एक क़दरदान बूढ़ी
“वयोवृद्धों की देखभाल कौन करेगा?” इस विषय पर द वॉचटावर का जून १, १९८७ अंक पढ़ने के बाद, जापान की एक ७९-वर्षीया औरत निम्नलिखित पत्र लिखने को प्रेरित हुई।
मेरे भाइयों को जिनका मैं सम्मान करती हूँ,
वयोवृद्धों के संबंध में जून १, १९८७, अंक पढ़ने पर, मैंने इस विषय को बहुत ही सहानुभूतिपूर्ण और कृपालु पाया। जब मैंने परिच्छेद ११ पढ़ा, मुझे मेरा रुमाल लेना ही पड़ा क्योंकि मैं फूटफूटकर रोयी और रुक न सकी। वे अत्यधिक कृतज्ञता के आँसू थे। कैसा प्रेम और कृपा! मैं केवल वही कर सकी जो भजन १५० कहता है—याह की स्तुति! बारीकियों का भी उल्लेख करते हुए, वयोवृद्ध लोगों को कृपा दिखाने के विषय पर, इन विचारशील लेखों को प्रकाशित करने की वजह से मैं विनय से आप भाइयों को मेरी अत्यधिक कृतज्ञता देती हूँ। अवश्य, मैं हर महीने छपे उन उत्तम लेखों के लिए भी आभारी हूँ, और पर्याप्त मात्रा में मेरी क़दरदानी व्यक्त करने के लिए शब्द ही नहीं। एक बार फिर, मैं आपकी शुक्रगुज़ार हूँ।
आनंद से, हमारी मंडली में सभी इतने स्नेही और कृपालु हैं। वे मुझे अपनी गाड़ियों में प्रचार कार्य-क्षेत्र में ले जाते हैं और वहाँ से वापस ले आते हैं और उनकी कृपालु सेवा की वजह से, मैं एक सहायक पायनियर हूँ। मैं प्रत्येक दिन के लिए आभारी हूँ कि मैं ऐसे बढ़िया और रक्षणात्मक संगठन में रह सकती हूँ।
आज की दुनिया में, जहाँ बूढ़ों की तादाद बढ़ती जा रही है पर उनका आदर-सत्कार कम हो रहा है, इतने प्रेममय परमेश्वर से जो आशीर्वाद हम प्राप्त करते हैं, उनसे ज़्यादा अनमोल कोई दूसरी चीज़ है ही नहीं। यह मेरी प्रार्थना है कि, जितने ज़्यादा लोगों को मदद करना संभव हो, उतनों को मैं सच्चाई सीखने की मदद कर सकूँ ताकि वे हमारे साथ आनन्द मना सकें।
यहोवा की स्तुति हो, और मेरे प्रिय भाईयों, आप का धन्यवाद। मेरी गंदी लिखावट को माफ़ करना, जिसकी वजह से मैं लज्जित हूँ। यहोवा आप को आशीर्वाद दे और आप को अच्छा स्वास्थ्य दे।
एक अयोग्य बूढ़ी,
[हस्ताक्षरित] नोगामी
ऐसे शब्द और भावनाएँ इस तथ्य को स्थापित करते हैं कि सच्चा मसीही प्रेम कोई सरहद या वय सीमा को नहीं जानता। यहोवा के गवाह, बूढ़े और जवान, यीशु के वाक्यानुसार जीवन बिताकर अपनी शिष्यता प्रदर्शित करते हैं: “यदि आपस में प्रेम रखोगे तो इसी से सब जानेंगे कि तुम मेरे चेले हो।”—यूहन्ना १३:३५.