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प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1991
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लक्ष्य की ओर बढ़ते जाओ!

फिलिप्पियों के मुख्य अंश

प्रेरित पौलुस चाहता था कि फिलिप्पी के मसीही अनन्त जीवन के इनाम के लक्ष्य की ओर बढ़ते जाएँ। इसलिए, उसने रोम में अपनी पहली क़ैद के दौरान, लगभग सामान्य युग के वर्ष ६० या वर्ष ६१ में उनको लिखा। उसकी चिट्ठी उसके द्वारा दस साल पहले फिलिप्पी में स्थापित की गयी मण्डली में भेजी गयी। इस नगर को मकिदोन के फिलिप (महान सिकंदर के पिता) ने स्थापित किया था। सामान्य युग की पहली सदी तक, यह “मकिदुनिया प्रान्त का मुख्य नगर” बन गया था,” जो कि अब उत्तरी ग्रीस और दक्षिणी यूगोस्लाविया का भाग है।—प्रेरितों १६:११, १२.

फिलिप्पी के विश्‍वासी ग़रीब ज़रूर थे, पर उदार थे। कई बार, उन्होंने पौलुस की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए कुछ भेजा था। (फिलिप्पियों ४:१४-१७) लेकिन उसकी चिट्ठी में “धन्यवाद” के अलावा बहुत कुछ था। इस में प्रोत्साहन, प्रेम और उपदेश दिया गया था।

मसीही गुण प्रकट

पौलुस की चिट्ठी फिलिप्पी के विश्‍वासियों के लिए उसके प्रेम की अभिव्यक्‍ति से खुलती है। (१:१-३०) उसने सुसमाचार को बढ़ाने हेतु उनके द्वारा दिए अंशदान के लिए यहोवा का शुक्रिया अदा किया और प्रार्थना की कि उनका प्रेम बढ़े। पौलुस खुश था कि उसके क़ैद होने के कारण उन्होंने ‘हियाव बान्ध कर, परमेश्‍वर का वचन निधड़क सुनाया।’ वह मसीह के पास जाकर रहना चाहता था परन्तु उसे लगा कि वह अब भी इन लोगों की सेवा कर सकता है। पौलुस यह भी चाहता था कि वे “कँधे से कँधा मिलाकर सुसमाचार के विश्‍वास के लिए परिश्रम करते” रहें। (न्यू.व.)

इसके बाद मनोवृत्ति और आचरण पर उपदेश दिया गया। (२:१-३०) फिलिप्पियों को दूसरों में वैयक्‍तिक दिलचस्पी और मसीह के समान विनम्रता दर्शाने के लिए प्रोत्साहित किया गया। वे “जगत में जलते दीपकों की नाईं दिखायी” दे रहे थे और उन्हें बढ़ावा दिया गया कि वे ‘जीवन के वचन को कसकर पकड़े रखें।’ पौलुस ने तीमुथियुस को उनके पास भेजना चाहा और उसे यक़ीन था कि वह खुद भी जल्द ही आएगा। उन्हें इपफ्रुदीतुस के बारे में आश्‍वासन दिलाने के लिए, जो कि बहुत बीमार रह चुका था, पौलुस इस वफ़ादार दास को उनके पास भेज रहा था।

लक्ष्य की ओर बढ़ते रहना

फिर प्रेरित ने फिलिप्पियों को बताया कि जैसे-जैसे वे लक्ष्य की ओर बढ़ते जा रहे थे, उन्हें अपना भरोसा किस पर रखना चाहिए था। (३:१-२१) यह यीशु मसीह पर होना चाहिए, शरीर पर या ख़तना पर नहीं, जैसा कि कुछ लोग कर रहे थे। पौलुस “मसीह की पहचान की उत्तमता के कारण” अपने शारीरिक प्रत्यय-पत्रों को कूड़ा समझता था। प्रेरित “निशाने की ओर दौड़ा चला” जा रहा था, “ताकि वह इनाम” पा सके, “जिसके लिए परमेश्‍वर ने” उसे “मसीह यीशु में ऊपर बुलाया” था, और उसने फिलिप्पियों को समान मनोवृत्ति बनाए रखने के लिए प्रोत्साहन दिया।

पौलुस के समाप्ति में दिए उपदेश पर अमल करना फिलिप्पियों को लक्ष्य तथा इनाम को अपने नज़रों के सामने रखने में मदद करता। (४:१-२३) उसने उन्हें प्रोत्साहित किया कि वे प्रार्थना के ज़रिए अपनी चिन्ताओं को परमेश्‍वर को सौंप दें और अपने मन को हितकर विचारों से भर दें। पौलुस ने फिर से उनकी उदारता के लिए उनका शुक्रिया अदा किया और नमस्कार के साथ तथा इस कामना के साथ समाप्त किया कि प्रभु यीशु मसीह का अनुग्रह उनके द्वारा दिखायी आत्मा के साथ रहे।

फिलिप्पियों को लिखी पौलुस की चिट्ठी उदारता, प्रेम और विनम्रता को बढ़ावा देती है। यह मसीह पर भरोसा रखना और परमेश्‍वर को हार्दिक प्रार्थना करना प्रोत्साहित करती है। और पौलुस के शब्द निश्‍चय ही यहोवा के गवाहों को अनन्त जीवन के इनाम के लक्ष्य की ओर बढ़ते रहने की मदद करते हैं।

[पेज 31 पर बक्स/तसवीर]

लक्ष्य की ओर: पौलुस ने कहा, “जो बातें पीछे रह गईं हैं उनको भूल कर, आगे की बातों की ओर बढ़ता हुआ, निशाने की ओर दौड़ा चला जाता हूँ, ताकि वह इनाम पाऊँ, जिस के लिए परमेश्‍वर ने मुझे मसीह यीशु में ऊपर बुलाया है।” (फिलिप्पियों ३:१३, १४) प्रेरित अपने आप से एक ऐसे व्यक्‍ति की तरह परिश्रम करवा रहा था, जो एक दौड़ में दौड़ता है। उसने पीछे देखने में वक़्त और कोशिश को नहीं गँवाया, बल्कि अपने लक्ष्य की ओर बढ़ता गया—एक धावक के जैसे जो समाप्ति की रेखा को पार करने के लिए घोर परिश्रम करता है। पौलुस और दूसरे अभिषिक्‍त मसीहियों के लिए, वह इनाम परमेश्‍वर के प्रति एक वफ़ादारी भरा पार्थिव जीवन पूरा करने के बाद पुनरुत्थान से स्वर्गीय जीवन को पाना था। हमारी आशाएँ चाहे स्वर्गीय हों या पार्थिव, हम यहोवा के प्रति ख़राई रखें और उसके गवाहों की हैसियत से लक्ष्य की ओर बढ़ते जाएँ।—२ तीमुथियुस ४:७.

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