बाइबल की किताब नंबर 54—1 तीमुथियुस
लेखक: पौलुस
लिखने की जगह: मकिदुनिया
लिखना पूरा हुआ: लगभग सा.यु. 61-64
प्रेरितों की किताब के आखिर में लूका हमें बताता है कि पौलुस रोम में एक भाड़े के घर में रहता था, जहाँ उसे नज़रबंद किया गया था। पौलुस ने कैसर से अपील की थी और उसका जवाब मिलने तक उसे वहीं रहना था। लेकिन उसे काफी आज़ादी थी, क्योंकि लोग उससे मिलने आ सकते थे और वह उनसे “बिना रोक टोक बहुत निडर होकर” परमेश्वर के राज्य के बारे में प्रचार कर सकता था। (प्रेरि. 28:30, 31) मगर तीमुथियुस को लिखी अपनी दूसरी पत्री में पौलुस कहता है: “मैं कुकर्मी की नाईं दुख उठाता हूं, यहां तक कि कैद भी हूं।” वह यह भी बताता है कि उसकी मौत करीब है। (2 तीमु. 2:9; 4:6-8) जब पौलुस नज़रबंद था, तो उसके साथ अच्छा सलूक किया गया। लेकिन दूसरा तीमुथियुस में हम एक बदलाव देखते हैं कि उसके साथ एक खतरनाक अपराधी की तरह बर्ताव किया जा रहा था। लूका ने पौलुस के बारे में अपना ब्यौरा सा.यु. 61 में लिखा था, जब पौलुस को रोम में रहते हुए दो साल बीत चुके थे। दूसरी तरफ, पौलुस ने तीमुथियुस को ऊपर लिखी बात अपनी मौत से कुछ वक्त पहले लिखी थी। इस बीच क्या हुआ?
2 प्रेरितों की किताब में जिस समय और घटनाओं का ज़िक्र किया गया है, उस दौरान तीमुथियुस और तीतुस के नाम पौलुस की पत्रियों के लिखे जाने की गुंजाइश कम लगती है। इस वजह से बाइबल के कुछ टीकाकार मानते हैं कि कैसर ने पौलुस की अपील सुनी और उसे शायद सा.यु. 61 में रिहा कर दिया। द न्यू वेस्टमिन्स्टर डिक्शनरी ऑफ द बाइबल कहती है: “प्रेरितों की किताब की आखिरी आयत इस बात से ज़्यादा मेल खाती है [कि पौलुस को दो साल की कैद के बाद रिहा कर दिया गया] न कि इस धारणा से कि कैद के दौरान पौलुस को दोषी पाया गया और उसे मौत के घाट उतार दिया गया। लूका इस बात पर ज़ोर देता है कि पौलुस के काम पर किसी तरह की रोक-टोक नहीं थी। बेशक इससे यह इशारा मिलता है कि उसका प्रचार काम अभी खत्म नहीं हुआ था।”a तो फिर, पहला तीमुथियुस को सा.यु. 61-64 के दरमियान लिखा गया था। यानी पौलुस के पहली बार कैद से छुड़ाए जाने से लेकर आखिरी बार कैद किए जाने तक।
3 रिहा होने के बाद, पौलुस ने शायद तीमुथियुस और तीतुस के साथ अपना मिशनरी काम दोबारा शुरू किया था। कुछ लोग दावा करते हैं कि पौलुस स्पेन तक गया, मगर यह बात पक्की नहीं। रोम के क्लैमेंट ने (लगभग सा.यु. 95 में) लिखा कि पौलुस “पश्चिम की छोर तक” गया था और शायद इसमें स्पेन भी शामिल था।b
4 पौलुस ने किस जगह से तीमुथियुस को अपनी पहली पत्री लिखी? पहला तीमुथियुस 1:3 से पता चलता है कि पौलुस, इफिसुस कलीसिया के कुछ मामले निपटाने के लिए तीमुथियुस को वहाँ छोड़कर खुद मकिदुनिया चला गया था। ऐसा मालूम होता है कि उसने मकिदुनिया से तीमुथियुस को यह पत्री लिखी थी जो अभी-भी इफिसुस में था।
5 प्राचीन समय से यह माना जाता है कि पहला और दूसरा तीमुथियुस पौलुस की ही पत्रियाँ हैं और ईश्वर-प्रेरित शास्त्र का हिस्सा हैं। पॉलिकार्प, इग्नेशीअस और रोम के क्लैमेंट जैसे शुरू के मसीही लेखकों का भी यही मानना था। यही नहीं, शुरू की कुछ सदियों की सूचियों में पहला और दूसरा तीमुथियुस, पौलुस की पत्रियों में शामिल किए गए थे। तीमुथियुस को लिखी पत्रियों के बारे में एक विद्वान कहता है: “इनकी सच्चाई के जितने दमदार सबूत मौजूद हैं, उतने शायद ही नए नियम की किसी और किताब के हों। . . . शुरू की कलीसिया को इन पत्रियों की सच्चाई पर ज़रा-भी शक नहीं था, इसलिए इन पर जो भी सवाल खड़े किए गए हैं, वे हाल ही की उपज हैं।”c
6 पहला तीमुथियुस लिखने की पौलुस के पास कई वजह थीं। उसने तीमुथियुस को समझाया कि संगठन के तौर-तरीकों के मुताबिक कलीसिया को कैसे चलाया जाना चाहिए। पौलुस ने उसे चिताया कि वह झूठी शिक्षाओं से खबरदार रहे और भाइयों को मज़बूत करे, ताकि वे “मिथ्या ज्ञान” को ठुकरा सकें। (1 तीमु. 6:20, ईज़ी-टू-रीड वर्शन) इफिसुस एक फलता-फूलता शहर था और ऐसे में “रुपए का लोभ” करने और ऐशो-आराम की चीज़ों के पीछे भागने का खतरा था। इसलिए पौलुस ने इस मामले पर भी सलाह देना ज़रूरी समझा। (6:10) बेशक पौलुस की हिदायतों के मुताबिक काम करने के लिए तीमुथियुस को बढ़िया तालीम मिली थी और उसके पास तजुरबा भी था। तीमुथियुस के बारे में हम क्या जानते हैं? उसका पिता एक यूनानी था और उसकी माँ परमेश्वर का भय माननेवाली एक यहूदिन थी। यह ठीक-ठीक नहीं बताया जा सकता कि तीमुथियुस ने पहली बार कब मसीही धर्म के बारे में जाना था। मगर हम इतना ज़रूर जानते हैं कि जब पौलुस (शायद सा.यु. 49 के आखिर या सा.यु. 50 के शुरू में) अपनी दूसरी मिशनरी यात्रा के दौरान लुस्त्रा आया, तब “लुस्त्रा और इकुनियुम के भाइयों में [तीमुथियुस का] अच्छा नाम था।” (NHT) इसलिए पौलुस ने तीमुथियुस को, जो उस वक्त शायद 18-22 साल का था, अपने और सीलास के साथ सफर करने के लिए बुलाया। (प्रेरि. 16:1-3) पौलुस की 14 पत्रियों में से 11 पत्रियों में तीमुथियुस का नाम आता है और प्रेरितों की किताब में भी उसके नाम का ज़िक्र मिलता है। पौलुस ने हमेशा तीमुथियुस में वैसी दिलचस्पी दिखायी, जैसी एक पिता को अपने बेटे में होती है। कई मौकों पर पौलुस ने उसे अलग-अलग कलीसियाओं का दौरा करने और वहाँ सेवा करने के लिए भेजा। इससे पता चलता है कि एक मिशनरी के तौर पर तीमुथियुस ने अच्छी सेवा की थी और वह बड़ी-बड़ी ज़िम्मेदारियाँ सँभालने के काबिल था।—फिलि. 2:19; 1 थिस्स. 3:2; 1 तीमु. 1:2; 5:23.
क्यों फायदेमंद है
15 यह पत्री बेकार की अटकलें लगानेवालों और फलसफों पर वाद-विवाद करनेवालों को कड़ी चेतावनी देती है। ‘शब्दों को लेकर झगड़ना’ (ईज़ी-टू-रीड वर्शन) दिखाता है कि एक मसीही में घमंड है और उसे सावधान रहना चाहिए कि वह इस तरह के रगड़े-झगड़ों में न उलझे। ऐसा करना इसलिए ज़रूरी है क्योंकि पौलुस कहता है कि ये “केवल निरर्थक विवाद को ही बढ़ाते हैं और परमेश्वर की उस योजना को पूर्ण नहीं करते जो विश्वास पर आधारित है।” वह यह भी कहता है कि ये झगड़े एक मसीही को प्रौढ़ता की ओर बढ़ने से रोकते हैं। (1:4, NHT; 6:3-6) शरीर के कामों के साथ-साथ ये रगड़े-झगड़े “उस खरी शिक्षा के विरोध में हैं, जो परमधन्य परमेश्वर के महिमामय सुसमाचार के अनुसार है।”—1:10, 11, NHT.
16 इफिसुस के लोग पैसे के भूखे थे, इसलिए मसीहियों को सलाह की ज़रूरत थी कि वे धन-दौलत के लालच और इससे जुड़ी बातों से लड़ सकें, जो उन्हें सही राह से भटका सकती हैं। इस बात को ध्यान में रखते हुए पौलुस ने उन्हें ज़रूरी सलाह दी। आज दुनिया में कई लोग पौलुस के शब्दों का हवाला देकर कहते हैं: ‘रुपए का लालच सारी बुराइयों की जड़ है।’ मगर बहुत कम लोग हैं, जो उसके शब्दों के मुताबिक जीते हैं। लेकिन सच्चे मसीहियों को हर घड़ी यह सलाह माननी चाहिए, क्योंकि इस पर उनकी ज़िंदगी का दारोमदार है। उन्हें धन-दौलत का लालच करने से कोसों दूर रहना चाहिए और अपनी आशा ‘चंचल धन पर नहीं, परन्तु परमेश्वर पर रखनी चाहिए जो हमारे सुख के लिये सब कुछ बहुतायत से देता है।’—6:6-12, 17-19.
17 पौलुस की पत्री दिखाती है कि तीमुथियुस जवान मसीहियों के लिए एक बेहतरीन मिसाल है। हालाँकि उसकी उम्र कम थी, मगर वह आध्यात्मिक मायने में प्रौढ़ था। उसने अध्यक्ष की ज़िम्मेदारी के काबिल बनने के लिए मेहनत की थी और उसे जो सुअवसर मिले, उन्हें पूरा करने से उसे बेशुमार आशीषें मिलीं। लेकिन उसे उन बातों पर सोचते रहना और ध्यान लगाए रखना था, ताकि वह लगातार उन्नति करता जाए। आज जोशीले और जवान सेवकों पर भी यह बात लागू होती है। जो जवान आध्यात्मिक तरक्की करना और खुशी पाना चाहते हैं, उन्हें पौलुस की यह सलाह माननी होगी: “अपनी और अपने उपदेश की चौकसी रख। इन बातों पर स्थिर रह, क्योंकि यदि ऐसा करता रहेगा, तो तू अपने, और अपने सुननेवालों के लिये भी उद्धार का कारण होगा।”—4:15, 16.
18 ईश्वर-प्रेरणा से लिखी यह पत्री परमेश्वर के इंतज़ामों के लिए हमारी कदर बढ़ाती है। यह समझाती है कि स्त्री-पुरुष कैसे कलीसिया में परमेश्वर के ठहराए इंतज़ाम के मुताबिक अपनी भूमिका निभाकर एकता बनाए रख सकते हैं। (2:8-15) इसके बाद, यह अध्यक्षों और सहायक सेवकों की योग्यताओं पर चर्चा करती है। इस तरह, परमेश्वर की पवित्र शक्ति उन माँगों के बारे में बताती है, जिन्हें पूरा करने पर भाइयों को ज़िम्मेदारी के पद पर ठहराया जाता है। यह पत्री सभी समर्पित सेवकों को इन स्तरों के मुताबिक चलने का बढ़ावा देती है और कहती है: “जो अध्यक्ष होना चाहता है, . . . वह भले काम की इच्छा करता है।” (3:1-13) पत्री यह भी चर्चा करती है कि अध्यक्षों को कलीसिया में अलग-अलग उम्र के स्त्री-पुरुषों के बारे में कैसा रवैया रखना चाहिए। वह यह भी बताती है कि जब किसी पर इलज़ाम लगाया जाता है तो अध्यक्ष, गवाहों की मदद से कैसे मामले से निपट सकते हैं। पौलुस ज़ोर देकर बताता है कि वचन सुनाने और सिखाने में परिश्रम करनेवाले प्राचीन, दुगना आदर पाने के योग्य हैं। और इस बात को पुख्ता करने के लिए वह इब्रानी शास्त्र से दो हवाले देता है। वह कहता है: “पवित्रशास्त्र का कथन है, ‘दांवने वाले बैल का मुंह न बांधना,’ और ‘मज़दूर अपनी मज़दूरी का अधिकारी है।’” (NHT)—1 तीमु. 5:1-3, 9, 10, 17, 18, 19-21; लैव्य. 19:13; व्यव. 25:4.
19 ये तमाम बढ़िया सलाह देने के बाद, पौलुस कहता है कि हम ‘राजाओं के राजा और प्रभुओं के प्रभु, यीशु मसीह के प्रगट होने तक,” निर्दोष और निष्कलंक रूप से परमेश्वर की आज्ञाओं को मानते रहें। राज्य की इसी आशा की बिनाह पर, पत्री के आखिर में मसीहियों को ज़बरदस्त बढ़ावा दिया गया है कि वे “भलाई करें, और भले कामों में धनी बनें; और उदार और सहायता देने में तत्पर हों। और आगे के लिये एक अच्छी नेव डाल रखें, कि सत्य जीवन को वश में कर लें।” (1 तीमु. 6:14, 15, 18, 19) वाकई, पहला तीमुथियुस में दी तमाम बढ़िया हिदायतें हमारे लिए फायदेमंद हैं।
[फुटनोट]
a सन् 1970, एच. एस. गेहमन द्वारा संपादित, पेज 721.
b दी एण्टी-नाइसीन फादर्स, भाग 1, पेज 6, “कुरिन्थुस को लिखी क्लैमेंट की पहली पत्री,” पाँचवाँ अध्याय।
c नया बाइबल शब्दकोश (अँग्रेज़ी), दूसरा संस्करण, सन् 1986, जे. डी. डगलस द्वारा संपादित, पेज 1203.