क्या वे सचमुच मृतकों से बातचीत करते हैं?
ब्राज़िल में फुटबॉल टीमें कभी-कभी भूत-माध्यमों के ज़रिए मदद चाहते हैं। क्यों? भय के कारण सलाह प्राप्त करने की वजह से कि विरोधी टीम शायद जीत जाएगी। एक अख़बार के अनुसार, “सभी प्रकार के समस्याओं के उपाय की खोज में अलौकिक शक्ति से सीधे संपर्क करने का मौक़ा करोड़ों लोगों पर एक शक्तिशाली प्रभाव डालता है।” कुछेक राष्ट्रों में, ऊँचे-पदवाले राजनीतिज्ञ, कलाकार, और व्यापारी नियमित रूप से आत्माओं से सलाह लेते हैं। एक इलाज ढूँढ़ने या कोई वित्तीय समस्या को हल करने की कोशिश में, अनेक लोग मृतक, जो कि ज़्यादा प्रबुद्ध माने जाते हैं, उन से सलाह लेने की कोशिश करते हैं।
पर क्या मृतकों से बातचीत करने की कोशिश उचित है? क्या ऐसा करना सचमुच संभव है? और क्या उसके अंतर्गत कोई ख़तरे हैं? आप शायद यह देखकर आश्चर्यचकित होंगे कि बाइबल क्या कहती है।
शाऊल के विषय में क्या हुआ?
बाइबल में लेखबद्ध इस वास्तविक-जीवन के अनुभव पर ग़ौर कीजिए: बैरी पलिश्तियों का भय खाकर, प्राचीन इस्राएल के राजा शाऊल ने एन्दोर में एक भूतसिद्धि करनेवाली को ढूँढ़ लिया। उसने उसे मृत भविष्यद्वक्ता शमूएल से संपर्क करने को कहा। बिन आस्तीन का एक कोट पहने हुए एक बूढ़े आदमी का वर्णन सुनकर, शाऊल ने उस भूत को शमूएल मान लिया। और संदेश क्या था? इस्राएल को पलिश्ती कब्ज़े में दिया जाता, और अगले दिन शाऊल और उसके बेटे “शमूएल” के साथ होते, यह संकेत करते हुए कि पलिश्तियों से लड़ते लड़ते वे मारे जाते। (१ शमूएल २८:४-१९) क्या वैसे ही हुआ?
बिल्कुल वैसे ही नहीं। पलिश्तियों के साथ युद्ध में शाऊल गंभीर रूप से घायल हुआ, लेकिन वह आत्म-हत्या से मरा। (१ शमूएल ३१:१-४) और उस पूर्वकथन के विपरीत कि शाऊल के सभी बेटे उसके साथ मर जाते, उसका बेटा ईशबोशेत उसके बाद भी जीवित रहा।
पर प्रथमतः, क्या मृतकों से पूछताछ करना उचित था? नहीं, यह उचित नहीं था। धर्मशास्त्र हमें बताते हैं कि: “शाऊल उस विश्वासघात के कारण मर गया . . . फिर उसने भूतसिद्धि करनेवाली से पूछकर सम्मति भी ली थी। (१ इतिहास १०:१३; न्यू.व.) क्या हम इससे कुछ सीख सकते हैं? जी हाँ। शाऊल एक भूतसिद्धि करनेवाली को पूछकर मृतकों से सम्मति लेने की वजह से मर गया। क्यों? इसलिए कि ऐसा करने से उसने परमेश्वर के सुस्पष्ट नियम की अवज्ञा की: “तुम में कोई ऐसा न हो जो . . . ओझों से पूछनेवाला, वा भावी कहनेवाला, वा भूतों को जगानेवाला हो। क्योंकि जितने ऐसे ऐसे काम करते हैं वे सब यहोवा के सम्मुख घृणित हैं।” (व्यवस्थाविवरण १८:१०-१२; न्यू.व.) मृतकों से की गयी पूछताछ परमेश्वर को क्यों घृणित लगती है? उस प्रश्न का उत्तर देने से पहले, हम पूछेंगे:
क्या यह सचमुच संभव है?
अगर किसी को मृतकों से बातचीत करनी हो, तो मृत व्यक्ति को वास्तव में ज़िंदा होना चाहिए। उन्हें अमर आत्माएँ होनी चाहिए। फिर भी, बाइबल कहती है: “यहोवा परमेश्वर ने मनुष्य को भूमि की मिट्टी से रचा और उसके नथनों में जीवन का श्वास फूँक दिया, और मनुष्य जीवता प्राणी बन गया।” (उत्पत्ति २:७) इसलिए, स्वयं व्यक्ति एक प्राणी है। उसके पास शरीर के मरण के बाद भी जीनेवाला एक अमर प्राण नहीं है। दरअसल, धर्मशास्त्र कहते हैं: “जो प्राणी पाप करे—वही मर जाएगा।” (यहेजकेल १८:४) इसके अतिरिक्त, परमेश्वर का शब्द कहता है: “क्योंकि जीवते तो इतना जानते हैं कि वे मरेंगे, परन्तु मरे हुए कुछ भी नहीं जानते, . . . शीओल में,” मानवजाति के सामान्य कब्र में, “न काम, न युक्ति, न ज्ञान, और न बुद्धि है।—सभोपदेशक ९:५, १०.
फिर, ज़्यादा प्रबुद्ध होना तो दूर, मृतक अचेत हैं। तो उनसे बातचीत करना असंभव है। इसलिए परमेश्वर की मृतकों से पूछताछ करने की निषेधाज्ञा के अनुसार कार्य करना हमें धोखा खाने से बचाता है। फिर भी, आत्मिक-क्षेत्र से प्राप्त संदेश संभव हैं, जैसा राजा शाऊल का अनुभव दिखाता है।
पर उसका स्रोत क्या है?
एक बात तो यह है कि मृतकों से संपर्क करने का दावा करनेवालों के बीच धोखेबाज़ी सामान्य है। द वर्ल्ड बुक एन्साइक्लोपीडिया हमें बताती है: “यह दिखाया गया है कि माध्यम आत्मा-आह्वान बैठकों पर उपस्थित लोगों को यह मानने तक फुसलाते हैं कि आत्माएँ जीवित लोगों से बातचीत कर सकते हैं। वैज्ञानिक आत्मा-आह्वान बैठकों पर घटनेवाली काफ़ी हद तक की बातों के लिए स्पष्टीकरण देते हैं। उदाहरणार्थ, कुछेक माध्यम पेट-बोला होते हैं। कुछेक सहायकों और मायावी सामग्री के विभिन्न प्रकार इस्तेमाल करते हैं। अन्य सम्मोहन विद्या इस्तेमाल करते हैं। अनेक लोग जो आत्मा-आह्वान बैठकों में उपस्थित होते हैं, उन्हें किसी मृत प्रिय व्यक्ति से संपर्क करने की एक उत्कट इच्छा होती है। यह इच्छा शायद उन्हें माध्यम द्वारा दिए आत्मिक-क्षेत्र से आनेवाले कोई भी संदेश को मानने तक विवश करेगा।
पर क्या हमें केवल ऐसी रीति से सोचना चाहिए? नहीं, इसलिए कि मृतकों से पूछताछ करने के खिलाफ़ परमेश्वर की आज्ञा पालन करना एक अत्यधिक महत्त्वपूर्ण रीति से हमारी रक्षा भी करता है। आत्मिक-क्षेत्र से संदेश ज़रूर आते हैं, परंतु, उनका स्रोत शक्तिशाली आत्माएँ हैं, जो मनुष्यजाति को गुमराह कराना चाहते हैं। बाइबल उनकी पहचान “दुष्टता की आत्मिक सेनाओं” के तौर से कराती है—शैतान इब्लीस और दुष्टात्माओं के हैसियत से जाने गए अवज्ञाकारी स्वर्गदूत। (इफिसियों ६:१२) जब राजा शाऊल ने एन्दोर की भूतसिद्धि करनेवाली से भेंट की, तब वह एक दुष्टात्मा था जिसने मृत भविष्यद्वक्ता शमूएल का पररूपधारण किया।
जैसा शाऊल के विषय में चित्रित हुआ, दुष्टात्माओं के पास बताने के लिए कोई लाभदायक बात नहीं है, और उनकी अनुमानित मदद थोड़े समय की ही है। उनके शासक, इब्लीस के जैसे वे झूठे हैं। (मरकुस ३:२२; यूहन्ना ८:४४) इस संबंध में मृत ब्रिटिश मनोवादी शोधकर्ता, सर आर्थर कॉनन डॉइल ने लिखा: “दुःख से, हमें दुष्ट या शरारती बुद्धि के पक्ष से पूर्णतया उपेक्षावृत्ति वाले झूठ से निपटना पड़ता है। मैं समझता हूँ कि जिस किसी ने इस मामले का अन्वेषण किया है, उसने जानबूझकर किए गए धोखे के उदाहरणों का सामना किया है, जो कभी-कभी अच्छे और सच्चे संदेशों से सम्मिलित हैं। (द न्यू रॅवलेशन, पृष्ठ ७२) अवश्य, आप धोखा तो खाना नहीं चाहते, है ना?
अब, इस पर ग़ौर कीजिए: इतिहास हमें गुलामों का व्यापार और संबद्ध दुःखों के बारे में बताता है। क्या कोई ऐसी मुश्किलें और अपमान स्वैच्छिकता से स्वीकार करेगा? बिल्कुल नहीं। फिर क्यों हमें अपने आप को दुष्टात्माओं द्वारा गुलाम बनने देना चाहिए? वे न केवल झूठ बोलते हैं, पर वे लोगों से उनकी आज़ादी भी छीनते हैं और उन्हें हिंसा तथा हत्या तक भी ले जा सकते हैं। मिसाल के तौर पर, ब्राज़िल देश में, पर्नेम्बुको शहर के २९-वर्षीय होज़े ने कहा कि ‘एक आत्मा ने उस में प्रवेश करके उसे अपनी एक-वर्षीया बेटी की हत्या करने तक विवश किया।’ जी हाँ, दुष्टात्माओं के साथ उलझाव ऐसे दासत्व में परिणत हो सकता है। खैर, फिर, जिस तरह अतीत के दुःखी गुलाम आज़ादी के लिए तरसे, उसी तरह जो लोग आज दुष्टात्माओं द्वारा गुलाम बनाए गए हैं, उन्हें आज़ाद होने की चाह होनी चाहिए। इस आज़ादी को हासिल करने का एक तरीका है आत्माओं के माध्यम से सलाह करने और मृतकों से बातचीत करने की कोशिश से दूर रहना। वैसे देखा जाए तो, क्या . . .
मृतकों से बातचीत करने की कोई ज़रूरत है?
नहीं, क्योंकि हम बिन सहायता के नहीं। अपने पिता पर भरोसा करनेवाले बच्चों के जैसे, हम स्वर्गीय पिता से स्वतंत्रतापूर्वक मदद माँग सकते हैं, जो कि सच्चे दिलवालों की सहायता करने के लिए खुश है। (लूका ११:९-१३) परमेश्वर के भविष्यद्वक्ता यशायाह ने लिखा: “जब लोग तुम से कहें कि ‘ओझों और टोन्हों के पास जाकर पूछो जो गुनगुनाते और फुसफुसाते हैं,’ तब तुम यह कहना कि क्या प्रजा को अपने परमेश्वर ही के पास जाकर न पूछना चाहिए? क्या जीवतों के लिए मुर्दों से पूछना चाहिए? व्यवस्था और चितौनी ही की चर्चा किया करो!”—यशायाह ८:१९, २०.
जी हाँ, अगर हम उसकी इच्छानुसार करेंगे और दुष्टात्माओं से कोई संपर्क करना इंकार करेंगे, तो हमें यहोवा परमेश्वर पर भरोसा करने के लिए एक पक्की बुनियाद है। मसीही चेला याकूब ने लिखा: “इसलिए परमेश्वर के आधीन हो जाओ, और इब्लीस का सामना करो, तो वह तुम्हारे पास से भाग निकलेगा।” (याकूब ४:७) यहोवा के गवाहों के साथ बाइबल अध्ययन करने के बाद, २८ वर्ष तक भूत विद्या का अभ्यास करनेवाले एक आदमी ने कहा: “भूत विद्या के अभ्यासों को त्यागनेवालों को इब्लीस क्या करेगा, इसके विषय कभी न डरना, लेकिन, उसके बजाय, यहोवा परमेश्वर पर भरोसा रखना।”
मन को परमेश्वर के शब्द की सच्चाई से भरना और उस पर अमल करना हमें “परमेश्वर के सारे [आत्मिक] हथियार बाँध” लेने में समर्थ बनाएगा, ताकि हम “इब्लीस की कपट-योजना का सामना करके स्थिर रह” सकें, और दुष्टात्मिक सेनाओं से गुलाम नहीं बना दिए जाएँ। (इफिसियों ६:११) इसके अतिरिक्त, यहोवा से नियमित रूप से प्रार्थना करना हमें दुष्टात्मिक उत्पीड़न के प्रतिरोध में एक शक्तिशाली रक्षण देगा।—नीतिवचन १८:१०.
मृतकों की अवस्था के विषय सच्चाई जानना कितना सांत्वनादायक है! मृत्यु एक अथाह नींद के जैसे है। (यूहन्ना ११:११) और यीशु मसीह ने गारंटी दी है कि मृतकों का पुनरुत्थान होगा।—यूहन्ना ५:२८, २९.
उसके बीवी-बच्चों के साथ, एक आदमी जो एक भूत विद्यावादी रहा था, उसने धर्मशास्त्रों से सीखा कि किसी को मृतकों से, या उनका पररूपधारण करनेवाले किसी से बातचीत करने की कोशिश की कोई ज़रूरत नहीं। इस परिवार और संसार भर अनेकों के जैसे, आप भी आत्मिक स्वतंत्रता का आनंद उठा सकते हैं। (यूहन्ना ८:३२) मृतकों और मनुष्यजाति के लिए परमेश्वर के उद्देश्य के बारे में सच्चाई सीखिए। फिर आप यहोवा की नयी व्यवस्था की ओर आशा से देख सकते हैं, जहाँ आप पूनर्जीवित प्रिय व्यक्तियों से बातें कर सकेंगे और शांतिमय परिस्थितियों में अनंत जीवन का आनंद उठा सकेंगे।—यशायाह २५:८.
[पेज 4 पर तसवीरें]
जब राजा शाऊल ने मृत भविष्यद्वक्ता शमूएल से एक संदेश माँगा तब वास्तव में कौन बोला?