हवा में उड़ने का सपना
“हमारे लड़कपन में एक कहावत थी कि ‘जो ऊपर जाता है वह नीचे आएगा ही।’ सारे के सारे हवाई जहाज़ों ने जल्द ही इस कहावत को सच्चा ठहरा दिया है।”
ये उस संपादकीय लेख के शुरूआती शब्द हैं जो मई २५, १९०८ में द न्यू यॉर्क टाइम्स में छपा था। अभी राइट भाइयों को उत्तरी कैरोलाइना, अमरीका के किटी हॉक में अपनी मशहूर उड़ान भरे पाँच साल भी नहीं हुए थे तोभी इस लेख में थोड़ा-बहुत संदेह जताया गया था। लेखक को अभी-भी शक था कि ये नये-नये ‘हवाई जहाज़’ जो ऊपर आसमान में दिखने शुरू हो गये थे सफल होंगे या नहीं। सो उसने सोचकर कहा कि “हममें से ज़्यादा लोग नहीं जो धरती से बहुत ऊँचाई पर हवा में उड़ने की ज़रा-भी इच्छा रखते हैं।” लेखक ने यह तो माना कि शायद आनेवाली पीढ़ियों को हवा में सफर करना गवारा हो जाए, लेकिन साथ ही यह भी कहा कि “लंबी दूरीवाले यात्री विमानों का सपना . . . शायद कभी साकार न हो।”
वह अनुमान कितना गलत साबित हुआ! आज, हर साल एक अरब से ज़्यादा यात्री “लंबी दूरीवाले यात्री विमानों” में सफर करते हैं। जी हाँ, एक सदी के अंदर हवाई जहाज़ों की कायापलट हो गयी। इस सदी की शुरूआत में जो लकड़ी और कपड़े के भौंडे जहाज़ हुआ करते थे वे आज कंप्यूटर-लैस सुंदर जम्बो-जॆट बन गये हैं। ये धरती से दस किलोमीटर की ऊँचाई पर उड़ते हैं और सैकड़ों यात्रियों को अनुकूल वातावरण में दूर-दूर उनकी मंज़िलों तक पहुँचाते हैं।
इस २०वीं सदी में विमान टॆक्नॉलजी में जो तेज़ प्रगति हुई है वह सचमुच उल्लेखनीय है और उसने हमारी दुनिया को एकदम बदल दिया है। असल में, आसमान को अपनी मुट्ठी में करने की लालसा मनुष्य को पिछले कुछ दशकों से ही नहीं, उससे बहुत अरसा पहले से थी—इसकी कुछ कहानियाँ तो सदियों पुरानी हैं। उड़ने की चाह ने प्राचीन समय से मनुष्य को दीवाना बना रखा है।
[पेज 2, 3 पर तसवीर]
लॉकहीड SR-71 ब्लैकबर्ड, दुनिया का सबसे तेज़ जॆट, २,२०० मी.प्र.घं. की गति में
[पेज 3 पर तसवीर]
बोइंग स्ट्रेटोलाइनर 307, लगभग १९४०, ३३ यात्री, उड़ान गति २१५ मी.प्र.घं.
[चित्र का श्रेय]
Boeing Company Archives
[पेज 3 पर तसवीर]
राइट भाइयों का “फ्लायर,” १९०३
[चित्र का श्रेय]
U.S. National Archives photo