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बुज़ुर्गों की आबादी बढ़ रही है

सन्‌ १५१३ में, स्पेनी खोजकर्ता, योआन पॉन्ट्‌स दे लीऑन अपनी खोज के दौरान उत्तर अमरीका के एक अनजाने तट पर पहुँचा। एक रिपोर्ट कहती है कि उसने जिस जगह की खोज की वह फूलों से भरी हुई थी। इसलिए उसने उसका नाम फ्लॉरिडा रख दिया। स्पैनिश भाषा में इसका अर्थ है, “फूलों से भरा।” यह नाम रखना तो आसान था, लेकिन उसकी खोज-यात्रा का जो मकसद था उसमें वह कामयाब नहीं हो पाया। वह एक ऐसे सोते की तलाश में निकला था, जिसके पानी में बूढ़ों को जवान बनाने की ताकत हो। ऐसे करिश्‍माई सोते को ढूँढ़ने के लिए उसने उस पूरे इलाके का चप्पा-चप्पा छान मारा मगर उसे ऐसा सोता कहीं नहीं मिला। कई महीनों तक कोशिश करने के बाद उसने हार मान ली और आगे यात्रा पर निकल पड़ा।

जवानी देनेवाला करिश्‍माई सोते को ढूँढ़ना आज भी उतना ही नामुमकिन है जितना कि पॉन्ट्‌स डे लीओन के दिनों में था, लेकिन मनुष्यों ने वह सोता खोज निकाला है जिसे लेखिका बॆटी फ्रीडैन “बुढ़ापे का सोता” कहती है। उसने यह नाम इसलिए दिया क्योंकि आज दुनिया भर में बुज़ुर्ग लोगों की संख्या तेज़ी से बढ़ती जा रही है। इतने ज़्यादा लोग बुढ़ापे की उम्र तक पहुँच रहे हैं। जहाँ भी देखो पक्के बालवालों की भरमार हो रही है।

“मनुष्य की एक बहुत बड़ी जीत”

जनसंख्या के आँकड़े इसका सबूत देते हैं। इस सदी की शुरूआत में, सबसे अमीर देशों में भी लोगों की औसत उम्र ५० साल से ज़्यादा नहीं थी। मगर आज इन देशों में लोगों की औसत उम्र ७५ साल से ज़्यादा है। उसी तरह चीन, हॉन्ड्युरास, इंडोनीशिया और वियतनाम जैसे विकासशील देशों में भी, आज लोगों की औसत उम्र चालीस साल पहले लोगों की औसत उम्र से २५ साल ज़्यादा है। दुनिया भर में १० लाख लोग हर महीने ६० साल की उम्र पार कर रहे हैं। हैरानी की बात है कि दुनिया में आज जिन लोगों की आबादी तेज़ी से बढ़ रही है वे जवान लोग नहीं बल्कि ८० साल या उससे भी ज़्यादा उम्र के बूढ़े हैं या ‘उनसे भी बूढ़े’ हैं।

एक जनसंख्या विशेषज्ञ आइलीन क्रिमंस साइंस पत्रिका में कहती है, लोगों की औसत उम्र में वृद्धि होना वाकई “मनुष्य की एक बहुत बड़ी जीत है।” संयुक्‍त राष्ट्र इससे सहमत है और इस उपलब्धि की ओर ध्यान आकर्षित करने के लिए उसने सन्‌ १९९९ को अंतर्राष्ट्रीय वृद्धजन वर्ष घोषित किया है।—पृष्ठ ३ पर बक्स देखिए।

ज़रूरी है—नज़रिये में बदलाव

जीत सिर्फ लोगों की उम्र बढ़ने की ही नहीं बल्कि बुढ़ापे के बारे में लोगों के नज़रिए में भी बदलाव आया है। यह सच है कि बूढ़े होने के ख्याल से लोग घबराने लगते हैं, उनमें सिहरन-सी दौड़ जाती है, क्योंकि बुढ़ापे में आमतौर पर शरीर कमज़ोर हो जाता है और दिमाग सुस्त पड़ जाता है। लेकिन, बुढ़ापे का अध्ययन करनेवाले शोधकर्ता इस बात पर ज़ोर देते हैं कि बूढ़ा होना कोई बीमारी नहीं है। लोगों में बुढ़ापे के साथ अलग-अलग बदलाव आते हैं। कहा जाए तो बुढ़ापा दो प्रकार का होता है, कालक्रमिक बुढ़ापा और जैविक बुढ़ापा। और शोधकर्ता कहते हैं कि दोनों में फर्क है। (“बुढ़ापा क्या है?” बक्स देखिए।) दूसरे शब्दों में कहें तो बूढ़ा होने का मतलब यह नहीं कि इंसान बीमारी, कमज़ोरी और मोहताजी की तरफ बढ़ रहा है।

दरअसल, जैसे-जैसे आपकी उम्र बढ़ती है वैसे-वैसे आप अच्छी तंदरुस्ती और बेहतर ज़िंदगी बनाए रखने के लिए ज़रूरी कदम उठा सकते हैं। माना कि ये उपाय आपको जवान नहीं बना देंगे, लेकिन ये इतना तो कर सकते हैं कि बढ़ती उम्र में भी आप स्वस्थ रह सकें। अगले लेख में कुछ उपाय बताये गये हैं। आज भले ही आपको बुढ़ापे के विषय में इतनी दिलचस्पी न हो, फिर भी अगला लेख पढ़ना अच्छा होगा, क्योंकि आज नहीं तो कल आप भी इस बारे में चिंता करने लगेंगे।

[पेज 3 पर बक्स/तसवीरें]

अंतर्राष्ट्रीय वृद्धजन वर्ष

“मैं खुद ६० साल का हो गया हूँ . . . और अब मेरी गिनती उन आँकड़ों में होती है जो मैंने अभी बताये हैं,” संयुक्‍त राष्ट्र महा-निदेशक कोफी एनन ने हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय वृद्धजन वर्ष की घोषणा करते समय कहा। श्री. एनन के अलावा और भी कई लोग हैं, जो बूढ़े हो रहे हैं। शोधकर्ता कहते हैं कि अगली सदी के आते-आते, अनेक देशों में ५ में से १ व्यक्‍ति ६० साल का या उससे भी ज़्यादा उम्र का होगा। उनमें से कुछ को तो देखरेख की ज़रूरत होगी, लेकिन उन सभी को ऐसी मदद की ज़रूरत होगी ताकि उनकी आज़ादी, गरिमा बनी रहे और वह खुद को लाचार और बेकार न समझें। इस नए किस्म की बढ़ती ‘जनसंख्या क्रांति’ से पैदा होनेवाली चुनौतियों का सामना करने में कार्यनीति बनानेवाले संगठनों की मदद करने और “समाज में बुज़ुर्गों के महत्त्व” को ज़्यादा अच्छी तरह समझाने के लिए संयुक्‍त राष्ट्र महासभा ने १९९२ में यह तय किया कि सन्‌ १९९९ को अंतर्राष्ट्रीय वृद्धजन वर्ष घोषित किया जाए। इस खास साल का विषय है, “हर उम्र के व्यक्‍ति का समाज।”

[तसवीर]

कोफी एनन

[चित्रों का श्रेय]

UN photo

UN/DPI photo by Milton Grant

[पेज 4 पर बक्स/तसवीर]

बुढ़ापा क्या है?

एक शोधकर्ता कहता है, “यह कहना मुश्‍किल है कि उम्र ढलना क्या है” दूसरा कहता है, “कोई भी इसे पूरी तरह नहीं समझ पाता।” फिर भी, जरा-विज्ञानियों ने (विज्ञानी जो वृद्ध होने की प्रक्रिया का अध्ययन करते हैं) इसकी परिभाषा देने की कोशिश की है। सरल शब्दों में बताएँ तो उनका कहना है, उम्र ढलना वे साल हैं जो एक इंसान जीता है। लेकिन उम्र ढलना सिर्फ सालों का गुज़रना ही नहीं है। आम तौर पर ऐसा कोई नहीं कहता कि देखो उस बच्चे इतनी उम्र ढल गई है क्योंकि समझा जाता है कि उम्र ढलने का मतलब है, बुढ़ापा और कमज़ोरी आना। इसलिए उम्र ढलना वह कीमत या नुकसान है जो एक इंसान को हर साल उम्र गुज़रने के साथ उठाना पड़ता है। कुछ लोग अपनी उम्र से छोटे दिखते हैं। उदाहरण के लिए, जब किसी को कहा जाता है कि “तुम काफी छोटे लगते हो” तो कहने का यही अर्थ होता है कि वह अपनी उम्र से छोटा दिखता है। कालक्रमिक और जैविक बुढ़ापे के बीच भेद करने के लिए शोधकर्ता आम तौर पर जैविक बुढ़ापे को (बुढ़ापा जिसके साथ शरीर में हानिकर बदलाव आते हैं) जीर्णावस्था कहते हैं।

प्राणी-विज्ञानी स्टीवन एन. ऑस्टैड जीर्णावस्था को इस तरह परिभाषित करता है, “समय के साथ-साथ शरीर की लगभग हर क्रिया का धीरे-धीरे कमज़ोर पड़ना।” और वृद्धावस्था राष्ट्रीय संस्थान का डॉ. रिचर्ड एल. स्प्रॉट कहता है कि बुढ़ापे में “हमारे शरीर के वे हिस्से धीरे-धीरे कमज़ोर पड़ जाते हैं जो तनावों का सामना करने में हमारी मदद करते हैं।” लेकिन अधिकतर विशेषज्ञ सहमत हैं कि बुढ़ापे या उम्र ढलने की स्पष्ट परिभाषा देना मुश्‍किल है। आणविक जीव-विज्ञानी डॉ. जॉन मॆडीना इसका कारण बताता है: “सिर से पैर तक, प्रोटीन से डी.एन.ए तक, जन्म से मृत्यु तक, अनगिनत प्रक्रियाएँ होती हैं जिनसे ६०० अरब कोशिकाओं वाले मनुष्य में बुढ़ापा आता है।” इसमें हैरानी की बात नहीं कि अनेक शोधकर्ता इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि बुढ़ापा “सबसे जटिल जैविक समस्या है”!

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