क्या-क्या किया जाता है ताकि वे उड़ते रहें?
“लेडिज़ ऐन्ड जैन्टलमॆन, न्यू यॉर्क शहर के जॉन एफ. कैनडी इंटरनैश्नल एयरपोर्ट पर आपका स्वागत है।” जब यह घोषणा की जाती है तो हवाई जहाज़ के अंदर और उसके बाहर काफी चहल-पहल शुरू हो जाती है क्योंकि यात्री हवाई जहाज़ से बाहर निकलने लगते हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि यात्रियों के जाने के बाद हवाई-जहाज़ के साथ क्या होता है?
व्यापारिक जहाज़ों से तभी पैसा कमाया जाता है जब वे सवारी या माल लेकर उड़ रहे होते हैं न कि तब जब वह ज़मीन पर होते हैं। इसलिए एयरलाइंस हमेशा इसी कोशिश में रहती हैं कि उनके विमान ज़्यादा से ज़्यादा सवारियाँ करें। जब यात्री विमान से उतरने के बाद अपने सामान का इंतज़ार कर रहे होते हैं, तभी हवाई जहाज़ को अगली उड़ान के लिए फटाफट तैयार किया जाता है। हवाई जहाज़ का मुआयना करने के लिए मकैनिक फौरन दौड़े आते हैं और पिछली उड़ान के कर्मचारियों ने अगर लॉग में किसी गड़बड़ी का रिकार्ड लिखा है तो मकैनिक उसे ठीक करते हैं। हर तरह की गड़बड़ी दूर की जाती है और नो-गो कहलानेवाले आइटमों को भी ठीक किया जाता है ताकि जहाज़ की उड़ान सुरक्षित हो।
जहाज़ के टायर, ब्रेक और इंजिन ऑइल लेवल की जाँच की जाती है। सफाई कर्मचारी यात्रियों के कैबिन को फिर से सँवार देते हैं। किचन या गैलीयों में खाने-पीने की चीज़ें दोबारा पहुँचा दी जाती है। विंग टैंकों में ईंधन भर दिया जाता है। जब विमान रवाना होने के लिए तैयार हो जाता है तो कर्मचारी एक बार फिर पूरे विमान का चक्कर लगाकर एक ऊपरी जाँच करते हैं, यह देखने के लिए कि उड़ान में किसी तरह का खतरा न आए।
इस तरह की फटाफट जाँच और मरम्मत तो हर दिन हज़ारों विमानों में की जाती है। और यह तो बस एक छोटी-सी जाँच है जो एक बड़े यात्री विमान की सफल उड़ान के लिए ज़रूरी होती है। मगर जिस तरह हर मोटर-गाड़ी की समय-समय पर अच्छी सर्विसिंग करनी होती है, उसी तरह विमानों की भी अच्छी-खासी सर्विसिंग करनी ज़रूरी होती है और बराबर उनकी मरम्मत करनी पड़ती है और इसमें बहुत ज़्यादा खर्च होता है। लेकिन विमानों की ये सारी देखभाल कौन करते हैं? और यह काम कैसे किया जाता है?
किस तरह विमानों को उड़ान के लायक रखा जाता है
अमरीकी एयर ट्रॉन्सपोर्ट ऐसोसिएशन के मुताबिक अमरीका में मेम्बर एयरलाइंस के जहाज़ पूरे अमरीका के ९५ प्रतिशत से भी ज़्यादा यात्रियों और माल को ले जाते हैं। सन् १९९७ में इन विमान कंपनियों में ६५,५०० मकैनिक काम कर रहे थे। इंजीनियरों और दूसरे कर्मचारियों, साथ ही विमान के मकैनिकों की यह ज़िम्मेदारी होती कि वे विमान को उड़ान के लायक रखें और उसका अच्छा रख-रखाव करें और यात्रियों को अच्छी सहूलियतें दें। इसलिए वे विमान की अच्छी जाँच और मरम्मत करते हैं और उसके खास पुर्ज़ों यानि मशीनों के अंदर की मशीनों को बदलते रहते हैं या पूरी तरह ऑवरहालिंग करते हैं ताकि विमान की उड़ान में कोई बाधा न आए।a यह सारा काम समय-सारणी के मुताबिक किया जाता है और इसमें विमान के रख-रखाव से ताल्लुक रखनेवाला हर काम शामिल है यानि चार से भी ज़्यादा टन वज़नवाले भारी भरकम जैट इंजिनों से लेकर कैबिन के पुराने गलीचे को बदलने तक का सारा काम।
ज़्यादातर मकैनिकल समस्याओं को फौरन सुलझा लिया जाता है। लेकिन विमानों की जाँच-परख और रख-रखाव के लिए जो शैड्यूल होता है वह इस पर निर्भर होता है कि हवाई जहाज़ ने कितने चक्करb लगाए और वह कितने घंटों तक उड़ा है, यह नहीं देखा जाता कि वह कितने मील उड़ा। इसके रखरखाव के लिए जहाज़ बनानेवाले ही एक बना बनाया कार्यक्रम देते हैं जो सरकार के विमानक प्राधिकरण के स्तरों के मुताबिक होना चाहिए। हर विमान के लिए पहले से ही एक मेन्टेनेंस कार्यक्रम बनाया जाता है। इसमें अलग-अलग तरह की जाँच होती है, सरसरी, आम, और पूरी-पूरी जाँच। इन जाँचों को A, B, C, D, L और Q जाँच कहा जाता है।
एक 747-200 जहाज़ आठ साल में ३६,००० घंटे उड़ा। इतने घंटे उड़ लेने के बाद, अब उसे D जाँच यानी बहुत ही अच्छी तरह से पूरी जाँच करने के लिए गराज में ले जाया जाता है। यह जाँच बहुत जटिल है और इसमें काफी वक्त लगता है। इस जाँच के बारे में ओवरहॉल एन्ड मेन्टेनेंन्स एविएशन मॆनैजमैंट पत्रिका कहती है, “यह जाँच इसलिए की जाती है ताकि पूरे विमान को फिर से पहले की तरह नया बना दिया जाए। विमान की D जाँच के लिए १५,००० से ३५,००० घंटे की मेहनत लगती है और सर्विसिंग में १५ से ३० दिन या उससे भी ज़्यादा समय लगता है। इसका पूरा खर्च तकरीबन १० से २० लाख डालर होता है।” एरोस्पेस मॆनैजमैंट कंसलटिंग फर्म, कनान ग्रूप के हल क्रिसमन कहते हैं, “अच्छी तरह से D जाँच करने के लिए ७०% मेहनत और ३०% सामान लगता है।” जी हाँ, उसका थोड़ा खर्च आपकी हवाई जहाज़ की टिकट से वसूल कर लिया जाता है।
यह D जाँच क्या होती है
जब हवाई जहाज़ को गैराज में लाया जाता है तब कर्मचारी दल भी वहाँ पहुँच जाते हैं। गैराज बहुत बड़ा होता है जिसमें स्टोर हाऊस होते हैं और वहाँ विमानों के सारे पुर्ज़े या स्पेयरपाट्र्स मिलते हैं। काम करने की टेबलें, प्लैटफॉर्म, मंच लगाए जाते हैं ताकि जहाज़ के हर हिस्से तक आसानी से पहुँचा जा सके। विमानों से सीट, फर्श, सीलिंग पैनल, किचन या गैली, शौचालय और दूसरी चीज़ों को निकाल दिया जाता है ताकि जहाज़ की बारीकी से जाँच-परख की जा सके। दरअसल पूरे विमान को खोखला कर दिया जाता है, अंदर के हर पुर्ज़े को ही अलग-अलग कर दिया जाता है। एक-एक हिदायत के मुताबिक कर्मचारी जाँच करते हैं कि विमान के धातुओं में कहीं कोई क्रैक या दरार तो नहीं आ गई और उसमें कहीं ज़ंग तो नहीं लग रही। हो सकता है कि जहाज़ के उतरने में इस्तेमाल होनेवाला हर पुर्ज़ा, हाइड्रॉलिक सिस्टम और इंजन सबकुछ नया लगा दिया जाए। यह D जाँच करने के लिए कुशल इंजीनियरों, टॆकनिकल लेखकों, क्वालिटि कंट्रोल इंस्पैक्टरों, एवियॉनिक्स या विमान इलेक्ट्रॉनिकी,c शीट-मैटल कर्मचारी और विमान के ढाँचे और पावर प्लान्ट मकैनिकों,d की ज़रूरत होती है जिनमें से ज़्यादातर लोगों के पास सरकारी लाइसैंस होता है। और कैबिन के सामान के मकैनिकों, पेन्टरों, साफ-सफाईवाले ऐसे दूसरे कर्मचारियों को मिलाकर तो विमान के रख-रखाव के लिए एक दिन में १०० से भी ज़्यादा कर्मचारी लग जाते हैं। दूसरे कई लोग ज़रूरी उपकरण, सामान और इस काम में एक-एक हिदायत देने में सहायता करते हैं।
कुछ समय के बाद, उड़ान के वक्त होनेवाली कंपन से, बीच के हिस्से में दबाव पड़ने और हज़ारों बार उड़ान भरते और उतरते वक्त लगनेवाले झटकों से जहाज़ का धातु चटक सकता है। इस तरह की समस्याओं का पता लगाने के लिए विमानन ठीक वैसे ही तरीके इस्तेमाल करता है जैसा डाक्टर बीमारियों का पता लगाने में करते हैं। वे रेडियोलॉजी, अल्ट्रासौनिक, और एन्डोस्कोपी का इस्तेमाल करके जहाज़ में आनेवाली उन सब खराबियों का पता लगाते हैं जो आमतौर पर आँखों से दिखाई नहीं देतीं।
आमतौर पर जब एक्सरे लिया जाता है तो मरीज़ को एक खास शीट और एक्सरे किरण के बीच में रखा जाता है। उसी तरह मेन्टेनैंस इंस्पैकटर लैंडिंग गियर, पंखड़ियों और इंजिनों का एक्सरे लेते हैं। मिसाल के तौर पर, इंजिन के सामने सही जगह पर एक्सरे की शीट रखी जाती है। उसके बाद इंजिन के अंदर के खाली हिस्से में एक धातु से बनी लंबी ट्यूब रखी जाती है। आखिर में उस ट्यूब के अंदर रबड़ के बराबर रेडियोधर्मी इरीडियम १९२ को घुमाया जाता है ताकि शीट पर एक्सरे पड़ें। उसके बाद इसकी फिल्म डेवलप की जाती है और उसमें उन तिड़कनों या खराबियों का पता चल जाता है। इन्हें देखकर यह तय किया जा सकता है कि इंजिन की मरम्मत होगी या उसे बदलना पड़ेगा।
इस D जाँच के दौरान विमानों के ईंधन और उसके हाइड्रॉलिक तरल पदार्थ को निकालकर प्रयोगशाला में जाँच के लिए भेजा जाता है। अगर जाँच में सूक्ष्मजीवी पाए जाते हैं तो एन्टीबायोटिक्स दिया जाता है। फंगस और बैक्टीरिया जैसे जैट-ईंधन में पैदा होनेवाले किटाणुओं को मारने के लिए टंकियों में बायोसाइड लगाया जाता है जो एक प्रकार का एन्टिबायोटिक है। ईंधन की टंकियों में फंगाइ और बैक्टीरिया जैसे कीटाणु हवा, पानी और ईंधन के ज़रिए घुस आते हैं। ऐसा करना बहुत ज़रूरी है, नहीं तो ये किटाणुओं से पैदा होनेवाले तत्त्व टंकियों की सुरक्षा परत को खराब कर सकते हैं या उनमें ज़ंग लग सकती है। इनसे ईंधन की मात्रा बतानेवाले उपकरण भी खराब हो सकते हैं जिससे पायलट ईंधन की मात्रा की सही रीडिंग नहीं ले पाता।
ईंधन की टंकियों के घिस जाने, कँपकँपाहट और अंदर की सील खुल जाने की वज़ह से उनमें छेद हो सकते हैं। ऐसे समय पर सुपरवाइज़र D-जाँच करनेवाले अपने कर्मचारियों से पूछता है कि ‘क्या कोई मेंढक बनना पसंद करेगा?’ भले ही उसे पसंद नहीं मगर यह काम जॉन के जिम्मे आता है। वह एक गोताखोर जैसे कपड़े पहन लेता है बस उसमें पदचाप नहीं होते। उसके ऊपर वह सूती लबादा पहनता है और ताज़ी हवा के लिए श्वास-यंत्र लेता है। अपने साथ कुछ औज़ार, सीलबंद करने का सामान, सेफ्टी लाइट रख लेता है। जहाज़ के पंख के नीचे एक छेद से वह अंदर ईंधन वाले विंग-टैंक में घुसकर यह ढूँढ़ निकालता है कि छेद कहाँ है और उसे सील बंद कर देता है।
एक 747 की ईंधन की टंकी उसके पंख के अंदर ही बनी होती है और उसमें कई हिस्से होते हैं और उनके छोटे-छोटे निकास दरवाज़े होते हैं। अगर किसी को अंधेरी या निर्जन जगहों से दहशत है तो वह कभी ईंधन टंकी में ना जाए। एक 747-400 जहाज़ में २,१०,००० लीटर से भी ज़्यादा ईंधन भरा जा सकता है। और इसीलिए वह बिना रुके लंबी लंबी उड़ानें भर सकता है जैसे कि अमरीका के सॆन फ्रैंसिस्को, कैलिफोर्निया शहर से ऑस्ट्रेलिया के सिडनी शहर तक, जिसमें तकरीबन १२,००० किलोमीटर तक की दूरी है।
जहाज़ों के यातायात पर नज़र रखने के लिए ज़मीन पर एक तीन मंज़िला इमारत में एक टेक्नीशियन मौसम की सूचना देनेवाली रेडार स्क्रीन की जाँच करता है। इस यंत्र की मदद से पायलट ५०० किलोमीटर की दूरी से ही रास्ते में आनेवाले तूफानों या मौसम की गड़बड़ी की जानकारी हासिल कर सकते हैं। इसलिए जब पायलट यह सूचना देता है कि “कृपया अपनी सीट बॆल्ट बाँध लें” तो शायद उसने रेडार स्क्रीन से किसी तूफान को देख लिया होगा। मगर फिर भी सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए कई एयरलाइन अपने यात्रियों से निवेदन करती हैं कि वे अपनी बॆल्ट हरदम बाँधे रहें तब भी जब कैप्टन ने सूचना देने का साइन ऑफ कर दिया हो। कभी-कभी इससे पहले कि पायलट सूचना दे, साफ हवा में भी तूफान जैसे असर पैदा होने से वातावरण बदल सकता है और खतरा सामने आ सकता है।
यह D जाँच करते वक्त सुरक्षा की चीज़ों की जैसे लाइफ वेस्ट या जीवन-पोशाक और आपातकालीन रोशनी की जाँच की जाती है या पुरानी निकालकर नई लगा दी जाती हैं। जब यात्रियों के आपातकालीन ऑक्सिजन सिस्टम की जाँच की जाती है तो ऑक्सिजन मास्क जहाज़ में इस तरह लटक रहे होते हैं मानो पेड़ पर संतरे लटक रहे हों। जैट हवाईजहाज़ हमेशा ही पृथ्वी से ६-११ किलोमीटर ऊपर जाता है जहाँ वायुमंडल का दबाव बढ़ जाता है और ऑक्सिजन कम हो जाती है। तो इस समस्या से कैसे निपटा जाता है? विमान का दाबानुकूलन सिस्टम बाहर से हवा खींचकर कम्प्रेस करके अंदर रख लेता है। फिर हवा को सही तापमान देकर कैबिन तक पहुँचाया जाता है। अगर कैबिन में हवा का दबाव होने के कारण ऑक्सिजन कम हो जाता है तो सिर के ऊपर के कंपार्टमैंन्ट से ऑक्सिजन मास्क यात्रियों के पहनने के लिए अपने आप बाहर निकल आते हैं। यात्रियों को आपातकालीन ऑक्सिजन तब तक दी जाती है जब तक जहाज़ इतनी नीचाई पर ना पहुँचे जहाँ किसी को ऑक्सिजन की ज़रूरत ना पड़े इसके बाद ऑक्सिजन सप्लाई बंद कर दी जाती है। कुछ हवाईजहाज़ों में ऑक्सिजन मास्क यात्रियों के ओवर हैड कंपार्टमैंट में न होकर सीटों के पीछे होता है। इसलिए जब हवाईजहाज़ के उड़ने से पहले यात्रियों को सूचना दी जाती है तो उसे ठीक से सुनना ज़रूरी होता है नहीं तो पता नहीं चलेगा कि ऑक्सिजन मास्क किस स्थान पर रखा है।
जब एक भारी या बारीकी जाँच होती है तो कैबिन की दीवारें और सीलिंग पैनल या छत साथ ही गलीचे, पर्दे और सीट के कवर बदले जाते हैं। गैली या किचन के सामान को पूरा निकालकर अच्छी तरह साफ किया जाता है और कीटाणु रहित बनाया जाता है।
उड़ने के लिए तैयार
पूरे ५६ दिनों के बाद, जब विमान की अच्छी तरह से जाँच और मरम्मत हो जाती है तो उसे गैराज से निकाला जाता है। अब वह यात्रियों और उनके सामान को लेकर उड़ने के लिए तैयार होता है। यहाँ तो इसकी सर्विसिंग की बस थोड़ी-सी जानकारी दी गई है। मगर यात्रियों को लेकर उड़ने से पहले एक खास विमान दस्ता जहाज़ को खुद उड़ा कर देखता है कि सब कुछ ठीकठाक तो है। यह जानकर कितनी तसल्ली मिलती है कि हम जिस हवाई जहाज़ में बैठते हैं उसकी सुरक्षित उड़ान के लिए कितने विशेषज्ञों और अच्छी टॆकनॉलजी की मदद ली जाती है।
लेकिन हवाई जहाज़ ठीक से उड़ सके इसके लिए इंसान की तेज़ आँखों और तेज़ दिमाग से बढ़िया और कौन-सा औज़ार हो सकता है। ट्रेनिंग पाए हुए लोग अपना काम बहुत गंभीरता से करते हैं। वे जानते हैं कि अगर रख-रखाव में ज़रा सी भी लापरवाही बरती गई तो बड़ी मुश्किल पैदा हो सकती है। उनका मकसद यही होता है कि एक भरोसेमंद हवाई जहाज़ यात्रियों को मिले जो कम समय में उन्हें उनकी मंज़िल तक आराम से और सही-सलामत पहुँचाए।—अमरीका एविएशन सेफ्टी इंस्पैक्टर द्वारा भेंट
[फुटनोट]
a एक 747-200 जहाज़ में ६० लाख कलपुर्ज़े होते हैं (जिनमें आधे रिवेट और बोल्ट जैसे पुर्ज़े हैं) और इसके अंदर इस्तेमाल की गई बिजली के तारों की कुल लम्बाई २७५ किलोमीटर की होती है।
b एक चक्कर यानी जब जहाज़ एकबार उड़ान भरता है और एक बार उतरता है।
c “एवियॉनिक्स” का मतलब है एविएशन इलेक्ट्रॉनिक्स।
d जिन मकैनिकों के पास विमान के ढाँचे और पावर प्लान्ट का काम करने का सर्टिफिकेट है वे उस काम को मंज़ूरी दे सकते हैं जो उन्होंने विमान के ढाँचे, पूरे सिस्टम और इंजिन में किया है।
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