असली खूबसूरती इसे आप विकसित कर सकते हैं
खूबसूरती के मामले में बाइबल में दोनों पुरुषों और महिलाओं के लिए सलाह है। पुरुषों के लिए, यह ग़ौर करती है: “जवानों का गौरव उनका बल है।” (नीतिवचन २०:२९) जी हाँ, तरुणों की कर्मशक्ति और ओजस्विता बहुत ही आकर्षक हो सकती है। लेकिन जब वह युवा ताक़त क्षीण हो जाती है, तब क्या होता है? बाइबल कहावत कहता है: “पक्के बाल शोभायमान मुकुट ठहरते हैं, जब वे धर्म के मार्ग पर पाए जाते हैं।” (नीतिवचन १६:३१, न्यू.व.) धार्मिकता भीतरी खूबसूरती का एक पहलू है। अगर एक तरुण इसे विकसित करेगा, तो यह तभी वहीं का वहीं होगा जब वह जवानी की उस आकर्षक ताक़त को खो देगा।
औरतों के संबंध में, बाइबल कहती है: “शोभा तो झूठी और सुन्दरता व्यर्थ है। परन्तु जो स्त्री यहोवा का भय मानती है, उसकी प्रशंसा की जाएगी।” (नीतिवचन ३१:३०) एक सुन्दर, सौम्य तरुणी आनन्दप्रद साथी होती है। पर अगर उस शारीरिक सौम्यता के पीछे ढ़ोंग और स्वार्थी मिथ्याभिमान छिपे हैं, तो क्या होगा? तो फिर वह खूबसूरती सिर्फ़ ऊपरी ही है, और यह एक भीतरी बदसूरती को छिपाती है। जब खूबसूरती मिट जाएगी, तब क्या रह जाएगा? कितना बेहतर होगा अगर खूबसूरती के साथ एक अमिट भीतरी खूबसूरती जुड़ी हो, जिसकी जड़ें ‘यहोवा के भय’ में हैं!
व्यक्तित्व का परिवर्तन
क्या इस भीतरी खूबसूरती को विकसित करना संभव है? जी हाँ। दरअसल, मसीहियों के लिए यह एक आवश्यकता है। परमेश्वर असली खूबसूरती की क़दर करता है। “उसने अपने अपने समय में सब कुछ सुन्दर बनाया है।” (सभोपदेशक ३:११, रिवाइज़्ड स्टॅन्डर्ड वर्शन) वह उन लोगों की उपासना स्वीकार नहीं करेगा जिनके आचरण से अनाकर्षक या बदसूरत भीतरी गुण प्रकट होते हैं।
कुलुस्सियों को प्रेरित पौलुस के लिखे शब्द एक भीतरी खूबसूरती विकसित करने की आवश्यकता सूचित करते हैं। सर्वप्रथम, वह चेतावनी देता है: “तुम भी इन सब को अर्थात् क्रोध, रोष, वैरभाव, निन्दा और मुँह से गालियाँ बकना ये सब बातें छोड़ दो। एक दूसरे से झूठ मत बोलो। पुराने मनुष्यत्व को उसके कामों समेत उतार डालो।” हाँ, जो कोई ऐसी बदसूरत या कुरूप बातों का अभ्यास करता है, वह परमेश्वर—और सुबुद्ध मनुष्यों—की नज़रों में घृणास्पद है। फिर, पौलुस आगे कहता है: “और नए मनुष्यत्व को पहन लो, जो अपने सृजनहार के स्वरूप के अनुसार यथार्थ ज्ञान के ज़रिए नया बनता जाता है।” (कुलुस्सियों ३:८-१०, न्यू.व.) हमें सोचने और महसूस करने का एक ऐसा तरीक़ा ‘पहनना’ चाहिए जो परमेश्वर की इच्छा के अनुरूप हो। इस “नए मनुष्यत्व” की विशेषताएँ क्या हैं?
मसीही गुण
बाइबल में कई खूबसूरत गुण सूचिबद्ध किए गए हैं, जिनसे यह बनता है। लेकिन इस भीतरी खूबसूरती की बुनियाद का वर्णन यीशु के शब्दों में किया गया है: “तुम यहोवा अपने परमेश्वर से अपने सारे मन और अपने सारे प्राण और अपनी सारी बुद्धि के साथ प्रेम रखना। बड़ी और मुख्य आज्ञा तो यही है। और उसी के समान यह दूसरी भी है, कि तुम अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम रखना।” (मत्ती २२:३७-३९, न्यू.व.) परमेश्वर के प्रेम से हम उस प्रकार का व्यक्ति बनना चाहते हैं जो उसे खुश करता हो। ऐसे प्रेम से हम उसके बारे में दूसरों से बात करने, और, पारी से, उन्हें अपने सृजनहार को जान लेने की मदद करने तक प्रेरित होते हैं।—यशायाह ५२:७.
प्रेरित पौलुस कुछ अन्य गुणों का वर्णन करता है, जिन से नया मनुष्यत्व बनता है: “प्रेम, आनन्द, शांति, धीरज, कृपा, भलाई, विश्वास, नम्रता और आत्म-संयम। ऐसे ऐसे कामों के विरोध में कोई भी व्यवस्था नहीं।”—गलतियों ५:२२, २३, न्यू.व.
इसके अलावा, बाइबल पतियों से स्पष्ट रूप से कहती है: “पति पत्नी का सिर है जैसे कि मसीह कलीसिया का सिर है . . . पतियों, अपनी अपनी पत्नी से प्रेम रखो जैसा मसीह ने भी कलीसिया से प्रेम करके अपने आप को उसके लिए दे दिया।” (इफिसियों ५:२३, २५) और पत्नियों से बाइबल कहती है: “पत्नियों, अपने अपने पति से ऐसे आधीन रहो, जैसे प्रभु के . . . पत्नी भी अपने पति के लिए गहरा आदर रखे।” (इफिसियों ५:२२, ३३, न्यू.व.) जब पति एक प्रेममय, निःस्वार्थ और सहनशील ढंग से अपनी ज़िम्मेदारियाँ पूरा करता है, तब पारिवारिक जीवन कितना आकर्षक होता है! और पुरुष को अपनी उचित भूमिका निभाना कितना ज़्यादा आसान होता है जब पत्नी प्रतिस्पर्धी या अधिक छिद्रान्वेषी होने के बजाय प्रेममय रूप से उसका समर्थन करके अपनी भीतरी खूबसूरती प्रकट करती है। ऐसी परिस्थितियों में पारिवारिक जीवन सचमुच आनन्दप्रद हो सकता है।
पिछले लेख में उल्लेख किए गए मिसालों से इन में से कुछ गुण व्यवहार में दिखायी दिए। शूलेम्मिन ने पूर्ण निष्ठा और अपने चरवाहे के लिए एक गहरा प्रेम प्रकट किया जब उसने सुलैमान के दरबार की चमचमाहट के लिए अपने चरवाहे को छोड़ देना अस्वीकार किया। यूसुफ ने एक अंतर्निहित भलाई प्रकट की जब उसने अपने स्वामी, पोतीफार, के ख़िलाफ़ पाप करना अस्वीकार किया। उसने आत्म-संयम भी दिखाया, जब उसने पोतीफार की पत्नी द्वारा विलुब्ध होने से ज़्यादा, भाग निकलना पसंद किया। और वह मृदुता, शान्ति और धीरज का एक मिसाल था जब उसने अपने जीवन की कई प्रतिकूल घटनाओं को उसे कटु बनाने न दिया।
एक बदसूरत दुनिया में खूबसूरती
क्या ऐसे खूबसूरत गुण आज व्यावहारिक हैं? कई लोग ऐसा नहीं सोचते। उलटा, वे जिस स्वार्थपरायण, लोभी दुनिया में रहते हैं, उसके प्रति एक कठोर बाहरी रूप विकसित करके प्रतिक्रिया दिखाते हैं। वे महसूस करते हैं कि टिके रहने के लिए उन्हें निर्दय और उच्चाकांक्षी होना पड़ेगा, तथा स्वयं को पहले स्थान पर रखते हुए वह सब कुछ छीनना पड़ेगा, जो वे पा सकते हैं।
इसके विपरित, बाइबल प्रोत्साहित करती है: “विरोध या झूठी बड़ाई के लिए कुछ न करो, पर दीनता से एक दूसरे को अपने से अच्छा समझो, हर एक अपनी ही हित की नहीं परन्तु दूसरों की हित की भी चिन्ता करे।” (फिलिप्पियों २:३, ४) चूँकि आम मनुष्यजाति इस बढ़िया सलाह का अनुकरण नहीं करती, इसीलिए मानव समाज इतनी बुरी तरह बिगड़ता जा रहा है।
इसके अतिरिक्त, वर्तमान दुनिया में, व्यक्ति की सफलता पैसे या पद से मापी जाती है। धनवान् आदमी सफल आदमी माना जाता है। परन्तु, जहाँ तक कि असली मूल्यों का सवाल है, यह पूर्ण रूप से नगण्य है कि क्या कोई व्यक्ति अमीर है या ग़रीब। वास्तव में, धन के भी ख़तरे होते हैं। बाइबल चेतावनी देती है: “जो धनी होना चाहते हैं, वे ऐसी परीक्षा, और फंदे और बहुतेरे व्यर्थ और हानिकारक लालसाओं में फंसते हैं।” यह आगे कहती है: “रुपये का लोभ सब प्रकार की बुराइयों की जड़ है।”—१ तीमुथियुस ६:९, १०.
बेशक, जो लोग स्वार्थी, लोभी, भौतिकवादी और निर्दय होते हैं, वे अक्सर आज एक अस्थायी “सफलता” का आनन्द लेते हैं। लेकिन यह असली सफलता नहीं, चूँकि ऐसे बदसूरत जीवन-क्रम की क़ीमत—व्यक्तिगत अलोकप्रियता, बरबाद शादियाँ, अस्वास्थ्य और आम कुण्ठा—बहुत भारी होती है। मनुष्य को परमेश्वर के प्रतिबिंब में बनाया गया था, लेकिन जब वह उन गुणों के ख़िलाफ़ इतने ज़ोर से विद्रोह करता है, जो परमेश्वर ने प्रारंभ में उस में बैठाए थे, वह व्यक्तिगत खुशी कभी नहीं पा सकता।—उत्पत्ति १:२७.
भीतरी खूबसूरती विकसित करना
तो फिर, हम इस दनिया के बुरे असरों का प्रतिरोध करके उच्च, ईश्वरीय गुण कैसे विकसित कर सकते हैं? जब पौलुस ने ‘प्रेम, आनन्द, शांति, धीरज, कृपा, भलाई, विश्वास, नम्रता, और आत्म-संयम’ के गुण सूचिबद्ध किए, उसने उन्हें “आत्मा का फल” कहा। (गलतियों ५:२२, २३, न्यू.व.) इसलिए अगर हमें ये खूबसूरत भीतरी गुण विकसित करने हैं, तो परमेश्वर का आत्मा आवश्यक है।
कैसे? ख़ैर, बाइबल का अध्ययन करने से, जो कि परमेश्वर के आत्मा के ज़रिए प्रेरित की गयी थी, हमें इन गुणों को पहचानने की मदद होगी और उन्हें विकसित करने के लिए हमारी इच्छा सदृढ़ होगी। (२ तीमुथियुस ३:१६) यहोवा के गवाह ऐसी योजना में मदद करने के लिए हमेशा आनन्दित हैं, इसलिए कि वे लोगों को बाइबल का अध्ययन करने की मदद करना अपनी सेवकाई का एक हिस्सा समझते हैं। सच्चे दिल से आत्म-परीक्षण करना हमें यह देखने देगा कि हम कहाँ कम पड़ते हैं, और हम इन क्षेत्रों में परमेश्वर के आत्मा की मदद के लिए प्रार्थना कर सकते हैं। परमेश्वर के सह-उपासकों के साथ मिलना-जुलना हमें अपने समवयस्कों का समर्थन देगा जिसकी हमें ज़रूरत है, और यहाँ भी, परमेश्वर के आत्मा से मदद मिलती है, इसलिए कि यीशु ने कहा, “जहाँ दो या तीन मेरे नाम पर इकट्ठे होते हैं, वहाँ मैं उनके बीच में होता हूँ।”—मत्ती १८:२०.
एक खूबसूरत दुनिया आगे है
यह स्वाभाविक है कि हम में से कोई भी अपनी अपूर्णताओं को पूर्ण रूप से वश नहीं कर सकेगा, लेकिन अगर हम इस भीतरी खूबसूरती को विकसित करने का प्रयास करेंगे तो परमेश्वर हमारी कोशिशों को आशीर्वाद देगा। और वह हमें एक आश्चर्यजनक रीति से प्रतिदान देगा। बाइबल हमारे लिए लिपिबद्ध करती है कि परमेश्वर का उद्देश्य यह है कि वह जल्द ही एक नयी रीति-व्यवस्था लाएगा, जो कि वर्तमान रीति-व्यवस्था से पूर्ण रूप से अलग होगी। उस में, “धर्मी लोग पृथ्वी के अधिकारी होंगे, और उस में सदा बसे रहेंगे।” (भजन ३७:२९) स्वयं यीशु ने कहा: “धन्य हैं वे, जो नम्र हैं, क्योंकि वे पृथ्वी के अधिकारी होंगे।”—मत्ती ५:५.
उस समय, इस रीति-व्यवस्था की बदसूरत प्रतिस्पर्धा और स्वार्थ की जगह एक सुन्दर प्रशान्ति और निरभ्रता होगी। “मेरे सारे पवित्र पर्वत पर न तो कोई दुःख देगा और न हानि करेगा; क्योंकि पृथ्वी यहोवा के ज्ञान से ऐसी भर जाएगी जैसा जल समुद्र में भरा रहता है।” (यशायाह ११:९) सचमुच, परमेश्वर “उन की आँखों से सब आँसू पोंछ डालेगा; और इस के बाद मृत्यु न रहेगी, और न शोक, न विलाप, न पीड़ा रहेगी। पहली बातें जाती रहीं।”—प्रकाशितवाक्य २१:४.
क्या ऐसी परिस्थितियाँ आकर्षक लगती हैं? ये सिर्फ़ इसी लिए संभव हैं कि तब पृथ्वी के निवासियों में परमेश्वर के लिए और पड़ोसी के लिए प्रेम पर आधारित एक भीतरी खूबसूरती होगी। और परमेश्वर ने वादा किया है कि जो लोग अब उसकी सेवा करते हैं, और “नए मनुष्यत्व” विकसित करके उसके मानकों का अनुसरण करने की कड़ी कोशिश करते हैं, वे उस वादे की पूर्ति देखेंगे। सुन्दरता और शारीरिक खूबसूरती से ऐसे आशीर्वाद कभी न आएँगे। तो फिर, उस अधिक बहुमूल्य, अधिक टिकाऊ भीतरी खूबसूरती विकसित करने का क्या ही अच्छा कारण है, जो कि सुबुद्ध मानवों और स्वयं परमेश्वर को इतना प्रीतिकर है!
[पेज 6 पर तसवीरें]
शारीरिक रूप से आकर्षक लोगों को स्वार्थी और चालबाज़ होने से बचे रहना चाहिए। उलटा, उन्हें परमेश्वर को प्रसन्न करनेवाली भीतरी खूबसूरती विकसित करनी चाहिए