अध्याय 3
सही उच्चारण
सभी मसीही एक जैसे पढ़े-लिखे नहीं हैं। कुछ भाई-बहनों ने कई साल पढ़ाई की है, तो कुछ ने बहुत कम। प्रेरित पतरस और यूहन्ना की ही मिसाल लीजिए। उनके बारे में यूँ कहा गया है: वे ‘साधारण इंसान थे जिन्होंने रब्बियों की तालीम हासिल नहीं की थी।’ (प्रेरि. 4:13, NW) तो फिर आप चाहे कितने ही पढ़े-लिखे क्यों न हों, यह बहुत ज़रूरी है कि बाइबल सच्चाई सुनाते वक्त आप शब्दों का अशुद्ध उच्चारण न करें, नहीं तो लोगों की नज़रों में आपके संदेश की कोई अहमियत नहीं रहेगी।
कुछ अहम बातों पर गौर कीजिए। हर भाषा में उच्चारण के अलग-अलग नियम होते हैं। बहुत-सी भाषाएँ अपनी-अपनी वर्णमाला के अक्षरों से लिखी जाती हैं। हिंदी के अलावा, अँग्रेज़ी, उर्दू, तमिल और मलयालम भाषाओं की भी अपनी वर्णमालाएँ हैं। लेकिन चीनी भाषा की लिखाई में वर्णमाला नहीं होती बल्कि चिन्हों का इस्तेमाल किया जाता है जो कई धातुओं से मिलकर बने होते हैं। ये लिपिचिन्ह, पूरे शब्द या शब्द के हिस्से होते हैं। जापानी और कोरियाई भाषा में भी चीनी लिपि का इस्तेमाल किया जाता है, मगर इनमें शब्दों का उच्चारण बिलकुल अलग ढंग से किया जाता है और उनके मतलब में भी फर्क होता है।
जिन भाषाओं की वर्णमालाएँ होती हैं, उनमें सही उच्चारण के लिए हर अक्षर या अक्षरों को सही स्वर के साथ बोलना ज़रूरी होता है। जब इन भाषाओं में उच्चारण के नियम हमेशा एक-जैसे रहते हैं और बदलते नहीं, तो सही उच्चारण करने में ज़्यादा समस्या नहीं होती। मिसाल के लिए, ज़ूलू, यूनानी, स्पैनिश और हिंदी जैसी भाषाओं में शब्दों का हमेशा एक ही तरह से उच्चारण किया जाता है। लेकिन जब एक भाषा में, दूसरी भाषाओं के शब्द अपनाए जाते हैं तब हो सकता है कि उन शब्दों का उच्चारण मूल भाषा के शब्द से मेल खाता हो। नतीजा यह होता है कि एक खास अक्षर या अक्षरों के समूह का उच्चारण करने के एक-से ज़्यादा तरीके हो सकते हैं, या अँग्रेज़ी जैसी भाषाओं में कभी-कभी अक्षरों को लिखा तो जाता है, मगर पढ़ते वक्त उनका उच्चारण नहीं किया जाता है। आपको यह याद रखने की ज़रूरत होगी कि किन अक्षरों का उच्चारण नहीं किया जाता और बोलते वक्त इस नियम का पालन करना होगा। चीनी भाषा में सही उच्चारण के लिए हज़ारों लिपिचिन्हों को याद करने की ज़रूरत होती है। कुछ भाषाओं में बोलने के लहज़े में बदलाव करने से शब्द का मतलब बदल जाता है। अगर किसी भाषा के इस पहलू पर ध्यान न दिया जाए, तो कुछ-का-कुछ मतलब निकल सकता है।
अगर अँग्रेज़ी जैसी भाषाओं के शब्द, सिलेबल्स यानी शब्दों के ऐसे अंश जिन्हें एक ही स्वर में बोला जाता है, से बने हों तो सही सिलेबल पर खास ज़ोर देना बहुत ज़रूरी होता है। इस तरह लिखी जानेवाली बहुत-सी भाषाओं में बोलते वक्त सही उच्चारण करने का लहज़ा और नियम पाया जाता है। अगर किसी शब्द का उच्चारण इस नियम से हटकर होता है, तो उस शब्द के साथ एक एक्सेंट मार्क (यानी उच्चारण चिन्ह) लिखा जाता है। इन चिन्हों की मदद से उच्चारण करना आसान हो जाता है। लेकिन जब भाषा में उच्चारण का ऐसा नियम नहीं होता, तब मुश्किल बढ़ जाती है। ऐसे में उच्चारण में महारत पाने के लिए, शब्दों का अलग-अलग उच्चारण याद रखने की ज़रूरत पड़ती है।
हिंदी जैसी कई भारतीय भाषाओं में उच्चारण के लिए मात्राएँ बहुत मायने रखती हैं और इन पर ध्यान देना बेहद ज़रूरी होता है। इन मात्राओं को क, ख, ग जैसे व्यंजनों के साथ जोड़कर लिखा जाता है। मात्राओं के कुछ उदाहरण हैं: ा, ाा, ि , ी, ु, ू, ृ, े, ै, ो, ौ, ां, ः। कई भाषाओं में मात्राएँ लिखी होती हैं, मगर कई भाषाएँ ऐसी भी हैं जिनमें आगे-पीछे के वाक्यों में जो कहा गया है, उसके हिसाब से खुद मात्राएँ लगाकर पढ़ना होता है। ऐसी भाषा पढ़नेवाले को अगर सबके सामने पढ़कर सुनाने का भाग मिले, तो पहले से तैयारी करना निहायत ज़रूरी होता है।
उच्चारण के संबंध में कुछ सावधानियाँ बरतने की ज़रूरत है। ज़रूरत-से-ज़्यादा ज़ोर देकर शब्दों का उच्चारण करने से हमारा बोलने का तरीका बहुत बनावटी लगेगा। यहाँ तक कि लोग सोचेंगे कि हम अपनी पंडिताई दिखा रहे हैं। यही बात शब्दों के ऐसे उच्चारणों पर भी लागू होती है जो आजकल इस्तेमाल में नहीं हैं। इससे सुननेवालों का ध्यान भाषण पर नहीं बल्कि भाषण देनेवाले पर ज़्यादा जाता है। दूसरी तरफ, बातचीत और उच्चारण के संबंध में बिलकुल लापरवाह भी नहीं होना चाहिए। इनमें से कुछ मुद्दों पर “शब्द साफ-साफ बोलना” अध्याय में चर्चा की जा चुकी है।
एक ही भाषा के शब्दों का उच्चारण अलग-अलग देशों में अलग-अलग ढंग से किया जाता है। यहाँ तक कि एक ही देश के अलग-अलग प्रांतों में अलग-अलग तरीके से किया जाता है। किसी प्रांत की भाषा जब दूसरे देश का रहनेवाला बोलता है, तो उसके बोलने का लहज़ा अलग हो सकता है। कुछ भाषाओं के शब्दकोश में भी शायद एक शब्द के कई सही उच्चारण दिए गए हों। खासकर जब एक इंसान ज़्यादा पढ़ा-लिखा न हो या जो भाषा वह अब बोलता है, वह उसकी मातृभाषा न हो, तो वह उन लोगों की बातचीत पर ध्यान दे सकता है जो यह भाषा अच्छी तरह बोलते हैं। उनके बोलने के तरीके पर ध्यान देकर, वह अपने उच्चारण में सुधार कर सकता है। हम यहोवा के साक्षी इस तरीके से बात करना चाहते हैं कि हमारे संदेश की शोभा बढ़े और हमारे इलाके के लोग इसे अच्छी तरह समझ सकें।
रोज़मर्रा की बातचीत में ऐसे शब्द इस्तेमाल करना बेहतर होगा जिनसे आप अच्छी तरह वाकिफ हों। आम बातचीत में उच्चारण कोई बड़ी समस्या नहीं होती। लेकिन जब आप ज़ोर से पढ़ते हैं, तो आपको ऐसे शब्द मिलेंगे जिन्हें आप हर रोज़ इस्तेमाल नहीं करते। यहोवा के साक्षियों को पढ़कर सुनाने के कई मौके मिलते हैं। जब हम लोगों को गवाही देते हैं, तब हम उन्हें बाइबल पढ़कर सुनाते हैं। कुछ भाइयों को प्रहरीदुर्ग अध्ययन या कलीसिया पुस्तक अध्ययन के दौरान पैराग्राफ पढ़ने के लिए कहा जाता है। इसलिए ज़रूरी है कि हम सही-सही पढ़ें, और गलत उच्चारण करके परमेश्वर के संदेश का गौरव कम ना करें।
क्या आपको अँग्रेज़ी बाइबल में कुछ लोगों के नामों का उच्चारण करना मुश्किल लगता है? अँग्रेज़ी भाषा के एक सिलेबल यानी शब्द के एक भाग के बाद बल-चिन्ह (ʹ) दिया होता है जिससे पता चलता है कि शब्द के इस हिस्से पर सबसे ज़्यादा ज़ोर दिया जाना चाहिए। अगर शब्द का यह हिस्सा अँग्रेज़ी के किसी स्वर यानी वॉवल (a, e, i, o, u) से खत्म होता है, तो इस वॉवल पर ज़्यादा ज़ोर दिया जाना चाहिए। लेकिन अगर शब्द का यह भाग किसी व्यंजन (जैसे, b, c, d, f वगैरह) से खत्म होता है, तो व्यंजन के बीच के स्वरों पर ज़्यादा ज़ोर नहीं दिया जाता है। जब दो स्वर जैसे a और i साथ-साथ आते हैं (जैसे Morʹde·cai और Siʹnai में), तब ai को एआई पढ़ने के बजाय लंबा आई पढ़ा जाता है। इसके अलावा, ch का उच्चार ज़्यादातर क किया जाता है (जैसे, Mel·chizʹe·dek में)। सिर्फ रेचल (Rachel) नाम में ch का च उच्चारण किया जाता है।
उच्चारण सुधारने के तरीके। जिन लोगों को उच्चारण की समस्या होती है, दरअसल उनमें से कइयों को अपनी इस कमज़ोरी का एहसास नहीं होता। अगर आपका स्कूल ओवरसियर आपको बताता है कि आपको उच्चारण में कहाँ-कहाँ सुधार करने की ज़रूरत है, तो उसकी प्यार-भरी सलाह की कदर कीजिए। जब आपको अपनी कमज़ोरी का पता चल जाता है, तब आप सुधार करने के लिए क्या कर सकते हैं?
सबसे पहले, जब आपको पढ़कर सुनाने का भाग सौंपा जाता है, तब वक्त निकालकर किसी शब्दकोश की मदद लीजिए। कई भाषाओं में ऐसे शब्दकोश होते हैं जिनमें शब्दों की वर्तनी, सही उच्चारण और मतलब दिया होता है। अगर आपकी भाषा में ऐसा शब्दकोश है, तो आप उसमें ऐसे शब्द देख सकते हैं जिनसे आप वाकिफ नहीं हैं। अगर आपको शब्दकोश देखने का तजुर्बा नहीं है, तो इसके शुरूआती पेज देखिए जहाँ बताया जाता है कि शब्दकोश में जो चिन्ह इस्तेमाल किए गए हैं, उनका क्या मतलब है। अगर ज़रूरत पड़े तो किसी दूसरे से कहिए कि वह आपको शब्दकोश में लिखी बातें समझाए। अँग्रेज़ी शब्दकोश में दिए चिन्हों से आप जान सकते हैं कि एक लंबे शब्द में कहाँ कम ज़ोर देना है, कहाँ ज़्यादा। इससे आपको यह भी मालूम पड़ेगा कि एक शब्द के स्वरों और व्यंजनों का किस स्वर के साथ उच्चारण किया जाता है। कई बार, अलग-अलग संदर्भ में एक ही शब्द का कई तरीकों से उच्चारण किया जा सकता है। आप शब्दकोश में कोई भी शब्द क्यों न देखें, उसे कई बार बोल-बोलकर पढ़ने का अभ्यास कीजिए।
उच्चारण में सुधार लाने का दूसरा तरीका है, किसी दूसरे के सामने पढ़कर सुनाना, खासकर उसके सामने जो सही उच्चारण जानता हो और फिर उससे आपकी गलतियाँ सुधारने को कहिए।
तीसरा तरीका है, अच्छे वक्ताओं पर ध्यान देना। अगर आपकी भाषा में न्यू वर्ल्ड ट्रांस्लेशन बाइबल या प्रहरीदुर्ग और सजग होइए! के ऑडियोकैसेट उपलब्ध हों, तो उन्हें सुनिए। सुनते वक्त ऐसे शब्द नोट कीजिए, जिनका उच्चारण, आपके उच्चारण के तरीके से अलग है। इन उच्चारणों को लिख लीजिए और उनका अभ्यास कीजिए। समय आने पर, आपकी बातचीत में गलत उच्चारण नहीं होगा और इससे आपकी बोली में निखार आएगा।