बाइबल की किताब नंबर 53—2 थिस्सलुनीकियों
लेखक: पौलुस
लिखने की जगह: कुरिन्थुस
लिखना पूरा हुआ: लगभग सा.यु. 51
थिस्सलुनीके की कलीसिया को प्रेरित पौलुस की पहली पत्री मिलने के कुछ समय बाद उसकी दूसरी पत्री भी मिलती है। पौलुस ने यह पत्री अपनी पहली पत्री के तुरंत बाद कुरिन्थुस शहर से ही लिखी थी। हम ऐसा इसलिए कह सकते हैं, क्योंकि पहली पत्री की तरह इसमें भी पौलुस के साथ-साथ सिलवानुस और तीमुथियुस अपनी शुभकामनाएँ भेजते हैं। ये सभी भाई पहली सदी में मसीही कलीसिया के सफरी सेवक थे। और बाइबल में कहीं यह रिकॉर्ड नहीं मिलता कि इन तीनों ने कुरिन्थुस में इकट्ठे सेवा करने के बाद दोबारा कभी साथ मिलकर सेवा की हो। (प्रेरि. 18:5, 18; 2 थिस्स. 1:1) दूसरी पत्री में पौलुस ने जिस विषय और जिन मुद्दों पर चर्चा की, उससे मालूम होता है कि कलीसिया में एक गलत धारणा फैली हुई थी और पौलुस ने उसे तुरंत रोकना ज़रूरी समझा।
2 पहली पत्री की तरह इस दूसरी पत्री के सच होने के भी कई पुख्ता सबूत मौजूद हैं। जैसे, (सा.यु. दूसरी सदी के) आइरीनियस और शुरू के दूसरे लेखकों ने इस पत्री से हवाला दिया। इनमें से एक लेखक (आइरीनियस के ज़माने का) जस्टिन मार्टर था, जिसने “अधर्म [पाप] के पुरुष” के बारे में लिखते वक्त 2 थिस्सलुनीकियों 2:3 का ज़िक्र किया। इसके अलावा, जिन प्राचीन सूचियों में पहला थिस्सलुनीकियों का नाम आता है, उनमें इसकी दूसरी पत्री का भी नाम आता है। चेस्टर बीटी पपाइरस नं. 2 (P46) में दूसरा थिस्सलुनीकियों नहीं पाया जाता। मगर इसमें कोई शक नहीं कि इस पपाइरस में पहले थिस्सलुनीकियों के बाद के जो सात पन्ने गायब हैं, उनमें से दो पन्ने इसी दूसरी पत्री के होंगे।
3 दूसरा थिस्सलुनीकियों किस मकसद से लिखा गया था? दरअसल थिस्सलुनीके की कलीसिया में एक समस्या पैदा हुई थी। जब पौलुस की पहली पत्री कलीसिया में पढ़कर सुनायी गयी, जिसमें उसने प्रभु की उपस्थिति का ज़िक्र किया था, तो कुछ लोगों ने उसके शब्दों को तोड़-मरोड़कर उनका गलत मतलब निकाला। वे यह दावा करने लगे कि प्रभु की उपस्थिति बहुत जल्द शुरू होनेवाली है। यही नहीं, वे इस धारणा का बढ़-चढ़कर प्रचार भी करने लगे और इस वजह से कलीसिया में बड़ी खलबली मच गयी। ऐसा भी मालूम होता है कि कुछ लोग इस धारणा के बहाने काम-धंधा करने से जी चुराने लगे। (2 थिस्स. 3:11) और-तो-और, यह गलत बात भी फैलायी जा रही थी कि पौलुस ने एक और पत्री लिखी है, जिससे इशारा मिलता है कि “प्रभु का दिन आ पहुंचा है।”—2:1, 2.
4 पौलुस को इस समस्या की खबर शायद उसी व्यक्ति से मिली थी, जिसने उसकी पहली पत्री थिस्सलुनीके की कलीसिया को पहुँचायी थी। इसलिए वह उन भाइयों की सोच दुरुस्त करने के लिए बेताब था, जिनसे उसे खास लगाव था। तभी सा.यु. 51 में, उसने कुरिन्थुस शहर से इस कलीसिया को अपनी दूसरी पत्री भेजी। इस पत्री के ज़रिए पौलुस ने न सिर्फ मसीह की उपस्थिति के बारे में उनकी गलत सोच सुधारी, बल्कि उन्हें सच्चाई में स्थिर रहने का बढ़ावा भी दिया।
क्यों फायदेमंद है
10 ईश्वर-प्रेरणा से लिखी गयी यह छोटी-सी पत्री मसीही सच्चाई के अलग-अलग पहलुओं पर चर्चा करती है। और इन पर ध्यान देना हमारे लिए फायदेमंद है। गौर कीजिए कि इसमें किन बुनियादी शिक्षाओं और उसूलों पर चर्चा की गयी है: यहोवा उद्धार का परमेश्वर है और वह मसीहियों को पवित्र शक्ति से और सच्चाई पर विश्वास करने की वजह से पवित्र ठहराता है; (2:13); परमेश्वर के राज्य के योग्य ठहरने के लिए हर मसीही को दुःख उठाना ज़रूरी है (1:4, 5); प्रभु यीशु मसीह की उपस्थिति में मसीहियों को उसके पास इकट्ठा किया जाएगा (2:1); यहोवा सच्चा न्याय करेगा और सुसमाचार न माननेवालों पर न्यायदंड लाएगा (1:5-8); जो लोग बुलाए गए हैं, वे परमेश्वर की अपार कृपा के अनुसार मसीह यीशु के साथ महिमा पाएँगे (1:12); उन्हें सुसमाचार के प्रचार के ज़रिए बुलाया गया है (2:14); विश्वास का होना बेहद ज़रूरी है (1:3, 4, 10, 11; 2:13; 3:2); मसीहियों को अपने गुज़ारे के लिए काम करना चाहिए; अगर कोई काम नहीं करता, तो वह आलसी बन सकता है और दूसरों के मामलों में टाँग अड़ाने लग सकता है (3:8-12); परमेश्वर से प्रेम करने का धीरज के साथ गहरा नाता है (3:5)। वाह! इस एक पत्री में हौसला बढ़ानेवाली जानकारी का क्या ही भंडार पाया जाता है!
11 पौलुस की पत्री इस बात का सबूत है कि उसे थिस्सलुनीके के भाइयों की आध्यात्मिक खैरियत की साथ ही, कलीसिया की एकता और खुशहाली की सच्ची परवाह थी। यहोवा का दिन कब आएगा, इस बारे में उसने उनका नज़रिया ठीक किया। उसने बताया कि उस दिन के आने से पहले ‘अधर्म के पुरुष’ (नयी हिन्दी बाइबिल) का आना ज़रूरी है, जो ‘परमेश्वर के मन्दिर में बैठकर अपने आप को परमेश्वर प्रगट करेगा।’ मगर जो लोग ‘परमेश्वर के राज्य के योग्य ठहरते हैं,’ वे इस बात का भरोसा रख सकते हैं कि प्रभु यीशु अपने ठहराए वक्त पर धधकती हुई आग में पलटा लेने के लिए स्वर्ग से प्रकट होगा। उस दिन “वह अपने पवित्र लोगों में महिमा पाने, और सब विश्वास करनेवालों में आश्चर्य का कारण होने को आएगा।”—1:5, 10; 2:3, 4.