अंधविश्वास—आखिर इसकी जड़ इतनी मज़बूत क्यों?
जैसे कि आप जानते होंगे कि आज भी लोग कई बातों को अपशगुन मानते हैं जैसे, किसी काली बिल्ली का रास्ता काट जाना या बाहर जाने की तैयारी करते वक्त किसी का छींक देना या पीछे से टोक देना। कई लोग यह भी मानते हैं कि १३ तारीख अगर शुक्रवार को पड़ जाए तो उस दिन बहुत बुरा हादसा होगा और किसी इमारत के १३वीं मंजिल पर रहना खतरे से खाली नहीं है। हालाँकि इन बातों में कोई तुक नहीं होता मगर लोग आज भी इस तरह के अंधविश्वासों को मानते हैं।
ज़रा इस बारे में सोचिए। कुछ लोग क्यों हमेशा तावीज़ पहनना या बच्चों की कमर पर काला धागा बाँधना या उनके माथे पर काजल का टीका लगाना पसंद करते हैं? क्या इसलिए नहीं कि वे आँख मूँदकर यह विश्वास करते हैं कि इन चीज़ों की वज़ह से उनके साथ कुछ अनहोनी नहीं घटेगी? ए डिक्शनरी ऑफ सुपरस्टीशन्स किताब कहती है: “अंधविश्वास को माननेवाले लोग यह विश्वास करते हैं कि खास चीज़ें, जगहें, जानवर या काम लकी (यानी शुभ) होते हैं और बाकी सब लकी नहीं होते (यानी अशुभ या दुर्भाग्य के लक्षण होते हैं)।”—गलतियों ५:१९, २० भी देखिए।
चीन में अंधविश्वास खत्म करने की कोशिशें
यह तो साफ दिखता है कि अंधविश्वास को खत्म करने की कोशिशों के बावजूद इसका जाल आज भी फैला हुआ है। मसलन, सन् १९९५ में शैंग्हाई के पीपल्स कांग्रेस ने यह सरकारी नियम जारी किया कि अंधविश्वास पर पाबंदी लगा दी जाए क्योंकि यह देश के बीते हुए कल की बहुत ही पुरानी निशानी है। यह नियम निकालने का मकसद यही था कि इससे “ज़मींदारों के समय से शुरू हुआ अंधविश्वास खत्म” हो जाए, “अंतिम संस्कार के रीति-रिवाज़ों में सुधार हो और हर क्षेत्र में तरक्की करके लोगों की ज़िंदगी को सुधारा जाए।” मगर इसका अंजाम क्या हुआ?
एक रिपोर्ट के मुताबिक, शैंग्हाई के लोगों ने अपने अंधविश्वास को मानना बंद नहीं किया। चीन में पूर्वजों के कब्रिस्तान पर कागज़ के नकली रुपयों को जलाने का रिवाज़ है जिस पर सरकार ने पाबंदी लगा दी थी। इस पाबंदी का विरोध करते हुए कब्रिस्तान पर आए एक व्यक्ति ने कहा: “हमने १९ अरब नकली यूआन [लगभग १.२ खरब रुपए] जलाए।” उसने आगे कहा: “यह हमारी परंपरा है। इससे हमारे देवता खुश होते हैं।”
इस रोक का लोगों पर कोई खास असर नहीं पड़ा। इसके बारे में एक बड़े अखबार ग्वॉन्गमिंग डेली ने कहा कि “चीन में हालाँकि विज्ञान और टॆक्नॉलॉजी के पेशेवर लोगों की कुल संख्या १ करोड़ है मगर पेशेवर ज्योतिषियों की संख्या भी ५० लाख तक पहुँच गयी है।” अखबार ने आगे कहा: “इस झुकाव को देखकर लगता है कि सभी लोग ज्योतिषियों का पक्ष ले रहे हैं।”
अंधविश्वास का जाल आज भी फैला हुआ है, इसके बारे में दी एनसाइक्लोपीडिया अमेरिकाना का अंतर्राष्ट्रीय संस्करण कहता है: “हर संस्कृति में, कुछ-कुछ पुराने रिवाज़ों को न केवल बरकरार रखा जाता है बल्कि इनका अर्थ फिर से निकालकर इन्हें नया रूप दे दिया जाता है।” द न्यू एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटैनिका के एक नए संस्करण ने कहा: “आज के इस नए दौर में लोग बिना सबूत के किसी भी बात पर विश्वास नहीं करते। इसके बावजूद, कुछ लोग ऐसे हैं जो दबाव दिए जाने पर भी यह बात कबूल नहीं करेंगे कि वे एकाध अंधविश्वासों या इस तरह की बेसिर-पैर की बातों को ज़रूर मानते हैं।”
अंदर से कुछ और बाहर से कुछ और
कई लोगों के दोहरे स्तर होते हैं, क्योंकि वे लोग उन बातों को चार लोगों के सामने ज़ाहिर नहीं करेंगे जो वे अकेले में करते हों। एक लेखक कहता है कि उनमें यह झिझक इसलिए होती है क्योंकि वे दूसरों के सामने उल्लू या बेवकूफ दिखना नहीं चाहते। इसीलिए कई लोग अपने-अपने अंधविश्वास को रीति या आदत का नाम दे देते हैं। मिसाल के तौर पर, कई खिलाड़ी खेलने से पहले के अपने व्यवहार को आदत कहते हैं।
चेन-लेट्टर एक ऐसा सिलसिला होता है जिसमें एक खत कई लोगों को भेजा जाता है और उनसे यह निवेदन किया जाता है कि वे भी कई और लोगों को इसकी कॉपियाँ भेजें। अकसर, यह माना जाता है कि जो व्यक्ति इस खत को आगे बढ़ा देता है, उसे कुछ-न-कुछ लाभ होगा और जो इस चेन को तोड़ देता है उसे बुरे-बुरे अंजाम भुगतने पड़ेंगे। एक बार जब एक जर्नलिस्ट इस तरह के चेन-लेट्टर की एक नयी कड़ी बन गया, तो उसने लोगों के विचारों का पर्दाफाश करते हुए व्यंग्यात्मक रूप से लिखा: “आप तो समझते हैं कि मैं यह काम इसलिए नहीं कर रहा क्योंकि मैं अंधविश्वासी हूँ। बल्कि मैं तो बस बुरे अंजाम से बचने के लिए इस खत को आगे बढ़ा रहा हूँ।”
मानवविज्ञानी और लोक-कथाओं के विशेषज्ञों को यह लगता है कि शब्द “अंधविश्वास” लोगों की अपनी-अपनी राय या भावनाओं पर निर्भर करता है, इसलिए वे अपने खास व्यवहार को अंधविश्वास का नाम देने से हिचकिचाते हैं। इसके बजाय वे “रीति-रिवाज़ या विश्वास,” “लोक-कथा,” या “विश्वास करने के तरीके” जैसे ज़्यादा “विस्तार” मगर ठेस नहीं पहुँचानेवाली शब्द का इस्तेमाल करना पसंद करते हैं। अपनी किताब लॆस्ट इल लक बिफॉल दी—सुपरस्टीशन्स ऑफ दे ग्रेट एण्ड स्मॉल में, डिक हाइमॆन साफ-साफ कहता है: “पाप और आम जुकाम की तरह, चार लोगों के सामने अंधविश्वास के पक्ष में दलील देनेवाले लोग कम है मगर इसको माननेवाले लोग बहुत हैं।”
चाहे अंधविश्वास को किसी भी नाम से क्यों न पुकारा जाए, ये आज भी बरकरार है। मगर आज के वैज्ञानिक युग में ऐसा अंधविश्वास क्यों है?
लोग आज भी इसमें क्यों विश्वास करते हैं
कुछ लोग दावा करते हैं कि अंधविश्वास को मानना इंसानों के लिए स्वाभाविक है। और तो और, कुछ लोग यह दावा भी करते हैं कि अंधविश्वास को मानने की प्रवृत्ति हमारे नस-नस में बसी हुई है। मगर, अध्ययन यह बताते हैं कि यह सच नहीं है। सबूत तो यह दिखाते हैं कि लोग इसलिए अंधविश्वासी बन जाते हैं क्योंकि उन्हें वही सिखाया जाता है।
प्रॉफॆसर स्टूआर्ट ए. वाइस कहता है: “लोग चंद पलों में या रातोंरात अंधविश्वासी नहीं बन जाते, बल्कि वे अपनी ज़िंदगी के दौरान इसे सीखते हैं। हम तावीज़ पहने हुए या काला धागा बाँधे हुए या काजल का टीका लगाए हुए पैदा नहीं होते, ऐसा करना हम सीखते हैं।” ऐसा कहा जाता है कि लोग जब बच्चे ही होते हैं तभी वे जादू-टोने पर विश्वास करना शुरू करते हैं और “बड़े होकर समझदार हो जाने” के बावजूद भी यह विश्वास बना रहता है और अंधविश्वास का असर उन पर हावी रहता है। मगर वे इतने सारे अंधविश्वास कहाँ से सीख लेते हैं?
कई अंधविश्वास, मनपसंद धार्मिक विश्वासों से जुड़े होते हैं। मसलन, कनान देश में इस्राएलियों से पहले रहनेवाली जातियों के धर्म में अंधविश्वास भी शामिल था। बाइबल कहती है भावी कहनेवालों, जादू-टोना करनेवालों, शुभ-अशुभ मुहूर्त्तों के माननेवालों, टोन्हों, दूसरों पर तंत्र-मंत्र फूँकनेवालों, बाजीगरों और पेशेवर ओझों और भूतों को जगाकर मृतजनों के बारे में पूछताछ करना कनानी लोगों की रस्म थी।—व्यवस्थाविवरण १८:९-१२.
पुराने ज़माने के यूनानी भी, धर्म से जुड़े अंधविश्वासों के लिए काफी मशहूर थे। वे भी कनानियों की तरह ही पंडितों, भविष्य बतानेवाले लोगों और जादू-टोना में विश्वास करते थे। बाबुल के लोग किसी जानवर के कलेजे को यह पता लगाने के लिए निकालते थे कि उन्हें कौन-सा रास्ता अख्तियार करना है। (यहेजकेल २१:२१) वे जुआ खेलने के लिए भी प्रसिद्ध थे और वे वहाँ से मदद लेते थे जिसे बाइबल “भाग्य देवता” कहती है। (यशायाह ६५:११) आज भी यही माना जाता है कि जुआरी बहुत ही अंधविश्वासी होते हैं।
दिलचस्पी की बात है कि कई चर्चों ने असल में लोगों को जुआ खेलने में गहरी रुचि रखने के लिए प्रोत्साहित किया है। इसकी एक मिसाल कैथोलिक चर्च है जो बिंगो जैसे जुए के खेल को बढ़ावा देता है। इस बारे में एक जुआरी कहता है: “मुझे पक्का यकीन है कि कैथोलिक चर्च यह जानता है कि [जुआरी बहुत ही अंधविश्वासी होते हैं], इसीलिए तो रेसट्रैक के पास अपनी दानपेटियों के साथ हमेशा नन खड़ी रहती हैं। हममें से कई लोग कैथोलिक हैं और हम एक ‘सिस्टर’ के पास से उनकी दानपेटियों में बिना कुछ डाले गुज़र जाने के बाद यह कैसे उम्मीद कर सकते हैं कि हम उस घुड़दौड़ में कामयाब होंगे? सो हम ज़रूर कुछ-न-कुछ डालते हैं। और अगर हम उस दिन जीत जाते तब तो हम इस उम्मीद में और भी ज़्यादा दिल खोलकर दान देते कि अगली बार भी हमें ऐसी ही कामयाबी मिले।”
धर्म और अंधविश्वास का चोली-दामन का साथ है, इसके प्रमुख उदाहरण वे अंधविश्वास हैं जो क्रिसमस के साथ जुड़े हुए हैं। क्रिसमस वह पर्व है जो मसीहीजगत के चर्च मनाते हैं। इससे जुड़ा एक अंधविश्वास यह है कि अगर दरवाज़े पर लटके हुए मिसलटो नामक पत्तों के नीचे खड़ा होकर किसी का चुंबन लिया जाए, तो आगे जाकर उसी व्यक्ति के साथ शादी होती है। सांता क्लाउस के साथ भी कई अंधविश्वास जुड़े हुए हैं।
लॆस्ट इल लक बिफॉल दी किताब कहती है कि अंधविश्वास की शुरूआत बस इसलिए हुई क्योंकि लोगों ने “भविष्य के बारे में जानने” की कोशिश की। सो आज भी, आम लोग और विश्व नेता भविष्य जाननेवालों से और ऐसे लोगों से पूछताछ करते हैं जो दावा करते हैं कि उनके पास जादुई शक्तियाँ हैं। डोन्ट सिंग बिफोर ब्रेकफास्ट, डोन्ट स्लीप इन द मूनलाइट किताब बताती है: “लोग यह विश्वास करना चाहते थे कि ऐसे तावीज़ और तंत्र-मंत्र हैं, जिनकी मदद से वे जानी और अनजानी बातों के खौफ से लड़ सकते हैं।”
इस तरह, अंधविश्वास की वज़ह से लोगों को अपने डर पर कुछ हद तक काबू पाने में मदद मिली। किताब क्रॉस यॉर फिंगर्स, स्पिट इन यॉर हैट कहती है: “[इंसान] शुरू से ही अंधविश्वास को कुछ कारणों के लिए मानता आया है। जब [उनके] सामने कोई ऐसी स्थिति आ जाती है जो उनके बस में नहीं होती—और उनके मुताबिक जो ‘लक’ या ‘संयोग’ पर निर्भर करता है—तो अंधविश्वास का आश्रय लेते हैं क्योंकि इससे वे ज़्यादा सुरक्षित महसूस करते हैं।”
हालाँकि विज्ञान ने लोगों की कई समस्याओं को सुलझाया है मगर उनके अंदर असुरक्षा की भावना अब भी मौजूद है। दरअसल, यह भावना और भी ज़्यादा बढ़ गयी है क्योंकि विज्ञान ने कई दूसरी समस्याएँ खड़ी भी की हैं। प्रॉफॆसर वाइस कहता है: “विज्ञान और आज की दुनिया के हालात ने असुरक्षा की भावना को और भी बढ़ा दिया है . . . जिसकी वज़ह से लोग और भी ज़्यादा अंधविश्वास और अलौकिक बातों को मानने लगे हैं और इन्हें अपनी संस्कृति में मिला दिया है।” द वर्ल्ड बुक एनसाइक्लोपीडिया ने यह निष्कर्ष निकाला: “जब तक लोग भविष्य के बारे में असुरक्षित महसूस करते रहेंगे, . . . तब तक अंधविश्वास लोगों की ज़िंदगी का एक हिस्सा बनकर रहेगा।”
सो सारांश के तौर पर यह कहा जा सकता है कि लोगों के आम डर और मनपसंद धार्मिक विश्वासों के कारण ही अंधविश्वास का जाल आज भी फैला हुआ है। तो फिर क्या हमारा यह निष्कर्ष निकालना सही होगा कि अंधविश्वास से फायदा ही होता है, क्योंकि ये लोगों को अनिश्चित बातों का सामना करने में मदद करता है? क्या इससे कोई हानि नहीं होती? या क्या ये कोई ऐसी खतरनाक बात है जिससे हमें दूर ही रहना चाहिए?
[पेज 5 पर तसवीर]
केवल चीन में ही लगभग ५० लाख पेशेवर ज्योतिषी होंगे
[पेज 6 पर तसवीर]
बिंगो जैसे जुए के खेल को बढ़ावा देने के द्वारा, कई चर्चों ने अंधविश्वास को बढ़ने दिया है
[पेज 7 पर तसवीर]
मिसलटो के नीचे खड़े होकर चुंबन लेने की क्रिसमस की परंपरा, अंधविश्वास में डूबा एक विश्वास है