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“सम्पूर्ण पवित्रशास्त्र” सच्चा और फायदेमंद (2 इतिहास–यशायाह)
bsi06 पेज 11-14

बाइबल की किताब नंबर 18—अय्यूब

लेखक: मूसा

लिखने की जगह: वीराना

लिखना पूरा हुआ: लगभग सा.यु.पू. 1473

कब से कब तक का ब्यौरा: सा.यु.पू. 1657 और 1473 के बीच, 140 साल से ज़्यादा

यह किताब ईश्‍वर-प्रेरित शास्त्र की सबसे पुरानी किताबों में से एक है! यह एक ऐसी किताब है जिसका बहुत सम्मान किया जाता है, बार-बार इसके हवाले दिए जाते हैं, मगर बहुत कम ऐसे हैं जो इसे सही-सही समझते हैं। इस किताब को लिखने का मकसद क्या था और आज हमारे लिए इसकी क्या अहमियत है? जवाब हमें अय्यूब नाम का मतलब जानने पर मिलता है: “दुश्‍मनी का शिकार।” जी हाँ, इस किताब में दो अहम सवाल उठाए गए हैं: बेकसूरों को ज़िंदगी में दुःख क्यों झेलने पड़ते हैं? परमेश्‍वर इस धरती पर बुराई को रहने की इजाज़त क्यों देता है? इन सवालों के जवाब हमें अय्यूब की ज़िंदगी से मिलते हैं, जिसने बड़ी-बड़ी मुसीबतों को सहते हुए भी धीरज धरने में एक उम्दा मिसाल कायम की। अय्यूब की पूरी दास्तान इस किताब में दर्ज़ की गयी है, ठीक जैसे उसने गुज़ारिश की थी।—अय्यू. 19:23, 24.

2 अय्यूब का नाम लेते ही सब्र और धीरज की ज़िंदा तसवीर आँखों के सामने उभर आती है। मगर क्या अय्यूब नाम का यह शख्स सचमुच कभी अस्तित्त्व में था? शैतान ने इतिहास के पन्‍नों से, खराई की इस उम्दा मिसाल का नामो-निशान मिटाने के लिए एड़ी-चोटी का ज़ोर लगाकर कोशिश की थी। मगर, सच्चाई हमारे सामने मौजूद है। अय्यूब एक असली शख्स था! यहोवा ने उसका नाम नूह और दानिय्येल जैसे साक्षियों के साथ लिया, जिनके वजूद की सच्चाई खुद यीशु मसीह ने भी कबूल की थी। (यहे. 14:14, 20. मत्ती 24:15, 37 तुलना कीजिए।) पुराने ज़माने के इब्री लोग अय्यूब को एक असली शख्स मानते थे। मसीही लेखक याकूब ने भी धीरज की मिसाल देने के लिए अय्यूब का ज़िक्र किया था। (याकू. 5:11) सिर्फ एक असली शख्स की मिसाल ही परमेश्‍वर के उपासकों को यकीन दिला सकती थी कि इंसान हर हाल में परमेश्‍वर का वफादार रह सकता है। अगर अय्यूब का किरदार काल्पनिक होता, तो उसकी मिसाल देना बेमायने होता। यही नहीं, अय्यूब की किताब में लिखे लंबे संवादों में जिस ज़बरदस्त अंदाज़ में गहरी भावनाएँ ज़ाहिर की गयी हैं, वह दिखाता है कि यह एक सच्ची कहानी है।

3 अय्यूब की किताब के सच्चे और ईश्‍वर-प्रेरित होने का एक और सबूत यह है कि प्राचीन इब्री लोगों ने हमेशा इसे बाइबल संग्रह का एक हिस्सा माना था, बावजूद इसके कि अय्यूब खुद एक इस्राएली नहीं था। यहेजकेल और याकूब के अलावा, प्रेरित पौलुस ने भी इस किताब का हवाला दिया है। (अय्यू. 5:13; 1 कुरि. 3:19) इस किताब के ईश्‍वर-प्रेरित होने का ज़बरदस्त सबूत यह है कि इसमें बतायी कुछ बातों का, विज्ञान की साबित की गयी सच्चाइयों के साथ हैरतअँगेज़ तालमेल है। इस किताब का लेखक कैसे जान सकता था कि यहोवा “बिना टेक पृथ्वी को लटकाए रखता है,” जबकि पृथ्वी किस पर टिकी है इस बारे में उस ज़माने के लोग बहुत ही अजीबो-गरीब धारणाएँ रखते थे? (अय्यू. 26:7) एक धारणा यह थी कि पृथ्वी को हाथी उठाए हुए हैं और वे हाथी, सागर में तैरनेवाले एक बड़े कछुए पर खड़े हैं। मगर अय्यूब की किताब ऐसी बेसिर-पैर की धारणाएँ क्यों नहीं बताती? ज़ाहिर है कि सारे जहान को बनानेवाले यहोवा ने खुद लेखक को सच्चाई लिखने को प्रेरित किया था। इस धरती और इसमें पायी जानेवाली अद्‌भुत रचनाओं के बारे में, जंगली जानवरों और पंछियों और उनके रहने की जगह के बारे में जो ढेरों जानकारियाँ दी गयी हैं, वे इतनी सही हैं कि सिर्फ यहोवा परमेश्‍वर ही अय्यूब की इस किताब का रचयिता और इसे लिखने की प्रेरणा देनेवाला हो सकता था।a

4 अय्यूब ऊज़ देश का रहनेवाला था। भूगोल का अध्ययन करनेवाले कुछ लोगों के मुताबिक यह देश, उत्तरी अरब में एदोमियों के देश के पास और इब्राहीम की संतान से वादा किए गए देश के पूर्व में था। शबा के लोग दक्षिण में थे और कसदी पूर्व में। (1:1, 3, 15, 17) अय्यूब की परीक्षा का यह दौर, इब्राहीम के ज़माने के काफी वक्‍त बाद का था। यह ऐसा वक्‍त था जब “[अय्यूब] के तुल्य खरा और सीधा . . . मनुष्य और कोई नहीं” था। (1:8) ऐसा लगता है कि तब तक विश्‍वास की अनोखी मिसाल रखनेवाले यूसुफ की (सा.यु.पू. 1657 में) मौत हो चुकी थी और खराई के रास्ते पर चलनेवाला मूसा तब तक नहीं हुआ था। इस दौरान इस्राएली, मिस्र में दुष्टात्माओं की उपासना से दूषित हो चुके थे, जबकि अय्यूब शुद्ध उपासना करने में एक आदर्श था। इन सबके अलावा, अय्यूब के पहले अध्याय में बतायी रीतियाँ और परमेश्‍वर का अय्यूब को अपना सच्चा उपासक कबूल करना, यह सब दिखाता है कि अय्यूब का किस्सा कुलपिताओं के ज़माने का है। यह सा.यु.पू. 1513 से शुरू होनेवाले दौर का नहीं हो सकता, क्योंकि तब से परमेश्‍वर सिर्फ मूसा की व्यवस्था पर चलनेवाले इस्राएलियों को ही अपनी खास जाति मानता था। (आमो. 3:2; इफि. 2:12) इसलिए, अय्यूब की लंबी उम्र को ध्यान में रखते हुए ऐसा जान पड़ता है कि इस किताब में सा.यु.पू. 1657 और मूसा की मौत के साल यानी सा.यु.पू. 1473 के बीच हुई घटनाओं की जानकारी है। मूसा ने अय्यूब के गुज़र जाने के बाद इस किताब को लिखना पूरा किया था और उस वक्‍त इस्राएली वीराने में थे।—अय्यू. 1:8; 42:16, 17.

5 हम क्यों कहते हैं कि मूसा इस किताब का लेखक था? यहूदी और मसीही विद्वान शुरू से ही मानते आए हैं कि मूसा ही इस किताब का लेखक था। अय्यूब की किताब में, जानदार शब्दों और जानी-मानी इब्रानी शैली में जो कविताएँ लिखी हैं, वे साफ दिखाती हैं कि यह किताब शुरू में इब्रानी भाषा में ही लिखी गयी थी जो मूसा की भाषा थी। ऐसा नहीं हो सकता कि यह किताब अरबी या किसी और भाषा में लिखी गयी हो और फिर इब्रानी में इसका अनुवाद किया गया हो। कविताओं के अलावा किताब के बाकी हिस्से की भाषा भी, मूसा की लिखी पहली पाँच किताबों की भाषा से बहुत मिलती है, न कि बाइबल की दूसरी किताबों से। इसका लेखक ज़रूर एक इस्राएली रहा होगा। यह इसलिए कहा जा सकता है क्योंकि बाइबल बताती है कि यहूदियों को ही “परमेश्‍वर के वचन . . . सौंपे गए” थे। (रोमि. 3:1, 2) मूसा एक इस्राएली ही था। उसने बालिग होने के बाद 40 साल मिद्यान देश में बिताए, जो ऊज़ देश के पास था। वहाँ उसे अय्यूब के बारे में ब्यौरेदार जानकारी मिली होगी। बाद में, जब इस्राएली 40 साल वीराने में घूम रहे थे, तब वे अय्यूब के वतन के पास से गुज़रे होंगे और उस वक्‍त मूसा ने इस किताब के आखिर में लिखी जानकारी का पता करके इसे दर्ज़ किया होगा।

6 द न्यू इनसाइक्लोपीडिया ब्रिटैनिका के मुताबिक, अकसर अय्यूब की किताब का “शुमार दुनिया के सर्वश्रेष्ठ साहित्य में होता है।”b मगर यह किताब सिर्फ एक अनमोल साहित्य ही नहीं है। बाइबल की किताबों में अय्यूब की किताब अपने आप में अनोखी है, क्योंकि यह बड़े ही लाजवाब ढंग से यहोवा की शक्‍ति, बुद्धि, उसके न्याय और प्रेम की महिमा दिखाती है। इस किताब में साफ-साफ बताया है कि सारे जहान के आगे सबसे बड़ा मसला कौन-सा है। यह किताब बाइबल की दूसरी किताबों में लिखी बातों की ज़्यादा अच्छी समझ देती है, खासकर उत्पत्ति, निर्गमन, सभोपदेशक, लूका, रोमियों और प्रकाशितवाक्य की। (अय्यूब 1:6-12; 2:1-7 की तुलना उत्पत्ति 3:15; निर्गमन 9:16; लूका 22:31, 32; रोमियों 9:16-19 और प्रकाशितवाक्य 12:9 से कीजिए; साथ ही अय्यूब 1:21; 24:15; 21:23-26; 28:28 को सभोपदेशक 5:15; 8:11; 9:2, 3; 12:13 से मिलाइए।) यह किताब ज़िंदगी के कई अहम सवालों के जवाब देती है। यह परमेश्‍वर के ईश्‍वर-प्रेरित वचन का एक बेहद ज़रूरी हिस्सा है और उसकी सही समझ पाने में हमारी बहुत मदद करती है।

क्यों फायदेमंद है

39 अय्यूब की किताब यहोवा की महिमा बखान करती है और उसकी अथाह बुद्धि और बेमिसाल शक्‍ति का सबूत देती है। (12:12, 13; 37:23) इस एक किताब में, परमेश्‍वर को 31 बार सर्वशक्‍तिमान कहा गया है। बाइबल की किसी और किताब में उसे इतनी बार सर्वशक्‍तिमान नहीं कहा गया है। इस किताब में उसके सनातन होने और सबसे महान होने की बड़ाई की गयी है (10:5; 36:4, 22, 26; 40:2; 42:2), साथ ही उसके न्याय, उसकी निरंतर प्रेम-कृपा और दया का बखान किया गया है (36:5-7; 10:12; 42:12)। यह किताब दिखाती है कि इंसान के उद्धार से ज़्यादा यहोवा के नाम पर लगे कलंक का मिटाया जाना ज़्यादा ज़रूरी है। (33:12; 34:10, 12; 35:2; 36:24; 40:8) इस्राएल के परमेश्‍वर यहोवा को अय्यूब का भी परमेश्‍वर बताया गया है।

40 अय्यूब की किताब, परमेश्‍वर के सृष्टि के कामों की बड़ाई करती है और उनका ब्यौरा देती है। (38:4–39:30; 40:15, 19; 41:1; 35:10) इसमें दिया रिकॉर्ड उत्पत्ति में लिखी इस बात से मेल खाता है कि इंसान मिट्टी से बनाया गया है और मौत के बाद मिट्टी में ही मिल जाता है। (अय्यू. 10:8, 9; उत्प. 2:7; 3:19) इसमें इस्तेमाल किए गए शब्द “छुड़ानेवाला,” “छुड़ौती” और “फिर जीवित होगा” उन शिक्षाओं की झलक देते हैं, जिन पर बाद में मसीही यूनानी शास्त्र में खास ज़ोर दिया गया है। (अय्यू. 19:25; 33:24; 14:13, 14) कई भविष्यवक्‍ताओं और मसीही लेखकों ने इस किताब के शब्दों का या तो हवाला दिया या फिर इसमें बताए विचारों को अलग तरीके से ज़ाहिर किया। इसकी मिसालें आपको इन आयतों में मिलेंगी, अय्यूब 7:17—भजन 8:4; अय्यूब 9:24—1 यूहन्‍ना 5:19; अय्यूब 10:8—भजन 119:73; अय्यूब 12:25—व्यवस्थाविवरण 28:29; अय्यूब 24:23—नीतिवचन 15:3; अय्यूब 26:8—नीतिवचन 30:4; अय्यूब 28:12, 13, 15-19—नीतिवचन 3:13-15; अय्यूब 39:30—मत्ती 24:28.c

41 इस किताब के कई हिस्सों में यहोवा के धर्मी स्तरों के बारे में बताया गया है जिनके मुताबिक एक इंसान को जीना चाहिए। यह किताब इन बुराइयों की कड़े शब्दों में निंदा करती है जैसे, पैसे का लोभ (अय्यू. 31:24, 25) मूर्तिपूजा (31:26-28), व्यभिचार (31:9-12), दूसरे का दुःख देखकर खुश होना (31:29), अन्याय और पक्षपात करना (31:13; 32:21), स्वार्थ (31:16-21) बेईमानी और झूठ बोलना (31:5)। इससे पता चलता है कि जो लोग ऐसे कामों से बाज़ नहीं आते, वे परमेश्‍वर का अनुग्रह और हमेशा की ज़िंदगी नहीं पा सकते। यह किताब हमें एलीहू की बढ़िया मिसाल के बारे में भी बताती है। उसके स्वभाव में गहरे आदर और मर्यादा के साथ-साथ हिम्मत, दिलेरी और परमेश्‍वर की महिमा करने की चाहत साफ नज़र आती है। (32:2, 6, 7, 9, 10, 18-20; 33:6, 33) खुद अय्यूब ने भी जिस तरह मुखियापन की ज़िम्मेदारी निभायी, अपने परिवार के लिए लिहाज़ दिखाया और दूसरों की मेहमाननवाज़ी की, वह हमारे लिए एक बढ़िया सबक है। (1:5; 2:9, 10; 31:32) लेकिन, अय्यूब सबसे ज़्यादा अपनी खराई बनाए रखने और सब्र के साथ धीरज धरते रहने के लिए याद किया जाता है। उसकी मिसाल सदियों से परमेश्‍वर के सेवकों का विश्‍वास मज़बूत करती आयी है। खासकर आज के इस मुश्‍किल वक्‍त में जब हमारे विश्‍वास की कठिन परीक्षा होती है, उसकी मिसाल हमें ज़बरदस्त प्रेरणा देती है। बाइबल कहती है: “तुम ने ऐयूब के धीरज के विषय में तो सुना ही है, और प्रभु की ओर से जो उसका प्रतिफल हुआ उसे भी जान लिया है, जिस से प्रभु की अत्यन्त करुणा और दया प्रगट होती है।”—याकू. 5:11.

42 अय्यूब, इब्राहीम के वंश से नहीं था जिसके साथ राज्य का वादा किया गया था, फिर भी अय्यूब की खराई का यह रिकॉर्ड, हमें परमेश्‍वर के राज्य के मकसदों के बारे में काफी हद तक साफ समझ देता है। यह किताब, परमेश्‍वर की प्रेरणा से दर्ज़ की गयी बाइबल का एक अहम हिस्सा है, क्योंकि इसमें परमेश्‍वर और शैतान के बीच उठे एक बुनियादी मसले के बारे में बताया गया है। मसला यह है कि क्या इंसान, यहोवा को अपना महाराजा और मालिक मानकर उसका वफादार बना रहेगा। यह किताब दिखाती है कि स्वर्गदूत, जिन्हें पृथ्वी और इंसान से पहले बनाया गया था, उनका भी ध्यान इस धरती पर लगा हुआ है कि जो मसले उठाए गए हैं उनका क्या नतीजा निकलेगा। (अय्यू. 1:6-12; 2:1-5; 38:6, 7) इस किताब से पता चलता है कि यह मसला अय्यूब के दिनों से पहले ही उठाया गया था और शैतान एक आत्मिक प्राणी के रूप में सचमुच वजूद में है। अगर अय्यूब की किताब का लेखक सचमुच मूसा था तो यह कहना सही होगा कि इब्रानी पाठ में अय्यूब की किताब में ही पहली बार इब्‌लीस के लिए शब्द हासशैतान इस्तेमाल हुआ है। इससे शास्त्र में उस ‘पुराने सांप,’ की पहचान और साफ की गयी है। (अय्यू. 1:6, NW, फुटनोट; प्रका. 12:9) इस किताब से यह भी सबूत मिलता है कि परमेश्‍वर इंसान की दुःख-तकलीफों, बीमारियों और मौत के लिए ज़िम्मेदार नहीं है। इसमें यह भी समझाया गया है कि धर्मी क्यों सताए जाते हैं और दुष्टों को बुराई करने की इजाज़त क्यों दी गयी है। यह किताब दिखाती है कि यहोवा जल्द-से-जल्द इस मसले को उस मुकाम तक लाना चाहता है जब यह हमेशा-हमेशा के लिए हल कर दिया जाएगा।

43 अभी वह समय है कि परमेश्‍वर के राज्य में जीने की तमन्‍ना रखनेवाले, खराई की ज़िंदगी जीएँ और इस तरह उस ‘दोष लगानेवाले’ शैतान के इलज़ामों का जवाब दें। (प्रका. 12:10, 11) खराई पर चलनेवालों को शायद ‘ऐसे दुख’ सहने पड़ें कि उन्हें “अचम्भा” हो। मगर ऐसे में भी उन्हें लगातार यह प्रार्थना करनी चाहिए कि परमेश्‍वर का नाम पवित्र किया जाए, उसका राज्य आए, शैतान को हटाया जाए और हमें सतानेवाले उसके वंश का नामो-निशान मिटाया जाए। यह सब परमेश्‍वर के ‘युद्ध और लड़ाई के दिन’ होगा, जिसके बाद सुख-चैन और ऐसी आशीषें मिलेंगी जिन्हें पाने की अय्यूब ने भी आस देखी थी।—1 पत. 4:12; मत्ती 6:9, 10; अय्यू. 38:23; 14:13-15.

[फुटनोट]

a इंसाइट ऑन द स्क्रिप्चर्स्‌, भाग 1, पेज 280-1, 663, 668, 1166; भाग 2, पेज 562-3.

b सन्‌ 1987, भाग 6, पेज 562.

c इंसाइट ऑन द स्क्रिप्चर्स्‌, भाग 2, पेज 83.

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