अंधविश्वास—आज इसका जाल कहाँ तक फैला हुआ है?
ऐसा कई देशों में होता है, चाहे यह काम पर हो या स्कूल में, गाड़ियों से सफर करते वक्त हो या सड़कों पर। जब कोई छींकता है तो रास्ते पर आ-जा रहे लोग, चाहे वे अजनबी ही क्यों न हों, फट से कहते हैं: “God bless you” यानी “भगवान तेरा भला करे,” या बस इतना कि “तेरा भला हो।” कई भाषाओं में इस तरह ही कुछ-न-कुछ कहा जाता है। जैसे जर्मन भाषा में किसी के छींकने पर लोग “गेज़ुन्टहाइट” कहते हैं। अरबी लोग “यॆरहामाक आला” कहते हैं और दक्षिण पैसॆफिक के रहनेवाले कुछ पॉलिनेशियावासी “तीहे माउरी ओररार” कहते हैं।
आप शायद यह मानते हों कि यह बस शिष्टाचार है या चार लोगों के साथ उठने-बैठने के तौर-तरीके हैं। इसलिए आपने शायद इस बारे में ज़्यादा गौर नहीं किया होगा कि किसी के छींकने पर लोग आखिर ऐसा कहते क्यों हैं। दरअसल, किसी के छींकने पर कुछ कहने की शुरुआत अंधविश्वास से हुई है। अमरीका के इंडियाना राज्य के ब्लूमिंगटन शहर में मोइरा स्मिथ रहती है। वह इस शहर के इंडियाना यूनिवर्सिटी के फोकलोर इंस्टिट्यूट की लाइब्रेरियन है। छींकने पर कुछ कहने के बारे में वह कहती है: “लोग मानते हैं कि छींकने पर व्यक्ति की आत्मा बाहर निकल जाती है।” इसलिए “भगवान तेरा भला करे” कहने का असल में मतलब यह है कि आप ईश्वर से कहते हैं कि हमारी आत्मा वापस हममें डाल दे।
जी हाँ, ज़्यादातर लोग इस बात से सहमत होंगे कि ऐसा मानना या सोचना बेतुका है कि छींकने पर आपकी आत्मा देह से बाहर निकल जाती है। इसलिए इसमें कोई ताज्जुब नहीं होता कि वॆबस्टर्स नाइन्थ न्यू कॉलीजिएट डिक्शनरी अंधविश्वास की परिभाषा यूँ देती है: “अज्ञानता की वज़ह से होनेवाली धारणा या आदत, भविष्य का खौफ, जादू-टोना या संयोग पर विश्वास, गलत सोच कि हादसा होने की वज़ह फलाना-फलाना है।” हिंदी भाषा में, शब्द अंधविश्वास से ही पता चलता है कि यह अंधा विश्वास या किसी भी बात पर आँख मूँदकर किया गया विश्वास है।
इस वज़ह से जब १७वीं सदी के एक वैध ने अपने ज़माने के अंधविश्वास को “अनपढ़ लोगों की गलतियाँ” कहा तो इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं। इस तरह, जब २०वीं सदी शुरू हुई और विज्ञान ने तरक्की करनी शुरू की, तो सन् १९१० के दी एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका ने उम्मीद की कि वह समय ज़रूर आएगा जब “मानवजाति पर अंधविश्वास की छाया तक नहीं फटकेगी।”
लोगों का अंधविश्वास, पहले की तरह ही बरकरार
कुछ आठ दशकों पहले की गयी उस उम्मीद का कोई आधार नहीं था क्योंकि आज भी अंधविश्वास लोगों के दिलों में उतना ही बसा हुआ है जितना कि पहले था। अंधविश्वास की खासियत ही है कि वह लोगों के दिलों में घर कर जाता है। आइए इसकी कुछ मिसाल देखें कि लोग आज भी किस तरह के अंधविश्वास को मानते हैं।
◻ जब एशिया के एक बड़े शहर के गवर्नर की अचानक मौत हो गयी, तब उसके सरकारी घर के एक निराश कर्मचारी ने नए गवर्नर को किसी खास ज्योतिषी से परामर्श लेने की सलाह दी। और उस ज्योतिषी ने उसके सरकारी घर में और उसके चारों तरफ कुछ फेरबदल करने की सलाह दी। वह कर्मचारी मानता था कि इस फेरबदल की वज़ह से अब घर से अपशगुन दूर हो जायेगा।
◻ अमरीका की करोड़ों रुपए कमानेवाली एक कंपनी की प्रॆसिडेंट हमेशा अपने साथ एक खास पत्थर रखती है। कंपनी की तरक्की के लिए उसने एक शो रखा। जबसे उसका यह पहला शो सफल हुआ तब से वह उस पत्थर के बिना घर से बाहर कदम नहीं रखती।
◻ कोई भी अच्छा काम या नया व्यापार शुरू करने से पहले एशिया के लोग शुभ-अशुभ मुहूर्त जानने के लिए ज्योतिषी से सलाह लेते हैं।
◻ हालाँकि एक खिलाड़ी अपनी कड़ी मेहनत और ट्रेनिंग की वज़ह से प्रतियोगिता में जीतता है, मगर वह अपने उस कपड़े को इस जीत का श्रेय देता है जिसे उसने पहना था। सो वह आगे की हर प्रतियोगिता में इसी कपड़े को बिना कभी धोए पहनता है।
◻ एक विद्यार्थी एक खास पॆन से अपनी परीक्षा लिखता है और उसे बहुत अच्छे अंक भी मिल जाते हैं। तब से वह इसी पॆन को “लकी” मानने लगता है।
◻ विवाह के बाद जब दुल्हन दुल्हे के घर में पहली बार प्रवेश करती है तो उसे सबसे पहले अपने दाएँ पैर से दरवाज़े के पास रखे हुए चावल से भरे पात्र को गिराना पड़ता है और उसी दाएँ पैर से प्रवेश करना पड़ता है क्योंकि इसे “शुभ” माना जाता है।
◻ एक व्यक्ति बाइबल को कहीं भी खोलता है और जो पहली आयत उसे दिखती है वह उसे इस विश्वास से पढ़ने लगता है कि जिस मदद की उसे उस वक्त ज़रूरत है, वह उसे उस आयत के शब्दों से मिलेगी।
◻ सफर करते वक्त लोग नदियों और तालाबों में सिक्के फेंकते हैं। और कई लोग सफर के दौरान भगवान का नाम जपते हैं या भजन गाते हैं। क्योंकि उनका विश्वास है कि इससे वे सही-सलामत अपनी मंज़िल तक पहुँचेंगे।
इन सबसे यह साफ पता चलता है कि आज भी लोग पहले की तरह ही अंधविश्वास को मानते हैं। दरअसल, कॆनैकटिकट कॉलेज के साइकॉलॉजी के प्रॉफॆसर, स्टूआर्ट ए. वाइस अपनी किताब बिलीविंग इन मैजिक—द साइकॉलॉजी ऑफ सूपरस्टीशन में कहता है: “हालाँकि हम एक ऐसे समाज में रहते हैं जहाँ तकनीकी में काफी तरक्की हुई है, मगर फिर भी अंधविश्वास पहले की तरह ही बरकरार है।”
अंधविश्वास ने आज लोगों को इस कदर जकड़ रखा है कि इसे जड़ से उखाड़ फेंकने की जितनी भी कोशिशें की गयी हैं, वे सब-की-सब नाकाम हो गयी हैं। ऐसा क्यों होता है?