरीका में वायु सुरक्षा का काम सौंपा गया है, लेकिन “उसके पास पर्याप्त पैसा और कर्मचारी नहीं हैं और उसका संचालन अच्छी तरह नहीं किया जाता,” पत्रिका ने रिपोर्ट किया।
साथ ही, बहुत ज़्यादा विमानों के कारण वायु और ध्वनि प्रदूषण बढ़ रहा है और इससे बढ़ती संख्या में पर्यावरणवादियों को चिंता हो रही है। ध्वनि समस्याओं के बारे में चिंताओं से कैसे निपटें, इस “मुद्दे पर विश्व नागरिक उड्डयन में विभाजन है,” एवीएशन वीक एण्ड स्पेस टॆक्नॉलजी पत्रिका ने कहा।
ये समस्याएँ और भी बढ़ गयी हैं क्योंकि विमान पुराने पड़ रहे हैं: १९९० में, अमरीका के प्रति ४ विमानों में से १ विमान २० साल से भी ज़्यादा पुराना था और उनमें से एक तिहाई विमानों को उससे ज़्यादा समय तक इस्तेमाल किया जा चुका था जो निर्माता ने निर्धारित किया था।
इसलिए, विमान-विज्ञान के इंजीनियरों के सामने बड़ी चुनौतियाँ हैं। उन्हें ज़्यादा सवारियों को ले जाने के लिए ज़्यादा सुरक्षित और सस्ते तरीके ढूँढ़ने हैं, ऊपर से कीमतें और पर्यावरण-संबंधी चिंताएँ बढ़ रही हैं।
खर्च घटाने के लिए कुछ उपाय निकाले जा रहे हैं। एशियावीक में जिम ऎरिकसन कहता है कि अएरॉस्पास्याल और ब्रिटिश एअरोस्पेस की फ्रांसीसी-ब्रिटिश टीम एक ऐसा विमान बनाने की योजना बना रही है जो ध्वनि की दोगुनी गति से ३०० तक सवारियों को ले जा सके। इससे प्रति व्यक्ति खर्च और ईंधन खपत कम होगी। और अनेक हवाई अड्डों पर बहुत भीड़-भाड़ देखकर इस उद्योग से जुड़े कुछ लोगों ने भविष्य के लिए विशाल हॆलिकॉप्टरों का सपना देखा है—जिनमें १०० सवारियाँ ले जायी जा सकें। उनका मानना है कि एक दिन आएगा जब ये हॆलिकॉप्टर छोटी दूरी का सफर करनेवाली अधिकतर सवारियों को ले जा सकेंगे जिन्हें अभी बड़े विमानों से जाना पड़ता है।
क्या विशाल हॆलिकॉप्टर और पराध्वनिक विमान सचमुच आनेवाले सालों में उड्डयन उद्योग की बढ़ती ज़रूरतें पूरी कर पाएँगे? यह तो समय ही बताएगा। मनुष्य उड़ने के लिए ‘आसमान को खोलने’ की पूरी कोशिश में लगा हुआ है।
[फुटनोट]
a कुछ लोग दावा करते हैं कि कनॆटिकट, अमरीका में रहनेवाले एक जर्मन आप्रावासी, गुस्ताव वाइटहॆड (वाइट्स-कॉप्फ) ने भी १९०१ में हवाई जहाज़ बनाकर उड़ाया। लेकिन, इस दावे को साबित करने के लिए कोई तसवीरें नहीं हैं।
[पेज 6 पर तसवीर]
ऑटो लिलयनतॉल, करीब १८९१
[चित्र का श्रेय]
Library of Congress/Corbis
[पेज 7 पर तसवीर]
पैरिस तक अपनी अटलांटिक पार उड़ान के बाद लंदन पहुँचते हुए चार्ल्स ए. लिंडबर्ग, १९२७
[चित्र का श्रेय]
Corbis-Bettmann
[पेज 7 पर तसवीर]
सॉपविद कैमल, १९१७ में
[चित्र का श्रेय]
Museum of Flight/Corbis
[पेज 7 पर तसवीर]
DC-3, १९३५ में
[चित्र का श्रेय]
Photograph courtesy of Boeing Aircraft Company
[पेज 7 पर तसवीर]
सकॉरस्की S-43 फ्लाइंग बोट, १९३७ में
[पेज 8 पर तसवीर]
कोस्ट गार्ड बचाव हॆलिकॉप्टर
[पेज 8 पर तसवीर]
कलाबाज़ी करनेवाला पिट्स सैमसन की प्रतिकृति
[पेज 8 पर तसवीर]
कॉनकॉर्ड ने १९७६ में निर्धारित उड़ानें शुरू कीं
[पेज 9 पर तसवीर]
यात्री विमान A300
[पेज 9 पर तसवीर]
वायुमंडल में पुनरागमन के बाद, अंतरिक्ष यान उच्च-गति ग्लाइडर बन जाता है
[पेज 9 पर तसवीर]
“रूटन वारी-ईज़,” १९७८