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एक पवित्र भेद प्रकट हो जाता है

“इस ईश्‍वरीय भक्‍ति का भेद सचमुच ही विशाल है।”—१ तीमुथियुस ३:१६, न्यू.व.

१. १ तीमुथियुस ३:१६ में कौनसे भेद का वर्णन किया गया है?

क्या रहस्यों से आपकी जिज्ञासा उत्पन्‍न होती है? क्या आपको भेदों का पता लगाने में मज़ा आता है? हम में से अधिकांश लोगों को आता है! तो फिर, आइए, एक सबसे महत्त्वपूर्ण भेद की जाँच करने में हमारे साथ शामिल हो जाइए—एक ऐसा भेद जो परमेश्‍वर के वचन में हज़ारों साल तक गुप्त रखा गया था। यह पवित्र भेद दोनों, वर्तमान और भविष्य की, हमारी ज़िन्दगी पर महत्त्वपूर्ण रूप से प्रभाव ड़ालता है। यह ‘ईश्‍वरीय भक्‍ति का पवित्र भेद’ है, जिसका वर्णन हमारे लिए १ तीमुथियुस ३:१६ में किया गया है। हम “भेदों के प्रगटकर्ता,” यहोवा के कितने आभारी होने चाहिए कि उन्होंने यह परम भेद और उसका अर्थ इतनी कृपालुता से प्रकट की!—दानिय्येल २:२८, २९.

२. (अ) यहोवा ने सर्वप्रथम कब एक पवित्र भेद के बारे में बतलाया, और उन्होंने उस वक्‍त कौनसा वचन दिया? (ब) कौनसे प्रश्‍नों के उत्तर आवश्‍यक हैं?

२ यहोवा ने सर्वप्रथम, शैतान के हव्वा को बहकाने, और आदम के उसके पीछे-पीछे विद्रोह में जाने के बाद, एक पवित्र भेद के बारे में बतलाया था। परमेश्‍वर ने फिर वचन दिया कि “वंश,” या सन्तान, शैतान के सिर को कुचल डालता। (उत्पत्ति ३:१५) यह वंश कौन है? वह अज़गर पर किस तरह विजय पाता? क्या वह परमेश्‍वर की सत्यवादिता और इस पृथ्वी के प्रति उनके उद्देश्‍य को सत्य सिद्ध करता?

३. वंश की पहचान और कार्य के बारे में ईश्‍वरीय भविष्यवाणियों से कौनसे सुराग़ मिले?

३ समय पर, ईश्‍वरीय भविष्यवाणियों से इस वंश की पहचान और भविष्य के कार्य के विषय में सुराग़ प्रकट हुए। वह इब्राहीम का वंशज होता, दाऊद के राज्य का उत्तराधिकारी होता, और शांति का राजकुमार कहलाता। ‘उसके राजसी शासन की बढ़ती और शांति का अन्त न होता।’ (यशायाह ९:६, ७; उत्पत्ति २२:१५-१८; भजन ८९:३५-३७) लेकिन जैसा कि रोमियों १६:२५ में कहा गया है, उस पवित्र भेद को “सनातन से छिपा” रखा गया था।

उस भेद को खोलना

४. किस तरह सा.यु. २९ में पवित्र भेद प्रकट होने लगा?

४ आख़िरकार, चार सहस्राब्दियों बाद, प्रबोधन अचानक सामने आया! किस रीति से? सामान्य युग २९ में, यूहन्‍ना ने यरदन नदी में यीशु नासरी का बपतिस्मा किया, और स्वर्ग से परमेश्‍वर की आवाज़ ने घोषित किया: “यह मेरा प्रिय पुत्र है, जिस से मैं अत्यन्त प्रसन्‍न हूँ।” (मत्ती ३:१७) आहा, आख़िर यही वह प्रतिज्ञा का वंश था! वह पवित्र भेद अपने सभी शानदार पहलुओं के साथ प्रकट होने लगा था, जिस में ईश्‍वरीय भक्‍ति का विषय भी शामिल था।

५. “ईश्‍वरीय भक्‍ति” क्या है, और जो उसको कार्य में लाते हैं, यह उन पर कैसा प्रभाव डालता है?

५ “ईश्‍वरीय भक्‍ति” से हम क्या समझ सकते हैं? मसीही यूनानी शास्त्रों में, यह वाक्यांश केवल २० बार पाया जाता है, और इन में से आधे से ज़्यादा, पौलुस की तिमुथियुस को लिखी चिट्ठियों में पाए जाते हैं। इन्साईट ऑन द स्क्रिप्‌चर्स, यह प्रकाशन “ईश्‍वरीय भक्‍ति” को “परमेश्‍वर की ओर श्रद्धा, उपासना और सेवा, और साथ ही उनकी सर्वसत्ता के प्रति वफ़ादारी” के तौर से परिभाषित करता है। श्रद्धा एक ऐसे हृदय से निकलता है, जो परमेश्‍वर के निकट आता है, जो उनके प्रताप, उनकी शाश्‍वतता, और उनकी शानदार सृष्टि की विविधता के लिए श्रद्धायुक्‍त विस्मय दिखाकर उन आत्मिक और भौतिक उपहारों के लिए आभार मानता है, जो वह क़दरदान मानवों पर बरसाते हैं। सचमुच, हम में से हर कोई जो ईश्‍वरीय भक्‍ति को कार्य में लाते हैं, भजन १०४:१ में भजनकार के जैसे कह सकते हैं: “”हे मेरे मन, तू यहोवा को धन्य कह! हे मेरे परमेश्‍वर यहोवा, तू अत्यन्त महान है! तू विभव और ऐश्‍वर्य का वस्त्र पहिने हुए है।”

६. (अ) यहोवा के उपासक किस तरह ईसाईजगत्‌ के आसन-पर-बैठनेवालों से भिन्‍न हैं? (ब) रोमियों ११:३३, ३४ में पौलुस ने क्या कहा, और इस प्रकार कौनसे प्रश्‍न उत्पन्‍न होते हैं?

६ परमेश्‍वर की ओर हमारी भक्‍ति को अभिव्यक्‍ति अवश्‍य मिलनी चाहिए, और यह कार्यों के द्वारा अभिव्यक्‍त होती है। इस संबंध में, सच्चे परमेश्‍वर, यहोवा, के उपासक ईसाईजगत्‌ के लुप्त होनेवाले गिरजाओं के आसन-पर-बैठनेवालों से बहुत ही भिन्‍न हैं। पृथ्वी पर अनेक लोगों के लिए, धर्म—अगर उनका अब भी कोई धर्म हो—एक बाह्‍याचार है, एक ऐसा लबादा, जिसे पहनकर वे पवित्र लग सके, जबकि वे एक ऐसा जीवन व्यतीत कर रहे होते हैं जो उनके इर्द-गिर्द की भ्रष्ट दुनिया के अनुसार है। वे यह भी नहीं जानते कि परमेश्‍वर कौन हैं। यक़ीनन, ऐसे लोगों को प्रेरितों के काम १७:२३ में लिखे पौलुस के शब्दों पर विचार करना चाहिए, जब उन्होंने अथेने के निवासियों से कहा, जो “एक अनजाने ईश्‍वर” की पूजा करते थे: “सो जिसे तुम बिना जाने पूजते हो, मैं तुम्हें उसका समाचार सुनाता हूँ।” उस प्रतापी परमेश्‍वर के विषय में, रोमियों ११:३३, ३४ में पौलुस बोल उठते हैं: “आहा! परमेश्‍वर का धन और बुद्धि और ज्ञान क्या ही गहन है! उसके विचार कैसे अथाह, और उसके मार्ग कैसे अगम हैं! क्योंकि ‘यहोवा की बुद्धि को किस ने जाना है? या उसका मंत्री कौन बना है?’” (न्यू.व.) तो फिर, हम परमेश्‍वर के मार्गों से कैसे परिचित हो सकते हैं? ‘ईश्‍वरीय भक्‍ति का पवित्र भेद’ सीखने से। पर हम ऐसा कैसे कर सकते हैं?

७. ऐसा क्यों कहा जा सकता है कि “ईश्‍वरीय भक्‍ति का यह पवित्र भेद सचमुच ही विशाल है?”

७ १ तीमुथियुस, अध्याय ३ में, प्रेरित पौलुस परमेश्‍वर के घराने के ज़िम्मेदार दासों से क्या आवश्‍यक है, इसकी पहले रूप-रेखा देते हैं और इस घराने का वर्णन आयत १५ में इस प्रकार किया गया है, “जो जीवते परमेश्‍वर की कलीसिया . . . सत्य का खंभा और नेव है।” फिर, आयत १६ में, पौलुस आगे कहते हैं: “ईश्‍वरीय भक्‍ति का यह पवित्र भेद सचमुच ही विशाल है।” (न्यू.व.) सचमुच विशाल, क्योंकि यहोवा ने अपने एकलौते बेटे को पृथ्वी पर यह भेद खोलने के लिए और, ईश्‍वरीय भक्‍ति दरअसल क्या है तथा यह सच्ची उपासना में किस तरह अत्यावश्‍यक और प्रधान है, यह दिखाने के लिए भेजा था। यहाँ पृथ्वी पर यीशु के जीवन क्रम में इस ईश्‍वरीय भक्‍ति का पवित्र भेद स्पष्ट हुआ है। यहोवा के सभी प्रेमियों को अपना विश्‍वास और अपना जीवन मसीह पर बाँधना चाहिए, जो कि ईश्‍वरीय भक्‍ति का उदाहरण था। तो फिर, यीशु ने ईश्‍वरीय भक्‍ति के पवित्र भेद को किस तरह स्पष्ट किया?

छः पहलू

८. (अ) १ तीमुथियुस ३:१६ में पौलुस द्वारा वर्णन किए गए पवित्र भेद के छः पहलू क्या हैं? (ब) यह “वह” कौन है, जो प्रगट होता है?

८ ईश्‍वरीय प्रेरणा से, प्रेरित पौलुस उस प्रश्‍न का उत्तर देते हैं। यहाँ १ तीमुथियुस ३:१६ में, वह यह कहकर इस पवित्र भेद के छः पहलुयों का वर्णन करते हैं: “वह [१] जो शरीर में प्रगट हुआ, [२] आत्मा में धर्मी ठहरा, [३] स्वर्गदूतों को दिखाई दिया, [४] अन्यजातियों में उसका प्रचार हुआ, [५] जगत में उस पर विश्‍वास किया गया, [६] और महिमा में ऊपर उठाया गया।” यह “वह” कौन है, जो प्रगट हुआ? यह ज़ाहिर है कि “वह” प्रतिज्ञात वंश, यीशु है जो परमेश्‍वर की इच्छा पूरी करने के लिए आया। वह पवित्र भेद में प्रमुख है, जिस से यह भेद सचमुच ही उत्तम बनता है।

९. क्या सबूत है कि १ तीमुथियुस ३:१६ का अनुवाद इस तरह नहीं होना चाहिए: “परमेश्‍वर शरीर में प्रगट हुआ”?

९ त्रित्ववादी पवित्र भेद के अर्थ को धुँधला करने की कोशिश यह कहकर करते हैं कि १ तीमुथियुस ३:१६ का “वह” स्वयं परमेश्‍वर है। वे इस का आधार किंग जेम्स बाइबल से लेते हैं, जहाँ लिखा गया है, “परमेश्‍वर शरीर में प्रगट हुआ।” बहरहाल, अधिकांश भरोसे-योग्य यूनानी हस्तलिपियाँ क्या कहती हैं? सुसंगत रूप से, वे “परमेश्‍वर” के बजाय “वह,” यह सर्वनाम इस्तेमाल करती हैं। अब मूलपाठ-विषयक समीक्षक सहमत हुए हैं कि इस शास्त्रपद में “परमेश्‍वर” शब्द का सन्‍निवेश दरअसल शास्त्रियों की भूल है। इस तरह, अमेरिकन स्टैंडर्ड वर्शन, द न्यू इंग्लिश बाइबल, और न्यू वर्ल्ड ट्रांस्लेशन जैसे अधिक आधुनिक अनुवादों में सही-सही यों पढ़ा जा सकता है: ‘वह [या, वह जो] शरीर में प्रगट हुआ।’ नहीं, यह स्वयं परमेश्‍वर न थे जो “शरीर में प्रगट हुआ।” उलटा, यह उनकी सबसे पहली सृष्टि और परमप्रिय बेटा था, जिसके बारे में प्रेरित यूहन्‍ना ने लिखा: “और वचन देहधारी हुआ; और अनुग्रह और सच्चाई से परिपूर्ण होकर हमारे बीच में डेरा किया, और हम ने उस की ऐसी महिमा देखी, जैसी पिता के एकलौते की महिमा।”—यूहन्‍ना १:१४.

“शरीर में प्रगट”

१०. (अ) यीशु के बपतिस्मा के अवसर पर पवित्र भेद का पहला पहलू किस तरह प्रत्यक्ष हुआ? (ब) यीशु “अन्तिम आदम” किस तरह बन गया?

१० यीशु के बपतिस्मा के अवसर पर पवित्र भेद का पहला पहलू प्रत्यक्ष हुआ: यीशु परमेश्‍वर के अभिषिक्‍त पुत्र के रूप में “शरीर में प्रगट हुआ।” यहोवा परमेश्‍वर ने अपने पुत्र की जान को स्वर्ग से मरियम के गर्भ में स्थानान्तरित किया था ताकि यीशु शरीर में एक पूर्ण मानव के रूप में जन्म ले सके। इस प्रकार, जैसे १ कुरिन्थियों १५:४५-४७ में दिखाया गया है, यीशु दूसरा, या “अन्तिम,” आदम बन गया, एक पूर्ण मानव जीवात्मा जो पहले आदम के ठीक-ठीक बराबर था। किस मक़सद से? १ तीमुथियुस २:५, ६ “अन्तिम आदम” का ज़िक्र इस तरह करता है, “यीशु मसीह, जो मनुष्य है। जिस ने अपने आप को सब के छुटकारे के दाम में दे दिया।” एक पूर्ण मानव बलिदान की क़ानूनी बुनियाद पर, यीशु १,४४,००० मानवों की ओर, जो कि उसके साथ उसके राज्य में सह-वारिस बनते हैं, एक नयी वाचा का मध्यस्थ बनता है।—प्रकाशितवाक्य १४:१-३.

११. यीशु के छुटकारे बलिदान से आनेवाले लाभ किन तक बढ़ते हैं?

११ क्या अन्य लोग यीशु की बलि-मृत्यु से लाभ उठा सकते? अवश्‍य, हाँ! १ यूहन्‍ना २:२ बताता है कि यीशु मसीह “हमारे पापों [यानी, यूहन्‍ना के जैसे अभिषिक्‍त मसीहियों के पापों] का प्रायश्‍चित्तिक बलि है, और केवल हमारे ही नहीं, बरन सारे जगत के पापों का भी।” (न्यू.व.) इस तरह यीशु के छुटकारे बलिदान से आनेवाले लाभ १,४४,००० अभिषिक्‍त मसीहियों से कहीं आगे बढ़कर, मनुष्यजाति के सारे जगत के लिए भी हैं। “एक बड़ी भीड़,” जो अब जीवित है, और लाखों करोड़ों लोग, जो परादीस पृथ्वी पर पुनरुत्थित होंगे, यीशु के छुटकारे के बलिदान में अपने विश्‍वास के आधार पर अनन्त जीवन पाएँगे। अभी भी, जैसे प्रकाशितवाक्य ७:९, १० में भविष्यवाणी की गयी है, बड़ी भीड़ ने मेम्ना, यीशु मसीह, के बहाए लहू में विश्‍वास करने के द्वारा अपने-अपने वस्त्रों को धोकर उन्हें सफ़ेद किए हैं। उन्हें परमेश्‍वर के साथ मित्रता प्राप्त करने तक धर्मी ठहराया जाता है। हर्ष से, वे पवित्र भेद के विविध पहलुओं के बारे में सीखते हैं और यीशु के उदाहरण के अनुसार ईश्‍वरीय भक्‍ति दर्शाते हैं!

अन्य पहलू

१२. यीशु किस तरह “आत्मा में धर्मी ठहरा”?

१२ अब, १ तीमुथियुस ३:१६ के दूसरे पहलू का क्या? यीशु “आत्मा में धर्मी ठहरा।” लेकिन कैसे? यहोवा का अपने ख़राई-रखनेवाले पुत्र को मृतावस्था से आत्मिक जीवन में पुनरुत्थित करने के द्वारा। यह परमेश्‍वर के घोषित करने के बारबर था कि यीशु संपूर्ण रूप से धर्मी था और अधिक उन्‍नत नियतकार्य सौंपे जाने के योग्य था। जैसे रोमियों १:४ में कहा गया है, यीशु “पवित्रता की आत्मा के भाव से मरे हुओं में से जी उठने के कारण सामर्थ के साथ परमेश्‍वर का पुत्र ठहरा है।” इसकी पुष्टि करते हुए, पतरस हमें अपनी पहली पत्री, अध्याय ३, आयत १८ में बताता है: “मसीह ने भी, अर्थात्‌ अधर्मियों के लिए धर्मी ने, पापों के कारण एक बार दुख उठाया, ताकि हमें परमेश्‍वर के पास पहुँचाए: वह शरीर के भाव से तो घात किया गया, पर आत्मा के भाव से जिलाया गया।” क्या ईश्‍वरीय भक्‍ति में दिया यीशु का उदाहरण आपको परमेश्‍वर की ओर ले जा रहा है?

१३. पुनरुत्थित यीशु कौनसे स्वर्गदूतों को दिखाई दिया, और उसने उन्हें किस तरह के संदेश का प्रचार किया?

१३ १ तीमुथियुस ३:१६ को जारी रखकर, पौलुस आगे पवित्र भेद के तीसरे पहलू का ज़िक्र करते हैं, यह कहते हुए कि यीशु “स्वर्गदूतों को दिखाई दिया।” ये स्वर्गदूत कौन हो सकते हैं? पतरस यीशु के संबंध में, जो अब “आत्मा के भाव से जिलाया गया” है, १ पतरस ३:१९, २० में लिखते हैं: “उसी [अवस्था] में उस ने जाकर कैदी आत्माओं को भी प्रचार किया, जिन्होंने उस बीते समय में आज्ञा न माना जब परमेश्‍वर नूह के दिनों में धीरज धरकर ठहरा रहा।” यहूदा ६ के अनुसार, वे आत्माएँ वही ‘स्वर्गदूत’ हैं जिन्होंने स्वर्ग में “अपने पद को स्थिर न रखा।” उन्होंने शरीरिक देह धारण किया ताकि वे औरतों के साथ नाजायज़ संबंध का उपभोग कर सकें। जब जलप्रलय की वजह से उन स्वर्गदूतों को आत्मिक क्षेत्र में लौटना पड़ा, उन्हें टार्टेरस (अँधेरे कुण्डों) में फेंका गया, जो कि संपूर्ण हीनता की अवस्था है। (२ पतरस २:४) पुनरुत्थान पाए हुए यीशु ने उनको प्रचार किया। क्या वह मुक्‍ति का संदेश था? निश्‍चय ही नहीं! उलटा, यीशु ने उनकी दुष्टता की निन्दा की, कि यह ईश्‍वरीय भक्‍ति के पूर्णतया प्रतिपक्ष था। आज परमेश्‍वर के लोगों में से जो कोई यौन-विषयक अनैतिकता से खेलता है, उसे उन स्वर्गदूतों पर सुनाए न्यायदण्ड से सावधान होना चाहिए!

१४. यह कैसे हुआ कि यीशु “अन्यजातियों में प्रचार” होने लगा?

१४ १ तीमुथियुस ३:१६ का चौथा पहलू यह है कि यीशु का “अन्यजातियों में प्रचार हुआ।” यह किस तरह पूरा हुआ है? उसकी गिरफ़्तारी से कुछ ही समय पहले, यीशु ने अपने प्रेरितों से कहा: “मैं तुम से सच कहता हूँ कि जो मुझ पर विश्‍वास रखता है, ये काम जो मैं करता हूँ वह भी करेगा, बरन इन से भी बड़े काम करेगा, क्योंकि मैं पिता के पास जाता हूँ।” (यूहन्‍ना १४:१२) उसके थोड़े ही समय बाद, सा.यु. ३३ के पिन्तेकुस्त पर, यीशु ने अपने शिष्यों पर पवित्र आत्मा उँडेल दिया, और यह चौंकानेवाला संदेश, कि “यीशु को परमेश्‍वर ने जिलाया,” यहूदियों को प्रचार होने लगा। बाद में, सामरियों ने भी परमेश्‍वर का वचन स्वीकार किया, और वे पवित्र आत्मा पाने लगे। (प्रेरितों के काम २:३२; ८:१४-१७) फिर, सा.यु. ३६ में, पतरस ने कुरनेलियुस और उसके घर में एकत्रित हुए अन्यजातिय लोगों को प्रचार किया। इस तरह, यीशु के बारे में सुसमाचार “अन्यजातियों में प्रचार” होने लगा, यानी, ग़ैर-यहूदियों के बीच, जिन्हें भी पवित्र आत्मा से अभिषिक्‍त किया गया।

१५. किस बात से साबित होता है कि पहली-सदी के मसीहियों ने ईश्‍वरीय भक्‍ति का पवित्र भेद अच्छी तरह से सीखा था?

१५ जैसा कि प्रेरितों के काम १२:२४ में बताया गया, “यहोवा का वचन बढ़ता और फैलता गया।” प्रेरितों के काम १७:६ में बताया गया है कि उत्तरी यूनान में विरोधियों ने चिल्लाकर कहा, जैसा कि वहाँ वे आज तक करते हैं: “ये लोग जिन्होंने जगत को उलटा पुलटा कर दिया है, यहाँ भी आए हैं।” ३० साल के अन्दर, पौलुस रोम से लिख सके कि सुसमाचार “का प्रचार आकाश के नीचे की सारी सृष्टि में किया गया।” (कुलुस्सियों १:२३) उस समय के मसीहियों ने ईश्‍वरीय भक्‍ति का पवित्र भेद अच्छी तरह से सीखा था। वे कितने जोश से उसे अमल में ला रहे थे! और राज्य प्रचार कार्य के इस निर्णायक समय में हम भी उसी तरह उसे सीखें और उसे अमल में लाएँ!

१६. पवित्र भेद का पाँचवाँ पहलू क्या है, और कौनसे कार्य ने इसे प्रत्यक्ष किया?

१६ पहली-सदी के उस प्रचार कार्य की प्रतिक्रिया में, १ तीमुथियुस ३:१६ के पवित्र भेद का पाँचवाँ पहलू विशेष रूप से प्रत्यक्ष हुआ। यीशु पर अब “जगत में विश्‍वास किया” जाने लगा। यह जोशीले मिशनरियों के मसीह-समान ईश्‍वरीय भक्‍ति का परिणाम था, जिन में पौलुस और तीमुथियुस भी शामिल थे। वे सुसमाचार को एशिया माइनर और यूरोप में, शायद स्पेन तक ले गए, और पूर्वी आफ्रिका में यह बपतिस्मा-प्राप्त कूशी के प्रचार के द्वारा फैल गया, जबकि पतरस बाबेलोन में सेवा करते रहे।

१७. पूरी आधुनिक दुनिया में यीशु पर विश्‍वास क्यों किया जा रहा है?

१७ हमारे समय का क्या? १९१९ से अभिषिक्‍त शेष वर्ग के सदस्य आदर्श ईश्‍वरीय भक्‍ति दर्शाते आए हैं। इन अभिषिक्‍त लोगों ने यीशु द्वारा तैयार की गयी बुनियाद पर मज़बूत रीति से निर्माण किया है। ख़ास तौर से १९३५ से, वे एक बड़ी भीड़ को इकट्ठा करने लगे हैं, जो इस प्रत्याशा में हर्ष मनाते हैं कि वे “भारी क्लेश” में से निकलकर एक परादीस पृथ्वी पर अनन्त जीवन के मज़े लूटेंगे। (प्रकाशितवाक्य ७:९, १४) इस प्रकार, पूरी आधुनिक दुनिया में यीशु पर केंद्रित सुसमाचार पर विश्‍वास किया जा रहा है। ईश्‍वरीय भक्‍ति दिखाकर, यहोवा के ३७,००,००० गवाह अब दुनिया भर में प्रचार कर रहे और समृद्ध हो रहे हैं!

१८. यीशु किस तरह “महिमा में ऊपर उठाया गया”?

१८ उस पवित्र भेद का एक और पहलू बचा है, छठाँ: यीशु “महिमा में ऊपर उठाया गया।” आत्मा के भाव से जिलाए जाने के बाद के ४० दिनों में, यीशु ने शारीरिक देह धारण किए, और वह अपने शिष्यों को दिखायी देता रहा और उन से “परमेश्‍वर के राज्य की बातें करता रहा।” फिर वह स्वर्ग पर चढ़ा। (प्रेरितों के काम १:३, ६-९) इस तरह यूहन्‍ना १७:१-५ में लिपिबद्ध उसकी प्रार्थना का उत्तर मिला: “हे पिता, . . . अपने पुत्र की महिमा कर, कि पुत्र भी तेरी महिमा करे . . . मैं ने पृथ्वी पर तेरी महिमा की है। और अब हे पिता, तू अपने साथ मेरी महिमा उस महिमा से कर जो जगत के होने से पहले, मेरी तेरे साथ थी।”

१९. यीशु के स्वर्ग में लौटने पर क्या हुआ होगा?

१९ यीशु के स्वर्ग में लौटने पर कितना बड़ा आनन्द मनाया गया होगा! बहुत पहले, जब यहोवा ने यह पृथ्वी बनायी थी, “परमेश्‍वर के सब पुत्र जयजयकार” करने लगे। (अय्यूब ३८:७) और उन स्वर्गदूतीय सेनाओं ने कहीं ज़्यादा हर्षोल्लास किया होगा जब उन्होंने अपने बीच यहोवा की प्रभुसत्ता के वफ़ादार समर्थक का फिर से स्वागत किया!

२०. यीशु ने इतना उत्तम नाम क्यों पाया है, और जब वह पृथ्वी पर था, उसने क्या किया?

२० इब्रानियों १:३, ४ में, पौलुस विजयी यीशु के बारे में कहते हैं: “वह पापों को धोकर ऊँचे स्थान पर महामहिमन के दहिने जा बैठा। और स्वर्गदूतों से उतना ही उत्तम ठहरा, जितना उस ने उन से बड़े पद का वारिस होकर उत्तम नाम पाया।” मसीह ने अधर्म पर अपनी जीत की वजह से वह नाम पाया। परमेश्‍वर के इस पुत्र ने यहाँ पृथ्वी पर अग्रसर के रूप में सचमुच ही ईश्‍वरीय भक्‍ति का पथप्रर्दशन किया। उसने अन्य सभी लोगों के लिए, जो अनन्त जीवन प्राप्त करेंगे, एक आदर्श भी प्रस्तुत किया था। स्वर्ग में परमेश्‍वर के दायें हाथ को यीशु के उन्‍नयन के साथ ही, इस ईश्‍वरीय भक्‍ति का पवित्र भेद, अपने सभी पहलुओं समेत, प्रगट किया गया।

आप कैसे उत्तर देंगे?

◻ “ईश्‍वरीय भक्‍ति” क्या है?

◻ यीशु किस तरह “शरीर में प्रकट हुआ” और उसके बाद “आत्मा में धर्मी ठहरा”?

◻ यीशु कौनसे स्वर्गदूतों के सामने प्रकट हुआ, और कौनसा संदेश लेकर?

◻ यीशु का “अन्यजातियों में प्रचार” किस तरह हुआ और “उस पर सारे जगत में विश्‍वास” किस तरह किया गया?

◻ यीशु कब “महिमा में ऊपर उठाया गया,” और ईश्‍वरीय भक्‍ति के संबंध में क्या करने के बाद ऐसा हुआ?

    हिंदी साहित्य (1972-2025)
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